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कविता

लगता ये मन भी पागल है
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लगता ये मन भी पागल है

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** तेरे मौन से तड़प उठा हूॅ, हृदय आज फिर-से घायल है। रूप की प्यासी ॲखियों संग- लगता ये मन भी पागल है। जाने क्या तुझमें भाषित है, प्रिये-कल्पना कुछ शासित है; अन्यमनस्क तुझको देखा हूॅ, भाग्य, प्रेम पर फिर हासित है! कैसे खुद को समझाऊॅ मैं, छिना प्रेम का ज्यों ऑचल है। रूप की प्यासी ॲखियों संग- लगता ये मन भी पागल है।। उच्च भाल पे शिकन पड़ी है, भौंह बीच इक बूॅद जड़ी है; स्वर्णहार गलहार- सुशोभित, कीर-नासिका-नथन-लड़ी है; कर्णफूल हैं लटके जैसे- श्रवणद्वार पे इक सॉकल है। रूप की प्यासी ॲखियों संग- लगता ये मन भी पागल है।। 'दृढ़-छरहरी, सुन्दरी-काया, रंग-ढंग की मोहक-माया; खुला-केश करधन तक बिखरे.. जैसे नाग-मणि की छाया'; अब ना श्रद्धा इन बातों में- बिछिया-चुप, मुखरित-पायल है। रूप की प्यासी ॲखियों संग- लगत...
बेटी
कविता

बेटी

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** मेरे जीवन की प्रथम कविता १६.०४.२०२० बेटा और बेटी तराजू के दो पलड़े हैं, बेटी प्रकृति का वरदान है, बेटी प्रभात की किरण की मुस्कान है, बेटी ना होती तो दुर्गा पूजा कहां होती, बेटी तू दुर्गा है बेटी वृषभान दुलारी है, बेटी जनक नंदिनी है, बेटी मीरा भक्ति का वरदान है, बेटी कृष्ण की कर्मा है, बेटी लक्ष्मीबाई तलवार की धार है। बेटी तो प्रतिभा की खान है, बेटी इंदिरा है बेटी विलियम हे, बेटी शक्ति है बेटी साहस हे, बेटी ममता ललिता और रमन है। बेटी तो मां की आत्मा और पिता के दिल का टुकड़ा है, बेटी बिन जग अधूरा है। बेटी ज्योति है बेटी दाऊ है बेटी ममता की छांव है, बेटी आँगन मे पायल की झंकार है, बेटी लाल चुनरी में दीपक का प्रकाश है, बेटी आयु है बेटी निधि है, बेटी तो आंगन में तुलसी सी बहार है। बेटी किरण की मुस्कान है,...
क्रोध क्षमा की म्यान
कविता

क्रोध क्षमा की म्यान

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** शब्द लघु हैं गुस्सा क्षमा, व्यापक है प्रभाव। एक म्यान में एक का, चलता है स्वभाव।। द्वंद्व इनमें ना रहे, गुण विशेष का ताज। अति दोनों की है बुरी, गुम हो जाती लाज।। सटीक व्याख्या क्रोध की, करना हो श्रीमान। भिन्न स्वरूप जांचिए, बहुत जरूरी ज्ञान।। गलत सदा अवमानना, जिद चले प्रतिकूल। छोटे बड़े काज जहाँ, वृहद लघु भी भूल।। बिन गलती या डांट से, ना पले व्यवहार। अनुशासन के नियम ही, देते हैं संस्कार।। जब गलती खुद आपकी, होता क्रोध फिजूल। अन्य किसी पर थोपना, अवश्य रहे निर्मूल।। संत ऋषि मुनि गण सभी, दिखलाते आवेश। सुंदर भविष्य के लिए, समय समय आदेश।। दुर्वासा परशुराम का, तप बल ही वरदान। खूबी बगैर क्रोध का, अनुचित है अरमान।। त्रेता युग में ’राम’ का, सागर से अनुरोध। अवमानना पयोधि की, तब भड़का था क्रोध।। करते रहो ...
हम भी क्या सोचे
कविता

हम भी क्या सोचे

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" आमला बैतूल (मध्यप्रदेश) ******************** कोई तो होगा इतना वफा करे क्यों, वो बेचैन रहे हरदम हम भी क्या सोचे। इतना भी करे कोई मिलने को तरसे, आस उनकी भी रही हम भी क्या सोचे। ऐसी लागी उनसे लगन अच्छा हुआ, मिलने को आतुर हुए हम भी क्या सोचे। जहां में इतना तो कोई प्यारा होगा, मोहब्बत क्यों उम्मीद करे हम भी क्या सोचे। सलोनी सी सूरत क्या ऐसे देंखे, मनचले से पूंछो तो कोई हम भी क्या सोचे। ये समां कोई जलाए भी तो ऐसे, परवाना पूंछे क्या उनसे हम भी क्या सोचे। चांद के पार चले जाना तो कोई, रुक ना जाए राहों में हम भी क्या सोचे। वो आए भी क्या इस तरह जहां में, सोचा हमने भी ऐसा सही हम भी क्या सोचे। कोई तो होगा अपना अब प्यारा, खिलौना हो गया सपना हम भी क्या सोचे। 'दीया' ने क्या दिया जिसे दिया जब, आस के भरोसे मांगे सिर्फ हम भी क्या सोचे। ...
क्या वो दिन आयेंगे …?
कविता

क्या वो दिन आयेंगे …?

विश्वम्भर पाण्डे "व्यग्र" गंगापुर सिटी (राजस्थान) ******************** मैं सदियों से शोभा थी तेरे आंगन की तू सजाता/सॅवारता/बचाता आया दुनियां के हर संताप से पर, आज मैं खरपतबार समझ, आंगन से हटा दी गई जैसे जन्म से पहले नष्ट कर दी जाती बिटिया और बिसार दी गई 'वो रीति' दकियानूसी समझ। मेरा स्थान पा लिया है अब उन गंधहीन 'कैक्टसों' ने जिन्हें, तू पाल रहा है, आज सुपुत्रों की तरह, जो दे नहीं सकते, तुझे सुवास, सिवाय काँटों के। मैंने तुझे पहचान दी तेरी बचाई जान जिसे तू जानता और जानता विज्ञान पर हाय! इस बात को तू कब समझेगा? हटाकर कटीले झाड़ मुझे फिर से आंगन में रोपेगा! सच बता, क्या वो दिन आयेंगे?? जब मैं आंगन में, तेरे लहलहाऊंगी और एक बिटिया की तरह सुखद अहसास कराऊँगी... परिचय :-  विश्वम्भर पाण्डे "व्यग्र" निवासी : गंगापुर सिटी (राजस्था...
आस्तीन के सांप
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आस्तीन के सांप

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हमारे देश में वैसे तो हर तरह के सांप पाये जाते हैं, सामने आ जाये तो डर से मारे जाते हैं या भगाये जाते हैं, सांप तेजी से डसते हैं, इसलिए लोग इससे बचते हैं, पर दुनिया का सबसे खतरनाक सांप आस्तीन के सांप होते हैं, इससे रूबरू होने से कोई नहीं बचते हैं, ये हर पल आपके साथ रहेंगे, साथ सुख दुख सहेंगे, मगर अपना असली रंग ये तब दिखाता है, जब कोई खास मौका आता है, ये किसी को भी डस सकता है, डस कर ये भागता नहीं बल्कि सबको स्पष्ट नजर आता है, तब आप झुंझलाने के सिवा कुछ भी नहीं कर सकते, इसका गर्दन या पूंछ कुछ भी नहीं धर सकते, वैसे तो इनसे बचकर रहना चाहिए पर बच नहीं पाएंगे, आप संगठन वाले हों, मिशन वाले हों इनसे बिल्कुल बच नहीं पाएंगे। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ...
परायापन
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परायापन

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक एक शब्द तुम्हारा भेद़ गया। मन की कोमल दीवारों को मां के भाव शूलसे चुभ गए क्षण भर में स्तब्ध रह गई मस्तिष्क अवरुद्ध हो गया। एकाएक मन ने जागृत किया झकझोरा मुझे कहा उसने सच है, सही तो कहा उसने तुम, तुम पराए हो तू मुढ हो इस जग में। भावुक, विक्षिप्त होते हैं वह लोग जिन्हें वेअपना कहते हें। और जगहमें पराया कहता है शायद यही अति, श्रुति, रीति है जगती की।। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं...
वह पद और मद में चूर हो गए
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वह पद और मद में चूर हो गए

अरविन्द सिंह गौर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** वह पद और मद में चूर हो गए। उनको लगा वह मशहूर हो गए।। गर सच्चाई कुछ और ही निकली आज वह अपनों से ही दूर हो गए।। वह पद और मद में चूर हो गए। जो कहते थे कि मन है उसका कोयले से भी काला आज उनकी नजर में भी वह कोहिनूर हो गए।। वह पद और मद में चूर हो गए। "अरविंद" कहे वक्त नहीं रहता सबका एक सा वक्त की मार से वह भी चकनाचूर हो गए। वह पद और मद में चूर हो गए। परिचय :-  अरविन्द सिंह गौर जन्म तिथि : १७ सितम्बर १९७९ निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश) लेखन विधा : कविता, शायरी व समसामयिक सम्प्रति : वाणिज्य कर इंदौर संभाग सहायक ग्रेड तीन के पद में कार्यरत घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ह...
कितने क्यों मौन हो
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कितने क्यों मौन हो

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** कितने क्यों मौन हो क्या आती नही अभिव्यक्ति ? या फिर जाती नही अब भी अहम भक्ति ? छोड़ दो न छंदों अलंकारों को कम से कम करो न आत्म अभिव्यक्ति। या फिर जाती नहीं अब भी शकी अभिव्यक्ति ? हिंदू हिंदुस्तान की शान है थोड़ा तो सम्मान रख लो आता नहीं रस तो भाव ही अभिव्यक्त कर लो या फिर आती नहीं भाव की अभिव्यक्ति भी? परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी र...
कौन हूँ मैं….?
कविता

कौन हूँ मैं….?

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** कौन हूँ मैं.....ऐ जिंदगी तू ही बता, थक गया हूँ मैं खुद को ढूँढते-ढूँढते I अब कोई ख्वाहिश नहीं पालता मन में, विरक्ति हो गई है नित एक ही ख्वाब बुनते-बुनते I सुनता हूँ जीवन में फूल भी हैं, काँटे भी हैं, मेरा जीवन बीत गया काँटे ही चुनते-चुनते I तानों कलंकों के बीच, जिंदगी से हारा नहीं हूँ मैं, लोगों की चुभती बातों से, धैर्य टूट जाता सहते-सहते I किसी से शिकायत नहीं अपनी व्यथा पर, मुझे चले जाना है दुनिया से यूँही चलते-चलते I ऊपरवाला भी व्यथित होगा मेरी नियति पर, रो रहा होगा, मेरी करुण-वेदना सुनते-सुनते I परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
पल दो पल की साँसें तेरी
कविता

पल दो पल की साँसें तेरी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** नाजुक बड़ी, साँस की डोरी, आओ इसे सम्हालें। टूटेगी कब, पता नहीं कुछ, जल्दी मंजिल पालें। पल दो पल की साँसें तेरी, पल दो पल की काया। छोड़ जगत सबको जाना है, कहाँ कोई रुक पाया। पानी कैसा बना बुलबुला, यह मानव तन तेरा। जीवन नहीं हमेशा तेरा, है पल भर का डेरा। आया है जो, वो जाएगा, स्थिर नहीं ठिकाना। सदा लगा रहता दुनिया में, सबका आना-जाना। दुनिया रैन बसेरा तेरा, क्यों इतना इतराता। प्राण पखेरू कब उड़ जाए, पता नहीं चल पाता। करता है गुमान तू भारी, अपनी देख जवानी। नाम शेष रह जाता जग में, रहती शेष कहानी। धन-वैभव, माया में उलझा, भूला दुनियादारी। चार दिवस का जीवन तेरा, चलने की तैयारी। पूजन भजन किया नहिं तूने, रहा जवानी सोता। बुला रहा दर्प में हरदम, पछताए क्या होता? छोड़ सकल जंजाल जगत के, प्र...
वो वीरानी वो तन्हाई वो गुमनामी
कविता

वो वीरानी वो तन्हाई वो गुमनामी

अनन्या राय पराशर संत कबीर नगर (उत्तर प्रदेश) ******************** हिज्र तक़दीर नहीं वस्ल का वा'दा भी नहीं हम ने खोया भी नहीं आप को पाया भी नहीं अब वो वीरानी वो तन्हाई वो गुमनामी है अब कोई मुझ से है वाबस्ता तमाशा भी नहीं कभी मुस्काए कभी रोए तिरी यादों में बिन तिरे मैं ने कोई लम्हा गुज़ारा भी नहीं वो न जाने क्यों मोहब्बत का गुमाँ रखने लगा मेरी जानिब से अभी ऐसा इशारा भी नहीं ख़ुद को दीवाना मिरा सब को बताता है मगर मेरा दीवाना मिरे नख़रे उठाता भी नहीं मेरी तन्हाई मुझे और दिखाएगी भी क्या अब मिरे आसमाँ में एक सितारा भी नहीं डूब जाना ही मुक़द्दर हुआ जाता है क्या अब मयस्सर मुझे तिनके का सहारा भी नहीं चारागर फिर तू बने क्यों है मसीहा सब का मेरे ज़ख़्मों का तिरे पास मुदावा भी नहीं दिल के सहरा को 'अनन्या' जो बनाए गुलशन ख़ुश्क आँखों में वो शादाब नज़ारा भी नही...
सूत्र
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सूत्र

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** खबर बनाना और बेचना खबरचियों और चैनलों का शानदार और कमाऊ धंधा है, इस धंधे में प्रॉफिट बहुत है धंधा बिल्कुल नहीं मंदा है, पहले की बात और थी पर आज खबरें बनाये जाते हैं, झूठ को सच का जामा पहनाये जाते हैं, पैसे देकर खबरें बनवाये जाते हैं, वक़्त आने पर उसे भुनाये जाते हैं, तब पत्रकार बन जाते हैं पत्तलकार, पत्रकारिता बन जाता है व्यापार, इनके सूत्र होते हैं मजबूत, जिसका होता नहीं वास्तविक वजूद, सूत्रों का नाम ले दिखा जाते हैं चरित्र, एक ही थैली के चट्टे बट्टे होते हैं सारे मित्र, कभी कभी सूत्र होते हैं विश्वनीय, असल में जो होते हैं निंदनीय, ये खुद को कहते हैं लोकतंत्र का चौथा खंभा, जिसे ये अपने कर्मों से साबित कर कमाने लग जाते हैं हरे रंग की अम्मा, अब बताओ सूत्र फर्जी खबरों का आधार नहीं हो सकता, सूत्र...
मैं भी मतलबी दोगला स्वार्थी हूं
कविता

मैं भी मतलबी दोगला स्वार्थी हूं

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** बड़े बुजुर्गों की कहावत सच है कि हाथी के दांत दिखाने खाने के और हैं मेरी पोल खोलना मत मैं भी मतलबी दोगला स्वार्थी हूं बड़े बुजुर्गों की कहावत है कि एक उंगली दूसरे पर उठा तीन उंगली ख़ुदपर उठेगी मैं भी दूसरों पर उंगली उठाता हूं पर तीन उंगलियां का मैं दोषी हूं मैं भी मतलबी दोगला स्वार्थी हूं अपने संस्था के प्रोग्राम में मुख्य अतिथि एसपी की पत्नी जज़अधिकारी को बुलाता हूं उनमें मेरे कई बहुत काम फ़सते हैं मैं भी मतलबी दोगला स्वार्थी हूं मैं खुद प्राकृतिक संसाधनों का अवैध दोहन कर शासन को चुना लगाता हूं अधिकारियों के हाथ गर्म करता हूं मैं भी मतलबी दोगला स्वार्थी हूं हर गलत काम जो अवैध करता हूं समाज में सफेदपोश बनकर रहता हूं नामी संस्था का संस्थापक हूं मैं भी मतलबी दोगला स्वार्थी हूं यह सब बाते...
हां हूं मैं मूर्ख
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हां हूं मैं मूर्ख

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हां हूं मैं मूर्ख, नहीं होता गुस्से में मेरा मुंह सूर्ख, बचपन से लोग कहते रहे हैं और आज भी कह रहे हैं, लगभग सबने ये घोषित किया है, घर से लेकर बाहर वालों तक ने ये वास्तविक शब्द मुझे दिया है, सच कहने की क्षमता शायद मूर्खों में ही होती है, सच्चाई के पीछे भागना और साफ हृदय का होना ही अहमकता की निशानी है, मां,भाई,बहन और पड़ोसी सभी इस बात पर एक राय हैं, समाज के लोगों ने भी माना, सामाजिक चिंतन करते देख यार दोस्तों ने भी पक्का जाना, कुरीतियों,पाखंडों,अंधविश्वास, अतिवादिता का विरोध, समझदार व्यक्ति कर ही नहीं सकता, समयानुसार जल रहे आग में अपना पांव धर ही नहीं सकता, कभी कभी तो लगता है कि मेरी बीबी बच्चे भी मेरी इस महानता को दिल की गहराई से स्वीकारते होंगे, अब तो मुझे भी लगता है कि मैं सचमुच ही मूर्ख ब...
हमारी हिंदी
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हमारी हिंदी

अर्चना लवानिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हिंदी है हमारी राष्ट्रभाषा पर दुख भरी है इसकी गाथा। हिंदी भाषी अक्सर समझ जाते अनपढ़, विदेशी भाषा बोलने वाले दिखाते अकड़। हिंदी दिवस महज एक पर्व। हिंदी बोले और लिखा तो आ वे शर्म। अपनी मातृभाषा का युवा करते तिरस्कार, गैर भाषा के सीखे सारे अचार विचार। आओ कुछ यूं करें कि हिंदी का बड़े मान, यह वेद ऋचाओं की वाणी मुनियों का है ज्ञान। रस छंद अलंकारों का इसमें है भंडार, अंतर मन के सारे भावों का है यह अनुपम आधार। सहज सरल सुंदर मीठी सी मां की ये है लोरी, बचपन यौवन इसके आंचल में पलते हैं सारे हमजोली। हिंदी हमारे अस्तित्व का मजबूत है धागा, हिंदी हमारी सिरमौर और गौरव की है गाथा। हिंदी बिन हम प्राण ही और भाव शून्य से, येहमारी सो,च कल्पना, उत्साह और जीवन की परिभाषा। शपथ लेते हैं रहेंगे सदा इसके रक्षक, बोलचाल और कामकाज सब हिंदी ...
मैं और वह
कविता

मैं और वह

अंजली सांकृत्या जयपुर (राजस्थान) ******************** मन पिशाचः बुद्ध: शिकार: शांत: अशांत: प्रण: अहिंसा धर्म: अहिंसा कर्म: अहिंसा मन: शांति हेतु उद्देशित भला दृश्यित है. हैवान मैं छुपा शैतान हूँ दिखावटी हूँ, मौन मैं दिल में दबी, बात हूँ ... संकी हूँ, आवारा मैं फिर कहीं, शांत मैं धूप मैं, छाव मैं छाव दबी धूप मैं, हू बारिश विचारो की, बादलो मे छुपी आवाज मैं, हूं अग्नि मैं, तपस्या मैं इक छलावा हूं, दिखावा मै हू स्वार्थ मैं, दबा राज हूँ बर्फ सी, जुबान मैं तितली सी, बात हूँ ... मैं कौन हूँ, मैं मौन हूँ, मैं द्वन्द्व मे, मैं अन्तर्द्वन्द्व हूँ मैं सृष्टि का विचार , मैं मन का विकार, मैं कौन हूँ मैं मौन हूँ मैं अशांत हूँ मैं शांत मैं !!!! परिचय :- अंजली सांकृत्या निवासी : जयपुर राजस्थान  आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ह...
भारतीय भाषाओं की रानी हिंदी
कविता

भारतीय भाषाओं की रानी हिंदी

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** साठ प्रतिशत जनता भारत की बोल रही है हिंदी सर्वाधिक जन द्वारा भारत में फूल रही है हिंदी कंप्यूटर पे खरी उतरी उसका साथ निभाती है हिंदी प्रत्येक ध्वनि का पृथक चिह्न है जो बोलें,सो लिखती है हिंदी आज विदेशों में भी फलीभूत है हिंदी भारत की तो है ही फिजी,गयाना माॅरिशस में भी गाई जाती है हिंदी म्यांमार, भूटान, नेपाल, सिंगापुर इंडोनेशिया, युगांडा,यमन त्रिनिदाद, थाईलैंड, न्यूजीलैंड सहित लगभग पच्चिस देशों में 80 करोड़ की आबादी बोल रही है हिंदी सबका करती सम्मान है हिंदी विकासमान भाषा है हिंदी संपर्क में आई हर भाषा के शब्दों को अपनाती है हिंदी हर भाषा का सम्मान करें हम शीर्ष पर रखें हम हिंदी।। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमा...
हिंदी हिंद देश की भाषा
कविता

हिंदी हिंद देश की भाषा

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** हिंदी हिंदी देश-भाषा, हिंदी हैं हमारी मातृभाषा, हिंदी हैं हमारा मान, हिंदी हैं हमारा स्वाभिमान। हिंदी हैं हिंद देश की शान। हिंदी हैं हिंद का मान। हिंदी हैं हिंद देश की राजभाषा। हिंदी है हिंदी की सर्वोत्तम एकमात्र भाषा। सकल विश्व में सर्वोपरि हैं,हिंदी भाषा। हिंदी वर्णमाला आरंभ होती 'अ' से अनपढ़। हिंदी वर्णमाला अंत होती 'ज्ञ' से ज्ञानी। हिंदी हैं हर जन-जन की भाषा। आओ-आओ हम सब मिलकर, हिंदी भाषा का सम्मान करें। हर जन बोले हिंदी भाषा, हर जन पढ़ें हिंदी भाषा, हर जन लिखें हिंदी भाषा। हिंदी हिंद देश में उन्नति करें नित, हिंदी भाषा से ही हिंद देश विकास करें। हिंदी भाषी हम हिंदुस्तानी हैं। हिंदी भाषा ही हमारी जुबान हैं। हिंदी भाषा हिंद देश में अनेकता में एकता, हिंद देश में विविध भाषाओं ...
हिंदी का उत्थान करोगे …
कविता

हिंदी का उत्थान करोगे …

राम बहादुर शर्मा "राम" बारा दीक्षित, जिला देवरिया (उत्तर प्रदेश) ******************** हिंदी है इस देश की भाषा, सर्वाधिक है बोली जाती, किंतु विडंबना यह आज भी, क्षेत्रीयता में तोली जाती। पूछता हूँ, देश के कर्णधारों से, क्या राष्ट्रभाषा का ऐसा ही सम्मान करोगे? कैसे हिंदी का उत्थान करोगे? पिचहत्तर साल व्यतीत हो गए, पाये अपनी आजादी को, किंतु कभी क्या सोचा तुमने, गौरव देना है हिंदी को। अपनी अंग्रेजी सोच का तुम, जो नहीं कभी बलिदान करोगे, कैसे हिंदी का उत्थान करोगे? माँ को मम्मी डैड पिता को, चाचा ताऊ अंकल हैं, चाची बन कर आंट घूमतीं, देसी के ऊपर डंकल हैं। गैरों पर अपनों से बढ़कर, जब ऐसा अभिमान करोगे, कैसे हिंदी का उत्थान करोगे? भारतेंदु को भूल गए तुम, भूले तुम मीरा दिनकर को, सूर कबीर तुलसी को भूले, बस याद रखा तो मिल्टन को। हिंदी के गौरव को भुला, क्या इनका...
हिंदी की अभिलाषा
कविता

हिंदी की अभिलाषा

मानाराम राठौड़ जालौर (राजस्थान) ******************** मैं राष्ट्रभाषा बन जाऊं सभी के मुंह पर खिल खिलाऊ। यह मेरी प्यारी भाषा सभी को सीखने की अभिलाषा। जिसमें मैंने सीखें न ट ख ट इसमें बात करता झ ट प ट। गोपन मन को दे दी भाषा हिंदी मेरी प्यारी भाषा। इसको कबीर ने अपनाया मीराबाई ने मान दिया। आज़ादी के दीवानों ने इस हिंदी को सम्मान दिया। भारत की आशा है हिंदी मेरी प्यारी भाषा है हिंदी। आओ हिंदी में पढ़े-लिखे करें काम सारे हिंदी में। जिसका सौंदर्य एक बिंदी में यह मेरी प्यारी भाषा। सभी को सीखने की अभिलाषा परिचय :- मानाराम राठौड़ निवासी : आखराड रानीवाड़ा जालौर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचि...
हिंदी की कहानी
कविता

हिंदी की कहानी

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** अंग्रेजी बोलने वाले भी अपने घर में हिंदी बोला करते हैं इसमें मानहानि नहीं होती। कहने वालों की जुबानी नहीं होती वरना भारत में हिंदी की कहानी कहां नहीं होती। हमारा दिल हिंदी के लिए नहीं धड़कता तो दुनिया हिंदी की दीवानी यहां नहीं होती। कामयाब तो हुई थी अंग्रेजी यहां अंग्रेजों के राज में हिंदी का कुछ बिगाड़ नहीं पा। हिंदी दिल से निकलती हैं व दिलों तक पहुंचती है बोलने वालों की नादानी नहीं होती। हिंदी भारत की संस्कृति मे रची बसी है इसलिए हिंदी ही हमारी असली पहचान है, अंग्रेजी बोलने वाले भी अपने घर में हिंदी बोला करते हैं इसमें मानहानि नहीं होती। संतान गर्भ में हिंदी सिखती हैं गर्भ से बाहर आके पहले मां का उच्चारण करती है। भारत माता की संतान हिंदी बोलने वाली है हिंदी बोलने वाले में बदगुमानी नहीं होती।...
हिन्दी हूँ मैं
कविता

हिन्दी हूँ मैं

शकील अहमद शेख़ 'नीलकंठ' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हिन्दी हूँ मैं हिन्दी में पला हिन्दी में बढ़ा हिन्दी को सुना हिन्दी में सोचा हिन्द में जन्मा, हिन्दी हूँ मैं... हिन्दी को बोला हिन्दी को लिखा हिन्दी को पढ़ा हिन्दी को पढ़ाया हिन्द में जन्मा, हिन्दी हूँ मैं... हिन्दी को बढ़ाया हिन्दी को बनाया हिन्दी को चाहा हिन्दी को सराहा हिन्द में जन्मा, हिन्दी हूँ मैं... हिन्दी भारत माँ की बिन्दी है भाषाओं में श्रेष्ठतम हिन्दी है सदा ही यह प्रकाशित रहे, हिन्दी के लिए प्रभु से विनती है हिन्द में जन्मा, हिन्दी हूँ मैं... परिचय :- शकील अहमद शेख़ 'नीलकंठ' निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आ...
हिंदी है पहचान हमारी
कविता

हिंदी है पहचान हमारी

निरूपमा त्रिवेदी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हिंदी हिंदजन का है ललित अलंकरण हिंदी भाषा का है वृहद-समृद्ध व्याकरण हिंदी सरस-सरल सम्मोहिनी शक्ति हिंदी है सहज स्वाभाविक अभिव्यक्ति शब्दों-अर्थों में है भावों का रस माधुर्य हिंदी घनवन मन मयूर-सा करता नृत्य हिंदी सूर-तुलसी के वात्सल्य की मिठास हिंदी हैं देवभूमि का मधुर मधु-सा उल्लास हिंदी महादेवी का विरह सुभद्रा का ओज गीत हिंदी राष्ट्र गौरव आओ बने हम इसके मीत कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक सूत्र में बांधती फिर क्यों न वाणी हमारी इस सच को स्वीकारती हिंदी शिव के डमरू से निसृत स्वरों का ज्ञान हिंदी है पहचान हमारी हिंदी हिंद का है मान परिचय :- निरूपमा त्रिवेदी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
खुदगर्जी
कविता

खुदगर्जी

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** गिर रही है न ये जो आसमा से तड़फती बूंदे कभी तुम इनसे मज़ा लेते हो तो कभी ये डुबकर तुम्हारे अस्तित्व को मज़ा लेती है। बह रही है न ये नदियाँ कभी खुद बहती है अपनी ही मस्ती में तो कभी तूफ़ान बन तुम को बहा ले जाती है समुंदर में। बर्फ से ढके है न जो ये पर्वत कभी तुम इनका आरोहण करते हो तो कभी ये दबा देते हैं तुम्हारी जिद्दी शख्सियत को। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सक...