बचपन
उषा बेन मांना भाई खांट
अरवल्ली (गुजरात)
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कभी मेरे चहरे पर
खुशी होती थी,
गमों से दूर का रिश्ता था,
आज जो कुछ हुँ मैं,
उससे अच्छा तो
मेरे बचपन का
जीवन ही अच्छा था।
कोई कुछ भी कहे,
उनकी बातो का,
मुझे जरा भी बूरा
नही लगता था,
आज जो कुछ हुँ मैं,
उससे अच्छा तो
मेरे बचपन का
जीवन ही अच्छा था।
दिन भर खेलती रहती थी,
ना पढ़ाई की चिंता थी,
ना नौकरी पाने की तमन्ना थी,
आज जो कुछ हुँ मैं,
उससे अच्छा तो
मेरे बचपन का
जीवन ही अच्छा था।
स्कूल जाती थी,
मैडम से रोज
मार खाती थी,
उनकी मार का
मुझ पर कोई असर
नहीं होता था,
आज जो कुछ हुँ मैं,
उससे अच्छा तो
मेरे बचपन का
जीवन ही अच्छा था।
बचपन पुरा हुवा बड़े हुए,
जिंदगी में एक नया मोड आ गया,
इस नये मोड से
अच्छा तो
मेरे बचपन का
जीवन ही अच्छा था।
आज जो कुछ हुँ मैं,
उस से अच्छा तो मेरे बच...