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कविता

गुनाह
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गुनाह

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** ये जो गुनाह हुआ मोहब्बत का ऐसे तो नही हुआ होगा किसी से तो इश्क़ हुआ होगा। तभी गुनाह हुआ होगा मोहब्बत का। कुछ तो चाहत होगी दिल में कुछ तो अपनापन होगा मन में तभी गुनाह हुआ होगा मोहब्बत का। कुछ तो सोचा होगा दिल से कुछ तो चाहा होगा मन से तभी गुनाह हुआ होगा मोहब्बत का। कुछ तो रूह में हुआ होगा कुछ तो सुकू में खलल हुआ होगा तभी गुनाह हुआ होगा मोहब्बत का। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाच...
कारनामें नेताओं के
कविता

कारनामें नेताओं के

हितेश्वर बर्मन डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** आजकल के कुछ नेता ऐसे काम करते हैं, अपने बारे में बताना हो, तो सिर्फ अच्छाई ही बताते हैं। और जब वे दूसरे नेताओं के बारे में बात करते हैं, तो अच्छाई को भी तोड़- मरोड़ कर बुराई बताते हैं। नेताजी जनता के नजर में सिर्फ़ नेता ही होते हैं पर असल में वे पहुंचे हुये वैज्ञानिक होते हैं। कब किसके बारे में बुराई करना है, और किसको कब नीचा दिखाना है इन सब बातों के लिए वे बहुत बड़े ज्ञानी होते हैं। धनुर्धर की ताकत उसके तीर-कमान में होती है जब चाहे किसी पर लक्ष्य साध ले। नेताओं की ताकत उनकी जबान में होती है जब चाहे तब कहीं भी दंगा भड़का दे। आजकल के नेता सिर्फ नेता ही नहीं होते हैं वे एक अच्छे उन्नतशील व्यापारी भी होते हैं। पैसे लगाकर चुटकी में ओहदे प्राप्त कर लेते हैं ओहदे से पैसे को कई गुना बरकरार र...
बड़े आराम से
कविता

बड़े आराम से

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** ब्रम्हांड भी छोटा लगे माता पिता के सामने, गोल घेरा में गणेश प्रथम बड़े आराम से। पढ़ना सुनना बोलना लेखन कला सूत्र होते, मां शारदे कृपावश समर्थ बड़े आराम से। विचार सोचकर बोलने तैयार हों जब तलक, बेबाक इंसा बोल जाते हैं, बड़े आराम से। काम करने की हिम्मत जुटा पाते जब तलक, कारगुजार निपटा जाते हैं बड़े आराम से। वतन चौकसी जवानों का दुष्कर सुरक्षा दौर, कुछ भूलते हैं गर्व सम्मान बड़े आराम से। माखन मटकी रखने की दुविधा जसोदा को, नटखट कन्हैया चट करते, बड़े आराम से। दोस्ती पैगाम ऊपरी ऊपर दमदारों का शौक, सुदामा मित्र मानें द्वारकेश बड़े आराम से। परम वीर पराक्रमी आजमाते रहे शिव धनुष, शक्ति कामना से राम तोड़ें बड़े आराम से। आदिशक्ति नवरात्रि पर्व उपासना साधनारत, मनकामना पूर्ण दयारूपेण बड़े आराम से। परिचय :- वि...
स्त्री और रंग
कविता

स्त्री और रंग

माधवी तारे लंदन ******************** दुनिया की आधी आबादी की, अटल अमिट शान है स्त्री जीवन को रंगीन बनाने वाली, चिर प्रेरणादायिनी है स्त्री कभी चांद सी शीतल, कभी सूर्य सी दाहक, प्रेम इज़हारी, दंडदायिनी है स्त्री. कभी पदार्थाभाविनि, रसस्वादिनी, पाकगृह की कुशल, स्वामिनी है स्त्री शिव की शक्ति, हरि की चरण दासी, समर क्षेत्र में रणरागिणी है स्त्री संत विद्वानों की जन्मदात्री, रत्न प्रसविनी है स्त्री रंग उसका हो कौन सा भी, रस रंगहीन है स्त्री बिन जिंदगी प्रातः स्मरणीय पंच कन्याओं की स्मृति, पंच रंगयुता पाप विनाशिनी है स्त्री परिचय :- माधवी तारे वर्तमान निवास : लंदन मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट...
अकस्मात नहीं होता
कविता

अकस्मात नहीं होता

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** रिश्ते हमें मिल जाते हैं मगर यह फरिश्ते नहीं मिलते साहित्य के सफर में गर तुम्हारा यह साथ नहीं होता। फिर हमारे झुके कंधों पर किसी का हाथ नहीं होता। तुम्हारे ही शीर्षको ने साहित्य का ये जहां दिखाया है तुम्हारी बेरुखी होती तो दिल मे जज्बात नहीं होता। मेरे लिए जो दुश्वारियां उठाई मुझे इसका एहसास है दिल से दोस्ती है इसमें कभी विश्वासघात नहीं होता। रिश्ते हमे मिल जाते हैं मगर यह फरिश्ते नहीं मिलते अगर मिल जाए फरिश्ता वह जाने हयात नहीं होता। मेरे शब्दों से अगर कोई ठेस पहुंची हो तो माफ करना दिल से निकली ये दुआ से कभी आघात नहीं होता। ये तो मेरा नसीब है कि तुम्हारा यहां मुझे साथ मिला नसीब से मिला ये साथ कभी भी खैरात नहीं होता। रिश्ता हमने वजूद से नहीं तुम्हारे दिल से बनाया है दिल का रिश्ता दिल से है यह अकस्म...
जल राशि
कविता

जल राशि

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जल राशि कभी लगती मचलती सी कभी लगती उबलती सी कभी लहराती, कभी इठलाती। रवि किरणो मैं नहाती सी। किरणों से बतियाती सी क्या कहुं तुझे अगाध जल राशि अन अनेक करतब दिखाकर करती थी प्रकृति को श्रृंगारित। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है...
उनकी याद में
कविता

उनकी याद में

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** उनकी याद में ऑखें लगी, बरसात हो गई! बीते सपनों से मुझे जगा, ये 'रात' सो गई !! यही रात जो प्यासे जग की किस्से सुनती थी यही रात जो चॉदनियों में हॅस-हॅस मिलती थी यही रात कि जिसमें छत पे पायल छमके थे यही रात जो अभिसारों में खोकर रहती थी यही रात आज ऑसुओ की लड़ियॉ पिरो गईं! बीते सपनों से मुझे जगा, ये रात सो गई!! यही रात जिसमें सब-लुटकर तुमको पाया था यही रात जिसमें गीतों-से हृदय सजाया था यही रात जिसमें अम्बर में तारे बिखरे थे यही रात, रूप से तेरे, हम भी निखरे थे यही रात आज हर सुख पे संघात हो गई ! बीते सपनों से मुझे जगा, ये रात सो गई !! यही रात है जिसमें तुमको अपलक देखा था यही रात है जिसने तुमसे विधि को लेखा था यही रात में रूपवती इक सजनी सोई थी यही रात है जिसने मीठी यादें बोई थी यही रात आज विरहों-भरी इक...
प्राण का अक्षरजाल
कविता

प्राण का अक्षरजाल

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** "उठ विषज्ञ फणधर थम अञ्चल, इस ऊपर भय ऋक्ष शङ्ख दह। औघड़ कई छत्र तज आए , बढ़ डग ऐन ओढ झट अं अ:।।" अर्थात - विष के स्वाद को जानने वाले हे नागराज! रुको और उठकर सुनो। इस क्षेत्र के ऊपर जंगली रीछ, गहरे पानी के भँवर और उनमें बसने वाले शंखों का भय है। इस कारण ही कई औगढ अघोरी सन्त, जिन्हें श्मशान में भी भय नहीं लगता है वे भी अपने - अपने छत्र त्याग कर डग बढ़ाते हुए अंग वसन स्वरूप 'अं अ:' अर्थात जो न तो स्वर हैं और न व्यंजन हैं, को ओढ़कर यहाँ आ गए हैं। इसलिए तुम भी उधर मत जाओ। विशेष - ===== उक्त पँक्तियों में हिन्दी की पूरी वर्णमाला है। केवल व पर इ की मात्रा है जो शक्ति की और ङ और ञ स्वर रहित औघढ़ सन्तों के प्रतीक हैं जो अपने छत्रों को छोड़कर चले आए हैं। शेष सभी स्वर सहित व्यंजन हैं या पूर्ण स्वर हैं जो सां...
अब कोई भी गीत न होगा
कविता

अब कोई भी गीत न होगा

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** दूर न जाओ मुझसे प्रियतम! अब जीवन-संगीत न होगा! अब ना कोई कविता होगी अब कोई भी गीत न होगा! जिस प्रकृति में चित्र है तेरा वो अब कितना रिक्त रहेगा जिस पानी में दर्पण तेरा उन झीलों को कौन सहेगा जिन झरनों में कभी नहाए उनमें कैसे विम्ब भरेंगे जिन वृन्तों को छूते थे तुम वो कैसे अब हरे रहेंगे कैसे तुम्हें बताऊॅ प्रियतम! तुम सा कोई मीत न होगा! दूर न जाओ मुझसे प्रियतम! अब जीवन-संगीत न होगा।। सूने पनघट पर कब जाने गोरी तेरे पॉव पड़ेंगे अतृप्त हुए यदि मानस-हंसा कैसे उनके दिन बहुरेंगे जिन बागों की तुम्हीं मोरनी उनमें कैसे स्वर बिखरेगा जिन डालों पर कूजी कोयल उनमें कैसे बौर भरेगा कैसे तुम्हें बताऊॅ प्रियतम! तुम बिन मौसम-शीत न होगा। दूर न जाओ मुझसे प्रियतम! अब जीवन-संगीत न होगा!! शरद-चॉदनी में कब जाने ...
मेरी आस
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मेरी आस

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रवि रश्मि से लेकर शिक्षा बढ़ते रहो घने तम में तिमिर दूर होगा एक दिन तो शांति मिलेगी जीवन में। शीतल, श्वेत, स्वच्छ, अंतर मन तू जैसे चंद्र का शीतल प्रकाश जीवन रण में उज्जवल हो तुम यही एक मेरी आस। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं ...
सपने सजाये बैठा हूँ
कविता

सपने सजाये बैठा हूँ

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** दिल मे कितना बोझ लिये बैठा हूँ दिल मे दर्द के सैलाब लिए बैठा हूँ बहुत दूर तलक है अंधेरा ही मगर पर उम्मीदों की दिये जलाये बैठा हूँ अंधेरा भी मिट जायेगा एक दिन बाहरें फिर लौट आयेगी एक दिन एक दिन आयेगी रौशनी कंही से मन को अब ये समझाये बैठा हूँ रात के बाद दिन का आना तय है दुख के बाद सुख का आना तय है आयेगी नूतन किरण अब नभ से अब सूरज से नजर मिलाये बैठा हूँ अरमानो से सजी सब रातें होंगी खुशियों की नित अब बातें होंगी हर दिन होगी खुशियों का मेला मन मे यह विश्वास जगाये बैठा है कितने सपने भी अब टूट रहें है कितने अपने भी अब छुट रहें है टूटती तारों संग जाने क्यों कर नवीनतम सपने सजाये बैठा हूँ परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- ...
अंतिम संस्कार
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अंतिम संस्कार

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** नाम बदलिये अपने महत्वपूर्ण संस्कारों के साहबानों, सिर्फ मुझे पता है आपके संस्कारों के नाम पर अब तक कितना लुटा चुका हूं, अपनी जमीन भी गंवा चुका हूं, मृत्यु पूर्व इलाज कराना मेरा फर्ज़ था, मृतक के दिए जीवन का चुकाना कर्ज़ था, मृत्यु के दिन, जोर देकर सभी की उपस्थिति में आपने कहा था ये अंतिम संस्कार जरूरी है, किया मैंने अंतिम संस्कार, जिसके लिए कर दिया था और भी जरूरी कार्यों को दरकिनार, विधान कह करवा सम्पूर्ण श्रृंगार, कहा कर लो आखिरी दीदार, मिट्टी कार्य के बाद तीसरे और दसवें दिन फिर करने पड़े थे कुछ संस्कार, जिसे आपने नाम दिया है मृत्युभोज, अब तक हैरान हूं ये है किसकी खोज, गांव, परिवार, रिश्ते नाते सबको खिलाया, घर के अंतिम दाने को भी मिलाया, बड़ी मुश्किल से कुछ महीनों में जिंदगी को पटरी पर ला ...
मेरी कामना
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मेरी कामना

हितेश्वर बर्मन डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हे नारी तुम नि:संदेह बहुत शक्तिशाली हो, हजारों मर्दों की भीड़ भी तुम्हें देखकर खामोश हो जाती है। इतिहास में एक वीरांगना लक्ष्मीबाई ऐसी भी थी, जिसके सिर्फ ख्यालों से ही पूरी नारी जाति जोश में आ जाती है। हे नारी तुम बहुत ही भाग्यशाली हो, सभी व्रतों, त्यौहारों में सिर्फ तुम ही उपवास रहती हो। सभी धर्मों, परंपराओं को मर्दों ने ही बनाया है, लेकिन तुम ही परंपराओं को निभाती रहती हो। हे नारी तुझमें बहुत सहनशीलता है, तुमनें सदियों से बहुत यातनाएं झेली है। कभी सती प्रथा के नाम पर चिता में जिंदा जली है, तो कभी दहेज के नाम पर प्रताड़ना झेली है। हे नारी तुम्हारे भीतर असीम शक्ति छिपी हुई है, तुम्हें अपनी शक्ति को नये आयाम के साथ गढ़नी होगी। आज दिन पर दिन तुम पर अत्याचार हो रहें है, अपने स्वाभिमान के ...
पापा
कविता

पापा

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** लड़खड़ा कर गिरा पहली बार जब मैं, तुमने बाहें बढ़ाकर संभाला मुझे; उंगली थामी थी तुमने मेरी ज़ोर से, फिर गिरने से पहले उठाया मुझे। लड़खड़ा ...... घोड़ा बनने को जब मैंने तुमसे कहा, तुमने पीठ पर अपनी मुझको चढ़ाया; हराया था मैंने दोस्त को दौड़ में, मेरे बस्ते को तब तुमने उठाया। लड़खड़ा ...... कंटक भरी राह पर चलना सिखाया, तुमने उड़ना सिखाया सपनों को मेरे; पहचान कराया स्वाभिमान से मेरा, मेरा अभिमान हो पापा तुम मेरे। लड़खड़ा ..... मैं खड़ा जब हुआ अपने पैर पर, सोचा बोझ तुम्हारा कुछ कम करूं; तुम बोले कि मैं हूं पापा तेरा, अब मित्र बनकर सदा हम रहें। लड़खड़ा ...... आयु ने पापा को कभी छेड़ा नहीं, कंधे उनके अभी भी झुके ही नहीं; मेरे बेटे के साथ लगाते ठहाका, मैं किनारे खड़ा मुस्कुराता रहा। लड़खड़ा .... ...
बेटी
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बेटी

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** अनचाही होकर भी बेटी मन को सम्मोहित कर लेती है उसकी नन्हीं चितवन ही अनचाही को चाही कर देती है ह्रदय मर्म को छूनेवाली वही एक नारी है किन्तु भावनाशून्य पिता को वही एक भारी है बेटी न केवल पुत्री है रमा, शारदा, वह दुर्गा है बलिदान, त्याग, ममता की मूर्ति अमित सौहार्द, सहनशक्ति गृहलक्ष्मी बन असहज क्षणों में सखी-सहेली बन जाती है माँ बन वह ममता का सारा कोष लुटाती है भगिनी बनकर स्नेहसूत्र में बाँध सभी को लेती है पत्नी बन वह न्योछावर साँसें अपनी कर देती है। शिक्षित होकर वह माँ सरस्वती बन जाती है प्रश्न उठे गृहरक्षा का जब दुर्गारूप वह धर लेती है इसीलिए वरदान है बेटी मात-पिता का मान है बेटी दो कुलों की तारक है अतुल शक्ति की खान है बेटी। जयहिन्द जय हिन्द की बेटी परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी...
सुधार में पाठ्यक्रम
कविता

सुधार में पाठ्यक्रम

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** भारतीय समाज के सुधार में ... आठवीं कक्षा के पाठ आठ में ... हिंदू पुराणिक कथाओं का, व्याख्यान किया जा रहा है। सती को दक्ष की, पत्नी बताया जा रहा है। इतने से भी सुधारकों का मन नहीं भरा जब। सती प्रथा को सती से जोड़कर जोहर बताया जा रहा है। पुराणों की यह कैसी ... कथाएं बता रहे हैं। विद्यार्थियों में कैसे भ्रम उठाए जा रहे हैं। सिलेबस में इस तरह जोड़ कर पुराणों को अपनी समझ से तोल कर। शिव पुराण कथा में ... काश सती-महादेव को थोड़ा-सा टोटोल कर। सती दक्ष की पत्नी नहीं पुत्री थी। पौराणिक कथाओं को मनगढ़ंत कहानी बोल कर। भारतीय सभ्यता को हर दौर में अपनी गलतियों को सुधारने के लिए बुद्धिजीवी सुधार करते रहे। इतिहास को इस तरह से जोड़ा की सभ्यता का विनाश करते रहे।। परिचय :- प्री...
उनकी याद में …
कविता

उनकी याद में …

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** उनकी याद में ऑखें लगी, बरसात हो गई! बीते सपनों से मुझे जगा, ये 'रात' सो गई !! यही रात जो प्यासे जग की किस्से सुनती थी यही रात जो चॉदनियों में हॅस-हॅस मिलती थी यही रात कि जिसमें छत पे पायल छमके थे यही रात जो अभिसारों में खोकर रहती थी यही रात आज ऑसुओ की लड़ियॉ पिरो गईं! बीते सपनों से मुझे जगा, ये रात सो गई!! यही रात जिसमें सब-लुटकर तुमको पाया था यही रात जिसमें गीतों-से हृदय सजाया था यही रात जिसमें अम्बर में तारे बिखरे थे यही रात, रूप से तेरे, हम भी निखरे थे यही रात आज हर सुख पे संघात हो गई ! बीते सपनों से मुझे जगा, ये रात सो गई !! यही रात है जिसमें तुमको अपलक देखा था यही रात है जिसने तुमसे विधि को लेखा था यही रात में रूपवती इक सजनी सोई थी यही रात है जिसने मीठी यादें बोई थी यही रात आज विरहों-भरी इक...
झुटी मुस्कान
कविता

झुटी मुस्कान

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मन रोता है कहीं किसी कोने में कहीं तनहाई मुंह चिढ़ाती है कब तक पैबंद लगाएं झूठी मुस्कान के जिंदगी रीति-रीति बीती जाती है। कहने को बहुत कुछ है, लब खुलते नहीं देखी अपनों की जिंदगी गिरेे हुए फ़ूल उठाता नहीं कोई। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, ...
चुनाव और प्रत्याशी
कविता

चुनाव और प्रत्याशी

डॉ. रमेशचंद्र मालवीय इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मुझ प्रत्याशी की सुनो, वो तुम्हारी सुनेगा तुम एक वोट दोगे, वो दस नोट देगा। भूख लगे तो खाना खाना प्यास लगे तो पानी पीना नोट इसलिए देता हूँ कि वोट से है मेरा मरना जीना नोट के बदले वोट ही देना और कोई तुम चोट न देना। माना कि तुम वोट के खातिर अपनी अकड़ दिखाओगे बोतल-कम्बल तो दूंगा ही जो मांगोगे, वो सब पाओगे वोट चाहिए मुझे तो केवल और कोई तुम खोट न देना। पक्के घर मैं दिलवा दूंगा बिजली पानी मिल जाएगा एक वोट के बदले प्यारे जीने का सुख मिल जाएगा यह चुनाव का सीज़न है तुम बाद़ाम अख़रोट न देना। तुम ही मेरे माई बाप हो तुम ही मेरे भाग्यविधाता हाथ जोड़ता पांव में पड़ता और झुकाता अपना माथा अच्छी खासी जीत दिलाना भागते भूत लंगोट न देना। परिचय :- डॉ. रमेशचंद्र मालवीय निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प...
बुढ़ापा
कविता

बुढ़ापा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** गुज़रा ज़माना नहीं, वर्तमान भी होता है बुढ़ापा, सचमुच में चाहतें, अरमान भी होता है बुढ़ापा। केवल पीड़ा, उपेक्षा, दर्द, ग़म ही नहीं, असीमित, अथाह सम्मान भी होता है बुढ़ापा। ज़िन्दगी भर के समेटे हुए क़ीमती अनुभव, गौरव से तना हुआ आसमान भी होता है बुढ़ापा। पद, हैसियत, दौलत, रुतबा नहीं अब भले ही, पर सरल, मधुर, आसान भी होता है बुढ़ापा। बेटा-बहू, बेटी-दामाद, नाती-पोतों के संग, समृध्द, उन्नत ख़ानदान भी होता है बुढ़ापा । मंगलभाव, शुभकामनाएं, आशीष, और दुआएं, सच में इक पूरा समुन्नत शुभगान भी होता है बुढ़ापा। घुटन, हताशा, एकाकीपन, अवसाद और मायूसी, गीली आँखें पतन, अवसान भी होता है बुढ़ापा । संगी-साथी, रिश्ते-नाते, अपने-पराये मिल जायें यदि, तो खुशियों से सराबोर महकता सहगान भी होता है बुढ़ाप...
कोशिश कर …
कविता

कोशिश कर …

महेन्द्र साहू "खलारीवाला" गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** फासले भी गुजर जाएंँगे, मंजिल भी मिल जाएगा। कोशिश कर जीवन में, हर समस्या का हल पाएगा। हार न मान ,उदास न बैठ, तुम्हारा भी जरूर नाम होगा। कोशिश कर, हर बाधा से, जूझना आसान काम होगा। आंँधियों का दौर चलता रहेगा, इस जीवन चक्र में। मरूभूमि की तपिश सहन कर, जीवन भी आसान होगा। राह भटकाने वाले भी, मिलते रहेंगे इस जगत में। अडिग रह लक्ष्य पर, जरुर तुम्हारा मुकाम होगा। कोशिश से ही जीवन में, हर काम आसान होगा। जीवन का फलसफा सीख, तेरा पथ आसान होगा। आसमां पर उड़ने वाले, परिंदे अपना हुनर जानते हैं। कोशिश कर, उन परिंदों की भांँति, गगन अवश्य तुम्हारा होगा। परिचय :-  महेन्द्र साहू "खलारीवाला" निवासी -  गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाध...
गिद्ध भोज
कविता

गिद्ध भोज

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** गिद्ध बड़े मजे से दावत उड़ाते हैं, बिना मेहनत से मिला खाते हैं, आज भी गिद्धों की बैठक हो रही है, बैठक भी वहीं जहां मिल गया गोश्त, आज झगड़ा भी नहीं सभी हैं दोस्त, आज तो बस जाम और साकी है, ऐसा खाये कि केवल हड्डी बाकी है, सबने देखा आज फिर कोई मरा है, हमारे लिए मैदान हरा ही हरा है, मगर ये क्या? इस मरने वाले को तो चार लोग कंधे पर उठाए हैं, आगे व पीछे भीड़ लगाए हैं, गिद्ध निराश हो गए, कई तो उदास हो गए, तब वृद्ध गिद्ध ने बोला, भाइयों इसका मांस हम नहीं खा सकते, क्योंकि ये इंसान है, ये अपने पीछे होने वाले नोचपने से अंजान है, इसे तो अभी जलाएंगे या दफ़नायेंगे, फिर कुछ दिनों के लिए ये सब गिद्ध बन जाएंगे, अब ये मरने वाले का शरीर नहीं नोचेंगे, बल्कि उनके परिवार वालों को नोचेंगे, हम तो वातावरण सा...
डिजीटल पर मानव अटल
कविता

डिजीटल पर मानव अटल

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** आज का आधुनिक युग मानव कदापि रहा न रुक बेहिसाब काम के बोझ में डिजीटल में गया खुद झुक ।। डिजीटल क्या आ गया युग का दैनिक बदला काम कर लिया सब खूब आसान खूब बदल लिया काम ।। डिजीटल पर भरोसा फर्स्ट डिजीटल पर खूब है व्यस्त डिजीटल प्यारा घर परिवार सगे सम्बन्धी पड़ोसी का कोरा दिखावटी है स्नेह प्यार ।। है डिजीटल कहता है मानव खुद खुश व्यस्त और मस्त कौन है अपना कौन पराया डिजीटल का है स्वाद पाया मानव का मन डिजीटल ने चुंबक से ज्यादा चिपकाया ।। दुख सुख की सारी चिंता का डिजीटल को दुख दर्द बताया दुनिया में मानव खुद मानव से जिंदगी को डिजीटल है बनाया ।। शिक्षित क्या अशिक्षित कलम कागज छोड़ा हाथ के बजाय सबकुछ डिजीटल के भरोसे नोकरी व्यापार कारोबार डिजीटल से उपार्जन रोजगार दो जून रोटी जुगाड़ करने समूचा रिश्ता न...
पितर हमारे
कविता

पितर हमारे

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** पितृ पक्ष में सारे पितर हमारे आशीषों संग धरा पर हैं पधारे स्वागत है मन -प्राण व आत्मा से उनके प्रेम से हृदय हमने हैं सँवारे शुभ्र स्नेह व आशीषों से भरे हम जीते हैं उनकी स्मृतियों के सहारे प्रतिदान उनके‌ दान का है असंभव भाव-सुमन अर्पित, फल्गु के किनारे उनके बताये आदर्शों पर चलकर हम बनायें उन्हें, सदा ही परम सुखारे। परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम.ए.,पी एच डी, बी.एड., स्नातक कक्षा और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन साहित्य सेवा : दूरदर्शन एवं आकाशवाणी में काव्य पाठ, विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में गद्य, पद्य विधा में लेखन, प्रकाशित पुस्तक : "अस्माकं संस्कृति," (संस्कृत भाषा में) सम्मान : नव सृजन संस्था द्वारा "हिन्दी रत्न" सम्मान से सम्मानित, मु...
करवा चौथ
कविता

करवा चौथ

सोनल मंजू श्री ओमर राजकोट (गुजरात) ******************** भूख नहीं लगती है स्त्री को, करवाचौथ निभाने में, चाहे कितनी देर लगा ले चाँद आज नज़र आने में, उम्र बड़ी होगी या नही ये तो किसी को पता नहीं, आशा है प्यार बढ़ ही जायेगा यूँ त्याग दिखाने में।। आज जी भर संवरती, सोलह श्रृंगार करती है, सज के सुर्ख जोड़े में चाँद का दीदार करती है, उपहार मिले या ना मिले उसे कोई परवाह नहीं, पति की चाहत मिले, इसी का इंतजार करती है। तुम्हारा नाम अपनाती है उसका मान बन जाना तुम, जहाँ पर पा सके सुकूं ऐसा विश्राम बन जाना तुम, परीक्षा प्रेम की दे देगी चुनेगी जंगलों के काँटे भी, पत्नी गर सीता बन जाती है तो राम बन जाना तुम।। परिचय - सोनल मंजू श्री ओमर निवासी : राजकोट (गुजरात) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप...