हिंदी की बिंदी प्यारी
अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत"
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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भालचंद्रमा-सी शोभित है,
हिंदी की बिंदी न्यारी।
भारत के जन-जन को लगती,
हिंदी भाषा, अति प्यारी।
सुख सौभाग्य यही बिंदी है,
लगी भाल पर हिंदी के।
इससे ही सुहाग हिंदी का,
बड़े भाग्य, इस बिंदी के।
अनुपम और अनूठी बिंदी,
माँ निज भाल लगाती है।
नवरस से हो सराबोर यह,
सुखप्रद आस जगाती है।
अलंकार छंदों से सज्जित,
होकर लगती मनभावन।
सहज, सरल सब भाषाओं में,
हिंदी भाषा है पावन।
जग मंगल, करती है हिंदी,
सबको आँचल में लेती।
मन प्रसून को पुष्पित करती,
सुरभित, केसर-सी खेती।
सूर, कबीर, दास तुलसी ने,
हिंदी का गौरव गाया।
रामचरितमानस अति पावन,
जन-जन के, मन को भाया।
सागर-सी गहराई उर में,
पर्वत-सी ऊँचाई है।
पंत, निराला, दिनकर जी ने,
इसकी महिमा गाई है।
है विशाल आँचल हिंदी का,
इसमें सभी समाते हैं।
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