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कविता

कवि हृदय
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कवि हृदय

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कौन कहता है हम कुछ नहीं कौन कहता है हम कहीं नहीं जिंदगी की उदास राहों में जिंदगी की गम भरी रातों में। कोई खोजे हमें भूखे लोगों की बस्ती में हम कहां नहीं हैं, हम वहां नहीं है जहां रसरंग बरसता हो जहां मोह उत्पन्न हो क्योंकि वहां कवि हृदय का स्थान नहीं है।। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाण...
ममता भरे आंचल को पहचानो
कविता

ममता भरे आंचल को पहचानो

श्रीमती निर्मला वर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हे महिलाओं .... ओ महिलाओं .... ममता भरे माँ के मन और आंचल को पहचानो, सौम्य आवरण से तन-मन संभालो। विष फैल रहा वासना का इन दृश्यों से, अपनी अस्मिता के साथ इस समाज को बचा लो।। हिम्मत है जब इतनी कि धरती से आसमान तक फहराए हैं तुमने परचम, हिम्मत को हिकारत में ना बदलो कि, लाज में डूब जाए नारी का धरम। लाचार ना बनो इतनी कि तन की ही कीमत रह जाए, मन दब जाए इतना कि रिश्तो की बलि चढ़ जाए। तन ढल जाएगा जब, कीमत भी चली जाएगी। रिश्तो की छांव के लिए जिंदगी तरस जाएगी।। रुको .... जरा सुनो इस अर्थ के अंधड़ से बचकर उस मार्ग पर चल दो, जिस मार्ग में तुमने शासन को संभाला है, आसमान में अंतरिक्ष की ऊंचाई को नापा है, कितने 'तुलसी' को महामार्ग दिखलाया है, महापुरुषों की जननी का महाश्रेष्ठ पद पाया है, ...
तलाश सच्ची खुशी की
कविता

तलाश सच्ची खुशी की

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** तलाशने चले खुशियां, पर कोसों दूर निकल पड़ी और हुई चूर, जीवन में चकनाचूर सी जीवन की खुशियां मिलने जुलने की रीत प्रीत बिना हुई जीवन में अंधकार सी जीवन की खुशियां आज मानव भटकती जीवनशैली में जीवन की मिलनसारिता के अभावों पर अद्भुत द्रष्टा देता दर्शाता अक्सर पूछता है खुद से हूँ व्यस्त जरूर जीवनशैली में कब कहाँ कैसे किस मोड़ पर मिलेगी सच्ची खुशियां उदासीनता सी झुलसियां में आपा-धापी के चकाचोंध चेहरे में मुस्कुराहटें ले ली करवटें झलकती झुलसियां और उदासीनता गुल बस हुई तो, बस हृदयानंद की खुशियां बांधे अनर्गल बोझ का सेहरा गवांकर मौका सुनहरा पूछता है मानव ओरों से कहाँ छुपी है कहाँ बिछुड़ी जीवन की खुशियां अनमोल खुशियां जुटाने की हिम्मत तलाशते तलाशते अन्तर्मन से सिमटती सिमट रही अनमोल अन्तर्मन की...
संघर्ष
कविता

संघर्ष

बबीता कुमारी आसनसोल (पश्चिम बंगाल) ******************** जीवन में आगे बढ़ना है तो, संघर्ष का दामन हम थामे चलेंगे फूल बिछे हों या कांटे हों, राह अपनी हम न छोड़ेंगे। चाहे जो विपदायें आये, मुख को जरा हम न मोड़ेंगे। साथ रहें या रहें न साथी, हिम्मत मगर हम न छोड़ेंगे। संकल्प ले यदि मन में अपने, उत्साह कभी कम न हम होने देंगे संघर्ष ही जीवन है हमारा अपने विकास के लिए संघर्ष करते रहेंगे। परिचय :- बबीता कुमारी निवासी : आसनसोल (पश्चिम बंगाल) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी ...
मानवता-धर्म
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मानवता-धर्म

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** मानव का जन्म लिया पुण्य से, मानवता ना समझ सके प्रभु वरदान है जीवन ये भी ना पहचान सके..??? मनुष्यता का कवच ओढ़े, धर्म अधर्म को तौल रहे क्रूरता अट्टहास लगाती, निज इच्छाओं से मौन रहे??? करुणा-प्रेम, सेवा-सम्मान, है मानव धर्म की परिभाषा ईन दैव गुणों से भी तुम ये जीवन-व्यक्तित्व ना संवार सके घोर विडंबना व्याप्त हुई मानव दानव से भिन्न नहीं प्रलय विनाश के द्वार निज स्वार्थ वश खोल रहे पाशविकता है चरम चढी मनुजता पर अधम बढ़ा है करुणा हृदय से सूख गई मानव प्राणों का भूखा है...?? क्यूँ भटक गया है धर्म तत्व, उलझा है अधम अंधेरों में क्या था पौरुष कैसा मानव जब जीवन ही असंवेदनशील हुआ हे मनुज, उठो, अब भी पुण्य कमा सकते हो सत्य आचरण का संकल्प लिए इस सृष्टि को संचित कर सकते हो मत होने दो सं...
ईद आ गई है
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ईद आ गई है

डॉ. वासिफ़ काज़ी इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** लो फिर से ईद आ गई है । खुशियाँ दिल में छा गई है ।। रमज़ान की इबादत का तोहफ़ा मिला है । किसी से नहीं शिकवा न कोई गिला है ।। मोहब्बतों के शीर से दस्तरख्वान सजाना है । भूलाकर रंजिशें सारी गले सबको लगाना है ।। महक सेवईयों की भा गई है । लो फिर से ईद आ गई है ।। हमारे जिस्म-हमारी रूह को पाक कर दिया है । रोज़े की फज़ीलत ने हर बुराई को ख़ाक कर दिया है ।। ईद के चांद ने रोशन किया है खुशनसीबी का रास्ता । नहीं लौटेंगे अब गुनाहों की और सबको ख़ुदा का वास्ता ।। राह ईमान की दिखा गई है । लो फिर से ईद आ गई है ।। आज ईदी मुहब्बत की बांटना है हमको । गमों से खुशियां अब छांटना है हमको ।। नब्ज़ पर अपनी इख्तियार कर लिया था । दामन को अपनी नेकियों से भर लिया था ।। ज़र्रे ज़र्रे में रौनक छा गई है । लो फिर से ईद आ गई है ।।...
ये औरतें भी न…
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ये औरतें भी न…

रेणु अग्रवाल बरगढ़ (उड़ीसा) ******************** हर बार हैरान हो जाती हूँ मैं जब भी सोचती हूँ कि हार गईं ये ... लेकिन उठ खड़ी होती हैं एक नई शक्ति के साथ दो-दो हाथ करने रोज़मर्रा की तकलीफों से पता नहीं इतनी ताकत लाती कहाँ से हैं? ये औरतें भी न! कितनी आसानी से हर किसी के जीवन में अपनी जगह बना लेती हैं जैसे पानी हर बरतन जैसा ही हो जाता है एक जगह जन्म लेती हैं और फिर अपनी जड़ों समेत उखाड़कर एक नई ज़मीन पर लगा कर उगने के लिए छोड़ दी जाती हैं अजनबी लोगों के बीच इस तरह अपनी पहली रसोई बनाती हैं जैसे उसी रसोईघर में सदियों से पका रही हों छप्पन भोग ढूँढती हैं घर के हर सदस्य के जीवन में थोड़ी सी जगह अपने लिए कभी पुचकारी जाती हैं तो कभी फटकारी जाती हैं माँ बाप के नाम पर ताने भी खाती हैं कितनी भी हो प्रबुद्ध घर की मुरगी दाल बराबर अनपढ़ के नाम से ...
दुखों का आना …
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दुखों का आना …

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** सुख-दुख दोनों हमारे आसपास है दोनों ही इस जग मे बहुत खास है आगे पीछे आना इसकी आदत है दुखों का आना उसकी इनायत है आना जाना जब पहले से तय है हर गम के लिए पहले से सज्य है सुख-दुख भी उसी की महोब्बत है दुखों का आना उसकी इनायत है सुख-दुख दोनों ही करनी फल है इस सम रहकर सहना ही हल है सहने की अब तो बनानी आदत है दुखों का आना उसकी इनायत है गम की बदली भी छायेगी कभी बसंत से बहार भी आयेगी कभी एकदूजे के पीछे आने की आदत है दुखों का आना उसकी इनायत है सुख-दुख मे सम रहकर जीते है दोनों ही अच्छे है सहकर जीते है जो आता, उसे जाने की आदत है दुखों का आना उसकी इनायत है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक शिक्...
अधूरे होकर भी पूरे
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अधूरे होकर भी पूरे

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** वे साथ रहें पूरक बन कर पर एक दूजे के पास नहीं। जीवन का अर्थ समेट चलते हैं साथ भी फिर भी साथ नहीं। वे साथ रहे पूरक बनकर ... चिंगारी भी है, समर्पण भी है एक दूजे को अर्पण भी, वो समांतर पथ पर चलते हैं बनकर एक-दूजे का दर्पण भी संकल्प लिए, श्रद्धानत हो, अर्धांग भी हैं और अंतर भी। वे साथ रहे पूरक बनकर ... जैसे हो किनारा और नदी जैसे हो चंदा और धरती जैसे हो खुशबू और पवन जैसे अंबर और तारांगण। चलते संग-संग शुभ यात्रा पर कहीं मिलन नहीं फिर भी संगम। वे साथ रहे पूरक बनकर ... एक दृष्टि में देखो एक ही हैं। एक दृष्टि से देखो अलग कहीं। जो अलग किया अस्तित्व नहीं फिर तो जीवन का अर्थ नहीं। सागर में विलीन होकर ही है सही मिलन का सुख और सार सही। वे साथ रहे पूरक बनकर ... परिचय :- श्रीमती विभा पांडेय शिक्...
हमर भीम बाबा
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हमर भीम बाबा

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** अंजोर के बगरैय्या हमर भीम बाबा जी धन्य होगे लिखित संविधान के रचैय्या अम्बेडकर महान होगे सरल अउ सहज व्यक्तित्व के धनी रिहिस हे सादा जीवन उच्च विचार के मणि रिहिस हे धरम-करम के रद्दा बतैय्या वो तो पूजनीय होगे ... अंजोर के बगरैय्या हमर भीम बाबा धन्य होगे ... जात-पात अउ भेदभाव के गड्डा ला पाटीस हे छुआछूत अउ कुरीति के जड़ ल वो गाढ़िस हे अइसनहा मानव मन के जनैय्या महामानव होगे अंजोर के बगरैय्या हमर भीम बाबा धन्य होगे ... संत मनीषी साधू सन्यासी मन के संग ल धरिस हे तीन रतन अउ पञ्चशील के सन्देश ल गढ़िस हे अष्ट मारग म चलैय्या बौद्ध धरम के पुजारी होगे अंजोर के बगरैय्या हमर भीम बाबा धन्य होगे ... बाबा के रद्दा अपनाही उंकर जिनगी सरग बन जाही खान-पान रहन-सहन सुधारही उंकरे बेड़ापार हो जाही *श्र...
नीड़
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नीड़

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** चूं-चूं करती आई मेरी रानी चिड़िया, नीड़ बनाती अपनी बढ़िया-बढ़िया। नित करते अपने संरक्षण वास्ते, नीड़ बनाती अपनी बढ़िया-बढ़िया।। कल-कल बहती सारी नदियां रोज विचार करती है चिड़िया। रोज पीढ़ी मेरी बढ़े भी आगे कैसे, विचारमंथन करती है नित चिड़िया।। दाना-पानी भोजन व्यवस्था, लगी रहती है हमेशा रानी चिड़िया। मीठी मधुर-मधुर गाए गीत नित, नीड़ अपनी रोज सुन्दर करती बढ़िया।। अपनी मधुर वाणी से मन सबकी मोह लेती, करती हमेशा उपकार का कार्य चिड़िया।। नित नया नीड़ बना तिनकों से अपनी खुद का, प्यार का भाव सभी में जगाती है चिड़िया।। परिचय :-  डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपन...
बाकी है
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बाकी है

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** चंद खुशियों की हसरत में बेपनाह दर्द बाकी है। जो बीच रास्ते छोड़ दिया तुमने अभी वो साथ बाकी है। जो तुम तक पहुंच न पाई मेरी सदायें बाकी है। मेरे खामोश लफ्जों की हजारों बातें बाकी है। थकी आंखों का लम्बा अभी इंतजार बाकी है। जो रूह को सकून दे जाता तेरा दिदार बाकी है। चंद खुशियों की हसरत में बेपनाह दर्द बाकी है। जो बीच रास्ते छोड़ दिया तुमने अभी वो साथ बाकी है। किस कसूर की दी है सजा अभी इल्ज़ाम बाकी है। मौत का दे दिया फरमान अभी हमारी जान बाकी है। सजदों में बांधी उस डोर की अभी वो गांठ बाकी है। क्यों दुआएं कबूली नही गई वो फरियाद बाकी है। चंद खुशियों की हसरत में बेपनाह दर्द बाकी है। जो बीच रास्ते छोड़ दिया तुमने अभी वो साथ बाकी है। हम ने अजमा लिया सब को खुदा का इम्तिहान बाकी है। इश्क़ का यह स...
बच्चे देश का भविष्य
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बच्चे देश का भविष्य

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** बच्चे हैं हमारे देश का भविष्य, हमें मिलकर इनका बचपन बचाना है, स्कूल में भेज बच्चों को, काबिल उन्हें बनाना है, बाल मजदूरी से बचपन, उबर नहीं कभी पाता है, शारीरिक मानसिक बच्चे को, बड़ा आघात लग जाता है, हैं खेलने, पढ़ने के दिन जो, दुस्वार यह हों जातें हैं, बाल मजदूरी से बच्चों के, जीवन तबाह हो जाते हैं, गांँव शहर ए मेरे देश के लोगों, बाल मजदूरी पर रोक लगानी है, बच्चों का जीवन खुशहाल बने ऐसी व्यवस्था मिलकर हमें बनानी है, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करव...
छोटी काशी (गोला)
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छोटी काशी (गोला)

गौरव श्रीवास्तव अमावा (लखनऊ) ******************** मन उत्सुक था घोर चपलता, सम्भव नहीं इसे समझाना, महादेव का था ये बुलावा, अब तो हमको था ही जाना। दुःख के काले बादल उड़ गए, मिट गयी मन की घोर उदासी, काशी-काशी, काशी-काशी पहुंच गए हम छोटी काशी।। देख दृश्य छोटी काशी का, मैल मिट गया सारा जी का। मन व्याकुल था आंखें तरसी, दर्शन मिलें तों आंखें बरषी। इससे जुड़ी है राम कहानी, जो चौदह वर्ष हुए वनवासी।। काशी-काशी, काशी काशी पहुंच गए हम छोटी काशी।। दूर-दूर से आते हैं जन महादेव के दर्शन पाने। कई संन्यासी दिखें यहां जो खुद को हर के रंग में ढालें। कुछ तो देखें घोर तपस्वी, कुछ तो मिलें यहां संन्यासी काशी-काशी, काशी-काशी पहुंच गए हम छोटी काशी।। परिचय :- गौरव श्रीवास्तव निवासी - अमावा (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना...
वीरान सी बस्ती
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वीरान सी बस्ती

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** सुनसान सी सड़के झांकती है मेरी और, मानो कह रही है वो मुझसे, अपने कदमो की आहट से, महका दे इस गाँव को। वीरान सी इस बस्ती में , झुका हुआ बरगद का पेड़ खड़ा है, मानो वो मुझसे कह रहा है, आ बैठ़ मेरी छाँव में। वीरान सी इस बस्ती में, खाली पड़े मकानों की दीवारें, मुझसे कुछ यूँ बोल रही है, आ खेल तू इस आँगन में। वीरान सी इस बस्ती में, खेतों की ये मिट्टी, मुझसे कुछ यू बोल रही है, आकर छू ले मुझको, चारों और फैला दे, सौंधी सी मिट्टी की खुशबू को। वीरान सी इस बस्ती में, सुनसान सी सड़कें, मानो मुझसे कुछ कह रही है। परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, ...
मिलकर नीर बचाना होगा
कविता

मिलकर नीर बचाना होगा

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** मिलकर नीर बचाना होगा, वरना पछताओगे। वसुधा छोड़ नीर पाने को, और कहाँ जाओगे। नित धरती का दोहन करके, इसको व्यर्थ बहाते। कमी दीखती जब पानी की, तब क्यों तुम पछताते। रखें सहेज सदा पानी को, इसकी कीमत जाने। पानी है हम सबका जीवन, कीमत भी पहचाने। धीरे-धीरे कभी इस तरह, होगी गर पानी की। प्यासे, बिना नीर आएगी, याद तुम्हें नानी की। जितनी पड़े जरूरत हमको, इतना पानी ले लें। वरना सूख जाएंगी पल में, सबकी जीवन बेलें। पानी है अनमोल खजाना, मिलकर ऐसे सहेजें। मानव कर प्रयत्न पी लेगा, कहां जानवर भेजें। दिन दूनी और रात चौगुनी, गर्मी बढ़ती जाती। जलस्तर घट रहा निरंतर, धरती सूखी जाती। पशु पक्षी बेचैन भटकते, जहां नीर पाते हैं। बाजी लगा जान की अपनी, वहीं चले जाते हैं। अब गर्मी तन बदन जलाती, पीड़ा सही न...
डॉ. भीमराव अम्बेडकर
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डॉ. भीमराव अम्बेडकर

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** बुद्धि से तेज विचारों से श्रेष्ठ ज्ञान में ज्ञानी सहनशीलता की मिशाल जला दी जिसने अलख ज्ञान की आओ करें नमन उस महान ज्ञानी को किताब, कलम को बना ढाल छा गए जो महान करोड़ों दिलों पर जिसका राज रख नारी को संग दिला कर महिलाओं को शिक्षा का अधिकार बने नारी रक्षक गरीबों वंचितों को दिया उठा समानता का पढ़ाया पाठ सहकर कठोर यातनाएं रख शिक्षा को आगे आम से बने खास लिख दिया जिसने संविधान कहलाए वे डॉक्टर भीमराव अंबेडकर नमन मातृभूमि के लाल को। परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, रक्तदान शिविर में भाग लिया। उपलब्धियां : गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड स...
हर पल नयी लगती है तू
कविता

हर पल नयी लगती है तू

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** हर पल कुछ नये से सुहाती रहती है तू नये सिरे से दिल को यूँही लुभाती है तू नयी नवेली दुल्हन जैसी सजती है तू नया कुछ कर गुजरने का ज़ज्बा देती है तू... लड़ने की प्रेरणा बनकर खड़ी है तू दुनियादारी के मायने समझाती है तू व्यस्त रहने के फायदे सिखाती है तू व्यवहार से वास्ता भी जताती है तू... बुराई से भी कभी-कभी टकराती है तू हौसला-अफजाई की मशक्कत करती है तू डटकर चलना भी बताती रहती है तू हमसफर बनके चलना जानती है तू... खुद का अन्दाज बनाने को उकसाती है तू औरों के लिए जीने का अवसर देती है तू विधाता की भेंट खुशनुमा रहती है तू जिन्दगी हर पल नयी उम्मीद जगाती है तू... परिचय :- डॉ. संगीता आवचार निवासी : परभणी (महाराष्ट्र) सम्प्रति : उप प्रधानाचार्य तथा अंग्रेजी विभागाध्यक्ष, कै सौ कमलताई जामकर महिला महाविद्य...
मतलबी
कविता

मतलबी

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मैंने जहां देखा, मैंने तहा देखा। लोग मुझसे जुड़े बस मतलब के लिए, न मेरे विचारों के लिए न मेरे लिए। जो भी मुझसे मुस्काया किसी न किसी, मतलब के लिए फरेब के लिए। न की अपनेपन के लिए हसीन आंखों ने मुझे भी तका पर न प्रेम के लिए न वफ़ा के लिए बस एक चलते-फिरते हमसफर के लिए। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प...
जकड़न
कविता

जकड़न

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हाथ बंधा है, पांव बंधा है और बंधा मस्तिष्क, चुन सकते नहीं प्रेयसी कैसे लड़ाएं इश्क़, हाथ काम तो कर रहे पर किसी और का, पांव थिरक जा रहा किसी के रोकने से, मस्तिष्क दूसरों के डाले डाटा अनुसार चल रहा है, दरअसल यह मानसिक गुलामी के जकड़न का असर है, समाज और समाज के लोगों से दूर रहने का असर है, जिस हथियार के दम पर नौकरी पाया, रुतबा पाया, उसे भूल धुर विरोधी को गले लगाया, सालों साल लोगों को बहकाया, तो समाज की चिंता अब क्यों? अब कोई तवज्जो दे तो क्यों? मनन जरूर कीजिए। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच...
वर्ण पिरामिड
कविता

वर्ण पिरामिड

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वर्ण पिरामिड ॐ शिव ओंकार निराकार परमेश्वर त्रयम्बकेश्वर करो विश्व उद्धार हे शंभू त्रिचक्षु संकटी भू कल्याण कुरु बजादो डमरू करो तांडव शुरू ओ रुद्र शंकर विश्वेशर ओंकारेश्वर महाकालेश्वर आओ परमेश्वर परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३...
एक नन्हीं परी
कविता

एक नन्हीं परी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नीले बादलों के रथ पे सवार झिलमिल तारों की पीछे है कतार चाँद की चांदनी दे रही बिदाई रिमझिम बूंदों ने शहनाई बजाई एक नन्हीं परी आँगन में उतरी उषा की लाल किरणें ज्यों बिखरी महके कनेर जुही चंपा हरसिंगार हर द्वारे झूमते देखो वंदनवार चाची ने रंगीली रंगोली सजाई ढोलक की थाप पे सोहर गवाई आरती भुआ ने खूब उतारी दादी ने काजल की बिंदी लगाई ठुमक ठुमक कर चलने लगी गुड़िया सजने अब लगी ख्वाबो की दुनिया तोड़ हदे सारी भरो ऊँची उड़ान माँ और बाबा ने कर दिया ऐलान गुड़िया ने सोची अंतरिक्ष की सैर या जा विदेश मनाऊँ अपनी खैर बाबा ने बोला पंख हमने दिए राहे मिल जाएगी पर ज़रा होले होले बुलन्द हौंसलें संजोए दिल में सात सुर गुंजाती पैजनियाँ ख़ामोश जय हिंद सेना में सरहद पे जा डटी नहीं हूँ बेटे से कम मैं...
संयम से हम
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संयम से हम

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** संयम का हथौड़ा और अपनी विवेक की छैनी के साथ करते रहे कार्य बहुत बड़ा परिवर्तन भी ला सकते हम और आप।। जरा से धैर्य की हो बात तराश सकते हैं स्वयं को हम किसी हीरे की तरह ईश्वर से प्रदत्त हैं ये गुण संयम से हैं हम और आप।। हमको ज़रूरत संयम की अपने कर्म के हथौड़े से किया जब समय पर वार असंभव नहीं रहा कुछ भी जीवन में आया हर्ष अपार ।। हुए जो संयमित हम जीवन में उपकृत होंगे ईश्वर के समक्ष होंगे उस अनुकंपा के अधिकारी संयम से ही हम और आप ।। परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका) निवासी : ग्वालियर (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी...
कुछ लोग दीवाने होते हैं
कविता

कुछ लोग दीवाने होते हैं

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** कुछ लोग दीवाने होते हैं विरले अन्जाने होते हैं राष्ट्र -धर्म के लिए जिन्हें नव-राह बनाने होते हैं उनको धन की कुछ चाह नहीं कुछ जीवन की परवाह नहीं पा सका न कोई थाह कभी सागर मस्ताने होते हैं सारा जग उनका अपना है पर स्वदेश पहला सपना है मातृभूमि-भाषा पे मिटकर कुछ अलख जगाने होते हैं छोड़ दिया घर-बार जिन्होंने पाया सबका प्यार उन्होंने कुल-वंश में नहीं बधें जो- अभिनव-पहचाने होते हैं नींद नहीं जिनको प्यारी है बस-करने की तैयारी है सबसे प्रिय सबसे अलग- कुछ मन में ठाने होते हैं चलते रहते नई राहों पर रोते हैं जग की ऑहों पर सुख-दुःख में जिनके कर्म- सदा - पहचाने होते हैं ना सोचें क्या राह कठिन है ना जानें क्या बात कठिन है देश-राह में चलने वाले- अद्भुत सैलाने होते हैं परिचय :-  बृजेश आनन्द राय नि...
हाला
कविता

हाला

ललिता शर्मा ‘नयास्था’ भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** कौन फ़िज़ा में घोल रहा, गरल भरा ये प्याला यूँ। नस-नस में क्यूँ दौड़ रही, मधुशाला की ये हाला यूँ? घर का दिया ही बुझने लगा, करके घर को काला यूँ। उसको पिला दे साक़ी ज़रा-सी, छोड़ के मेरे वाला यूँ॥ आँख में आकर बैठ गया, मदिरा का ये नाला यूँ। फूट रहा न जाने कब से, अश्रु का ये छाला क्यूँ? झुलस रहा है उपवन मेरा, फूल सुगंधित मतवाला यूँ। गंध लगे दुर्गंध उसी को, जब जाता मदिरा में डाला यूँ॥ वेशबदलकर कौन यहाँ, आया ओढ़ दुशाला यूँ। उजली चादर मैली करने, बुनता कोई जाला क्यूँ? यौवन की मादकता से, रोई गुल की माला क्यूँ ? चूर नशे में सोच किसी की, बली चढ़ी कोई बाला क्यूँ? अच्छी बातें नहीं सुहाती, बुरी को जाता पाला क्यूँ? नशे ने किया है नाश सभी का, नशे को सबने न टाला क्यूँ? परिचय :-  ललिता शर्म...