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कविता

बारिश की बूंदे
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बारिश की बूंदे

********* रचयिता : निर्मला परिहार महकती है मिटटी गिरती है बूंदे, जब बारिश की खिलती है कलियां, झूमती हैं डालियां चहकती है चिड़िया, गाती हैं कोयल सुगंध प्रभात बांटते हैं फूल महकती है मिटटी, खेतो की खेतों में हल संग, चलते बैल  जब लहराती हैं फसल, झूमते हैं दाने खिलते हैं मुखड़े तब, परिश्रमी कृषक के बच्चा-बच्चा हस देता, आती है फसल जब पहली गली-गली में जलते दीप,  होती है तब दीवाली गिरती है बूंदे, जब बारिश की नदी कूप उफन से जाते ताल तलैया सब इतराते पदम है खिलता, सूखी धरा है हरियाली इंद्रचाप अंबर में दीखता तक गिरती है बूंदे, जब बारिश की ठंडी - ठंडी पवन मुस्काती बिजली भी करवट लेती गिरती है बूंदे, जब बारिश की !! . .लेखिका परिचय :-  निर्मला परिहार निवासी : पाली राजस्थान शिक्षा : बी.एड वर्ष २ विद्यार्थी आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ ...
हिंदी दिवस पर एक व्यंग्य
कविता, व्यंग्य

हिंदी दिवस पर एक व्यंग्य

********* रचयिता : विवेक सावरीकर मृदुल अगवानी में लगे देश के मंच सारे उसे राष्ट्र के माथे की बिंदी पुकारे लगेंगे उसके सम्मान में जयकारे हिंदी दिन पर देखें ऐसे ही नज़ारे . परायेपन का बोझ ले विवाहित बेटी निज घर आती  सहमती औ बौराती पल सम्मानित, उपेक्षा युगों युगों की मुखर हो बात कभी न ये कह पाती . राष्ट्र भाषा का सपना आँखों में धारे हिंदी दिन पर देखे ऐसे ही नज़ारे।। . अंग्रेजीयत का रोमांच हमको भाता हिंदीवालों को समझते गंवार भ्राता यूं विश्वमंच पर ध्वज फहरा आते और सालों उस भाषण के गुन गाते . लेकिन अब भी हम अंग्रेजी के सहारे हिंदी दिन पर देखे ऐसे ही नज़ारे।। . .लेखिका परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दु...
हिन्दी की ज्योत
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हिन्दी की ज्योत

********* रचयिता : कल्पना ओसवाल आओ हम सब मिलकर, हिन्दी की ज्योत जलाए जो रचि बसी है, हमारे मन में, उस ज्योत को जलाए, खो गई है अंग्रेजी के ज्ञान में, विस्तार करे हम देश की भाषा का, देश में पहचान जिसकी हो रही कम। गर्व करें हम हमारी मातृभाषा पर, जिसका ज्ञान जिसे, वह करे अभिमान हम हिन्दी भाषी है, यह अहसास सब में जगाना है, आओ हम सब मिलकर, हिन्दी की ज्योत जलाएं घर में हिंदी भाषा का उपयोग करें घर ,मोहल्ला, शहर, देश में, इसकी पहचान बढ़ाए, एक कदम हम चले, एक कदम तुम चलो, मंजिल सामने नजर आएगी, हम अपनायेगे तो,सब अपनायेगे, यह नजरिया सबका बनायेगे, आओ हम सब मिलकर, हिन्दी की ज्योत जलाए। . .लेखिका परिचय :-  श्रीमती कल्पना ओसवाल निवासी : मध्यप्रदेश इंदौर जन्म तिथि : १७/७/७४ नाथद्वारा (राजस्थान) शिक्षा : चित्रकला और पैंटिंग मे स्नातकोत्तर कार्यक्षत्र : लेखन में कविता और लघु कथाएँ लेखन प्रकाशन : दैन...
देश की दशा
कविता

देश की दशा

********* सुश्री हेमलता शर्मा गुजर रहा है दौर देश का, महाभारत परिवेश से। कब गुूंजेगा पांचजन्य का शंखनाद इस देश में।। कहीं दुर्याेधन करता मर्दन, कहीं पर उसका है साथी। कहीं शकूनि की चालों से, होती देश की बर्बादी।। कहीं दुःशासन चीर हरण कर, पडा हुआ है ऐश में। अंधे करते हैं शासन, इस भारत जैसे देश में।। गुजर रहा है दौर देश का, महाभारत परिवेश से। कब गूंजेगा पांचजन्य का शंखनाद इस देश में।। यही देश है चाणक्यों का, यही देश अवतारों का। इसी देश में गंगा बहती, नहीं अन्त पतवारों का।। फिर भी भारत मां का मुखडा, दिखता सदा ही क्लेश में चहुं ओर प्रताडित होती जनता, आम आदमी तैश में।। गुजर रहा है दौर देश का, महाभारत परिवेश से। कब गूंजेगा पांचजन्य का शंखनाद इस देश में।। . .लेखिका परिचय :-  सुश्री हेमलता शर्मा निवासी: इंदौर मध्यप्रदेश जन्म तिथि : १९ दिसम्बर १९७७ जन्मस्थान आगर-मालवा शिक्षा : स्नात...
हर बातों को टाल रही हूं!
कविता

हर बातों को टाल रही हूं!

********* रचयिता : दीपक्रांति पांडेय यह जो तस्वीरें मैं यादों के रूप में, हर पल दिल से संभालती रही हूं। . जख्मों को मैं मिटाती नहीं कभी, नासूर बन्ने तक पालती रही हूं। . बेशक मुझे पता है हर पल, आज मेरा वक्त खराब चल रहा है साहेब। . अपने हर अच्छे वक्त के इंतजा़र में, बुरे लम्हों को मुस्का के टालती रही हूं, . कचरा कहते हैं लोग जिन यादों को, हीरा मान के तिजोरी में डालती रही हूं, . नादान हैं बेचारे एसा सोचने बाले, मैं यही सोचकर बात टालती रही हूं। . बेशक वो दौर आएगा बगल में फोटो खिंचवाने हर कोई दौड़ आएगा। . बस इसी ख्याल से गै़र जरूरी बातों को अपने जहेंन से नकालती रही हूं। . लेखिका परिचय :-  दीपक्रांति पांडेय रीवा मध्य प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि...
सच कहूं
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सच कहूं

********** रचयिता : अमित राजपूत सच कहूं पहले वाला जमाना बड़ा अच्छा था ! जहां दया प्रेम भाव और हर आदमी बड़ा सच्चा था ! सच कहूं पहले वाला जमाना बड़ा अच्छा था ! . जहां  मिल बांट कर पी लेते थे एक बटा दो चाय किसी नुक्कड़ पर बैठकर ! लोगों  मैं एक दूसरे के प्रति वह इमानदारी प्यार बेशुमार था ! सच कहूं पहले वाला जमाना बड़ा अच्छा था ! . ना फेसबुक  था ना स्टाग्राम था नाही ही व्हाट्सएप था ! बस था तो उस चिट्ठी को लेकर आने वाले डाकिए का इंतजार था ! सच कहूं पहले वाला जमाना बड़ा अच्छा था ! . ना डिस्को क्लब थे ना बड़े बड़े मॉल ना ही मनोरंजन के साधन थे ! जहां छोटे-छोटे रंगमंच और रामलीला में बिखरता वह प्यार  था ! सच कहूं पहले वाला जमाना बड़ा अच्छा था ! . किसी के दुख परेशानी में इकट्ठा हो जाते थे जहां हजारों  लोग ! जहां लोगों में आपसी सदभावना प्रेमभाव का अंबार था ! सच कहूं पहले वाला जमाना ब...
झोंझ
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झोंझ

********** रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' कितना सुन्दर घर है जिसको कहते झोंझ हैं तिनका-तिनका चुनकरके खूब सजाती झोंझ है जरा सहारा डाल का ईंट गारा सूखे-साखे खरपतवार का बड़ी लगन और मेहनत से कर डाला निर्माण है झोंझ का कितना सुन्दर कितना मनमोहक है बनता जाता झोंझ है जुगनूँ की मिट्टी से देखो चमक भी उठता झोंझ है रंग बिरंगे नील गगन में खाते रहता गोते है जरा सहारे एक लकड़ी के झूमता रहता झोंझ है . लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्...
कैसे छूएं हम गगन को
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कैसे छूएं हम गगन को

अन्नू अस्थाना भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** कैसे छूएं हम गगन को, रौंद तो दिये जाते है। कैसे उड़े गगन में, पंख तोड़ मरोड़ दिये जाते हैं। कहा था हमसे कभी किसी ने, तुम गुल हो चमन के, तुम शान हो वतन के, नेता तुम्ही हो कल के। पूछा था कभी हम से किसी ने, नन्हे-मन्हे तेरी मुट्ठी में क्या है, मुट्ठी में तकदीर है हमारी, यह कहा था हमने। कैसे छूएं हम गगन को, रौंद तो दिये जाते है। कैसे उड़े गगन में, पंख तोड़ मरोड़ दिये जाते हैं। बेखौफ हमें दबोच लिया जाता, कैसे बनेगे हम राष्ट्र निर्माता। घर आंगन मे ही लगता है डर, बाहर निकलना है दुभर। भैया, काका, और चाचा इन्हीं से डर अब ज्यादा सताता। कैसे छूएं हम गगन को ......... सोच रहे थे हम सब नन्हें साथी पल-पल, इंसाफ कि डगर पर कैसे चले हर-पल। खेलने में, कुदने में, झुमने में और नाचने में, हमे मजा बहुत आता। पर ना जाने वैहषी कब झपट मार जाता, कोई समझ नहीं...
रिश्ता नया नया
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रिश्ता नया नया

********** रचयिता : माधुरी शुक्ला क्या में कहु, क्या में सुनाऊ बड़ा ही कठिन रास्ता है यह,, विजयपथ यह मंजर बड़ा ही बीहड़ भरा मंजिल कहा होगी नही पता। गर  कुछ कहा, आपने सुना गर बिगड़ गया कुछ, ये नया अहसास है, जज्बात नया रिश्ता भी तो है नया नया। कुछ तो सीमा है, इसकी मंजिल का पता नही बहके हुए कदमो को रोकना ही सही। ये रिश्ता नया नया महक है अभी बाकी इसकी सुगंध भी है बाकी दोस्ती में भी बहुत कुछ, खूबसूरत सा रंग है बाकी। बिखरने ना दे हम इसे फूलों की कलियों की तरह रिश्ता हमारा नया नया सा जो है। . . लेखीका परिचय :-  नाम - माधुरी शुक्ला पति - योगेश शुक्ला शिक्षा - एम .एस .सी.( गणित) बी .एड. कार्य - शिक्षक निवास - कोटा (राजस्थान) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख...
पानी की पुकार
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पानी की पुकार

********** रचयिता : श्रीमती पिंकी तिवारी पृथ्वी का सबसे अमूल्य संसाधन हूँ मैं, केवल जल नहीं, जीवन का रसायन हूँ मैं। सूक्ष्म जीव हो या हो स्थूल शरीर, रक्त के रूप में होता हूँ, मैं ही नीर। हिम बनकर पर्वत पर छा जाता हूँ, गहरे भूतल में, सागर मैं बन जाता हूँ। झरने से बहता हूँ, मिलता हूँ नदियों से, जीवन बनकर बह रहा हूँ, पृथ्वी पर सदियों से। बहता हूँ मैं, क्योंकि बहना है प्रकृति मेरी, लेकिन मुझको व्यर्थ बहाना, ये मानव है विकृति तेरी। पृथ्वी की हरियाली ही मेरे प्राणों का आधार है, लेकिन मेरे प्राणों पर ही मनुष्य, किया तूने प्रहार है। केवल जल नहीं, रक्त हूँ मैं पृथ्वी का, जब रक्त ही बह जाएगा, तो शरीर रहेगा किस अर्थ का? समय रहते अपनी भूल को सुधार लो, मुझको बचाकर, जीवन आने वाली पीढ़ियों का संवार लो। . लेखिका परिचय - श्रीमती पिंकी तिवारी शिक्षा :- एम् ए (अंग्रेजी साहित्य), मेडिकल ट्र...
देखा है
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देखा है

********** रचयिता : नेहा राजीव गरवाल हर रोज़ सवारते हो, जिस्म को....... उतर कर इसकी गहराई मे, कभी अपनी रूह को देखा है??? जानते तो,हो खुद को.... मगर कभी अपनी जिम्मेदारियों को, अपनो के बीच,चटृानो की तरह मजबूत बना कर देखा है। पता तो सब है, सब को ..... मगर जब रुठ जाते हे, इरादे खुद से, हाँ,वक्त के उन बदलते हालातो मे क्या कभी, मुसकुराकर देखा है??? चलो पढ़ तो लिया है, इस पागल की लिखी इन बातो को.... मगर जो गहराई हे इन बातो की, कभी उसमे उतर कर देखा है??? . लेखीका परिचय :- नेहा राजीव गरवाल दूधी (उमरकोट) जिला झाबुआ (म.प्र.) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक ...
बाल मजदूर का दर्द
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बाल मजदूर का दर्द

*********** रचियता : मीनाकुमारी शुक्ला - मीनू "रागिनी" न छीनो मुझ से मेरा बचपन ला कर दे दो मुझे कापी और कलम। नहीं चाहिये कोई सौदे नहीं चाहिये भरम। बस लौटा दो मेरा बचपन।। कहीं से किस्ती कागज वाली ला दो। कलकल करते झरने बहा दो। सतोलिया का खेल दोस्त ला दो। न दिखाओ पैसों का सपन बस लौटा दो मेरा बचपन। नन्हे हाथ नहीं बने मजदूरी को। चाहें खेल कर नापना ये धरती गगन की दूरी को। हटा दो मजबूरी के बंधन। बस लौटा दो मेरा बचपन। कब तक ईंटें ढ़ोता रहेगा। चाय केतली को खेता रहेगा। दे दो मुझे खिलौने चाँद सूरज तारे चमचम। बस लौटा दो मेरा बचपन।।   लेखक परिचय :-  मीनाकुमारी शुक्ला साहित्यिक उपनाम - मीनू "रागिनी " निवास - राजकोट गुजरात आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रका...
प्यारी हिन्दी
कविता

प्यारी हिन्दी

********** रचयिता : रशीद अहमद शेख 'रशीद' शब्दों की फुलवारी हिन्दी भावों की भण्डारी हिन्दी विश्व-ज्ञान को करे प्रकाशित सूरज सी उजियारी हिन्दी हिन्द देश की प्यारी हिन्दी प्रथम ज़बाने हिन्दवी आई हुई हिन्दवी हिन्दुस्तानी बनी आर्य भाषा, रेख्ता भी फिर हिन्दी की संज्ञा पाई अगणित संज्ञाधारी हिन्दी हिन्द देश की प्यारी हिन्दी अभिव्यक्ति का प्रबल माध्यम सरल वर्ण हैं लिपि भी उत्तम कोई ॠतु हो कोई मौसम धड़कन सी रहती है हरदम सदियों से है जारी हिन्दी हिन्द देश की प्यारी हिन्दी पद्य-पद्य हैं इसके गौरव अखिल विश्व में इसकी सौरव इसकी विविध विधाओं में नित सतत् सृजन होता है नव-नव सुन्दर राजकुमारी हिन्दी हिन्द देश की प्यारी हिन्दी इसके कवि चन्द बरदाई उन्हें वीर गाथाएँ भाई खुसरो ने भी गीत सुनाए आदिकाल में हिन्दी छाई सबकी राजदुलारी हिन्दी हिन्द देश की प्यारी हिन्दी तुलसीदास जी, संत कबीरा सूरदास, रैदास ...
माँ 
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माँ 

********** रचयिता : कंचन प्रभा वो महिला है, जो दर्प हो सकती है। वो वनिता है, जो परित्यक्ता हो सकती है। वो दुहिता है, जो अनाथ हो सकती है। वो कलत्रा है, जो विधवा हो सकती है। वो सलिल है, जो कृशानु हो सकती है। वो निरधि है, जो व्याकुल हो सकती है। वो ध्रुवनंदा है, जो मलिन हो सकती है। वो सविता है, जो अस्त हो सकती है। वो उर्वी है, जो नष्ट हो सकती है। पर वो माँ है, जो निर्मम नहीं हो सकती है . लेखिका का परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने मोबाइल पर या गूगल पर w...
मुलाकात वफ़ा का वादा हैं
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मुलाकात वफ़ा का वादा हैं

********** जीत जांगिड़ सिवाणा मुलाकात वफ़ा का वादा हैं तो ये वादा हम निभाएंगे, तुम रखना हमको याद चांद हम लौटकर फिर आएंगे। मुश्किलें ये छंट जाएगी जो हैं दूरियां मिट जाएगी, इस जहां की हर फिज़ा अपनी हिकायत गाएगी, पायाब है ये परेशानियां साथ में चल कर पार जाएंगे, तुम रखना हमको याद चांद हम लौटकर फिर आएंगे। लाल गुल गुलाल से हम तेरे आंगन को सजाएंगे, दीपों की माला से रोशन द्वार झरोखे करवाएंगे, अब की ईद दीवाली और होली तेरे घर पे ही मनाएंगे, तुम रखना हमको याद चांद हम लौटकर फिर आएंगे। नेक इरादे हैं लिए हम उसकी रहमत जरूर होगी, तिश्ना हैं मगर सबनम की बूंदों की हसरत नहीं होगी, हम सातक सी लियें है हस्ती बारिश से प्यास बुझाएंगे, तुम रखना हमको याद चांद हम लौटकर फिर आएंगे। हिन्दी वतन के वासी हैं हम मजबूत इरादों वाले हैं, ठोकरों के सदा सहचर है कभी न डिगने वालें है, इन नफरत के जरासिमों का हम ही मर्ज ...
मातृभाषा का प्रसार
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मातृभाषा का प्रसार

********** रचयिता : मनोरमा जोशी नये जगत की नयी कल्पना, को आऔ साकार बनाये, हम मातृभाषा को ही अपनाऐ। हद्रय हृदय मे दीप जलें जो स्वः भाषा का ज्ञानभाव जगादें सुन्दर मनहर स्वप्न सजादें। सबको दे विशवास लक्ष्य का और सतत चलने का साहस। ज्योति ऐसी भरे जीवन में कभी न आऐं गहन अमावस फूट पड़े आत्मा का झरना। मातृभाषा का भाव जगाऐं। चलो नया संसार बसाऐं। जिसमें पनपे नेतिकता, वह नया भवन निर्माण करेगें। साहस बल पुरुषार्थ जुटा तन की ईटों से नींव भरेगें रच डाले चिर नूतन इतिहास क्रया का संबल लेकर, एक नया संघर्ष सृजन का, होगा अब प्राणों में प्रतिपल। मिटते मिटते भी अपने कर्मो से भाषा का मान बढ़ाये। हम मातृभाषा ही अपनाऐं। . लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर...
नारी व्यथा
कविता

नारी व्यथा

*********** रचयिता : मीनाकुमारी शुक्ला - मीनू "रागिनी" नारी तुम भावना हो संवेदना, हो इस धरा की माँ । बसाया तुमने प्यार-विश्वास और सरलता से जहाँ ।। देव महापुरूष सम्राट सारे जहाँ की पालनहारी। क्षमा दया प्रेम प्यार से जहाँ भर को तारणहारी।। पर बदले में तुम्हें क्या मिला.............. कहीं कलंकित बना अहिल्या पत्थर सी जड़ दी गयी। कहीं अग्नि परीक्षा बेगुनाह सीता की ले ली गयी।। कहीं निःशब्द सी संग पति के सति बना जला दी गयी। अनार कली सी बदले प्रेम के दीवारों में चुन दी गयी।। समझ संपत्ति पति द्वारा कहीं जूए में हारी गयी। भरी सभा निर्वस्त्र कर इज्जत कहीं हर ली गयी।। बोझ पिता पर समझ भ्रूण हत्या तुम्हारी होती गयी। दहेज लोभियों की लालच से जिन्दा तुम जलती  गयी।। वासना के भूखों से बेइन्तहाँ तुम सताई गयी। लांछन कलंक बेबसी निःशब्द तुम सहती गयी।।   लेखक परिचय :-  मीनाकुमारी शुक्ला साहित्यिक उपनाम - मीनू...
आदमी है ये अजब गजब
कविता

आदमी है ये अजब गजब

********** रचयिता : दिलीप कुमार पोरवाल (दीप) आदमी है ये अजब गजब कोई इसे समझ नहीं पाता संकल्प जो ये मन में लेता काम वो अचानक कर जाता काम काज से इसके लोग हक्का बक्का रह जाता मौका नहीं किसी को ये बचने का देता l आदमी है ये अजब गजब कोई इसे समझ नहीं पाता अद्भुत है इसकी क्षमता बड़े-बड़े फैसले राष्ट्रहित में लेता कभी जीएसटी तो कभी नोटबंदी लाता स्वच्छता अभियान ये लाता पता नहीं कहां कहां की ये सफाई कर जाता l आदमी है ये अजब गजब कोई इसे समझ नहीं पाता देश प्रेमियों को ये गले लगाता मक्कारो भ्रष्टाचारियो को बाहर का रास्ता दिखाता विरोधी कुछ समझ नहीं पाता कोई इसे हिटलर तो कोई तानाशाह बताता बात ये मन की करता कोई समझ पाता कोई समझ नहीं पाता और कोई समझ कर भी ना समझता तो उसे फिर ये अपनी भाषा में समझाता l आदमी है ये अजब गजब कोई इसे समझ नहीं पाता क्या ट्रंप, क्या पुतिन सबको अपना बना लेता इमरान देखता रह जाता...
प्रेम की प्रतीक्षा
कविता

प्रेम की प्रतीक्षा

*********** रचयिता : भारती कुमारी ह्रदय से दूर जो तुम जाते हो तो ऊँघनें लगती है मधुमय प्रेम प्रिये बदलती हूँ करवटें नींद की प्रतीक्षा में तो अंगार-सी बन जाती है मधुर सपनें उत्सुकता में प्रेम की जान पहचान प्रिये बेरूखी से हो जाती है प्रेम की पहचान प्रिये सूना मन , निर्जन पथ , मुरझाई ह्रदय नश्वर हो रही अब प्रेम की झंकार प्रिये अधूरी प्रेम अस्तित्व से अनभिज्ञ हो रही सुनू संगीत प्रेममय कैसे मधुर स्वर में प्रेममयी ह्रदय करूणा में होकर अब गहन अधरों में है खो रही मधुमय सुरभि प्रेममयी भावनाएँ अदभूत उमड़ी है प्रेममयी ह्रदय में प्रिये प्रेममयी लहरों में आवेग नहीं क्षण - क्षण में परिवर्तित ह्रदय हुये तेरी प्रीत में रंगी जो मधुर मन बेसुध हुई भूली भटकी संसार प्रिये . लेखक परिचय :-  भारती कुमारी निवासी - मोतिहारी , बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक...
आव्हान
कविता

आव्हान

********** श्याम सुन्दर शास्त्री (अमझेरा वर्तमान खरगोन) युग शिखर तुम चढ़ो सोपान बन मैं खड़ा हूं जिनकी कल तक बोलती थी हस्तियां आज डगमगा रही उनकी कश्तियां इस तूफान में , मैं मनु की नाव बन चल पड़ा हूं . कुरुक्षेत्र में कृष्ण अर्जुन का संवाद भक्ति, ज्ञान,कर्म  योग से ,मिटा वह विषाद सत्यमेव जयते का संदेश बन पड़ा है . दु:शासन से द्रौपदी का चीर हरण तोड़ रहा है नारी का दामन दर्पण भारतीय मानस को झकझोर रहा है . कर रहा हूं मन की बात, बिन संग्राम का यह संवाद अखण्ड भारत का स्वप्न जोड़ रहा हूं . दृढ़ता व जीवटता, अविरल, अबाध जैसे हो रहा दिनकर से प्रभात युग की इस धारा को मोड़ रहा हूं . लेखक परिचय :- श्याम सुन्दर शास्त्री, सेवा निवृत्त शिक्षक (प्र,अ,) मूल निवास:- अमझेरा वर्तमान खरगोन शिक्षा:- बी,एस-सी, गणित रुचि:- अध्यात्म व विज्ञान में पुस्तक व साहित्य वाचन में रुचि ... आप भी अपनी कविताएं,...
क्या खुब है यह सावन
कविता

क्या खुब है यह सावन

अन्नू अस्थाना भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** क्या खुब है यह सावन रिम-झिम-रिम-झिम हो जाए सारा आलम ... तन, मन सब भिग जाए, हरितमा बिखर जाए चारों ओर स्वर्ग सी सुन्दरता छाए धरा पर, सब ओर क्या खुब है यह सावन भोले शंकर का अभिषेक हो जाए इन रिम-झिम फूहारों से क्या खुब है यह सावन रिम-झिम-रिम-झिम हो जाए सारा आलम ... उम्मीदों कि आस लिए कृषक झुम जाएं आँखों में खुषी भर जाऐ इन रिम-झिम फूहारों से, क्या खुब है यह सावन रिम-झिम-रिम-झिम हो जाए सारा आलम ... सावन में हरितमा लिए तीज आई, खुशियों के झूले संगलाई देख तीज सजनी कहती है, रहे खुष हाल मेरा साजन आबाद रहे घर, आंगन मस्त मलंन होकर मनाए हम हरियाला सावन क्या खुब है यह सावन रिम-झिम-रिम-झिम हो जाए सारा आलम ... सावन माह के शुक्ल पक्ष में आती नागपंचमी मिले आशीष नागेश्वर का हम मनाते नागपंचमी लेने आषीर्वाद नागेश्वर का, करती सब महिलएं सर्प पूजा खु...
सम्मान की प्रतीक्षा
कविता

सम्मान की प्रतीक्षा

*********** रचयिता : भारती कुमारी वृक्ष जैसी घनी हूँ फिर भी ह्रदय  में  छाँह नहीं है . प्रेम दुनिया  में  लुटाती हूँ खुद गम की आह से बिखर जाती हूँ . सींचती हूँ  मधुजल से सबको खुद खारे पानी बन बह जाती हूँ . सींच- सींचकर परिवार को आगे बढ़ाती हूँ खुद  विवश  होकर  सब  दर्द  सह  जाती  हूँ . अर्थ  में प्रेम से स्पष्ट हो जाती हूँ नारी शब्द से लाचारी बन  जाती हूँ . जीवन बिताती हूँ सम्मान की आस  में छीन जाती है जीवन - क्यारी  नारी जो कहलाती हूँ . फिर भी अबला कहकर क्यों पुकारी जाती हूँ . लेखक परिचय :-  नाम - भारती कुमारी निवासी - मोतिहारी , बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमार...
दूर रहना चाहता है
कविता

दूर रहना चाहता है

********** रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' ये मन बहलता भी नहीं है अकेले खेलता भी नहीं है किसी के साथ खेलूँ तो रुकता भी नहीं है ऐ प्रकृति तेरे आगोश में खेलना चाहता है मन इसकी जिद बस यही है, दूर दराज़ हवाओं के झोंको में लहर कर खुद से इठलाता है तुतलाता है,ठहरता है शायद इसकी चाह बस यही है, आसमाँ से बात और दिल के राज़ मुझसे हमेशा क्यों छुपाए रखता है आखिर दिल मेरा है मुझसे क्यों दूरी बनाए रखता है शायद मुझसे दूर रहना चाहता है अभी . लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भी अपनी कविताएं,...
चंद्रयमय हुआ चंद्रयान – २
कविता

चंद्रयमय हुआ चंद्रयान – २

********** रचयिता : रूपेश कुमार चंद्रयमय हुआ चंद्रयान - २, भारत का सिरमौर हुआ चांद पर, दुनिया में सबसे पहले  झण्डा फहराया चांद पर, सब उनकी जयघोष करता दुनिया में, . श्वेत चांद आज तिरंगे में लहरा, दुनिया जिसकी जयगान करता आज, भारत मां के लाल वैज्ञानिकों ने, भारतमाता का मान सम्मान बढ़ाया! . गर्व है भारत मां क, चांद से चंद्रयान मिलने, जीवन और जल को खोजने, और गया है मिट्टी , तत्त्वों को, झीलों और मौसम के बारे में, जीवन का अस्तित्व पता लगाने! . दुनिया को सिरमौर बनाने, भारत मां दूत बनकर, गया है चंद्रयान -२, दुनिया में एक नया इतिहास रचने . लेखक परिचय :-  नाम - रूपेश कुमार छात्र एव युवा साहित्यकार शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली यूपी) वर्तमान-प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी ! निवास - चैनपुर, सीवान बिहार स...
फूल
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फूल

********** वन्दना पुणतांबेकर (इंदौर) फूल खिलता है,मुस्कुराता है। बहारो संग झूम-झूम जाता है। कभी जन्मदिन पर खुशियॉ मनाता है। कभी गमो में गमगीन हो जाता है। अर्थी पर जब चढ़ता है,आँसू बहता है। प्रभु के चरणों मे धन्य हो जाता है। नेताओ के गले में घुटन से दब जाता है। महापुरुषों के गले मे पड़ इठलाता है। समयनुसार वह भी भाग्यनुसार चलता है। किस्मत भी फूलों की इंसा की तरह होती है। इंसा जरा सी तकलीफों मे घबराता है। फूल काँटो के साथ जीवन। बिताकर समय परिस्थितियों अनुरूप ढल जाता है। फूलों से सीखो जीवन जीना। हर परिस्थितियों में खिलकर मुस्कुराना । हर फूलों का मुकद्दर अलग होता है। फिर भी समयनुसार जीवन मे हर परीस्थिति में ढल जाना फूल हमे सिखाता है।   लेखिका परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर जन्म तिथि : ५.९.१९७० लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख, शिक्षा : एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई ...