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कविता

मॉब लीचिंग
कविता

मॉब लीचिंग

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** घर की जरूरतों की जुगाड़ के लिए घर से निकला था वो रोटी, कपड़ा, बच्चों की किताबें और कुछ मामूली सपनो की ताबीर चाहता था वो। दरवाज़े की दहलीज पर देख बीवी की आँखों मे डर के साये उसके हाथ पे अपना हाथ रख हल्के से मुस्कुराया था वो। अपने शहर की मिट्टी तंग गलियों, आबोहवा और बदलते मौसम से भली भांति वाकिफ़ था वो कई गलियों का चक्कर लगाते काम की तलाश में शहर के उस छोर पर पहुंच गया था वो। किसी ने पांच सौ रुपये का नोट थमाते कहा मेरी मवेशी चरनोई तक छोड़ आ हथेली में पांच सौ का नोट भींचे घर का चूल्हा जलता देख बच्चों को किताबें पढ़ता देख मवेशी हाँकने लगा था वो। अचानक न जाने क्यों कैसे सैकड़ो की भीड़ में वो घिर गया जिस्म का पोर पोर तार तार हो बेजान जमी पर गिर गया था वो हथेली में अब भी नोट भिंचे दहलीज़ पर मुन्तज़िर दो आंखों घर की जरूरतों, किताबो की फिक्र से दू...
स्त्रीत्व की स्वाधीनता
कविता

स्त्रीत्व की स्वाधीनता

अंजना झा फरीदाबाद हरियाणा ******************** स्त्रीत्व की स्वाधीनता को पहचानने लगी है वो स्वयं में स्व को ढूंढकर खुद में जीने लगी है वो अति गहरे जख्म दिये सतत इन अपनों ने उसे इन बनावटी रिश्तों में उलझ उबने लगी है वो। चाहती है अंतर्सात कर ले गहरे जख्मों को वो झेल जाए जीवन के कठोर झंझावातों को वो सहेजे रिश्तों के जाल जिसने घायल किया उसे डर है रिश्ते सहेजते चटक कर न टूट जाए वो मानस में पडे़ अतीत के नींव को कैसे उखाडे़ वो कटुता से व्यथित मन को किस तरह संभालें वो उपदेश वही दे रहे हैं जिन्होंने घायल किया उसे सुन उनके आदर्शवाद व्यग्रता से खिन्न हुई है वो। छल प्रपंच की कटुता से ओतप्रोत हो चुकी है वो छद्दम जीवन अब नहीं व्यतीत कर सकती है वो दुख के क्षणों ने अंतर्आत्मा में संबल दिया है उसे चट्टान बन स्व को समेटने में माहिर हो गई है वो। स्त्रीत्व की स्वाधीनता को सही पहचान देगी वो आत्मविश्वास क...
फिर ये नजर हो न हो
कविता

फिर ये नजर हो न हो

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** फिर ये नजर हो न हो, मै और मेरी तनहाई, नजर आएगी, तुम तेरा मुस्कुराता, चेहरा यू खिलखिलाता, नाम तेरा पूजते रहूं, फिर ये नजर हो न हो! जिंदगी की खेल में, फूलों के मेल में, कलियों के साथ, गुलाबो के हाथ, तू मुझे सम्मान दो, या मुझे उफान दो, मै मिलेगा फिर तुमसे, फिर ये नजर हो न हो! रात की बात में, दिन की याद में, दोस्तो के साथ में, हसीनाओं के हाथ में, आंख की आशुओ में, दिल की धड़कन में, याद आ जाए तुम, फिर ये नजर हो न हो! . लेखक परिचय :-  नाम - रूपेश कुमार छात्र एव युवा साहित्यकार शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली यूपी) वर्तमान-प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी ! निवास - चैनपुर, सीवान बिहार सचिव - राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान प्रकाशित पुस्तक - ...
धरती का चाँद
कविता

धरती का चाँद

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** दूधिया चाँद की रौशनी में तेरा चेहरा दमकता नथनी का मोती बिखेरता किरणे आँखों का काजल देता काली बदली का अहसास मानो होने वाली प्यार की बरसात तुम्हारी कजरारी आँखों से काली बदली चाँद को ढँक देती दिल धड़कने लगता चेहरा छूप जाता चांदनी की परछाई उठाती चेहरे से घूँघट निहारते मेरे नैंन दो चाँदो को एक धरती एक आकाश में आकाश का चाँद हो जाता ओझल धरती का चाँद हमेशा रहता खिला क्योंकि धरती के चाँद को नहीं लगता कभी ग्रहण . परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक ", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्य...
याद करना हमारी
कविता

याद करना हमारी

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** थमती सांस के साथ, यह आंसू भी थम जायेंगे, चलती है सांस जब तक, इनको भी बहने दो यारो। यह महफिल भी होगी यह नगमे भी होगे, यह फिजाऐ यह बहारे भी होगी, पर हम न होगे, तब याद करना हमारी भी यारो न आँख खुलेगी न होठ हंसेगे न पांव चलेगे न हम रुकेगे, चार कांधो पर हमे उठा लेना यारो। आयेगी हर ऋतु समय समय पर, सावन भी बरसेगा समय समय पर, पर भीगने को हम न होगे, तब याद करना हमारी भी यारो। महफिल भी होगी टोली भी होगी, यारो की अपनी हमजोली भी होगी, तलाशोगे हमको, पर हम न होगे, तब याद करना हमारी भी यारो। खिलेगा बौर आम तरुओ पे जब जब महक से दिशाऐ खिलखिला उठेगी, आमो की बगिया मे सब ही मिलेंगे, पर हम न होगे, तब याद करना हमारी भी यारो। तब याद ...................।। . लेखक परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की ...
तेरे संग जीना मरना
कविता

तेरे संग जीना मरना

संजय जैन मुंबई ******************** जीना मरना तेरे संग है। तो क्यो और के बारे में सोचना। मिला है तुम से इतना प्यार। तो क्यो गम को गले लगाना। और हंसती खिलखिलाती जिंदगी, को भला क्यो रुलाना। अरे बहुत मिले होंगे तुम्हे प्यार करने वाले। पर दिल से मोहब्बत करने वाला में ही होगा।। आज दिल कुछ उदास है। चेहरे पर भी उदासी का राज है। कैसे कहूँ में बिना देखे दिल मानता नही है। इसलिए कब से बैठा हूँ, तेरे दीदार के लिए। पर तुम हो जो, नजर ही नही आ रहे। इसलिए आंखे और दिल दोनों उदास है।। तुझे क्या कहूँ में अब, कुछ तो तुम्ही बता दो। उदास दिल मे, कोई दीप जला दो। और दिल के अँधेरेपन, को तुम जगमगा दो। और वर्षो की प्यास को, आज बुझा दो। और अपने दिल की, आवाज़ को हमे सुना दो।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लि...
तू दोस्त बन
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तू दोस्त बन

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** तू दोस्त बन, या दुश्मन बन। कुछ भी बन, चल जाएगा।। भूल से भी, चमचा बना। जीवन में, दुःख तू पाएगा।। चमचे की, तुम बात न पूछो। हर बर्तन, खाली कर जाएगा।। जीवन में अगर, तुम्हारे आया। जीवन नर्क, वह बना जाएगा।। दूर ही रहना तुम, इन चमचों से। यह किसी का, नहीं हो पाएगा।। मीठी मीठी, बातें कर तुझसे। राह भ्रमित, तुझे कर जाएगा।। अपनों से दूर, तुझे वो कर। करीब गैरों को, वो ले आएगा।। अच्छे बुरे की, पहचान करना। कौन तुम्हें, अब सिखलाएगा।। विचारों को वो, तेरे गंदा कर। जहर दिमाग, भर जाएगा।। कहती वीणा, विवेक काम ले। सदा चमचों से, तुम्हें बचाएगा।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक...
ईश का आशीष
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ईश का आशीष

अंजना झा फरीदाबाद हरियाणा ******************** जीवन की अविरल धारा में चाहिए यदि ईश का आशीष क्यों आडंबरपूर्ण विधान में आस्था औ पूजा के नाम पर श्रद्धाहीन विचारों के जाल में जकड़ देते हो अपने आप को मन के अवसाद को दूर करने की अतृप्त इच्छा मे बंधकर लटका देते हो न मूल प्रकृति औ मौलिक चेतना को सूली पर। अंतस्थ की जागृति औ ताजगी हेतु करते हो न बुनियादी भूल क्यों चढा देते हो इक आवरण धर्म आस्था व्रत औ परंपरा का। मंत्रोच्चार से करना है अगर स्वयं को स्वच्छ और पवित्र तो भीगो न इस संकल्प से जो भर दे सकारात्मक ऊर्जा। चाहते हो मूल्यवादी जीवन दमित कर दो आसुरी प्रवृति जागृत करो न दैवीय संस्कार ध्यानस्थ हो जाओ क्षमा भाव में फिर नहीं घिरोगे आडंबर से प्रवाहित होगी न अंतर्मन में सतत ही सकारात्मक उर्जा हो जायेगा सार्थक मंत्र स्नान। जीवन के अविरल धारा में मिलेगा तभी ईश का आशीष। . परिचय :-  नाम : अंजना झ...
रणबांकुरे
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रणबांकुरे

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (म.प्र.) ******************** जंजीरों में बंधकर भी वह, जी भर कर मुस्काये थे। देश पर बलिदान होकर, मन में बहुत हरषाये थे। मां,बहन, बेटी उनसे, बिछुड़ने की नही पीर थी। वह भी रांझा किसी के, उनकी भी कोई हीर थी। पर देशप्रेम की बंधी, उनके मन में कड़ी जंजीर थी। ऐसे वीर सपूत मीटे देश पर, वीरांगना के जाये थे। जंजीरों में बंधकर भी वह, जी भर कर मुस्काये थे। देश पर बलिदान होकर, मन में बहुत हरषाये थे। दीपावली के दीप जले, होली की कहीं अबीर थी। वीर बांकुरे मिले देश को, भारत की तकदीर थी। आजाद देश की शान बने वह, ऐसी तस्वीर थी। हमारे लिए बदन पर उनने, अनगिनत कोड़े खाये थे। जंजीरों में बंधकर भी वह, जी भर कर मुस्काये थे। देश पर बलिदान होकर, मन में बहुत हरषाये थे। लेखिका परिचय :- नाम - माया मालवेन्द्र बदेका पिता - डाॅ श्री लक्षमीनारायण जी पान्डेय माता - श्रीमती चंद्रावल...
अधिकार मिले सबको
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अधिकार मिले सबको

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** सबको ये अधिकार है अपने अधिकार को भी जाने अपना विकास अपनी सुरक्षा अपने कर्तव्यों को भी जाने महिला को भी मिले अधिकार बालक पर ना हो अत्याचार शिक्षा का अधिकार सभी को मिले राष्ट्र का प्यार सभी को यौन शोषण पर लगे प्रतिबंध बेहतर बने सबका सम्बन्ध बालिका भी पढ़ने जाये जग मे अपना नाम कमाए सबको आजादी का अधिकार सबको सीखने का अधिकार नही बनाओ शिक्षा को व्यापार दे दो निर्धन को पढ़ने का अधिकार बाल मजदूरी बन्द करो अपनी आवाज बुलंद करो हो गरीब या हो लाचार सबको आगे बढ़ने का अधिकार अभिव्यक्ति की आजादी हो कम उम्र मे ना शादी हो किसी के साथ ना हिंसा हो हर दिशा मे बस अहिंसा हो देश का हर व्यक्ति पाये भोजन कपड़ा और आवास फैलता जाये हर क्षेत्र में उन्नति और प्रेम का प्रकाश . . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, क...
यादों के गुलाब
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यादों के गुलाब

रंजना फतेपुरकर इंदौर (म.प्र.) ******************** घनेरे बादलों पर चलकर चाहत का नज़राना उतर आया है झिलमिल चांदनी में सितारों का नूर निखर आया है जबसे दुआएं मांगी हैं तुम्हारी यादों को पलकों में समेटने की कविता की पुस्तक में रखे सुर्ख गुलाबों का महकना याद आया है एक खूबसूरत सा रंग भीगी चाहत का तुम्हारी सपनीली आंखों में उतर आया है एक धुंधला सा बादल झीने कोहरे का सुहानी यादों में उतर आया है पिघलती शमा की रोशनी जब बहती है सितारों में एक कतरा दुआओं का हथेलियों पर उतर आया है . परिचय :- नाम : रंजना फतेपुरकर शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य जन्म : २९ दिसंबर निवास : इंदौर (म.प्र.) प्रकाशित पुस्तकें ११ सम्मान ४५ पुरस्कार ३५ दूरदर्शन, आकाशवाणी इंदौर, चायना रेडियो, बीजिंग से रचनाएं प्रसारित देश की प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएं प्रकाशित रंजन कलश, इंदौर अध्यक्ष वामा साहित्य मंच, इंदौर...
कभी कभी
कविता

कभी कभी

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** कभी कभी कुछ पल ही तो माँगती हूँ, कभी कभी थोड़ी सी हिम्मत, थोड़ा सा प्यार माँगती हूँ... आ जाये इस दिलको करार वो साथ माँगती हूँ मैंने कभी कहा तुमसे, कि इससे ज्यादा की कुछ चाह है न धन की, न गहनों की कही कोई अभिलाषा है... सिर्फ इस व्यस्त जीवन से कुछ सुकून के पल ही तो माँगती हूँ आ जाये जिससे दिल मे सुकून तुम्हारे साथ वो वक़्त माँगती हूँ लेकिन तुम इतना भी नही कर पाते... हर चीज का लगा लेते हो मोल और जो है मेरे लिये अनमोल उसी को तुम कर देते हो गोल... समझते क्यो नही तुम इन जज्बातों को इन एहसासों को मेरी अनकही बातों को जिस दिन तुम, मुझे समझ स्नेह से गले लगाओगे ... सच कहती हूँ जितना दोगे उससे, कहीं अधिक तुम पाओगे... समझने लगो तुम अब मुझकों बस इतनी सी ही है चाहत मेरी क्यूँ ले रहे, कठिन परीक्षा, मेरे सब्र की... हर जनम दासी बन जाऊं बस पूरी हो जाए, चाह...
पाँव थिरक उठता है
कविता

पाँव थिरक उठता है

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** हो दिल मे उमंग तो, हर तार झंकार उठता है। न रहता भान किसी का, मन मयूर झूम उठता है। खिल जाते है मधुर पुष्प वीराने मे, हर भ्रमर का गान गूँज उठता है। कहाँ रहता है ध्यान बदहवासियो का, हर सांस से संगीत फूट उठता है। मिट जाती है अन्धेरों की छाया, हर पग पर दीप जल उठता है। रहता न वीरान रास्ता कोई, हर मोड़ पर जश्न झूम उठता है। सज  जाती है महफिले उर अन्तर में, वाणी से मधुर गान फूट पड़ता है। जब होता है मिलन उस कान्हा स , स्वतः ही पाँव थिरक उठता है। स्वतः ही ........................।। . लेखक परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाश...
पैमाना
कविता

पैमाना

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** सबसे अलग है, मुझे आंकने का उसका पैमाना। जुदा है सबसे जहां भर में, उसका निशाना। मुझे जमाने से, बचा कर रखता है, मानो सबसे अलग, वो मुझे समझता है। मुद्दतों से नहीं देखा, "आईना" खुल ना जाए राज, यही डर लगता है। बगैर देखे आईना, आज, खुल ही गया राज! मैं खुद को नहीं, जानती जितना, वो मुझ को, जानता है उतना,.... सबसे अलग है, मुझे आंकने का, उसका पैमाना....!! . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरंगिणी मुंबई, दैनिक जागरण अखबार, अमर उजाला ...
जमाने को समझो
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जमाने को समझो

संजय जैन मुंबई ******************** कही गम है तो कही खुशी। कही मोहब्बत तो कही तकरार। कही मिलना तो कही बिछड़ना। कही जिंदगी तो कही मौत। बड़ा ही अजीब है इस जमाने का दृश्य।। जो जमाने को समझा और उसी अनुसार ढल गया। वो मानो मौज मस्ती से जी गया। जो जमाने को नही समझा वो चिंताओं के जाल में फंस गया। और जिंदगी को अलग दिशा में ले गया।। कलयुगी जमाने मे सभी मतलबी नही होते। कुछ तो कलयुग में भी हटकर होते है। माना कि आज का जमाना खराब है। फिर भी कुछ रिश्ते तो सतयुग जैसे होते है।। इसलिए जमाने को देखो, समझो और आगे बढ़ो। फिर जो चाहोगे वो मिल जाएगा। और कलयुग में भी इतिहास लिखा जाएगा।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी र...
शब्दों में सामर्थ्य
कविता

शब्दों में सामर्थ्य

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** शब्दों में सामर्थ्य बस, इतना मुझे देना प्रभु। प्रार्थना मन से करूँ, तुम तक वह पहुँचें प्रभु।। धर्म जाति से परे हो, जीवन सदा मेरा प्रभु। किसी का दर्द समझू, ऐसा जीवन मेरा प्रभु।। कर्म कांड पाखंड से, सदा दूर में रहूँ प्रभु । किसी की मदद करू, इतनी शक्ति देना प्रभु।। सज्जन व्यक्ति बन, जीवन यापन करुँ प्रभु। दिल में जगह मिले, यही प्रार्थना करूँ प्रभु।। नहीं चाहिए धन दौलत, दीन बन रहूँ प्रभु। सेवा दीन की करुँ तो, जीवन सफल हो प्रभु।। प्रार्थना बस यही, तुझसे मैं सदा करूँ प्रभु। कोई गरीब भूखा उठे, पर भूखा ना सोए प्रभु।। जब जाऊ इस जहां से, याद में आऊँ प्रभु। कर्म कुछ ऐसे करूं, ठौर चरण पाऊँ प्रभु।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रू...
काश ….
कविता

काश ….

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** काश एक बार तुमने हमें पुकारा होता टूटे हुए दिल को संवारा होता जिस तरह काटा है वक्त तुम्हारे बिना .... काश तुमने भी एक एक लम्हा ऐसे ही गुजारा होता उसको ये जिद थी जैसा है कबूल है उसको मेरी ये चाहत थी कि जैसा है वो सिर्फ मेरा होता.... उसके बिना खुश रहने का करती हूं दिखावा दिल में है कसक काश वो मेरे बिना, अधूरा होता उसके चेहरे पर वो शबनम की बूंदें देखकर अपने आप को थोड़ा सा हमने भी तराशा होता चांद कहा बाबू कहा और शोना भी कहा काश ... सिर्फ एक बार मेरी "सुरेखा" कहकर पुकारा होता।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालि...
मिटा इतिहास वो काला, इबारत गढ
कविता

मिटा इतिहास वो काला, इबारत गढ

ओम प्रकाश त्रिपाठी गोरखपुर ********************** मिटा इतिहास वो काला, इबारत गढ नयी डाला, शत्रु भी सोचता होगा, पडा किससे है अब पाला।। गया अब तीन सौ सत्तर, नया इतिहास लिख डालो। चढाई कर पी ओ के पर, उसे अपना बना डालो। पाक अब रह जाये जपते, यू ही कश्मीर की माला शत्रु भी........।। तू ही है मान भारत का तू ही अभिमान भारत का तू ही है शान भारत का तू ही है जान भारत का तूने ही हर असंभव को, बना संभव है अब डाला शत्रु भी....।। है कुछ गद्दार भी अपने चमन मे, उनको पहचानो है जो इस देश का दुश्मन, उसे अपना नहीं जानो जो बोले देशद्रोही बोल, उन पर डाल दो ताला शत्रु भी.......।। करो ताण्डव दिखा दो शक्ति, दुश्मन बच नहीं पाये हसरतें जो भी मन मे है, धरी की धरी रह जाये वो खुद जल भस्म हो जाये नयन मे ऐसी हो ज्वाला शत्रु भी....।। . लेखक परिचय :-  ओम प्रकाश त्रिपाठी आल इंडिया रेडियो गोरखपुर आप भी अपनी कविताएं, कहा...
पानी का महत्व
कविता

पानी का महत्व

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** पानी बिन हम जीवित रह नहीं सकते पानी की महत्ता हम कह नही सकते। पानी से धरा पानी से सजीव पानी से ही जीवन की नीव गर्मी मे प्यास हम सह नहीं सकते पानी की महत्ता हम कह नही सकते। पानी से ही होता सब काम पानी का कोई दे ना सकता दाम पानी के बिना पशु भी रह नही सकते पानी की महत्ता हम कह नही सकते। अपने छत पर रोज पानी जरूर डालें पक्षी भी अपनी अपनी प्यास बुझा लें पानी बिना पक्षी भी रह नही सकते पानी की महत्ता हम कह नही सकते। . . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail....
नादान बहुत था
कविता

नादान बहुत था

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** जिससे मिलने के लिए मैं परेशान बहुत था, उसके मिलने का ढंग देख मैं हैरान बहुत था। चाहतों के भंवर में फंस के डूब ही जाता मैं, मुझे डुबाने हेतु उसके पास सामान बहुत था। वो जब-जब मिला मतलब से ही मिला मुझसे, समझ ना पाया ये मेरा दिल नादान बहुत था। दिल से आखिर वो शख्स गरीब ही निकला, सोने, चांदी, रुपयों से भले ही धनवान बहुत था। अपना समझकर गया था उसको गले लगाने, पर उसके अंतस में कांटों का मैदान बहुत था। अच्छा ये हुआ कि बात दिल की मैं कहा ही नहीं कि फासला भी हम दोनों के दरमियान बहुत था।   लेखक परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मे...
खूबसूरती बसी है तुझमें
कविता

खूबसूरती बसी है तुझमें

अंजना झा फरीदाबाद हरियाणा ******************** जिंदगी कितनी खूबसूरती बसी है तुझमें आलिंगनबद्ध हैं तुझसे तेरे हर स्वरूप में सत्य से परे बंधे हैं मोह के अटूट बंधन में आशा और आकांक्षा के भ्रमित संसार में। हमें लुभाती रहती है तू सदा हर रूप में कभी पूजा की पवित्र सजी हुई थाली में कभी मद से भरे उस गर्मागर्म प्याली में डूबते रहते हैं सदा झूठ की खुशहाली में कभी सराबोर होली के रंगबिरंगे रंगों में कभी दीपावली के प्रज्ज्वलित दीप में कभी रमज़ान के पश्चात ईद के चांद में कभी ईश के झिलमिलाते क्रिसमस में। कभी बसंत के मदमस्त पुरवाईयों में कभी पतझड़ के सूखे हुए उन पत्तों में कभी गर्मी की उमसपूर्ण उन थपेड़ों में कभी शीत की कंपकंपाती हवाओं में । क्यों ऐ जिंदगी हम डूब गए हैं तुझमें बंधी हो तुम सांसों की कच्ची डोर में झूठ और सच के क्षीण से आवरण मे बेगाना कर देता जो तुझसे इक पल में। . परिचय :-  नाम : अंज...
अकेला
कविता

अकेला

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** मेरी ये रचना भारत के सभी पुलिस कर्मी यो को समर्पित है निर्धनता में जन्मा वो सपने लिए बड़ा हुआ रोटी, कपड़ा, मकान की तलाश में आ पोहचा ऐसी जगह जो मायावी थी वहा भ्रम हो जाता है शक्तिशाली होने का। शक्ति से साथ मिलेगा रोटी, कपड़ा, मकान इसी लालसा में घुस गया चक्रव्यूव में। धसता चला गया धसता चला गया सारे भेद खुलते गये जिसे शक्ति समझा था, वो तो बेबसी लाचारी निकली निकलना चाहा चक्रव्यूव से परंतु अनुभव अभिमन्यु सा। जिसने चाहा उसने मारा जिसने चाही उसने उतारी इज्ज़त जीने की चाह में रोज मरता रहा। पर दुसरो की रखवाली करता रहा। बड़ी आस से अपने श्रेष्ठी जन को मदद के लिए याचक की नज़रों से देखता रहा। श्रेष्ठी भी क्या करता वो खुद ही है निराधार। कैसे उठाये तेरा भार। कौन करे तेरा उद्धार इस प्रश्न का कोई उत्तर नही तू शापित है शापित रहेगा दुसरो की रखवाली में ते...
साधना
कविता

साधना

भारती कुमारी मोतिहारी (बिहार) ********************** थाल सजाए पूजा की, तेरे दरपे प्रभु आई। ध्यान लगाएं कब से, क्षण-क्षण जो बिताएं।। पल-पल भी बीत रहे, जीवन भी सब रीत रहे। समझ ना तुम प्रेम पाये, बैठी हूँ तेरा ध्यान लगाएं।। आवोगे कब सन्मुख मेरे, मैं मतवाली प्रतीक्षा करती। ध्यान लगाएं जीवन बिताएं, हर पल प्रयत्न करते जाते।। आशा की कलियों से खेलती, देखती तेरी मधुमय मुँख को। ध्यान जब तेरे चरणों में लगाती, पहचान प्रिये मैं तुझसे हीं पाती।। . लेखक परिचय :-  भारती कुमारी निवासी - मोतिहारी , बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु ड...
मै क्यों गाऊँ
कविता

मै क्यों गाऊँ

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** मै गीत विरह के क्यों गाऊँ, मै गीत विरह के क्यों गाऊँ। मेरे तन के रोम रोम में, बसा हुआ कान्हा प्रियतम, जब चाहूँ मै उसे निहारूँ, साथ मेरे रहता हरदम। जब मै सोऊँ वह भी सोऐ, साथ मेरे उठ जाता है, जब वह रहता साथ ही हरपल, फिर क्यों मै न इतराऊँ, मै गीत विरह के क्यों गाऊँ। जब चाहूँ पलके मूंदे, वंशी की ध्वनि मैं सुनती हूँ, जब लगता तन्हा हूँ मै, उससे बतियाया करती हँ। जब हो जाती दग्ध ह्रदय, वह हमे हँसाया करता है, गाकर अपनी मधुर रागिनी, मुझे रिझाया करता है। मै उसकी वह मेरा है, मै इसको क्योंकर झुठलाऊँ, मैं गीत विरह के क्यों गाऊँ। हर दिन ही तो मेरे दिल में, वह नये तराने लिखता है। रूठूँ गर मै कभी अगर तो वह हमे मनाया करता है। उसकी इन प्यारी बातो को क्योंकर भला मै ठुकराऊँ मै गीत विरह के क्यों गाऊँ। मै गीत .... . लेखक परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शर...
अधूरी नन्हीं परी
कविता

अधूरी नन्हीं परी

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** मैं एक अधूरी नन्ही परी हूं कूड़े के ढेर पर सड़क किनारे पड़ी हूं मेरी किस्मत तो देखो ए दुनिया वालों मुझे आंगन नहीं कूड़े का ढेर मिला मुझे जन्मते ही दुत्कार दिया ना मां मिली ना पिता मिला सिर्फ समाज का तिरस्कार मिला गलती जो की थी और ने मुझे क्यों उसका इनाम मिला कुत्तों ने खाया मुझे गिद्धों ने नोचा मुझे क्या इसीलिए अधूरा जन्म मिला था मुझे यूं तो कहते हो देवी मुझे पूजते हो मुझे फिर क्यों जन्म से पहले मारा मुझे ए समाज के रखवालों अब तो सबक लो मेरे जैसी अधूरी नन्हीं परी को बचा लो मैं एक अधूरी नन्ही परी हूं कूड़े के ढेर पर सड़क किनारे पड़ी हूं।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें...