Monday, April 28राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

कविता

सम्भल जाओ
कविता

सम्भल जाओ

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अट्टालिका में खो गये खेत खलियान मेड, मुंडेर बिखर गई नहीं कहीं पेड़ों के चिन्ह, निशान। पक्षी निहारते शून्य आंखों से आकाश पगडंडी पक्की सड़क में बदली गलियां सकरी थी चौड़ी हुईं गांव बदल गये शहर में गांवों का बदला ऐसा मौसम ठन्डक थी अब तपन हुई व जलकूप कलपूर्जो से ढंक गये नहीं दिखाई देता अन्दर कितना जल अट्टालिकाएं पी गई नहरों का जल नदियों को उघाडते रेत खनन पहाड़ों को चोटिल कर राह बनाई जा रहीं है न, पृकृति का दोहन। स्वार्थी मानव के लिये धरा धैर्यवान हे, साहसी है, सहती हैं इसलिए चुप है। जब धरा की पराकाष्टा होगी । तब स्वार्थी सम्भल नहीं पाएंगे अभी थरा मौन रहकर सह रही है रुक जाओ सम्भल जाओ। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी...
आत्मदाह
कविता

आत्मदाह

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** इस दुनियां में हर व्यक्ति परेशान है। आत्मदाह किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। ******* आत्मदाह करने से हम तो दुनियां छोड़कर चले जायेंगें। पीछे घर वालों के लिये हजारों समस्याएं छोड़ जायेंगे। ******* दुनियां की प्रत्येक समस्या का समाधान है। आत्मदाह करना एक कायराना काम है। ******* ८४ लाख योनियों के बाद मानव जीवन मिलता है। आत्मदाह करने से हमें कुछ भी नहीं मिलता है। ******* आत्मदाह से हमारी समस्या सुलझ नहीं पायेगी। उलटा वह बिगड़ती जायेगी। ******* समस्याएं तो जिंदगी का हिस्सा है। इनका डटकर सामना करें आत्मदाह करना तो बुजदिलों का किस्सा है। ******* परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलि...
बसंत पंचमी प्रेम पर्व …
कविता

बसंत पंचमी प्रेम पर्व …

डॉ. पवन मकवाना (हिंदी रक्षक)  इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** मेरे पास थी इक टोकरी जो मैं देना चाहता था तुम्हें बसंत पंचमी प्रेम पर्व पर कुछ गुलाब सफ़ेद रंग के जो प्रतीक है शान्ति/अमन/सुलह और भाईचारे का मैं देना चाहता था तुम्हें एक टोकरी ... देना चाहता था तुम्हें क्यूंकि तुम हो मुझसे नाराज हाँ ... मुझे है ये आभास ... कुछ गुलाब पीले जो प्रतीक है विशवास का/दोस्ती का जिसकी और बढ़ाया था तुम्हीं ने पहला कदम भेजकर संदेश अपना दिया था तुमने एक प्यारा सा दोस्त एक नया सपना हाँ रख लोगे पीले गुलाब तुम अगर कभी समझा होगा तुमने हमें जो दोस्त अपना हाँ मैं देना चाहता था तुम्हें एक टोकरी ... कुछ गुलाब लाल भी हैं जो प्रतीक हैं प्रेम/पूजा/प्यार के इबादत के देना चाहता था मैं तुम्हें क्यूंकि तुम्हीं चाहते थे कि कोई चाहे तुम्हें ... दोस्त कि तरह/ध्यान र...
गाथा खामोश नदी की
कविता

गाथा खामोश नदी की

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पहाड़ी कंदराओं से तब जो झरना बन उतरती है उछलती कूदती बहती ये इक अल्हड़ बाला सी नदी भू पे खामोश हो जाती नटखट बालिका थी जो यौवना बन गई है वो सयानी नार अब नीरा कदम गिन गिन के रखती है नदी खामोश हो जाती सजे हैं घाट देवों से किनारों पर लगे मेले कश्तियां गुनगुनाती हैं चाँदनी रात गाती है नदी खामोश हो जाती अक्षय दान दे जल का धरा की गोद भरती है लुटा कर प्यार वो अपना समंदर में समाहित होकर नदी खामोश हो जाती परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्...
देखो चुनाव हो रहा है
कविता

देखो चुनाव हो रहा है

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** सब लड़ रहे हैं, आगे बढ़ रहे हैं, लड़ रहा है भाई-भाई, बहू संग सासू माई, एक नहीं हो रहे, नेक नहीं हो रहे, मतैक्य नहीं हो रहे, दबंग भी लड़ रहा, मलंग भी लड़ रहा, भुजंग भी लड़ रहा, चुनावी ताप बढ़ रहा, मिठाई की भरमार है, धन बल बेशुमार है, मतदाताओं में चुप्पी है, प्रत्याशी बेकरार है, बेवड़ों में छलका जाम है, हर दिन सुबह और शाम है, मुराद पूरी न हुए तो धमकी देना आम है, पीना खाना ही इनका काम है, प्रजातंत्र रो रहा है, जिम्मेदार सो रहा है, धर्म की ललक है जागी इतनी इंसानियत बिलख के रो रहा है, हो रहा है हो रहा है, चुनाव देखो हो रहा है। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
जब इश्क हुआ था
कविता

जब इश्क हुआ था

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** जब इश्क हुआ था तो गुनगुनी सी धूप ठंड में लगने लगती थी प्रेयसी कि तरह। जब इश्क हुआ था तब गर्मी में तब बदल जाते थे कभी उनके मिजाज बेवफा की तरह। धूप के भी रिश्ते है फूलों से जेसे होता है चाँद का चाँदनी से जब इश्क हुआ था तब इश्क की राह में धूप में नंगे पांव भी चल पड़ते थे परवाने की तरह। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभाग...
मौसम
कविता

मौसम

डॉ. पवन मकवाना (हिंदी रक्षक)  इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** यूँ चाहे जब ना चले आया करो मौसम ... यूँ उनकी याद ना दिलाया करो मौसम ... रूठा हो जब यूँ दिलबर हमसे यूँ आकर ना हमको सताया करो मौसम ... गर आना हो जो मज़बूरी तुम्हारी आकर पहले हौले से हमें बताया करो मौसम ... तुम जब आते हो तो याद करते हैं हम उन्हें हम कितना यह बात उन्हें भी तो बताया करो मौसम ... याद में जो उनकी हम गाते हैं नगमें करीब जाकर उनको भी सुनाया करो मौसम ... चाहते हैं हम उन्हें कितना ना मानेगें वो कभी तुम्हीं जाकर उन्हें प्यार जताया करो मौसम ... प्यार के दीप से ही है रोशन दुनिया मेरी उनके दिल में भी इक दीप जलाया करो मौसम ... परिचय : डॉ. पवन मकवाना (हिन्दी रक्षक) निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश सम्प्रति : स्वतंत्र पत्रकार व व्यावसाइक छायाचित्रकार संस्थापक : राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मं...
पीला बसंत
कविता

पीला बसंत

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** बसंत पंचमी का उत्सव मां सरस्वती को समर्पित है। पूजा कर के उनको पीले फूल पीले वस्त्र करते समर्पित हैं। ******* पीला रंग मां सरस्वती को भाता है। सभी धार्मिक कार्य में भी पीला रंग नज़र आता है। ******** ज्ञान की देवी सरस्वती इनका सच्चे मन से पूजन करें। और अपने आपको ज्ञान से भरें। ******** देवी सरस्वती ने वीणा बजाकर पूरे संसार में मधुर आवाज फैलाई। तभी तो सुषुप्त श्रृष्टि जागृत अवस्था में आई। ******** भगवान शिव और माता पार्वती का तिलक भी बसंत पंचमी को हुआ था। और मां सरस्वती का जन्म भी बसंत पंचमी को हुआ था। ******* बसंत पंचमी का दिन विवाह का शुभ मुहूर्त कहलाता है। इस दिन होने वाला विवाह सुखमय होता है। ******* बसंत पंचमी से बसंत ऋतु का आगमन होता है। प्रकृति में नई ऊर्जा और उत्साह का संचा...
आदमी वो ही हैं
कविता

आदमी वो ही हैं

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* आदमी वो ही हैं आदमी वो ही है जिसमें धैर्य तो हो मानव धर्म भी हो आदमी वो है करे जो सार्थक सब कर्म भी हो। आदमी वो है रहम का वास जिसके दिल में हो आदमी वो है जो सहज हर मुश्किल में हो। सच बताओ? लग रहा क्या आदमी-सा आदमी आदमी के भेष में क्यूँ ? जानवर-सा आदमी। कब घुसा इस आदमी के जिस्म में ये जानवर? आदमी हो तो तुम्हें इस जानवर की शर्म हो। आदमी का वहम हो और जानवर-पन ही रहे ये ईमाँदारी कहाँ? हम आदमी खुद को कहें। आदमी हैं जिंदगी में आदमी बनकर रहें आदमी हो तो समझ़ में तत्व का कुछ मर्म हो। आदमी गर ठान ले तो स्वर्ग सी जीवन धरा हो शुभ हुआ है आज तक भी आदमी जब शुभ करा हो। आदमी हो आदमी से जुड़ गये गर प्रेम से भाव जो गहरा हुआ तो हर हृदय में यह भरा हो। आदमी वो जो ये जाने जन्म ...
चार पुरुषार्थों का कुंभ – महाकुंभ
कविता

चार पुरुषार्थों का कुंभ – महाकुंभ

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** धर्म- बारह वर्षों में मिलता महालाभ आत्मिक बल है इसका प्रताप आध्यात्मिक संगम का महाकुंभ सांस्कृतिक चेतना, आस्थाकुंभ तीर्थराज में संत समागम पौराणिक गाथाओं का संगम। यह मेला भक्तों का मेला मेल कराता सुधी जनो का आस्था के वैभव का भावों की उत्ताल तरंगों का। संगम भावों का स्नान कराता ऋद्धि सिद्धि, मन में शीतलता संतों के आत्मिक दर्शन से जीवनदर्शन के दर्शन पा जाता मन प्रफुल्लित हो जाता कलुष ताप मिट जाता भक्तिभाव से हो विव्हल संगम में डुबकी लेकर लीन प्रभु में हो जाता ईश्वरतत्व से सराबोर जीवन की उहापोह तज धन्यभाव समा जाता। कुंभ का मेला मेल कराता देता आध्यात्म ‌का आदेश प्रचुर मात्रा में देता संसार चलाने का संदेश। अर्थ- गंगाजल परम अति पावन सकल लोक के रोग नसावन गंगाजल अमृत, मिनरल वॉटर यह‌ पीकर सब पच जा...
सोचो स्वयं क्या हो
कविता

सोचो स्वयं क्या हो

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** मनुष्य में मनुष्य नहीं दिख पाता पर तुरंत ही जाति दिख जाती है, कुछ लोगों को उनके संस्कार शायद यहीं सिखाती है, जाति के नाम पर कुछ लोग बन जाते हैं हिंसक सरफिरे, स्व उच्चता की कितनों भी दुहाई दे रहते हैं गिरे के गिरे, योग्यता को आंकने का पैमाना लिए रहते हैं कुढ़ता से घिरे, कोयला ही मान बैठते हैं जो हर कर्म से रहते हैं हीरे, हर पदचाप की गूंज लिए ठोकर पर ठोकर खाये पत्थर को लगा लेते हैं सर माथे पर, सबसे प्रिय मित्र लगने लगता है अस्पृश्य जब उसे लाना पड़ जाये घर, शायद इसीलिए लोग बने रह जाते हैं कूपमंडूक, जो चाहते हैं इंसानियत से फैलते प्रकाश छोड़ अपनी जाति धर्म वाला धूप, मूर्खों कब समझोगे कि चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य का कोई धर्म या जाति नहीं होता, बहकाकर पेट भरने वालों द्वारा समानता के सि...
आया बसंत
कविता

आया बसंत

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** धरा के द्वार बजाता आया बसंत कोयल कुकी, कुन्ज-कुन्ज में बौराए हैं आमृवक्ष रविकिरण की कुनकुनी धूप में। बसन्त बयार बह रही पसर रही, गंध। हरित पर्णों की छाया में तितली गाती, मंडराती भौंरे गुंजन करतें पुष्पों पर पर्ण उन्हें झुलाते हैं वृक्ष वल्लरी मदमाती पवन संग पुष्प वर्षा कर बसंत का स्वागत करती। स्वागत में बसंत के पथ पर पड़े पत्ते पतझड़ के पवन झोंकों संग पथ संवारते। तड़ाग की स्थिर जल राशि में रवि प्रतिबिम्ब अपना स्वर्णिम प्रकाश फैलाकर धरा को स्वर्णिम आभास देता। झरना कलकल, नंदियों का कलकल स्वर, उपवन को आन्दोलित करता उपवन, उपवन बाग बग़ीचे झूम रहें हैं फल, फूलों से आथा उनका बसंत प्यारा आज उनके आंगन में।। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी ...
बसन्ती महक उठी
कविता

बसन्ती महक उठी

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** बसन्ती महक उठी ! चंचल-प्रकृति-बीच- कोयल बहक उठी ! गुलमोहर की डालों-पे गिलहरी-लहराई ! अढ़उल की शाखों पे- गौरैया-शरमाई ! सेमल-पलास बीच दिशाएँ लहक उठी ! पीपल पे हरी-हरी बदली छिटक उठी...! पाकड़ पे 'उजास' फूटा, बरगद पे ठिठका ! मौसम का ठौर-ठौर वृक्षों पे अटका ! महुआ के गुंचो में रसना समा रही ! अमरइया की मंजरी- किसको न भा रही ! मोरों को लय-ताल तीतर समझा रहा.. कपोत कुछ आगे फिर- पीछे-को जा रहा.. ! नीम के कोतड़ में तोते आनन्द-भरें... कठफोड़वा के श्रम पे ना जरा भी गौर करें..! जामुन के फूलों पे- भवरी-लहराई ! अँवरा को किसने - छींट-सारी पहनाई! शिरीष की शाखों-पे कर्णफूल लटक रहे ! अमलताश अब भी- पीताभ को तरस रहे! अर्जुन ने देखो, नव-किसलय है पाया! गूलर का फूल कहाँ सबको नजर आया! अन्दर ही अन्दर 'प्रक...
ग़म है तो पी लो
कविता

ग़म है तो पी लो

डॉ. रमेशचंद्र मालवीय इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** खुश़ रहो मित्रों जिस हाल में हो रहते चाहे जिस गली, चाल में हो। हंस हंस कर जी लो ग़म है तो पी लो यही जिंद़गानी है यही सबकी कहानी है खोए रहते किस ख़याल में हो खुश़ रहो मित्रों जिस हाल में हो। कोई मिलता है तो कोई बिछड़ जाता है फूल खिलता है फिर उज़ड़ जाता है नहीं किसी का यहां ठिकाना है आज इसका, कल उसका जाना है उलझे रहते किस सवाल में हो खुश़ रहो मित्रों जिस हाल में हो। भूला बिसरा जब कोई मिल जाएं गले मिलें, प्यार अपना जताएं सभी को प्यार की चाहत है यह मिल जाए बड़ी राहत है छोड़ो पड़े किस जंजाल में हो खुश़ रहो मित्रों जिस हाल में हो। इस ज़ग में कुछ लोग अच्छे हैं कुछ झूठे हैं, कुछ सच्चे हैं सभी से रखें प्यार का रिश्ता सब इंसान है नहीं कोई फ़रिश्ता मस्ती में रहो चाहे फ़टेहाल में हो खुश़ रहो मित्रों जिस हाल में...
अंतिम ईच्छा
कविता

अंतिम ईच्छा

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** अंतिम ईच्छा एक जीव एक जीवन की सुनो अगर कभी जो सुनना चाहो मेरे दबे छुपे शब्दों की आवाज, गहराई में डूबी सी ध्वनि का आभास! मैंने कभी कुछ नहीं चाहा तुमसे, ना कभी माँगा तुम सलामत रहना इस सृष्टि के होने तक मेरे दिल मे मेरी आत्मा मे मेरी अठखेलियों में मेरी पवित्रता भरी मुस्कराहट में मेरी आँखों की नमी में मेरी उठती गिरती सांसो में जिनमे हर पल तुम्हारा नाम लिखा होगा मेरी पीड़ा मेरी सिसकियों में जो मैं नहीं समझ सका, किसने और क्यों दिए ?? ना जाने कितने घाव छुपे हैं इनमे! मेरी अन्तरात्मा में एक द्वंद चल रहा, नहीं जानता कब से, क्यूं प्रताडित होता रहा जीवन भर?? क्यों मेरा अस्तित्व प्रश्न चिन्ह सा बना रहा सदैव?? मेरे होने मेरे ना होने पर , सब कुछ परमात्मा में विलीन हो जायेगा स...
मुंह बंद करा गया
कविता

मुंह बंद करा गया

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** वो चिल्ला-चिल्ला बताने लगा, लिखे हैं बहुत किताबें सुनाने लगा, अपने ही मुख खुद का करने लगा गुणगान, चमत्कारियों की करतूतों का हर जगह करने लगा बखान, वो कह रहा था कि उनके किताबों में भरा हुआ है विज्ञान ही विज्ञान, जिसकी व्याख्या नहीं कर पाता समय में पहले कोई स्वयंभू विद्वान, आज के युग में भी धड़ल्ले से हर जगह अंधविश्वास फैला रहा, सृष्टि की उत्पत्ति का अजीब फार्मूला कथे कहानियों में बता रहा, दिमाग से पैदल चलने वाला उनकी हां में हां मिला रहा, अपनी स्थिति से ऊपर उठ नहीं सकते सारे जग वालों को बता रहा, इन लोगों के मिल रहा देखने हर हमेशा दो-दो रूप, अंदर बाहर हर तरफ से है कुरूप, सच्चे सीधे नास्तिक से एक दिन टकरा गया, जो सिर्फ जय भीम बोल कर उनका बड़ा सा मुंह बंद करा गया। ...
सीता शोक
कविता

सीता शोक

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** अशोक मै भी शोक था, राम के इंतज़ार मे, सीता के हे मिलान का बस राम इन्तजार था। रावण और राम युद्ध का बस सार ही तो राम है, परीक्षा पर परीक्षा ही, सीता चरित्र महान है। विरह की आग अग्नि से प्रबल ज्वलन्त आग है, सीता हमेशा शोक में अग्नि परीक्षा साथ है। सीता को ना समझ सका? कितने ही धोबी आज है, अब सीता वो सीता ना रही, कलयुग की सीता आज है। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "साहित्य शिरोमणि अंतर्राष्ट्रीय समान २०२४" से सम्मानित ४. १५००+ कवि...
जीवन और प्रेम में कभी-कभी
कविता

जीवन और प्रेम में कभी-कभी

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** जीवन और प्रेम में कभी-कभी एक तरफ की 'एक छोटी सी नासमझी की त्रुटि' जब दोनों तरफ के एक महान सुन्दर सुखमय-प्रेममय- मोहक-जीवन, उसके सपने तथा - उसकी हॅंसी-खुशी की सम्भावना का ध्वंसन कर देती है... और जब- नहीं रह जाता है कोई उपाय- उन अतीत के सपनों में- उन सम्भावित जीवनों को टटोलने की खोजने और पाने की तथा वापस लौटने की... और जब सुखमय-हर्षमय- सौन्दर्यमय-समृद्धि से भरे 'जीवन-स्वार्थ की आशा - किसी तरह से पूर्णतः निर्मूल होकर समय के बवण्डर में कण-कण से धूल-धूसरित होकर बिखर जाती है तथा जब जन्मों-जन्म के 'एकल-सपने' अलग-अलग होकर अपने-अपने ढंग से आँखों की गहराइयों में सपाट होकर किसी एक तरफ से चुभने लगते हैं... तथा जब 'दोनों तरफ से अपलक दर्शन की भूख' वर्तमान में किसी भी तरफ से ऑखों में कसैलापन...
बेईमान व्यक्तित्व
कविता

बेईमान व्यक्तित्व

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** वक्त का व्यक्तित्व है वरना कौन जानता यहां किसी को? पद की गरिमा है वरना कौन करता यहां सम्मान किसी का? दिल की हसरत है वरना कौन करता यहां इश्क़ किसी को? दुआ होती कबूल यहां वरना कौन करता यहां बंदगी खुदा की? परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहान...
महाकुंभ प्रयागराज
कविता

महाकुंभ प्रयागराज

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** महाकुम्भ का यह संगम, अजब गजब अध्यात्म आस्था असीमित निर्मल, पवित्र, मोक्षदायिनी, सरिता त्रिवेणी के संगम में महाकुंभ का जयघोष है। निर्मल जल, शिव जटाओं से अवतरित। मां गंगा के दर्शन से निर्मल हो गया मन। मां पतित पावनी के जल से कंचन हो गया तन। पुण्य सरिता प्रवाहिनी जीवन की आधार हो तुम। अंत समय के बाद भी तुम मोक्षदायनी तारणहार तुम। प्रयागराज की पुण्य धरा पर अविरल जल धारा। मां गंगा का प्रवाहित जल पुण्य सरिता। प्रकृति की अनमोल धरोहर को यह मानव सभ्यता, भेंट सदा समझे हम। महाकुंभ में करोड़ों श्रद्धालुओं का स्नान, तर्पण ही जीवन की आस्था हो तुम। हमको इस महत्व को सदैव समझना होगा। कहीं इसका दुरूपयोग ना होने पाए। तब ही जल संरक्षण से निर्मल जल में, सभ्यता मोक्षदायनी की आस्था में सदा डुबकी लगायेगी। आगे ह...
मन कहे.. लो बसंत आ गया
कविता

मन कहे.. लो बसंत आ गया

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** अंगुलियाँ हिलने लगी कलम चलने लगी उतरने लगे फिर प्रणय गीत मन कहे.. लो बसंत आ गया डाल डाल पर नई कौपलें बन जायेगी कल कलियाँ मंडरायेंगे मधुप पीने पराग छल जायेंगे फिर छलिया जब बहे प्रीत का दरिया उर आनंद समा गया मन कहे.. लो बसंत आ गया चले पवन ले पतंग प्रीत डोर से बंधी हुई संग चली छाया अपनी कदम कदम सधी हुई नेह भरे नयन अंजनी अंग अंग यौवन छा गया मन कहे.. लो बसंत आ गया बदन मदनी हुआ उन्मत्त मन आनंद छाने लगा ले नव गीत जीवन संगीत मनपाखी मस्त गाने लगा सातों सुर सजे सात रंग इंद्रधनुष नभ छा गया मन कहे.. लो बसंत आ गया तारे सनद मन मदमत तन पुलकित होने लगा बाँध भुजपाश मीत के साथ अभिसार विचार होने लगा मन पढ़ भाव मीत मन के दिवा स्वप्न में समा गया मन कहे.. लो बसंत आ गया रति उतरे धरा ...
ऋतुओं का राजा आया है
कविता

ऋतुओं का राजा आया है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** है ऋतुराज बसंत आगमन, मादकता है छाई। ओढ़ पीत परिधान अवनि भी, लगती है सुखदाई। अब ऋतुराज बसंत आ गए, सारे उपवन फूले। रंग बिरंगे पुष्पों पर हैं, आज भ्रमर दल झूले। ऋतुओं का राजा आया है, मौसम है अलबेला। कोयल भ्रमर और तितली का, है फूलों पर मेला। पवन बसंती सबके मन को, मोहित कर मदमाती। बैठ-बैठ फूलों के ऊपर, तितली राग सुनाती। बौर आ गया है आमों पर, भौंरे भी मँडराते। कोयल कूक रही डालों पर, खिले फूल मुस्काते। नई कोंपलें हैं वृक्षों पर, इतराती इठलातीं। पवन झकोरों संग तितलियाँ, उड़ अंबर तक जातीं। पीली चूनर ओढ़ धरा अब, दुल्हन-सी शरमाती। पकी फसल लहरा-लहरा कर, राग बसंती गाती। आने लगे फूल टेसू में, जंगल लाल हुए हैं। लगता है साजन ने आकर, गोरे गाल छुए हैं। फसलों पर यौवन आया है, पवन बसंती ...
कुंभ पर्व
कविता

कुंभ पर्व

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** सत्य सनातन धर्म का कुंभ अनोखा पर्व है नदियों के तट पर लगता भारत भूमि का गर्व है। गोदावरी शिप्रा का तट तीन नदियों का है संगम सुरसरि की है पावन धारा लगता कुंभ यहां विहंगम। अवंतिका और प्रयागराज नाशिक संग हरि का द्वार अमृत छलका जहाँ आदि में यहाँ जुटते है संत अपार। जूना, अग्नि और आवाह्न निरंजनी, आनंद, अटल महानिर्वाणी सात अखाड़े दशनामियों का कुंभ पटल। नया और बड़ा उदासीन निर्मल संतों का भी वास निर्मोही, निर्वाणी, दिगम्बर राम दल का होता प्रवास। महंताई और पट्टाभिषेक संत समष्टि दीक्षा संन्यास धूनी पूजा और यज्ञ हवन पेशवाई का उत्तम विन्यास। कुंभ परंपरा अद्भुत सारी शाही स्नान की बात निराली साधु, संतों, महंतों की होती तब है चाल मतवाली । रमता पंचों का नगर प्रवेश विजया हवन संस्कार ध्वजारोहण और ईशवंदन संतों ...
ऋतुराज वसंत
कविता

ऋतुराज वसंत

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** कामदेव ने अखियां खोली निद्रा को दी तुरंत विदाई कुछ कुछ मुकुलित कलियां देखी फूल हंसे, लतिका मुस्काईं। दसों दिशाएं जाग गई हिम की प्रहरी भाग रही कोमल कोमल कोमल काश झुरमुट से अब झांक रही। रवि की किरणों ने ली अंगड़ाई दूर हुई बर्फीली रजाई अरुण के रथ पर आ विराजीं सारे जग को दी जगताई। प्रकृति की अनुपम लीला रंगबिरंगे वसनों से सज्जित पुष्पों की हुई मुंह दिखाई हरी घास, हरियाली आई। तितली भौरे गुंजन करते मधुर तान, संगीत सुनाते बोले मोर,पपीहा बोले हिरनों संग हिरनी डोले। रंगीन दुशाला ऋतुरानी ओढ़े ऋतुराज के स्वागत में पट खोले। मुस्काती इठलाती पुरवइयाआई वासंती पवन बही सुखदाई।। जगताई के २ अर्थ हैं १. चंचलता २. जगत् का स्वामित्व परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी ...
चाहना
कविता

चाहना

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* चाहना एक अभिव्यक्ति है और चाहत एक अनुभूति. चाहने में भौतिकता है और चाहत में स्वतंत्र, अद्वैत होने के बोथ. चाहना एक फूल से हो सकता है और चाहत संपूर्ण उपवन की. चाहने में लालसा और पाने की कामना उद्बबोधित है चाहत सृष्टि के स्वरुप की स्तुति हैं. इसलिए जब मैंने कहा कि तुम मेरी चाहत हो तो केवल तुम नहीं तुम से जुड़ी, बंधी वो सारी नैसर्गिकता भी है. निश्छल, पावन अक्षत एवं साश्वत काव्य संस्कृति में सौंदर्य बोध परालौकिक है. मेरा मौन रहना जिस दिन लोग समझेंगे मै उन्हें महाकाव्य लगूंगा। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "समाजसेवी अंतर्राष्ट्...