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कविता

प्यार
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प्यार

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** प्यार है तो इकरार क्यों नहीं करते? दिल में प्यार का तूफान समेटे अव्यक्त को व्यक्त क्यों नही करते? डरते हो? अपने आप से या समाज से? खुल्लम खुल्ला नहीं तो चोरी छिपे ही प्यार का इजहार क्यों नहीं करते? प्यार है तो इकरार क्यों नहीं करते? तहज़ीब का जामा पहने सभ्य समाज में गंभीर से तुम, मन में प्यार का सैलाब लिए भीतर ही भीतर परेशान से कुछ, अपने को अभिव्यक्त क्यों नहीं करते? प्यार है तो इकरार क्यों नहीं करते? पर प्यार क्या केवल इकरार ही है? क्या समर्पण प्यार नहीं? दूसरे की खुशी में अपनी खुशी समझना क्या प्यार नहीं? अव्यक्त प्यार की यहीं परिभाषा है चोट सहकर भी चुप रहना यहीं प्यार की पराकाष्ठा है। परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी डॉ. जयलक्ष्मी विनायक एक कवयित्री, गायिका और लेखिका हैं। स्कूलों व कालेजो...
ये दूरियां-ये ख्वाब!!
कविता

ये दूरियां-ये ख्वाब!!

सिमरन कुमारी मुजफ्फरपुर (बिहार) ******************** ये दूरी हैं महज ज़मीन की, दिल की नहीं!! दूरी हैं मज़बूरी थोड़े ही, कमी हैं ना मिलने की, कमज़ोरी थोड़े ही!! निभाने का इरादा जरूरी हैं, विश्वास चाहिए वायदा नहीं!! राधा- कृष्ण की दूरी, सच्चे आस की निशानी हैं, तभी तो हर जुबां पर उनके मिलन की कहानी हैं!! मिलेंगे एक दिन वो खास होगा, मैं तेरे करीब तू मेरे पास होगा!! जब ये खिलता ख्वाब, और आँखों में शवाब होगा!! रब्त इश्क़ की दरियां, टूटती ये दूरीयां !! तब मिलना सबसे नायाब होगा, तब हमारा मिलना इत्तेफाक होगा!! ज़मीन की दूरी महज ये दूरी, ख्वाब बुनता दिल, जब मिलेंगे तब ख़ुद को, संभालना होगा मुश्किल!! परिचय :-सिमरन कुमारी निवासी : मुजफ्फरपुर (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
उज्ज्वल शिक्षा ज्योति
कविता

उज्ज्वल शिक्षा ज्योति

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सबसे बुरा कलंक अशिक्षा, शिक्षा सद्गुण की जननी। जो शिक्षा से दूर साथियो, उनकी बिगड़ी है करनी। संस्कार शिक्षा से मिलते, बुद्धि प्रखर होती है। अंधकार को दूर भगाती, शिक्षा की ज्योति है। प्रथम पाठशाला बच्चे की, घर में होती पूरी। आगे की शिक्षा पाने को, हैं स्कूल जरूरी। अब विद्यालय लगे सँवरने, बच्चे भी खुश होते। खुशी-खुशी पढ़ने आते हैं, अब बिल्कुल न रोते। शिक्षा है अनमोल धरोहर, जीवन मंत्र बताती। शिक्षा ही जीवन की कुंजी, उज्जवल राह दिखाती। सबको मिले जरूरी शिक्षा, करें जतन सब ऐसा। शिक्षा जहाँ काम आती है, काम ना आता पैसा। गुरु शिष्य की परंपरा को, आगे सभी बढ़ायें। दुर्गम परिस्थिति से लड़कर, बच्चे सभी पढ़ायें। शिक्षक ही भूदेव भूमि के, शत-शत नमन करूँ मैं। गुरु जीवन के भाग्य विधाता, उर में ...
आजमाइश- २
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आजमाइश- २

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** नफरत की नहीं मोहब्बत की आजमाइश करो। पराएयो की नहीं अपनों की आजमाइश करो। बुराई की नहीं अच्छाई का ढोंग करने वालों की आजमाइश करो। दिल दुखाने वालों की नहीं दिल लगाने वालों की आजमाइश करो। मरने वालों की नहीं जीने वालों की आजमाइश करो। कड़वी जुबान की नहीं शहद से मीठे होठों की आजमाइश करो। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, क...
आज खुशियो से पलके भिगोने लगे है
कविता

आज खुशियो से पलके भिगोने लगे है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** उनींदे आँखों से सपने संजोने लगे है। आज खुशियो से पलके भिगोने लगे है।। मिलेगी मंजिल हमें भी कभी ना कभी। इसी विश्वास से उम्मीद जगाने लगे है।। कर्म करेंगे निश्चित ही सफलता मिलेगी। बढ़ते बढ़ते जीवन मे तरलता मिलेगी।। इसी चाहत मे नित सपने संजोने लगे है। आज खुशियो से पलके भिगोने लगे है।। सफलता के होंगे बेशक़ मायने कई-कई। हर पल करते रहेंगे हम उद्यम नई-नई।। उद्यम से अब मंजिल करीब आने लगे है। आज खुशियो से पलके भिगोने लगे है।। दृढ़ संकल्प ले लक्ष्य की ओर जो बढ़ता है। सफलता के इतिहास निश्चित वही गढ़ता है।। रास्ते के रोड़े भी अपनी जगह बदलने लगे है। आज खुशियो से पलके भिगोने लगे है।। आज निश्चित ही खुशियो का दिन सुहावन है। ये मंजिल भी कितनी भली और मनभावन है।। आज तो सपने हकीकत मे बदलने लगे है। आज खुशियो से पलके भिगोने ल...
“आत्मकथा” एक जीव की
कविता

“आत्मकथा” एक जीव की

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** बोलना चाहता हूँ, समझाना चाहता हूं, रोकना चाहता हूँ, मत करो क्रूर आघात और इतनी घृणा महसूस करता हूँ दर्द, घुटन, और अकेलेपन की तड़प तिल-तिल दम तोड़ते, नित प्रतिदिन होता तिरस्कार, पढ़ पाए जो कोई तो इन आँखों में, बिना शब्दों के दर्द बयां होते हैं अहंकार, द्वेष, घृणा से परे एक सुन्दर दुनिया है मेरी मत रौंदो मेरे अस्तित्व को, बहुत कुछ अनकहे ही सीखा जाता हूँ इन्सानियत को जाति, रूप, रंग में मत करो बंटवारा मेरा प्यार से गले लगा कर तो देखो, जान दे दूंगा तुम्हारे प्यार की कीमत चुका कर सृष्टि की अनमोल रचना हैं हम, कैसे हो सकते हैं नफ़रत के काबिल, नहीं समझ पाता "रोटी" की कीमत, नहीं जानता दुनियादारी और व्यापार ईश्वर ने इंसान बनाया, जीवों से प्रकृति को संवारा अद्भुत चित्रकारी कर ईन जीवों पर, अप्रतिम ...
माँ हो गई विलीन
कविता

माँ हो गई विलीन

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** जब तक जीवित थी मोबाइल पर अपनों के कैसे हो से हाल चाल पूछा करती उसे अकेलापन महसूस नही होता अपनों से बात करके नजदीकी का अहसास कर लेती वो पढ़ी लिखी थी इसलिए लॉकडाउन की परिभाषा समझती थी। सबकी सुखद कामना आशीर्वाद के संग हमेशा करती माँ आरती में रखे कपूर की तरह मायने रखती जिसके बिना आरती अधूरी आरती की पंक्तियां अधूरी माँ का हँसता चेहरा सदा मन मस्तिष्क पर रहते हुए हर पल याद आता माँ दरवाजे पर खड़ी होकर अपनों की राह निहारती अब चौखट सूनी सी जिस पर ताला लगा ये बताता माँ के पास ही चाभी थी जिससे वो मुझ जैसे ताले पर विश्वास रखती की घर में सुरक्षित है। संक्रमण काल मे जीवन को निगलने वाला वायरस माँ को निगल गया सारी शक्तियां, आस्था, विश्वास, रिश्तें अशक्त हो गए इन पर विश्वास था वो भी बेजान हो गए यादों का पिटारा ...
सावन
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सावन

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** सावन की झड़ी संग नाचे मेरा मन। बदरा भी ढोल बजाए। आराधना के तीज त्यौहार लेकर, मेरे महादेव चौमासे पर आये। देख नजारे नयना से मौसम का, मन भी कितना भाये।। सावन, खुद महादेव को जल चढ़ाने आये। बदरा भी ढोल बजाये।। सावन की घटा संग नाचे मयूर मन। झरते, झरने हरियाली भी मन को रिझाये।। बरसे सावन की घटायें। नाचे मन मयूर संग। सावन की हरियाली तीज पर, पेड़ों की डाली भी, झूम कर झुक-झुक जायें। हरियाली की चुनरी से श्रृंगार कर, धरा को घुंघट उढायें। बरसे सावन की घटाएं।। जिसे देख नाचे मेरा मन। परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने पर...
भारत की विरासत
कविता

भारत की विरासत

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** धरती पर प्रथम आगमन, हिमालय पर शिवधाम है यहीं पुण्य सलिला गंगा, गंगोत्री इसका नाम है। ब्रह्मा और मनु का भारत, ध्रुव प्रह्लाद की संतान हैं आदिकाल से इस धरती का, मानव इतिहास सनातन है। कश्मीर से कन्याकुमारी, है भारत की प्राचीन धरोहर यह भारत की पुरा संपदा, रचे प्रकृति ने दृश्य मनोहर। हेमकुंड और मानसरोवर, सब भारत के प्राण हैं पर्वत श्रंखला की घनी घाटियाँ, पंजाब हमारी शान है। पाँच नदी का संगम है, लहराता उत्ताल तिरंगा अपने भारत का गौरव, है भारत का भाल तिरंगा। अमृतसर में अमृत छलके, वाणी से गुरु नानक की पूरब में जगनाथ विराजे, गुजरात धरा सोमनाथ की। वास्तुकला, प्रस्तर प्रतिमा, महलों का राजघराना है वीरों की शक्ति का दर्पण, अपना राजपूताना है। कृष्णातट श्री शैल के दर्शन, शिवपुराण महाभारत में वर्णित प्रकट मल्ल...
तू मेरा जहां…!
कविता

तू मेरा जहां…!

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** एक तू..., बस तू..., सिर्फ तू..., है मेरी जां..., एक तू..., बस तू..., सिर्फ तू..., है मेरी जां...। तू मेरी है धड़कन, तू मेरा जहां, तू मेरी है धड़कन, तू मेरा जहां। "एक तू मेरी जां..., बस तू धड़कन..., सिर्फ तू है जहां...।" तू मेरी है धड़कन, तू मेरा जहां, तू मेरी है धड़कन, तू मेरा जहां। तू मेरा जहां...।। दुआं मैं करूं, जुदां मेरी जां, सिर्फ तू है, जहां से, जी ना सकूं, बिन तेरे जहां, लग जा गले, प्यार से। जो तू नही, तो मैं नही, जो तू नही, तो मैं नही, आज तू कहां..., कल तू वहां..., दिल-ए-जवां..., तू मेरा जहां...। "एक तू..., बस तू..., सिर्फ तू..., है मेरी जां...।" तू मेरी है धड़कन, तू मेरा जहां, तू मेरी है धड़कन, तू मेरा जहां। तू मेरा जहां...।। सुना ऐ जहां, तू जानले, मेरे हमसफर, तू देर ना ...
हेल के मारे बेल हो गए
कविता

हेल के मारे बेल हो गए

नंदन पंडित इटियाथोक, गोण्डा (उत्तर प्रदेश) ******************** मँहगाई का ओढ़ लबादा तेल हो गए सखी, साजना हेल के मारे बेल हो गए झाँक रही हैं दालें ऊँची दूकानों से छोड़े कीमत-बाण सब्जियाँ उद्यानों से बहुत नाज़ मुफ़लिस करते थे नून-तेल पर नमक-तेल के आज स्वप्न से मेल हो गए खटकाते-खटकाते दरकारों की साँकल अरमानों ने दोनों हाथ कर लिए घायल कर लेती थी पद-रज भ्रमण ज्यों-त्यों करके अली, पहुँच से दूर बहुत अब रेल हो गए जेब, जरूरत में रहती है पकड़ा-पकड़ी एक जाल से छूटे दूजी बुनती मकड़ी सेठों का पट्टा गर्दन में कसता जाता बढ़ते-बढ़ते दुर्दिन फिंगर नेल हो गए परिचय :-  नंदन पंडित निवासी : इटियाथोक, गोण्डा (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
वतन के रिश्ते
कविता

वतन के रिश्ते

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** बरसात की तेज बौछारें भी दिखती चकाचक चांदी जैसी धूप भी चमके। मानव स्वभाव उचित यदि दुलार में नाराजी में पूरी मानवता ही सिसके। छोटे बड़े रास्ते राजमार्ग पगडंडी तक कुंदरा कुटिया घर कोठी महलों तक छात्र किसान व्यापारी पंडित विद्वान सब के हृदय ज्ञान भंडार भरा महान सदा बिना भूख परोसे आतुर जमके। पेट से भूखा व्यक्ति कभी न खटके। मानव स्वभाव उचित यदि दुलार में नाराजी में पूरी मानवता ही सिसके। अपने सर्वश्रेष्ठ दिखाने में मिले घात कोच शिक्षक प्रशिक्षु हृदय की बात हर क्षेत्र विभाग सुना ज्ञान मत बांट अति होशियारी दिखाते ही पड़े डांट कुछ प्रतिभा दिखने से पहले खिसके होनी अनहोनी के फेरों में पढ़ पढ़के। मानव स्वभाव उचित यदि दुलार में नाराजी में पूरी मानवता ही सिसके। टेलीपैथी गुण कहीं पनपता जाता जितना भी कर जाओ सब...
हिन्दू जागो और हिंदुत्व जगाओ
कविता

हिन्दू जागो और हिंदुत्व जगाओ

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** हिन्दू जागो और हिंदुत्व जगाओ सोया हुआ स्वाभिमान जगाओ। कब तक दुष्टता का जहर पिओगे खोया हुआ अब सम्मान जगाओ। जनजन जागो हिन्दू भाई जागो सनातन धर्म का झंडा फहराओ। कब तक धर्म का अपमान सहोगे भरतवंश का अब यह देश बचाओ। राष्ट्र-धर्म का अब कर्तव्य जगाओ न्याय-धर्म का अब हुँकार लगाओ। कब तक अनीति का भेंट चढ़ोगे पावन मिट्टी का उपकार चुकाओ। शंख-नाद का अब हुंकार लगाओ। शिव-तांडव का अब नर्तन दिखाओ कब तक तुम बहरे और गूंगे रहोगे दिव्य दृष्टि और दिव्य रूप दिखाओ। इंसानियत की अब अस्मिता बचाओ जाति धर्म का अब दीवार गिराओ। कब तक नफरतों की बलि चढ़ोगे दुष्ट-दानवों की अब बलि चढ़ाओ। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मे...
गुरूब्रम्हपद को  नमन
कविता, स्तुति

गुरूब्रम्हपद को नमन

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** अमन चैन शांति का जब पाठ पढ़ाते हैं, हमारी संस्कृति सभ्यता संस्कारों परम्पराओं का भारतीयता लिए मातृभाषा शब्दों में उभर कर ब्रह्मा विष्णु महेश का सार्थक स्वरूप हर भारतीयों में नज़र आती हैं। गुरू की महिमा गुरू ही जाने, गुरु गोविंद दोनों खड़े काके लागूं पाय बलिहारी गुरु आपकी जो गोविंद दियो बताए, जाने प्रतिभा लक्ष्य साधकर समर्पित एकलव्य ने परिभाषा किया गुरूचरणों में, अमृततुल्य निस्वार्थ अपनी प्रतिभा से गुरूपद निखार दिया जनमानस में भारतीयता लिए नज़र आतीं हैं। प्रलोभन निस्वार्थ भाव से जो भारतीयता में मिलती हैं समर्पण भाव सृष्टिकर्ता ईश्वर के प्रति एकरूपता विश्व में कहीं नहीं मिलती तभी तो भारतीयता गुरूचरणों में पथप्रदर्शक बनकर के आ जाती हैं। सदीयों से जिन्दगी सुख दुःख का मेला है महापुरुषों ने हम...
पितृ दिवस प्रतियोगिता
कविता

पितृ दिवस प्रतियोगिता

डॉ. अरुण प्रताप सिंह भदौरिया "राज" शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** पितृ दिवस पर, बेटा पिता के पास आया. साथ में नया शर्ट पैंट लाया. अपने हाथों से, उनका मुह धुलाया. पिता मन ही मन हर्षाया. आज सूरज, पश्चिम में कैसे निकल आया. पिता अबाक् था, उसी घर में रहने बाला बेटा. बरसों बाद उनके पास था. पिता ने उसके चेहरे पर, प्रश्न वाचक दृष्टि दौड़ाई. आज पितृ दिवस है, उसने यह बात बताई. बोला जल्दी से कपड़े पहनो, मुझे देर हो रही है. तुम्हारे साथ सेल्फी लेनी है. आफिस में प्रतियोगिता चल रही है, तुम्हे फोटो में खूब मुस्कुराना है. दूसरों के पिता से, ज्यादा खुश हो यह दिखाना है. प्रतियोगिता में जिसका पिता, ज्यादा खुश नजर आयेगा. पितृ दिवस की प्रतियोगिता में, वही पहला पुरस्कार पायेगा. परिचय :-  डॉ. अरुण प्रताप सिंह भदौरिया "राज" निवासी : शाहजहाँपुर (उत्तर प्र...
जीवन के नित संघर्षों में
कविता

जीवन के नित संघर्षों में

प्रशान्त मिश्र मऊरानीपुर, झांसी (उत्तर प्रदेश) ******************** कुछ सपने थे जो टूट गए, कुछ अपने थे जो रूठ गए। जीवन के नित संघर्षों में, हम कांच सरीखा टूट गए। जब बिखरे तो ऐसे बिखरे, फिर एक कभी भी हो न सके। माला के मोती मंहगे थे, हम पक्का धागा हो न सके। जब वक्त हुआ की हार बनूं, मैं भी उनका श्रृंगार बनूं। कच्चे धागे को तोड़ दिया, वो सारे मोती लूट गए। कालचक्र के घड़ी की सुइयां, कुछ ऐसे ही चलती है। गिरगिट तो बदनाम है केवल, दुनियां रंग बदलती है। जिसको चाहा उसको खोया, हंसना चाहा हरदम रोया। रिश्ते नाते बने भी ऐसे, चंद क्षणों में टूट गए। हम रात जगे और दिन जागे, जितना जागे उतना भागे। हम समय का पीछा कर न सके, हम पीछे वो हरदम आगे। जो चाहा था वो नहीं मिला, जो वक्त ने चाहा वही मिला। पाने खोने की विरहन में, आंखों से आंसू छूट गए। कुछ जीत मिली, कुछ हार मिली, पर...
परिवार
कविता

परिवार

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** संस्कारों की जननी, संस्कृति की पाठशाला। जन्मभूमि परिवार, यह कर्मों की कार्यशाला। रिश्तों का गहरा सागर, जीवन का तानाबाना, चौखट है गीता का ज्ञान, छत संबंधों का मैला। कुरुक्षेत्र यह केशव का, राघव का वनवास घना, मर्यादा की बंधी पोटली, सभ्यता का यह थैला। परिवार शिक्षा का केंद्र, जीवन का आदि अंत, जीने की जिजीविषा, और संघर्षों का झमेला। सीख कसौटी मीठी घुड़की, आंगन में मिलती, जो रहता है परिवार में, वो मनुज नहीं अकेला। यहां मां की स्नेहिल लोरी, बापू का तीखा प्यार, बहन भाई का युद्ध और दादा दादी की माला। कर्मों में कर्तव्य पहले, शिक्षा में आज्ञा पालन, संबंधों में नैतिकता, परिवार सद् काव्य शाला। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र :...
जीना सीखो
कविता

जीना सीखो

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** अपने लिए न सही दूसरों के लिए जीना सीखो। गम से भरे चेहरों को ज़रा खिलखिलाना सीखो। मोहब्बत में तो हर कोई मुस्कुराता है दिल टूट जाने पर भी ज़रा जीना सीखो। अपनो ने दगा दे दिया तो क्या हुआ ? गैरों को अपना बनाकर गले लगाना सीखो। मिट्टी हुए जीवन के संजोये हुए ख्वाब तो क्या हुआ ? उस मिट्टी को ही अपने सीने से लगाकर अपना बनाना सीखो। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट...
सावन मनभावन
कविता

सावन मनभावन

राम प्यारा गौड़ वडा, नण्ड सोलन (हिमाचल प्रदेश) ******************** सावन तेरे संग-संग धरा पे निखरे अनेकों रंग हरितिमा के कालीन पर मेघ शिशु अठखेलियां करते तितलियों संग उड़ते छुपते,करते कभी अट्टहास वर्षा बूंदों से नहाए पल्लव सूरज रश्मियों से पा गरमाहट मंद सुगंध हवा के संग हाथ हिला करते अभिवादन राग मल्हार गाते भंवरे कोकिल गान कानों में पसरे घनघोर शोर लिए मोर हरषे बहुरंगी बादल उमड़े क्षण भर में रुप बदले.. भयानक रूप बना सबको डराए गड़गड़ ध्वनि से सब थर्राए अगले ही क्षण वर्षा की झड़ी लगाए देख कृषक मन ही मन हर्षाए सावन की है महिमा निराली हर जीव जंतु की चाल हो जाए मतवाली नेह संचार हृदय में होता वियोग में प्रेमी युगल छुप कर रोता हर कोई सावन की बाट है जोहता सबसे तेरा नाता है सबको तू भाता है मन में मधु उपजाता है इसीलिये तू मधुमास कहलाता है। सतरंगी इंद्रधनुष का हार...
बादल
कविता

बादल

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** उमड़ घुमड़ घटागहराती उपवन के तरु लहराए मेरी बगिया के आंगन में तुम आते आतेसकुचाऐ। बादलों की बौछार देती निमंत्रण बार-बार हरित पणृ और पुष्पा भी करते प्रतिक्षा बार बार।। मादक सुगंध माटी ने बिखराई झरना, झिले झूम झूम कर करते तेरी अगुवाई।। जैन कहते प्रकृति भरमाई।। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित कर...
इकु किसानु कै पीरा
आंचलिक बोली, कविता

इकु किसानु कै पीरा

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** बदरा रूठि गईल हे धनियाँ कैसे के होई रोपनियाँ ना। बेहनु खेतवा माहीं झुराइलि कैसे के होई रोपनियाँ ना।। जेठु महीना जसु तपा असाढ़ी यैसिनि मा के हौ गोड़ु काढ़ी बरसतु भिनुसरहिनु ते अगिया कैसे के होई रोपनियाँ ना।। बेहनु खेतवा... तालि-तलैइया मा दर्रौ फाटयि झुलसी घांसि दूबिउ नाहीं जागतु लागतु सावनु झूरौ झूरौ कैसे के होई रोपनियाँ ना।। बेहनु खेतवा... सावनु-भादौउं जौ सूखा-सूखा चिरई-चुनुंगा सबै रहिहैं भूखा कहिजा बदरा काहे रूठल कैसे के होई रोपनियाँ ना।। बेहनु खेतवा... लखि-लखि बदरा कोयलरि कूकैयि उपरा तकि-तकि जियरा हूकैयि अँसुवा ते भीजल मोरु बदनियाँ कैसी के होई रोपनियाँ ना।। बेहनु खेतवा... उमड़ि-घुमड़ि काहे ललचावतु आतुरि हुयि सबै रहिया जोहारतु झूमिके बरसौउ भलु सेवनियाँ जमके होई रोपनियाँ ना।...
अमूल्य निधि
कविता

अमूल्य निधि

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** जो विरासत मिली है हमको, वो हमारी अमूल्य निधि है, स्वाभिमान का रूप संजोए, सनातन संस्कृति जीवन की विधि है। पेड़ पौधे,नदी और पर्वत, पशु पक्षी पूज्यनीय यहां हैं, ऋतुओं को सम्मान मिला है भारतीय संस्कृति अखंड यहां है l मात पिता, ज्येष्ठ का आदर, गुरु ईश्वर तुल्य यहां है, नारी देवी, अतिथि देवो भव, संस्कार की पहचान यहां है l अभिमान करें अपनी धरती पर, इंद्रधनुष से पर्व हमारे, उदारता, सदाचार, समर्पण, रग रग में शिष्टाचार यहां है l जो विरासत मिली है हमको, वो हमारी अमूल्य निधि है l परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर) निवासी : जानकीपुरम लखनऊ शिक्षा : बी.एस.सी. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) साहित्यिक यात्रा : दो कहानी संग्रह प्रकाशित। अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था द्वारा प्रति वर्ष प...
हे कैलाशपति
कविता, भजन, स्तुति

हे कैलाशपति

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** हे कैलाशपति ! हे गिरिजापति ! हम भक्त हैं तेरे, भोले भाले हे जगतपति! हे गौरीपति ! तुम सगरे जग से हो निराले हे देवाधिदेव ! महेश हो तुम तेरी महिमा को पार न पावे त्रिलोक के स्वामी हो तुम लंगड़ा, गिरि पर चढ जावे तेरी भक्ति की शक्ति से स्वामी असंभव सब संभव हो जावे हे योगी महा ! हे अन्तर्यामी ! तुम से प्रलय में, लय हो जावे हे त्रिशूल धारी ! डमरू निनाद कर भक्ति की डगर, आज बता दे हे विषपायी! गंगा को बहा कर पावनता की लहर, अब जगा दे। परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम.ए.,पी एच डी, बी.एड., स्नातक कक्षा और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन साहित्य सेवा : दूरदर्शन एवं आकाशवाणी में काव्य पाठ, विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में गद्य, पद्य विधा में लेखन, प्रकाशित पुस्त...
आराधना की ऋतु
कविता

आराधना की ऋतु

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** बारिश के पानी से देखो। भर गये नदी नाले तलाब। सूखी उखड़ी भूमि भी अब हो गई है गीली-गीली। वृक्षों पर भी देखो अब नये हरे पत्ते आने लगे। चारो तरफ पानी-पानी अब जमा हो गया बारिश का।। रास्ते पहाड़ और टीले आदि शीतल और नम होने लगे। बारिस की गिरती बूंदे से पेड़ फूल पत्ते खिल उठे। रुका हुआ पानी भी देखो वह भी अब बहने लगा। पशु पक्षी जीव जंतु आदि उछल कूद करने लगे।। दूर दराज गये पक्षी भी अब घरों को लौटने लगे। छोड़ छाड़कर अपने कामों को प्रभु आराधाना अब करने लगे। शरीर की शिथिलता भी अब मानव का साथ देने लगी। व्रत नियम संयम आदि लेकर ध्यान प्रभु का करने लगे।। चार माह का ये चौमासा साधु संत आदि को भाता है। स्थिर एक जगह रहकर के खुद का और जन कल्याण करते है। जियो और जीने दो के लिए एक स्थान को ही चुनते है। और ये सब हम और आप भी...
बेबसी
कविता

बेबसी

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** मां से स्नेह पाया पिता ने दुलार लुटाया, मैं घड़ी की सुई की तरह कभी इधर , कभी उधर प्यार समेटती, सहेजती दोनों में एक अनचाहा रिश्ता जोड़ती। संपूर्ण प्यार की चाह जीवन की इकलौती आस, बंटी हुई ज़िंदगी के क्या मायने जब माता पिता नदी के दो किनारे? हॉस्टेल की खिड़की से किसे देखती मेरी मायूस निगाहें छन-छन कर सूर्य की किरणें उदास करती मेरी राहें मम्मी डैडी को लगाने गले तड़पती मेरी छोटी छोटी बांहें। गले लगती पिता से जब मां याद आती हर पल, मां के चरण जब छूती पिता कैसे होंगे मैं सोचती, क्या सोचा मेरे मां बाप ने कभी बेटी किन दौरों से गुजरी? होठों पर मुस्कान है फीकी आंखें हैं उसकी गीली गीली, अगर तुम ना बिछड़ते रहते हमेशा साथ-साथ तो क्या बेटी होती दुखी? क्या बेटी होती दुखी? यहीं है बेटी की बेबसी। परिचय :- ...