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कविता

सावन आयो रे
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सावन आयो रे

============================== रचयिता : रीतु देवी सावन आयो रे मास मनभावन आयो रे हरी हरी चादर बिछी चहुँ ओर, प्रफुल्लित तन मन नाचे होकर विभोर। सावन आयो रे मास मनभावन आयो रे सब सखी हिलमिल झूले झूला, प्रेम पंखुरी सबके अंतर्मन खिला। सावन आयो रे मास मनभावन आयो रे बरसे रिमझिम वर्षा फुहार, पग बढ चले शिव जी द्वार। सावन आयो रे मास मनभावन आयो रे शिव जी से मांगे सजनी, सजना का प्यार बेशुमार आकर भोले बाबा धरा पर, भक्तों को दें मनवांछित उपहार। सावन आयो रे मास मनभावन आयो रे दिल में बजे नव धुन की शहनाई हरकर सूखापन सबने ली आंगराई। सावन आयो रे मास मनभावन आयो रे लेखीका परिचय :-  नाम - रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित क...
काव्यदीप है कविता
कविता

काव्यदीप है कविता

================================== रचयिता : मनीषा व्यास आत्मा के सौंदर्य का ख़्बाव है कविता काग़ज़ रूपी खेतों में शब्द रूपी क़लम से बीजों का अंकुरण है कविता — आत्मीय सौंदर्य का काव्यदीप है कविता पल पल संजोकर सपने भी सच कर हौसलों की उड़ान भर जाती है कविता - मन जब अकेले पन के आग़ोश में छिपा हो तो उस अकेलेपन का भी साथी बन न जाने कब साथ आ जाती है कविता _ मन जब भावना के अधीन बहक रहा हो तो भावना के साथ अश्रु बन कर बह जाती है कविता __ आसमान सी नीली धवल चाँदनी बन चंचल मन की चपलता में भी भाव गढ़ जाती है कविता __ तिमिर में जब राह भूल जाय कोई राही तो पथिक की राह में भी दीप जला जाती है कविता ........... लेखिका परिचय :-  नाम :- मनीषा व्यास (लेखिका संघ) शिक्षा :- एम. फ़िल. (हिन्दी), एम. ए. (हिंदी), विशारद (कंठ संगीत) रुचि :- कविता, लेख, लघुकथा लेखन, पंजाबी पत्रिका सृजन का अनुवाद, रस-रहस्य, बिम्...
शरारत
कविता

शरारत

==================================== रचयिता :  माया मालवेन्द्र बदेका शरारत अंबर ने कर दी,झुक गया धरा पर ऐसे। घनी जुल्फों के साये हो,धरा गौरी बनी जैसे। नभ खिलखिला रहा,दौडता उड़ता रहता है। कभी नीचे को आता है,कभी उपर ही रहता है। करता है अठखेलियां, शरारत वो करता है। न जाने किस मौज में फिर, धरा पर बरसता है। वसुधा तृप्त होती है,बरसो की प्यासी हो जैसे। शरारत अंबर ने कर दी,झुक गया धरा पर ऐसे। घनी जुल्फों के साये हो,धरा गौरी बनी जैसे। झीलमिल सितारे जब, गगन में,चमकते हैं। धरा की ओट में फिर, जुगनू से दमकते है। इठलाती है धरणी, रिमझिम सुर सजते हैं। टपटप बूंदो की बारिश ,सरगम बजते हैं। भीनी खुशबू माटी की ,गगन को चूमती जैसे। शरारत अंबर ने कर दी,झुक गया धरा पर ऐसे। घनी जुल्फों के साये हो,धरा गौरी बनी जैसे। लेखिका परिचय :- नाम - माया मालवेन्द्र बदेका पिता - डाॅ श्री लक्षमीनारायण जी पान्डेय मा...
सिर्फ़ तस्वीर
कविता

सिर्फ़ तस्वीर

=================================== रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' ये तन्हाई करीब आई है खुदा से पूछो कैसी किस्मत बनाई है रह रह कर जी रहा हूँ फ़िर भी सामने कई जंग आई हैं चल खुदा तेरा वादा किया पूरा जो मेरे पूर्वज गुज़र गए अब हिस्से में मेरे उनकी है सिर्फ़ तस्वीरें आई लेखक परिचय : नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं रुचि :- अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन " आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी मे...
है बहुत कुछ मगर…
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है बहुत कुछ मगर…

============================== रचयिता : नेहा राजीव गरवाल है बहुत कुछ... मगर देखा नही जा सकता, महसुस किया जा सकता है मगर, महसुस किया नही जाता। राते अंधेरी होती है !! मगर..... मंजिल के मुसाफिरो के लिए, ये किसी रोशनी से कम नही, ये जो लमहा गुज़र रहा है ना यार, ये भी किसी मंजिल को पाने के लिए कम नही। मुश्किलें है......हज़ारो होती है मगर, मंजिल से हार जाने से बडा....और कोइ गम नही। हालाते बस सताती है यारो!! इनसे बहक जाना.....हमारा मकसद नही। आलसय आबाद है मगर, आलसय और मंजिल का, को......इ मेल नही। चाहे तो आज कर दिखा सकते है यारो!! मगर, कल करने वाले भी कम नही। सोच तो बेमिसाल है मगर, बस!!! सोचते ही रहना...... मंजिल तक का रास्ता नही, सोचते तो कई है यारो!! मगर अपनी सोच के मुकाम न दे पाने  वाले भी....... इस दुनिया मे कम नही। लेखीका परिचय :-  नाम - नेहा राजीव गरवाल दूधी (उमरकोट) जिला झाबुआ (म.प्र.) ...
जीते हैं, जीतेंगे हम
कविता

जीते हैं, जीतेंगे हम

============================== रचयिता : रीतु देवी हमने पीछे पलटकर देखना नहीं, मुश्किलों से हमें घबराना नहीं, दृढ अटल होकर बढाना है कदम, जीते हैं, जीतेंगे हम। सहना है काँटों की चुभन, चलना है बिना परवाह किए तपन, छू लेंगे आसमां, है हममें दम जीते हैं, जीतेंगे हम। जब साथ है करोड़ों हाथों का साथ, न कम होने देंगे आत्मविश्वास हमारे नाथ, नयी ऊर्जा से लबरेज रहेंगे हरदम, जीते हैं, जीतेंगे हम। लेखीका परिचय :-  नाम - रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने मोबाइल...
नाव चली
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नाव चली

================================================ रचयिता : रशीद अहमद शेख हौले-हौले संभल संभल कर नाव चली! मौसम के सांचे में ढल कर नाव चली! रंग-ढंग परिदृश्य बदलते रहे सभी सीमाओं से निकल निकल कर नाव चली! पतवारों ने समय-समय पर साथ दिया लहरों की छाती पर पल कर नाव चली! तूफानों ने कसर नहीं छोड़ी कुछ भी जीवन पथ पर फिसल फिसलकर नाव चली मंज़िल की चाहत में था उत्साह बहुत लहरों के संग उछल उछल कर नाव चली! पल-पल 'कलकल- कलकल' कहती रही नदी प्रेमातुर को मगर विकल कर नाव चली! पथ पर आड़े आई हवा 'रशीद' अगर अपने तेवर बदल बदल कर नाव चली! लेखक परिचय :-  नाम ~ रशीद अहमद शेख साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, क...
मददगार
कविता

मददगार

=============================================== रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" अस्वस्थता में पहचान होती ईश्वर और इंसान की कौन था मददगार श्मशान के क्षणिक वैराग्य ज्ञान की तरह भूल जाता इंसान मदद के अहसान को फर्ज के धुएँ में सांसे थमी आँखे पथराई रतजगा से आँखों में सूजन अपनों की राह निहारती आँखे झपक पड़ती हुई निढाल सी आवश्यकता का भान मन  बेभान भरोसे का  वजन करने की चाह में ईश्वर और इंसान बन जाते तराजू के पलवे गुहार का कांटा झुकता है किस और किसी को पता नहीं किंतु एक विश्वास थमी सांसों के लिए जो मांग रहा  दुआएँ पीड़ित  की सांसे चलने अपनों की आबो हवा में फिर से साथ जीने का नए  जीवन का अहसास एक आस के साथ खोजता मददगारों को वो ईश्वर हो या इंसान परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्य...
उस पार
कविता

उस पार

  ====================== रचयिता : ईन्द्रजीत कुमार यादव एक वादा तो दे देते की लड़ाई इस पार की उस पार न होगा, जो कहानी लिखा है ख़ुदा ने इस पार वो उस पार न होगा, वादा है तुझसे इस जहां से अच्छी कहानी मैं उस जहां में लिखूँगा। कुछ लिखूँगा ,कुछ कहूँगा आवाज सदियों पार भेजनी है, माना आज कुछ बंदिशे हैं जमाने की जिससे बंधे हैं हम दोनों, इतना तो वादा चाहूंगा तुझसे, इन्तेजार तेरा उस पार मेरा ज़ाया न होगा। बात एक रात की होती तो सो भी जाता, अब ये अश्क़ अपना अंजाम पूछता है, जहाँ ठहरना है वो मुकाम पूछता है, अब तू ही बता क्या आशियाना हमारे गमों का उस पार भी होगा? ज़ार-ज़ार होकर रोने को वहाँ क्या तेरा कान्धा होगा? जिसमे लिपट कर ये रूह फ़ना हो जाए, क्या वो दामन तेरा होगा? सड़क बहुत लंबा है इस तरफ का, तू साथ दे उस पार तो हर कदम मेरा तेरे साथ होगा। लेखक परिचय :-  नाम : ईन्द्रजीत कुमार यादव निवासी : ग...
तेरे बिन
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तेरे बिन

=================================== रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' कितनी राते कितने दिन   मैं जिया हूँ तेरे बिन मिलती थी तन्हाई मुझसे      मेरे यारा जब         तेरे बिन होकर द्रवित तन-मन मेरा बहस खुद से कर लेता था बनकर के लहू के आँशू मेरा दिल रो उठता था         तेरे बिन ख्वाब सजाए वो बैठा था कई भोरों से शामों तक शीशा जैसी बिखर गई थी    उसकी खामोशी फिर            तेरे बिन कई सपनें व वादे      टूटे थे लाखों पथिक निकल     चुके थे उसके दिल की राहें सूनी थीं        तेरे बिन लेखक परिचय : नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं रुचि :- अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती...
ख्वाब
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ख्वाब

========================== रचयिता : संगीता केस्वानी  अजीब दास्तान है ख्वाबों की, हक़ीक़त से परे, फिर भी नज़रबंद रहते है, खोये सेहर के उजालों में, निशा में समाए रहते है, बदरंग इस दुनिया मे, रंगीन जिंदगियां सजाये रखते है, बिखरी खाली झोली में, उम्मीदों की रोशनी भरते है, दूर क्षितिज खड़ी मंजिलों को, कदमों से नही हौसलों से करीब कर जाते है, थकी हारी इन साँसों मैं, जीने की नई उमंग भर जाते है, यूं तेरे-मेरे ख्वाब मिलकर, हक़ीक़त का घरोंदा सज्जा जाते है।। लेखिका परिचय :- संगीता केस्वानी आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने मोबा...
कुछ बातें अनकही सी
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कुछ बातें अनकही सी

======================== रचयिता : रुचिता नीमा कुछ बातें अनकही सी, अनसुनी सी हर बार रह जाती है बताना चाहती हूँ बहुत कुछ और बहुत कुछ जानना भी हर बार कोशिश करती हूँ पर न जाने क्यों तुम्हारे सामने आते ही सब कुछ, वही का वही रह जाता है कहना होता है कुछ और और कुछ और ही बयां हो जाता है पर जो कुछ भी हो, बस सार यही है, की तुम खुश रहो जहाँ भी रहो।।।।।। मैं तो हमेशा तुम्हें, तुम्हारी परछाई में नजर आऊँगी।। बस एक बार दिल की आँखों से देख लेना ..... लेखिका परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने...
बिलखे धरा
कविता

बिलखे धरा

==================================== रचयिता :  माया मालवेन्द्र बदेका मत रो धरा मत रो धरा, निर्मोही बादल नहीं झरे। निर्मोही बादल नही झरे, बेदर्दी बादल नहीं झरे। मत रो धरा मत रो धरा_____ हरियाला आंचल तेरा तरस रहा। आंचल का फूल, देखो तरस रहा। वसुंधरा का कैसे हो श्रृंगार । कैसे उपवन में आये बहार। कब तक अवनी बाट जोहे, कब तक प्रतिक्षा करे। मत रो धरा मत रो धरा_____ वन उपवन, बाग सूखे हो जाये। कलियां और फूल न मुसकाये। एक एक बूंद बूंद की प्यास रहे। बादल से मिलने की आस रहे। धरती घट हुआ रीता,बिन बादल इसे कौन भरे। मत रो धरा मत रो धरा_____ मां अचला बड़ी दयालू है तू। अन्नदात्री धरा, अन्नपूर्णा है तू। धरणी तेरे बिन मानव भूखा। कभी  न अकाल न पड़े सूखा। बिन तेरे माता, जीवनयापन कौन करे। मत रो धरा मत रो धरा____ लेखिका परिचय :- नाम - माया मालवेन्द्र बदेका पिता - डाॅ श्री लक्षमीन...
स्कूल जाती बच्चियाँ
कविता

स्कूल जाती बच्चियाँ

================================================ रचयिता : रशीद अहमद शेख उदासी अपनी छिपाती बच्चियाँ! हौले-हौले मुस्कुराती बच्चियाँ! गीत कोई गुनगुनाती बच्चियाँ! प्रफुल्लित स्कूल जाती बच्चियाँ! बोझ बस्तों का उठाती बच्चियाँ! ज्ञान-पथ पर पग बढ़ाती बच्चियाँ! सुनहरे सपने सजाती बच्चियाँ! प्रफुल्लित स्कूल जाती बच्चियाँ! प्रश्न का उत्तर बताती बच्चियाँ! समस्या का हल सुझाती बच्चियाँ! प्रखर प्रतिभा से लुभाती बच्चियाँ! प्रफुल्लित स्कूल जाती बच्चियाँ! स्नेह अपनों पर लुटाती बच्चियाँ! भूमिका जमकर निभाती बच्चियाँ! सुमन आशा के खिलाती बच्चियाँ! प्रफुल्लित स्कूल जाती बच्चियाँ! सितारों सी झिलमिलाती बच्चियाँ! चन्द्रमा सी चमचमाती बच्चियाँ! धूप जैसी खिलखिलाती बच्चियाँ! प्रफुल्लित स्कूल जाती बच्चियाँ! रूप परियों का चुराती बच्चियाँ! ढंग गुड़ियों सा दिखाती बच्चियाँ! प्रशंसा हो तो लजाती बच्चि...
मेरा इंतजार ……..
कविता

मेरा इंतजार ……..

=================================================== रचयिता : रुचिता नीमा उसका वो कहना कि तुम इन्जार करना मैं खुद ही आऊंगा, बड़ी कशमकश में कर गया दिन पर दिन बीतते गये, पर वो इंतजार की घड़ियां कभी खत्म नही हुई इसे मेरा जुनून कहे या दीवानगी मै हर बीतते पल और बड़ी बेसब्री से इंतजार करने लगी।।। फिर एक दिन मिला वो बीच बाजार में, जैसे कोई अजनबी देख कर भी अनदेखा कर निकल गया लेकिन इस बार मेरे साथ जो हुआ वो किसी जादू से कम न था, मुझे कुछ भी अजीब नहीं लगा क्योंकि जो मेरा जुनून था, मुझे सुकून देने लगा था अब।।।। और शायद उसके मिलने का अब मुझे इंतजार ही नही रहा था, मुझे अब खुद के खुद से मिलने का इंतजार था।।। और वो घड़ी करीब आने लगी थी।।। क्योंकि अब मैं ये जान गई थी, कि वक़्त, वक़्त के साथ बदल जाता है, और कुछ कुछ हम भी दुनिया मे कुछ भी अपना नहीं सिवाय अपने परमात्मा के, जो अपने अंदर ही छि...
डाकबाबू
कविता

डाकबाबू

========================================== रचयिता : श्रीमती मीना गौड़ "मीनू माणंक" मोटा चश्मा आँखों पर, कांधे पर चिट्ठियों का बूलदां। सुबह-शाम आते सायकल पर, डाकबाबू ले कर संदेशा।। जोर लगा कर मारते पेडल, फिर भी धीरे चलती सायकल। हो गई थी पूरानी। नहीं रुकते कभी डाकबाबू चिलचिलाती धूप हो , या बारीश का पानी।। बांटते सभी को चिट्ठी...... किसी में होती खुशियों की सोग़ात। तो किसी में आता, ग़म का संदेशा।। जब बुढ़ी माँ को ये देते संदेश, हो गया बेटा शहीद देश पर। तो आँखें भर आती, हटा के ऐनक, पोंछ लेते आँसु ग़म के।। अगले ही पल लिये मुस्कान चेहरे पर, देते शुभ संदेश,,,,,, ख़ुशियाँ बांटो ताऊजी, कुल दीपक आया है। छ्ट गई बदली निराशा की, दादा तुम्हें बनाया है।। बैठी हूँ आस लगाए, पुराने दिन लोट आए। खो गए कहीं डाकबाबू , संदेशा, अब कौन लाए।। लेखिका परिचय...
सबकुछ हैं वो
कविता

सबकुछ हैं वो

=================================== रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' क्या होती है माँ वो माँ से पूछो क्या होता है पिता वो एक पिता से पूछो। खुद के सपनों को चकनाचूर करके तुमको क्या क्या दिया जरा मुङकर तो देखो।। तुम अपने ही ख्वाबों में डूबे हो अपनी शौक के खातिर ही जिद् करते हो जरा उनके अरमानों को उनके दिल पर हाथ रखकर तो देखो। कैसा दिल होता है उनका जरा खुद को उनमें ढालकर तो देखो।। माँ-पिता ने तुमसे कितने आसरे लगाए होंगे कभी खुद भी इसपर सोचकर तो देखो। कितने अपने हौंसलों को आग देकर उन्होंने तुमको उजाले में ला खङा किया है ये जरा खुद में झाँककर तो देखो।। लेखक परिचय : नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप...
बरखा रितु
कविता

बरखा रितु

==================== रचयिता : मनोरमा जोशी हरित तृणिका मेदनी पर, मोर मनहर दीखते हैं। शरद के पग चिन्ह आली, हर दिशा में दीखते हैं। छट गये बादल बरसते, विहग पुलकित मोर नचते आज ये जलकुंड देखो, झिलमिलाते दीखते हैं। सघन कुजों के किनारे, कृषक धरती के सितारे। झुन्ड के अब झुन्ड देखो, हल चलाते दीखते हैं। गा रही प्राची प्रभाती, किरण फूली न समाती। हर भवन नक्षत्र से ही, मुस्कुराते दीखते हैं। खडी़ फसलें खिलखिलाती मखमली हरियालियों में मोर हसते दीखते हैं। लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा-स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र-सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं।विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। र...
लावा
कविता

लावा

==================================== रचयिता :  माया मालवेन्द्र बदेका जब जब लिपटती है कसकर मुझसे वह जी करता है लावा बन जाऊं बहा ले जाऊं उन दहेज के लोभियों को। पाषाण बन जाती हूं,जब उसके नैन बरसते हैं। समझाती हूं उन सारे तानों का मतलब। जो उस निर्दोष को दिये गये। ताने के अर्थ, हजार बिच्छुओं के डंक मुझे देते हैं। ना समझ, नहीं समझ पाई । पूछती रही मतलब। पहली बार पूछने पर बता देती काश तो उससे ज्यादा, अर्थ समझती में। उस पीड़ा से निकाल देती जो मेरी समझी हुई, नासमझी से भोगी उसने। दहेज के मीठे लोभियों कटाक्षों के कुबेर। घर से बाहर निकलना और दुनियां देखना। धरती कूड़े करकट का ढेर नहीं तुम्हारी गंदी मानसिकता से बोझिल हुई है। बोझिल है उन बेटियों की भस्म से। जो तुम्हारे मन के दानव ने जला दी। चंद सिक्कों के भिखारी। ईश्वर के पास कटोरा लेकर मत जाना। वो बेटियों को बहुत प्यार करता है। ...
मौन शक्ति
कविता

मौन शक्ति

=================================== रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' जो भी पाना है तुम्हें सब कुछ मिल जाएगा आसमाँ भी थोड़ा झुक जाएगा मुझे बस मौन रहना है लोग बुरा कहते हैं वो डराते हैं वो आलोचना करते-करते जीत कर भी हार जाएंगे मुझे बस मौन रहना है कष्ट सहकर,दर्द सहकर मुझे मंजिल की ओर जाना है टूटे गर मौन भी मेरा तो मुझे बस मुस्कराना है मुझे बस मौन रहना है मौन दुनियां की सबसे बड़ी शक्ति है जिसका मुझे उपयोग करना है इसे पाना सबसे साधारण है मुझे बस मौन रहना है लेखक परिचय : नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं रुचि :- अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता ह...
ओ पिता
कविता

ओ पिता

==================================== रचयिता :  माया मालवेन्द्र बदेका पिता जनक लौट आओ दो शुभाषिश शीश धरो हाथ ह्रदय अकुलाता पुकारता निशदिन थामे रखना बचपन खिलौनों सपने खेल झूठे राते सूनी हुई दिन है रिते धड़कन अंश वंश जुड़े नाम अस्तित्व नहीं तुम बिन ठौर ठाम दौलत मेरी तुम जागिर मान संग चले पिता पकड़ हाथ सुख आंनद रहते साथ अबोध के बोध निर्मल तात विस्तृत आकाश जनक देव रुप मुक्तक  स्वरुप चंद्र किरण बांहे खुली जनक पिता ओ लेखिका परिचय :- नाम - माया मालवेन्द्र बदेका पिता - डाॅ श्री लक्षमीनारायण जी पान्डेय माता - श्रीमती चंद्रावली पान्डेय पति - मालवेन्द्र बधेका जन्म - ५ सितम्बर १९५८ (जन्माष्टमी) इंदौर मध्यप्रदेश शिक्षा - एम• ए• अर्थशास्त्र शौक - संस्कृति, संगीत, लेखन, पठन, लोक संस्कृति लेखन - चौथी कक्षा मे शुरुवात हिंदी, माळवी,गुजराती लेखन प्रकाशन - पत्र पत्रिका...
पिता
कविता

पिता

श्रीमती मीना गोदरे 'अवनि' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पर्वत से ऊंचे आसमान को छूते फौलादी बाहों में नाजुक एहसाश भरे जो मुझे गोद में उठा लेते मेरी मूस्कानो में जो अपनी मुस्कान भर देते सबसे प्यारे सबसे न्यारे  हैं पिता हमारे जिनके घर आते ही ऊर्जा से भर जाता घर का कोना कोना जो बरगद की शीतल छाया से तपन ग्रीष्म की हर लेते सबसे प्यारे सबसे न्यारे हैं पिता हमारे दूर रहकर भी मुझसे जिनको  चैन नहीं आता आंखों में आंसू नहीं होते पर रोता है दिल जिनका सबसे प्यारे सबसे न्यारे  हैं पिता हमारे दिखते हैं जो कठोर से हम को अनुशासित करने में जेब भरी हो या हो खाली सदा तत्पर रहते मेरे सपनों को भरने में सबसे प्यारे सबसे न्यारे वो पिता हमारे वो सूरज हैं मेरे घर के जिनसे होता उजियारा गर्व हमें उनके साहस पर जिनसे भय भी है भय खाता सबसे प्यारे सबसे न्यारे हैं पिता हमारे जिनके मन की हम न जाने सदा आज्...
अविश्वास
कविता

अविश्वास

==================================== रचयिता : मनोरमा जोशी अविश्वास है घात की, घर्म आस्था तथ्य, मानव में ईशवर कहीं, रहता छिपा अवश्य। अविश्वास वह बुन्द है, जो समुद्र से दूर, होकर निज असित्तव को, करता चकनाचूर। अविश्वास से हो रहा, जग जीवन भयभीत, जग जावे विश्वास तो, हो जग स्वर्ण पुनीत। असंतोष दुर्भावना, मन में रहे न लेष, अविश्वास मिट जाये तो, मिटे वर्ग विद्धेष। ईशवर न्याय विधान में, जिसे न कुछ विश्वास, आत्म शान्ति उस को नहीं छुटकारा भय  त्रास। लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा-स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र-सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं।विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी ...
आओ खो जायें
कविता

आओ खो जायें

========================================== रचयिता : श्रीमती मीना गौड़ "मीनू माणंक" आओ खो जायें, गुज़रे ज़माने में। कुछ यादों में, कुछ ख्बों में। चांद-तारों में, वो ढ़लती शामों में। खिड़की-झरोखों में, गुपचुप इशारों में।। कुछ खट्टी-मिट्टी नोक झोक में। वो प्रीत भरी सौग़ातों में।। खुशियों भरी शहनाईयों में। सुहानी उन रातों में।। अपने वा बैग़ानों के साये में। जो खुशियाँ बाँटी प्यार में।। परिवार की खुशियों में। बच्चों की किलकारीयों में।।   लेखिका परिचय :-  नाम - श्रीमती मीना गौड़ "मीनू माणंक" सदस्य - इंदौर लेखिका संघ शुभ संकल्प (पंजीकृत) - कई प्रतिष्ठित अखबारों में रचनाओं का प्रकाशन, व विभिन्न पत्र-पत्रिकाओ में लेख वा रचनाऐं प्रकाशित लेखन विधा - कहानीयाँ, कविता, लेख, लघुकथा, हायकू ,बालसाहित्य। प्रकाशित रचनाएं  लेख - देश की गुल्लक, वीर जवान आदि। ...
सद्भावना
कविता

सद्भावना

====================================== रचयिता : मित्रा शर्मा अमृत तुल्य समयको सदुपयोग करना होगा सुकर्म के राह में चलकर सद्चरित्र अपनाना होगा। ढल जाती है यह रूप और यौवन तय वक्त पे सद्भावना प्रेम अपनापन सदा हराभरा रहता है। ख्वाहिशें क्या रखना यह नष्वर शरीर के लिए  पर उपकार सदाचार  बेहतर है जीने के लिए। कभी किसी के लिए किया हुआ  दुआ खाली नही जाती है  इस्वर के फैसले हमारे ख्वाहिशों से बेहतरीन होते है। परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने मोबाइल पर या ...