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कविता

मन की डोर
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मन की डोर

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** मन की डोर, पतंग ज्ञान की, गुरुवर है आकाश, कैसे कांटे पतंग को भाव हमारा जान, ध्यान हमारा रहे हमेशा गुरुवर के हैं पास, ध्यान डोर की, पतंग प्रेम की, कैसे काटे गुरुवर महान, उड़ाओ या इसे काटो गुरुवर घटे तुम्हारा मान, नीचे गिरे तो चरण तुम्हारे, उड़ते मे हे दर्शन आप, सतरंगी पतंग में गुरुवर, भर दो सतरंगी रंग, सतरंगी इंद्रधनुष सा मै बिछ जाऊं दण्डवत कर, नहीं आशा की पतंग उड़ाऊ, नहीं चाह की डोर, भक्ति प्रेम ज्ञान मैं गुरुवर तो समर्थ है, नहीं काटेंगे मेरी डोर, गुरू आशा और विश्वास हे! काटे तो नहीं हार गुरूवर, नही काटे तो भी है जीत, पंतग (किरण) नीचे हे झुके गुरुवर के हैं चरण, ऊंचा उठे तो मिले गुरुवर के आशीष। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ...
राम न कोई आएगा
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राम न कोई आएगा

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सीता सीता बनी रहे तो लज्जा कौन बचाएगा रावण है बहुतेरे लेकिन राम न कोई आएगा धर्म और संस्कृति की रक्षा हमें स्वयं करना ही होगा जो इस पर आक्षेप करेगा उससे मिलकर लड़ना होगा आतताइयों से अब तक जो जुर्म सहे हैं हम सबनें अब तक रहे नहीं रहना है करूणा के इस बंधन में इन कलंकितों की भाषा में इनको कौन बतायेगा रावण हैं..... नारी अपनी शक्ति दिखाओ आत्मबली बन जाओ तुम अपनी क्षमता को पुष्टित कर दुष्टों को ललकारों तुम धैर्यवान हो तुम कृपाण हो सृष्टि तुम्हीं हो पालक हो अद्भुत क्षमता वाली तुम हो तुम्ही समाज सुधारक हो चंडी बन संहार करो जो तुमको आज सतायेगा रावण हैं..... जिस धरती पर नारी का सम्मान नहीं हो पायेगा मानवता रोकेगी किसको मानव ही मिट जायेगा लज्जा के घूंघट से जिसनें रावण को ललकारा था पतिव्रत ...
ये दिल सुनता जा
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ये दिल सुनता जा

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** तू तो पहले ही कदम मे डगमगा गया ये दिल मंजिल का रास्ता तो सम॔दरे आतिश से जाता है तू ने की है मोहब्बत जिससे उसकी तमन्ना तो सारा जहाँ करता है पाने की उसे लगन है तुझे तो, तू जान ले तेरी हर घडी आजमाइश है जिस शय की आरजू सै तुझे ये दिल वो शय तो बडी अनमोल है तू क्या मोल दे पायेगा उसका, की वहा सारे जहाँ की दौलत बेमोल है सच्चे प्यार के दो आंसुओं मेे, तुलता है परमात्मा क्या वो तुलसी दल तू उसे दे पायेगा जीवात्मा तेरी तो हर बात झूठी है प्यार झूठा, नफरत भी झूठी है इकरार झूठा और इन्कार भी झूठा है बता ये दिल आखिर तू दुनिया मे क्यों टूटा है जो आस तूने लगायी इन्सा के फितरत से दगा तो तुझे मिलना ही था, तेरे अपने कर्मों से किसी शक्स को अपना प्यार कैसे कहा तूने ये दिल तेरा प्यार तो कोई और है ...
खिलौने का सत्य
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खिलौने का सत्य

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** तू माटी का एक पुतला है तुझे माटी में ही मिलना है। बस कट पुतली बनकर ही मानव जीवन को जीना है। और मानव के पुतले को मानव से ही खेलना है। और फिर बर्षो के उपरांत तुझे माटी में मिलना है।। लिया है जन्म जिस घर में तूने। उसका महौल बहुत अच्छा है। न घर में कोई कलह आशांति है। पर दिलों में प्रेम आपार है।। आज मन बहुत विचलित है। न कोई गम है और न दुख है। न ही सोच में कोई अंतर है। फिर भी न जाने क्यों उदास है।। देख उदासी को मेरी सब ने तब आकर कारण पूछा मुझसे। नहीं है मन में जब कोई बात तो क्या उत्तर दू मैं उनको। पर देखो इस पुतले को जिसने कितना कुछ पाया है। तभी तो जग में भी इस ने बहुत ही नाम कमाया है।। परंतु आज इस को भी हुआ एहसास सत्य का। नहीं है अब भरोसा इसको जिसे एक दिन जाना है। और माटी के खिलौने को माटी में ही मिल जा...
जिंदगी
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जिंदगी

देवप्रसाद पात्रे मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** सुख और दुख का डेरा है जिंदगी। उजाला तो कभी अंधेरा है जिंदगी।। छांव कहीं तपती धूप है जिंदगी। माथे चंदन कहीं धूल है जिंदगी।। मशहूर कहीं बदनाम है जिंदगी। सुबह तो कहीं शाम है जिंदगी।। टूटना हारना और है बिखरना जिंदगी। गिरकर खुद ही सम्भलना है जिंदगी।। कहीं छल-कपट से घिरी है जिंदगी।। दुश्मन कहीं अपनों से भिड़ी है जिंदगी।। झूठी आशाओं से उदास है जिंदगी। कहीं उम्मीदों की आवाज है जिंदगी।। खुशियाँ तो कहीं गमों का भंडार है जिंदगी। कड़वाहट तो कहीं मीठे रस की धार है जिंदगी।। माना कि हर कदम इम्तिहान है जिंदगी। पर फर्ज निभाते रहें तो आसान है जिंदगी।। परिचय :  देवप्रसाद पात्रे निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
बदलाव
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बदलाव

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** हालात मत पूछिए बदलते रहते हैं। समय मत पूछिए गुजरता रहता है। मोहब्बत मत कीजिए होती रहती है। दिल्लगी मत कीजिए दिलदार औरो से भी दिल लगाते रहते हैं। परिस्थिति मत देखिए स्थिति बदलती रहती है। हमसफर जल्दी मत बनाइए हमराही बदलते रहते हैं। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहा...
रिश्ते
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रिश्ते

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कहाँ गए वो सच्चे रिश्ते अब बचे हैं सिर्फ बनावटी रिश्ते दिखावे का नकाब ओढ़े, लीपे पुते से नकली रिश्ते।। दिखते तो हैं रजतपुंज से पर दिलों में द्वेष से परिपूर्ण ये रिश्ते। जितनी खुशी ये बाहर दिखाते अंदर उतनी ही ईर्ष्या भरे ये रिश्ते इस दुनिया की महफ़िल से अब गुम से हो गए सच्चे रिश्ते महानता की अंधी दौड़ में, उलझते गए खूबसूरत से रिश्ते। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छा...
मेरा संसार है वो
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मेरा संसार है वो

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** सबके सुबह उठने से पहले उठ जाती है वो, सबको खिलाने के बाद खाती है वो, सबको सुलाने के बाद सोती है वो, घर के हर सदस्य का ध्यान रखती है वो, पति से प्रेम बच्चों से प्यार करती है वो, घर में बड़ों से आशीर्वाद प्राप्त करती है वो, ना कभी चेहरे पर थकान लाती है वो, साल में ना कभी छुट्टी मनाती हैं वो, ममता, करूणा, धैर्य की मूर्त है वो, प्यारी सी एक सुंदर सुरत है वो, बच्चों को दुलार, संस्कार देती है वो, हर सामाजिक रिश्ते से रखती है सरोकार वो, मेरे जीवन में लाई बहार हैं वो, मेरे लिये मेरा संसार है वो परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...
आगत का स्वागत विगत को अलविदा
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आगत का स्वागत विगत को अलविदा

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** इंकलाब आएगा खुशी के गीत गाए जा । एकता अखंडता के साज को बजाए जा ।। राह में जो मुश्किलें मिलीं थीं भूल जा उन्हें क्या गिला अतीत से मिला है जो सजा उन्हें वक्त से मिला कदम तू कदम बढ़ाए जा ।। एकता अखंडता... धूप-छाँव भी तो जिंदगी का एक अंग है दूर होगी कालिमा मन में यदि उमंग है साम-दाम-दंड-भेद नीति को निभाए जा ।। एकता अखंडता... भाषा-धर्म-जाति-पाँति में नहीं विभेद हो कर्म भी करो वही कि ना कभी भी खेद हो मिल-मिला के नेह से प्रेम रंग चढ़ाए जा ।। एकता अखंडता... शौर्य में वृद्धि हो मान और शान हो स्वस्थ रहें सभी मर्यादा का भी भान हो दर्श दर्प का न हो सद्भावना बढ़ाए जा ।। एकता अखंडता... आ गया नवीन वर्ष तू आरती उतार ले पथ स्वयं प्रशस्त कर तू भविष्य सँवार ले क्या विषाद है तुझे हँस के मिटाए जा ।...
स्वागत भारत मां का
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स्वागत भारत मां का

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पीला-पीला प्रकाश पुंज फैला फणीधर के विशाल भाल पर श्याम श्यामला के प्रांगण में फैले मोती बन नीलांबर पर गगन गहन गंभीर लगता इन टके सितारों की चमक से भू से लगता ऐसा मानो होती आरती हो गगन में। गरजते बादल ऐसे लगते बजाते हो आरती में शंख बसंत में चहकते पणृ पुष्प लगते उड़ते लगा पंख दीपक की बाती सी लगती टेसू के फूलों की कलियां डाली मंद-मंद पवन बहती हो जावेगी मतवाली। झर-झर बहता झरना कहता अस्फुट स्वर मैं कुछ बोध चट्टानों से मिलकर करता माता का जयघोष किल-किल किसलंयो से कलरव होता कोयल, कुकी कुक्कुट का करते हैं यह सब प्रथम पहर में स्वागत भारत मां का।। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत...
पुरानी बातें पुरानी यादें…!
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पुरानी बातें पुरानी यादें…!

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** भूल जाऊँ उसे कैसे याद हर पल आती है, मोहब्बत की है सब कुछ भूल कर उससे।। याद है वो दिन पहली मुलाकात का, मिले थे जब दो अजनबी बरसात में।। भूल गए वो गालियाँ जहाँ आना जाना हुआ, मिलते है कभी तो कोसते है वो हमें हम उन्हें।। घूमना फिरना उनके साथ अब यादे उनके साथ, जब से हुए जुदा सिर्फ नाम है याद।। कुछ याद आता है पुराना ख्वाब तो, पी लेते है। भूलने की खातिर उन्हें फिर याद कर लेते है।। पुरानी बातें पुरानी यादों में अब कोई दम नही, नया हमसफर नई राह में जब से चले हम।। बीत गया वो कल जो हमने देखा था, जो साथ मिला नया हम कोहिनूर हो गए।। परिचय :-  शैलेष कुमार कुचया मूलनिवासी : कटनी (म,प्र) वर्तमान निवास : अम्बाह (मुरैना) प्रकाशन : मेरी रचनाएँ गहोई दर्पण ई पेपर ग्वालियर से प्रकाशित हो चुकी है...
कोशिश हो रफ्तार की
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कोशिश हो रफ्तार की

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** उमर असर तो होगा पर, कोशिश हो रफ्तार की। बस इतनी चले जुबान, चर्चा सुनो कुछ धार की। तानों से कुछ भटके तो, गानों से फिर महके भी शानों में कभी जो अटके, सम्मानों संग चहके भी जीवन के हैं स्वर्ण रथी, सारथी सोच परिहार की। अश्व चाल के चिन्ह मिले, जहां दिशा परिवार की उमर असर तो होगा पर, कोशिश हो रफ्तार की। बस इतनी चले जुबान, चर्चा सुनो कुछ धार की। आधी दोस्ती मतलब ही, दुश्मनी आधी सुनते हैं। शतरंज मोहरे जैसे फिर, कदम चाल में घिरते हैं। खट्टे मीठे अनुभव पाते, ऐसी बातें कुछ यार की। कपट विश्वास का पुल, नैय्या कथा मझधार की। उमर असर तो होगा पर, कोशिश हो रफ्तार की। बस इतनी चले जुबान, चर्चा सुनो कुछ धार की। गाड़ी जैसा होता जीवन, समतल पर रुकावट भी मिले सही डॉक्टर मिस्त्री, थोड़ी कभी बनावट भी थकावट वाले कलपुर्जे, चाहत सच्चे हथियार की।...
ओ मेरे बचपन के साथी
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ओ मेरे बचपन के साथी

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** गुड्डे-गुडिया, चूरन की पुडिया, किसकी मां किसको दे जाती, सांझ-सवेरे, खेल-घनेरे, बेईमानी सबको भाती, कुश्ती मस्ती खींचातानी, हों-हों खो-खो बहुत सुहाती, ओ मेरे बचपन के साथी! अजीतगढ़ से चिमनपुरा, फिर से पैदल की मन में आती, सबका कब रास्ता कट जाता, जाने कब मंजिल दिख जाती, ओ मेरे बचपन के साथी! बायकाट किया, हड़ताल हुई, पड़ताल एक ही सवाल उठाती, उदंडी कोई, दंड सभी को, चुगली मुख पे, क्यों ना आती ? ओ मेरे बचपन के साथी! स्कॉलरशिप के पैसे मिलते, किसने किसकी फीस चुका दी, नई पोथी के टुकड़े करते, भोजन की हो जाती पाँती, ओ मेरे बचपन के साथी! जिम्मेदार हुए, घर बार छोड़कर, सारे साथी बिछुड़ गए, सेवानिवृत्त हो रही सभी अब, इतने दिन यूं ही पिछुड़ गए, जल्दी जल्दी दिन ढलते हैं, जल्दी जल्दी रातें जाती, ओ मेरे बचपन के साथी! ...
मैं बटर कहाँ से लाऊँ
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मैं बटर कहाँ से लाऊँ

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** भूखे आकर, गाली खाकर। खून जलाकर, स्वेद बहाकर।। रोटी-भात जुटाऊँ। मैं बटर कहाँ से लाऊँ! दिनभर खटकर, पल-पल मरकर। विपदा सहकर, रोकर-हँसकर।। रूखा-सूखा खाऊँ। मैं बटर कहाँ से लाऊँ! सर की चाहत, दारू की लत। गंदी आदत, मिले न राहत।। कैसे उन्हें मनाऊँ? मैं बटर कहाँ से लाऊँ! टूटी पायल, चिथड़ा आँचल। मन भी घायल, महँगा ऑयल।। खाऊँ या कि लगाऊँ? मैं बटर कहाँ से लाऊँ! दिन को रातें, उल्टी बातें। नकली खाते, चालें-घातें।। देखूँ, चुप रह जाऊँ? मैं बटर कहाँ से लाऊँ! जा रे जा जा, सबका खा जा। सच, झुठला जा, बन जा राजा।। अवध न शीश झुकाऊँ। मैं बटर कहाँ से लाऊँ! परिचय :- डॉ. अवधेश कुमार "अवध" सम्प्रति : अभियंता व साहित्यकार निवासी : भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) शपथ : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह र...
चाँद-चकोर
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चाँद-चकोर

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** आकाश की आँखों में रातों का सूरमा सितारों की गलियों में गुजरते रहे मेहमां मचलते हुए चाँद को कैसे दिखाए कोई शमा छुप छुपकर जब चाँद हो रहा हो जवां। चकोर को डर भोर न हो जाएँ चमकता मेरा चाँद कहीं खो न जाए मन बेचैन आँखे पथरा सी जाएगी विरह मन की राहें रातें निहारती जाएगी। चकोर का यूँ बुदबुदाना चाँद को यूँ सुनाना ईद और पूनम पे बादलो में मत छुप जाना याद रखना बस इतना न तरसाओ मेरे चाँद तुम खुद मेरे पास चले आओ। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्...
हम ही आज है, कल भी हम ही है…
कविता

हम ही आज है, कल भी हम ही है…

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** हम ही आज है, कल भी हम ही है......! हम ही रीत है, रिवाज भी हम ही है......!! हम ही आजादी है, बेडियां भी हम ही है......! हम ही पंछी है, पिजरा भी हम ही है.....!! हम ही अभिमन्यु है, चक्रव्यूह भी हम ही है.....! हम ही मोहन है, बाँसुरी भी हम ही है.....!! हम ही पेड़ है, कुल्हाड़ी भी हम ही है......! हम ही नफ़रत है, प्रेम का प्रतीक भी हम ही है......!! हम ही तो आशा है, निराशा भी हम ही है......! हम ही तो पाप है, पून्य भी हम ही है......!! हम ही नदियों की कलकल है, अशुध्दियाँ भी हम ही है......! हम ही आस्तिक है, नास्तिक भी हम ही है......!! हम ही छल है, निच्छल भी हम ही है......! हम ही विध्या है, अनपढ़ भी हम ही है......!! हम ही धूप है, छाँव भी हम ही है......! हम ही शहर है, गाँव भी हम ही है......!! हम ही गीता है, कुरा...
दूध जलता क्यों है
कविता

दूध जलता क्यों है

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** कभी-कभी दूध जल जाता है दूध जलता क्यों है दूध तो अमृत समान है, सभी खाद्यों में प्रधान है दूध विश्व का पालनहार है, दूध पर संदेह निराधार है दूध गर्भ में भी सभी को पालता है दूध सभी रोगों का उपचार है, फिर भी दूध कभी-कभी जल जाता है क्योंकि उसे मनुष्य का संपर्क मिल जाता है परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की कविताएं लिखती हूं जो कि समय की‌ मांग भी‌ है। आजकल देशभक्ति लुप्तप्राय हो गई है। इसके पुनर्जागरण के लिए प्रयत्नशील हूं। घोषणा पत्र : ...
बगावत भी जरूरी
कविता

बगावत भी जरूरी

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जो बैठा है खाली पेट, बगावत वहां से उठ सकता है, किसान, विद्वान, नादान, अंजान, बेजुबान, सताए स्त्री पुरूष इंसान, मदमस्त सत्ताईयों के सुख चैन लूट सकता है, हाँ मालूम है की सत्ता हमारी हलक से निवाला खींच सकता है, लम्पटों, महामूर्खों, अंधभक्तों की फसल को वाहियात बातों में उलझा सींच सकता है, मत भूलिए की जिसके सीने में वतन के लिए लगावट है, वहीं कर सकता बगावत है, बगावत का, विरोध का डर न हो तो सत्ताधारी बेलगाम, मदमस्त हो जाता है, उनके लिए हर गैरजरूरी काम जरूरी हो जाता है, पर ये नहीं सोचता कि अंदर ही अंदर बहती लावा ज्वालामुखी बन कभी भी फूट सकता है, आसमान की ओर निहारता, लिया बैठा सूखा खेत, बगावत वहां से उठ सकता है, इन नामुरादों की दुनिया लूट सकता है। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी...
आदत से मज़बूर हूं
कविता

आदत से मज़बूर हूं

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** प्रमोटेड हुआ हूं आदत से मज़बूर हूं बहुत छोटे पद से बड़े पद पर प्रमोटेड हुआ हूं भ्रष्टाचारी चाय पानी नहीं छोड़ा हूं कुर्सी पर बैठकर ग्राहक ढूंढता रहता हूं प्रमोटेड हुआ हूं आदत से मज़बूर हूं पूरा घरखर्चा इसी ऊपरी कमाई से निकालता हूं पगार को गुटका ठर्रा तंबाकू अय्याशी में उड़ाता हूं मिलीभगत तंत्र से काम चलाता हूं प्रमोटेड हुआ हूं आदत से मज़बूर हूं नए वर्ष में हितधारकों का काम किया हूं किसी को बताना मत घूसखोरी बहुत लिया हूं लगातार पंद्रह दिन न्यूईयर पार्टी ड्यू किया हूं प्रमोटेड हुआ हूं आदत से मज़बूर हूं अधीनस्थ कर्मचारियों पर रौब जमाता हूं धीरे से घूसखोरी की हिस्सेदारी मांगता हूं जो नहीं देता उसे ऑफिसबैठक ट्रांसफर करता हूं प्रमोटेड हुआ हूं आदत से मज़बूर हूं मैं जनता का नहीं जनता मेरी नौकर है सम...
अनुभव भरा खजाना
कविता

अनुभव भरा खजाना

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** हैं अनमोल धरोहर घर की, बूढ़ी दादी नानी। इनके पास छड़ी जादू की, दोनों बड़ी सयानी। नुस्खों का भंडार भरा है, अनुभव भरा खजाना। इनके पास दवा खाना है, नहीं वैद्य घर जाना। जीवन के अनुभव संग्रह कर, रखतीं दादी नानी। बतलातीं निरोग वो रहता, पियें गुनगुना पानी। सुबह शाम जो पैदल चलता, उसे रोग ना घेरे। वे धनवान सदा रहते हैं, जगते बड़े सवेरे। जिनको सूरज रोज जगाता, वे रोगी हो जाते। जो सूरज को स्वयं जगाते, रोग पास ना आते। जीवन जीना हमें सिखातीं, कौशल भी बतलातीं। कैसे रहे निरोगी काया, योगासन सिखलातीं। सारे घर को बाँध नेह से, हैं परिवार बनातीं। अगर रूठता कोई परिजन, जाकर उसे मनातीं। अनुशासन का पाठ पढ़ातीं, हैं सम्मान सिखातीं। कोई परिजन राह भटकता, उसको राह दिखातीं। सारे घर को एक बनाना, दादी ना...
नये….. साल में
कविता

नये….. साल में

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** नये साल में जिंदगी के नये तरीक़े इजाद कीजिए। दूसरों पर रखीं उम्मीदें समेट कर खुद पर उम्मीद कीजिए। नये साल में जिंदगी के नये तरीक़े इजाद कीजिए। एक-एक ग्यारह जरूर होते है। एक बनकर अपनी कीमत की पहचान कीजिए। गलत... गलत... गलत का। जब शोर मचा हो। मैं सही हूँ...... इस बात पर हमेशा गौर कीजिए। नये साल में जिंदगी के नये तरीक़े इजाद कीजिए। उम्मीदें जब टूटती हैं जिंदगी जब बिखरती हैं। उन सभी उम्मीदों को फिर से जोड़ने का काम कीजिए। नये साल में जिंदगी के नये तरीक़े इजाद कीजिए। आप...... जिंदा हो यह बात कबूल कीजिए। अपने टूटे हुए टुकड़ों से सपनों का नया ढांचा तैयार कीजिए। अकेले तुम ही लड़ोगे। राह में साथ कुछ पल ही मिलेंगे। जिंदगी की लड़ाई के लिए खुद को हिम्मत से तैयार कीजिए। हर साल नये साल आते रहेगें तुम...
नया साल नया दौर
कविता

नया साल नया दौर

रूपेश कुमार चैनपुर (बिहार) ******************** जीवन के रंग मे खुशियों के संग में, सुबह की लाली घटा शाम की तन्हाई में, हरे भरे पेड़ों पर चिड़िया चहकती रहे, खेत खलिहानों मे फसल लहलहाती रहे, नई रोशनी मे नये जीवन की शुरुआत हो, सबको जीने की नई दिशा, नया राह मिले, गाँव मे खुशियों की नयी सौगात हो, सबको अपनी अभिव्यक्तियों का नया संसार मिले, मन मस्तिष्क मे नये दुनिया की स्वागत की आशायें हो, जीवन मे नये उद्देश्यों का लौ जले, प्रेम की ज्योति जले खुश्बुओं की महक उठे, विज्ञान , तकनीकी , साहित्य की ज्वाला और जले, दुनिया मे लोक कलाओं का चहुंदिश विकास हो, सभ्यता और संस्कृति को नया आयाम मिले, दुनिया मे आपस मे भाईचारे का संबंध हो, ना झगड़ा ना झंझठ का वास हो, पग -पग में दिल और प्यार का मिलन हो, जाति धर्म को मिटाकर सबकी धड़कनो की आवाज़ बनो, ऐसा नया हो नये साल क...
नव वर्ष सदा मंगलकारी हो
कविता

नव वर्ष सदा मंगलकारी हो

सीमा तिवारी इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** नव वर्ष सदा ही मंगलकारी हो। प्रकृति में हरा भरा उल्लास रहे। फूलों में भीनी भीनी सुवास रहे। फसलों में सोने सी उजास रहे। मौसम की बयार हितकारी हो। नव वर्ष सदा ही मंगलकारी हो। हर एक शरीर रोगों से मुक्त रहे। मन अच्छी आदतों से युक्त रहे। जीवन स्नेह प्रेम से संयुक्त रहे। दूर हर आपदा हर बीमारी हो। नव वर्ष सदा ही मंगलकारी हो। सद् ज्ञान विज्ञान का प्रचार रहे। संस्कृति संस्कारों का प्रसार रहे। अज्ञानता-अमानुषता पर प्रहार रहे। जीवन हर प्राणी का सुखकारी हो। नव वर्ष सदा ही मंगलकारी हो। हर मन में अपनत्व के भाव रहे। दूर सदा अंहकार ईर्ष्या दुर्भाव रहे। यशता सुखता के लिए समभाव रहे। हर एक जीवन ही शुभकारी हो। नव वर्ष सदा ही मंगलकारी हो। परिचय :- सीमा तिवारी शिक्षा : एम एस सी (गणित) और बी एड निवास : इन्दौर (मध्यप्रद...
नया सवेरा आने को है…
कविता

नया सवेरा आने को है…

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** जनम मरण के बीच जो लकीर है जीवन तो पूर्व जन्म की ताबीर है लो बीत गया एक वर्ष, खट्टी-मीठी यादो संग जीवन मे बिखरते कुछ यादो और वादों संग कुछ जीवन से जो रीता है कुछ ने सपनो को जीता है जीना है हमें अब उन सपनो के संग-संग लो बीत गया एक वर्ष, खट्टी मीठी यादो संग जो बिता उसे भुला भी दो गम को सारे भूला भी दो वर्तमान को बेहतर कर, भर दो जीवन मे रंग लो बीत गया एक वर्ष, खट्टी मीठी यादो संग आना जाना जग मे जैसे कोई पहेली हो जन्म-मरण जैसे एक दूजे की सहेली हो मिला है जीवन, भरेंगे उसमे नित नव-नव रंग लो बीत गया एक वर्ष, खट्टी मीठी यादो संग नया सवेरा, नया उम्मीद आने को है अपने अपनों के साथ निभाने को है समय की दरकार है रहना अब अपनों के संग लो बीत गया एक वर्ष, खट्टी मीठी यादो संग जीवन मे बिखरते कुछ या...
नायिका के मुख से… नये साल में
कविता

नायिका के मुख से… नये साल में

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** २१२ २१२ २१२ २१२ धुन... कर चले हम फ़िदा पान बीड़ा लगाया नये साल में होंठ पे भी रचाया नये साल में मतला चल दिए तुम कहाँ है मिलन की घड़ी लौट आना दुबारा नये साल में गिरह भूल शिकवे ज़लालत किया कुछ नया ज़िन्दगी को सँवारा नये साल में लाल चूड़ा सजे मेहँदी भी रची ब्याह में धूम बाजा नये साल में द्वार खोले सनम राह देखूँ तिरी फ़ोन भी है लगाया नये साल में चाँद को देख तू याद आया मुझे चाँदनी को बुलाया नये साल में देख तस्वीर तेरी हुई मैं फ़िदा मीत मुखड़ा दिखाना नये साल में थी घड़ी शायराना कि हम तुम मिले अब मुहब्बत जताना नये साल में चाहते हो अगर तो छुपाना नहीं हाथ हमसे मिलाना नये साल में परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित ...