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कविता

वो खत कहाँ गए?
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वो खत कहाँ गए?

महेन्द्र साहू "खलारीवाला" गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** सप्ताह, महीनों का होता था बड़े सिद्दत से मीठा इंतजार। दौड़ पड़ते, सुन डाकिया के, साइकिल की घण्टी की गुहार। प्रेयसी की जिसमें होती थी बेबसी, विरह वेदना। प्रियतम के वापसी का होता था हरपल इंतजार। सच में कोई तो बताओ वो खत कहाँ गए? प्रेयसी को लुभाने होती थी प्यार भरी वो बातें। यादों ही यादों में होती मिलन की वो सौगातें। एक दूजे संग जीने मरने के होते थे कसमें वादे। सात जन्मों तक साथ निभाने की होती थी बातें। सच में कोई तो बताओ वो खत कहाँ गए? छुपा होता था जिसमें अपनों से अपनों का प्यार। कागज़ के पन्नों पर होता था दर्द ए दिल बेशुमार। जिसमें हाल ए दिल लिखा होता था। हर शब्द में ही उनका चेहरा दिखता था। सच में कोई तो बताओ वो खत कहाँ गए? बहना ने भेजा है लिखकर खत, भैया को रक्षा सूत्र। भ्राता ने ल...
जीवन-मृत्यु
कविता

जीवन-मृत्यु

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** जीवन मृत्यु का भेद तुमको कुछ बतलाऊंगा। हो सका तो तुमको सच्चा जीवन निर्वाह सिखलाऊंगा। क्षणभर का जीवन क्षणभर की मृत्यु फिर भी तुमको कुछ बतलाऊंगा। भेदभाव की नीव जो रखी तुमनें उसको भी एक दिन मिटाऊंगा। धर्म के नाम पर अधर्म तुम करते हो धर्म की परिभाषा भी तुम अपनी मर्जी से बदलते हो, तुमको सच्चा धर्म एक दिन जरूर सिखलाऊंगा। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय ह...
कविराज
कविता

कविराज

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** प्रिय से फुलवारी में मिलकर प्रेम की वर्षा, अद्भुत आनंद की अनुभूति करता रसराज। एकांत में किसी दिन डूब जाता गहरी सोच, शब्द जाल फैला काव्य लिखता कविराज।। भावों को अभिसिंचित अभिव्यक्ति देकर, बनता हूं रचनात्मक क्रान्तदर्शी महाकवि। जाता कहीं भी कल्पनाओं की उड़ान भर, घोर अंधकार को उजाला करता मैं हूं रवि। गगन से उतार देता हूं जमीन पर चांद को, मैं बनाकर विश्वसुंदरी, मनमोहिनी,अप्सरा। टिमटिमाते तारों से जड़ित अंग आभूषण, नील परिधान से सुसज्जित लगती सुंदरा।। छंदों में बंध कर नाचती अपनी नृत्यशैली, अलंकारों से बढ़ता रूपवती वनिता शोभा। गुण विशिष्टता से परिपूर्ण कविता की रानी, नव शब्दशक्ति से फैलाती चहुंओर आभा।। रुप यौवन की रोशनी मुझ पर हुई आभासी, समा गई दिलदार दिल मुझे करके दीवाना। उनसे बात करता हूं अकेले में चुपके-चुप...
ना निराश हो
कविता

ना निराश हो

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** ख़ुश नहीं हो आजकल, क्या बात है मुझ से निराश हो, क्या यही जज़्बात हैं, हम ने तो दे दिया है, ये दिल अब तुम्हें, तुम ही बताओ, फिर दिल क्यों निराश है, रहते हैं तेरे प्यार में, हम तो मशगूल यहाँ, तुम भी संग चलो मेरे, यहीं ख्यालात हैं, रहकर भी दूर तुम से, है वफ़ा हमें वहीं, जान जाओ अब, मेरे दिल का यही हाल है, ना नाराज रहो हम से, हम हैं तुम्हारे, मिल कर तो देख लो, हमारी वहीं बात है, इश्क लगाया है, सिर्फ तुम से ही मैंने, मेरा तो अब दिल, तुम से ही गुलज़ार है, ना निराश हो कभी, जीवन में अपने तुम, जब तक है जिंदा हम, निराशा की क्या बात है, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अ...
मेरे देश की चंदन पावन माटी है
कविता

मेरे देश की चंदन पावन माटी है

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मेरे देश की चंदन पावन माटी है यह तो अनमोल हमारी थाती है इस मिट्टी में ही शस्य श्यामला है जहां की हरियाली रंग-रंगीला है। यहां ही बहते सरिता निर्मल है जहां त्रिवेणी संगम कलकल है जहां गंगा जमुना.. की धारा है जो पतित पावन जग से न्यारा है। यह देव धर्म की पावन धरती है जहां ज्ञान भक्ति धारा बहती है यहां पुण्य तीरथ चारो धाम है तेरा अखंड भारत पावन नाम है। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं,...
बच्चों को अमीर बनाते हैं पिता
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बच्चों को अमीर बनाते हैं पिता

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** खुद गरीब पर बच्चों को अमीर बनाते हैं पिता कभी कंधे पर बिठाकर मेला दिखाते हैं पिता कभी घोड़ा बनकर घुमाते हैं पिता ऐसे सभी लोकों के महान देवता है पिता संकट में पतवार बन खड़े होते हैं पिता परिवार की हिम्मत विश्वास है पिता उम्मीद की आस पहचान है पिता जग में अपने नाम से पहचान दिलाते हैं पिता कभी अभिमान तो कभी स्वाभिमान हैं पिता मां अगर पैरों पर चलना सिखाती है तो पैरों पर खड़ा होना सिखाते हैं पिता कभी धरती तो कभी आसमान है पिता परिवार की इच्छाओं को पूरा करते हैं पिता हर किसी का ध्यान रखते हैं पिता धरा पर ईश्वर अल्लाह का नाम है पिता जग में अपने नाम से पहचान दिलाते हैं पिता परिचय :- किशन सनमुखदास भावनानी (अभिवक्ता) निवासी : गोंदिया (महाराष्ट्र) शपथ : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रच...
परम पिता
कविता

परम पिता

डाॅ. कृष्णा जोशी इन्दौर (मध्यप्रदेश) ******************** पिता है जनक हमारे जननी है प्यारी मां। यही है दुनिया हमारी अवतारिणी है मां।। पिता की आंख है प्रगति बच्चों के वास्ते। पिता ही बनाते सरल सुगम रास्ते।। पिता के सिवाय हितेषी कोई नहीं हमारा। सारे जहां से अच्छा परम पिता सहारा।। पिता की दिव्यता से, प्रकाशित हुए हैं हम। पिता की पूर्णता से है श्रेष्ठ हर कर्म।। पिता से मार्ग पाया जीवन का श्रेष्ठमयी। पिता की श्रेष्ठता से विशेषता पायी कयी।। पावन पूनित पिता का होना जीवन की श्रेष्ठता हैं। कर्तव्यनिष्ठता से पिता की महानता हैं। आरोग्यता मिली है पिता की वजह से हमें निष्काम भाव की शुद्धता हैं।। पिता की आराधना जो कोई करें कृष्णा। उस मानव की पिता पूर्ण करें सारी तृष्णा।। परिचय :- डाॅ. कृष्णा जोशी निवासी : इन्दौर (मध्यप्रदेश) रुचि : साहित्यिक, सामाजिक सांस्कृत...
खत
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खत

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** खत रुला भी सकता यदि यादें जुड़ी हो खत कोई ऐसे ही नहीं होते बोल दिया यानि एक से सुना दूसरे से निकाल दिया विचारो के शब्दों का ऐसा सम्मोहन जिसे हजारो साल बाद भी पढ़ों तो लगे जैसे आज की बात हो। मृत्यु से परे शब्द इसलिए तो अमर होते वे शब्दों को जन्म देते कलम और कागज प्रेम का खत प्रेयसी लिफाफे के किनारों पर लगे गोंद से अपने होठों से चिपकाती। वो बात इलेक्ट्रॉनिक दुनिया में कहाँ खत संदूक में किताबों में ईश्वर की तरह पूजे जाते आखिर प्रेम ही के ढाई अक्षर ताउम्र साथ रहते और दिल के कोने में उनका प्रेम का भी मकान भी रहता। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्र...
स्पर्श में संवाद
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स्पर्श में संवाद

मनीषा श्रीवास्तव प्रयागराज (उत्तरप्रदेश) ******************** हाथ हमारे सख्त भले हों, पर मन है अतिशय सुकुमार। कोमल सा स्पर्श तुम्हारा, मेरी खुशियों का भंडार। तेरा पिता अतुल अनुगामी, तुम हो श्रवण का आशीर्वाद। दादा-पोते की पीढ़ी अब, हाथ पकड़ करते संवाद। जीवन का आरंभ है तेरा, अभी तो तुम हो अनुभव शून्य। पर इस नैसर्गिकता ने, कर दिया है मुझको अनुभव पूर्ण। कुमकुम जैसी लाल हथेली, बता रही तुम हो विद्वान। तेरे इस बूढ़े दादा को, अभी से तुझपर है अभिमान। काम जो पूरा न कर पाऊं, तुम करना मेरे उपरांत। सदा सत्य की राह पे चलना, रखना अपने मन को शांत।। छोटों को स्नेह जताना, बड़ों का करना तुम सम्मान। बस! इतना ही कहना मुझको, अब मैं करता हूँ प्रस्थान। नहीं है दादू हाथ सख्त, मैं कर लूँगा स्पर्श अभ्यास। पापा का श्रवण बनूं मैं, बना रहे घर का विन्यास। दीदी तुम संग खेली जितना, मैं भी खेलूं ...
जीत होगी तुम्हारी
कविता

जीत होगी तुम्हारी

डॉ. अरुण प्रताप सिंह भदौरिया "राज" शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** अतीत से प्रेरणा लो, भविष्य को संवारो, जो बीता उसे भूल जाओ, जीवन में आशा की किरण लाओ, इंसान इतिहास दोहराता है हमेशा, मात पर मात खाकर पछताता है हमेशा, तुम दुनिया की परवाह मत करो, सत्कर्मों के साथ आगे बढ़ो, सफलता चूमेगी तुम्हारे चरण, हो जाओगे तुम अजर-अमर, इंसान चला जाता है दुनिया से, कर्म ही रह जाते हैं उसकी निशानी, मृत्यु सत्य है सत्य रहेगी, उसके नाम से क्यों है इतनी हैरानी, अतीत में मत तलाशो अपना जीवन, अपने वर्तमान को संवारो, सत्कर्म के पथ पर अग्रसर रहो, चाहें हो तुम्हें कितनी ही परेशानी, न हैरान हो, जीत होगी तुम्हारी। परिचय :-  डॉ. अरुण प्रताप सिंह भदौरिया "राज" निवासी : शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स...
कौमी एकता
कविता

कौमी एकता

संगीता पाठक धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** शक आये, हूण आये, मुगल आये, अंग्रेज भी मिटा ना पाये हमारी हस्ती। भिन्न है बोलियाँ, भिन्न है भाषाये, अनेकता में एकता है हमारी संस्कृति। भिन्न हैं खान पान, भिन्न हैं पहनावे, एक ही रंग में रंगी है भारतीय संस्कृति। सभी धर्मों से बढ़कर बड़ा है राष्ट्र धर्म, राष्ट्र धर्म में समाहित हैं भारतीय संस्कृति। परिचय :  संगीता पाठक निवासी : धमतरी (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हम...
बेटा और बेटी
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बेटा और बेटी

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** बेटा और बेटी तराजू के २ पलड़े हैं बेटी प्रकृति का वरदान है। बेटी प्रभात की किरण की मुस्कान है। बेटी ना होती तो दुर्गा पूजा कहां होती। बेटी तू दुर्गा है बेटी वृषभान दुलारी है बेटी जनक नंदिनी है बेटी मीरा भक्ति का वरदान है, बेटी कृष्ण की कर्मा हे। बेटी लक्ष्मी बाई तलवार की धार है। बेटी तो प्रतिभा की खान है, बेटी इंदिरा है तो बेटी सुनीता विलियम है। बेटी शक्ति है तो बेटी साहस हैं, बेटी मर्यादा है तो बेटी विनम्रता की मूरत है। बेटी ललिता और रमन है, बेटी तो मां की आत्मा है और पिता के दिल का टुकड़ा है बेटी बिन जग अधूरा है बेटी ज्योति है तो बेटी माधुरी है बेटी ममता की छांव है बेटी तो लाल चुनरी में दीपक का प्रकाश है, बेटी निधि है तो बेटी आयु है। बेटी तो आंगन में तुलसी की शोभा है, बेटी तो राखी क...
जिंदगी धूप छांव
कविता

जिंदगी धूप छांव

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** जिंदगी में कभी खुशी है तो कभी आ जाता गम है। दोनो आते रहते हैं बराबर न कोई ज्यादा न कोई कम है। जिंदगी एक अनंत यात्रा है कभी गति तो कभी ठहराव है। कभी देता सुख तो कभी दर्द है जिंदगी धूप तो कभी छांव है। जिंदगी तो एक तलाश है कुछ पाने की एक प्यास है। कड़वी मीठी यह अहसास है कभी दूर है तो कभी पास है। जिंदगी कभी घना अंधियारा तो कभी रोशन उजियारा है। जिंदगी कभी हसीन प्यारा है तो कभी गमों का मारा है। जिंदगी कभी बोझ लगती है तो कभी खुशगवार लगती है। कभी यह उलझन दे जाती है कभी उलझन सुलझा जाती है। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं,...
भारत देश की आजादी
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भारत देश की आजादी

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** गुलामी की बेड़ियों में जकड़ी थी भारत मां, अपने महावीर लाल से लगा रही थी गुहार। पराधीन बनकर खो दी मैंने अपनी अस्मिता, कोई तो सुन लो अपने जननी की पुकार।। मां की करुणा देख उठ खड़े हुए भारतवासी, जो जन थे पहले बेबस, मायूस और लाचार। शंखनाद करके बिगुल बजा दिए संग्राम की, नहीं सहेंगे राक्षस रूपी अंग्रेजों के अत्याचार।। कृषिक्षेत्र में काम करते किसान हल लेकर दौड़े, फावड़ा ले-लेकर निकले श्रम करते हुए मजदूर। तोप और बंदूक लेकर घेर लिए रक्षक तीनों सेना, उतर गए मैदान में नेता राजनीति सीख भरपूर।। सून गोरे तुम्हारी गोलियों ने हमारे खून को पीया, अभी भी हमारे तन में है तुम्हारे कोड़ों के निशान। हम लोग जुल्म को सहकार बन गए हैं फौलादी, भारत माता की कसम मिटा देंगे तुम्हारी पहचान।। एक गोरा ने कहा मरे हुए दिल अब जिंदा हो गए, म...
हे वतन तुझको नमन
कविता

हे वतन तुझको नमन

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** जब तक है जीवन, तिरंगा शान से फहराते रहें। हमेशा तिरंगा उन्मुक्त गगन में, शान से लहराता रहे। तीन रंगों से, रंगे मेरे तिरंगे की आन-बान शान बनी रहे। हमारा तिरंगा कभी झुके नहीं।। हमेशा शान से लहराता रहे। मौका मिला तो इसके लिए मर मिट के दिखलाएंगे। देश की सुरक्षा के खातिर शस्त्र उठायेंगे। मेरे वतन का तिरंगा शान से लहराता रहे। अभिलाषा मेरी तेरे कफन में लिपट कर मुझे सीमा से लायेंगे। यही है जुनून मेरा, देश के खातिर, वीरगति पर फूलों के, अंकुरित पौधों से, बने सुन्दर न्यारी प्यारी बगिया। जिसे देख भारत माता के सपूत हों शूरवीर अनेकों-अनेक। मेरे वतन का तिरंगा लहराता रहे। हे आखरी अभिलाषा, कभी कोई दुश्मन सीमा रेखा के अन्दर ना आने पाये।। नजर न उठाने पाये। मेरे वतन के सीने पर हमेशा तिरंगा लहराता रहें। जन्...
डिजिटल भारत मेक इन इंडिया
कविता

डिजिटल भारत मेक इन इंडिया

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** रचनात्मक नवाचार से जुड़ा विज्ञान आम आदमी के लिए जीवन में सहजता लाता है डिजिटल भारत मेक इन इंडिया जैसी थीम जनहित में लाता है भारत वैज्ञानिक दृष्टिकोण के फलक को विकसित करने नए आयाम बनाता है सतत विकास और नए तकनीकी नवाचारों के माध्यम के साथ उन्नति दिखाता है भारत नवाचारों का उपयोग करके ऐसी तकनीकी विकसित करता है जनता के लिए सस्ती सुगम सहजता लाए ऐसा नवाचार विज्ञान नए भारत में लाता है उन्नत भारत अभियान में नवाचार भाता है उन्नत ग्राम उन्नत शहर में विज्ञान लाकर नमामि गंगे का अभियान चलाना है नवाचार आम आदमी के जीवन में सहजता लाता है परिचय :- किशन सनमुखदास भावनानी (अभिवक्ता) निवासी : गोंदिया (महाराष्ट्र) शपथ : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं। ...
क्या ख़ता थी मेरी
कविता

क्या ख़ता थी मेरी

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** क्या ख़ता थी मेरी जो भूला दिया हैं तुम ने, मुझ को कर किनारा, किनारे लगा दिया है तुम ने, अब अकेले रहकर ही खुश रहो आबाद रहो, मुझ को तो अब बर्बाद बना दिया तुम ने, सोचा था तुम को पाकर बन जाएं ज़िन्दगी, ठुकरा कर मुझ को ठिकाने लगा दिया तुम ने, मंज़िल सी मिल गई थी तुम्हारे साथ रहकर, ख़ता क्या हुई मुझ से जो दिल जला दिया तुम ने, अब जीना सीख लेंगे तेरे बैगर भी हम, छोड़ मेरा साथ दिल रुला दिया तुम ने, ख़ुश था मैं तो तेरे संग-संग चलकर, रास्ते पर छोड़ मुझे अनजान बना दिया तुम ने, कर दिया था ये दिल तेरे हवाले मैंने, दिल ही से पूछ लेते ये क्या कर दिया तुम ने, माना की तेरे संग रहकर अमीर था मैं, देकर सिला जुदाई का कंगाल बना दिया तुम ने, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित कर...
कर्म से किस्मत लिखें हम
कविता

कर्म से किस्मत लिखें हम

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** जंग अपनी थी जंग लड़े हम लड़ के खुद सम्हल गए हम..!! दर्द था दिल में जताया नहीं अश्क आँखों से बहाया नहीं..!! राहें अपनी खुद गड़कर हम बाधाओं से खुद लड़कर हम..!! लक्ष्य मार्ग पर बढ़कर हम..!! सफल हुए मेहनत कर हम..!! किस्मत पर भरोसा किए नहीं कर्म से किस्मत लिख दिए हम..!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी मे...
परिवार का महत्व
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परिवार का महत्व

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** परिवार देता हमें पहचान है इसका जरूरतमंद हर इंसान है। परिवार में जब पलता है बच्चा दिन ब दिन निखरता है बच्चा। बच्चों में आते संस्कार है मिलता उसे अपनों का प्यार है। मिलजुल सब रहते हैं जहाँ मुश्किलें कहाँ टिक पाती वहाँ। बड़ी-बड़ी समस्या हो जाती धराशायी जब मिलकर रहते हैं भाई-भाई। बुजुर्गों का अनुभव और आशीर्वाद रखता है परिवार को आबाद। त्यौहारों में मजा आता है खूब होली दिवाली राखी या भाईदूज। टूटते हुए परिवार चिंता का विषय है संयुक्त परिवार में रिश्तों की खूबसूरती, आज भी मौजूद है। परिवार का महत्व हमें समझना होगा मतभेद भूल साथ-साथ चलना होगा। ईश्वर से गुज़ारिश सबको परिवार मिले माता-पिता व अपनों का प्यार मिले। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमा...
पिता आसमा से ऊँचे
कविता

पिता आसमा से ऊँचे

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सारी दुनिया यही मानती, है जग में सुख भारी। फिरती है हरदम तलाश में, मृगतृष्णा की मारी। सदा सर्वदा झूठा है जग, संत महंत बताते। कठिन गृहस्थी है जीवन की, ऋषि मुनि पार न पाते। मानव की विसात ही क्या है, ऋषि मुनि समझ ना पाए। है जीवन भी जटिल पहेली, ज्ञानवान सुलझाए। जब सारा घर खुश होता है, सबको लगता प्यारा। घर की शोभा माँ से होती, माँ का आँचल न्यारा। माँ की ममता है सागर सी, पिता आसमा जैसा। छाँव मिले माँ के आँचल की, दुनिया में सुख कैसा। जब माँ का साया उठ जाता, वीरानी छा जाती। बच्चों सहित पिता के ऊपर, भी आफत आ जाती। लिए बज्र सी छाती दिनभर, पिता रात को आते। बच्चों के मुख देख पिता ही, खुद माता बन जाते। रुचिकर भोजन बना बना कर, बच्चों को देते हैं। करते लाड़ दुलार, उठा फिर, गोदी में लेते हैं।...
हड़ताल
कविता

हड़ताल

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता रही-रही के हड़ताल करें, लइका के भविष्य ला खराब करे, अब तो हड़ताल कराईय खेलवना होगे, लइका के जिनगी नदिया बइला होगेहे.! अपन लइका ला प्रावेट स्कूल मा पढ़ाथे, नौकरी सरकारी मा लगाते, गरीब के लइका सरकारी स्कूल मा पढ़ें जिहा शिक्षक हड़ताल करें.! हड़ताल करना कोई गुनाह नो हरे अपन हक बर लडे के एक तरीका हरे, लेकिन जरुरत ले ज्यादा हड़ताल लइका के जीवन ला बेकार करें.! जतना तुहर एक महीना के वेतन हे, उतका तो किसान के कमाई नई हे.! तिहा ले किसान उतना मा ही जीवन यापन करे.! वहीं हड़ताल सैनिक करही ता दुश्मन देश मा घुस जही, विघार्थी ला सही राह देखातेव तुमन तो हड़ताल ले फुर्सत नई मिलत हे.!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी : मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : म...
बरखा
कविता

बरखा

आस्था दीक्षित  कानपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** नाच नाचने बादल आया, संग में कितना पानी लाया। हर ओर थिरकती हवा चली, मदहोश मचलती मनचली। सांय-सांय हो इधर उधर, न पता उसे जाना किधर। बरखा को न्यौता दे आई, देख उसे बरखा मुसकाई। बरखा रानी हवा सयानी, इक सिरे की दो कहानी। घन-घन फिर बादल गरजा, लगा जोर से ढोल बजा। लो बरखा ने रफ्तार पकड़ ली, थिरक रही वो छेन छबीली। हर पत्ता भीगा, डाली भीगी, हुई धरा भी भीगी-भीगी। सड़क भीगी, कपड़े भीगे, छत पर सूखे गेंहू भीगे। इधर उधर यूं डोल कर, घूम रही हर गली डगर। शीतल वन उपवन हर पात-पात, शीतल बरखा की शीतल मुलाकात। परिचय -  आस्था दीक्षित पिता - संजीव कुमार दीक्षित निवासी - कानपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भ...
मित्रता
कविता

मित्रता

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** मित्रता कूचे गलियों से जो है बनती स्कूलों के मैदानों में है फूलती-फलती खेतों खलिहानों मे है अंगडाई लेती और फिर जिंदगी भर नहीं कभी टूटती। मित्रता मे कभी कोई भेद नहीं होता, मित्रता का जहाँ हमेशा आबाद है होता, कोई अमीर-गरीब मित्रता मे नहीं होता, रिश्तों के जैसा बंटवारा यहाँ नहीं रहता! मन मे निर्मल झरना प्रेम का बहता, वास्ता झगडे से केवल दो पल का होता! मित्रता मे समय ही समय है रहता, खाओ या भूखे रहो सब चल जाता। मित्रता मे सोच के नहीं बंधा जाता, न काला-गोरा और न छोरी- छोरा। मित्रता का होता है सिर्फ यहीं मायना जैसे मरूभूमि मे हरियाली का मिलना! एक मित्र ने पुकारते हुए अर्ज किया अभी के अभी मित्रता पे कुछ लिखना, अपने इस मित्र का कहना न था टालना कैसे होता सम्भव फिर कलम को रोकना? परिचय :- डॉ. संगी...
परिवार
कविता

परिवार

महेन्द्र साहू "खलारीवाला" गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** इस जहाँ में भरापूरा है जिनका परिवार। स्वर्ग से भी सुंदर है उसका घर संसार।। परिवार से मिलता है सम्बल प्रेम आधार। मिलता है अपनों को अपनों का प्यार। दुःख में सुख में जो मिलकर हाथ बटाए। रूखी-सूखी जो मिले बाँटकर खाए।। औरों की खुशियों के लिए अपना गम छुपाये। छोटी-छोटी खुशियाँ अपनों को दे जाए।। वटवृक्ष के समान यहाँ होते हैं बड़े बुजुर्ग। जो रखते हैं अपनी टहनियों का पूरा ध्यान।। देते हैं अच्छी शिक्षा, संस्कार, मान, सम्मान। बड़े बुजुर्गों का कभी न करें अपमान।। इनसे ही हमारा भरा पूरा परिवार है। यही तो हमारे जीने का आधार है।। जिनके पास नहीं होता है परिवार। वे तरस जाते हैं पाने परिवार का प्यार।। परिवार से ही ईद, होली, दिवाली का मजा है। परिवार बिना जीवन, कालापानी की सजा है।। ...
मुझसे तुम प्यार करो
कविता

मुझसे तुम प्यार करो

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** बोल दो जो मन में है, प्यार का इजहार करो। सुन स्वर्ग की अप्सरा, मुझसे तुम प्यार करो।। तुम मुझे, मैं तुझे पसंद, क्यों खामोश बैठी हो। छीन ली मुस्कान मेरी, तुम बहुत ही हठी हो।। मेरे दिल को दुखा कर, आखिर क्या मिलेगा। मुझसे बात ना करके, मन बाग कैसे खिलेगा।। मैं जा रहा हूं दूर तुमसे, एक बार आवाज दो। लेकर यादों की परछाई, राह में मेरा साथ दो।। रखूंगा सदा पलकों में, दुःख को सुख में ढ़ाल। हमारा प्यार अमर रहेगा, प्रेमी जन देंगे मिसाल।। झलक पाकर मैं दीवाना, तुझे अपना मान बैठा। बंद आंखों के सपने, खुली आंखों में था झूठा।। बना गायक प्रेम का, गलियों में गीत गाने लगा। बैठ तुम्हारी द्वार पर, मधुर नाद से रिझाने लगा।। लाल गुलाब की कली, मधुकर को बुलाने लगी। आओ मीठा रसपान करो, बदन में आग लगी।। छू लो मुझे एक बार, सहला दो नर्म पं...