सम्भल जाओ
मालती खलतकर
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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अट्टालिका में खो गये
खेत खलियान
मेड, मुंडेर बिखर गई
नहीं कहीं पेड़ों के
चिन्ह, निशान।
पक्षी निहारते शून्य
आंखों से आकाश
पगडंडी पक्की
सड़क में बदली
गलियां सकरी थी
चौड़ी हुईं
गांव बदल गये
शहर में
गांवों का बदला
ऐसा मौसम
ठन्डक थी अब
तपन हुई व
जलकूप कलपूर्जो
से ढंक गये
नहीं दिखाई देता
अन्दर कितना जल
अट्टालिकाएं पी
गई नहरों का जल
नदियों को
उघाडते रेत खनन
पहाड़ों को चोटिल कर
राह बनाई जा रहीं
है न, पृकृति का दोहन।
स्वार्थी मानव के लिये
धरा धैर्यवान हे, साहसी है,
सहती हैं इसलिए चुप है।
जब धरा की
पराकाष्टा होगी ।
तब स्वार्थी
सम्भल नहीं पाएंगे
अभी थरा मौन
रहकर सह रही है
रुक जाओ
सम्भल जाओ।
परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी...