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कविता

दुनियादारी
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दुनियादारी

शैल यादव लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज) ******************** सामाजिक संबंधों से जब मैं, हो जाऊंगा निराश और हताश, तब मेरे मुंह से निकलेगा अनायास, कि धोखे की नींव पर, टिकी है यह‌ सारी दुनिया, कि जिसकी नींव ही धोखा हो, हकीकत ‌हो सकती है, भला उसकी मंजिल कभी? फिर मैं कहूंगा, चिरस्थाई नहीं है, इस संसार के लिए जो, वह मेरे लिए कैसे स्थाई हो सकता है, जो भी आया है जीवन में किसी के, जाएगा तो अनिवार्यतः ही, यह परम सत्ता, तो प्रतिपल परिवर्तनशील है, उसने कहा था कि, परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है, और जो शाश्वत होता है, वह कभी भी अशास्वत कैसे हो सकता है? इसलिए उसका बदलना, उसके भीतर के दोषों को नहीं दिखता, बल्कि दिखाता है, उसके भीतर की दुनियावी सास्वतता...!! परिचय :- शैल यादव निवासी : लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज) सम्प्रति : शिक्षक- जीआईसी घोषणा ...
चंद्रयान पहुँचा चंदा पर
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चंद्रयान पहुँचा चंदा पर

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** चंद्रयान पहुँचा चंदा पर, तीन रंग फहराये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। ज़ीरो को खोजा था हमने, आर्यभट्ट पहुँचाया। छोड़ मिसाइल शक्ति बने हम, सबका मन लहराया।। सबने मिल जयनाद गुँजाया, जन-गण-मन सब गाये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। मैं महान हूँ, कह सकते हम, हमने यश को पाया। एक महागौरव हाथों में, आज हमारे आया।। जिनको नहीं सुहाते थे हम, उनको हम हैं भाये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। जो कहते थे वे महान हैं, उनको धता बताया। भारत गुरु है दुनिया भर का, यह हमने जतलाया।। शान तिरंगा-आन तिरंगा, गीत लबों पर आये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। अंधकार में किया उजाला, ताक़त को बतलाया। जो समझे थे हमको दुर्बल, उन पर भय है आया।। जोश लिये हर जन उल्लासित, हम हर दिल...
बुरा क्या है …?
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बुरा क्या है …?

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** बंदिशों का पिंजरा तोड़, उड़ जाने को जी चाहे। तो बुरा क्या है? अपने लिए कुछ वक्त, चुराने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? समझदारियों की बातें छोड़, नादानियाँ करने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? छोड़ बनावटी हँसी, रूठ जाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? न सुन जमाने की, मनमानी कर जाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? सपनों को सच करने, जी जान लगाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? जी हुजूरी छोड़, करने को बगावत जी चाहे, तो बुरा क्या है? अन्याय होता देख, आवाज उठाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? भीड़ से अलग, पहचान बनाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? हक के लिए, लड़ भिड़ जाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? दिखावे को छोड़, असलियत अपनाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : ...
मेरी माटी मेरा देश
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मेरी माटी मेरा देश

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** मेरी माटी मेरा देश .. भारत का यही संदेश .. आओ मिल-जुल गाओ जी .. भारत का मान बढ़ाओ जी .. अमर शहीदों के कुर्बानी से, मिली है हमें आजादी जी। जय हिंद के नारा लगाकर, अमृत उत्सव मनाओ जी। तिरंगा का तो प्रतीक है, आन, बान और शान जी। आओ इन्हें नमन करें हम, भारतवासी हिंदुस्तान जी। मानव बनकर मानवता का, भाईचारा का भाव गढ़ों। इंसान बनकर इंसानियत का, देशप्रेम का पाठ पढ़ो। हिंदु मुस्लिम सिक्ख इसाई, संस्कृति का संवर्धन करो। जन-गण-मन गान कर सब, राष्ट्रीयता का पहचान करो। परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू निवासी : भानपुरी, वि.खं. - गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद छत्तीसगढ़ कार्यक्षेत्र : शिक्षक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविता...
आजादी के दीवाने
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आजादी के दीवाने

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** आजादी का ये पावन क्षण, तश्तरियों में सज नहीं आयी है, रणबांकुरे रहे और भी, सबने मिलजुल लड़ी लड़ाई है। बांके चमार, मातादीन भंगी, ये भी आजादी के दीवाने थे, नाक में दम कर रखा फिरंगियों के,ऐसे ये परवाने थे। सिद्धू संथाल और गोची मांझी,युद्ध कला में थे निपुण, ताड़ पेड़ पर चढ़ तीर चलाये, अंग्रेजों ने भी माना गुण। नाहर खां और उदईया, गोरों के थे कट्टर विरोधी, फांसी पर चढ़ गया उदईया, धूल थी माटी की सोंधी। चेतराम जाटव, बल्लू मेहतर को, इतिहासकारों ने भूला दिया, हुए कुर्बान देश की आन में, गोली से जिन्हें मार उड़ा दिया। झलकारी बाई के रण कौशल ने, अंग्रेजों को हैरान किया, हमशक्ल लक्ष्मी की थी वीरांगना, नहीं कोई गुणगान किया। उदादेवी पासी चिनहट युद्ध की, बलिदानी नारी योद्धा थी, छत्तीस गोरों को गोली से भूना, आजादी ...
चाँद मेरा बेदाग है
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चाँद मेरा बेदाग है

महेन्द्र साहू "खलारीवाला" गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** ए चाँद, जरा मेरे इस चांँद को देख। है तुझसे भी ज्यादा कमसिन हसीं।। तुझमें तो दूर से दाग नजर आता है, मेरा चाँद तो बिल्कुल बेदाग है।। ए दागदार चाँद, नजर मत डाल, मेरे इस मासूम से चाँद पर। सामने इसके तू कुछ भी नहीं, मुझे गुरुर है, मेरे इस चाँद पर।। भोली सी सूरत, लबों की लाली सुनहरे रंग लिए कानों की बाली रेशम से केश, हो जुल्फों की बदली, चाल इनकी बेहद मस्त मतवाली।। इनकी रंगत, इनकी संगत सुहाना सफ़र है, मेरा चाँद, मेरी जिंदगी का हमसफर है।। तू बस घूम रहा है, यूंँ बादलों में इर्द-गिर्द मेरा चाँद तो मेरे पास नजरें जमाए बैठी है।। मेरे इस चाँद को देख कर, फलक भी शरमा जाए।। फूलों सी नजाकत लिए हैं, चाँद मेरा देवबाला नजर आए।। नख-शिख-रुप, अखियांँ नूरानी, वो है मेरी सजनी, पगली, दीवानी।।...
पृथ्वी बनी
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पृथ्वी बनी

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** पृथ्वी बनी, उस पर पर्वत बने ताकि पृथ्वी लुप्त न हो जाए फिर पर्वत पर पर्व बने ताकि संस्कृति नष्ट न हो जाए। मनु बने, शतरूपा बनी ताकि सृष्टि रची जाए सृष्टि पर फिर भाव बने ताकि सृष्टि नष्ट न हो जाए। भाव बने, ग्रंथ बने ताकि संस्कृति बढ़ती जाए संस्कृति से सब सभ्य बने ताकि सृष्टि उन्नत हो जाए। मानव ने फिर महल रचे ताकि सभ्यता नष्ट न हो जाए युगों-युगों तक बहे प्रेम की धारा ताकि मनु की रचना बच जाए। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की क...
आंखें
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आंखें

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** किसी के लिए नहीं रोता है दिल शरारत है सिर्फ इन आंखों की कहीं दिल है रोता, कहीं यह है हंसता शिकायत है सिर्फ इन आंखों से। दर्दो जिगर को संभाले तो कोई शिरकत है सिर्फ इन आंखों की जज्बातों पर काबू करे ना करे कोई मजबूरी है इन आंखों की आंखों के समंदर में डूबे न कोई साहिल का यहां ठिकाना नहीं है। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से ज...
होली
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होली

रामेश्वर पाल बड़वाह (मध्य प्रदेश) ******************** गिर गया झुमका सैया की ठिठोली में बड़ा मजा आया अबकी होली में सहेली का संग छोड़ सैया संग खेली में बड़ा नशा आया अबकी होली में। सैया ने पकड़ी मोरी कलाई रंगों की बौछार गालों पर छाई भीगी मोरी चोली में शरमाई सैया ने नहीं छोड़ी मोरी कलाई गिर गया झुमका दोनों की ठिठोली में बड़ा मजा आया अबकी होली में। सैया ने मारी भर भर पिचकारी मोरा अंग अंग रंग डाला छुपाया था अंग वह भी रंग डाला कहीं लाल कहीं पीला कहीं काला कर डाला गिर गया झुमका न जाने किस की झोली में बड़ा मजा आया अबकी होली में। ढूंढ ढूंढ झुमका में हार गई रे सैया की ठिठोली मुझे मार गई रे नहीं मिला झुमका रंगों के बाजार में बड़ा मजा आया रे होली के त्यौहार में। परिचय :-  रामेश्वर पाल निवासी : बड़वाह (मध्य प्रदेश) विधा : कविता हास्य श्रृंगार व्यंग आदि।...
विश्व गुरु भारत
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विश्व गुरु भारत

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** आचार विचार सत्य सही और मन संकल्पित चरम। राज पथ नाम बदलकर कर्तव्य-पथ पर चलते हम। गांधी का भारत छोड़ो, नेताजी चलो दिल्ली शीघ्रम। कर्तव्य पथ वतन से ही हटाई गई मूर्ति जॉर्ज पंचम। नेताजी सुभाष चंद्र बोस हमारे,अमर हैं वंदे मातरम। वैश्विक महामारी कोरोना में देश देखे अदभुत कदम। विकसित देशों का दुनिया ने भी टूटते देखा है भरम। गुणवत्ता प्रधान दवा समुचित सेवा सहयोग निश्चयम। अन्य राष्ट्र से पुरातन वस्तु वापसी विरासत का धरम। वंदे-भारत ट्रेन सेवा की सौगात देश को वंदे मातरम। डिजिटल क्रांति इंटरनेट डेटा जैसे कई सारे लक्षणम। आतंकवाद पत्थरबाज कश्मीर में अमन चैन शरणम। पांच सदी कानून जंग से राम मंदिर अयोध्या प्रसादम। अमृत महोत्सव वर्ष घोषित चौबीस रामलला दर्शनम। भारतमाला परियोजना से सड़क नेटवर्क वंदे मातरम। दमदार दहाड़ते देश विरोधी का अब...
स्वतंत्रता दिवस मनाएँ हम
कविता

स्वतंत्रता दिवस मनाएँ हम

शैलेन्द्र चेलक पेंडरवानी, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** स्वतंत्रता दिवस मनाएँ हम, वीरो के गुण गाये हम, दासता मिटाने जान गवां दिए जो, उन पर बलि - बलि जाएं हम, स्वतंत्रता ... थी कभी सोने की चिड़िया, सजी-धजी सी इक गुड़िया, फूट डालकर फिरंगियों ने, लगा दी दासता की बेड़ियां, अब बेड़ियाँ तो टूट गए, पर भाईचारा छूट गए? आओ मिलजुलकर अमन फैलाये हम, स्वतंत्रता ... चुनौती हर दशक में नया-नया, कभी गरीबी होती नही बयां, कभी आधुनिकता के अंधे, भ्रष्टाचार-घूसखोरी धंधे, कुछ नेक बंदे हैं, कुछ राजनीति वश गंदे है , गंदगी दूर भगाए हम, स्वतंत्रता ... रोजगार की मारामारी है, कहीं कालाबाजारी है, किसान मजदूर हो चला, उनकी विवशता लाचारी है, नई सोच से सबके हित, स्वरोजगार सृजाएँ हम, स्वतंत्रता ... सीमा पर युद्व विराम नही, सेना को आराम नही, पड़ोसी नासमझ, न समझे तो, चुप रहना काम ...
मनुष्य
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मनुष्य

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** यदि मनुष्य हो, मनुष्यता को अपनाओ धर्म अधर्म, रंग रूप, के भेदभाव को छोडो ईश्वर की श्रेष्ठतम रचना हो, श्रेष्ठ बनकर दिखाओ! स्वयं के ज्ञान चक्षु को खोलो, धर्म की ध्वनि को पहचानो, निकल पडो इस दुरूह पथ पर पथिक बनकर, वहीं रुकना, मनुष्य की परिभाषा ढूँढने, जहां वो मिलेगा जीवों के रूप में, जो नहीं होगा घृणा, द्वेष, ईर्ष्या से संचित, वहीं मिलेगी परिभाषा तुम्हें मनुजता की, निश्चल प्रेम, स्नेह, करुणा भक्ति और बहुत कुछ, अज्ञानता के बोझ से निकल कर शाश्वत सत्य को पहचानो, यदि मानव बन मानवता को समझ सके, तो लौट आना परिपूर्ण बन अपनी उसी कुटिया में, जहाँ मिलेगा ईश्वर, अल्लाह, खुदा, हंसता-मुस्कराता, निश्चल प्रेम से सराबोर जीवों के रूप में तब कह देना तुम, सृष्टि की श्रेष्ठतम रचना हो मनुष्य के रूप में!...
कथा आजादी की
कविता

कथा आजादी की

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** दो शतकों तक देश में रहकर मिटा न पाए जिसकी हस्ती भारत ही वह पुण्य धरा है जन-जन के जो हृदय में बसती।। लॉर्ड कैनिंग से जनरल डायर तक लूट रहे थे सब धन को पर तोड़ न पाया फिर भी कोई देश प्रेम भरे मन को।। सर्वस्व निछावर करने बैठे माँ के थे वो सच्चे लाल और झुका न पाया कोई फिरंगी उनके गर्वित, उन्नत भाल।। राजगुरु, सुखदेव, भगत और लाल, बाल या पाल सभी डटे रहे वो महासमर में कि गौरव वसुधा का न घटे कभी।। बहते लहू पर वतन की मिट्टी जोश दिलों में जगा रही थी देश प्रेम की ज्वाला मन में आजादी का भाव जगा रही थी।। जलियाँवाला बाग की घटना रोक न पाई इंकलाब को आँखों ने जो देख रखा था स्वतंत्र देश के पुण्य ख्वाब को।। आंदोलन की सतत आँधी ने अंग्रेजों की नींव हिला दी असहयोग और भारत छोड़ो ने उनको नानी याद दिला दी।। क्रांति का पर...
वीर शहीदों को नमन
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वीर शहीदों को नमन

महेन्द्र साहू "खलारीवाला" गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** खून से लथपथ भीगकर, सह गए गोरों के अत्याचार। जुबां पर फिर भी एक ही नाम,जय हिन्द की पुकार।। रानी लक्ष्मी, दुर्गावती, अवंतिका, झलकारी ने ललकारी। मां भारती की धरा पर ऐसी वीरांगना थी दमदार।। आजाद, बोस, भगत, गुरु, सुखदेव, अशफ़ाक थे तेज तलवार। दासता की बेड़ी तोड़ने, आज़ादी के दीवानों की थी भरमार।। तन-मन-धन सब वार दिए, झेल गए गोलियों की बौछार। नमन है उन वीर शहीदों को, कोटिशः नमन है बारम्बार।। फांसी पर झूल गए हँसकर, भारत माता के लाल। हँसकर शीश कटा गए, झुकने न दिए हिन्द के भाल।। वीर शहीदों के साहस से, मिली है हमें आज़ादी। ऐसे वीर शहीदों का है, हम सब पर उपकार।। परिचय :-  महेन्द्र साहू "खलारीवाला" निवासी -  गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित कर...
मेरी माटी, मेरा देश
कविता

मेरी माटी, मेरा देश

नवनीत सेमवाल सरनौल बड़कोट, उत्तरकाशी, (उत्तराखंड) ******************** कश्मीर तेरी, कन्याकुमारी तेरी, उत्तर-दक्षिण सब है तेरा तिरंगा लहराऊं सबसे पहले होगा मांगलिक दिन जब तेरा।। स्वतंत्र यहां अभिव्यक्ति है, बाईस इसकी शैली हैं, स्वदेशी पवित्र है लहू तेरा, धारा विदेशी मैली है।। माटी है मेरी, देश है मेरा, अभिमान मेरा, गर्व मेरा, करते क्यों नहीं जयघोष तेरी विचार उनसे पूछता हमारा।। ध्वज संहिता सीखाती हमें, लहराओ चाहे, चाह जितनी, ढंग तुम्हारा बताए मान का, माटी के प्रति श्रद्धा कितनी।। स्वीकार सबकी पुकार है, ललकार किसी की स्वीकार्य नहीं, भारत का दामन उज्ज्वल हो? प्रश्न यही आज विचार्य है।। परिचय :-  नवनीत सेमवाल निवास : सरनौल बड़कोट, उत्तरकाशी, (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानिय...
अच्छी आदत सब अपनाएं
कविता

अच्छी आदत सब अपनाएं

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** अच्छी आदत हर दम अपने, जीवन में अपनायें। पा आशीषें वृद्ध जनों की, जीवन सफल बनायें। सूरज से, पहले जग जाना, प्रातः काल नहाना। गुरु जागें, तुम उनसे पहले, रोज-रोज, जग जाना। पूजा-पाठ, संग गृह कारज, जो, जीवन में करते। उनसे प्रभु प्रसीद होते हैं, खुशियाँ दामन भरते। गुरु पद सेवा, मंदिर जाना, जीवन में अपनायें। दुनिया देख,न विचलित हों हम, प्रभु से खैर मनायें। मात-पिता की सेवा करना, है अति प्यारी आदत। साक्षात भगवान समझना, सच्ची यही इबादत। दीन दुखी की सेवा करना, उनमें हिम्मत भरना। सबसे अच्छी आदत जग में, सब की सेवा करना। सेवा से,मन निर्मल होता, मैल दूर हो जाता। निर्मल मन जिसका हो जाता, वही प्रभु को पाता। लें संकल्प, सदा जीवन में, हम शुभ काम करेंगे। दीन-दुखी सबके जीवन में, उर आनंद भरेंगे। अ...
खपरैल में हीरे जड़े हैं
कविता

खपरैल में हीरे जड़े हैं

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** मेंरे घर के खपरैल में हीरे जड़ें हें, क्या बताऊँ वो मेरी महनत की कमाई से चढ़े हें ! दफ्तर में बैठकर हवा नहीं खाई साहब, उनमें मेरे पसीने के कतरे पड़े हैं। उनके बंगले की छत लाखों की हें मगर मेरे घर के साये भी, मेरे लिये महंगे बड़े हैं। आप भी क्या दे सकोगे आपके बच्चों को सु:ख बरसात में तिरपाल लेकर सारी रात हम खड़े हें महंगि बहुत हैं मेरे घर की, यह कच्ची जमीन क्या कहूँ जिसमें मेरे अनगिनत आंसू पड़े हैं। हौसलों से हैं खड़ी दीवारें मेरे घर की जनाब बल्लियों पर चारों तरफ टाट के फट्टे चढ़े हैं। किसी बड़े होटल से भी, महंगे निवाले हें मेरे जिनको पाने के लिये, कीचड़ में मेरे कपड़े भिड़े हैं। क्या मोल लगाओगे मेरे बच्चों की, एक मुस्कान का ये आपकी दिखावटी मुस्कान से, बिल्कुल परे हैं। मेंरे घर के खपरैल में हीरे जड़े हैं, ...
यह कैसी है आजादी?
कविता

यह कैसी है आजादी?

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** नारी घर से निकल नहीं सकती, शातिर भेड़िये ताक रहे। उल्लू और चमगादड़, देकर संदेश कोटर से झाँक रहे।। सुख-चैन और नींद को छीनने, गली-गली घूमते हैं पापी। बेटियाँ सुरक्षित नहीं है भारत में, यह कैसी है आजादी? कोई दहेज के लिए प्रताड़ित होकर, जल रही हैं आग में? जुल्म और सितम को सहना, लिखा है नारियों के भाग में।। कम उम्र में ही कर दी जाती है जोर-जबरदस्ती से शादी। बेटियाँ सुरक्षित नहीं है भारत में, यह कैसी है आजादी? शराबी पति शेर बन दहाड़ रहे, पत्नी को समझकर बकरी। दुःख के पलड़े में झूल रही जिंदगी, नरक की तौल-तखरी।। व्याकुल मन की चीख-पुकार अब खोल रही द्वार बर्बादी। बेटियाँ सुरक्षित नहीं है भारत में, यह कैसी है आजादी? प्राचीन काल से ही गौरव नारी हुई थी शोषण का शिकार। अब दुर्गा बन कलयुगी दानव महिषासुर का करो संहा...
आजादी पाने को
कविता

आजादी पाने को

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** आजादी पाने को देशवासियों की ताकत कभी नहीं थी डगमगाई देश की खातिर लड़ने को देशवासियो ने क्रांति बढ़ाई आजादी की एकता आई देशवासी लड़े आजादी की लम्बी लड़ाई।। देश की खातिर मर मिटने की देशवासियो ने हिम्मत बनाई हौसले बढ़ाकर लड़ने की देशवासियों ने सचमुच कसम खाई और लडने की ताकत दिखलाई।। देश के हर कोने में जागरूकता देशवासी ने खूब फैलाई गुलामी की लड़ाई में बुनियाद मजबूत बनाई कंधा से कंधा मिलाया देशवासियों में नया जोश आया आश्चर्यजनक हिम्मत आई मन मस्तिष्क बाजुओं में गुलामी से मुक्त होने की अटल जिद्द चली आई अंग्रेजो के खिलाफ कमजोर नहीं कामयाबी की राह मजबूत बनाई।। गुलामी से आजादी पाने की कूट -कूट भरी थी अद्भुत शक्ति कठिन डगर कठिन सफर थी वो घड़ियां चारो पहर समस्या थी तमाम विचारधारा थी देशवासियों में समान ...
चुप्पी तोड़नी होगी
कविता

चुप्पी तोड़नी होगी

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* हमें चुप्पी तोड़नी होगी उन लोगों के लिए जो झोंक दिए जाते हैं सांप्रदायिकता की आग में, जिन्हें धर्म के नाम पर तो कभी भाषा के नाम पर कभी क्षेत्र के नाम पर लड़ाया जाता है . जो लगातार उपेक्षित हैं विकास की दौड़ में जो कैद है अंधविश्वास की जंजीरों में जिनकी आंखों में बंधी है अज्ञानता की पट्टियां जिनकी आंखों में गुम हो रहे हैं सपने जिनकी स्वपनहीन आंखों में भर दी गई है नफरतें हमें चुप्पी तोड़नी होगी उन लोगों की जो दबंगों के आगे चुप है उंची नीच की दीवारों में बंद है हमें चुप्पी तोड़नी होगी उन कन्या भ्रूण के लिए जो मार दी जाती हैं गर्भ में उन बेटियों बहू और माताओं के लिए जो हो रही है शिकार मानसिक-शारीरिक प्रताड़नाओं और अपने परायों से बलात्कार की हमें चुप्पी तोड़नी होगी सभ्यता संस्कृति ...
मेरी गजलों में तेरे गुनाहों का हिसाब होगा
कविता

मेरी गजलों में तेरे गुनाहों का हिसाब होगा

नरेंद्र शास्त्री कुरुक्षेत्र ******************** मेरी गजलों में तेरे गुनाहों का हिसाब होगा। दर्द मेरे जख्मों का होगा तेरा अल्फाज होगा।। तेरी बेवफाई पर कई सवाल उठेंगे । भरी महफिल में मैं तुझे दोषी बनाऊंगा।। न तेरे पास फिर इसका कोई जवाब होगा। मेरी गजलों में तेरे गुनाहों का हिसाब होगा।। यह बेरुखी यह अकड़पन सब धरी रह जाएंगी। बस याद मेरी तुझे रात भर सताएगी।। अकेले में मेरा तकिया भी न तेरा हमराज होगा। मेरी गजलों में तेरे गुनाहों का हिसाब होगा।। हम तो नजाकत और सब्र के सागर में डूबे हैं। बता तूने कब मनाया है जब भी हम रूठे हैं।। मरते दम तक भी तुझसे मनाए जाने का ख्वाब होगा। मेरी गजलों में तेरे गुनाहों का हिसाब होगा।। बस और ज्यादा जख्मों को कुरेद कर क्या कहूं। अब कलम श्याही के तौर पर मांगती है लहू।। जाने से पहले तेरी यादों की ओढ़नी मेरा लिबाज होगा...
बोली
आंचलिक बोली, कविता

बोली

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी बोली झिनकर भरोसा के सबो बोलहि गुरतुर बोली, कोनो कस्सा बोलहि, कोनो गुरतुर बोलहि, कोनो जहर मौहरा कस बोलहि, त कोनो नुनछुर बोलहि, पढ़हे लिखे मनखे ले मत पालव उम्मीद, के गाबेच करहि मीठ-मीठ गीत, पढ़ेच होय ले का होही, जात के गरभ म अतका घमंड हे जागतेच रइही कभू नई सोही, एक ठीन बेरा रहिस रिस्ता नता अनुसार सबो मीठ बोलय, मीत मितान मन तो गोठियाय के पहिली मुंहे म सक्कर ल घोलय, फेर आज सब नंदावत हे, गियां, महापरसाद ल छोड़ संगी दाई, ददा, भाई तक ल भुलावत हें, कहां गइस मया अउ कहां गइस दया, आज सबो हे सुवारथ खातिर सिरिफ बासी खया, सत ल बताय बेरा चिचियाथें, अउ मीठ बोली म चेता के धमकाथें, मोला तो कोनो नई दिखत हें बिन सुवारथ के मीठ बोलवा, बोली के दोस नई हे आज सबो एके रद्दा म रेंगत हें ब्यवह...
भारत का इतिहास
कविता

भारत का इतिहास

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** कभी हम भारतवासियों ने एक, सपना देखा था,चंद्रमॉं पर तिरंगा फहराना, ये भारतीयों का सपना आज पूर्ण हुआ। तेईस अगस्त दो हजार तेईस संध्याकाल। चंद्रयान-तीन चॉंद के धरातल पर आया। भारत में चहुंओर और खुशियां लाया। भारतवासियों के उर अपार आनंद छाया। भारत में नव इतिहास रचाया। सकल विश्व में भारत का सिर गर्व से ऊंचा करवाया। आज अतीत में देखा स्वप्न पूर्ण हुआ। इसरो के वैज्ञानिकों का महत्वपूर्ण योगदान, इन सभी को देते भारतीय हार्दिक बधाई। सारे विश्व को चौका दिया दक्षिण ध्रुव पर, विक्रम को कुशलतापूर्वक पहुॅंचा कर। अब तो हम चाॉंद पर झंडा फहराकर, जन-गण-मन राष्ट्रगान गाऍंगे, राष्ट्रगीत वंदेमातरम गाऍंगे। जय हिंद,जय हिंद गाऍंगे। भारत विश्व गुरु कहलायेगा। भारत की सफलता से हम सब हर्षाऍंगे। हम सभी भारतवासी उ...
रक्षाबंधन
कविता

रक्षाबंधन

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** रिमझिम सावन की है फुहार, रक्षाबंधन की है पावन त्यौहार। सज-धज कर अब भाई बैठे है तैयार, बहना बंधेगे राखी और मिलेगे उपहार।। प्रेम-प्यार स्नेह संग खुशियां मिले अपार, रक्षाबंधन अटूट विश्वास आशीष और दुलार।। कच्चे धागे बांध प्रीत की है संचार, पावन सा है राखी का त्यौहार।। जिनकी नही है बहना वो दुखी है अपार, सावन की झड़ी और भाई- बहन का प्यार।। राधा की उम्मीद और कान्हा का प्यार, मुबारक हो आप सभी को रक्षाबंधन का त्यौहार।। परिचय :-  डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रका...
सावन की घटा
कविता

सावन की घटा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पहले सावन की संध्या आंचल प्रसार रही रजनीगंधा वृक्षों के झुरमुट में खगवृद बोलत पी पुकारते मधुर स्वर में गाते। दामिनी दमक रही चम्पई शाम है पहले सावन के घीर आऐ मेघा है लहर रही मंद पवन जैसे कुछ गाती नीलकण की बौछारें सहम-सहम जाती। कन्दुभी वर्ण सजा मेघ के भाल पर नाच रहे गा रहे मयूर मधुरताल पर तरु, तड़ाग पल्लवित है चंपई शाम आ रही पहले सावन की घटा बार-बार छा रही।। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इं...