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कविता

ये मेरा आसमाँ
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ये मेरा आसमाँ

रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) ******************** ये मेरी धरती, ये मेरा आसमाँ पर्यावरण बचाकर रखें सुरक्षित सारा जहाँ। स्वचछता का मूल मंत्र हो सबकी जुबान, प्रदूषण फैला न, दे सबको जीवन दान। धरा बनाए सुंदर सा उद्यान, उड़े सुंगधित खुशबू नीला आसमाँ। कदम-कदम तरू की हरियाली हो जिस पथ ओर चलूँ विकासवाली हो मिले प्राण रक्षक तत्व, हो जाए जीवन आसान ये मेरी धरती, ये मेरा आसमाँ।   लेखीका परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०...
जाग मातृभूमि
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जाग मातृभूमि

भारत भूषण पाठक धौनी (झारखंड) ******************** जाग मातृभूमि जाग प्रलय का ले आग कर अब ताण्डव तू फिर भेंट चढ़ी है तेरी ही एक बेटी विकृत मानसिकता वाले दनुजसम मनुज की जाग मातृभूमि जाग गा विध्वंश का राग जाग भारतवंश जाग डरा रहे फिर वो नाग तेरी सुता को कुचल अब उनका फन डस रहे हैं जो तेरी उस पुण्यात्मजा को जाग मातृभूमि जाग फूँकने विनाशक शंख करने फिर हूँकार अपमानित हुई फिर वो हाय बेचारी बेटी निष्कलंक जाग मातृभूमि जाग गा ले प्रलय का राग आखिर कब तक ???? . लेखक परिचय :-  नाम - भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका(झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास - साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व...
नया
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नया

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** हर सुबहा हर दिन नया होता है, नयी किरन नया सूर्य होता है, फूलो की सुगन्ध नयी और, पक्षियों का कलरव नया होता है, नयी धरती नया अम्बर, मौसम भी नया होता है, कही वीरानियां कही महफिल, कही उदासी फिर भी जश्न होता है, पर मेरी उदासी  हो या महफिल, मेरे संग मेरा कान्हा होता है। . लेखक परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानि...
लक्ष्य
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लक्ष्य

गोरधन भटनागर खारडा जिला-पाली (राजस्थान) ******************** लक्ष्य तुझे पाना है। आज नहीं तो कल जरा विलंब लग जाएगा मगर थकूंगा नहीं, मैं आज।। लक्ष्य तुझे पाना है आज नहीं तो कल कल अगर हो जाए, अंधेरा तो हाथ में दिया जला लूंगा मैं लक्ष्य तुझे पाना है आज नहीं तो कल क्या तू ओझल हो जाएगा। मैं ढूंढ लूंगा तुझे हर बार।। तू रह अपनी ठौर, मैं अपनी ठौर। लक्ष्य तुझे पाना है..........। तू भी तो साथ दे मेरा। तेरे लिए ही जगता हूं, दिन- रात।। सुन तू मेरी बात पाना है जरूर तुझे आज नहीं तो कल लक्ष्य तुझे पाना है,..........। तू रुके या दौड़े। मुझे नहीं झुका सकता।। थाम लिया है कलम को। साथ भी हैं स्याही का।। लक्ष्य तुझे पाना है,.........। ऐ नींद! तु भी क्या आडे आएगी? जा तू भी सो जा। ऐ अंधेरा तू क्या रोकेगा, अब मुझे।। बस ठान लिया है, पाने का तुझे लक्ष्य तुझे पाना है,..........। सुनो ए बाधाओ, क्या र...
आज रूबरू
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आज रूबरू

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** जिंदगी हकीकत, आज रूबरू करा रहे हैं। आँखों के अंधों को, आईना दिखा रहे हैं ।। हकीकत को बिसरा, अनजान बन रहे हैं। अतीत गलती दोहरा, भविष्य बिगाड़ रहे हैं।। अनीति से पैसा, रात दिन वो कमा रहे हैं। कोई नहीं देख रहा, गलत कार्य कर रहे हैं।। माँ-बाप के पूछने पर, पागल बना रहे हैं। झूठी शानो शौकत, बच्चों संग डूब रहे हैं।। करनी देख, प्रभु मन ही मन मुस्कुरा रहे हैं। तेरे कर्मों की सजा, इसी जन्म में दे रहे हैं।। लग रही पग पग ठोकर, संभल नहीं रहे हैं। बच्चों की गलती पर, झूठ पर्दा डाल रहे हैं।। उनके हर गुनाह पर, सिफारिश लगवा रहे हैं । आज का प्यार, कल मौत राह लेजा रहे हैं।। वक्त रहते नहीं संभले, फिर पछता रहे हैं। आई जब विपदा, अपने कर्मों पर रो रहे हैं। जन्नत थी जिंदगी सबकी, जहन्नुम बना रहे हैं। थोड़ा सुकून, बुजुर्ग आशीष से पा रहे हैं।। बुजुर्ग स्नेहाशीष को,...
सुदामा को देखा है मैंने
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सुदामा को देखा है मैंने

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** गरीब घरों के बच्चों की जब आँखें रोती हैं तो उस वक्त मानों उनके पूरे बदन का एक-एक अंग रोता हैं उनके होठों की किलकारियों में अक्सर अश्रु बहते देखा हैं उनके नये–नये कपड़ों में लकीरों की सिलवटों को खिंचते देखा हैं उस वक्त जब वह तैंयार होते हैं पांव के जूते भी अक्सर किसी मोड़ पर मुँह फैलायें दिख ही जाते हैं और पेट की आग तो दीमक सी चिपक जाती हैं उनके मुस्कुराते चेहरों की सिलवटों में उनके पढ़ने की जद्दो-जहद में दो जून की रोटी को जोड़ते देखा हैं उनके खेलों में अक्सर ईट, पत्थर को तोड़ते किसी के जूते, चप्पल, प्लेट को घिसते देखा हैं सुना हैं बच्चे मन से चंचल होते हैं हाँ यकीनन किसी गरीब बच्चें ने कोई सपना देखा होगा कहते हैं बच्चों में भगवान होता हैं लेकिन अक्सर..! हालत से जूझते हर गरीब बच्चों में सुदामा रूप को ही देखा है मैंने।। . ...
काश …
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काश …

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** काश मेरे पास कुछ वक्त होता.... खुदा कसम, तुम्हें पन्नों में उकेर देती, पढ़ती तुम्हारा हर एक अल्फाज, अपनी निगाहों से...... धड़कन के रास्ते, तुम्हें दिल में उतार लेती, कर लेती कैद दिल में, हमेशा के लिए, काश मेरे पास कुछ वक्त होता.... ताउम्र के लिए तुम्हें, एक हसीन तोहफा देती, अपनी सांसों के साथ, तुम्हें जोड़ लेती, बाहों में खोते, जब हम-तुम, उन हसीन लम्हों को, आंखों में कैद कर लेती, काश मेरे पास कुछ वक्त होता...!! . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कु...
याद आता है
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याद आता है

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** तेरा यमुना तट पर वंशी बजाना, और मेरा अपलक तुझे निहारना, याद आता है कान्हा। मिले थे जब हम कदम्ब की छाँव मे, तमन्ना थी समा जाऊँ आगोश मे, तेरे कहे शब्द "आऊँगा जल्दी ही", गूँजते हैं हर पल इन कानो मे, वादा कर छोड़ दिया तन्हा फिर, नयन बरसे यूँ ज्यों घटा बरसे घिर घिर हर बात पर विश्वास किया हमने, हर बार वादा कर तोडा़ तुमने, हर आहट पर नजरे उठा करती है, हो के मायूस फिर जम के बरसा करती हैं। . लेखक परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
नव किरणें …
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नव किरणें …

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** नव किरणें दोड़ी आती हैं चीर रात की स्याही। अंधकार मै मत भटको, जीवन पथ के राही। लेकर हाथों मे सुधा कलश, अब नया सबेरा आया हैं। जगती के जलते आंगन मे नूतन बसंत मुस्काया हैं। फूलों के बंदरवार सजे, हर गली गली हर द्धारे। जन मन के मन में छलक रहा आदर्शों के प्रति पुण्य प्यार। तुम भी बनों आज नवयुग के सिरजन हार सिपाही। अंधकार में मत भटको जीवन पथ के राही। गाओं जागृति के नये गान मुस्कान बिखेरों द्धार द्धार, कंटक न रहे कोई पथ पर दो मानवता का पथ बुहार करके वह करणी दिखलाओ, जो नवयुग ने चाही। अंधकार में अब मत भटको जीवन पथ के राही। . लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - साम...
मजदूर की बेटी हूं
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मजदूर की बेटी हूं

बाबुलाल सोलंकी रूपावटी खुर्द जालोर (राजस्थान) ******************** मैं आप की तरह पत्थर नही जिंदादिल इंसान हूं ! ईंट से कोमल हूं ! पर चट्टान से मजबूत क्योंकि मैं चट्टान तोड़ती हूं ! मैं ईंट पत्थर की चोट से नही डरती क्योंकि- मजदूर की बेटी हूं ! मैं डरती हूं महल वालो की लाल आंखे ओर डांट से क्योंकि- कंही उनकी नारजगी शाम का चूल्हा ठंडा न कर दे ! मैं महलो में नही रहती पर महल बनाती हूं ! ईंट पकाती हूं! बनाती हूं ! मेरी कोमलता गर्म भट्टी में ईंट सेंकते पक गई है। सिवाय हृदय, सब कठोर है। आप संगमरमर से सजे महलो में सोते है ! रहते है ! हम संगमरमर के शेष टुकड़ो पर अपनी रात बिताते है। तुम अपने बच्चो को प्यार से बांहों में नही उठाते। उससे ज्यादा हम ईंट गोदी में संभाल के रखते है क्योंकि- एक ईंट का टूटना हमारे लिए बहुत कुछ तोड़ सकता है जैसे- आबरू, खाना,रोजी, सपने, हमारे लिए घर आंगन नशीब कँहा है ? जंहा भी मा...
चार दिन की
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चार दिन की

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. ******************** चार दिन की जिंदगी, तू अधिक न ज़ोड, झूठे हैँ नाते रिश्ते, इन्हेँ जल्दी से छोड, रास्ते तो हैँ कठिन, आयेंगे इसमेँ कई मोड, चट्टानेँ हैँ तेरे रास्ते, इन्हेँ जल्दी से फोड, हर कदम हैँ, दुश्मन, बाहेँ तू इनकी म्ररोड, तेज़ रफ्तार है, जिंदगी, लगानी पडेगी तुझे, होड, ये दौड धूप रहेगी, सदा, खोफ से तू, मुँह न मोड. . लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये हैँ. संप्रति :- भ...
गुलमोहर
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गुलमोहर

रंजना फतेपुरकर इंदौर (म.प्र.) ******************** एक अनजानी खुशबू फ़िज़ाओं में बिखरी थी कुछ ख्वाहिशें थीं जो निगाहों के दायरे से गुजरी थीं ख्वाबों से हसीन थी शबनम से जो नाज़ुक थी वो तुम्हारी यादें थीं जो पलकों को छूकर महकी थीं भीगी पलकों पर चाहत की नदियां उमड़ी थीं रात के रुखसार पर चांदनी की यादें सिमटी थीं उठाकर हथेलियों को जब दुआओं में मांगा तुम्हें सांझ की अबीरी लाली गुलमोहर की डाली पर उतरी थी . परिचय :- नाम : रंजना फतेपुरकर शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य जन्म : २९ दिसंबर निवास : इंदौर (म.प्र.) प्रकाशित पुस्तकें ११ सम्मान ४५ पुरस्कार ३५ दूरदर्शन, आकाशवाणी इंदौर, चायना रेडियो, बीजिंग से रचनाएं प्रसारित देश की प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएं प्रकाशित रंजन कलश, इंदौर अध्यक्ष वामा साहित्य मंच, इंदौर उपाध्यक्ष निवास : इंदौर (म.प्र.) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...
सुबह की पहली किरण
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सुबह की पहली किरण

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** सुबह की पहली किरण, हमे नई रोशनी है दिखती, जीवन की नई रास्ता है दिखती, मन और तन मे नई जोश जगाती, जीवन को नई उजाला दिखलाती, मन को उमंगो से भर जाती, सुबह की पहली किरण, नई लक्ष्य दिखाती, नई रंग और नई रुप दिखाती, नई कल्पनाओ से हमे अवगत कराती, नई अस्तित्व में नये आयाम लाती, नई पीढ़ी को नया ज्ञान देती, सुबह की पहली किरण, नई प्यार और आशीर्वाद देती, हमे जीवन सिखने का अवसर प्रदान कराती, दिल और हृदय को मेल कराती, नई दुनिया और दुनियादारी सिखाती, नई रोशनी और नई दिपक से उजाले कराती, सुबह की पहली किरण, मेरी अरमानो को नई अनुभूतियाँ देती, नई खुशियाँ और नई हस्तियाँ पैदा कराती, जीवन के राहो से मेरे काँटो को हटाती, मेरी मातृभूमि की रक्षा कराती, मेरी मंजिलो से हमे अवगत कराती, सुबह की पहली किरण, नई पशुओ और नई पंक्षियो का गान सुनाती, जीवन के सुनापन को म...
सबक से सबक
कविता

सबक से सबक

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** सबक हर मोड़ पर, जिंदगी से सदा पाया मैंने। सबक से सबक, जिंदगी को जन्नत बनाया मैंने।। सबसे ले सबसे, और राह प्रशस्त किया मैंने । जो मिला जिसे मिला, सबक सदा लिया मैंने।। ठोकर लगी तो कभी, राह को बदला नहीं मैंने । उससे भी संभल, चलने का सबक लिया मैंने ।। बड़े बुजुर्ग अनुभव को, हृदय गम किया मैंने। आज जो कुछ हूँ, उसका श्रेय उन्हें दिया मैंने।। आदर्श उन्हें ही बना, हर कदम फूंक रखा मैंने । जहां चालबाजों का, परख अपना बनाया मैंने।। ना आई बहकावें में, धैर्य को धारण किया मैंने । बुजुर्ग सलाह से सदा, शुरु हर कार्य किया मैंने।। आशीर्वाद सदा उनका, हर कदम लिया मैंने। दुआओं में कितना दम, देख लिया आज सबने।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि...
आज का  युग
कविता

आज का युग

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** हर जनों मे भ्रष्टाचार का वास हो गया है कलियुग मे सत्य बेईमानी का दास हो गया है। कट गई इंसानियत, की पूरी फसल, चारों और स्वार्थ का घास हो गया है। रिश्वत के पैर जमे, न्यायालय मे भी, न्याय का पन्ना झूठ, का भंडार हो गया है। गीता बाईबल कुराण पड़े कोने मे, कर्म चलती फिरती, लाश हो गया हैं। दिन रैन के सांक्षी, चंन्द्र सूर्य होने पर भी, हैं ऊपर के मालिक, अभी तक न्याय नहीं किया बेहतर होगा कि जमीन पर, वीर हनुमान आ जाये, लंका जैसी दुष्टों की, नगरी जला जाये। . लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। व...
अधूरा साथ
कविता

अधूरा साथ

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) ******************** जिन्दगी ये मेरी कोई शीशा नहीं खेलकर तोड़ दो है खिलौना नहीं वर्षों लगी हैं मुझे सजाने में इसे छोड़कर जाऊँ कोई है मकाँ नहीं बेजह तुम बनें जिन्दगी यूँ रहे साथ मेरे करते खिलवाड़ क्यों रहे हम तो अकेले थे बनें रहने देते अधूरा साथ मुझको देते क्यों रहे . लेखक परिचय :-  आपका नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक...
वक्त
कविता

वक्त

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** ऐसे तो न थे हम, हमने भी नाज था, अंदाज़ था गुस्सा था, वक्त ने, बदल दिया हमें, और हमें, पता भी न चला, कहते हैं..... जिंदगी सिखा देती है, हर हाल में जीना, हम यूं ही, जीते गए, वक्त गुजरता गया, और हो गया, सभी परिस्थितियों से समझौता... और आ गया हमें, हर हाल में जीना।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरंगिणी मुंबई, दैनिक जागरण अखबार, अमर उजाला अखबार, सौराष्ट्र भारत न्यूज़ पेपर मुंबई,  कहानी संग्रह, काव्य संग्रह सम्मान : ...
जीवन यात्रा
कविता

जीवन यात्रा

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** जीवन यात्रा में यह संजोग कैसी? अद्भुत सुखद दिवास्वप्न सी आलस की नीरवता सी सागर की गंभीरता से! उद्धत कर्म पथ पर अर्चना की समर्पण में! भावा विभोर होकर मैं एक अदना सा प्रकाश विलीन होकर! एक नई जीवन सजाने की कामना करता हूं! इस जीवन यात्रा में अनेक पगडंडियों से या पहाड़ियों से गुजर ना होगा! कंदरा गुफा में रातें गुजारने होगी एसी अपेक्षाएं की जाती है जीवन की साहसिक यात्राओं में सरपट सड़कों पर दौड़ लगाना होगा ऐसी उम्मीद की जाती है अक्सर माननीय यात्रा में यह आश्चर्य से ही संभव है जीवन यात्रा एक सपना है, रंगमंच है रंगमंच पर सभी को उतरना है! अपनी कलाकारीताको निखार ना है-सवारना है क्योंकि एक पूर्ण को इसमें बंधना होगा, ऐसी धारणाएं है मेरी संस्कृति की! यह अर्चना क्या है एक समर्पण है एक आकार है आरोपी अध्यात्म का अनुपम प्रकाश है! . लेखक ...
क्या है वो जिन्हें
कविता

क्या है वो जिन्हें

संजय जैन मुंबई ******************** कुछ तो बात है उनमें, तभी लोग उनके हो जाते है। अपने अपने प्यार का इजहार करने, गुलाब का फूल लेकर, बार बार सामने जाते है। भले ही कुछ बोल न सके, पर अपनी बात गुलाब दिखकर समझते है। और अपनी चाहत को, उन्हें दिखाते है।। कमबख्त ये दिल भी, कुछ ऐसा ही है। जो बार बार उनको, धडकनों में पुकारता है। और कहता है कि अब, दे दे दवा या जहर। दिल से तुझे पाने आये है।। मोहब्बत करने वाले, कभी भी डरते नहीं। जो जमाने से डरते है, वो मोहब्बत कर सकते नहीं। इतिहास मोहब्बत का देखो, आनरकाली सलीम नजर आएंगे। मोहब्बत होती है क्या वो बतलायेंगे।। मोहब्बत की खातिर अनारकली, जिन्दा चुनबाई जाती है। और मोहब्बत की कहानी को, हमेशा के लिए जिंदा रख जाती है। क्योंकि मोहब्बत नहीं देखती, राजा और रंक को। ये तो दिल से निभाई जाती है....। बस दिल से निभाई जाती है।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्...
मंजिल पुकारती है
कविता

मंजिल पुकारती है

रीना सिंह गहरवार रीवा (म.प्र.) ******************** अपनी मंजिलों को चाहो कुछ ऐसी मुहब्बत से पडे देना खुदा को पूरी शिद्दत से। न करो हुकूमत, न सहो हुकूमत रहो ज़िंदा पूरी शिद्दत से। न कोई हमराह है, न कोई रहगुजर चलो अकेले ही पूरी शिद्दत से। करो कुछ काम ऐसा हो नाज उसको अपने बंदों पर। परिश्रम के बीज डालो अश्रु जल सिंचित करो। करो जतन कुछ इस तरह सफल उद्देश्य हो हर तरफ। मंजिलें तुमको बुलाती हो द्रढ सजग आगे बढ़ो पूरी शिद्दत से। अपनी मंजिलों को चाहो कुछ ऐसी मुहब्बत से पडे देना खुदा को पूरी शिद्दत से। . परिचय :- नाम - रीना सिंह गहरवार पिता - अभयराज सिंह माता - निशा सिंह निवासी - नेहरू नगर रीवा शिक्षा - डी सी ए, कम्प्यूटर एप्लिकेशन, बि. ए., एम.ए.हिन्दी साहित्य, पी.एच डी हिन्दी साहित्य अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित ...
वो समुन्दर है
कविता

वो समुन्दर है

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) ******************** बहुत कुछ खोया है उसने अपने जीवन की दिनचर्या में बहुत कुछ सहना सीखा है महज़ बात को कहने में आज तूफ़ान हिलोरे लेते हैं समाज रूपी कुरीतियों में नहीं डरी हैं मेरी माताएँ उनको आगोश में लेने में एक रुप समुन्दर रुपी उनका मुझे देखने को मिल जाता है बाबुल का घर छोड़ चलीं जब पति का घर मिल जाता है जरा हिचक न दिखती उनमें अनजाने घर में अपना दायित्व निभाने में सच में क्षमता रखती हैं वो सब कुछ अपने में समाने में . लेखक परिचय :-  आपका नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य सं...
सपने
कविता

सपने

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** सर्द हवा का झोंका, छू जाता है, और अचानक उठा देता है, मीठे सपनों से, जो बुने थे हमने, साथ साथ रात भर लेटे-लेटे, सुबह दिला देती है, फिर अकेलेपन का एहसास, सर्द हवा का झोंका, ले जाता है, तुम्हारे सपनों से दूर.... बहुत दूर... जहां सघन होने लगता है, फिर अकेले होने का एहसास, और मैं अपने सपने समेटे, मन के किसी कोने में, सिमट उठती हूं। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरंगिणी मुंबई, दैनिक जागरण अखबार, अमर उजाला अखबार, सौराष्ट...
प्यारे लगते है
कविता

प्यारे लगते है

संजय जैन मुंबई ******************** हँसता हुआ चेहरा, प्यारा लगता है। तेरा मुझे देखना, अच्छा लगता है। घायल कर देती है तेरी आँखे और मुस्कान। जिसके कारण पूरा दिन, सुहाना लगता है।। जिस दिन दिखे न तेरी एक झलक। तो मन उदास सा, हो जाता है। क्योंकि, आदि सा हो गया है, तुम्हे देखने को जो। कैसे समझाए दिल को जो अब बस में नहीं है।। तमन्ना है कि वो, रोज दिखते रहे। मेरे दिल में, वो बसते रहे। कभी तो हम, उन्हें पसंद आएंगे। अलग अलग रास्ते, फिर एक हो जाएंगे।। दिन जिंदगी का वो, यादगार बन जायेगा। प्यार का किस्सा, अमर हो जाएगा। जिस दिन इतिहास, इसे दौहरायेगा। तेरा मेरा प्यार, दुनियां वालो को समझ आयेगा।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्र...
कल के बच्चें हैं हम सब
कविता, बाल कविताएं

कल के बच्चें हैं हम सब

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** सुबह-सुबह उठना हैं पड़ता हम सब प्यारें बच्चों को मम्मी-पापा के सपनों का बोझा ढोंना पड़ता हैं हम सब प्यारे बच्चों को। मम्मी कहती हिन्दी पढ़ लो पापा कहते गणित लगाओं बाकी घर वाले सब इंग्लिश के पीछे पड़ जाते हैं हम सब प्यारें बच्चों के। बिना भूख के खाना पड़ता बिना नींद के सोना पड़ता कपड़ों में यूनिफॉर्म शिवा हम सब को कुछ न मिलता हैं हम सब प्यारे बच्चों को। कभी तो पूछो हम सब से भी हम सब का सपना क्या हैं? हम सब को क्या अच्छा लगता हैं? हर कोई तो कहते हो कि हम सब आने वाला कल हैं फिर अपने कल को आप सभी आज कैंद क्यों करते रहते हो हम सबको भी थोड़ा सोने दो हम सबको थोड़ा खेलने दो बचपन को बचपन रहने दो हम सब प्यारे बच्चों का।। . परिचय :- नाम : रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि...
मिथ्या ख्वाब
कविता

मिथ्या ख्वाब

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** खेले सदा  जो वीरानियो मे भाई उन्हें कब महफिले, अरमा सजे टूटे सदा जब मिलती कहाँ है मन्जिले उड़ते परिन्दे देख के नभ मे, तौल लिये पर ख्वाहिश के, हर ख्वाहिश दम तोड़ गयी, की भाग्य ने गुप चुप साजिश ये, सप्त सिन्धु भर जाये अश्रु से, या उठे दावानल अन्तस मे, तिल तिल कर मर जाये स्वप्न, या मिले ठोकरे हर पग मे, हो न मलिन ह्रदय किसी का, तेरे अन्तर की दुखती रग से, होठों पर मुस्कान सजा नयनो मे छुपा ले मोती को, महफिल मे जगा कहकहे बुलन्द, फिर अश्रु बहा ले वीराने मे, यूँ बहका ले अपना हर अरमां, मिथ्या ख्वाब जगा कर जीवन मे . लेखक परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेर...