प्राण
श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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जीवन की वास्तविकता है प्राण,
पंछी सा उड़ जाएगा एक दिन यह प्राण
जीवन की हंसने-रोने की ध्वनि ना सुन पाएगा
सुख-दुख के संवाद कभी ना सह पाएगा,
जब जीवन से मुक्त हो जाएगा यह प्राण !
पग-पग ये जीवन उलझी हुई किताब
आदि अंत ना सुलझा पाया ये इंसान,
समय के चक्षु में शुष्क नीर जैसा
थम जाता है यह प्राण,
उत्कृष्ट पाने की अभिलाषा,
हर पल खुश रह कर जीने की ललक,
असंतुष्ट इच्छाओं को
पूर्ण करने की पराकाष्ठा,
समझते समझाते क्षण भंगुर सा
सृष्टि में विलीन हो जाता है यह प्राण !
मोहपाश में ना बाँध सका इसे कोइ,
स्वतंत्र विचरण करने को व्याकुल,
कोलाहल की ध्वनि से दूर,
शांत वन में लुप्त होने को आतुर है यह प्राण !
नित नए जीवन का ग्रंथ बनाते,
आशा को विश्वास का संगीत सुनाते,
धीरज धर परमात्मा का संदेश सुनाते,
जीवन का अखंड सत्य...