यह नदी अभिशप्त सी है
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रचयिता : रामनारायण सोनी
यह नदी अभिशप्त सी है
जल नही बहता यहाँ
यह लगभग सुप्त सी है
घाट सब मरघट बड़़े है
प्यास पीते जीव जन्तु
धार, लहरें लुप्त सी है
यह नदी अभिशप्त सी है
पालती थी सभ्यताएँ
धर्ममय और तीर्थमय हो
संस्कृति विक्षिप्त सी है
यह नदी अभिशप्त सी है
खेत बनती थी उपजती
तरबूज, खरबूज ककड़ियाँ
अब रेत केवल तप्त सी है
यह नदी अभिशप्त सी है
प्राण उसके पी गई
लोलुपी जन की पिपासा
वासनाएँ लिप्त सी है
यह नदी अभिशप्त सी है
हम विकासों के कथानक
तान कर सीना दिखाते
सब शिराएँ रिक्त सी है
यह नदी अभिशप्त सी है
बस बाढ़ ही ढोती रहेगी
शेष दिन निःश्वास होंगे
जिन्दगी संक्षिप्त सी है
यह नदी अभिशप्त सी है
परिचय :- नाम - रामनारायण सोनी
निवासी :- इन्दौर
शिक्षा :- बीई इलेकिट्रकल
प्रकाशित पुस्तकें :- "जीवन संजीवनी" "पिंजर प्रेम प्रकासिया", जिन्दगी के कैनवास
लेखन :- गद्य, पद्य
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