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कविता

हिंदी पर अभिमान
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हिंदी पर अभिमान

प्रतिभा दुबे "आशी" ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** हमें हिंदी पर अभिमान हैं वृद्धि हो हिंदी के सम्मान में, गौरव गाथा हिंदी की सदा से हमारी भारत माता के समान है।। हिंदी भाषा हम का सम्मान करें, हिंदी से हमारी अलग पहचान है सदा रहें भारत का गौरव हिंदी से, मातृभाषा हिंदी माता के समान हैं।। हिंदी में पढ़ते हम सभी गूढ विधान, कठिन वर्णमाला होने पर भी हिंदी, सरल प्रवाह से बोली जाने वाली भाषा जग में पाती सदैव गौरवशाली सम्मान हैं।। रस रूप अलंकार छंद से श्रृंगार होता इसका काव्य सरस रचनाएं, कहानियों संग कई विधान हैं जगत में भाषाओं में हमें गौरवान्वित हैं हिंदी से हमें हमारी हिंदी भाषा पर, सदैव ही अभिमान है। जय भारती, जय हिंदी, जय मातृभूमि। परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे "आशी" (स्वतंत्र लेखिका) निवासी : ग्वालियर (मध्य प्रदेश) उद्घ...
दिग दिगंत में हिन्दी
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दिग दिगंत में हिन्दी

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हम हिन्दी हिन्दुस्तानी रखते हर क्षैत्र में अपना सानी खेल, संस्कृति, शिक्षा, गृह, नक्षत्र का अन्वेषण कर आगे बढ़ते नित नवीन पथ की ओर। ओर, छोर न पार देखते देहलीज लांघ कर पीछे मुड कर न देखते ऐसे सैनिक देश के बलिवेदी पर चढ़कर निकलें हिन्द देश के वासी। दिग दिगंत में क्षैत्र, क्षेत्र में फैली हिन्दी भाषा विभिन्न अलंकारों से सजी नव रसो से भरी मेरी मेरी हिन्दी भाषा। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से...
दर्द की चीखें
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दर्द की चीखें

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** क्या भ्रूण में मर जाऊं? क्या जन्म ना ले पाऊं? कैसी घड़ी कैसा समय, क्या बंद कमरे में रह जाऊं। क्या दोष किया मैंने विधाता? इस धरती पर बोझ में बन बैठी, रावण दुशासन एक ही थे अब हजार दुशासन बन बैठे। धरती से जन्मी सीता को धरती में समाना पड़ता है, अत्याचारों का जीवन देखो द्रोपती को सहना पड़ता है। त्रेता में एक कृष्ण जन्मे अब कलयुग में हजार कृष्ण को जन्म ना होगा। अपनी सुरक्षा अपना बचाव क्या जन्म से बेटी कर लेगी? अबोध नादान नासमझा जो बेटी है, कैसे कंस के हाथों बचनी होगी। संस्कार सभ्यता शिक्षा में बदलाव जरूरी है भारत में, गीता पुराण भागवत की शिक्षा गुरुकुल जरूरी है भारत में। विचार क्रांति ही है सुरक्षा, विचारों की प्रधानता हो प्रबल, तभी सुरक्षित रह पाएगी भारत माता और भारत की बेटी। पूजनीय वंदनीय हम सम...
हिंदी की बिंदी प्यारी
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हिंदी की बिंदी प्यारी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** भालचंद्रमा-सी शोभित है, हिंदी की बिंदी न्यारी। भारत के जन-जन को लगती, हिंदी भाषा, अति प्यारी। सुख सौभाग्य यही बिंदी है, लगी भाल पर हिंदी के। इससे ही सुहाग हिंदी का, बड़े भाग्य, इस बिंदी के। अनुपम और अनूठी बिंदी, माँ निज भाल लगाती है। नवरस से हो सराबोर यह, सुखप्रद आस जगाती है। अलंकार छंदों से सज्जित, होकर लगती मनभावन। सहज, सरल सब भाषाओं में, हिंदी भाषा है पावन। जग मंगल, करती है हिंदी, सबको आँचल में लेती। मन प्रसून को पुष्पित करती, सुरभित, केसर-सी खेती। सूर, कबीर, दास तुलसी ने, हिंदी का गौरव गाया। रामचरितमानस अति पावन, जन-जन के, मन को भाया। सागर-सी गहराई उर में, पर्वत-सी ऊँचाई है। पंत, निराला, दिनकर जी ने, इसकी महिमा गाई है। है विशाल आँचल हिंदी का, इसमें सभी समाते हैं। स...
कुवलय
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कुवलय

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** कला का पुरस्कार अब मिलता नहीं है चित्र विचित्र होकर भी कोई बिकता नहीं। घर की वापसी अब कोई करता नहीं प्रजातंत्र के लिए कोई लड़ता नहीं। सभ्यता व संस्कृति से अब कोई डरता नहीं श्रमिक के लिए किसी से कोई भिड़ता नहीं। अमल-धवल महामानव अब कोई मिलता नहीं निदाग कुवलय सा शख्स कोई दिखता नहीं। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
आख़िर कब तक
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आख़िर कब तक

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** सीधी अंगुली घृत न निकले, नही हर्ज अंगुली टेडी करने में। सृस्टि सृजक अब सृजो तलवार नही भलाई किंचित भी डरने में।। माना ममतामयी है ह्रदयसिंधु पर, दृगों में जला तू आग आज। मसल डाल वहशी भेड़ियों को नोच रहे जो निर्भय नारी लाज।। बढ़ रहे हौंसले पल-प्रतिपल, निर्दयी निर्लज्ज दुशासन के। अंधे, गूंगे, बहरे, बेबस पाण्डव, धृतराष्ट्र दीवाने सिंहासन के।। थी सुरक्षा जिनकी जबावदेही मानो थर-थर वह कांप रहे। पिला रहे दूध सांपों को शायद, या नुकसान स्वंय का भांप रहे।। हो चुकी हैं हदें अब पर सभी, रहे न जिंदा कोई बलात्कारी। करें शीघ्रता से सरकार निर्णय, छोड़ जाती-धर्म अब लाचारी।। आख़िर कब तक रहेंगी लुटती, बनकर बेबस बेचारी नारियां। उठो ! जागो रणचंडीयो अब तो छोड़के बनना, तुम फुलवारियां।। परिचय :- गोविन्द सरावत...
बचपन की वो यादें
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बचपन की वो यादें

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** एक समय था जब मैं छोटा था, उस चाँद को कहता मामा था। पता नहीं कब सुबह होता था, और रात को कहाँ ठिकाना था। स्कूल न जाने के लाख बहाने, पर मम्मी की डॉट से जाता था। स्कूल से आने में थक जाते थे, पर शाम को खेलने जाना था। होम वर्क करने का मन नहीं करता था, पर मैडम से पीटने के डर से करता था। बारिश में खेलता कागज की नाव से, तब लगता हर मौसम ही सुहाना था। चाहे पड़ती हों ठंडी या गर्मी क्रिकेट खेलने जाता था, नहीं होता चोट का डर इसलिए मस्ती में रहता था। एक दुसरे से पैसा लेकर गेंद खरीद कर आता था, गेंद गुम हो जाने पर मायूस होकर घर आता था। रात को हमे तब नींद नहीं आने पर, मम्मी की लोरी एक मात्र सहारा था। वो झूठी सब मनगढ़ंत कहानी, मम्मी हमको तब सुनाती थी। कहती थी जल्दी सो जा तू वरना, भुतू आकर तुमको उठा ले...
शिक्षादाता
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शिक्षादाता

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** हाथ पकड़कर जिस गुरुवर ने, लिखना हमें सिखाया जीवन पथ पर कैसे चलना चलकर हमें दिखाया।। कैसे भूलूँ उस गुरुवर को, कभी हार न माना होगा क्षमा कर गलतियों को जिसने काबिल हमें बनाया।। सही गलत का ज्ञान कराकर, सत्य मार्ग बतलाया कैसे जीना हमें चाहिए जी कर हमें दिखलाया।। शिक्षा, और संस्कार के दाता, हमारे भाग्य विधाता अज्ञानता को दूर भगाकर ज्ञान का दीप जलाया।। सफलता के राह पर चलकर सच का राह दिखाया मिलती नहीं मंजिल तब तक चलना हमें सिखाया।। थककर कभी बैठ न जाना, मंजिल की इन राहों पर कठिनाइयों से लड़कर आगे बढ़ना हमें सिखलाया।। परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
हिंदी की गूंज
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हिंदी की गूंज

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** सितंबर का महीना जब आता हिंदी की उन्नति व प्रगति का हिंदी दिवस और पखवाड़े का मनाने की बेसुमार खुशी लाता हिंदी प्रचारक दीप जलाता अन्तर्मन से हिंदी का नारा तनमन से हो आता प्यारा प्रफुल्लित सबजन लगाता हिंदी की प्रबलता नई गति दिशाहीन हिंदी को दिशा ताकतवर ज्वार खूब लाता जमावडा सबका हो जाता जमकर हिंदी दिवस का डंका बजाया जाता हिंदी के प्रचारप्रसार का मनुहार जोरो से हो जाता खोजते है तमाम उपाय हिंदी फलतीफूलती जाय जोरों पर हिंदी पखवाडा प्रतियोगिता तेज. बढ़ाता विकसित करने को हिंदी नारा जोरशोर से लगवाता कामयाब करने को पखवाडा लगता जाता इसमें तमाम झाड़ा दिवस हिंदी का पखवाड़ा हिंदी का कार्यशाला हिंदी की प्रतियोगिता हिंदी की रचनाएँ हिंदी की जागरूकता हिंदी की सितंबर महीना आता हिंदी को मान्यता दिलाने की गूंज हरको...
गुनगुनी धूप है शिक्षक
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गुनगुनी धूप है शिक्षक

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** ईश्वर का होता सु-रूप है शिक्षक, सद्गुणों भरा मृदु कूप है शिक्षक। अनसुलझी-सी सर्द फिजाओं में, जैसे कि-गुनगुनी धूप है शिक्षक।। अज्ञानता भरे खाली अ से लेकर, 'ज्ञ' तक का देता है निश्छल ज्ञान। नही जगत में सदगुरु से बढ़कर, गोविन्द हो या, फिर हो इंसान।। कहलाती प्रथम गुरु निज जननी, लेती परख पलभर में सब कुछ। पिता है सदगुरु धरती पर दूसरा, जाती, देख पीड़ा भरी पावक भुझ।। तपकरक़े स्वंय सद्कर्म वेदी में, स्वर्ण को कुंदन बनाये सद्गुरु जी। लगाए चांद के तिलक शिष्य निज, पंखों में परवाज जगाये सद्गुरु जी।। अंधकार भरे छल-छ्द्ममी जग में, सद्गुरु ही हैं एक महा दिव्य-दीप। चुन चुनकर बूंद स्वाति नक्षत्र की, करता सृजित वह अनमोल सीप।। जिसे मिला सानिध्य सद्गुरु का, बन गया वह "नर" नारायण यहां। हुआ धन्य जीवन...
डर कितना है
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डर कितना है

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** खोजो-खोजो सब कोई बंधु अपने अंदर डर कितना है, जिंदा रहकर डरे हो कितना डरकर गए हो मर कितना है, डर अंदर की कमजोरी है, अनदेखे को श्रेय देना क्यों मजबूरी है, किसने तुम्हें कब कब बचाया है, किसने भीरू बना जब तब डराया है, डरना ही है तो प्रकृति से डरो, उनसे छेड़छाड़ खिलवाड़ मत करो, डर का अंजाम भयानक होता है, मत सोचो ये अचानक होता है, आपके भीतर खौफ धीरे-धीरे भरा जाता है, डराने कोई और नहीं आता है, बचपन में घर परिवार द्वारा, फिर सामाजिक संसार द्वारा, कहीं धन के घमंडियों द्वारा, कहीं धर्म के पाखंडियों द्वारा, ये डर लूट जाने पर मजबूर करता है, अनाम चमत्कारियों से गुहार कर, मन मस्तिष्क गुलामी की ओर जाता है, फिर कुछ धूर्त अपने इशारे पर नचाता है, डर से हमें दूर हमारी एकाग्रता और ध्यान कर सकता है, सोच व ज्ञान ...
नारी उत्पीड़न
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नारी उत्पीड़न

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** भारत के गाँव, शहर, गली-गली में, नारी पर अत्याचार हो रहा है माधव। चीख, पुकार रही बेबस, असहाय स्त्री, कहाँ हो लाज बचाने वाले प्रभु राघव? कोई रावण बन अपहरण कर रहा है, फिर से अग्नि परीक्षा दिलाने सीता को। कोई दुशासन बन चीर हरण कर रहा है, लज्जित करने द्रौपदी की अस्मिता को।। सरकार खामोश बैठी है राजसिंहासन, न्याय की आँखों में काली पट्टी बंधी है। जनता मोमबत्ती जलाकर शोकाकुल, पीड़िता इंसाफ की गुहार लगा रही है।। युग अंधा है या फिर हम सब अंधे हैं, कलियुग में राक्षसों का मचा हाहाकार। फिर से किसी देवता को आना पड़ेगा? क्या कोई नहीं जो रोक सके बलात्कार? परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई। प्रकाशित पुस्तक : युगानुयुग सम्मान : मुख्यमंत्री श...
कोरे आश्वासन
कविता

कोरे आश्वासन

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** कानों को मधुर लगती ध्वनियाँ मंदिर की घंटी, पायल कोयल की कूंक हो या सुबह उठने के लिए माँ की मीठी पुकार। कानों के लिए वाणी की मिठासता बन जाती मोहपाश सा बंधन या उसी तरह भी लगती है जैसे प्रेमी-युगल की मीठी बातों से भरा हो प्यार का सम्मोहन। कानों को न सुहाती तेज कर्कस कोलाहल भरी आवाजें ला देती कानों में बहरापन तभी तो उनके कानों तक समस्याओं के बोल पहुँच नही पाते या फिर हो सकता दिए जाने वाले कोरे आश्वासन हमारे कान सुन नहीं पाते हो। तब ऐसा लगता है मानों विकास के पथ पर लगा हो जंग या प्रदूषण से कानों में जमा हो गया हो मैल। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभा...
आया माखन चोर कन्हैया
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आया माखन चोर कन्हैया

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** आया माखन चोर कन्हैया, गली-गली, गांव-गांव, शहर-शहर में मच गया शोर, लेकर आया जन्माष्टमी की भोंर, आया माखन चोर कन्हैया, सुनो सब गोर से मथुरा, गोकुल, वृंदावन, ब्रज में सब, जगह ढोल-मंजीरे बज उठे। द्वार-द्वार, नगर-नगर सब लोग, उमंग उत्साह संग नृत्य करें, गायन करें आया माखन चोर कन्हैया, अधरों पर मुस्कान लिए, अधरों पर धर बांसुरी बजाएं, मधुर धुन सुनाएं, सकल भारतवासी, सुन सुध-बुध खो कान्हा छवि निहारें, आया माखन चोर कन्हैया। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा स...
राधा का आधार
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राधा का आधार

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** राधा का आधार धरा पर, होंठो पे मुस्कान है राधा को राधेय बना दे ऐसी जिसकी शान है सृष्टि का महानायक जो कर्म का पाठ पढ़ाता है जीवन को कैसे जीना हर पल हमें सीखाता है अद्धभुत है लीला, सबको विभोर कर जाता है गोकुल मे निश्चिंल प्रेम का अलख जगाता है नारायण है जो नर रूप मे नित लीला रचाता है जीवन को कैसे जीना हर पल हमें सीखाता है रावण मारे सियापति राम बनकर हरे धरा का ताप कंस मर्दन किया श्याम बनकर धरती के मिटे पाप कभी राम कभी श्याम बन, इस धरा पर आता है जीवन को कैसे जीना हर पल हमें सीखाता है प्रेम का बीज बोकर जग मे, प्रेम का महत्व बताया प्रेम-प्रेम प्रकृति मे कैसे? प्रेम का भेद समझाया जग कल्याण के लिए प्रेम की महिमा बताता है जीवन को कैसे जीना हर पल हमें सीखाता है जीवन के गूढ रहस्य को सहजता से समझाया कुरुक्षेत्र म...
विकृत मानसिकता का सही दंड
कविता

विकृत मानसिकता का सही दंड

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** हर नारी दुर्गा बन जाए, तो ही उसकी लाज बचेगी। डी जी को दे भेंट चूड़ियां, तो ही उनकी नींद खुलेगी। हर नारी ... नारी को सबला करदो मां, कोई दुष्ट सता ना पाए। यदि दस राक्षस उसे घेर लें, चंडी बन वो उन्हें मिटाए। तुम प्रेरणा करो नारी को, चाकू ले वो तभी चलेगी। हर नारी ... शासन गुंडों का रक्षक है, उससे कोई आस नहीं है। महिला के आभूषण लुटते, पुलिस तंत्र को लाज नहीं है। तुम्ही क्रुद्ध होगी जब मैया, तब दुष्टों की जाति मिटेगी। हर नारी ... जो कुदृष्टि डाले नारी पर, किन्नर उसे बना दो मैय्या। नवरातो में चंडी बनकर, दुष्टों को संघारो मैय्या। रुद्र रूप में आओ मैय्या, तब नारी की लाज बचेगी। हर नारी ... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना ...
रणचंडी
कविता

रणचंडी

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** उठो देश की बेटी अब कब रणचंडी बनोगी। कब तक बनकर घर की लक्ष्मी ओरों पर उपकार करोगी। कब तक दुराचारों को सह कर अबला बनोगी। दया,ममता तो रखती हो मगर अपने लिए मान- सम्मान कब रखोगी। कब तक घर की चारदिवारी में रहकर सबके कटू वचन सुनोगी। घर-घर में रहते है दरिंदे कब तुम उनके लिए अब रणचंडी बनोगी। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक...
हाथ काट लो हत्यारों के
कविता

हाथ काट लो हत्यारों के

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जोर जबरदस्ती बेटी सँग, जो करते वे पापी। जो विरोध ना करें पाप का, वे पक्के संतापी। भरा विकार हृदय में जिनके, भरी गंदगी मन में। ऐसे पापी अधम काम ही, करते हैं जीवन में। है दिमाग में विकृति जिनके, वे हैं पापाचारी। औरों को पीड़ा पहुँचाना, है उनकी बीमारी। नर पिशाच शैतान सड़क पर, खुला तांडव करते। शील हरण करके बहनों का, भय अंतस में भरते। बीच राह बेटी की अस्मत, लूट रहे हत्यारे। घटना देख बोल ना पाते, हम कितने बेचारे? कब तक जुल्म सहेगी बेटी, कोई तो बतलाओ? खून गर्म,जिंदा दिल बालो, जरा शर्म तो खाओ। खून जल गया है हम सब का, कायरता है मन में। मौत हो गई है हम सब की, बचा न कुछ जीवन में। कायर बन, जीवन जीने से, अच्छा है मर जाना। पाप देखने से अच्छा है, कालकूट बिष खाना। माता-पिता अधर्मी...
झूले सावन के
कविता

झूले सावन के

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सावन के झूलों को देख फूहरो का मन मचला झूलने के लिए हिलते हुए झूले पर सवार फूहरो को बादल ने आकर झौंका दिया फूहारे मचल उठी झूला भीग गया। बेचारा बादल फूहारो को अठखेलियां करते देखता रहा झूले की डोर पकड़े। जल की बूंदें गा रही सावन गीत ठंडी बयार संग भाग रहीं फूहारे वृक्ष से लिपटी लताओं को भिगोतै मन ही मन मुस्कुरा रही थीं लताओं के भी मन भाया अन्दाज। मुस्कुराने का कोई युगल आया और बूंदों को धरा पर गिरा युगल भुले स्वयं को झूलते-झूलते। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निम...
गुरु बिना ज्ञान विवेक ना होए
कविता

गुरु बिना ज्ञान विवेक ना होए

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** गुरु अमृत है गुरु विष का प्याला भी है। गुरु मीठा है गुरु कड़वा है, गुरु संस्कार हे गुरु संस्कृति है। गुरु ज्ञान है गुरु विवेक है। गुरु वर्तमान भूत और भविष्य है। गुरु बुद्धि है गुरु चित् है। गुरु चित्र है गुरु चरित्र है। गुरु जीवन की सीढी है। गुरु दर्पण है गुरु निश्चल है। गुरु मान है गुरु सम्मान है। गुरु ब्रह्मा विष्णु और महेश है। गुरु व्यापक गुरु अनन्त है। गुरु सूर्य है गुरु चंद्र है। गुरु तीर है गुरु माखन है। गुरू धैर्य है गुरु साहस है। गुरु प्रकाश है गुरु किरण के जीवन में गुरू अवतार मै कृष्णा भाभी के समान (गुरु) शिक्षका है। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्...
उठो बेटियां साहसी बनो
कविता

उठो बेटियां साहसी बनो

ऐश्वर्या साहू महासमुंद (छत्तीसगढ़) ******************** उठो बेटियां साहसी बनो तुम्हे स्वयं की रक्षा करनी होंगी। बहुत हुई ये मासूमियत अब, अपने स्वाभिमान की रक्षा करने झांसी की रानी बननी होगी। कौन तुम्हे हर पल बचाने आयेंगे, घात लगाये यहां तो हर कदम पर राक्षस है बैठा, बहुत हुई माता सती का रूप, दुष्टो का संहार करने अब माँ काली का रूप धरनी होगी। उठो बेटियां साहसी बनो, तुम्हे स्वयं की रक्षा करनी होंगी। जो करें अपमानित तुम्हारे आबरू को उसे अपनी ताकत का पहचान कराने, अब उसका विनाश करना होगा। अब खुद को सवारना बहुत हुआ, सवारना अब दुनिया को होगा। उठो बेटियां साहसी बनो, तुम्हे स्वयं की रक्षा करनी होंगी। दुसरो पर ना विश्वास कर तु, कर विश्वास अपने बाजुओ पर अब स्वयं की रक्षा करनी होगी। बहुत हुआ चूल्हा चौका, दुष्टो को अब सबक सिखाने, भाला तलवार पकड़नी होगी। हमें स्वयं को इस द...
परीक्षार्थी का दर्द
कविता

परीक्षार्थी का दर्द

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** ए ईश्वर दे कुछ तरकीब ऐसा, जो परिक्षा मैं पास कर लूं। न वक्त बचा हैं अब इतना कि इसका सिलेबस पूरा कर लूं, न तरकीब पता हैं कोई ऐसा जो परीक्षा मैं पास कर लूं, न किताबे पढ़ने का जी करता नाहीं इसको छोड़ने का, न याद रहा अब वो सब भी, जो अब तक हमने पढ़ा था, ए ईश्वर दे कुछ कर ऐसा, जो परिक्षा मैं पास कर लूं। एक तो रहता दबाव मां बापू के देखें सपनों का, दूजा तनाव रहता हैं पड़ोसियों के ताने सुनने का, तिजा तो पहले से ही होता बेरोजगारी के धब्बे का, इन दबावों के कारण पूरा दिमाग हैंग हों जाता हैं, ए ईश्वर कल देना शक्ति इतना,जो परिक्षा मैं पास कर लूं। न जाने कल क्या होगा, जब परिक्षा हाल में बैठुंगा, पता नहीं परिक्षा कक्ष में भी, सब कुछ याद रख पाऊंगा, पेपर मिलने पर पता नहीं कि कितने प्रश्न हल कर पाऊंगा, जल्दी करने के चक्कर मे...
मेरी जिंदगी
कविता

मेरी जिंदगी

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** मेरी जिंदगी एक सुहाना सफर हैं, मेरी जिंदगी ही जीवन-संगीत हैं, मेरी खुशी मेरे परिवार की खुशी, खुशी से ही मेरा मीठा मुंह होता। खुशी की मिठाई, खाना ही हैं मेरे लिए सर्वोपरि, मेरी जिंदगी सुख में एक गीत हैं, दुख में भी एक संगीत हैं। जिंदगी एक मीत हैं, जिंदगी से करो प्रीत, यही हैं सच्ची जीत, गीत गुनगुनाने की रीत। जिंदगी तो बहती सुर सरिता, जिंदगी सप्त सुरों से सजी, सुंदर महफिल हैं, जिंदगी का संगीत, सुरों का साज हैं। यही तो जिंदगी का ताज हैं। जिसने जिंदगी के संगीत को समझा, जिसने जीवन के सप्त सुर को गुनगुनाया। वहीं तो दुख के सुर को सुख-सुर में, परिवर्तन कर जीवन को, गीत और संगीत से सजा पाया। जिंदगी के ढोल को सुर-संगीतमय बजा पाया। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया न...
एक थी स्त्री
कविता

एक थी स्त्री

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** दुःखद घटनाओं की शिकार बहनों बेटियों को समर्पित ... तड़पती रही अकेली सुनसान राहों में, सिसकियाँ अनसुनी कर लोग गुजरते रहे ! धरती माँ की गोद में खुन से लतफत छिपने की जगह ढूंढती हुई रही!! जली थी जीवन भर बेशरम नजरों की अग्नि में, डरती आई थी सदैव गलियों और सड़कों पर चलने में, बेआबरू होती रही बार-बार हर बार !! पैदा हुई तो हर तरफ शोर हुआ ये तो लक्ष्मी आई है, ये दुर्गा का रूप है, ये बरकत लेकर आई है ! कुछ दुआएं देते कुछ माता-पिता पर बोझ बताते !! हुनर से नहीं कपड़ों से व्याख्या की गई उसके चरित्र की, उसके उन्नतिशील विचारो से चरित्रहीनता का प्रमाणपत्र दिया गया, वो तो देवी का रूप थी ना ...??? किसी की बेटी किसी की पत्नि किसी की बहन, मित्र भी थी ! किसी के घर का चिराग थी! किसी का अभिमान, किस...
आंतरिक गुलाम
कविता

आंतरिक गुलाम

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** आजाद हुए हम गौरो से मगर अभी नही हुए औरों से। जीत चुके हैं हम औरों से मगर हारे हुए हैं अभी अपने विचारों से। छोटे को बड़ा, बड़े को छोटा समझना अभी छोड़ा नहीं। जाति-पाति के कठोर नियमों से मुख भी अभी मोड नहीं। क्षितिज से आर जीवन से पार अभी कुछ देखा नही । धर्म कर्म के नाम पर शोषण अभी तक छोड़ा नही। जीवन के तराजू पर कभी खुद को तोला नही। महोबत के नाम पर जिस्म का शोषण अभी तक छोड़ा नही। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हि...