मैं कहां हूं?
राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़
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सदियों से लेकर आज तक
तुम्हारी व्यवस्था में
बताओ मैं कहां हूं?
सिसकते, दम तोड़ते, मायाजाल काटकर
आज मैं यहां तक पहुंचा हूं,
तुमने तो हमें पैदा ही पैरों से करवाया,
हमें नीच, अधम, शुद्र बताया,
व्यवस्था की कठोर लकीर खींच
पग पग हमें तड़पाया,
हांडी झाड़ू बांध हमारे तन से
छाया, पदचिह्न तक को अपवित्र बताया,
हम तब भी समझते थे और
आज भी समझ रहे हैं कि
तुमने हमें तन मन धन से तड़पाया,
वो तो शुक्र है हमारे महापुरुषों का,
जिन्होंने अलग अलग समय से
हमें समझाते, जगाते आया,
फिरंगियों के नेक पहल से
हमने आंखें खोल देने वाला शिक्षा पाया,
संविधान बनाया, हक़ अधिकार पाया,
मगर फिर भी अपनी कुटिल चालों से
हमें धर्म में उलझा
हर शसक्त संस्थाओं पर कब्जा जमाया,
अब राग अलाप रहे हो कि
देश में सब कुछ ठीक है,
कहते हर काम विधान नीत है
तो बताओ आ...