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कविता

हम सभी है मौज़ में
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हम सभी है मौज़ में

डॉ. रमेशचंद्र मालवीय इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज हम सभी हैं मौज़ में क्योंकर जाएं हम फ़ौज़ में। सबको अपने-अपने सुख की चाह है सबकी अपनी मंज़िल, अपनी राह है देश पर मर मिटने वाले तो कोई और थे आज किसको अपने देश की परवाह है इंसान स्वयं अपनी खोज़ में आज हम सभी हैं मौज़ में। इस समय जो उठ रही है दूर आंधी न किसी ने रोकने की है पाल बांधी सभी अपने आपको समझ बैठे खुद़ा अब न कोई आएगा फिर से वो गांधी मानवता रो रही है रोज में आज हम सभी हैं मौज़ में। किस किस से मांगने जाएंगे न्याय छल, कपट, धोखा, फरेब़, अन्याय न सुनी जाती पुकार किसी की यहां है ग़रीब़ी, मुफ़लिसी न कोई उपाय ईमान जा गिरा है हौज़ में आज हम सभी हैं मौज़ में। परिचय :- डॉ. रमेशचंद्र मालवीय निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
मजबूत इन्सान
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मजबूत इन्सान

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पर, पगडंडी पर पड़े पतछड के कोलाहल में किसी की अस्पष्ट आवाज़ सुनाईं दी पिछे मुड़कर देखा, कोई नहीं था। सोचा मेरा भृम होगा आगे चली, फिर दखा कोई नहीं था । फिर कोई बोला पिछे मत देखो आगे चलो, बढ़ो मंजिल अभी दूर है आत्म विश्वास, साहस, साथ, सामिप्य मैं तुम्हें दुंगा मैं मन हूं तुम्हारा। अकेलापन, सन्नाटे, तुफान से। लड़ना सिखों, बढ़ो आगे। पिछे मुड़ना कायरता हैं और तुम कायर नही मेरे साथी मजबूत इन्सान हों पथ चाहे कैसा भी हो उसे सुगम बनाओं। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत ह...
महादानव
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महादानव

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** जीवित नहीं मुर्दे हो तुम महानगर के महामानव नहीं महादानव हो तुम। अपने मतलब के लिए बनाते हो हर किसी को अपने ख्वाबों का परिंदा फिर कहते हो अब भी मैं हुँ सब में जिंदा। शर्म कर्म बेच कर अपनी दो टके के लोगों को कहते हो सब को किरदार मेरा है अब भी सबसे उम्दा। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिय...
जानवर हमसे बात करते हैं
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जानवर हमसे बात करते हैं

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** हर एक जीव हमसे बात करते हैं उनके मासूमियत से भरे चेहरे हमसे बात करते हैं, उनकी अठखेलियाँ, उनका भोलापन हमसे रुबरू होते हैं नहीं समझ पाता जो कोई उनकी पीड़ा, उनकी वेदना उसकी सिसकी भरी आंहे वो सब तकलीफें हमसे बाटना चाहते हैं,! उनको नहीं समझ आता इंसानी भेष का मुखौटा इंसानी आक्रोश, इंसानी आतंक उनके भयभीत चेहरे हमसे बात करते हैं , जो सह पाऊँ उनकी पीड़ा की तपिश वही मेरे यज्ञ की आहुति होगी पूजा, हवन, अराधना तभी मेरी पूरी होगी!! नहीं पहनना चाहती आधुनिकता भरी, भारी भरकम पोशाक जिसमें इन्सानियत, मानवता दम तोड़ने लगे, उनका निश्चल प्रेम, उनका निःस्वार्थ अपनापन मुझे इंसानी पाठ पढ़ाते हैं, जीवों के हर रूप मे बसे ईश्वर ... हमसे बात करते हैं!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति :...
सड़क दुर्घटना
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सड़क दुर्घटना

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** सफर में तुम भी हो, सफर में मैं भी हूँ। नजर में तुम भी हो, नजर में मैं भी हूँ।। जिंदगी की गाड़ी चल रही आराम से, अकेले तुम भी हो, अकेले मैं भी हूँ।। रफ्तार में तुम भी हो, रफ्तार में मैं भी हूँ। मुसाफिर तुम भी हो, मुसाफिर मैं भी हूँ।। सबको पहुँचना है जल्दी अपनी मंजिल, मदहोश तुम भी हो, मदहोश मैं भी हूँ।। सड़क में तुम भी हो, सड़क में मैं भी हूँ। गाड़ी में तुम भी हो, गाड़ी में मैं भी हूँ।। सड़क दुर्घटना में हो गई जनता की मौत, खबर में तुम भी हो, खबर में मैं भी हूँ।। मसान में तुम भी हो, मसान में मैं भी हूँ। राख धुआँ तुम भी हो, राख धुआँ मैं भी हूँ।। जीवन कीमती है, ध्यान से चलाओ गाड़ी, क्योंकि मानव तुम भी हो, मानव मैं भी हूँ? परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल...
मकर संक्रांति
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मकर संक्रांति

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** भारत त्योहारों का देश है अनोखा अति मतवाला। पग-पग पर यह तो नित खुशियां बिखेरने वाला।। रौनक है,नाच-गान और मस्तियों के मेले हैं। सारे उमंग में भरे हैं, कोई भी यहां नहीं अकेले हैं।। कहीं सूर्य नारायण के उत्तरायण होने का पर्व है। तो कहीं मतवाले पोंगल पर हो रहा सबको गर्व है।। कहीं लोहड़ी का हो रहा सच में व्यापक सम्मान है। तो कहीं नदी स्नान से पावनता की बढ़ी आन है।। संक्रांति सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का उत्सव है। तो भांगड़े की तान पर थिरकता हुआ मानव है।। खिचड़ी का स्वाद है, तो तिली के लड्डू का जलवा है। बिखर रहा भाईचारा, प्रेम, नहीं किसी तरह का बल्ला है।। आकाश में छाई है आकर्षक पतंगों की निराली छटा। नदियों के किनारे लगे झूले, भरे मेरे, है सुंदर घटा।। दान-पुण्य के प्रति व्यापक अनुराग...
यूँ बन जाती है कविता
कविता

यूँ बन जाती है कविता

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** शब्दों का मीठा टुकड़ा मुस्काता मनभाता मुखड़ा धुँधली यादों में खोया मन रोता रहा जीवन का दुखड़ा जलता रहा अलाव तपता.... यूँ बन जाती है कविता.... मन एक तपिश बढ़ी पवन में कशिश बढ़ी तन कुछ कह न सका मन वह सह न सका बिन धुंवे रहा सुलगता..... यूँ बन जाती है कविता.... घाव मौन सिसकते रहे अरमान यूँ बिखरते रहे कुछ कहे,कुछ अनकहे झरने प्रेम के बहते रहे अंदेशा तूफ़ान का रहा बढ़ता... यूँ बन जाती है कविता.... काग़ज़ की नाव ही सही भाव नफ़रत के ही सही बहाने बनते बिगड़ते रहे पर डोर तो जुड़ी ही रही रंग प्राची नभ रहा चढता..... यूँ ही बन जाती है कविता.... आस अभी मन से छूटी नहीं चल रही सांसे भी टूटी नहीं चिंगारी को ज़रूरत हवा की आग भड़कने से रूकती नहीं पर रूख हवा का रहा पलटता... ऐसे ही बन जाती है कव...
नशे से नाश
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नशे से नाश

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** नशे से नाश विनाश, नशे से सर्वनाश मत करो नशा, मत रहो नशे के पास।।१।। पूछो उनसे, जो करते नशे, नशे में कूदे खोए धन समृद्धि सम्पत्ति, नशे से डूबे।।२।। जो रहे नशे में चूर, पड़ता असर है सुदूर बुरी आदतें नशे की, नशे में होते चूर चूर।।३।। नशे से हानियाँ, पारिवारिक परेशानियां नशे के प्रचलनों की बढ़ रही कहानियां।।४।। नशे को रोकने में बढ़े विचार, रुके नशा अविलंब करें प्रयास, रुके समाज मे नशा।।५।। नशे के लत में पड़े वे लोग, दुःख रहे भोग अशान्ति में घिरकर लगाए लूटने के रोग।। ६।। समाज में कोई भी करे नशा, मत करो गुस्सा समझाओ सिखाओ, दिखाओ बनाओ अच्छा।।७।। नशे से घटती स्थिरता आत्मविश्वास साहसिकता घुटुनभरी जिंदगी में नशेड़ियों बनकर जीवन जीता।।८।। नशे के कारण अक्सर बढ़ते है, जगह जगह अपराध नशेड़ियों को...
आ जाओ तिरंगा के नीचे
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आ जाओ तिरंगा के नीचे

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** सम्मान की लड़ाई बाद में लड़ते रहना पहले अपनी जान बचाओ, जुबानी जंग भी लड़ो और जरूरत पड़ने पर हथियार भी उठाओ, इन मीठे बोलने वालों के झांसे में मत आओ, चंद सिक्के खातिर दरी न उठाओ, जिंदा रहे तो मिलेंगे अपने अनुसार जीने के हजार तरीके, दिमाग लगाओ, समाज की गंदगी मिटाओ, सबसे अच्छा तरीका है समाज से पाखंड को हटाओ, विश्वास तो करके देखो कि बिना अंधविश्वास शानदार जिंदगी जी सकते हो, मन मस्तिष्क को साफ रख लोगों को मानसिक गुलामी क्या है बताओ, इससे होने वाली पीढ़ीगत नुकसान गिनाओ, क्यों भागना किसी धूर्त के पीछे, उनका काम ही है पाखंड परोसना तो उनसे ऊपर उठ ले आओ उन्हें कदमों के नीचे, एक जुट होने के लिए काफी है एक सर्वमान्य ध्वज तिरंगा, जिसके नीचे सुरक्षित रहेगा आन, बान, शान और रह पाएंगे जिंदा, क्योंक...
महाकुंभ पावन प्रयाग में
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महाकुंभ पावन प्रयाग में

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** पावन पूर्ण कुंभ की बेला, बड़े भाग्य से आई। खुशी अनोखी जनमानस के, अंतस में है छाई। महाकुंभ पावन प्रयाग में, दिव्य छटा लाया है। द्वादश पूर्ण कुंभ जब बीते, तब अवसर पाया है। बारह पूर्ण कुंभ होने पर, महाकुंभ आता है। यह केवल प्रयाग में आता, जन-जन हर्षाता है। गंगा जमुना सरस्वती का, संगम तीर्थ कहाता। मिट जाते सब पाप मनुज के, जो जन यहाँ नहाता। धन्य धरा पावन प्रयाग की, लगा कुंभ का मेला। महाकुंभ की छटा निराली, यहाँ मनुज का रेला। सभी तीर्थ आते प्रयाग में, धन्य भाग्य भारत के। पाप ताप संताप मिटाते, दीन दुखी औरत के। जिनके दर्शन सुलभ नहीं वे, साधु संत आए हैं। जिनकी प्रभु में परम आस्था, भक्त स्वयं आए हैं। गंगा तट की शोभा सुषमा, मुख से कहीं न जाती। लख सौंदर्य प्रयागराज का, इंद्रपुरी शर...
सिंदूरी  सूरज
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सिंदूरी सूरज

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** सुहानी सी ढलती शाम नजरें टिकी थी अस्त होते सूरज पर खोया खोया सा मन कैसे खोजूं चढते भानु की दैदीप्यमान अरूणिमा गरिमा की द्योतक से उभरता मन ललचाता वो लाल रंग कहाँ नजर आ रहा था तमतमाता भास्कर आँखे चुंधियाते चमचमाते दिवाकर का वो सुनहरा रंग बस नजर आ रहा है दिन और दोपहर के रंगों का मिश्रण धुंधला धुंधला सा निस्तेज मगर फीकी फीकी लाली लिए क्षितिज में डूबते सूरज का सिंदूरी रंग बना गया सूरज को सिंदूरी सूरज....! परिचय :- छत्र छाजेड़ “फक्कड़” निवासी : आनंद विहार, दिल्ली विशेष रूचि : व्यंग्य लेखन, हिन्दी व राजस्थानी में पद्य व गद्य दोनों विधा में लेखन, अब तक पंद्रह पुस्तकों का प्रकाशन, पांच अनुवाद हिंदी से राजस्थानी में प्रकाशित, राजस्थान साहित्य अकादमी (राजस्थान सरकार) द्वारा, पत्र...
वास्तविक रहस्य
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वास्तविक रहस्य

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** गली-गली फिरती युवती बन राधा प्रेम भयो न कोई। गली-गली फिरते संत बन योगी ध्यान मग्न न कोई। गली-गली फिरते साधक बन तपस्वी चिंतन करत न कोई। गली-गली फिरते ज्ञानी बन सुविज्ञ आत्मज्ञान करत न कोई। गली-गली फिरते अनुरागी बन कृष्ण आत्म समर्पण करत न कोई। गली-गली फिरते नायक बन योद्धा आत्म द्वंद्व करत न कोई। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं,...
माँ
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माँ

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** लुका छिपा सा माँ का प्रेम, अति गहरा माँ का है प्रेम, परछाई सा लुकाछिपा, सूरज सा उजला हे प्रेम, वृक्ष सी गहराई इसमें, फूलो सी महकाई इसमें, स्तब्ध गगन आकाश सी व्यापक व्यापक व्योम सितारों सी चमक, शान्त चित्त वो प्रेम की मूरत, घर को स्वर्ग बनाती माँ है। सतयुग द्वापर त्रेता कलयुग, हर युग मे प्रेम परीक्षा माँ है, कभी देवकी कभी यशोदा, कभी कौसल्या सी परीक्षा माँ है। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "साहित्य शिरोमणि अंतर्राष्ट्रीय समान २०२...
लहरा गए तिरंगा
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लहरा गए तिरंगा

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** वो थे वीर साहसी निडर देश के असंख्य पुरुष महिला अनगिनत देश के नौजवान।। मर मिटे गए वो खुद हुए थे लहूलुहान बढ़ाते ही गए शक्ति समन्वय बढाये अपने देश का सन्मान।। बिछाया था जाल देश की खातिर मरने मिटने का देश की मिट्टी में झलकाये थे वे कमाल।। गुलामी की जंजीरें तोड़करलहरा गए वो भारत का प्यारा तिरंगा।। विश्वभर में भारत की गुलामी से मुक्त कर बचा गए वो मचा गए वो दिखा गए वो साहस और शक्तिवे थे भारत के वीर शान।। वे बजा गए खुशियों का मधुरिम डंका वे थे देश की रक्षार्थ सच्चे नोजवान।। परिचय :- ललित शर्मा निवासी : खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) संप्रति : वरिष्ठ पत्रकार व लेखक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
सरहद का दीपक
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सरहद का दीपक

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** इस देश का दीपक हर सेनानी सरहद पर बैठा हर सेनानी जगमग करता भारत को नमन करें हम उस दीपक को। भारत का बच्चा बच्चा ऋणी बना उस दीपक का जो बर्फ की चादर पर बैठा तीन सौ पैंसठ दिन जलता। न केवल मात पिता का दीपक न वो अपने दादा का कुलदीपक वो भारतमाता का दीपक है वो हर उर का जलता दीपक है। सैनिक अपना रखवाला है हर घर का वो उजियाला है उसके साहस से इस रज का कण-कण होता प्रज्ज्वल है। सेना का दीप जो बुझ जाए तो देश नहीं बचने वाला देश पे हमला हो जाए तो सैनिक नहि झुकने वाला। शिवरात्रि होली और दिवाली हम उनके बल पे मानते हैं जो सेना पर प्रश्न करे वो कालिक ख़ुद अपने मुंह पे लगाते हैं। भारतमाता के दीपक से अपना मस्तक ऊँचा है उनके आगे हम नत्मस्तक हैं वो भारत की सरहद के दीपक हैं वो भारत की सरहद के दीपक हैं। ...
रद्दी का मोल
कविता

रद्दी का मोल

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बचपन से शौक था उसे पढ़ने का, नई इबादत गढ़ने का, हरपल आगे बढ़ने का, हर परिस्थिति से लड़ने का, मगर समय निकलता गया, चुनौतियां आता गया नया, वो अड़े थे बड़े पद के ख्वाब में, ठसक आ चुका था रुआब में, नहीं अपनाया चाह से कोई छोटा पद, जेब भी अब नहीं कर रहा था मदद, थक हार कर बन गया बाबू, मगर दुनिया का चलन हो चुका था बेकाबू, समझौते कर परिस्थितियां कबूला, किताबों को भूला, अब उन्हीं ज्ञान भरी किताबें को मन नहीं कर रहा था रख सहेजने का, निर्णय ले लिया उस रद्दी को बेचने का, ले गया उसे एक किशोर खरीददार, जिन्हें था किताबों से असीम प्यार, और लग गया मन लगाकर पढ़ने, समय लगा गुजरने, चार साल बाद वह किशोर आया सामने, फूल माला दे सब लगे हाथ थामने, पहचान उसने उस बाबू को बोला समय ने मेरा इम्तिहान लिया, ...
एक दिन एक “बूंद”
कविता

एक दिन एक “बूंद”

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** स्वयं के अस्तित्व को आजमाने महासागर को छोड़ चली उसे दुनिया मे भ्रमण करना था दुनिया देखना था बड़ी ही प्रसन्नता से इधर-उधर, स्वतंत्रता का आनंद उठाने लगी धीरे-धीरे अकेलापन उसे सताने लगा उसे महासागर की याद आने लगी वो सोचने लगी, कैसे वापस जा पाऊँगी कितना विरोध किया था महासागर ने मेरे अकेले निकलने का, उसका जीवन नारकीय गंदगी से गुजरता हुआ बड़े कष्ट से बीतने लगा! जब भी उसकी जीवन मे चुनौतियां आतीं उसे महासागर की बहुत याद आती महासागर से मिलने की उसकी तीव्र इच्छा होने लगी वो बहुत हताश और उदास रहने लगी एक दिन सूरज बहुत तेज गरम था सूरज की तेज रोशनी ने उसे ऊपर उठा दिया, बहुत ऊपर बादलों के पास से और भी बूंदो क़े साथ नीचे फेंक दिया, बूंद को बहुत दर्द अनुभव हुआ वो एक नदी में गिरी, कई दिनों...
आओ मिलजर मनाएं मकर सक्रांति
कविता

आओ मिलजर मनाएं मकर सक्रांति

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** पौष जाए माघ आए शीत की छटा बह आये मकर सक्रांति पर खुशियाँ घर घर आये।। घरपरिवार में तिल गुड़ चिड़वा मुड़ी लाये मकरसक्रांति पर्व की खुशियाँ तनमनमे छाए।। मकर सक्रांति पर्व है ऐसा दान धर्म स्नान भाये वस्त्र अन्न बर्तन कम्बल का दानपुण्य बढ़ जाए।। तीर्थों में आनाजाना, मकर सक्रंति पर्व बताये भारतवर्ष के हर कोने में, मकरसक्रांति मनाए।। नदियां कुंड तालाब पोखरे में ठंडे जल से नहाए मकर सक्रांति पर्व की परंपरा की रीत निभाए।। दही चिड़वा घेवर खानपान में आनंद खूब लाये एक संग में शीत की लहर में अलाव को जलाए।। आसमान की रौनक चारो तरफ यह पर्व महकाये रंग बिरंगी लाखों पतंगों को उड़ाने की मस्ती लाये।। मकर सक्रांति माघ महीने का है दान धर्म का पर्व परंपरा को परम्परागत निभाये, सन्देश सब फैलाये।। आओ हम सभी प्...
छेरछेरा : दान के परब
आंचलिक बोली, कविता

छेरछेरा : दान के परब

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता झटकुन सूपा म, धान देदे, झन कर तंय बेरा। माँगे महूँ आए हँव टूरी ओ, छेरछेरा-छेरछेरा।। ए ओ नोनी, फईका ल खोल दे। देबे के नहीं तेला बोल दे।। कोठी ल झाँक ले। मोर मन ल भाँप ले।। काठा-पैली भर हेर-हेरा। माँगे महूँ आए हँव टूरी ओ, छेरछेरा-छेरछेरा।। बड़े बिहनिया ले लईका मन आए। जाके घरों-घर सबला जगाए।। होगे हवन जइसे बगरे पैरा। माँगे महूँ आए हँव टूरी ओ, छेरछेरा-छेरछेरा।। एक खोंची, दू खोंची देदे मोला। सबे घर जाए के का मतलब मोला।। मन के बात बताहूँ, तोर मेरा। माँगे महूँ आए हँव टूरी ओ, छेरछेरा-छेरछेरा।। मुँह ल सुघ्घर तंय धोले। रात के बासी ल पोले।। मोला भीतरी कोती बला ले। तोर कोठी म मोला चघा ले।। जादा लालच नइहे, मोला थोरा। माँगे महूँ आए हँव टूरी ओ, छेरछेरा-छेरछेरा।। परिचय : अशोक कुमार यादव निव...
देश संविधान से चलता है
कविता

देश संविधान से चलता है

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बताओ देवतुल्य अपना जहर कहां रखते हो, उड़ेल उड़ेल क्यों नहीं थकते हो, रह रह फिजां में विष घोल देते हो, माजरा समझे बिना कुछ भी बोल देते हो, अधिकार हनन बिना भी चिल्लाते हो, दूसरों का हक़ बेदर्दी से खाते हो, बचा खुचा खुरचन भी डालते हो खुरच, क्या डर नहीं लगता हो न जाये अपच, क्या जहां और देश आपके लिए बना है, हैवानियत कर क्यों सीना तना है, देखो अपना लेकर बैठे हो संपूर्ण आरक्षण, किस बात से आ रहा हीनता वाला लक्षण, कुंडली हर जगह है तो करो सबका रक्षण, कर्तव्य भूल कर रहे हो भक्षण पर भक्षण, हां आपकी पीड़ा इसलिए है कि व्यवस्थाई नियम खुद नहीं बनाये हो, अपने अनुसार व्यवस्था न होने पर बौखलाये हो, अच्छा बता दो औरों को कितना सम्मान देते हो, अस्पृश्यता की नजर रख इम्तिहान लेते हो, आपके भ्रामक नजरिये ...
वल्लरी
कविता

वल्लरी

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** लिपटी हुई वृक्ष वल्लरी वृक्ष से झुककर गहन कूप के जल में अपना प्रतिबिम्ब देखकर कुछ लजाई हरित परणमे। कोमल कांति कदम्ब तले वल्लरी सब के मन को भाई पर्ण, पर्ण संग पुष्प किले हैं मंडराते भंवरे, पांखी। मदमाती सुगन्ध दिख, दिगंत में बसती मन्द पवन के झोंकों ने वल्लरी को स्पर्श किया भय नहीं थावल्लरी को क्यों, क्योकि उसे था वृक्ष, धरा का सम्बल प्यारा। झूम, झूमकर नाजती वल्लरी गाती स्वर में सरगम। उपवन में कोयल गाती संग नदियों कल, कल स्वर में गाती। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय...
शांति नववर्ष
कविता

शांति नववर्ष

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** नया साल नया पैगाम लाया नफ़रत के बगीचे में महोब्बत का गुलाब खिलाया। छोड़ चुके हैं जो हमें उनको भी हमारा मुस्कुराना याद आया। जलते हैं जो हमारे कार्य से उनको भी हमारा काबिल किरदार याद आया। हार चुके हैं जो जीवन से उनको भी अपना कोई जिंदादिल यार याद आया। थक चुके है जो निज के युद्ध से उनको भी शांति का पैगाम याद आया। नया साल विश्व शांति की अद्भुत सौगात लाया। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परि...
रफ्तार
कविता

रफ्तार

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हां थे बहुत लोग उसके बनकर या कहें सब थे गिरफ्तार, रफ्तार का था शौकीन नाम था रफ्तार, जिस अंदाज में आता था, उसी अंदाज में जाता था, कुछ लोग उन्हें देखकर ताली बजाते थे, कुछ लोग उन्हें देखकर गाली सुनाते थे, उनका अलग ही धुन था, जल्दबाजी उनका अपना गुन था, उसी रफ्तार ने उसे बुला लिया, मौत ने एक दिन नींद भर सुला दिया, जिस रफ्तार से आया था, उसी रफ्तार से चला गया, एक जिंदगी तेजी के द्वारा छला गया, वो नादान था, दुनियादारी से अनजान था, तभी तो उनका जीवन जीने का तरीका रहा धांसू, ताउम्र रहेंगे परिजनों की आंखों में आंसू। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
प्रयाग-कुम्भ
कविता

प्रयाग-कुम्भ

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** यह कुम्भ धर्म से संगम है साहित्य संस्कृति सर्जन का। उत्थान पतन चिन्तन मन्थन मन मर्दन मन संवर्धन का।।१।। आलिंगन का आलिंपन का आलम्बन का अवलम्बन का। तर्कों के खण्डन मण्डन का कचमुण्डन पिण्डन पुण्डन का।।२।। यह कुम्भ धर्म से .............।। अंजन मंजन मन रंजन का भय भंजन का दुख भंजन का। कन्दर कानन के आँगन से निकले सन्तानन पादन का।।३।। चतुरानन का पंचानन का सप्तानन और षडानन का। आवाहन का अवगाहन का आराधन का अवराधन का।।४।। यह कुम्भ धर्म से .............।। मोहन मारण उच्चाटन का भोजन भाजन भण्डारण का। चारण उच्चारण तारण का कुल कारण और निवारण का।।५।। गायन नर्तन संकीर्तन का पूजन अर्चन पदसेवन का। वन्दन अभिनन्दन चन्दन का फिर खुलकर आत्मनिवेदन का।।६।। यह कुम्भ धर्म से .............।। स्पर्शन ...
आत्मवंचना
कविता

आत्मवंचना

माधवी तारे लंदन ******************** पंचतत्व में विलीन मनमोहन मत सुनो जनता की वलगना आयु सागर में डुबकी लगा कर प्रशंसा के स्तुति मौतिक लाए ये जन बंधवा दिए इन्होंने स्तुति के पुल। दुनिया की है यह रीति पुरानी जीते जी तो करे मनमानी श्मशानभूमि पर करे वंदना स्तुतिसुमनों की उछाले रचना। विपक्ष जब खोले शब्द खजाना उम्र और पद का रखे न पैमाना संविधान की करे अवमानना जब सत्तांध का मद चढ़े सातवें आसमाना। तुष्टिकरण का चुनावी बाणा मुक्त हस्त से बांटे जन मेहनताना अर्थनीति के दम को तोड़ना देशभक्ति का पहन कर जामा। लाए उबार आप राष्ट्र कोष मौन की बहुत उड़ाई खिल्ली काम किए पर मिली न प्रशंसा जाने पर दौड़ी वाहवाही को दिल्ली। इसलिए कहते हैं कवि दुनिया की सबसे बड़ी सेवा खुद को संतुष्ट कर खुश रहना दे श्रद्धा सुमन जो दिल से उन्हें ही आप सच्चा मानना। परिचय :-  माधवी तारे वर्तमा...