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कविता

दुनिया में सभी सुखी रहें
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दुनिया में सभी सुखी रहें

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** दुनिया में सभी सुखी रहें जीवन भर सभी के मन शांत रहें दूसरों की परेशानी में मदद करें यह भाव हर मानवीय जीव में रहे कभी किसी को दुख का भागी ना बनना पड़े यह कामना हर मानवीय जीवन में रहे जीवन में किसी जीव को परेशान बुराई ना करने का मंत्र ज्ञान मस्तिष्क में रहे सभी जीवन में सुखी रहें दुनिया में कोई दुखी ना रहे सभी जीवन भर रोग मुक्त रहे मंगलमय के हर पल के सभी साक्षी रहे सभी श्लोकों को पढ़कर जीवन में आनंद करें महापुरुषों के ग्रंथों को पढ़कर सही रास्ते पर चलकर सभी में यह सोच भरें किसी की बुराई और परेशान ना करें भारतीय संस्कारों को जीवन में अपनाते रहें सभी जीवो का कल्याण का कार्य करते रहें किसी के दुखों का भागी कारण न बने सभी की भलाई निस्वार्थ करते रहें परिचय :- किशन सनमुखदास भावनानी (अभिवक्ता) ...
सात गुण सात रोग
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सात गुण सात रोग

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सात गुण सात रोग शक्ति स्वरूपा देवियों से प्राप्त गुणों से भगाएँ रोग। स्नेह प्यार की शीतल बयार ह्रदय रोगों से बचाती संसार क्यों न प्यार दें और प्यार ले शान्ति का चहुँ ओर हो प्रसार श्वास अस्थमा नहीं आए द्वार तभी कहते शान्ति से सांस लो संतोष व सुख का करो संचार पेट रोग अपच सब मानेंगे हार सुना है, सुख से दो जून खाओ फैलाओ सदा ज्ञान का प्रकाश मानसिक रोगों का होता नाश चिंता नहीं, चिंतन में लीन रहो शरीर के दर्दों से पाओ निज़ात जाग्रत अष्ट शक्तियाँ है निदान अन्तर्निहित ऊर्जाएं न गवाओ कर्मेन्द्रियां अपना ले पवित्रता प्रतिरोधक दिलाए रोगमुक्तता सोचो-सब अच्छे, सब अच्छा संतोषी सदाचारी निर्विकारी बने परम् आंनद के अधिकारी दुआ दो, भला करो, मगन रहो परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : ...
जड़ों का अस्तित्व
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जड़ों का अस्तित्व

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जमीन में दबी हुई जड़ों के जंजाल को जीवित रखने के लिए। वृक्षों की विभिन्न शाखाएं देखिए कैसे अवनी अंबर में समझौता करने के लिए अडिग है। उच्च श्रृंग शिखरवृक्ष का संदेश सुनाता अंबर को कहता अवनी आश्वस्त है तप्त रवि जब किरणें फैलाता। फैले वृक्ष छाया करते अवनी पर गोलाई, चौड़ाई, चतुर्भुज, लंबाई गणित बैठाती है शाखाएं। पर्णों का स्वर संगीत सुनाती तपती दोपहरी में ठंडी पवन आड़ी तिरछी शाखाएं वृक्षों की आलिंगन करती अवनी का। मानोकहो रही हो वृक्षशाखाएं हे अवनी हम तुम्हें संभाल लेंगे क्योंकि नीचे की जड़ों का तुम ही तो आधार हो। वृक्षों के कई आकार छोटे लंबे गोलाकार देते सदैव अंबर को अवनी का अस्तित्व आभास। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी ...
भगत सिंह को दिल करे प्रणाम
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भगत सिंह को दिल करे प्रणाम

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** कोटि-कोटि नमन है शहीद तुझे, मन पर हस्ताक्षर ले मातृभूमि का, करते रहे सदा देश की सेवा तुम मिट गए पर झुके नहीं गैरों के आगे करते हुए इस समाज का कल्याण ।। अपने से विचारों से ला दी थी तुमने, युवाओं में क्रांति आजादी के नाम की हर घर एक भगत हो रहा था तैयार सत्य सभी को दिखलाया देश हित में, ऐसे भगत को हैं कोटि-कोटि प्रणाम ।। ना भूलेंगे हम तुम्हारी शहादत कभी कैसे किया तुमने मातृभूमि का सम्मान, ऊंच-नीच का भेद नहीं था तुमको कभी, सिखलाया हंसकर जीना सबको गले लगाकर किया सभी से सदैव भगत ने प्रेम अपार ।। गुलामी की जंजीरों से करना थे बस तुमको स्वतंत्र इस देश में सभी के विचार इसीलिए हर मार्ग चुना सावधानी से स्वतंत्रता की खातिर करते गए तुम साथ लेकर सबको ही अपना काम ।। तुम्हारे बलिदान को व्यर्थ नहीं समझा हम...
श्रम
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श्रम

दिति सिंह कुशवाहा मैहर जिला सतना (मध्य प्रदेश) ******************** श्रम पूजा श्रम ईश्वर श्रम ईश्वर का रूप कर्म विधान श्रमिक तु ईश्वर का प्रतिरूप।। पत्थर फोड़े नहरें खोदी खोद रहा खदान गगन चुंबी इमारतों में चढ़ करता विश्व से आह्वान।। जलते पग जलती भू जल रहा आकाश पानी की एक एक बूंद को ढूंढ रहा हताश।। जलता ज़मीर जलता ख़्वाब पिस रहा लाचार भाग्य के हम भाग्य विधाता श्रम करता प्रतिगान।। जलते अंगारों में सुसज्जित निर्धन का गलियार जर्रे जर्रे मर मर कर श्रम करता फरियाद।। श्रम जीवन का मार्ग प्रशस्त करता काया कल्प शोषक शासक नाम मात्र का करता राजतंत्र।। शोषित शोषण के अंधकार में जलता निमग्न काम ऐश्वर्य के पूर्ण अर्थ से देश बना विपन्न।। लोकतंत्र के शासन में नीति दलों का द्वंद देश की अर्थ व्यवस्था दाव में जलमग्न।। परिचय : दिति सिंह कुशवाहा जन्मतिथि : ०१/०७/१९८७...
माँ तुम ही मेरा आधार
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माँ तुम ही मेरा आधार

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** माँ जगदम्बे के चरणों में, शीश झुकाये ये जग सारा। आदिशक्ति माता भवानी, भक्त लगाये जय जयकारा। तुम हो बड़ी कृपालु माता, याचक की सुनती हो पुकार। झोली सबकी तुम भर देती, आता है जो तुम्हरे द्वार। तेरा रूप है जग से निराला, नयनों को लगता है प्यारा। तुम मेरा एकमात्र सहारा, तुम बिन मेरा कौन आधारा। संकट से माँ तू ही उबारे, जीवन नैया तेरे हवाले। शरणागत हम आये माता, हे! जगजननी भाग्य विधाता। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच प...
काश ये सपना पूरा हो जाएं
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काश ये सपना पूरा हो जाएं

आकाश प्रजापति मोडासा, अरवल्ली (गुजरात) ******************** एक सपना है मेरा जो पूरा हो जाए मैं तेरा बन जाऊं, तू मेरी बन जाए तू नाराज हो मुझसे, तो मैं तुझे मनाऊं और कभी मैं नाराज हो जाऊं तो तू मुझे मनाए काश ये सपना पूरा हो जाए... हमारी खट्टी-मीठी थोड़ी नोकजोख हो जाए कभी परेशान करके मैं तुझे सताऊं कभी ऐसे नखरे भी बताए थोड़े झगड़े करके फिर प्रेम जताए काश मेरा ये सपना पूरा हो जाए... रज़ा के दिन मैं तेरा हाथ बटाऊं तू दाल बनाएं तो मैं रोटी बनाऊं कभी हम बारिश में भीगकर आए अपनी साड़ी से तू मेरे बाल सुखाए काश मेरा ये सपना पूरा हो जाए... कभी हम ऐसे सफर पर जाए तू थक जाएं तो मैं तुझे गोद में उढाऊं तू ख्याल मेरा बने और मैं "आकाश" तेरा शायर, प्रेमी बन जाए यहीं बस सपना है मेरा काश ये पूरा हो जाए इसे पूरा सिर्फ तू कर सकती है तो तू जल्द से जल्द इसे पूरा बनाएं काश ये मेरा...
शहीद भगत सिंह
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शहीद भगत सिंह

देवप्रसाद पात्रे मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** होंठो पर मुस्कान, हथेली में लेकर जान। वीरों के वीर शहीद भगत सिंह महान। निकल पड़े थे अकेले दुश्मनों को हराने। बचपन से ही सिर्फ आजादी के दीवाने।। रग-रग में भरी थी साहस चलते सीना तान के। मौत से कभी न डरा, जीते थे जो शान से।। जीवट, जुनूनी व एकाकी भावना। देश पर फ़ना होने को ठाना दीवाना। वीर भगत सिंह की मूँछो पर ताव। गोरे दुश्मन को करते रहे थे घाव।। बाँध चले थे जो सिर पर कफन। जोश-ए-जुनून से लबरेज क्रांतिकारी। वीर भगत सिंह, राजगुरु, सुकदेव। तीनों वीर अंग्रेजी हुकूमत पर भारी।। असेम्बली में बम फेंका, सलाखों को सीने से लगाया। खुद को देश पर कुर्बान किया, हर सीने में देशप्रेम जगाया।। खून में था देशभक्ति का जज्बा, नारा था साम्राज्यवाद मुर्दाबाद।। वतन कि फिजां में आज भी गूँज रही है। भगत सिंह जिन्दाबाद, इंकलाब जिंद...
स्वावलंबन
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स्वावलंबन

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** इतना भी इन्सान स्वावलम्बी न हो जाए कि दीन दुनिया को जीवन के मूल्यों को भूल जाए कि परवरिश परिवार की, घरबार को भूल जाए मित्रों का आना, पड़ोसी का मुस्कुराना स्नेह का बंधन ही टूट जाए कामना की पूर्ति में इतना न मग्न हो जाए कि घर की सुरक्षा,nआँगन की देहरी संवेदना की झोली, मित्रों की टोली रिश्तों की डोरी को भूल जाए केवल स्वयम् में इतना न डूब जाए कि नैतिकता का दामन, अनुशासन की सीमा बुज़ुर्गों की चाहत, अपनों की आहट, नन्हों की झप्पी, बच्चों का बचपन वो भूल जाए नदियों की कलकल, वर्षा की रिमझिम मुस्कान कलियों की, भौंरों का गुंजन भोली सी सूरत, मेहनत की सीरत कुनबे के माली की हैसियत न भूल जाए चिडियों की चहक, फूलों की महक झरनों की कलकल, लताओं की झिलमिल मेघों का गर्जन, दामिनी की तड़पन जाड़ों की गुनगुनी न धूप भूल ...
गर धरा ना होती तो
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गर धरा ना होती तो

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** गर धरा ना होती तो तो रिश्ते ना होते भू लोक का नाम ना होता प्राण वायु कहा से पाते जीवन का आधार ही खत्म हो जाते ना दिन ना राते होती न तारों को गिन पाते जन्म जन्म का साथ हम कहाँ से पाते गर धरा ना होती तो सभी जीवों को हम कहा देख पाते। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान - २०१५, अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित संस्थाओं से सम्बद्ध...
बिटिया
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बिटिया

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** बिटिया तू है, अपने। परिवार की राजकुमारी। तू परिवार की राजदुलारी। तू आज बगिया की सुंदर। कली सम कल तू तरूणी। आज तू कली सम देवकन्या। रूप धर धरा पर आई। तू है परमपिता परमात्मा। प्रदत्त अद्भुत रचना। बिटिया तेरे रूप अनेक। बिटिया इस धरा पर जब भी। कोई तुझे कुत्सित भाव। संवाद करें या कुदृष्टि डाले। तो तू ऐसे दुष्कर्म करने वाले। दुष्टो का संहार करने के लिए। तत्काल तू काली अरू रक्तदंतिका बन जाना। बिटिया तू ईश्वर की रचना हैं । तू कोमलांगी हैं परंतु जब। विषम परिस्थिति में लज्जा। संकट में हो तब दुष्टों का सर्वनाश कर देना। कुकर्म करने वाले दुष्टों को। निसंकोच अस्त्र-शस्त्र से काट। देना तनिक संकोच मत करना। तू आज की अबला नारी नहीं। आज की सबला नारी है। बिटिया तू ही दुर्गा, तू ही काली। तू ही जगद...
मेङ पर बैठा संगिनी साथ
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मेङ पर बैठा संगिनी साथ

इंद्रजीत सिहाग गोरखाना नोहर (राजस्थान) ******************** देखा भी तो क्या देखा अगर देखा नहीं गोरखाना। देखता हुं दृश्य अब जब मैं मेङ पर खेत की बैठा संगिनी साथ। यह हरा ठिगना मौठ बांधे मुरैठा रंगिन शीश पर, फूलों से सजकर खङा हैं। देखा भी तो क्या देखा, अगर देखा नहीं गोरखाना। बीच में बाजरी हठिली देह पतली, कमर लचीली बांध शीश पर चांदी मुकुट लहर-लहर लहराव है देखा भी तो क्या देखा अगर देखा नहीं गोरखाना। और ग्वार की न पूछो, सबसे अलग अकङ दिखावै। हरे पत्तों से लदा फंदा हैं हरे पन्ने सी फली चमकावै है। प्रकृति अनुराग रस बरसावै है। देखा भी तो क्या देखा अगर देखा नहीं गोरखाना।। परिचय :-  इंद्रजीत सिहाग गोरखाना निवासी : नोहर (राजस्थान) सम्प्रति : शिक्षक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
मृतात्मा
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मृतात्मा

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** जन्म लिया था मानव बन कर इस पावन भू-भाग। कब दानव बना पता नहीं चला उगलने लगा आग।। मोह में फंसा था जीवन भर, लिया ना प्रभु का नाम। अपने लिए, अपनों के लिए करता रहा ताउम्र काम।। गरीबों से लेता था धन, अमीरों का किया काम मुफ्त। कहता सभी से बताना नहीं किसी को, रखना गुप्त।। देखकर पहनावा उनका निर्धनों को बिठाता जमीन। जब आता कोई धनवान, उठ खड़ा होता आसीन।। भिक्षु को कभी ना दान दिया ना किया समाज सेवा। भक्ति की ना धर्म के मार्ग पर चला, खुद खाता मेवा।। ईश्वर समान माता-पिता को भेज दिया वृद्धा आश्रम। माया और मांस-मदिरा में लिप्त पाल बैठा था भ्रम।। भटक रहा हूं स्वर्ग और नर्क में रूप लिए श्वेत छाया। निर्मल, पुण्य वाले मिट्टी में दफन है मेरी हाड़ काया।। जला था आजीवन दूसरों से, गुरुर अग्नि की लपटों में। धवल धुआं उड़ गया ग...
तुमको गाँव बुलाता
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तुमको गाँव बुलाता

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जाकर जो बस गये शहर में, उन्हें शहर ही भाता। याद सताती जिन्हें गाँव की, उनको गाँव बुलाता। बावन बीघे का घर छोड़ा, छोड़ा अँगना प्यारा। जाकर बसे शहर में निर्मम, बना बसेरा न्यारा। आँगन के अमरुद छोड़कर, और छोड़ गलियारे। शीतल छाँव छोड़ अमुआँ की, शहर बसे हुरयारे। कच्चा चूल्हा धर आँगन में, अम्मा खीर बनाती। जब जब तू रूठा करता था, तुझको खूब मनाती। कल कल करती नदी गाँव की, तुझे याद ना आती। बचपन के यारों की यादें, तुझको नहीं सताती। गाँवों की गलियाँ सूनी हैं, पनघट भी सुने हैं। सपने लेकर शहर जा बसे, गए आसमां छूने। दौलत सँग रसूख पाने को, गाँवों को विसराया। कंक्रीट के अंदर रहते, जहाँ प्रदूषण छाया। कोयल मोर पपीहा मिलकर, बागों में थे गाते। घर के बाहर बड़े ताल में, छोटी नाव चलाते। भाभी ननद और बह...
वर्ण पिरामिड
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वर्ण पिरामिड

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वर्ण पिरामिड महादेव १... ॐ शिव ओंकार निराकार परमेश्वर त्रयम्बकेश्वर करो विश्व उद्धार २... हे शंभू त्रिचक्षु संकटी भू कल्याण कुरु बजा दो डमरू करो तांडव शुरू ३... ओ रुद्र शंकर विश्वेशर ओंकारेश्वर महाकालेश्वर आओ परमेश्वर परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु ड...
प्यारी बेटी
कविता

प्यारी बेटी

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** मां के मन का भाव है बेटी, पिता के दिल का अहसास है बेटी। आत्मा की आवाज है बेटी, चित ज्ञान और विवेक हे बेटी। घर की रौनक हे बेटी, आंगन में बहार है बेटी। मां की जिगरी दोस्त है बेटी, पिता का मनोबल है बेटी। दुख का साथ बेटी, सुख का मार्ग है बेटी। निस्वार्थ भाव है बेटी, घर का मान है बेटी। घर का सम्मान है बेटी, घर की आन बान और शान है बेटी। पिता का सम्मान है बेटी, घर मौहल्ला और समाज देश की नाक हे बेटी। "इसे हम क्यों मारे गर्भ मैं" फिर सीता राधा अनुसूया, लक्ष्मी इंदिरा सुषमा अहिल्या। ललिता प्रतिभा द्रोपदी, और किरण विजय के होंठो की, "मुस्कान" कहां से लाएगे हम। बेटी को बचाए हम, "बेटी है तो कल है, बेटी है तो सकल है" परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ...
जिंदगी का भरोसा नहीं
कविता

जिंदगी का भरोसा नहीं

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** पल-पल निहारती जिंदगी कब कहां किसे देख रहा तू ? कब होगा आखिरी क्षण ज्ञात नहीं है तुझे भी तो फिर क्यों लगी भागदौड़? जो है कर गुजारा उसमें देखा-देखी दौड़ में लगा पल भर का भरोसा नहीं आज तेरा कल होगा किसी का फिर क्यों जकड़ रखा खुद को? फिसलेगा तेरे हाथ से सब रोक ना पायेगा तू कहर को सुख-दुख का फेर निराला तू गठरी क्यों बांधे दुख की? दुःख की माला फेरता रहता सुख को क्यों नहीं जपता परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, रक्तदान शिविर में भाग लिया। उपलब्धियां : गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड से प्रशंसा पत्र, दैनिक भास्कर से रक्तदान प्रशंसा पत्र, सावित्रीबाई फुले अवार्...
प्रेम भाव नज़र आता है
कविता

प्रेम भाव नज़र आता है

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** कुछ पल का मिलना उनसे मेरा, अपने पन का अहसास दिलाता है, बातें जब वो करते हैं मुझसे, जज़्बात निखर कर आता है, कुछ रिश्ते कुछ नाते होते हैं प्यार भरे, उनसे मिलो उनको देखो संसार नज़र आता है, देखकर प्रेम मन में उनकेे, प्यार का अहसास नज़र आता है, हो कोई दिल में बात नयी, या हों कुछ बातों की रायसुमारी, सब बातों को उनसे करके, हर बात का सार नज़र आता है, मन में हो निराशा कोई, या बातें हों दुनियादारी की, कर के सारी बातों को उनसे, उनका समाधान नज़र आता है, रखो साथ जीवन में अपने, ऐसे प्यार करने वाले साथियों को, जिनके साथ रहकर बातें कर, दिल से दिल का प्रेम भाव नज़र आता है, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एव...
ख्वाहिश
कविता

ख्वाहिश

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** ख्वाहिश है मेरी उड़ने की मुझे गिरना न सिखाइए। ख्वाहिश है मेरी मोहब्बत की मुझे नफ़रत न सिखाइए। ख्वाहिश है मेरी जीतने की मुझे हारना न सिखाइए। ख्वाहिश है मेरी मुस्कुराने की मुझे रुलाना न सिखाइए। ख्वाहिश है मेरी जीने की मुझे मरना न सिखाइए। ख्वाहिश है मेरी दिल लगाने की मुझे दिल बहला न सिखाइए। ख्वाहिश है मेरी तेरे साथ रहने की मुझे दूर रहना न सिखाइए। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित क...
महफ़िल
कविता

महफ़िल

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जमी थी ख्वाबों की महफ़िल जमीन पर जिंदगी की हो गया खूशूबहे के पड़ाव में बचा गया दामन कोई शूबहे की आड़ में।। चुप दरख़्त चुप फासले चुप है राही कदम की जंजीरे मकसद की मंजिल अभी दूर है तन्हाई का आलम अभी से क्यों है। और बढ़ा दी तनहाई इस सन्नाटे ने रफ्ता, बे रस्ता चलना मुमकिन नहीं है मुमकिन है जिंदगी की फिसलन में फिसल जाऊ संभालो यारो, मंजिल हासिल करना अभी बाकी है। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचना...
सूरज देता है
कविता

सूरज देता है

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** सूरज की किरणें प्रकाश देती है। जीवो को जीने की ऊर्जा देती है। भूमि की नमी को दूर करती है। और फसलों को पकाती है।। दिन रात का अंतर हम लोग। सूर्य के प्रकाश से लगाते है। अंधरो में रोशनी फेलते दिखते है। और भू मंडल का खिला रूप देखते है।। सभी को सूरज की जरूरत होती है। ऋतुओं की गणना सूरज से होती है। मौसम का मिजाज सूरज बताता है। इसलिए सूर्य के बिना दिन नहीं होगा।। भारत में सूरज को सभी भगवान का दर्जा देते है। तभी तो हर चीज की गणना सूर्य उदय से करते है। इसलिए सुबह सबसे पहले सूर्य को जल अर्पण करते है। और अपने दिन की शुरुआत करते है फिर सुख शांति और नई ऊर्जा पाते है।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद...
अपनी उलझने
कविता

अपनी उलझने

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** न मन पढ़ने में लगता है न दिल लिखने को कहता है। मगर विचारो में सदा ये उलझा सा रहता है। करू तो क्या करू अब मैं समझ में कुछ नहीं आ रहा। इसलिए तो हमारा दिल अब एकाकी सा हो रहा।। ख्यालों में डूबकर भी कुछ देख नहीं पा रहा। जुबा से कुछ भी अब ये कह नहीं पा रहा। करू तो क्या करू अब मैं समझ में कुछ नहीं आ रहा। इसलिए तो अब ये मन यहां वहां भटक रहा।। माना की मन और दिल पर किसका जोर नहीं चलता। समस्या कितनी भी बड़ी हो सुलझाना तो उसे पड़ता। जरूरी है नहीं ये की सभी प्रश्न हल हो जाये। हमें कोशिश हमेशा ही करते रहना चाहिए।। बनाई है हर मर्ज की दवा विधाता ने दुनियां में। तुम्हें ही खोज कर उसे सामने लाना पड़ेगा। और अपनी बुध्दि विवेक का परिचय देना पड़ेगा। जिससे मानव होने का तुझे एहसास हो जायेगा।। परिचय :- बीना (म...
रामधारीसिंह दिनकर
कविता

रामधारीसिंह दिनकर

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** दिनकर कवि बङे निराले। बिहार भू जन्मे। मानो गगन मध्य दिनकर। उदित धरा पर अपनी अरुणिमा। फैला ऊषा का अभिनन्दन करें। जाके तात रवि अरू माता। मनरूप, दिनकर अल्पायु में ही पितु। छत्रछाया से हुए विलग। वेदना की बदली छाई। स्नातक पश्चात शिक्षा हुई। अवरूद्ध। हुए आरुढ़ विविध पदों पर। प्रधानाचार्य पद पाया। हिंदी विभाग के उपकुलपति। संसद के राज्यसभा सदन सदस्य भी भए। दिनकर की कलम कमाल। दिन प्रतिदिन दिखाती चली। हिंदी सलाहकार बने। असंख्य अनमोल रचनाएँ। रच-रच दिनकर कलम ने। रचनाओं के खजाने बनाएँ । जिनमें मुख्य रचना रेणुका। हुँकार, कुरुक्षेत्र महाकाव्य। नाम अपार छाया। भारत सरकार से पद्मभूषण पदवी, ज्ञानपीठ पुरस्कार पाया। दिनकर उर अपार हर्ष छाया। दिनकर कवि की कविताएं। बङी निराली आज भी सबके। उर उमंग सं...
दीप जलाएं बैठा हूं
कविता, भजन, स्तुति

दीप जलाएं बैठा हूं

आकाश सेमवाल ऋषिकेश (उत्तराखंड) ******************** चकाचौंध की रौनक न मां, दीप जलाएं बैठा हूं। संगीत-गीत न तंत्र-मंत्र न, जय माता दी कहता हूं।। स्वर्ण कलश न, न स्वर्ण मूर्ति, न स्वर्णजड़ित सिंघासन है। काष्ठ आड में रखा है तुझको, जर्जर वस्त्र का आसन है। नैवेद्य नहीं फल-फूल नहीं मां,, मैं, गुड चढ़ाएं बैठा हूं।। चकाचौंध की रौनक न मां, दीप जलाएं बैठा हूं। कर्पूर नहीं मां धूप नहीं, न कर पाऊं श्रृंगार तेरा। नूपुर नहीं, करधनी नहीं, ना भोगने योग्य आहार तेरा। इत्र नहीं, सिन्दूर नही मां, सर झुकाए बैठा हूं।। चकाचौंध की रौनक न मां, दीप जलाएं बैठा हूं। परिचय :- आकाश सेमवाल पिता : नत्थीलाल सेमवाल माता : हर्षपति देवी निवास : ऋषिकेश (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
यादो की परछाई
कविता

यादो की परछाई

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** यादो की परछाई बार-बार आती रही धुंधली तस्वीर बचपन की दिखाती रही वो स्कूल के दिन वो बचपन की बाते दोस्तों का साथ दुनिया के रिश्ते नाते बचपन के खेल माँ की फटकार याद है लाड़ प्यार और दुलार आज भी याद है बचपन के खेल, राजा रानी की कहानी बचपन की बातें, लड़कपन की शैतानी सितारों की गिनती, गुड्डे गुड़िया के खेल उमंग की उड़ान, मस्ती से भरा हर खेल अब यादें बन गई है सारी पिछली बातें अब केवल जेहन तक ही रहती है बातें फिर से बचपन मे जाने का मन करता है माँ के आँचल मे छुपने का मन करता है यादो की परछाई अक्सर मुझे घर लेती है तन्हाई मे आकर अक्सर झकझोर देती है काश फिर से वही बचपना मिल जाये पुरानी यादो का फिर जमाना मिल जाये पुरानी यादो का फिर जमाना मिल जाये परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी ...