कृष्ण काव्य
रागिनी सिंह परिहार
रीवा म.प्र.
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मैं कब कहती हूँ कि, तुम प्रकट हो जाओ,
लेकिन तुमसे, आरजू बहुत हैं।
मोहन मुझे अपने नजर में उठा कर रखना,
अपनो के नजर में गिले शिकवे बहुत हैं।
मैं रोज मीरा बनना चाहती हूँ,
मगर जहर के प्याले में तुम नजर नहीं आते।।
मेरा दिल दिनकर की रस्मिरथि जैसा,
जितना रूह को हवा दो, उतना मझल जाय।
मेरी मोहब्बत को हरिदास की गीत समझो,
जितना सुनो बस उतना तो आ जाओ।
मैं सूर, रसखान तो लिख नही सकती,
मगर
आंखो के पल्को के आश्को से तो मोहब्बत बया करती हूँ।
हम तो शिकायत करते हैं, कि मोहब्बत मिला नही ,
हे मोहन....
तेरी मोहब्बत लिखने बैठी तो अँगुलियाँ कापती हैं।
तुने राधा को चाहा,
मीरा ने तुझे चाहा,
और तुम रुक्मिणी के हो गये।
मैं कब कहती हूँ कि प्रकट हो जाओ,
लेकिन तुमसे आरजू बहुत है....
राधे राधे सिर्फ मोहन....
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परिचय :- रागिनी सिंह परिहार
जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१
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