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कविता

मेरे साथी बनो
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मेरे साथी बनो

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) ******************** साथ तेरा मिला आज मुझको यहाँ अपने सारे ख्वाबों से तुम्हें मिलाऊँगा यहाँ साथ तेरा मिला मुझको कितना प्यारा तूने आकर है सँभाला तू ही है मेरा आसरा यहाँ तुम मेरे साथी बनो हम साथ निभाएँगे तुम मेरी जिंदगी की अब इबादत हो यहाँ . लेखक परिचय :-  आपका नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहा...
प्यारा भारत
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प्यारा भारत

संजय जैन मुंबई ******************** जन्म लिया है भारत में, तभी तो प्यारा लगता है। विश्व में सबसे न्यारा, देश हमारा दिखता है। कितने देवी देवताओं ने, जन्म लिया इस भूमि पर। धन्य हो गए वो सभी जन, जिन्हें मिला जन्म इस भूमि पर।। कण कण में बस्ते है भगवान, वो भारत देश हमारा है। कितनी नदियां यहां पर बहती, जिनको माता कहकर बुलाते है। जिनके जल से लोग यहां पर, अपने पापो को धोने आते है। तभी तो लोग कहते है, की भारत सबसे प्यारा है।। भाषा का भी आदर भाव, यहां पर बहुत दिखता है। सुख दुख में भी साथ खड़े, लोग यहां पर दिखाते है। अपनी मूल संस्कृति से, नही ये करते समझौता। तभी तो आस्थाओं में, विश्वास करते लोग यहां।। इसलिए तो विश्व में सबसे, न्यारा भारत हमारा दिखता है।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक ल...
रिश्तो की रस्सियां
कविता

रिश्तो की रस्सियां

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** न जाने कितने रिश्तो की रस्सियां, मेरी तरफ है आ रही। बचपने की गिरह खोल, एक लड़की दुल्हन बनने जा रही। अरमानों की डोली सजाती सपनों में मुस्कुरा रही। सब कुछ होगा अच्छा यह दिल को समझा रही। सभी बड़े उस नन्ही सी जान को अपनी-अपनी समझ समझा रहे हैं। गीत और संगीत में भी कर्तव्य व ज्ञान गाए जा रहे हैं। उबटन लगाकर तन व ज्ञान देकर मन संवारा जा रहा है। एक लड़की दुल्हन के ढांचे में ढ़ाली जा रही है। शादी तक ये दुल्हन तैयार होनी चाहिए। एक में ही सुंदरता संस्कार प्रतिभावान यह सभी गुण विद्यमान होने चाहिए। घबराए मुस्कुराए सब को ये कैसे बताए। आधी उम्र गुजर गई आप सभी को अपनाने में, आधी उन गैरों को अपना बनाने में। पता ही नहीं चलता हमें हमारा वजूद, इस जमाने में। . लेखक परिचय :-  नाम - चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कवि...
होके तुमसे जुदा
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होके तुमसे जुदा

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** होके तुमसे जुदा हम यार कहां जाएंगे। होके मजबूर तेरे पास चले आएंगे। होके मजबूर... तेरी गुस्ताखियों को हमने किया अनदेखा। तेरे संग ही जुड़ी है मेरे हाथों की रेखा। तुम जो रूठोगे तो दुनिया से चले जाएंगे... होके तुमसे जुदा हम यार कहां जाएंगे। होके मजबूर तेरे पास चले आएंगे। होके मजबूर... तेरी वजह से मेरी ज़िंदगी खुशहाल हुई। मेरी किस्मत तेरे आने से मालामाल हुई। जाने अनजाने में तुझे न अब सताएंगे... होके तुमसे जुदा हम यार कहां जाएंगे। होके मजबूर तेरे पास चले आएंगे। होके मजबूर... मुझपे रखना यकीन ये तुझे है कसम। मेरी हर बात में तेरा नाम रखता हूँ सनम। सातों जनमो का तुझसे रिश्ता हम निभाएंगे... होके तुमसे जुदा हम यार कहां जाएंगे। होके मजबूर तेरे पास चले आएंगे। होके मजबूर... तेरे एहसानों को मैं भूल नही पाऊंगा। तेरी ख़ाहिश के लिए खुद ही बिक...
जागो गुरुजन एक बार
कविता

जागो गुरुजन एक बार

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** जागो गुरुजान एकबार। भारत में मच गई हाहाकार। फिर से तांडव नर्तन कर जितना समर्थ हो उतना कर तू प्रलय बन प्रकंपित कर रावण दल पर टूट पड़। तू चाणक्य और विश्वामित्र बन फिर से नई नई सृष्टि रच। कौटिल्य और कणाद बन, अर्थ नीति, अणुनीति रच। तू सर्वज्ञ पूर्ण समर्थ बन, तू ब्रह्मा विष्णु महेश बन, ज्ञान प्रकाश को फैलाकर अज्ञानता का भक्षण कर। तू दधीचि बन अस्थि दान दे, फिर से आशीष असीम प्यार दे, तू समर्थ गुरु रामदास बन, शेर शिवा को फिर उतार दे। शिष्ययो मे ऐसा ज्ञान भर, मिट जाए जिससे प्रपंच, नई कोपले ,नई उमंग फिर, गुंजित हो वंदे मातरम वंदे मातरम।। . लेखक परिचय :-  नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाश...
फिर कभी न पाते
कविता

फिर कभी न पाते

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** कर अभिमान, पतन को पाते। स्वयं हाथ, विनाश न्योता देते।। समझाने से वो, समझ न पाते। ठोकर लगे, सत्य पथ अपनाते।। अभिमनी यश, कभी न पाते। मन ही मन, मियां मिट्ठू बनते।। अनीति पैसे कमा, जश्न मनाते। बच्चों के जहन, गलत बीज बोते।। एकांकी जीवन, सदा वह जीते। दर-दर ठोकर, जग में रह खाते।। दुर्योधन गलत कार्य, जो दोहराते। अपनों को भी, गर्त वो ले जाते।। साथ नहीं जब, कुछ भी ले जाते। फिर क्यों, समाज जहर फैलाते।। इतिहास साक्षी, दंभी प्रलय मचाते। मनुष्य जन्म, फिर कभी न पाते।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर...
आग जो मेरे अंदर है
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आग जो मेरे अंदर है

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** आग जो मेरे अंदर है आंखों से बहती निर्झर है। आंसू ना होते तो, जल गए होते हम शायद मर गए होते हम कसक होने पर फूट-फूट के रोते हैं हम आंसू ना होते तो, घुट घुट के मर गए होते हम आंसू वो है - जो अंदर की आग बुझाते है। दिल बेचैन हो तो समझाते हैं। सीने की आग पिघलाते है। जीने का सबब बतलाते है। उलझन को छम-छम बरस सुलझाते हैं आंसू अकेले में भी साथ निभाते हैं। कभी अपने से लगते हैं आंसू तो कभी छलनी से लगते हैं आसूँ आग जो मेरे अंदर है । आंखों से बहती निर्झर है। . लेखक परिचय :-  नाम - चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...
मौत  या  जिन्दगी
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मौत या जिन्दगी

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** ऐ जिन्दगी ठहर जरा, तुझसे कुछ बात करना है। तुझे तेरी असलियत को, विस्तार से समझाना है। क्या मुकाबला है तेरा, और इस हॅसी मौत का, इससे तुझे रूबरू कराना है। कभी गर आया खुशी का, अबसर तेरे रहते तो अन्तर मे समाया रहा गम का अजब डर, डर रहता है तेरे रहते, न जाने कब पलट जाये पल, तू तो बढ़ जाती है साथ वक्त के, और हम रह जाते बिखरे से। किसी से मिलन तो किसी से जुदाई, ऊँचे ऊँचे महलो को कर दे धराशाई। पकड़ा बड़े जतन से किसी मन्जिल को जब जब, आगे है मन्जिल कह, सपने दिखाये तब तब। कभी किसी मन्जिल पर तू न रुकी है, बढती सदा आगे ही आगे रही है। आज गर लबों की मुस्कान बनी तो, कल नयनो से अश्रुधारा बही है। दिन के उजाले मे मिले, कुछ पल सुकूँ के तो, रात को नीद की दुश्मन बनी है। तुझसे इतर देख इस मौत को तू, यह देती है बस नीद सुकूँ की। जिन्दगी से हारे थके हैं जो, मौत नीद देती उनक...
ओस की बूंद
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ओस की बूंद

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** जीवन क्या है, सोचो अगर, ओस की बूंद ही तो है, जो झड़ जाती है, रात को, किसी भी चौड़े या छोटे पत्ते पर, अस्तित्व रहता है उसका, रात भर, लगता है ऐसे, जैसे सांस चल रही है, मानव की, लेकिन प्रातकाल जब, सूर्य बिखेरता है, अपनी किरणों को, ओस की बूंद, ना जाने, गिर जाती है कब, लगता है यूं, जैसे सब समाप्त हो गया, वह ओस की बूंद, मानव जीवन, ले गई अपने साथ, अतीत के उन मधुर क्षणों को, जिनका अस्तित्व जुड़ा हुआ था, उस बूंद के साथ..... जीवन बूंद ही तो है, ओस की....!! . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (h...
जीवन इक रैन बसेरा है
कविता

जीवन इक रैन बसेरा है

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़(हरि) ******************** जीवन इक रैन बसेरा है, जिसमें सुख-दुख का डेरा है। कहीं खुशियाँ खिलखिल हँसती हैं, कहीं गम का घोरअंधेरा है।। हर पल बदलता रूप है ये, कभी छाँव कभी धूप है ये। चालक इंसां के तन मन का, रखता अपने अनुरूप है ये। ॠतुओं की भांति अलग-अलग, आता ये बदलकर चेहरा है। कहीं खुशियाँ खिलखिल हँसती हैं, कहीं गम का घोरअंधेरा है।। कभी खुशियों का सूरज चमके, हृदय में प्रेम, प्यार पनपे। अनुराग ख्वाब छेड़े रुक-रुक, हँस-हँसके फूल खिलें मन के। नहीं समझ सका कोई इसको, गिरगिट का तात चचेरा है। कहीं खुशियाँ खिलखिल हँसती हैं, कहीं गम का घोरअंधेरा है।। कहीं अपनों से बिछड़ा देता, कहीं औरों से पिछड़ा देता। कभी सफलता दे-देकर ये, बेहद मन को इतरा देता। लोहे से जब हालात बनें, बनता उस वक्त ठठेरा है। कहीं खुशियाँ खिलखिल हँसती हैं, कहीं गम का घोरअंधेरा है।। कहीं लहर...
भारत भूमि
कविता

भारत भूमि

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** ये धरा है सनातनी अजर अविनाशी, इसी धारा से उपजे थे वेद और पुराण, इसी पर कहा जाता है, वसुधै कुटुम्बकम, जन्मे थे यहाँ राम, कृष्ण ये सत्य है महान। जो भी आया देश विदेश से रम गया यहाँ पर परदेशी को भी स्वदेशी मान लिया यहाँ पर सभी ने निज आस्था से पूजन किया यहाँ पर हिंसा का उत्तर अहिंसा दे दिया गया यहाँ पर सत्य छुप नही सकता जान गयी दुनिया जहान आओ करे उसका वंदन गाये स्वागत गान जन्मे थे यहाँ राम, कृष्ण ये सत्य है महान।। अयोध्या व सरयू की आज दूर हुई पीर सदियों से बह रहा था उनके नयनो से नीर आओ सब मिल कर धर्म निभाएं मानवता का हम पुजारी अहिंसा के दो परिचय सदाशयता का तहजीब के लिए कर रही गंगा, जमुना आव्हान करो साथ साथ अब चल कर पूरे भारत के अरमान। जन्मे थे यहाँ राम, कृष्ण ये सत्य है महान।। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा :...
बस थोड़ा सा इन्सान बनो
कविता

बस थोड़ा सा इन्सान बनो

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** बस थोड़ा सा इन्सान बनो कभी तो तुम भगवान बनो गरीबों पर जरा रहम करो बस थोड़ा सा इन्सान बनो मजहब सबका एक है झगड़ो ना परेशान बनो भीड़ भरी इस दुनिया मे बस थोड़ा सा इन्सान बनो ये धरती है बड़ी खूबसुरत तुम ऐसे ना शैतान बनो दो पेड़ लगा दो फूलों के बस थोड़ा सा इन्सान बनो नारी का चीर हरण करके तुम ऐसे ना हैवान बनो स्त्री का सम्मान करो तुम बस थोड़ा सा इन्सान बनो . . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३...
साथ-साथ
कविता

साथ-साथ

अंजना झा फरीदाबाद हरियाणा ******************** आम जन नहीं है परेशान मन्दिर और मस्जिद से कब सोच में आती उसे राम लला की जन्मभूमि और कब याद आता बाबरी का मस्जिद।। उसकी सोच में तो है मंहगाई का अस्तित्व।। पत्नी डूबी इस फिक्र में क्या बने रोटी के साथ सब्जी या फिर दाल क्योंकि इस भाव में नहीं दे सकती दोनो साथ-साथ ।। पति की सोच सिमटी है ईद और दिवाली पर क्या दिलाउं परिवार को उपहार के नाम पर।। काफी मशक्कत के बाद भी दे नहीं सकता नये कपड़े और मिठाइयों के डब्बे पूरे परिवार को साथ साथ ।। बेटा भी तो समझ नहीं पा रहा क्या करें कम व्यय में कौन सी डिग्री कर पायेगी उसका उद्धार मां की ईच्छा अभिलाषा पिता के ईमानदार सपने कैसे पूरे होंगे साथ साथ।। अचानक मिला एक समाचार रामलला को भूमि मिल गई मस्जिद को भी मिला जमीन बस इक पल थम गई सबकी सोच और विचार मिले साथ साथ।। अचानक घर की लक्ष्मी का स्वर गुंजायमान...
कसक
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कसक

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** व्यक्ति के अंदर स्वयं से टकराने की अहम भावना जो उसके उत्तेजित स्वर द्वारा व्यक्त होती हैं वह हैं ‘कसक' मनुष्य के असमर्थता का भाव समर्थता में प्रदर्शित करने की गतिविधि की क्रियान्वित विधि हैं ‘कसक' वर्ग विहीन समाज की कल्पना में गतिशील मानव के विकास की बाधा में उत्पन्न होने वाले टकराव का भाव हैं ‘कसक' धनलोलुपता निरीह जनता के शोषण के विरुद्ध उठने वाली आवाज को दमन करती हुई रेखा में प्रस्फुटित ना हो पाने वाला स्वर् हैं ‘कसम' हृदय के उद्गार को स्वच्छंद रूप से अभिव्यक्त ना दे पाने का भाव हैं ‘कसक' अपने और अपनों के बीच स्पष्ट दृष्टिकोण ना रख पाने का भाव हैं ‘कसक' छल और प्रवचन में ऐश्वर्यवादी मनुष्य का दास बनने का भाव हैं ‘कसक' सामंती व्यवस्था को देर तक ना सहन कर पाने का भाव हैं ‘कसक' दंडनीय कार्यों का न्याय न कर पाने पर विध...
रोशन कर लूं
कविता

रोशन कर लूं

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** गर तू आए मुझसे मिलने, तो ये रास्ते रोशन कर लूं। गर आकर, हाथ थामे मेरा, तो दिल में छिपे जज्बात, रोशन कर लूं। तेरा इंतजार है मुझको, तू आए तो ये रास्ते, फूलों से भर दूं। गर तुझे थोड़ा सा भी, अंधेरा लगे, अनगिनत दीप जलाकर, तेरे रास्ते रोशन कर दूं। बिछा कर बैठी है "सुरेखा" पलके तेरे इंतजार में, तू कहे तो चरागों से, तेरी राहें रोशन कर दूं। गर तू आए मुझसे मिलने.... तो ये रास्ते रोशन कर लूं...!! . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य त...
मन दिखता है….
कविता

मन दिखता है….

संजय जैन मुंबई ******************** मुझे राह दिख, लाने वाले मेरे मन। कभी राह खुद तुम, यूही न भटकना। मुझे राह....…...। मोहब्बत में जीते, मोहब्बत से रहते। मोहब्बत हम सब, जन से है करते। स्नेह प्यार की दुनियां, हम हैं बसाते। मुझे राह........।। न भेद हम करते, जाती और धर्म में। न भेद करते, ऊंच और नीच में। में रखता हूँ समान भाव, अपने दिल में। मुझे राह..........।। हमे अपनी संस्कृति, को है बचना। दिलो में लोगो के, प्यार है जगाना। अपनी एकता और अखंता बचाना। मुझे राह .........।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रह...
जीवन साकार करूंगी मैं
कविता

जीवन साकार करूंगी मैं

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** पितु -मात आशीष को, सफल सदा करूंगी मैं। शूल को फूल बना, जीवन साकार करूंगी मैं।। नेक कर्म कर जगत में, यश को प्राप्त करूंगी मैं । छल कपट से दूर रह, जीवन साकार करुंगी मैं।। वसुधैव कुटुंबकम भावना, सदा अपनाऊंगी मैं। मर्यादा को अपनाकर, जीवन साकार करूंगी मैं।। मन निराकार सपने साकार, कड़ी मेहनत करूंगी मैं। अपनी हर गलती स्वीकार, जीवन साकार करूंगी मैं ।। खुशियों का दमन कर, आशियाना ना बनाऊंगी मैं। सत्य पथ अपनाकर, सदा जीवन साकार करूंगी मैं।। पेड़ आदर्श बना, देश हित सर्वस्व न्योछावर करूंगी मैं। देश को प्रगति पथ पहुंचा, जीवन साकार करूंगी मैं।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक म...
जीता भाई चारा
कविता

जीता भाई चारा

ओम प्रकाश त्रिपाठी गोरखपुर ********************** हिन्दू जीता न मुस्लिम जीता जीता भाई चारा । आओ मिलकर के सब बोले हिन्दुस्थान हमारा।। मिलकर हिन्दू मुस्लिम सब मन्दिर मस्जिद निर्माण करें, राम और अल्लाह के जैसे सब जन जन को प्यार करें। इसीलिए तो सब हैं कहते हिन्दुस्तान जग से न्यारा, आओ मिलकर.....।। एक बनेंगे, नेक बनेंगे मिलजुल कर हम काम करेंगे, परम वैभवी हो मां मेरी सब मिलजुल यह जतन करेंगे। कभी नहीं टूटेगा यह हम सबका भाईचारा आओ मिलकर.....।। वर्षों के झगड़े को भी मिलकर हमनें सुलझा डाला, विश्व पटल पर शान्ति, अहिंसा का परचम फहरा डाला। गूंज उठा है अन्तरिक्ष मे श्री राम का नारा। आओ मिलकर.....।। . लेखक परिचय :-  ओम प्रकाश त्रिपाठी आल इंडिया रेडियो गोरखपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताए...
चुभो के जहरीले नश्तर
कविता

चुभो के जहरीले नश्तर

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** सबब कोई हो हम फलक का गिला नहीं करते, सच है हम अब दोस्तों से ज्यादा मिला नहीं करते। चुभो के जहरीले नश्तर उसने जख्मी किया हमको, सब देखे हैं वो तभी हम कोई फैसला नहीं करते। अब के दौर में कुछ सय्याद, कुछ जल्लाद है, दुश्मन है जान के, दिल से वो मिला नहीं करते। दौलत, शोहरत, इज़्ज़त, सबकुछ लुटाया उसपे, वो हसीन कातिल है कभी वफ़ा नहीं करते। तमाम बंदिशों की जंजीरे तोड़ के आया था मैं, इश्क वाले जाने हैं मोहब्बत में लोग क्या नहीं करते। मजनू, रांझा, रोमियो, फरहाद, अपने दौर के आशिक थे, लैला, हीर, जुलिये,शीरी, वो होती तो क्या नहीं करते। दामने इश्क पे लगें दाग़, बरसाए दुनियां ने पत्थर, नफरत करने वाले शाहरुख़ किसी का भला नहीं करते। . लेखक परिचय :- शाहरुख मोईन अररिया बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं...
आज न रोको
कविता

आज न रोको

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** आज न रोको इन कदमो को, आगे आगे बढ़ जाने दो, तोड़ के बन्धन पिंजरे का, दूर गगन मे उड़ जाने दो। बहुत पी लिए गम और आंसू, अब जी भर मुस्काने दो । जो राह तलाशी है अब हमने, उस मन्जिल को पा जाने दो। तू लड़की है, तू पत्नी है, तू माँ है, तू बेटी है बाली, बन्दिश अब हट जाने दो। बढ़ने दो प्रगति राह पर, हमे करिश्मा करने दो। आसमान के चाँद को छूलें, नापे गहराई सागर क , पंछी जैसे भरे उडा़ने, परवाह नही अब तूफानो की, भिड़ जायेंगे झंझावातों से, अब पंख मेरे खुल जाने दो। नभ मे ऊपर उड़ जाने दो। न मानूं कोई अब रोक टोक, मेरे मन को खिल जाने दो। झेले झंझावात बहुत हर कष्ट सहे, जो मिले मुझको, इक पल चैन का न पाया मैने, जो रूप दे दिया था मुझको, अब जियूँ सिर्फ खुद की खातिर, अब खुद को खुद मे जी लेने दो, अब छोड़ चुकी मै नासमझी, कुछ मुझे प्रगति कर लेने दो। कुछ मुझे .... . लेखक पर...
कौमी एकता का दीप जलाइये
कविता

कौमी एकता का दीप जलाइये

राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी (राज.) ******************** आइये कौमी एकता का दीप जलाइये। हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई एक हो जाइये।। राष्ट्र के विकास की बात को समझाइये। जाति मजहब पन्थ के फसाद भूल जाइये।। एक रंग खून का है सभी को ये बताइये। यूँ ही व्यर्थ की लड़ाई में वक्त न बिताइये।। विविधता में एकता का दिव्य संदेश फैलाइये। अखण्डता व एकता की फिर मिसाल बनाइये।। एक महाशक्ति हिन्दुस्तान को फिर से बनाइये। हर हाथ को रोजगार कैसे मिले सबको बताइये।। गीता बाइबिल कुरान गुरुग्रंथ सबको पढ़ाइये। मानव को अब थोड़ी सी इंसानियत सिखाइये।। वसुधैव कुटुम्बकम की सब में भावना जगाइये। मानव धर्म है सबसे ऊँचा दिल मे इसे बसाइये।। . लेखक परिचय :- राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी जिला झालावाड़ राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित कर...
कृष्ण काव्य
कविता

कृष्ण काव्य

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** मैं कब कहती हूँ कि, तुम प्रकट हो जाओ, लेकिन तुमसे, आरजू बहुत हैं। मोहन मुझे अपने नजर में उठा कर रखना, अपनो के नजर में गिले शिकवे बहुत हैं। मैं रोज मीरा बनना चाहती हूँ, मगर जहर के प्याले में तुम नजर नहीं आते।। मेरा दिल दिनकर की रस्मिरथि जैसा, जितना रूह को हवा दो, उतना मझल जाय। मेरी मोहब्बत को हरिदास की गीत समझो, जितना सुनो बस उतना तो आ जाओ। मैं सूर, रसखान तो लिख नही सकती, मगर आंखो के पल्को के आश्को से तो मोहब्बत बया करती हूँ। हम तो शिकायत करते हैं, कि मोहब्बत मिला नही , हे मोहन.... तेरी मोहब्बत लिखने बैठी तो अँगुलियाँ कापती हैं। तुने राधा को चाहा, मीरा ने तुझे चाहा, और तुम रुक्मिणी के हो गये। मैं कब कहती हूँ कि प्रकट हो जाओ, लेकिन तुमसे आरजू बहुत है.... राधे राधे सिर्फ मोहन.... . परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पि...
भूलाकर गाँव
कविता

भूलाकर गाँव

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** भूलाकर गाँव को तूने, शहर में घर बनाया है। खो गया रंगीनियों में, अपनों को बिसराया है।। गाँव के लोग भोले, दिल में प्यार बसता है। उनकी हर बात में सिर्फ, अपनत्व बरसता है।। शहर की जिंदगी, चारदीवारी में रहता है। अपनों बीच सदा, वह अकेला होता है ।। गांव के लोग सुख-दुख में, पास होते हैं । गांव एक आवाज में, चौपाल पर होता है।। पैसा तूने शहर में, रह बहुत कमाया है। अपनों बीच, तू सदा ही रहा पराया है।। हर बात गाँव के लोग, अपनों को बताते हैं। आए जब विपदा तो, मिल बैठ निपटाते हैं।। अकेला तू रोता, नहीं कोई ढ़ाढस बंधाता है। शहर लोग सिर्फ, दिखावटी प्यार जताते हैं।। लौट आ अब भी, तेरी हम राह तकते हैं। भूला सारे गिले-शिकवे, तुझे गले लगाते हैं।। तेरे आने से पुराने दिन, फिर लौट आते हैं। गाँव गलियों में, फिर हम धूम मचाते हैं।। एक बार बचपन को, हम फिर जीते हैं। गा...
काम पर लगो चलो
कविता

काम पर लगो चलो

विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) ****************** उम्र की ढलान को, मन की थकान को भूल कर उठो चलो, काम पर लगो चलो।। मंजिलों को पाना है, तो चलने का जतन करो लोग जुड़ें खुद बा खुद, ऐसा आचरण करो काफिला जुटाओ मत, पथ का तुम चलन बनो भूल कर………… कायरों की तरह, यूँ पलायन मत करो कर्म करो डूब कर, थोड़ी हिम्मत धरो बात ऐसी बोलो के, सबके उद्धरण बनो भूल कर………… रात है न इसलिए, कष्ट लग रहे बड़े पर सुबह के सामने, होंगे कैसे ये खड़े ? तुम उजाले के लिए, सूर्य की किरण बनो भूल कर…………   लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दुबई में आयोजित मराठी साहित्य सम्मेलन में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व, वरिष्ठ कला समीक्षक, रं...
प्यार में कुछ तो है
कविता

प्यार में कुछ तो है

संजय जैन मुंबई ******************** प्यार को प्यार से जीतो कोई बात होगी। दिल को दिल से मिलाओ, तो कोई बात होगी। दोस्ती करना है तो, दुश्मन से करके देखो? खत अगर लिखा है तो उसे दुश्मनों के पते पर भेजो।। जिंदगी तेरी एक का, एक बदल जाएगी। बंद किस्मत भी तेरी, एक दिन खुल जाएगी। मन के बुझे दीपक भी, तेरे सब जल जाएंगे। बस दिल की आवाज़ को, दिल से सुनकर देखो।। प्यार की आस हर, दिल को होती है। हर दिल की पुकार, दिल को पता होती है। तभी तो मन कि आंखे, दिल वाली को ढूंढती है। और दिल के खाली स्थान को, प्यार के रंग से भर देती है।। इसलिए संजय कहता है, कि प्यार में कुछ तो होता है। कुछ तो होता है...।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्...