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कविता

जय मध्य प्रदेश …
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जय मध्य प्रदेश …

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** जय मध्य प्रदेश। दुखः निर्गम।। शुभम प्रवेश.... जय मध्य प्रदेश... जय मध्य प्रदेश... बुंदेल, बघेली राजस्थानी। छत्तीसगड़ी, चंबल दा पानी।। अजब मालवा का, परिवेश.... जय मध्य प्रदेश... दुखः निर्गम ।। शुभम प्रवेश.... जय मध्य प्रदेश...जय मध्य प्रदेश... जनापाव पावन मन भावन, तीर्थंकर ओमकार सुहावन। सतपुड़ा का सुवन स्वदेश.... जय मध्य प्रदेश। दुखः निर्गम ।। शुभम प्रवेश.... जय मध्य प्रदेश...जय मध्य प्रदेश... सिंध, पार्वती नर्मद हर। चंबल बहती, कल-कल कर।। महाकाल, महादेव सर्वेश.... जय मध्य प्रदेश। दुखः निर्गम ।। शुभम प्रवेश.... जय मध्य प्रदेश...जय मध्य प्रदेश... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के ...
हम तो आज़ाद हैं
कविता

हम तो आज़ाद हैं

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) ******************** हम तो आज़ाद हैं हम तो आज़ाद हैंं...... बंदिशों से सदा उनकी लाचार हैं उनको लगता सदा हम तो बेकार हैं छोड़ दी हमने अब तलवार है बन गई अब कलम मेरी पतवार है हम तो आज़ाद हैं हम तो आज़ाद हैं..... लिखते लिखते नहीं हाथ थकते मेरे देश पर मेरा लिखने का अधिकार है हम तो आज़ाद हैं हम तो आज़ाद हैं..... देखकर लोग कहते हैं आवारा है ये तो आवारा है, ये तो क्वाँरा है धड़कने उनके दिल की हैं बढ़ने लगीं फिर से कहने लगे वो तो बेचारा है वो तो बेचारा है वो तो बेचारा है हम तो आज़ाद हैं हम तो आज़ाद हैं..... . लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता ...
आवारापन
कविता

आवारापन

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** स्याह रात में हज़ारो ख्वाइशें लिए मैं अज़नबी शहर में भटक रहा था। बादलो से हारे सितारें न जाने कहा जा छुपे थे। जुगनुओं की बस्ती में भी कोई हादसा हो गया था कोई नज़र नही आ रहा था। इस स्याह रात में मैं बे साया मंज़िल की ज़ुस्तज़ु में बद हवास भटक रहा था। अजीब हैं ,ये शहर रौशनी से डरा हुआ, सन्नाटा हाथ मे नश्तर लिए हर आवाज़ को चाक कर रहा था दिल और जेहन के बीच घमासान छिड़ा था दोनों के दरमियाँ मैं बेबस खड़ा था। किसकी सुनु, न सुनु कश्मकश में था। ये ज़ुस्तजू ये जद्दोजहद किसके लिए मैं समझ नही पा रहा था मेरा आवारापन ले आया मुझे शहर के उस छोर पर जहा जिंदगी ही हद खत्म होती है। और शुरू होता है एक नया सफर जो मंज़िल का मोहताज़ नही। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बै...
लकीर
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लकीर

रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) ******************** हाथ की लकीर बदल दीजिए छठ मैया, बीच मजधार से पार लगा दीजिए मेरी नैया। रैन दिवस बहते हैं मेरे अश्रुधारा, आप ही है मेरी जीवन की सच्ची सहारा। लगन लगी है आपके चरणों की हरण कीजिए सब मेरे कष्टों की रहूँ मैया आपकी उपासक जन्म -जन्म तक, नव लकीर बना दीजिए आशीष खुशियों की वर्षों तलक, जय, जय छठ मैया हमारी है अनुपम, लकीरों की गाथा बदल बरसा दीजिए पुष्प सुन्दरम   लेखीका परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने...
वसंत
कविता

वसंत

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. ******************** खिल उठा है बसँत, फूल उठी है अमराई, खुशगवार मौसम नेँ, जीने की उम्मीद, जगाई, वन प्राँतरोँ मेँ खिला,टेसू, और सेमल जैसे कहीँ पर, आग किसी ने है,लगाई, होली के सप्त रँगो ने, रिश्तोँ मेँ, गरमाहट की, नई अलख है जगाई, बजते ढोल, उडता गुलाल, रँगीन पानी की बोछारेँ, सबके नज़र मेँ हैँ, आईँ, हसतेँ चेहरोँ के बीच, फिर, भाँग की मस्ती है छाई, ज़माने भर के दुखडोँ से, एक दिन के लिये ही सही, ह्मेँ पूर्ण मुक्ती दिलाई . लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्...
नज़रिया
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नज़रिया

विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) ****************** झाड़ू बुहारते गृहणी इतनी मगन  है इतनी मगन मानो चेहरा चमकाती हो ब्रांडेड  स्क्रब क्रीम से तुम्हें मगर शिकायत रही हमेशा ठीक से सजती नहीं वो कि पूरा मेकप किट दिलाया है उसे पिछली दिवाली पर इसलिए फर्ज़ है उसका कि सजे वो और अहसास माने जिंदगी भर समय मिले तो झांक लेना उसी किट में फाउंडेशन सूख गया कबका लिपस्टिक  हो गई चिपचिपी आई शैडो का बॉक्स फैंसी ड्रेस कम्पीटीशन को तैयार होते समय भूल आई स्कूल में तुम्हारी आठवी कक्षा में पढ़ती बेटी ले देकर बची केवल एक काजल पेंसिल लगाती है वो तुम तो इतना भी नहीं जानते होगे कि  लिप्स्टिक की बिंदी लगाती है वो जब तुम खुद चिपचिपाते हुए बैठ जाते हो उसके माथे पर जैसे रह गया तुम्हारे से उसके संबंध का यही एक ज़रिया नहीं, मेकप किट नहीं बदलना है तो बदलो अपना नज़रिया   लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कान...
वो कौन है जो मेरे गुनाहों पर पर्दा डाल देता है
कविता

वो कौन है जो मेरे गुनाहों पर पर्दा डाल देता है

सलिल सरोज नई दिल्ली ******************** वो कौन है जो मेरे गुनाहों पर पर्दा डाल देता है और मेरे गुनहगार होने का डर निकाल देता है बताओ, कैसे आदतें ये अपनी काबू में आएँगीं वो तो रोज़ कोई नया सिक्का उछाल देता है मैं कोशिश में हूँ कि कोई तो मीनार बच जाए हवा जब चले तेज़ तो हाथ में वो मशाल देता है अगर मिले मुझे जवाब तो मैं शान्त हो जाऊँ वो मज़िल के करीब लाकर नया सवाल देता है मैं उस की गली में जाना कब का छोड़ देता वो मेरी आँखों को तराशा हुआ जमाल देता है . लेखक परिचय :-  सलिल सरोज कार्यकारी अधिकारी लोक सभा सचिवालय नई दिल्ली आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gma...
जय श्री राधे
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जय श्री राधे

भारत भूषण पाठक धौनी (झारखंड) ******************** श्याम बिनु राधा कैसी, राधा बिनु कैसे श्याम। बोलो मन जय राधे नाम, बोलो मन जय श्रीराधे श्याम। मुरली बजा जियू हर लीन्हों, ये तेने कैसो जादू किन्हों। कह रयो गोपी संग नंदग्राम, बोलो मन जय श्रीराधे श्याम। ब्रज की माटी उछल-उछल कर, बता रयो कान्हा जी आयो। यमुनाजी भी मस्त हो रयो, लता-बेल आजु है गा रयो। आयो कान्हा फेरू है नंदग्राम, बोलो मन जय श्रीराधे श्याम। . लेखक परिचय :-  नाम - भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका(झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास - साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है काव्य प्रतियोगिता में। ...
अश्रुबाँध
कविता

अश्रुबाँध

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** जाने कब का बँधा अश्रुबाँध, आज दरकने लगा है, अश्रु सैलाव आज बढ़ने लगा है। दिन का चैन नीद निशा की बहाने लगा है। लाख रोका न आये सैलाब ऐसा, पर हर बार सैलाब उमड़ने लगा है। हारी नही थी अपनी बदहबासियो से, भयावह भँबर मे नाव डगमगाने लगी है। सहसा ही अदृश्य हाथ सम्मुख था मेरे, कश्ती मेरी तट पर बढ़ने लगी है, डुबाना न कश्ती कसम है तुम्हे अब, अन्तिम समय तक न होना जुदा अब कान्हा मेरे अब स्वयं मे समाना, मन्जिल कठिन है पर आगे ही बढाना। झेले बहुत दर्द हर गम को पिया है, शायद न अब कुछ बाकी रहा है, आकर के अब जो लगालो गले से, सह जायेगे सब जो हमको मिला है। सह जायेगे सब ...... . लेखक परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलन...
माँ तो माँ होती है 
कविता

माँ तो माँ होती है 

संजय जैन मुंबई ******************** मां का आँचल सदा, स्नेह प्यार बरसात है। बड़ी ही खुश नसीब होते, जिन्हें ये प्यार मिलता है। मां शब्द ही ऐसा है, जिसमे पूरा ब्रह्मण्ड समाता है। तभी तो माँ का कर्ज, कोई उतार नही पता।। जिसे मिलता है, माँ की सेवा का अवसर। वो संतान खुश नसीब होती, जिसे मिलता है ये मौका। दुनियां में सिर्फ मां ही, ऐसी होती है। जो अपनी संतान के लिए, किसी भी हद तक चली जाती।। माँ तो माँ होती है किसीने नही देखे उसके रुप? कब कौनसा रूप लेकर, संतान को सक्षम बनाती है। जब आती है उस पर विपत्ति, तो ढाल खुद बन जाती है। जिस ढाल को कोई योध्दा, आज तक नही भेद पाया। तभी तो माँ जगत जननी, कहलाती है लोगो।। बड़े ही पुण्य साली है, जिनकी मां साथ होती है।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड क...
दीपावली
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दीपावली

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** इस बार दीपावली, हम इस तरह मनाएंगे। हर घर रोशन हो, सोच यही अपनाएंगे।। पटाखे जला, पर्यावरण प्रदूषण नहीं फैलाएंगे। उन पैसों से, गरीब बच्चों के उपहार लाएंगे ।। मिट्टी दीपक जला, रोशनी चहुँओर फैलाएंगे। चीनी उत्पादकों को हम, अब नहीं अपनाएंगे।। अज्ञान अंधकार दूर कर, ज्ञान दीप जलाएंगे। खुशहाल जीवन, जीने का हुनर सिखाएंगे ।। मन मेल इस दीपावली, गंदगी संग दूर भगाएंगे। सब के दिलों में बस, अपनत्व भाव जगाएंगे।। गरीब चौखट पर, इस बार दीप जगमगाएंगे । भेदभाव भूलकर, मिलकर दीपावली मनाएंगे।। बंदनवार हर द्वार लगा, रस्म कुछ यू निभाएंगे । रामवतार मान अतिथि, कुमकुम तिलक लगाएंगे।। लक्ष्मी पूजन कर, माँ को प्रसन्न कर जाएंगे। कोई भूखा ना रहे, बस यही आशीष पाएंगे।। वसुधैव कुटुंबकम की, भावना हम अपनाएंगे । देश पर विपदा आए तो, प्राण बाजी लगाएंगे। श्रीराम को आदर्श बना, जीवन...
अन्तिम जश्न
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अन्तिम जश्न

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** "हास्य-व्यंग" बैठे बैठे एक ख्याल आया, अब तो बैकुन्ठ जाने का समय आया, पर वह अन्तिम जश्न, जश्न क्या? जिसमे होठो ने न गुनगुनाया जिसमे जोर जोर से ताली न बजाया| कौन होगा जो आँसू के साथ नगमे भहाये, और यदि किसी ने सुनाया तो तरन्नुम मे न सुनाया, भगैर तरन्नुम के कौन बजायेगा ताली, न बजी ताली तो क्या अन्तिम जश्न मनाया, किससे कहूँ जो लिखे कुछ नगमे, फिर सुनाये मस्त हो मृत्यु जश्न में, सोचा न जाने कौन क्या लिखेगा, किसी के मन मस्तिष्क मे भी चढे़गा? चलो छोड़ो खुद ही लिखते है कुछ पंक्तियां अपनी मौत की, पकी पकाई कौन न खाना चाहेगा, हर कोई पढ़ नाम करना चाहेगा| यह सोच लिख डाला दो पन्नों का मृत्यु काव्य पढ़ कर हुआ सन्तुष्ट हृदय एक काम निबटा डाला अब पढेंगा कौन? विकट प्रश्न आ मडराया फिर चिडि़या के पंजो से निशां जैसे शब्दो को समझेगा कौन लेखिनी दाँतों मे दबा होठो के ए...
वो बंजारन …
कविता

वो बंजारन …

दिव्या राकेश शर्मा गुरुग्राम, हरियाणा ******************** वो बंजारन दिखती मुझे रोज धूप मे तपती कुछ स्याह सी कुछ सफेद पहने घेरदार पोशाक टीका माथे सजाकर। वो बंजारन.... कातिल तीर निगाहें कुछ गोदना हाथों में गुदवाये कुछ चूडिय़ां ज्यादा है एक ओढनी तन पर पैरों में कुछ जंजीरें हाड़ तोड मेहनत कर चिमटा बनाती। वो बंजारन .... ना इत्र महका है वहां ना लाली होंठों मे सजी है कुछ काजल से भरी आँखें सुरत मे जादूगरी है। वो बंजारन .... कुछ उभार दीखते है कसी हुई चोली मे है गदराया जिस्म भी मेहनत की रौशनी में। वो बंजारन.... पास चुल्हा जला है देग उस पर चढा है कुछ रोटियां बनी है कुछ गोस्त पकाती। वो बंजारन.... है बिजलियाँ पैरो मे ताल पर है सबको नचाती वो बंजारन.... है सड़क किनारे बैठी अपने आशियां मे वो अपने महल की रानी वो बंजारन देखी है.... . लेखक परिचय :-  दिव्या राकेश शर्मा निवासी...
एक दीप जलाओ
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एक दीप जलाओ

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) ******************** एक दीप जलाओ ऐसा सारी दुनियाँ में फैले प्रकाश भरत भूमि के दीपों से जगमगा उठे पावन आकाश देश हमारा भारत है सच कहना मेरी आदत है देश में बढ़ते अत्याचारों से योगी जी मुख मोड़ना तुमपे लानत है रचाओ खूब तुम षड्यन्त्र, हम सारे काट जाएंगे ... विरासत की लड़ाई को, सफ़ल हम जीत जाएंगे ... तुम पैतृक भूमि मेरी को, दबाना गर जो चाहोगे... हम खौलते लहू में अपने दफ़न तुमको करायेंगे ... रोशन हो घर साफ़ हो मन निरोग हो तन सद्भाव और शांति के साथ मिलकर इस दीवाली को मनाएँ सब जन . लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्व...
दिवाली पर मिलेगी…
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दिवाली पर मिलेगी…

संजय जैन मुंबई ******************** दीप जलाओ तुम सब। करो अंधकार को दूर। रोशनी कर लो मन में। इस दीपाली पर।। घर का कचड़ा साफ करो। मन को करो तुम शुध्द। जग मग कर दो गली मौहल्ले और अपना घर। दिलो में खुशीयाँ भर दो, इस दिवाली पर ।। खुशीयाँ घर घर जाकर। देते जाऊ तुम सबको। मिले तुम्हे आशीष सदा,  बड़े बूढ़ों जनों का । दीपावली पर हिल मिलकर, रहो तुम सब जन। मिलेगी धन संपदा तुम्हे इस दिवाली पर।। मिलेगी धन संपदा .....।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी के चलते कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानि...
सच्चाई
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सच्चाई

केशी गुप्ता (दिल्ली) ********************** सिसक रही है जिंदगी उमर के पड़ाव पर देख के होता है, अहसास सिर्फ अपनी लाचारी का उम्र लंबी हो या ना हो जिंदगी खुशहाल हो तय करे जो सफर ये सच्चाई वो जान ले मौत मंजील नही किसी की रास्ता है उस पार का ज़िदगी का मजा तभी है गर सफर आसान हो . लेखक परिचय :- केशी गुप्ता लेखिका, समाज सेविका निवास - द्बारका, दिल्ली आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें...🙏🏻 आपको यह...
चेहरा
कविता

चेहरा

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** बहुत मुश्किल है रुचि... इस दुनिया को समझना... कि लोग ..... मन मे कुछ ... और जुबा पर कुछ और रखते है... लोग अपने अंदर ही अनेक किरदार बसा रखते है खुद क्या है, ये कभी जान ही नहीं पाते और दूसरों को समझने के दावे हजार करते है जिस तरह लगा रखे है चेहरे पर चेहरे... असली को जानने के भी आईने हजार लगते है... देखते है जब वो खुद की सूरत को आईने में... हर बार सीरत के मायने हजार निकलते है... बहुत मुश्किल है रुचि... इस दुनिया को समझना कि एक इंसान से ही हजार निकलते है... बेहतरी यही है कि छोड़ दु मैं अब इस दुनिया को समझना... और जो जैसा है उसे वैसे ही कबूल करना।... पर उसके भी पहले जरूरी है यही कि खुद को ढूंढकर, खुद को समझना... . लेखिका परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जू...
इस दीवाली …
कविता

इस दीवाली …

प्रेक्षा दुबे उज्जैन ( म. प्र.) ******************** एक दिन के लिए ही सही सबकी उदासी मिटाने को... अँधेरे दिलों में भी रोशनी जगाने को... कड़वे रिश्तों में मीठी चाशनी घोल जाने को... बेरंग सड़कों पर रंग बिखराने को.... भागती सी जिंदगी को थोड़ा थमाने को... मोबाइल से बाहर की दुनिया दिखाने को... सारा शहर आज यूँ जगमगाने को.... रामचन्द्रजी की याद दिलाने को... आध्यात्मिकता से फिर जोड़ जाने को.. और सारे आलसीयों को काम पर लगाने को...!!! तुमने किया इतना अब मेरी बारी हैं... ग्रीन दिवाली की पूरी तैयारी है.. चीनी सामानों की ना कोई पारी है मिट्टी के दिये और रंगोली प्यारी है बिना पटाखों के मस्ती भी जारी है प्रदूषण रोकना सबकी जिम्मेदारी है बदलाव लाने की सोच हमारी हैं..... . लेखिका का परिचय :- प्रेक्षा दुबे निवासी - उज्जैन ( म. प्र.) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्...
चलने दो लेखिनी
कविता

चलने दो लेखिनी

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** एक पल ठहरो, रुको जरा शब्द नही खामोश, दिल है भरा। करो वीरानियों से खाली यह दिल, मिलेगी एक बड़ी शब्दों की महफिल। रहते निरन्तर शब्द ह्रदय पटल पर, किसी वजह से आते नही जु़वां पर| कुछ झिझक, कुछ डर, कुछ कटाक्ष, से डरा रहता है हमारा अन्तर। पर क्यों? लेखिनी को क्यों विराम दें? क्यों न इन बन्धनों को तोड़ दे? चलने दो निर्बाध यह लेखिनी, दिल मे दबी व्यथा को निकाल दें। . लेखक परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अप...
खरदूषण
कविता

खरदूषण

के.पी. चौहान गुरान (सांवेर) इंदौर ****************** दीपावली के इस पावन पर्व। और सुहाने मौसम, तथा प्यार भरी बारिश, बन के आई है। प्रदूषण से त्रस्त लोगों के लिए।। अमृत वर्षा। सोचा होगा, कब तलक दिल्लीवासी। दीपावली पर छोड़े गए पटाखों के, प्रदूषण के जहर को भागेगा। नादान है इंसान, समझने को तैयार नहीं। वह पता नहीं कब तक। अपने जीवन के साथ खेलेगा।। इंसान तो मरेंगे ही साथ में जीव जंतु। और वन्य प्राणियों की जान भी ले लेगा।। अति उत्साह में चलाकर पटाखे। बढ़ा रहा है प्रदूषण।। उसे नहीं पता कि १ दिन। हमें ही खा जाएगा यह; खरदूषण।। . लेखक परिचय :-  "आशु कवि" के.पी. चौहान  "समीर सागर"  निवासी - गुरान (सांवेर) इंदौर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हे...
आइए जलते हैं
कविता

आइए जलते हैं

डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी उदयपुर (राजस्थान) ****************** आइए जलते हैं दीपक की तरह। आइए जलते हैं अगरबत्ती-धूप की तरह। आइए जलते हैं धूप में तपती धरती की तरह। आइए जलते हैं सूरज सरीखे तारों की तरह। आइए जलते हैं अपने ही अग्नाशय की तरह। आइए जलते हैं रोटियों की तरह और चूल्हे की तरह। आइए जलते हैं पक रहे धान की तरह। आइए जलते हैं ठंडी रातों की लकड़ियों की तरह। आइए जलते हैं माचिस की तीली की तरह। आइए जलते हैं ईंधन की तरह। आइए जलते हैं प्रयोगशाला के बर्नर की तरह। क्यों जलें जंगल की आग की तरह। जलें ना कभी खेत लहलहाते बन के। ना जले किसी के आशियाने बन के। नहीं जलना है ज्यों जलें अरमान किसी के। ना ही सुलगे दिल… अगर ज़िंदा है। छोडो भी भई सिगरेट की तरह जलना! नहीं जलना है ज्यों जलते टायर-प्लास्टिक। क्यों बनें जलता कूड़ा? आइए जल के कोयले सा हो जाते हैं किसी बाती की तरह। . लेखक परि...
बधाई हो
कविता

बधाई हो

मुनव्वर अली ताज उज्जैन ******************** ज़ेहन   में    पारसाई    हो हर इक दिल की सफ़ाई हो नज़र    में   ख़ुशनुमाई   हो ज़ुबाँ  पे   भाई     भाई   हो मुहब्बत      रास   आई   हो लबों     से      मुस्कुराई   हो भरी   नफ़रत   की  खाई हो मिलन   की  रसमलाई    हो दियोंं    की    रौशनाई    हो अमावस     साथ   लाई  हो हर इक   मुँह  में  मिठाई  हो ग़रीबों  ने   भी     खाई   हो धरा    भी     जगमगाई   हो दीवाली    की    बधाई    हो . लेखक परिचय :- मुनव्वर अली ताज उज्जैन आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने मोबाइल पर या गूगल पर www.hind...
हे! औरत
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हे! औरत

अशोक बाबू माहौर कदमन का पुरा मुरैना (म.प्र.) ******************** हे ! औरत तेरे माथे पर पसीना क्यों? क्यों साँसें लम्बी लम्बी? भुजाएं थकी थकी जुबान कुछ कहना चाहती पर कह नहीं पाती। मुखड़ा उखड़ा क्यों? क्या तुम हारी हो? जमाने से या घर परिवार से, रोती रहती हो सुबह शाम पी जाती हो दुखों को नासमझ कर। मुझे अहसास है अनुमान है तुम कठिन परिश्रम से नहीं बल्कि अपनों के ताने सुनकर ढ़ह गयी हो ढ़ेर सारी परेशानियों में चल रही हो फफकती रो रही हो पर कह नहीं रही हो अंदर मंथन कर टूटकर जुड़ रही हो। . लेखक परिचय :-   नाम - अशोक बाबू माहौर ग्राम - कदमन का पुरा, जिला - मुरैना(म. प्र.) प्रकाशन - हिंदी रक्षक डॉट कॉम सहित देश विदेश की विभिन्न साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित सम्मान - इ-पत्रिका अनहदकृति की तरफ से विशेष मान्यता सम्मान २०१४-१५ से अंलकृति। नवांकुर साहित्य सम्मान साहित्य भ...
दीपावली
कविता

दीपावली

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** झिलमिल झिलमिल आई दिवाली, खुशियों की सौगातें लाई। बच्चें बूढे सभी के मुख पर मुस्कुराहट आई। जब जब दिवाली आती, मन के दीपक है जल उठते, स्नेह युक्त दीपक बाती में, दिल से दिल घल मिल जुड़ते। झूठी चमक दमक में दबकर, दम दम जी दम फूल रहा, तेल बिना सूखी हैं बाती, जीवन पल पल झूल रहा, क्या मालुम कब कोन बुझेगा, बहकी बहकी बयार चल रही, दीपक द्धष्टी दिशाहीन हैं, कैसे दीप जलेगा मन का, वातावरण विषाक्त चहूँदिश कंपित दीपक है जनमन का। हालातों पर गौर करों अब कैसे जन का दीप जलें फिर, दानवता का दमन करों अब, मानवता दिनमान फलें फिर। घर समाज देश हित सारे दीपों की रौनक बढ़ जावे। राजी हो लक्ष्मी गणेश, पूजन से पूरन हो काज, दीपों की आभा से निखरें, तन मन घन तीनोँ के साथ। आशा प्रदीप जन मानस का, कल पुनः प्रजित प्रजलित होगा, रात के बाद दिन होता है मंगल प्रभात प्रस्फुटित होगा।...
धन तेरस… हो मन तेरस…
कविता, व्यंग्य

धन तेरस… हो मन तेरस…

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** धनतेरस धनवान बने, धन बरसे, ना मन तरसे। सभी भुभेच्छा यही आज, देता सारा सकल समाज।। किंतु ...! मेरे कवि ह्रदय ने नया पर्व का नाम दिया .... मनतेरस। धन तेरस .. हो..जन तेरस ..हो मन तेरस ..।। मनतेरस का पर्व मनायें हम सब। दुखिया के घर खुशियां लायें हम सब।।.... जिनकी आंखों में सागर तैर रहे। हाय वेदना उनकी हर जायें हम सब।।... जिनके घर दीपक घी के जार रहे, भूखे तक कुछ तेल पहुंचायें हम सब।।... जिन्हें दरिद्रता ने अभिषापित कर डाला, गहरे घावो तक मरहम दे आयें हम सब।।... त्योहारों को जो सीमा पर मना रहे, उनकी यश गाथा को गायें, हम सब।।... धनतेरस का मतलब शायद जान चुके, आओ मिल अभियान चलायें हम सब .... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यका...