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कविता

हिंदी जैसा शालीमार
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हिंदी जैसा शालीमार

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** विश्वगुरु की ये भाषा हिंदी सारी भाषाओं की महारानी है। हिंदी को छोटा न बोल हिंदी ने हिंदुस्तान का नाम बढ़ाया है। हिंदी से संस्कृति जन्मी हिंदी ने संस्कारों का पाठ पढ़ाया है। हिंदी की इस दुर्दशा के असली जिम्मेदार हम ही तो हैं। हिंदी छोड़ हमने इन अंग्रेजों की अंग्रेजी को सिर पर चढ़ाया है। हिंदी अगर जहां में नहीं होती तो फिर ये हिंदुस्तान नहीं होता हिंदुस्तान में आकर विदेशियों ने हिंदी का मजाक उड़ाया है। आक्रांताओ ने हिंदी को अपमानित करने का काम किया फिरंगीयो ने आकर हिंदुस्तानी भाषाओं को आपस में लड़ाया है। हिंदी आन हिंदी शान हिंदी हिंदुस्तान के जीवन की शैली है हिंद देश के वासीयो ने मिलकर हिंदी को इनके चंगुल से छुड़ाया है। धरती पे अगर हिंदी नहीं होती तो दुनिया दिशाहीन हो जाती आतताईयों ने ये भो...
ऐ वसन्त!
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ऐ वसन्त!

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** ऐ वसन्त! तुम मत लाना पानी संग पत्थर; सरसो खड़ी है हमारे खेत में! कुछ दिन रुक जाना, फिर बरसाना; पर केवल रसधार! पकने वाली है अरहर की फलियॉ, लगने वाली है गेहूं में बाली; अपनी सखी हवा से कहना, 'धीरे बहने को' ; लोट न जाने देना अलसी को, जी भर कभी निहारना; नाचते चने के ऊपर- लहराते लतरी को! चूक न करना कोई ! बहते रहना, फागुन से चैती तक... निर्बाध ... अनिन्दित... रसमय होकर!! परिचय :-  बृजेश आनन्द राय निवासी : जौनपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानि...
अभिश्राप नही वरदान
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अभिश्राप नही वरदान

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** पतिव्रता नारी पर तुम कितना भी लाछन लगा लेना, कितनी भी परीक्षा ले जग उसकी, हर परीक्षा ? प्रतिष्ठा ही उसकी, मान और सम्मान वही। राम ने सीता को जाना पर जनता ने पहचाना क्या ? हर परीक्षा परिणाम के लिए नहीं होती, उत्तर दे समझाना क्या। राजा जनक प्रतिक्षा ही करते, प्रतीक्षा ही संतोष सही, प्रतीक्षा ही उत्तर है उनका (राम) प्रतिक्षा ही यहा प्रतिउत्तर हैं। हीरा तो जौहरी ही जाने, सबकी दृष्टि मै काँच वही, उसकी कीमत वो ही जाने जिसकी दृष्टि जौहरी सी है, एक पिता बेटी की कीमत, या फिर प्रियतम पहचाने, क्या मोल नारी का जग में , मार्गदर्शक वह बन जावे, सरस्वती दुर्गा हे यह बुद्धि ज्ञान की भंडार है, युद्ध कोशल मै हे वह लक्ष्मी तलवार खून की प्यासी है, प्रेम का पाठ सीखा सदा इसने, राधा मीरा सी भक्ति है राजनी...
ममतामय आंचल में
कविता

ममतामय आंचल में

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** माँ! ममतामय आंचल में फिर से मुझे छुपा लो बहुत डर लगता है मुझे दुनिया के घने अंधकार में। माँ! फिर से अपने प्यार भरे अहसासों के दीप मुझ में आकर जला दो। माँ! खो न जाऊँ कहीं दुनिया की इस भीड़ में माँ! फिर से हाथ थाम मेरा कदम से कदम मिला मुझे चलना सीखा दो। माँ! डरा सहमा सा रहता हूं मतबलखौर लोगों की भीड़ में माँ! अपना ममतामय आंचल उड़ा मुझे फिर से अपनी प्यार भरी लोरी गा सुला दो। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय...
मैं रंग हूॅं…
कविता

मैं रंग हूॅं…

शैल यादव लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज) ******************** हाॅं! मैं रंग हूॅं। मेरी कोई जाति नहीं, मेरा कोई धर्म नहीं, मैं किसी का शत्रु नहीं, किसी विशेष का मित्र नहीं, सब हमारे हैं, मैं सबका अंग हूॅं, हाॅं! मैं रंग हूॅं। दिन-रात, सुबह-शाम में, जामुन, गुलाब और आम में, तन बदन धरती आकाश में, रजनी के तम दिवस के प्रकाश में, वृक्ष लता गुल्म में, रहम करम ज़ुल्म में, मैं सभी के संग हूॅं, हाॅं! मैं रंग हूॅं। प्रकृति के यौवन के श्रृंगार में, फूलों के साथ-साथ अंगार में, गिरगिट और सियार में, प्यार और तकरार में, नफ़रतों से तंग हूॅं, हाॅं! मैं रंग हूॅं। सफ़र में हमसफ़र में, गली गाॅंव शहर में, आठों प्रहर में, जीवन जीने का अलग-अलग ढंग हूॅं, हाॅं! मैं रंग हूॅं। हाॅं! मैं रंग हूॅं...। परिचय :- शैल यादव निवासी : लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज) ...
पगडंडी मत चलो
कविता

पगडंडी मत चलो

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** राह छोड़ पगडंडी मत चलो पगडंडी आगे सकरी हो जावेगी जिंदगी में डरो ना किसी से जिंदगी शर्मसार हो जावेगी। समय समर में समीर कड़वाहट भरी होगी कटु घूंट पीकर तुम फिर मिठास घोलोगी करो प्रतिज्ञा मन में कोई सुने ना सुने कोई रुलाए चाहे जितना तुम्हें हंसी हंसना होगी। है हर कदम पर चोट, हर कदम पर कसोटी रत को चलना, रत हो गाना। जीवन की यह बानी होगी होगा कोई अपने में ही उलाहना देने वाला कदम दर कदम कचोटेगा मन कुछ गलत करने वाला।। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से ...
आदर्श
कविता

आदर्श

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** उनके लिए वो भद्दे परिपाटी जिसका आज चलन है, पर हम वंचितों का, बहुजनों का आदर्श बंदूक नहीं कलम है, तलवार से भी खतरनाक कलम को ही माना गया है, इसे ही सबसे शक्तिशाली जाना गया है, सत्ता को भी कलम गूंगी कर देती है, शक्तिहीनों में भी ताकत भर देती है, सदियों से चली आ रही व्यवस्था के हम घोर विरोधी हैं, हम बुद्धत्व के संबोधि हैं, भले ही हम हजारों सालों तक कागज कलम से दूर रहे, अपढ़ता का अभिशाप झेलने मजबूर रहे, उनकी बस्तियों से दूर रहे, उनके खंडित करते नियम हमारे लिए नासूर रहे, पर कलम की कसक हम दिलों में पाले थे, शिक्षा के लिए खुद को संभाले थे, तब अंग्रेज आये, वे उन्हें नहीं सुहाए, लेकिन हमें उन्होंने स्कूल की राह दिखाए, पढ़ाए, समता की बात सिखाये, हम शिक्षा का साथ ताउम्र नहीं छोड़ेंगे, कलम उठाएंगे...
मैं चेतना हूंँ …
कविता

मैं चेतना हूंँ …

चेतना प्रकाश "चितेरी" प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** मैं सोचती हूंँ, जन्मतिथि पर तुम्हें क्या उपहार दूंँ, तुम स्वयं में चेतना हो। जीवन जीने की कला है तुममें, तुम्हें क्या सीख दूँ, तुम स्वयं में प्रज्ञा हो। नित नवीन सद्विचार लाती हो, तुम्हें क्या उपदेश दूँ, तुम स्वयं में ज्ञानवती हो। जन मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ देती हो, तुम्हें क्या याद दिलाऊँ, तुम स्वयं में सुधि प्रकाश हो। मैं तुम्हें ह्रदय से पुकारती हूंँ, सुनो चेतना ! मेरी अंतरात्मा की आवाज, इस दिवस उर-मस्तिष्क की बधाई स्वीकार करो, स्वयं के साथ-साथ औरों का उद्धार करो। परिचय :- चेतना प्रकाश "चितेरी" निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर ...
आसमां ने कहा
कविता

आसमां ने कहा

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** आसमा ने कुछ यूँ कहा, देखते ही मुझको। क्यूँ मायूस है आज तू, क्यूँ खफा है आज तू, मैने भी उससे कहा, सून ले आज तू, ना मै मायूस हूँ, ना मै खफा हूँ। चाँद की चाँदनी, आज कुछ यूँ बिखरी, चेहरे की मुस्कान ने, कुछ यूँ बयांकिया, देखते ही देखते, सपनो का बादल यूँ छटा, मानो सारा भ्रम अभी टूटा। आँखो मे नीर था, मन मे उद्वेग था, क्या आज तुमसे मै, मायूस और खफा था। आसमा ने कुछ यूँ कहा, देखते ही मुझको। परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी...
तुम आगए
कविता

तुम आगए

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** अब तुम आगए सब रंग छागए नज़र क्या उठी दिल में समागए होली के बहाने, वो ओर करीब आगए क्या बोछार हुई गीत वो सुना गए बेरंग जो लगते कल आज हमें भीगा गए खार से लदी राहे थी आज हमें सजा गए जीने के ढ़ंग निराले मोहन गले लगा गए परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हि...
प्रेम का दीपक जला दो
कविता

प्रेम का दीपक जला दो

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** रवींद्रनाथ टैगोर की कविता Light the lamp of thy love का हिंदी रूपांतर हे प्रभु, मेरे ह्रदय में अपने हाथों से प्रेम का दीपक जला दो आलोकित कर दो मेरे ह्रदय को प्रेम की किरणों से इसकी मोहक किरण ह्रदय को भेद जाए बदल कर मेरे भावों का संसार। हे प्रभु, दूर कर दो तम को ह्रदय के उसमें प्रेम का प्रकाश भर दो दुर्भावना में सद्भावना जगा दो दुर्व्यसनों को जलाकर ह्रदय में सद्गगुणों का वास कर दो हे प्रभु, एक बार तो कर दो स्पर्श मेरा मैं बदल जाऊँगा, मेरा मृदातन स्वर्ण बन जाएगा इंद्रिय-जाल से ढके मेरे अंतर को अपने प्रेम प्रकाश से भर दो कुत्सित भावनाओं का दमन कर दो इंद्रियों का शमन कर दो हे प्रभु मेरे ह्रदय में प्रेम का दीपक जला दो। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिट...
घर बैकुंठ
कविता

घर बैकुंठ

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** आज खो गया हूँ अतीत में, याद पुरानी आई। याद पुराना घर आया है, जिसमें उम्र बिताई। रहता हूँ तिमंजिलें घर में, पर वह मजा कहाँ है। ऊधम के बदले में पाई, अब वो सजा कहाँ है। लिपता था जब घर का आँगन, गोबर और चूने से। घर बैकुंठ नजर आता था, हाथों के छूने से। घर से लगे एक कमरे में, गाय बँधी रहती थी। पानी गिरता था छप्पर से, खुशी-खुशी सहती थी। लक्ष्मी जी से पहले पूजन, होता था गैया का। शुद्ध दूध से भोजन होता, था छोटे भैया का। कच्चे घर में पक्के रिश्ते, प्यार भरे दिखते थे। सीता-राम लाभ-शुभ घर के, द्वारे पर लिखते थे। मिट्टी घास-फूस से मिलकर, बनते थे घर प्यारे। घर के आँगन से दिखते थे, सूरज चाँद सितारे। बिना साधनों के ठंडक थी, खुशहाली थी घर में। थे पुष्पित गाँवों में रिश्ते, दिखते नहीं नगर में। ...
फ़रेबी
कविता

फ़रेबी

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** मुझे मालूम है वह फरेबी है, पर मुझ तन्हा के लिए वहीं तो सबसे करीबी है, मकड़जाल से ज्यादा उलझनों वाली रिश्तों का भयानक रूप, मेरे लिए वो जरूर है कुरूप, पर वही है मेरे सिर को छांव देता रोककर कंटीली नुकीली धूप, उसके कारण थोड़े बोल लेता हूं नहीं रहना पड़ता है चुप, उनका लगाव तो देखिए लाखों संभावनाएं के बाद भी सिर्फ मुझसे ही फरेब करता है, मेरे लिए प्यार इतना उनका मुझे छोड़ दुनियादारी से डरता है, कहता है आपको शत्रु की क्या जरूरत जब मैं आपके साथ हूं, कुछ और की चाहत क्यों मैं ही तो जज्बात हूं, देता है दर्द रिश्तों का दिया हुआ, अब मैं हो चुका हूं मर मर के जीया हुआ, अब तो एक जैसा है नफरत और लाड़, अब कोई प्यार जताये या लताड़। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प...
सूरज मुझे जगाता चाँद मुझे सुलाता
कविता

सूरज मुझे जगाता चाँद मुझे सुलाता

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** उषा की पहली किरणें पलकों को सहलाती मेरी अँगड़ाई लूँ, वक़्त नहीं उनींदी ही मैं उठ जाती मुन्नू को लिहाफ़ उड़ाके खिड़की पे पर्दा सरकाती ख़लल, पति को नापसंद धीरे से किवाड़ अटकाती मन में प्रभु को याद कर फ़िर चाय अपनी चढ़ाती यही पहर मेरा अपना है अख़बारों पे नज़र घुमाती कोई अनपढ़ ही ना कह दे ख़बरों की खबर मैं रखती हाथों की कसरत चालू है मटर मैथी की सफ़ाई में झटपट मैं नहाकर आती मुन्नू व पति की हाज़िरी में फ़टाफ़ट दो टिफ़िन लगा तौलिया हाथों में थमाती बरौनी व दूधवाले का भी मुहरत यही तो होता है ? पोछ पसीना दौड़ लगाती मुन्नू का तांगा आया है हाय बाय करूँ कब कैसे बिगड़े गए तेवर पति के डिनर,पसंद का बनाना है अस्त व्यस्त हुए घर को रोज रोज सजाना है ख़ुद को ना सँवारूँ तो बेढंगी कहलाती हूँ मैं समझ नहीं पाती हूँ मैं किसको कैसे स...
समाधान ढूँढने होंगे
कविता

समाधान ढूँढने होंगे

रंजना श्रीवास्तव नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** देश प्रेम स्वच्छता की आदत और एक स्वस्थ सोच, शिक्षा में क्रांति आवश्यक जो नैतिकता को दे ओज। सुविधासम्पन्न औलादें कर रहीं अनाज की बरबादी, वहीं गुज़र बसर मुश्किल हुई भूखी चौथाई आबादी। फोन से मन हटता नहीं दिन भर फोटो मैसेज कॉल, मुखिया भी न बच सके सपरिवार मानसिक फॉल। राजनीति के कूटनीतिक खेल में जातिवाद गहराया, सफलता क्यों न चूमें कदम मुफ्त अनाज बँटवाया। मानसिक स्वास्थ्य की किसे पड़ी कर्मसिद्धान्त छूटा, अस्मत को बर्बाद किया निर्भया को नोच-नोच लूटा। बस कार मोटर काला धुआँ बढ़ता जाए प्रदूषण, खाँस-खाँस अधमरे हुए सब घटता जाए जनजीवन। दिखावे का आवरण चढ़ा निज प्रशंसा बार-बार, संयमित जीवन जीने वाले सहज छोड़ते हैं घर बार। भौतिकतावादी संसार में क्यों बेवजह जश्न मनाना, शोर शराबा और भ्रम में जीना अच्...
लक्ष्य की ओर
कविता

लक्ष्य की ओर

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** दौड़ सकता है तो दौड़, भाग सकता है तो भाग। मंजिल पाने के लिए, अंतर्मन में लगी है आग।। ठण्डे खून के उबलने तक या खून सूखने तक। पागलपन की जुनून तक या मुर्दा बनने तक।। जब तक मंजिल ना मिले, राहों में तुम रुकना नहीं। चुनौतियों का सामना करना, स्वयं कभी टूटना नहीं।। जीवन की सांसें फूलने तक या सांसें रुकने तक। कंकाल की राख उड़ने तक या चमड़े गलने तक।‌। कुछ विरोधी और बुरे लोग, तुम्हें पथ से भटकायेंगे। खूब हंसी उड़ेगी गलियों में, जन भ्रमजाल फैलायेंगे।। मिट्टी में दफन होने तक या सब कुछ खत्म होने तक। आत्मा की शुद्धि होने तक या परमात्मा दिखने तक।। डटे रहना मैदान में वीर योद्धा, शत्रुओं को करने ढेर। धीरज रखना साहस भरकर, जीत में भले होगी देर।। हार के काली रात के बाद, आयेगी सफलता भोर। दृढ़ आत्मविश्वास से...
ज़िंदगी कभी
कविता

ज़िंदगी कभी

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** ज़िंदगी कभी गमों में रूलाती है, ज़िंदगी कभी खुशी के पल बिताती है, ज़िंदगी कभी खुद से रूठ जाती है, जिंदगी कभी खुद ही खुद को मनाती है, जिंदगी कभी उल्लास मनाती है, जिंदगी कभी आंसू भी लाती है, ज़िंदगी कभी अपनों संग बांधे रखती है, जिंदगी कभी अपनो से दूर निकल जाती है, ज़िंदगी कभी भरपुर हंसाती है, जिंदगी कभी जम कर रूलाती है, जिंदगी कभी मिट्टी सी बन जाती है, ज़िंदगी कभी आसमां को छुं जाती है, ज़िंदगी हम से संघर्ष करवाती है, ज़िंदगी हमें जीना सिखाती है, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र...
वजह तुम हो
कविता

वजह तुम हो

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मेरे चेहरे की रौनक की वजह तुम हो। मेरे लबों पर आई मुस्कुराहट की वजह तुम हो। मेरे दिल की हसरत की वजह तुम हो। मेरे मन में आए एहसासों की वजह तुम हो। मेरे गालों में आई रंगत की वजह तुम हो। मेरे ह्रदय में आये जज्बातों की वजह तुम हो। मेरे होठों पर गुनगुनाते गीतों की वजह तुम हो। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
मुझे जग में आने दो
कविता

मुझे जग में आने दो

अजय गुप्ता "अजेय" जलेसर (एटा) (उत्तर प्रदेश) ******************** मुझे जग में आने दो अजन्मे की पीर से फटे बिवाई जो अधिकार की दे रही दुहाई मुझको जग में आने दो मां। यूं मत मुझको जाने दो मां। सदा तुझे आभार कहूंगी, मां तुझसे मैं प्यार करुंगी। मां तेरी हूं मैं लाड़ो प्यारी, बनूंगी सारे जग में न्यारी।। मुझे जन्म दो, मुझे जन्म दो.. मै हूं जीवित अंश तिहारा, मैं भी हूं तेरा वंश सहारा। बदला समय बताना होगा, पापा को समझाना होगा। बिगड़ गया अनुपात जताना, जनसांख्यिक हालात बताना। अगर न माने फिर भी पापा, मैं उनसे मनुहार करुंगी। जीवन भर आभार कहूंगी।। मुझे जन्म दो, मुझे जन्म दो.. लक्ष्मीबाई या मदर टेरेसा, क्या कोई बन पाया बैसा। केवल ना एक धाय थी पन्ना, ममता का अध्याय थी पन्ना। जरा बता दो प्यारी अम्मा, दादी को समझाओ मम्मा। सब गुण अंगीकार करुंगी, जीवन भर उपकार करुंगी।। ...
नारी क्या है?
कविता

नारी क्या है?

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** वो मानसरोवर, ऋषिकेश वो रामेश्वर वो संगम है वो मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे का एक दृश्य विहंगम है।। वो लक्ष्मी, अहिल्या, नारायणी वो केशव की मीरा है वो सीता, सावित्री, गंगा वो बहती पवन समीरा है।। वो जननी, भगिनी और बेटी भाभी, बुआ और रंभा है वो काली, कल्याणी,दुर्गा कभी बन जाती वो अंबा है।। वो आशा, अभिलाषा, उम्मीदें वो प्रेम का बहता सागर है वो दया, करुणा,आदर की एक झलकती गागर है।।4 वो अपने हाथों के प्यालों से सदा प्रेम नीर बहाती है वह संकट में उलझे मन को हरदम ही सहलाती है।। वो मन के कोमल पंखों से ऊँची उड़ान भी भरती है वो सीने में कई दर्द छुपा कर ख्याल सभी का रखती है।। वो माथे की बिंदिया है वो भरी मांग है सिंदूरी वो है स्वर्णिम कंठ हार वो कंगन भी है बहुरंगी।। वो राखी की पावन डोरी वो चुनरवाली गणगौरी वो ...
कितना कठिन होता है
कविता

कितना कठिन होता है

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सच, कितना कठिन, दूभर होता है एक स्त्री के लिए ख़ुद को समझना उससे भी कठिन औरों को समझाना वह सोचती है सबके लिए दिल से ख़याल रखती सभी का हर तरह से फोड़ा जाता है बुराई का ठीकरा बस और बस उसी के सिर पर पेट भरती है बचा खुचा खाकर ही सबको खिलाकर गर्म घी वाले फुलके सुनना पड़ता है बीमार होने पर उसे क्यों नहीं करती समय पर भोजन राय ली जाती है उससे हर मुद्दे पर नहीं मिलता गर मनचाहा परिणाम कोसा जाता है उसे बेवकूफ़ कह कर पर सफ़लता का सेहरा खुद बाँध लेते बच्चे अच्छे निकले तो पति के होते रक्तसम्बन्ध की दुहाई देने लगते बिगड़ी औलाद के लिए माँ जिम्मेदार उसी के दूध को दाग लगाते हैं सब अपनी रुचियों को छुपा कर कबर्ड में घर की रंगीनियों को ताज़गी देने टूटी कूची, सूखे रंगों को धूप दिखाती भूलती आँगन में उतरे सूरज को परिचय : सरला मे...
करुणा
कविता

करुणा

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** छल, कपट, दुष्काम, लोभ,लालच के बीच पंकज की भांति खिलती है करुणा, जो दैदीप्यमान रवि की लाती अरुणा, यह सम्पूर्ण व्यक्तित्व का है सार, नहीं कोई लालच, नहीं कोई व्यापार, जियो और जीने दो, प्रत्येक को समता का रस पीने दो, आचार विचारों में करुणा लाओ, बुद्ध के और करीब आओ, अहम को घटाओ, वहम को मिटाओ, यह त्याग और शील का साथी है, मानवता का प्रेमपूर्ण पाती है, हर क्षण हर काल में है प्रासंगिक, हृदय में जगाती है प्यार अत्यधिक, बुद्ध, कबीर, रैदास, बाबा साहेब थे सब करुणा के वाहक, यूं ही नहीं इनका नाम लिया जाता नाहक, प्रकृति से, स्वकृति से, कर्म से मन से, निःस्वार्थ स्वच्छ तन से, प्रवाहित होती है करुणा, बस खुद में है भाव जगाने की जरूरत, तब चहुँ ओर नजर आएंगे करुणा लिए बुद्ध ही बुद्ध की सूरत। ...
वो शख़्स दूर होने लगा
कविता

वो शख़्स दूर होने लगा

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** उसकी शोहरत में इजाफा जो होने लगा, वो हमसे अब दूर होने लगा, छा गया नशा शहर की चकाचौंध का उस पर, मेरे गांँव से अब वो शख़्स दूर होने लगा, बदल लिए हैं उसने अपने दोस्त अब सारे, नये दोस्तों का खुमार उस पर होने लगा, भूल गया है साथियों को अब वो पुराने, उसको तो बस दौलत से प्यार होने लगा, पहचानता नहीं है पुराने किसी यार को अपने, जो नई-नई दौलत का गुमान उसे होने लगा, तोड़ दिए हैं ख़्वाब सीधे-सादे साथियों के उसने, नई-नई शोहरत का नशा उस पर होने लगा, मिला था उसका भाई मुझे गाँव के चौराहे पर, पुछा उसके बारे तो उसे याद कर वो रोने लगा, उम्मीद छोड़ दी हम ने उस शख़्स से अब तो, जो अपनों करीबियों से भी अब दूर होने लगा, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर...
वादियाँ बुला रही है
कविता

वादियाँ बुला रही है

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** शहरी चकाचौंध से दूर, कोलाहल से इतर, सुकूं से गुजारने दो पल, ये वादियाँ बुला रही हैं। पक्षियों का कलरव, नदियों की कल-कल, प्रकृति का संगीत सुनाने, ये वादियाँ बुला रही हैं। फूलों से सजी ये घाटियाँ, बर्फीली ये चोटियाँ, इन्हें जी भर निहारने, ये वादियाँ बुला रही हैं। पर्वतों की सर्पिल डगर, झरनों की ये झर-झर, नजारों को मन में बसाने, ये वादियाँ बुला रही हैं। चारों ओर बिखरी हरियाली, उगते सूरज की लाली, उर में भरने आनंद समंदर, ये वादियाँ बुला रही हैं। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एव...
हे! नारी तू उठ
कविता

हे! नारी तू उठ

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** हे! नारी तू उठ जा विजयपथ पर जीत का परचम लहरा जा तू मत डर आंधी की तरह बढ़ आगे डटी रहो जीवन रथ पर अरमानों को मत दबा रख बाजुओं पर भार अपना चल पड़, निकल ले उठा ले खुद को। राहों में मिलेंगे टेढ़े-मेढ़े रास्ते मत डरना मत रुकना डटी रहना पथ पर मंजिल की कुछ दूरी पर होगी तू डांवाडोल जरूर फिर ऊर्जा से भर जाना रास्ता अब नजदीक है पथ पर पहुंचेगी ठोकरे होंगी हजारों सीमा ठोकरों को मार ठोकर बढ़ जाना विजय की ओर परचम जीत का लहरा देना मर्दानी तू, दुर्गा रूप में खड़ी रहना सिंह पर हो सवार डटी रहना विजय रथ पर लहरा देना जीत का परचम है नारी तू डटना यूं ही परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ ब...