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कविता

मताधिकार
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मताधिकार

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** मतदान के लिए नहीं मताधिकार प्रयोग के लिए आगे आएं, सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य को सोच समझकर संपन्न कराएं, बाद के पांच साल तक रोने चिल्लाने की आवश्यकता न रहे, मैंने गलत व्यक्ति को वोट दे दिया कोई ये न कहे, धर्म,जाति,सम्प्रदाय के नाम अत्याचारी न रहे, हम जुल्म ही क्यों सहें, अभी लोटेंगे दर दर पैरों में, बाद प्यार लुटाएंगे गैरों में, पैर पकड़ने वाला कब गर्दन पकड़ ले, लोकतांत्रिक मूल्यों को अपने विचारों से कोई कब जकड़ ले, संविधान की रक्षा के लिए सब खुलकर आगे आएं, खुद जागें और लोगों को जगाएं, बढ़ चढ़ कर संवैधानिक दायित्व निभाएं, उचित व्यक्ति को प्रतिनिधित्व दिलाएं, आओ मताधिकार के कर्तव्य को निभाएं, अपनी आवाज को सदन तक ले जाएं। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र...
रोशनी का त्योंहार
कविता

रोशनी का त्योंहार

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** दीपावली है रोशनी का त्योहार इसे मनाये दिल के अंदर का अंधेरा हटाये। दियो से जगमग रोशनी आती है मन को प्रफुल्लित कर जाती है। किसी गरीब के घर को भी करें रोशन करने का प्रयास तभी सच्ची खुशी का होगा आपको आभास। अंधेरो को निगलती है रोशनी काश सबके दुखों को निगल जाय रोशनी। एक दीपक भी अंधेरे को खा जाता है। रोशनी देकर आपके जीवन में बहार लता है। इस दीपावली पर नफरतों के दिये जलाओ और। खुशियों का प्रकाश पाओ। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं,...
मर्यादा कहने-सुनने की (ताटंक)
कविता

मर्यादा कहने-सुनने की (ताटंक)

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कहने सुनने वाली भाषा, शान मर्यादा रखती है। केवल कहने सुनने से जो, दुख भी आधा करती है। बातचीत ऐसा मसला जो, विकास कार्य को रचती। युद्ध क्रुद्ध दिशाहीन कभी, अनुचित चाल चल पड़ती। कहा सुनी से सीधा आशय, विध्वंस को इंगित करना। कानाफूसी अंदाज रोग, आधार अलग ही रहना। उसी मोड़ दोराहे जानो, विघटन कारण बन सकता। कहना सुनना पृथक रहकर, बातचीत धारण करता। स्वस्थ वार्तालाप बताता, सम्मान से दुनिया चलती। बातचीत ऐसा मसला जो, विकास कार्य को रचती। युद्ध क्रुद्ध दिशाहीन कभी, अनुचित चाल चल पड़ती। तंज प्रहार बातचीत में, सुबह-सुबह की राधे-राधे। जो वाचाल मौन हो जाए, टीस चुभन से आधे आधे। शुभ घड़ी में मूक परिभाषा, गलत समझना परंपरा। हारे स्वस्थ कुशाग्र मनुज, विचलित जो था हरा भरा। दो पाटन बिच साबुत कैसे, पिसने की चाकी चलती। ब...
आदमी
कविता

आदमी

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** कभी मशहूर तो कभी बदनाम आदमी...! परेशानियों का बोझ लिए खड़ा आदमी...!! दिन के उजालों में अपने आंसू छिपाता आदमी...! रात के अंधकार में खुद को तम में भीगाता आदमी...!! मंजिल की चाह में जवानी को मरता आदमी...! सफर का आनंद लिए बिना जीता आदमी...!! कभी जागा तो कभी सोया आदमी...! खुद में ही खोया खोया आदमी... बेवफाई के बाज़ार में वफ़ा की गुहार लगता आदमी...! अपनी औकात से ज्यादा खुद को दिखाता आदमी...!! अपनी गलतियों पर पर्दा डालता आदमी...! ओरों की गलतियों को बेपर्दा करता आदमी...!! कभी मशहूर तो कभी बदनाम आदमी...! परेशानियों का बोझ लिए खड़ा आदमी...!! परिचय :- कु. आरती सुधाकर सिरसाट निवासी : ग्राम गुलई, बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना...
अरे चाँद तू मत इतराना
कविता

अरे चाँद तू मत इतराना

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** ओ अंबर के चाँद सलोने, वसुधा पर आ जाओ। जो सुहागिनें बाट जोहतीं, उनको मत तरसाओ। पावन पर्व, चौथ करवा का, सब सुहागिनें करतीं। पार्वती-शिव पूजन करके, खुशियाँ दामन भरतीं। बड़ा भाग्यशाली है चंदा, गोरी तुझे निहारे, जल्दी से तू सम्मुख आजा, करना नहीं किनारे। तुझे देख कर सभी सुहागिन, मंद-मंद मुस्कातीं। छलनी में दीपक रोशन कर, तुझ पर वारी जातीं। अरे चाँद तू मत इतराना, उनको नहीं सताना। वरना तुझको पड़ जाएगा, बिना बजह पछताना। एक चाँद, पहले से उनके, घर में ही रहता है। तू केवल अंबर में रहता, वह दिल में रहता है। रात अमावस जब-जब आती, तू गायब हो जाता। इतराने के कारण ही तू, नभ में ही खो जाता। उनका चाँद साथ में रहता, कभी नहीं मुख मोड़े। चाहे जैसी दशा-दिशा हो, कभी साथ ना छोड़े। सभी सुहागन तुझे पूजती...
क्या गलती थी?
कविता

क्या गलती थी?

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बुद्ध ही मिल रहा जगह-जगह की खुदाई में, कैसे उजाड़ा होगा सभ्यता को दंभ और घमंड भरी लड़ाई में, क्या कसूर था महामानव बुद्ध का, जिसने हमेशा विरोध किया कत्लेआम और युद्ध का, उसने मानव मानव में भेदभाव मिटाया है, दुनिया को अहिंसा और अमन शांति की राह दिखाया है, जिसने भी किया होगा शांति उपदेश, शिलालेख और मूर्ति को नेस्तनाबूद, नहीं रहा होगा निश्चित ही जिसका ऐतिहासिक वजूद, वो झूठा होगा, दंभी होगा, झूठी शान वाला एकदम घमंडी होगा, नहीं सह पाया होगा सत्य की बड़ी ताकत को, भूल गया होगा लोगों की शराफत को, मिटाया होगा कुछ इमारतों व किताबों को, पर कैसे वो मिटा पाता भाईचारे की रवाज़ों को, देश बुद्ध का है हर जगह दिखेगा वजूद, तर्क व विज्ञान सम्मत विचार है फिर से होगा ही मजबूत, विचारों को मिटाने की जरा बताएंग...
लहरों की आशाएं
कविता, रोला

लहरों की आशाएं

हितेश्वर बर्मन डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बहती नदिया अपनी रास्ता खुद से बना लेती है राह के चट्टानों को लहरों से बहा ले जाती है। दृढ़ संकल्प लिये बढ़ती सदा अपने लक्ष्य को मुड़कर कभी देखती नहीं है पीछे के दृश्य को। जोश, जुनून के साथ बहती लहरों में है उफान मंजिल की ओर बढ़ती है मन में लिए तूफान। राह बनाती बह रही है, पथरीली रास्ते को काटकर अंजाम छोड़कर हर बाधाओं से लड़ रही है डटकर। थमती नहीं है कभी एकाग्र होकर नित्य करती अपना काम वो जानती है एक दिन सागर के तट पर लिखा है अंजाम। निडर होकर हरदम बहती है चाहे मार्ग में आये कितनी बाधाएं लहरों से शंखनाद करती चल रही है मन में लिये कितनी आशाएं। परिचय :-  हितेश्वर बर्मन निवासी : डंगनिया, जिला : सारंगढ़ - बिलाईगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
भक्ति रस है राधा
कविता

भक्ति रस है राधा

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** श्री कृष्ण हैं परमेश्वर तो भक्ति भाव हैं राधा बिन राधा कृष्ण अधूरे, और कृष्ण का ज्ञान है आधा। दस वर्ष के बालक बन गोपियों को रहस्य बतलाना ईश्वर से न कुछ भी छिपा है तो उससे क्या छुपाना। हर गोपी संग रास रचाकर ईश्वर का रुप दिखाया सांसारिक जीवन से उठकर उनमें आध्यात्मिक भाव जगाया। राधा तो पराकाष्ठा भक्ति की वो नहीं कोई संसारी उनके जैसा भाव न‌ कोई न ही कोई कृष्ण आचारी। कृष्ण को पाना‌ चाहा तो राधा सी भक्ति में डूबेंगे भक्ति रस में सराबोर हो योगेश्वर कृष्ण को पा लेंगे।। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच ...
साजन और चांद
कविता

साजन और चांद

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मेरा चंदा मम् सजन, जीवन का उजियार। देखूँ उसको रोज़ पर, नित्य बढ़ रहा प्यार।। मेरा चंदा संग है, केवल मेरा चाँद। मिलना हुआ नसीब है, बाधाओं को फाँद।।। मेरा चंदा रूपमय, मेरे सिर पर ताज। मुझको उस पर है सदा, बेहद ही तो नाज़।। मेरा चंदा बस मिरा, मुझ तक उसका नूर। हर पल मेरे पास है, रहे कभी नहिं दूर।। मेरा साजन पूर्णिमा, लगे सुधा की धार। चंदा-सा है शीतला, है हर सुख का सार।। बदली ढँक सकती नहीं, दमक रहा मम् चाँद। मधुर मिलन का कर रहा, जो नेहिल अनुवाद।। चाँद जगत के वास्ते, साजन मेरा प्यार। यही प्यार चंदा लगे, करे हृदय झंकार।। सखी पूज निज साजना, अपना चंदा जान। जो देता उजियार है, हो बस उसका मान।। साजन में ही चांद है, साजन तो हैं ईश। नहीं झुके उनका कभी, हे! प्रभु किंचित शीश।। व्रत में शामिल नेह है, यु...
हां जारी है सफर
कविता

हां जारी है सफर

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हां जारी है सफर, पैदल, बस की या फिर ट्रेन की, मुझे यकीन है कोई तो कर रहा होगा जिंदगी का सफर साथ प्लेन की, सफर होता जरूर है अनवरत जब तक आ न जाएं मंजिल, संतुष्ट न होइए क्योंकि कब कहां हो जाये जीवन बोझिल, सफर ही कर सकता है जीवन की मंजिल का अंत, निर्माण उतना मुश्किल भी नहीं है यदि छुपा न हो विध्वंस, सृजन और निर्माण जीवन के है दो पहलू, पर कोई क्या कह सकता है? कोई नहीं बता सकता कि आगे क्या हो सकता है, कोई हंस सकता है कोई रो सकता है, गाड़ी जहां थमी रुक सकता है जीवन कोई बता सकता है क्या ग्यारंटी है, अंत कुछ भी हो सकता है भले ही वो कोई संतरी या मंत्री है, समय किसी के लिए रुक नहीं सकता, वो ताकतवर के सामने झुक नहीं सकता, सफर सतत चलने का नाम है, कर्मों में ही छुपा अंजाम है, तो कोशिश ...
चीर
कविता

चीर

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** इस चीर की महिमा भारी इस चीर की शोभा न्यारी। चीर देखो ग्रंथ हे रचता, ब्रह्मा विष्णु महेश हे पलता। "चीर से तो लाज है अपनी, इस चीर से सम्मान है चीर से तो आन जगत में, यह चीर ही तो शान है" चीर में खुशियां झलकती, सब व्यथा इसमे है छुपी। चीर ही इतिहास बनता, द्रोपदी सीता सती। चीर मै गोपियों के आंसू, यमुना का सा नीर था। इतिहास साक्षी है यहां पर, विदुरानी का अंग ढका। चीर में श्री कृष्ण बसते, चीर ही तो कृष्ण था। नानी बाई का भात हे भरने, श्रीकृष्ण ही तो चीर था। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्ज...
सामाजिक सरोकार
कविता

सामाजिक सरोकार

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** आया बनकर हितैषी हमारा सामाजिक सरोकार परिवार हमारा अलख जगा दी जन-जन में दवाई, पढ़ाई और कमाई की नहीं मांगते हीरे-जवाहरात बस चाहिए रोजगार इन्हें कर रहे शुरुआत नई ये भारत शक्ति सम्मान की दे रहे मान गुरुओं को रख संग मात-पिता को सत्य पथ पर चलकर जग में लहरा देंगे तिरंगा मिलकर युवाओं ने हौसला बढ़ाया बुड्ढा खेड़ा को बनाया आदर्श गांव सबको दे रहे सम्मान सरीखा चलकर एकता की राह पर सीमा भी डाल रही आहुति यज्ञ में आओ बहनों ! आओ साथियों ! बनो भागीदारी महायज्ञ के हरियाणा की शान बढ़ा दो गांव का संदेशा ये निराला पहुंचा दो जन-जन तक परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी...
चांँद लगती हो तुम
कविता

चांँद लगती हो तुम

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** मेरी परवाह करती हो तुम हर रोज़, रखती हो व्रत करती हो तुम दुआ, मैं जीता रहूंँ उम्र भर स्वस्थ रहूंँ, प्यार करूंँ तुझ से तेरे साथ रहूंँ, मैं भी रखता हूंँ हर-पल ख़्याल तेरा, तूं कुछ पल ना दिखे हो जाता है बेहाल मेरा, सजना-संवरना और करना नखरे तेरा, और खूबसूरत बनाता है ये हुस्न तेरा, मुझे तो हर रोज़ ही चांँद लगती हो तुम, साथ रहकर रोशन जीवन कर देती हो तुम परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ...
रहे सलामत मेरा सजना
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रहे सलामत मेरा सजना

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सारे भारत के नर नारी, करवा चौथ मनाते। अपने ही अपनों से मिलकर, अपना उन्हें बनाते। पार्वती शिव और गजानन, की पूजा होती है। चौथ तिथि को पूज्य सुहागिन, सारे दुख खोती है। उत्तम पति की आस ह्रदय रख, कन्यायें व्रत करतीं। सारे सुख सौभाग्य प्राप्ति की, मन में आशा भरतीं। निराहार निर्जल व्रत रखकर, सुंदर रूप सजातीं। दीर्घायु हों सजन हमारे, प्रभु से खैर मनातीं। सारे दिन पकवान बनातीं, गृह कारज करतीं हैं। कर सोलह श्रृंगार सँवरतीं, मन उमंग भरतीं हैं। नए वस्त्र आभूषण पाकर, मन ही मन मुस्कातीं। रहे सलामत मेरा सजना, गीत प्यार के गातीं। अंबर में जब चाँद दीखता, तब पूजा विस्तारें। चलनी और दीप ज्योति से, उसकी छटा निहारें। मधुमय जीवन हो हम सबका, इसी भाव से जीतीं। चाँद देखकर खुश हो जातीं, साजन से जल पीतीं।...
सड़क के किनारे
कविता

सड़क के किनारे

डॉ. सुभाष कुमार नौहवार मोदीपुरम, मेरठ (उत्तर प्रदेश) ******************** सड़क के किनारे बैठी वह जीण-शीर्ण आधे घूंघट में, हाथों में पके-अधपके चावलों का कटोरा लिए। पेट के गड्डे को भर रही थी कुछ इस तरह कि मानो फिर कभी खाली न होगा। लेकर कुदाल उन नाजुक हाथों में, फिर से एक नाली को खोदना होगा। अकेली नहीं थी वह! दामपत्य जीवन के सुबूत उसके दो कर्मवीर सुपु‍त्र, कुदाल के हत्थे को अधिकार स्वरूप छीनने का प्रयत्न कर रहे थे। क्योंकि यही तो मिलेगा उन्हें कुछ संभलने पर! शुक्र है कि उन्होंने कागज कलम नहीं माँगी। वर्ना कहाँ से लाकर देती वो इन निरक्षरों को अक्षर? सुघढ़ थी पर पढ़ी-लिखी नहीं थी वह। पेट की आग में झुलस गया था उस रूपवती का रूप। वर्ना आधुनिकता के अधनंगे लिबास में, सड़क के किनारे किसी रेस्तराँ में वेटर को कुछ इठलाती ऑर्डर लिखवाती। पर वह तो सूँत-सूँतकर खाए...
कलम मेरी पहचान
कविता

कलम मेरी पहचान

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** हर जंग लड़ा लिखते-लिखते, सत्कर्म हीं एक इरादा है। हम कलम के वीर सिपाही हैं, ये है अपना ऐलान। है कलम मेरी पहचान...२ इतिहास गवाह हमारा है, दुश्मन को भी ललकारा है। बस मुद्दों की हीं लड़ाई है, बेतुक न मेरी धारा है। हम होते नहीं हैरान। है कलम मेरी पहचान...२ हम पड़ते नहीं प्रपंचों में, नित शब्द समागम करते हैं। हर जगह तुरत छा जाते हम, बस शांति प्रेम रस ढरते हैं। मुझमे है शक्ति तमाम। है कलम मेरी पहचान...२ अनमोल मिलन होता अपना, सब देख चकित रह जाते हैं। सबकी बोली थम जाती है, जब शब्द हमारे आते हैं। हो कार्य मेरा अविराम। है कलम मेरी पहचान...२ न जाति धर्म का भेद-भाव, सबसे मेरा गहरा लगाव। आनंदित हो "आनंद" कलम, है दिखलाती अपना प्रभाव। हुई कलम आज वरदान। है कलम मेरी पहचान...२ परिचय :- आनंद कुमार पांडेय पि...
करवा चौथ
कविता

करवा चौथ

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** मेरे साजन, मैं सुहागन, करवा चौथ व्रत रखी हूँ। माँगूँगी तेरे लिए लंबी उमर, भूखी,प्यासी बैठी हूँ।। सोलह सिंगार करके, सिंदूर तेरे नाम के भरके। तैयार हूँ सज-धज के, प्या र है जन्मोंजनम के।। सही-सलामत तुम रहो, इसलिए कष्ट सहती हूँ। मेरे साजन, मैं सुहागन, करवा चौथ व्रत रखी हूँ।। तुम ही मेरे अच्छे दोस्त हो, तुम मेरे भगवान हो। तुम ही तपस्या के फल हो, प्रभु के वरदान हो।। शिव-पार्वती, गणेश की, पूजा-अर्चना करती हूँ। मेरे साजन, मैं सुहागन, करवा चौथ व्रत रखी हूँ।। छुप गया चाँद बादलों में, अब कैसे दीदार करूँ। जीवन साथी पास खड़े, कुछ पल इंतजार करूँ।। जब उदय हुआ माँगी आशीष, सौभाग्यवती रहूँ। मेरे साजन, मैं सुहागन, करवा चौथ व्रत रखी हूँ।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल....
मंगल खुशियां लाते मिट्टी के दीपक
कविता

मंगल खुशियां लाते मिट्टी के दीपक

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** मिट्टी के प्यारे न्यारे दीपक, रौशनी में खिलखिलाते जलते-जलते तेलबाती के दीपक, घर को चमकाते दीपोत्सव से प्रकाशोत्सव पर्व तक छा जाते मिट्टी के शुभ मंगल दीपक, खुशियां भर-भर लाते कुम्हार के हाथों से, मथकर चिकनी मिट्टी के चाक के चक्कर कच्ची मिट्टी के लगाते सुहावने सुंदर आकृति में मिट्टी के दीपक बन जाते देख कच्ची मिट्टी के दीपक, हम मोहित होते जाते जगमगाते लुभाते, सुहावनी रौशनी, दीपक फैलाते मन को हर्षाते, जगमगाते, रोशनी खुशियां बिखराते प्रदूषण से सबको, तेलबाती के मिट्टी के दीपक बचाते घर-घर का मंगल उजियारा दीपोत्सव के दीपक बढ़ाते मिट्टी में रमते मिलते उत्सव की बेला पर मंगल गीत से आंगन को मधुरिम बनाते घर भर के आंगन में दीपक सगुन भरते जाते विराजमान होकर घर के कोने कोने तक सुख समृद्ध कुशल मंगल क...
दो डाकू
कविता

दो डाकू

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** डाका शब्द सुन डाकू भी चौक रहे, कुत्ते खामोश और टीवी चैनल भौक रहे, दो दोस्त बड़े हुए, बेरोजगारी के घेरे में खड़े हुए, करें क्या नहीं सूझ रहे थे, दाने दाने के लिए जूझ रहे थे, वे छोटी-मोटी चोरी करना नहीं चाहते थे, पर पुनः भूखे मरना नहीं चाहते थे, दोनों चाहते थे डाका डाला जाये, घर के बाहर हाथी पाला जाये, एक लड़ने लड़ाने की शरारत करता था, दूजा जोर-जोर से ख़िलाफात करता था, पहला शरारत ही करता रहा और दूसरा नेता बन गया, लोग पीछे चलने लगे वो उनका प्रणेता बन गया, फिर एक ने सीधा बैंक में डाका डाला, एक झटके में करोड़ों निकाला, साथी नेता ने विरोध में रैली निकाला, भावनाओं पर भरने लगा मिर्च-मसाला, डाकू कुछ दिनों बाद पकड़ा गया, गिरफ्त में माल सहित आ गया, पर नेता ने डाका डालने का एक नायाब तरीका निक...
तुम अजेय हो
कविता

तुम अजेय हो

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** सुनो! स्वयं के विश्वासों पर, ही जगती में टिक पाओगे। गांँठ बाँध लो मूल मन्त्र है, यही अन्यथा मिट जाओगे।। साहस - शुचिता से भूषित तुम, धरती माँ के दिव्य पुत्र हो। घबराहट से परे शौर्य की, सन्तानों के तुम सुपुत्र हो।। तुम अतुल्य अनुपम अजेय हो, बुद्धि वीरता के स्वामी हो। स्वर्ण पिंजरों के बन्धन से, मोह मुक्ति के पथगामी हो।। चलते चलो रुको मत समझो, जीवटता का यह जुड़ाव है। संघर्षों में मिली विफलता, मूल‌ सफलता का पड़ाव है।। करते हैं संघर्ष वही बस, पा पाते हैं मंजिल पूरी। भीरु और आलसी जीव की, रहती हर कामना अधूरी।। भरो आत्मविश्वास स्वयं में, स्वयं शक्ति अवतरण करेगी। बैशाखी पर टिके रहे तो, कुण्ठित आशा वरण करेगी।। घोर निराशा भरी कलह का, जीवन भी क्या जीवन जीना । तज कर निर्मल नीर नदी का, गन्दी नाली...
पूनम का चाँद
कविता

पूनम का चाँद

आशा जाकड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शरद पूनम चंद्रमा की शीतल चांदनी। तन मन को सुखदायक है मन भावनी।। पवन का स्पर्श कपोंलों को गुदगुदाता।411 तन- मन आनंदित खुशी के गीत गाता।। पक्षियों का कलरव खूब मन को भाता। गुनगुनी धूप का झोंका मन को सुहाता।। चाँद की रश्मियाँ प्रीतम की याद दिलाती। वो पुरानी स्मृतियाँ मन्द-मन्द मुस्काती।। शरद चंद्र की चांदनी देती सुखद आभास। दिखाता नई डगर, नए लक्ष्य का एहसास।। चांद की कोमल रश्मियाँ देती नयी ऊर्जा नई ताकत नव ऊष्मा प्रेरक कर्म ही पूजा।। नवरात्रि में करते हमसब मां की आराधना शरद पूनम की पूर्ण ऊर्जा से करते वन्दना।। चंद्रमा की शीतल किरण ऊर्जा युक्त खीर मिटा देती सब जन के तन- मन की पीर।। परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एवं समाजसेविका) शिक्षा - एम.ए. हिन्दी समाज शास्त्र बी.एड. जन्म स्थान - शिकोहाबाद (आगरा) न...
जीवन और प्रेम में कभी-कभी
कविता

जीवन और प्रेम में कभी-कभी

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** जीवन और प्रेम में कभी-कभी एक तरफ की एक छोटी सी- 'नासमझी की त्रुटि' जब दोनों तरफ के एक महान सुन्दर-सुखमय -प्रेममय- मोहक-जीवन, उसके सपने तथा उसकी हॅसी-खुशी की सम्भावना का ध्वंसन कर देती है... और जब- नहीं रह जाता है कोई उपाय- उन अतीत के सपनों में- उन सम्भावित जीवनों को टटोलने की खोजने और पाने की तथा वापस लौटने की...; और जब सुखमय-हर्षमय- सौन्दर्यमय-समृद्धि से भरे 'जीवन-स्वार्थ की आशा;' किसी तरह से पूर्णतः निर्मूल होकर समय के बवण्डर में कण-कण से धूलधूसरित होकर बिखर जाती है तथा जब जन्मों-जन्म के 'एकल-सपने' अलग-अलग होकर अपने-अपने ढंग से ऑखों की गहराइयों में सपाट होकर किसी एक तरफ से चुभने लगते हैं... तथा जब 'दोनों तरफ से अपलक दर्शन की भूख' वर्तमान में किसी भी तरफ से ऑखों में कसैलापन प...
नासमझ इश्क
कविता

नासमझ इश्क

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** हम ढूढ़ते रह गए उनको हर निग़ाह में, पर वो तो खो ही गए ओर किसी की बाहों में। हम ने तो हमेशा उनसे इक़रार ही किया था पर वो ही हर बार इन्कार ही करते रह गए। हमने तो खो दिए हर लफ्ज़ उनको मनाने में पर उन्होंने तोड़ दिया हर अल्फ़ाज़ हमे भुलाने में। हमारा तो बीत ही गया जीवन उनसे इश्क़ निभाने में पर उन्होंने गुज़ार ही दिया हर लम्हा हमें सताने में। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्...
जिसे जो कहना है कहने दो
कविता

जिसे जो कहना है कहने दो

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जिसे जो कहना है कहने दो, मुझे मेरे सांचे में रहने दो, मुझे क्या करना है, कहां जाना है, क्या खाना है, किन सोये हुओं को जगाना है, मुझे नहीं कभी मजबूर होना है, किन जाहिलों से दूर होना है, ये मुझे तय करने दो, जमीं पर अपना पांव खुद धरने दो, मुझे मिली ऐसी शिक्षा कि सिर्फ अपना न सोचूं, जो जा चुका है उसके लिए सिर न नोचूं, शायद जरूरत हो मेरी तनिक भी मेरे समाज को, पढ़ाना है, जगाना है, तो क्यों बदलूं अपने अंदाज को, मजलूमों को अपनी बातें कहने दो, प्रगति की बयार उनके घर तक भी बहने दो, जिसे जो कहना है कहने दो, मुझे इंसानियत, भाईचारा, नैतिकता और संवैधानिक सांचे में रहने दो। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिका...
धरती माता क्यों
कविता

धरती माता क्यों

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** पालती है मां नन्हे शिशु को गोद बैठाकर जलपान कराकर, भोजन देकर हाथ-पैर चलवाकर वस्त्र पहनाकर, अन्नप्राशन करवाकर गोद उठाकर घुटने चलवाकर, उंगली पकड़ाकर साइकिल चलवाकर पढ़ना, लिखना सिखलाकर सभी प्रकार के भोजन से बालक को बलवान बनाकर आध्यात्मिकता के भाव जगाकर नैतिकता का पाठ पढ़ाकर पुरुषार्थ का अर्थ समझाकर नन्हे पादप सम शिशु को गगनचुंबी वृक्ष बना देती है। धरतीमाता ही हमको अपनी गोद बैठाकर जल, भोजन दे, अन्न उगाकर कागज, कपड़े दिलवाकर पवन, ऊर्जा हम तक पहुंचा कर अपने सीने पर चलना सिखलाकर हर प्राणी का भार उठाकर उत्तम संदेशा लाती है हमको बढ़ना सिखलाती‌ है मां जैसी इसी शक्ति से धरती हमको आध्यात्मिकता का 'परोपकाराय सताम् विभूतय:' के (सज्जनों की संपत्ति परोपकार के लिए होती है) दिव्यभाव का नैतिकता का अन...