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कविता

वीर सावरकर
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वीर सावरकर

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** भारत की भूमि पर जन्मा, विनायक दामोदर सावरकर ऐसा वीर किरदार कहलाया है। सावरकर का हर एक कदम, विश्व में पहले स्थान पर आया है। भारत मां को समर्पित जीवन, हिंदुत्व का इतिहास बनाया था। सर्वप्रथम उसने ही विदेशी वस्त्रों की होली जला, स्वदेशी होने का मान बढ़ाया था। दुनिया का वह पहला कवि था। जेल को दीवारों को कागज और कील-कोयले को कलम बनाया था। पूर्ण स्वतंत्रता आंदोलन का लक्ष्य, सर्वप्रथम उसने ही घोषित कर दिखलाया था। भारत की भूमि पर जन्मा, ऐसा वीर किरदार कहलाया है। सावरकर का हर एक कदम, विश्व में पहले स्थान पर आया है। झुका नहीं वह वीर सावरकर, देश की खातिर सब सह आया था। आंदोलनकारी होने पर, उपाधि वापिस ले स्नातक की, ब्रिटिश सरकार ने तुच्छ कदम उठाया था। सर्वप्रथम उसने ही स्नातक होने का गौरव पाया था। भ...
मन का मौसम
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मन का मौसम

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** मन का मौसम है अपने ही मन का फेर, दूसरों को देखोगे तो हो ही जाएगी अंधेर। मन अपनी खुशी क्यों औरों से जोड़ते हो? तोड़ने वाले बहुत है फिर  मायूस हो जाते हो! मन अपना फूल से बढ़कर नाजूक होता है, औरों से कहा आज-कल समझा जाता है? मन रे कहा है किसी कवि ने तू धीर धर, औरों की वजह से खुद को बरबाद न कर। मन रे मोह माया से सम्भाल कर रहा कर, मुफ्त में सुख चैन का सौदा न किया कर मन का मौसम खुद के काबू में रखा कर, इसे औरों के भरोसे नहीं कभी सौंपा कर। परिचय :- डॉ. संगीता आवचार निवासी : परभणी (महाराष्ट्र) सम्प्रति : उप प्रधानाचार्य तथा अंग्रेजी विभागाध्यक्ष, कै सौ कमलताई जामकर महिला महाविद्यालय, परभणी महाराष्ट्र घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि रा...
जीने का सहारा
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जीने का सहारा

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हरा भरा था देश हमारा शस्य श्यामला था थल सारा वृक्षों का झुरमुठ था न्यारा सब जीवों के जीने का सहारा पोखर ताल व नदी किनारा जल ने जीवन को था तारा यूँ तो समंदर भी है खारा देता पर्यावरण का नारा यदि चाहिए मलय मंद फूलों में मीठी सी सुगंध नृत्य करे जल में तरंग तोड़ो प्रदूषण से संबंध रोक वनों की व्यर्थ कटाई नव पौधों की कर सेवकाई शुरू करो इक नई कहानी सहेज लो बारिश का पानी कचरा प्रबंधन सहज बनाओ गीले कचरे से खाद बनाओ गंदगी यहाँ वहाँ ना फैलाओ स्वच्छता अभियान चलाओ मग बाल्टी,उपयोग बढाओ व्यर्थ जल से सब्ज़ी उगाओ टोटियां नल की ठीक कराओ बून्द बून्द पानी की यूँ बचाओ अर्ध पात्र जल दीजिए प्यासा जब कोई होय पूरा जल पी लीजिए जल जितना पात्र में होय फूल पात व जली अस्थियां देवों की विसर्जित मूर्तियां विलुप्त हो गई...
प्रेम
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प्रेम

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** क्या है परिभाषा पवित्र प्रेम की?? स्नेह, लगाव, भावना, एक सुखद अहसास?? यहीं समाप्त नहीं हो सकती "परिभाषा "प्रेम की! प्रेम शाश्वत है, कल था, आज है, कल भी रहेगा!! शुभ का आरंभ, निरंतरता का बहाव है प्रेम, सूकून है, लगन है, मुक्ति है प्रेम! ईश्वर की अराधना, हवन कुंड का पवित्र धुआं है प्रेम, प्रकृति का कण-कण है प्रेम, जीवों के प्रति करुणा है प्रेम! शब्दों में ना वर्णित हो पाए वो उपासना है प्रेम, सृष्टि की रचना का आधार, जीवन की सार्थकता है प्रेम! एक मौन अभिव्यक्ति, ईश्वरlनुभूति है प्रेम! समर्पण, विश्वास, वचन बद्धता, अद्विती यता है प्रेम! प्रेम आदि-अनादि है, जगत में परमात्मा का प्रतिनिधि है प्रेम! सत्य है, शिव है, सुन्दरतम है "प्रेम" !!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री ...
जान लिया
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जान लिया

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** क्या फर्क पड़ता है अब तेरे आने से क्या फर्क पड़ता है, अब तेरे जाने से हम तो चर्चित रहेंगे फिर भी इस जमाने में। क्या फर्क पड़ता है अब तेरे रोने से क्या फर्क पड़ता है अब तेरे मुस्कुराने से। हमने जान लिए हैं अब हर तरीके तेरे दिल बहलाने के। क्या फर्क पड़ता है अब दिल लगाने से क्या फर्क पड़ता है अब दिल दुखाने से हमने जान लिया है, महज ये पल भर की खुशी है पल भर की हंसी है। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय ...
कर्तव्य के मोल
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कर्तव्य के मोल

डॉ. मिनाक्षी अनुराग डालके मनावर जिला धार (मध्य प्रदेश) ******************** सपने अपने त्याग कर जो निभाए अपनों का संग आशाओं का समुद्र ना पहचाने बस जाने अपनों के सपनों के रंग जो ना करें रिश्तो में तोल मोल बस वही जाने कर्तव्य का मोल, वह लड़े कभी अपनों के लिए और कभी लड़े उनके सपनों के लिए लेकिन बांधे ना कभी अपनी ख्वाहिशों की पुड़िया उसकी तो बस संघर्षों की दुनिया जो बोले प्रेम के बोल वही जाने कर्तव्य के मोल, जो ना समझे अपनों का मान उन्हें क्या होगी कर्तव्य की पहचान जो छोटा होकर भी बांधे परिवार की डोर जैसे मिले दो नदियों के छोर उसके आगे किसी का ना कोई मोल वही जाने कर्तव्यों के मोल, परिचय : डाॅ. मिनाक्षी अनुराग डालके निवासी : मनावर जिला धार मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
कविता

नोंच लो जितना चाहों तुम

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** नोंच लो जितना चाहों तुम दोनों हमें, नोंचने से न ममता घटेगी मेरी। नोंचने से ये मतलब तनिक भी नहीं, नोंचना तो तु सारा बदन नोचना। कुछ भी करना है तुझको आजादी पूरी, गलती हो तुझसे तो खुद को हीं कोसना। अश्क आंखों में भरकर करूं मिन्नतें, तुझसे नजरें कभी ना हटेगी मेरी। नोंच लो जितना चाहो तुम दोनों हमें, नोंचने से न ममता घटेगी मेरी। तेरे हीं वास्ते मेरा जीवन भरा, है तेरे हीं लिए मेरा हर माजरा। तेरे बिन अब गुजारा तनिक भी नहीं, तु हीं पहली डगर और डगर आखिरी। नोंच लो जितना चाहो तुम दोनों हमें, नोंचने से न ममता घटेगी मेरी। इक मेरा लाडला इक जीवन संगीनी, चांह कर भी नहीं हो कभी फासला। प्रेम से बढ़कर कुछ भी जहां में नहीं, मिलती इतनी खुशी विघ्न सारा टला। नोंच लो जितना चाहो तुम दोनों हमें, नोंचने से न ममता घटेगी मेरी। ...
अरे भेड़िये अब तो, बदल अपनी खाल
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अरे भेड़िये अब तो, बदल अपनी खाल

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** तेरा मेरा, मेरा तेरा ये सब भव के जाल। उड़ जाये हंस अकेला छूट जाये जंजाल।। आया है जग मे तो कर ले नेक काम। मुक्त हो जा भव से जीव पाये विश्राम।। नेक कर्म से ही काटिये भव के जाल। तेरा मेरा, मेरा तेरा ये सब भव के जाल।। आया है जग मे उसे जाना ही पड़ेगा। किस्मत से अपनी तू कब तक लड़ेगा।। मन मे इस जग की, तू चाहत ना पाल। तेरा मेरा, मेरा तेरा ये सब भव के जाल।। उसके दर पर लगेगी जिस दिन हाजिरी। वंहा ना चलेगी तब किसी की जी हुजूरी।। दर जाने से पहले, बदल ले अपनी हाल। तेरा मेरा, मेरा तेरा ये सब भव के जाल।। चार दिन की चकाचौँध मे सब फंसे है। संसारिकता की कीचड़ मे सब धंसे है।। जग मे रहते-रहते, बना ले अपनी ढाल। तेरा मेरा, मेरा तेरा ये सब भव के जाल।। तेरा मेरा, मेरा तेरा मे बीत गई जवानी। कर ले जतन कितनी बची है ज़िंदगानी।।...
विश्वास
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विश्वास

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** मुझें विश्वास है मुझें आस है, मिलेगी मंजिल मेरी जरुर एक दिन। करुंगा मेहनत दिन-रात, चाहे रात कटे मेरे तारें गीन-गीन।। मुसाफिर हूं मैं राहगीरों का, बस यही आस में निकलता हूं। चाहें कुछ मिलें या न मिले, बस अपना काम मैं करता हूं।। आगे बढ़ना संकटों से लड़ना, मन में है पुरा विश्वास। जरुर मिलेगी लहरों को साहिल, बस यही है मेरी आस।। आशा की किरण जगे मन में, कर देंगें प्रकाश वान। मिलेगी सफलता एक दिन, बस कर्म है यहां प्रधान।। आज नही तो कल चमकेगें, बने के हम फूल चमन में। होगें कामयाब हम जरुर, खिलेंगे एक रोज हम भी उपवन में। परिचय :- डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
करें वृक्षों का गुणगान
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करें वृक्षों का गुणगान

डाॅ. कृष्णा जोशी इन्दौर (मध्यप्रदेश) ******************** पीपल, बरगद, नीम तुलसी, वृक्ष बड़े हैं महान्। इनके अद्भुत गुणों को, अब मानव ले पहचान।। पूज्यनीय हैं वृक्ष धरा पर, है सौंदर्य बढ़ाते। रोगनाशक, अविरत गुण, वृक्षों में पाए जाते।। इन वृक्षों का पूजन करें, श्रद्धा से धरे ध्यान। ब्रह्माण्ड के सारे देव इनमें, वृक्ष बड़े महान्।। वृक्ष को जल देना नित, सारे जग के वासी। संकट सारे दूर करेंगे बात बहुत है साची।। सकल संसार में, वृक्ष सौन्दर्य का है भण्डार। "कृष्णा" कहें जीवनदाता, वृक्ष धरा पर उपहार।। गुणों से भरपूर वृक्ष, इनकी महानता को पहचान। वृक्ष लगाएं हर एक मानव, इनका करें क्या बखान ।। निस्वार्थ भाव से आश्रय देता, कई जीवो का है आवास। सजती संवरती धरा इनसे, वृक्ष में है ईश्वर का निवास।। परिचय :- डाॅ. कृष्णा जोशी निवासी : इन्दौर (मध्यप्रदेश) रुचि : साहित्यि...
मंचो पे कसीदे पढ़ के
कविता

मंचो पे कसीदे पढ़ के

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** मंचो पे कसीदे पढ़ के इतना बेकार नही बनना, झूठी खबरों की रद्दी झूठा अख़बार नही बनना। जब तक सांसे होगी, इंकलाबी बातें होगी, अमीरों की तारीफ करु, ऐसा मक्कार नही बनना। हमारी आवाज़ से पिघलते है फौलाद जूल्म के, लगड़ी, गूंगी, सियासत के प्यादो, के गले का हार नही बनना। छीनने से हक मिलेगा, ये तुम जान लो, मुल्क में नफरत फैलाऊ ऐसा सरदार नही बनना। भूखे, नंगे, गरीबो, बेघर लोगो का, साथी बनना है, चंद पैसों के खातीर, हमको ज़ालिम का हथियार नही बनना। अपनी फकीरी में खुश हूं ईमान के साथ, कड़वी बातें होगी, हमको बेईमानो का राजदार नही बनना। नफरत बोने वाले के घर में बीज बहुत है, अमन फैलाना है शाहरुख हमको सरकार नही बनना। परिचय :- शाहरुख मोईन निवासी : अररिया बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार स...
जीवन है क्या!
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जीवन है क्या!

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** स्मरण के पन्नो से भरा है जीवन, सुख और दुःख कि पहेली है जीवन कभी अकेले बैठ कर, चिंतन करके तो देखो, संबंधों के बगैर अपूर्ण है यह जीवन ! मन की बातों को बाहर आने दो, दबे हुए दर्द को निकल जाने दो, मन को आशा के पंख लगा दीजिए, तन को चाहत कि खुशबू से भर दीजिए, इन लम्हों को जी भरकर आप जी लीजिए, कब जिंदगी का अवसान हो जाए पता नहीं, इस खुबसूरत जिंदगी को दोस्त बनाकर जी लीजिए। हर तरफ तन्हाई - बेवफाई का आलम है, कौन किसका साथी है किसे क्या मालूम है। चाहत के इस बाजार में वफ़ा कि उम्मीद क्या, पलभर के साथी है हम बंधन का रिश्ता क्या। हर किसी को पूछता हूं जिंदगी मायने क्या, जो जी चुका जिंदगी को किसी चाहत से उम्मीद क्या। परिचय :- डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' मूल निवासी : अमझेरा, जिला धार (म.प्र.) ...
नारी की लाज
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नारी की लाज

कृष्ण कुमार सैनी "राज" दौसा, राजस्थान ******************** आज भी लुट रहा है, चीर नारी का। नारी, हर किसी पर है भारी, लेकिन न जाने क्यों हो रही है उसके साथ घटना दिन प्रतिदिन। कहते भी है कि "यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता", फिर भी कर रहे हैं, छल, कपट, अत्याचार नारी के साथ, हम और आप मिलकर। पहले भी होते थे और आज भी हो रहे हैं, अत्याचार नारी पर। न जाने कब तक होते रहेंगे इस धरती पर नारी के साथ अत्याचार।। हे कृष्ण पहले भी तुम्हीं आए थे बचाने लाज। अब भी उम्मीद है तुमसे ही आकर बचालो आज।। कलयुग की द्रोपदी की लाज। आ जाओ एक बार कृष्ण आज... आज... आज...॥ परिचय :- कृष्ण कुमार सैनी "राज" निवासी - दौसा, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविता...
दुनिया से अलविदा हो हम
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दुनिया से अलविदा हो हम

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** दुनिया से अलविदा हो हम, शोर तुम न करना मेरै यार नफरत करनी थी इतनी, ऑख में ऑसूॅ न लाना मेरे यार ये ख़ामोशिया ये दूरियाँ अब सही न जाए मेरे यार जख़्म इतने कम न हो किसी को न गीनाना मेरे यार पागल बादल की तरह यहाँ ढुढ रहा हूॅ मे तो तुम्हे जुबां पर आए नाम कभी, हमे तुम न गुनगुनाना मेरे यार कोई पता पूछ भी ले मासूमियत मे कभी तुमसे हमारा जरूरी नही, कोई राज की बात, उन्हे न बताना मेरे यार सोए नही, हम भी रात रात भर, लेकर नाम तुम्हारा ऑखो मे हे ऑसू मेरे, खुद को न रूलाना मेरे यार खाक-ए-सूपूर्द हो, हम तेरी गली से ही निकलेंगे पिछे से तुम मुझको, कभी सदा न लगाना मेरै यार रफ्ता-रफ्ता आग के हवाले जब होने लगे मोहन सोच कर, उस मंज़र को, ख़ुद को न जलाना मेरै यार परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्...
मोर भुइयाँ के करवँ गुनगान
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मोर भुइयाँ के करवँ गुनगान

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मोर भुइयाँ के करवँ गुनगान तोर महिमा है जग म महान। तोर कतका करवँ मैं ह बखान तोर गढ़ हे इहाँ सरग समान। ए माटी ह हावय पावन भुइयाँ जनजन ह तोर ध्यान धरइया। नित-नित हे तोर मान करइया तोर माटी ल हे माथ लगइया। तँय हर देवी तँय हर ओ माता जनम-जनम के तोर से नाता। तहीं ह माता तहीं ओ बरदाता तय हर ममता के खान माता। छत्तीस ठन तोर कुरिया-डेहरी छत्तीस-ठन हे तोर घर-दुवारी। तहीं हर,माता सब्बो के दुलारी तयँ हर बने सब्बो के महतारी। तोर कोरा हावय सरग ले बड़के तोर महिमा हावय अड़बड़ भारी तोर अँचरा हावय शीतल छईहा चारो धाम बरोबर सुग्घर न्यारी। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम
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हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम माँ भारती तव पुत्र-सेवक हम हिन्दी विश्व भाल पर चन्दन प्रथम करते हम मातृ वन्दन राष्ट्र-धरा के हैं उपासक हम हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम अनाहद नाद ने संस्कृत रची माँ शारदा आकर उसमें बसी संस्कृत से हिन्दी को पाते हम हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम भाषा जिसमें विज्ञान आधार स्वर-व्यंजन-संयोजन विस्तार मानव भाषा के आराधक हम हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम संस्कृत से जीवन में संस्कार सर्व जगत ने किया स्वीकार जीवन विकास के साधक हम हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र आयु : ४१ बसंत निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदेश) विधा : वीररस, देशप्रेम, आध्यात्म, प्रेरक, २५ वर्षों से लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक...
चाय का महत्व
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चाय का महत्व

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* चाय चतुर्भुज रूप है, कप नारायण जान। भगवन माया केटली, पीजे जल्दी छान।। रोज थकान मिटाती चाय। सबके मन को भाती चाय।।१ सुबह शाम दिन में चाय। रुकते काम बनाती चाय।।२ बाबू जी भी होटल जाय। फ़ाइल का सब हाल बताय।।३ वेटर कहता पीलो चाय। सबके होंश जगाती चाय।।४ जगते उठते चाय चाय। बच्चे बूढ़े सब चिल्लाय।।५ अब तो हमको देदो चाय। दादी-नानी मांगे चाय।।६ दादाजी पहले पी जाय। शौचालय से पहले चाय।।७ चाय-चाय जग चिल्लाय। मै भी रोज बनाता चाय।।८ अदरक कूटा डाली चाय। शकर दूध सही मिलाय।।९ कड़क उकाले वाली चाय। पत्नी पीके खुश हो जाय।।१० रेलों में भी मिलती चाय। घोल पाउडर तुरत पिलाय।।११ गुजराती की अच्छी चाय। मोदी जी की ऊंची चाय।।१२ जो दिल्ली तक ले जाय। जापानी भी पीते चाय।।१३ चीन अमरीका मांगे चाय। कोरोना को गि...
शहर से अलग है, गांव के घर
कविता

शहर से अलग है, गांव के घर

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** शहर से अलग है गांव के घर घास मिट्टी से बने है घर !! बर पीपल के छांव में घर लगते सुंदर न्यारे घर !! तुलसीचौरा सबके घर, गौ माता पूजे घर घर !! पशुओं को भी घर में रखते, हरदम उनकी सेवा करते ! गोबर से घर आँगन लिपते, स्वच्छ सुंदर घर है दिखते ! कोसो दूर बीमारी रहते, घर से दूर शौचालय रखते ! दादा परदादा साथ में रहते, आपस में सब बाते करते ! रिश्ते नाते साथ निभाते, गीत ख़ुशी के सब है गाते !! मम्मी, चाची पारस करते, बैठ जमी में खाना खाते! बंद दरवाजा कभी ना रखते, मेहमानों का आदर करते ! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी क...
ऐ जिंदगी….
कविता

ऐ जिंदगी….

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** मुझ पर विश्वास तो कर ऐ जिंदगी, मैं तुझ से खफा नहीं। लोग समझते हैं तू बेवफा हो गई, मगर तेरी रजा है ही निराली, जिसने जैसे तुझे अपनाया, तू उसके लिए वैसी ही बन गई ऐ जिंदगी। किसी के लिए स्वप्न तो किसी के लिए रंंगमच बन गई जिंदगी। तू किसी के लिए गमों का खारा सागर तो किसी के लिए प्यार का गीत बन गई ऐ जिंदगी। किसी के लिए संघर्ष तो किसी के लिए पुष्पों की सेज बन गई जिंदगी। इंसान का असली चेहरा दिखाने के लिए आईना बन गई ऐ जिंदगी। किसी के लिए अभिशाप तो किसी के लिए वरदान बन गई जिंदगी। सच कहूँ तो हमने तुझे जीना सीखा ही नहीं ऐ जिंदगी। जीने का जज्बा ग़र दिलों में जगा हो, संघर्षों और मुफलिसी के अंधकार को आशाओं की किरणो से प्रकाशित कर, बुलंद हौसलों की उड़ानों से नित नए मार्ग प्रशस्त करती है जिंदगी। हस...
लिख रही है कलम
कविता

लिख रही है कलम

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** आज का ये जहाँ पहले जैसा कहा, रो-रो हर दास्ताँ लिख रही है कलम। याद बचपन की वो खेल कबड्डी का, माँ की वो लोरियां लिख रही है कलम। नखरे इक-इक सभी बेवजह छुट्टियां, मेरी हर खामियां लिख रही है कलम। गाँव की टोलियाँ छांव पीपल के वो, खेलना गोटियां लिख रही है कलम। घसकुटी गुलीडंडा के न्यारे वो खेल, रुठकर मान जाना अनोखे थे मेल, बचपना मस्तियां लिख रही है कलम। अब तो होली दीवाली में रौनक नहीं, संडे की छुट्टियां लिख रही है कलम। झूले सावन के हरियालियां खेतों की, कुक कोयल की वो लिख रही है कलम। लिखते आनन्द की आंख भी भर गयी, अब कहाँ वो शमां लिख रही है कलम। परिचय :- आनंद कुमार पांडेय पिता : स्व. वशिष्ठ मुनि पांडेय माता : श्रीमती राजकिशोरी देवी जन्मतिथि : ३०/१०/१९९४ निवासी : जनपद- बलिया (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र :...
पर्यावरण बचाना होगा
कविता

पर्यावरण बचाना होगा

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** चारों ओर आवरण दिखता, पर्यावरण कहाता। हरा भरा चहुँ ओर आवरण, मन को खूब सुहाता। इसके बिना जिंदगी सूनी, सूना है घर आँगन। पर्यावरण प्रदूषित हो तब, सबको होती लाँघन। हरा-भरा धरती का आँचल, सबका मन हर लेता। धनसंपदा रसद भी मिलती, खाली घर भर देता। अपना उल्लू सीधा करने, वृक्ष काटते सारे। पारा आसमान को छूता, दिन में दिखते तारे। रात दिवस चलती रहती है, अंधाधुंध कटाई। हम खुद कालिदास बने हैं, जीवन पड़ा खटाई। शीतल छाँव नहीं पंथी को, पंछी नहीं बसेरा। मोर, पपीहा नहीं दीखते, घने वृक्ष का डेरा। धुआँ उगलती चिमनी देखो, पर्यावरण मिटाती। दूषित वायु प्रकृति सोख कर, पल-पल ताप घटाती। ड़ाल रसायन हम खेती को, मिलकर बाँझ बनाते। देख अधिक उत्पादन हम सब, खुशियाँ साँझ मनाते। आस्तीन के साँप स्वयं हम, ड़सते हैं अ...
ज्ञान की ज्योति
कविता

ज्ञान की ज्योति

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** ज्ञान की जोत न जलती तो जीवन उजियार नही होता प्रथम शिक्षक कौन होता गर माँ का प्यार नही होता कानो मे लोरी गा गा कर जिसने मुझको दीक्षा दी प्रथम गुरु तो माँ ही है जिसने शब्दो की शिक्षा दी जिसके ममता दुलार से मन मे भाव यही आया मेरे होटों पे सबसे प्यारा पहला अक्षर माँ आया उसके शिक्षक होने का उसको ये परीणाम मीला मुझे मिली माँ गुरु रूप मे उसको माँ का मान मिला उसकी सूरत के भावो से मैने हंसना रोना सीखा उसकी उंगली थाम के ही धरती पर चलना सीखा क्या होता है सही गलत माँ ने ही सिखलाया है हर पथ पर हर एक जगह जीने का ढंग बतलाया है हर विपदा हर एक खुशी सहना माँ से ही सीखा है माता से ही इस जग मे जीने का समान मिला है माता ने ही तो मन मे मेरे सुंदर शब्द उगाए है मेरे सम्मुख स्नेह भरे सिर्फ शब्द ही लाये है ...
बहुत है अंधेरा बहुत रात बाकी
कविता

बहुत है अंधेरा बहुत रात बाकी

संदीप पाटीदार कोदरिया महू (मध्य प्रदेश) ******************** बहुत है अंधेरा, बहुत रात बाकी हाँ मे वही हूँ पापा वो बिटिया तुम्हारी हाँ मे वही हूँ पापा वो बिटिया तुम्हारी अगर आप न होते पापा, तो मे भी न होती और में न होती पापा, तो ये दुनिया न होती हाँ निर्भय बना दो पापा, में निरभया तुम्हारी सोचा न उन जालिमो ने मुझे जान से मिटा दी हाँ कैसा भरोसा करे हम इस जिंदगी का हर्श हो न पापा हमारे जैसा किसी का क्या इतनी सस्ती है क्या पापा ये जिंदगी हमारी फिर क्यों हमे बना दी बैगानी हर राह में खड़े है पापा हाँ वो आताताई फिर आपसे कहती हूँ पापा मेंरी जान पर बन आई हाँ उनको मिटा दो पापा तो कल हम रहेगी और अगर हम मिट गयी तो ये दुनिया न रहेगी हाँ बेटे उजाले है, तो हाँ हम क्यो अंधेरी हाँ उसी अंधेरी में पापा, में पड गई थी अकेली फिर सुबह न आई पापा फिर सुबह न आई हाँ ये मेंरी कह...
मुड़ कर चले गए
कविता

मुड़ कर चले गए

साक्षी उपाध्याय इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** ऐसा नहीं है कि बहुत खुश हूं मैं, क्योंकि जो ख्वाब सजा कर आंखों में, छोड़ कर चले गए वो खास थे मेरे जो मुड़कर चले गए।। लोग तो कहते रह गए कि मानो बाग में से कोई फूल तोड़ कर ले गया, मानो हमारी और आते मंद पवन के झोंके को कोई मोड़ कर ले गया, अरे वो तो यूं गए मानो पंछी पेड़ से उड़ कर चले गए वो खास थे मेरे जो मुड़कर चले गए।। सब कहते रहे कि पिछले जन्म का कर्ज था शायद वही चुकाने आए थे,, इतनी ही जीवन रेखा थी उनकी उसमें भी वो खुशियां तमाम लाए थे,, वो गए मानो धरती के आंचल से पौधे उखड़ के चले गए वो खास है मेरे जो मुड़ कर चले गए ।। यह कविता लिखते लिखते मेरी आंखों में आंसू उमर कर चले गए, वो खास थे मेरे जो मुड़कर चले गए।। परिचय :- साक्षी उपाध्याय आयु : १५ वर्ष निवास : इन्दौर (मध्...
मिट्टी व नदी का उलाहना
कविता

मिट्टी व नदी का उलाहना

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कुछ थोड़ा बहने दो मुझे कुछ थोड़ा सहने दो मुझे कुछ थोड़ी जमने मैं दो मुझे मुरझाए वृक्ष संभालने दो मुझे। जैसे तुम रोक नहीं सकते उदय अस्त होते रवि को जैसे तुम रोक नहीं सकते चांदनी बिखेरते चंद्र को जैसे तुम रोक नहीं सकते गरजते बादल उसी भांति हमें भी स्वतंत्र करो। मत जकड़ो हमें अपने बंधनों में बंधन में बंधना ठीक नहीं चढ़ना, उतरना अस्तोदय नियति है हमें भी नियति के साथ रहने दो। जीवन के पलों को मनु के साथ बहने दो भोग-भोग लालसा सब क्षणिक है क्षणों के लिए स्वयं के लिए औरों को दूर मत करो हमें जीने दो हमारी नियति के साथ मुझे बहनेे तो कल-कल ध्वनि के। हमें बढ़ने दो पत्तों की सरसराहट के साथ। मुझे जीने दो हरी पीली फसलों के साथ। मुझे गहराई को थामने दो। मैं तुम्हारे लिए हूं, न की तुम मेरे लिए। परिचय :- इं...