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कविता

मै तो धन्य हो गया माॅ
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मै तो धन्य हो गया माॅ

मै तो धन्य हो गया माॅ ====================================================== रचयिता :  दिलीप कुमार पोरवाल "दीप"  कोख से तेरी जनम लेकर मै तो धन्य हो गया माॅ गोदी मे तुने मुझे बिठाया माॅ गोदी तेरी पाकर मै तो धन्य हो गया माॅ आँचल से तुने मुझे लगाया माँ आँचल तेरा पाकर मै तो धन्य हो गया माँ अँगूली पकडकर तुने मुझे चलना सिखाया माँ अँगूली तेरी थामकर मै तो धन्य हो गया माँ माँ माँ पा पा कहकर बोलना तुने सिखाया माँ वाणी कण्ठ से पाकर मै तो धन्य हो गया माँ दुनिया का सारा प्यार तुने दिया माँ ममता तेरी पाकर मै तो धन्य हो गया माँ कोख से तेरी जनम लेकर मै तो धन्य हो गया माॅ कोख से तेरी जनम लेकर मै तो धन्य हो गया माॅ लेखक परिचय :- नाम :- दिलीप कुमार पोरवाल "दीप" पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरवाल निवासी :- जावरा म.प्र. जन्म एवं जन्म स्थान :- ०१.०३.१९६२ जावरा शिक्षा ...
मातृ पद महान
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मातृ पद महान

मातृ पद महान ==================================== रचयिता : मनोरमा जोशी माँ का पद है जगत में , सब से क्षेष्ठ महान ।  न्याय प्रेम निस्वार्थता , जग को किया प्रदान । उच्च मातृ पद ने दिया , नैसर्गिक उपदान , अधिकारिक निःस्वार्थता , आधिकाधिक बलिदान । माताओँ मे प्रेम  का ,  कीर्तिमान  निर्धार , किया वहीं है वस्तुतः ,  जग जीवन आधार । माँ की ममता आंव कुऐं सी झर झर झरती जायें , कभी छोर न पाये । हर दिन हर पल  हम , मातृ दिवस मनाऐं लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा-स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र-सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं।विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। र...
हे पत्नी देवी
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हे पत्नी देवी

हास्य दिवस  रचयिता : शशांक शेखर ============================================================= हे पत्नी देवी मनोरागिनी सकल सुख दोहिनि तू मरकट मछर सी गुंजन कारिनी रक्त पिपासिनी आनंद कुन्द विराट रूप धारिणी तुम मायका क्या बैठ गयी चार दिन की चाँदनी क्या सॅंट गयी रोम रोम मोरा नृत्यांगिनी रोग-हीन भई काया सोए भाग जागे जो लक्ष्मी रूपा तू मोर ससुरा घर गामिनी | हे पत्नी देवी मनोरागिनी सकल सुख दोहिनि आनंद कुन्द विराट रूप धारिणी मगर हे प्रिया विशाल हृदय वाहिनी अब लौट आओ की घर है कुरेदान विकराल संगिनी कपड़ों की स्त्री है भँजिनी दारू पार्टी से बजेट मोर है अन्बैलेन्सिनि | हे पत्नी देवी मनोरागिनी सकल सुख दोहिनि आनंद कुन्द विराट रूप धारिणी | हे देवी चाहे धरो तुम रूप रति का चाहे बनो काली साक्षातिनी अपने जन को क्षमा करो कब से तुम्हे पुकार रहे हम रख लो लाज हमारी हे मोर भाग्या...
मच्छर और मैं
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मच्छर और मैं

पवन मकवाना (हिंदी रक्षक) इंदौर मध्य प्रदेश ******************** खाली बैठा घर में खुद से हो दो चार रहा था जाने क्यूँ गुस्सा मेरा आसमाँ सातवें पार रहा था। इलेक्ट्रिक मॉस्किटो बेट से घर के मच्छर मार रहा था। या यूँ कह लो उन तुच्छ प्राणियों को इस भव सागर से तार रहा था। कलयुगी वैतरणी पार करके उनको खुद को कृष्ण मान रहा था। तभी एक छोटा मच्छर मेरे कान में धीरे धीरे सरकने लगा। माथा ठनका मन घबराया दिल जोरों से धड़कने लगा। वो जोरों से दहाड़ा कान में मेरे मेरा सर मानो फटने लगा। उसने जो काटा कान में मेरे सर चकराया बाँयां बाजू फड़कने लगा। फिर जादू क्या हुआ परमात्मा जाने मैं मच्छर भाषा समझने लगा। अब मैं बैठा था घर के कोने मच्छर भी थे ओने - पोने पर आ गए अचानक सैंकड़ों मच्छर। मुझे समझाने लगे की सुन बे ओ खच्छर। हम दुश्मन नहीं सोश्यलिस्ट हैं। देश में समानता लाने में बस हमीं फिट हैं। अमीरों -और गरीबों में हम फर...
हास्य दिवस 
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हास्य दिवस 

हास्य दिवस  रचयिता : शशांक शेखर ============================================================= एक काव्य समूह का मैं बना हिस्सा उसमें हुआ बड़ा अजीब एक क़िस्सा किसी कवि ने कहा इस बार पूर्व संध्या पाँच मई की है अंधेरी काली अमावस्या शनिचरी की तभी समूह कर्ता ने टिप्पणी दे डाली पाँच मई है विश्व हास्य दिवस है कह डाली आगे लिखा था शनिशचरी अमावस्या पीछे हास्य दिवस उपरोक्त पर काव्य की हो रचना मैं अलबेला शब्दों में फँस गया जानकारी ही बचाव है के चक्कर में धँस गया मैंने छूटते पूछा उपरोक्त विषय के क्या मतलब है कविता शनिचर पर है की अमावस्या पर ग़ौरतलब है समूह कर्ता ने पूनः शब्दों को पढ़ने की सलाह दे डाली मैंने भी कई बार पढ़ा मेरा समय था बहुत ख़ाली मैंने उपरोक्त का संधि विच्छेद किया ऊपर उक्त से शनिचरी अमावस्या को विषय मान लिया पाँच मई ही है कविता का विषय किसी ने समझाया इस भागते ज़माने मे...
क्योंकि वो बस एक मजदूर है
कविता

क्योंकि वो बस एक मजदूर है

क्योंकि वो बस एक मजदूर है ======================================== रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" पसीने से तर-बतर, घर से निकल दोपहर, जा रहा है.. उसका क्या कसूर है? क्योंकि वो बस एक मजदूर है, बस यहीं उसका कसूर है, भूखा-प्यासा रात-दिन, जेब खाली पैसों बिन, वो करता जा रहा है काम, एक पल न कर आराम, सतत स्वेद से तन उसका भरपूर है, क्योंकि वो बस एक मजदूर है, बच्चों को है पालता, परिवार को संभालता, हर बला को टालता, तकलीफों से है वास्ता, उसका दुखभरा है रास्ता, कड़ी मेहनत करने पर वह मजबूर है, क्योंकि वो बस एक मजदूर है, सुनता है वो जमाने के ताने, न सुनता उसकी कोई न उसकी कोई माने, न समझे उसको कोई न कोई उसको पहचाने, मेहनत ईमानदारी से करता न कोई बहाने, बच्चों को पढ़ाता, न मेहनत करवाता, उन्हें पढ़ा लिखा अच्छा ऑफ़िसर बनाता, खुद भरी धूप में रिक्शा चलाता, जख्म कितने सहता न किसी ...
इन दिनों
कविता

इन दिनों

इन दिनों =========================================== रचयिता : डॉ. इक़बाल मोदी इन दिनों लोग परेशान फ़िज़ूल होने लगे है। वो अपनी ज़मीन पर बबूल बौने लगे है। जिसने कीचड़ उछाला है हम पर बहोत, अब हाथ उसके भी सड़ने लगे है। तुफानो का कोई कुसूर नही है जनाब, कश्तियां खुद नाखुदा ही डुबोने लगे है। मौका परस्त है जहाँ में सभी लोग, बहती गंगा में हाथ धोने लगे है। नाम लेकर दवा का जहर दे रहे, यू हकीमो के धंधे  चलने लगे है। वैद्य खुद ही परेशान है बीमारी से, रोग जाएगा कैसे यू कहने लगे है। खा रही है खेत, खुद ही जो बागड़ यहाँ , अपने कर्मो से वो खुद ही मरने लगे है। जब से पूजा अजाने बड़ी है बहुत, धर्म को छोड़कर लोग बढ़ने लगे है। सूर्य का तेज फीका हुवा आजकल। चाँद, तारे भी दिन में निकलने लगे है। प्यासी प्यासी लगे अब तो नदिया सभी, ये समंदर भी खुद में सिमटने लगे है। ज़िंदगी के हर एक ...
विरह
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विरह

विरह =================================== रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' गर्मियो में प्रेम का विरह सर्दियो की अपेक्षा अधिक क्यों सताता है शिवम अन्तापुरिया होकर चूर तेरी बाहो में मुझे सजना सवरना आता है खुदा से पूछता हूँ कौन हो तुम तो बस वो मुस्कुराता है मोहब्बत के सफ़र में हम तुम्हें यूँ मिल ही जाते हैं सफर अंजाम तक पहुँचे यही बस गुनगुनानते हैं हमारा हाल क्या है यारों ये मुझसे न तुम पूछो मोहब्बत के सफ़र में हम तुम्हें यूँ मिल ही जाते हैं सफर अंजाम तक पहुँचे यही बस गुनगुनानते हैं हमारा हाल क्या है यारों ये मुझसे न तुम पूछो मोहब्बत से सज़ी महफ़िल में वो नफ़रत दिखाते हैं लेखक परिचय : नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं रुचि...
माँ का ऋण
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माँ का ऋण

माँ का ऋण =================================================== रचयिता : कुमुद दुबे थी प्रेम और ममता की मूरत तुम सहनशीलता धैर्य की प्रतिमूर्ति तुम हीमपर्वत-सी छटा तुम्हारी चट्टान-सी थी दृढता तुम्हारी कर्तव्यों को शिखर पर रखती शक्ति बन पिता की दुविधा हरती पल-पल जीवन सार्थक करती। हम बच्चों की थी गुरू तुम सत्य-पथ प्रशस्त करती तुम्हीं तो पूरी पाठशाला थी धर्म बल और तेज लिये सबको स्वावलम्बी बनाती अपना सर्वस्व जीवन वात्सल्य हृदय से लुटाती। अंत समय तक चलती रही, अविरल धारा-सी तुम जीवनभर आराम से दूर अंतिम पडाव पर भी शांत-चित्त तेजस्वी मुख ना था कोई अवसाद माँ सदा की तरह जयश्रीकृष्ण कह चीर निंन्द्रा को आत्मसात कर गई। मां, इस ऋण से हम कभी न होंगे उऋण कभी न होंगे उऋण... लेखिका परिचय :-  कुमुद के.सी.दुबे जन्म- ९ अगस्त १९५८ - जबलपुर शिक्षा- स्नातक सम...
कोई ढुंढ कर ला दो 
कविता

कोई ढुंढ कर ला दो 

कोई ढुंढ कर ला दो  ============================================ रचयिता : ईन्द्रजीत कुमार यादव कोई ढुंढ कर ला दो कोई ढुंढ कर ला दो- गुम हो गया है जमाने के इस शोर मे, औद्योगीक जगत के दौर मे, वो मन को हर्षाती जिवनधारा वर्षाती, खेतों मे लहलहाती वो हरियाली। कोई ढुंढ कर ला दो- गुम हो गया है इस आतंकी कहर मे, नफरतों के जहर मे, मन को लुभाती, मन को मन से मिलाती, अँधकार को भगाती वो दिवाली। कोई ढुंढ कर ला दो- गुम हो गया है निरक्षरता के अंधकार मे, रुढिवादियों कि तलवार मे, संसार को जगाती, अपने प्रकास से ज्ञान के दिपक को जलाती, वो सुरज कि लाली। कोई ढुंढ कर ला दो- गुम हो गया है इस जाती-धर्म के खेल मे, खुनी खेलों के खेल मे, हमारी एकता अखण्डता को दर्शाती, हमारे संस्कारो को बढाती, पूर्वजों से मिली वो आशिर्वाद कि थैली। कोई ढुंढ कर ला दो- गुम हो गया है इस नोटों के खेल मे,...
गुबार और कारवां
कविता

गुबार और कारवां

बुढ़ापा ====================================================== रचयिता :  दिलीप कुमार पोरवाल "दीप"  गुबार देखता रह गया जमाना कारवां को दूर है जाना , उनको गुजरे नहीं हुए दो पल देखते ही देखते हो गए ओझल l गुबार देखता रह गया जमाना कारवां को दूर है जाना , नहीं जाता उनके साथ जमाना क्यों? क्योंकि उन्हें है विश्वास एक दिन फिर लौट कर आएगा कारवा देखेगा फिर जमाना गुबार II लेखक परिचय :- नाम :- दिलीप कुमार पोरवाल "दीप" पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरवाल निवासी :- जावरा म.प्र. जन्म एवं जन्म स्थान :- ०१.०३.१९६२ जावरा शिक्षा :- एम कॉम व्यवसाय :- भारत संचार निगम लिमिटेड आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी रचनाएँ प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बा...
आदर्श
कविता

आदर्श

आदर्श ==================================== रचयिता : मनोरमा जोशी भिन्न भिन्न नर जातियां , भिन्न भिन्न संस्कार, हम न किसी आदर्श का, कर सकते  प्रतिकार। हर नर का कर्तव्य है, हर्दय ग्राह्म  आदर्श, जीवन में लेकर चले, हेतु प्रगति उत्कर्ष। व्यवहारिक होता नहीं, बिना विचार  विमर्ष, मतान्धता  धर्माधन्ता, पर निर्मित  आदर्श। मन स्वाधीन रहे सदा, रहे उच्च आदर्श, फलीपूत होगा तभी, यह जीवन संघर्ष। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा-स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र-सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं।विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमणि सम्मान औ...
मजबूर मजदूर
कविता

मजबूर मजदूर

किशनू झा "तूफान" ग्राम बानौली, (दतिया) ******************** तन से बहता रोज पसीना, हर दिन होता दुर्लभ जीना। खाने की तो बातें छोडो़, मुश्किल जिसको पानी पीना। मन में जिसके टूटे सपने, हर उम्मीद अधूरी है। मजदूरों की किस्मत में, जीवन भर मजदूरी है। सत्ता लाखों वादे करती, उनसे अपनी जेबें भरती। निर्धन मजदूरों के घर की, मजबूरी से रात गुजरती। पेट पालने की ख़ातिर, मजदूरी बहुत जरुरी है। मजदूरों की किस्मत में, जीवन भर मजदूरी है। दिल्ली से सब गावों में, मजदूरों को पैसे आते। सड़क लैटरिंग पैसे सारे, पहले नेता जी खा जाते। मजदूरो को कुछ न मिलता, मजदूरी मजबूरी है । मजदूरों की किस्मत में, जीवन भर मजदूरी है। लेखक परिचय : - नाम - किशनू झा "तूफान" पिता - श्री मंगल सिंह झा माता - श्रीमती अंजना झा निवासी - ग्राम बानौली,(दतिया) सम्प्रति - बी. एससी. नर्सिंग अध्यक्ष - सत्यम...
श्रमिक
कविता

श्रमिक

श्रमिक ================================== रचयिता : राम शर्मा "परिंदा" जिनके दम पर निर्मित हुए राजमार्ग - उपवन - प्रासाद आओ उन श्रमिकों को आज करें हम याद जाने किस फौलाद से बनता है इनका सीना सिर पर बोझ ढो-कर जो बहाते है पसीना गर्मी-सर्दी कुछ ना देखे कर्म करें बारहों महीना धर्म -जाति में भेद ना करते रामू - राबर्ट या हो सकीना श्रमिक ही है इस धरा का बहुमूल्य सु़ंदर नगीना जिनके श्रम से सफल हुआ वैभवशाली अपना जीना जिनके दम पर हम सुखी करते मौज से खाना-पीना आओ इनका तिलक करें राजू - मोहन - रीना जिनसे रौशन जग सारा जिनसे जग हुआ आबाद आओ उन श्रमिकों को आज करे हम याद। लेखक परिचय :- नाम - राम शर्मा "परिंदा" (रामेश्वर शर्मा) पिता स्व जगदीश शर्मा आपका मूल निवास ग्राम अछोदा पुनर्वास तहसील मनावर है। आपने एम काम बी एड किया है वर्तमान में आप शिक्षक हैं आपके तीन काव्य संग्रह...
उधार जिंदगी………
कविता

उधार जिंदगी………

उधार जिंदगी......... ======================================== रचयिता : दिलीप कुमार पाठक मैं हार जाता हूँ अक्सर,फिर भी जीता हूँ भूला नहीं हूँ अक्सर कभी - कभी पीता हूँ तेरी जीत मेरी हार नहीं, फिर भी रोता हूँ परिहास करे ज़िंदगी मेरा, इसलिए जीता हूँ...... खनकते नगमें जिंदगी, ऐसे बजा रही है अर्थी में लिटाने मुझको ऐसे सजा रही है मिलना चाहे मुझसे, खुद को मिला रही है परमदशा को आतुर ऐसे मिलवा रही है.......... अपारिहार्य है सबको नितांत नहीं है, मिटना पंचत्तत्व में सबको नित मिलना ही मिलना मुझमें क्या अनोखा है, तेरा है, ताना - बाना सैलाब, उमड़ में मिला ले करवा मेरा नज़राना..... डर नहीं था जिद थी, तुझसे नहीं मिलेंगे भूले गए थे किरदार नहीं हैं हम नहीं जलेंगे माया में उलझे थे, माया लोक नहीं तजेंगे समझ में सब है आया हँस कर हम जलेंग ........................... ..हँस कर हम जलेंगे ........
मैं शहंशाह हूँ
कविता

मैं शहंशाह हूँ

मैं शहंशाह हूँ =============================== रचयिता : परवेज़ इक़बाल मेरे अश्कों से गुज़र कर बच्चों को खुशी मिलती है मैं रोज़ मरता हूँ तब घरवालों को ज़िन्दगी मिलती है... सोचता हूँ, मेरे लिए महंगा नहीं है सौदा सबको इस दाम भी कहाँ ज़िन्दगी मिलती है... यह महल, ये चौबारे मेरी मेहनत के गवाह सारे सब मे शामिल मेरा पसीना सबने सीखा मुझसे जीना फिर भी खैरात सी मुझको मजदूरी मिलती है... मैं रोज़ मरता हूँ तब घरवालों को ज़िन्दगी मिलती है... मिले हैं सबको, मेरे सदके में चमक और उजियारे लेकिन मेरे नसीब में आये हैं सारे ही अंधियारे लाल किले की ऊंची दीवार के कंगूरे पर लटकी है कहीं मेरी मजदूरी ताजमहल की बुनियादों को सींचा है मैंने, अपने लहू से और पाए हैं ईनाम में अपने ही कटे हाथ... पाई शोहरत तुमने, उसका नहीं है गम मेरे हिस्से में कियूं कर दीं रुसवाईयाँ तुमने... ये किले, ये मीनारें ताने किसने ? ऊंचे-ऊंचे ये महल बना...
मजदूर पर गर्व
कविता

मजदूर पर गर्व

मजदूर पर गर्व ============================== रचयिता : रीतु देवी मजदूरों पर हम करते हैं गर्व, सच्चे दिल से करते रहते कर्म, परवाह न तेज धूप,शीतलहर के करते, राष्ट्र प्रगति पथ पर सदा चलते रहते। बहाते रहते हैं हर क्षण पसीना, ये ही हैं राष्ट्र के चमकते नगीना। कर देते हैं तरक्की वास्ते जीवन समर्पण, दिखा देते हैं समाज को विकास दर्पण। सब जन मिलकर करें इनका सम्मान, बढेगा राष्ट्र का विश्व पटल पर मान। मजदूर जीवन नव दीप जलाकर, हर्ष के क्षण प्रतिपल लाए समस्याऐं सुलझाकर।   लेखीका परिचय :-  नाम - रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के ...
मोबाईल महिमा
कविता

मोबाईल महिमा

मोबाईल महिमा ================================================== रचयिता : भारत भूषण पाठक नहीं होता है तबतलक  सवेरा । धरे मोबाईल जबतलक न इन्सान ।। रात से दिन तक जब तक न थकले। मोबाईल पकड़ा रहता है इन्सान ।। छुप-छूपाकर वॉट्सऐप खोले। मैशेज देख ही कुछ भी बोले।। पहले मोबाईल को खोले सुबह-शाम। तब ही कर सके कोई भी दूजा काम।। मिल जाए कोई त्योहार या छुट्टी । चाहे दुनिया से ही हो जाय कुट्टी ।। मैशेज टपक रहे हैं हर पल तड़-तड़। मानो बह रही हो झरना कल-कल।। सर पे परीक्षा का फूटने को चाहे ही हो बम। पर वाट्सएप ग्रुप में दिखना है हरपल हरदम।। माता-पिता हैं खूब हरदम गुस्साते। परीक्षा के भय से प्रतिदिन खूब डराते ।। नेत्रज्योति चाहे होता जाय हरपल गौण। सोशल मीडिया पर रहना ही है औण।। लेखक परिचय :-  नाम - भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-ध...
बुढ़ापा
कविता

बुढ़ापा

बुढ़ापा ====================================================== रचयिता :  दिलीप कुमार पोरवाल "दीप"  कौन देता है यहां सूखे दरख्त को खाद और पानी अब मुझ में वह ताकत कहाँ जो दे सकूं फल और छाँव कौन देता है यहां सूखे दरख्त को खाद और पानी कभी आकर बैठा करते थे परिंदे मेरी भुजाओं पर आज मुझे ही मुंह चिढ़ा कर चले जाते हैं टूट कर हाँ टूट कर बिखर जाऊंगा एक दिन सूखे तिनके की तरह लोग कहेंगे उठाओ उठाओ और ले कर चल देंगे कुछ आगे कुछ पीछे कुछ आगे कुछ पीछे और जला देंगे सूखी लकड़ी की तरह सूखी लकड़ी, घी, कपूर, कंडो के साथ और हो जाऊंगा पंचतत्व में विलीन एक दिन कौन देता है यहां सूखे दरख्त को खाद और पानी अब मुझ में वो ताकत कहाँ जो दे सकूं फल और छाँव अब मुझ में वो ताकत कहाँ जो दे सकूं फल और छाँव l लेखक परिचय :- नाम :- दिलीप कुमार पोरवाल "दीप" पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरव...
ये सड़क चलती है
कविता

ये सड़क चलती है

ये सड़क चलती है ============================================ रचयिता : ईन्द्रजीत कुमार यादव ये सड़क चलती है मैं तो खड़ा हूँ आज भी उसी रास्ते, जहाँ तेरी खुशबू आज तक मेहकती है, इन फासलों का जिम्मेवार कौन है तू बता दे, मैं कहाँ चलता हुँ कम्बख्त ये सड़क चलती है। शून्य सी जन्दगी ऐसे ही अनन्त तक सफर करती है, दो निवाले की ख़ातिर ये रातें अब कहाँ सोती है, इन पत्थड़ों के चोटों से ये अंगारे भी रो जाते हैं, मैं कहाँ सोता हुँ ये शहर ही सो जाता है। अपने नाकामियों से लड़ता हुँ, मैं अपने गुमनामियों से डरता हुँ, उजाले की खोज में ईन अंधेरो से लड़ता हुँ, अपने साये के साथ चलता हुँ तब ये शाम ढ़ल जाती है, मैं कहाँ खोता हुँ, बस मेरी परछाई खो जाती है।   लेखक परिचय :-  नाम : ईन्द्रजीत कुमार यादव निवासी : ग्राम - आदिलपुर जिला - पटना, (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने प...
फिर छेड़कर तार दिल के
कविता

फिर छेड़कर तार दिल के

पवन मकवाना (हिंदी रक्षक) इंदौर मध्य प्रदेश ******************** फिर छेड़कर तार दिल के हमदर्दी यूँ हमसे जताओ ना... टूटने से बचा है क्या दिल का कोई कोना तो अभी मुझे बताओ ना फिर छेड़कर तार दिल के ... बुरा हूँ मै कहते हो जब तुम खुद मुझे तो दिमाग से मुझे अपने सदा को तुम मिटाओ ना... फिर छेड़कर तार दिल के ... लिख रख्खा है जो हथेलियों पे अपनी जो नाम मेरा मिटाओ ना फिर छेड़कर तार दिल के ... आएंगे कई दीवाने जीवन में अभी यूँ अपनी सासें मुझपे तुम लुटाओ ना फिर छेड़कर तार दिल के ... मिलता है प्यार जीवन में नसीब वालों को जो प्यार करते हैं तुम्हें उन्हें कभी सताओ ना फिर छेड़कर तार दिल के ... होना था जो हो गया खोना था जो खो गया बातें पिछली याद करके मन में यूँ पछताओ ना फिर छेड़कर तार दिल के ... मांगे नहीं मिलता जीवन में देने कई सोचो तुम सब पर प्यार लुटाओ ना फिर छेड़कर तार दिल के ... फिर छेड़कर तार दिल के हमदर्दी य...
गरज तो है
कविता

गरज तो है

रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि"   गरज तो है  वृक्षो के आसरे की  सौतन गर्मी धरती माँगे  बादलों से उधार  अमृत पानी नदी के पत्थर  तन ढाँकते जल पड़ा हो सूखा बहाती नदी  प्रदूषण को जब  पड़ा हो झोली क्रोधित नदी  ना सहन करती दूषित जल वेग के शस्त्र  बाढ़ के आगोश में  लाशों के ढ़ेर   परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक ", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान - २०१५ , अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्...
मैं नदी हूँ
कविता

मैं नदी हूँ

मैं नदी हूँ =================================== रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' सिसकती हूँ, मचलती हूँ, कई मौकों पर गरजती हूँ, उलझती हूँ फिर भी हर रोज मंजिल की तरफ बढ़ती हूँ, मैं नदी हूँ... कभी किनारों पर, कभी गहरे दरियों पर, हर रोज नए लोगों से मिलती और बिछङती हूँ, मैं नदी हूँ... पता नहीं मेरा प्रेमी मुझसे छूटा है या रूठा है, उसी की तलाश में मेरा हर पल बीता है, रात-दिन की बिन परवाह किए मैं अकेली ही बहती हूँ, मैं नदी हूँ... कहीं कल-कल की आवाज तो कहीं छल-छल की आवाज मैं सुनती हूँ, फिर प्रेमिका की तरह खुद से ही लरजती हूँ, मैं नदी हूँ... लेखक परिचय : नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं ...
एक और अनेक
कविता

एक और अनेक

एक और अनेक ==================================== रचयिता : मनोरमा जोशी   एक और अनेक आओ भाई हम सब भाई, माला आज बनायेंगे। मालाओं को पहन गले में एक रूप बन जायेगें, हम मातृ भाषा अपनाएंगे। फूल हमारे खुशबू वाले, बागों की सुन्दरता वाले इसी भांति सुन्दर सुन्दर से, हम कर्तव्य दिखाएगें हम राष्टभाषा अपनाएंगे। सुई धागे हाथ जुटाकर अपने अपने फूल सजाकर, नीले पीले सभी गूथ कर, मन की गांठ लगाएगें, हम मातृभाषा अपनायेगें। रंग बिरंगी फूलों वाली, माला बनें रुप की लाली, पहन गले में हम सब इसको, राष्ट ध्वजा फहराएंगे, हम मातृ भाषा ही अपनायेगें। लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा-स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र-सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शह...
मुझे तुम भूल जाना
कविता

मुझे तुम भूल जाना

मुझे तुम भूल जाना ========================================== रचयिता : विनोद सिंह गुर्जर मुझे तुम भूल जाना। कभी ना याद आना।। गुनाह मुझसे हुआ है, तेरे आंसू चुराना ।।..... मेरा बेताव था दिल, उदासी छीन लूं में । रागिनी की कसम , जीभर देख मरूं में। असर बेजान पर क्या रोना, गिड़गिड़ाना ।।.... गुनाह मुझसे हुआ है, तेरे आंसू चुराना ।।..... मांग तेरी है सूनी, चांद तारे सजाता। तेरे आंगन में आकर , शहनाई बजाता।। स्वप्न तो टूटते है, नहीं इनका ठिकाना।।.. गुनाह मुझसे हुआ है, तेरे आंसू चुराना ।।..... एक वीरां चमन में, बहारें ला रहा था। गीत फिरसे हमारे, मिलन के गा रहा था।। बड़ा मंहगा पड़ा है, पत्थर से टकराना ।।... गुनाह मुझसे हुआ है, तेरे आंसू चुराना ।।.....   परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद माल...