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कविता

भारत भूमि
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भारत भूमि

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** भारत मां की पुण्य भूमि से- क्रांति के फिर ज्वाल उड़े। पूर्ण स्वाधीनता की अमर राग- जन जन फिर हुंकार उठे। भारत मां की पुण्य भूमि से- क्रांति के फिर ज्वाला उड़े। अफसरशाही तानाशाही- नौकरशाही फिर भाग सके। एक बार फिर हुंकारे। संपूर्ण क्रांति फिर जाग उठे। पूंजीवादी शोषणवादी- व्यक्तिवादी स्वार्थीवादी फिर भाग उठे। टंकार यहां हो कण कण में- अंगार क्रांति की जन-जन में- शान यहां कि जाग उठे। अब मान यहां कि जाग उठे। वीर सुभाष की सपनों की धरती- फिर एक बार हुंकार उठे। भारत की पुण्य भूमि से- क्रांति के फिर ज्वाल उड़े। . परिचय :-  नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्...
फटी जेब
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फटी जेब

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** महंगाई से, फटी जेब में, क्या.......? समा पाता। जितना कोई, कमाता ..... उतना ही निकल जाता।। महंगाई से फटी जेब में, क्या..........!!! कीमतों में, दिन-ब-दिन, जो उतार-चढ़ाव आता। कोई, इस चीज से बचाता। और उधर खर्च आता।। कुल मिला के, हाथ का, रुपया भी चला जाता।। महंगाई से फटी जेब में, क्या समा पाता।। ऊपर से बदले नोट, जिनको दे दिये वोट। सरकारों से विश्वास भी, चल -चल के निकल जाता। किस जेब में, रखता आदमी ....पैसा। अर्थव्यवस्था की, जेब को ही, फटा पाता।।   परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में ...
मैं कवि नही
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मैं कवि नही

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** मैं कवि नही कविता मेरे बस की नही मन के भावों को मुझे पिरोना आता नही मुझे कविता लिखना आता नही मैं पाखंडी लिंगहीन शिखंडी प्रेम करना आता नही हो कैसे सृजन पता नही मुझे कविता लिखना आता नही मैं घृणा फैलाने वाला मन का काजल से काला किसी को सुहाता नही मैं किसी को भाता नही मुझे कविता लिखना आता नही दम्भी हु अभिमानी हु मूढ़ हु अज्ञानी हु पीठ किसी की खुजलाता नही मुझे कविता लिखना आता नही मुझे कविता लिखना आता नही . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिं...
सच को समझे
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सच को समझे

संजय जैन मुंबई ******************** समय बदल देता है, लोगो की सोच को। पैसा बदल देता है, उसकी वाणी को। प्यार बदल देता है, इर्शा और नफरत को। पढ़ाई बदल देती है, उसके बुधिक ज्ञान को। मिलने मिलाने से, मेल जोल बढ़ाता है। तभी तो लोगो में, अपनापन बढ़ाता है। जिससे एक अच्छे, समाज का निर्माण होता है। और लोगो मे इंसानियत का, एक जज्बा जगता है। जिससे लोगो के दिलो में, इंसानियत आज भी जिंदा है। माना कि परिवर्तन से, प्रगति होती है। परन्तु पुरानी परंपराओं से, आज भी संस्कृति जिंदा है। इसलिए भारत देश, विश्व मे सबसे अच्छा है। तभी तो सारे दुनियां की, नजरे भारत देश पर टिकती है। विश्व का सबसे बड़ा, बाज़ार हमारा इंडिया है। यहां के पढ़े लिखे लोगो को, विदेशी उठा ले जाते है। और उन्ही के ज्ञान से, विश्व बाजार को चलाते है। और दुनियाँ की महाशक्ति कहलाते है। और हम उनकी कामयाबी पर, भारतीय मूल का तम्बा लगते है। और इसी में खुश ह...
माता-पिता का आशीष
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माता-पिता का आशीष

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** घने वृक्ष छांव से, घनी मात पिता आशीष छाया। पड़कर लोभ लालच मनु, सौभाग्य यह गवाया।। पत्नी प्यार अंधा हो, मात पिता को ठुकराया। जीवन लगा दिया, तूने उन्हें वृद्धाश्रम पहुंचाया।। तेरी बारी भी आएगी, क्योंकि तूने भी पुत्र जाया। जैसा देखा वैसा किया, यही विधाता की माया।। पुत्र वह तेरा है लेकिन, पत्नी बाहर से वो लाया। होगा एहसास, जब खेल यही तेरे संग दोहराया।। सुख दुख दोनों सहता, मात पिता आशीष छाया। श्रवण जैसा क्यों ना बना, बना विभीषण भाया ।। मात-पिता वचन पूरा करने, राम ने वन पाया। सुख दुख सहे बहू, तभी तो जग ना बिसराया।। इतिहास अमर हो गया, राम संग लक्ष्मण भाया। कैकयी को कुयश मिला, नाम न कोई दोहराया।। माता पिता आशीष छाया, जिसने जीवन में पाया। स्वर्ग सुख धरा पर, उस परिवार ने ही सदा पाया . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध...
कब तक
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कब तक

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** कब तक करता रहूंगा मैं घृणा, ईर्ष्या, क्रोध कब तक उलझा रहुगा मोह, माया, काम मे कब तक रहूंगा अमानवीय, पशुवत, अहंकारी कोई तो सिमा तय होगी मेरे अपराधों की। क्यो नही उबारता मुझे कुकर्मो से मैं अज्ञान के अंधकूप में समझ रहा हु स्वयं को सर्वश्रेष्ठ, जान कर भी ये सब कुछ मिथ्या है मानता नही हूँ। सत्य से परे कब तक रखेगा मुझे अपनी ही अग्नि में जलने लगा हूँ। जीना चाहता हूँ मैं जीने दो मुझे जगा कर मेरे भीतर प्रेम व करुणा सहज सामान्य कर सृष्टि का अंग बना दो मुझे। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अप...
मेरे लबों को
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मेरे लबों को

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** मेरे लबों को छूकर तूने- बहुत बड़ी गलती कर दी। अब न सोंऊगी मैं - न नींद तुझे आयेगी। रात रात भर जगूंगी मैं- और आंख लाल तेरी हो जाएगी। ना हूं तुम्हारे पास फिर भी - तेरा एहसास करूं। न जाने कैसी है प्यास- ना मिटे किसी द्रव ना पानी से मिट सकती है बस- तेरी मेहरबानी से। श्याम की मीरा शिव की सती- देवों के देव्यायनी बना दी। एक सीधी सी लड़की को- दीवानी बना दी। मेरे लबों को छूकर तूने...... . परिचय :-  नाम - चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) की...
तीसरी लहर
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तीसरी लहर

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** तीसरी लहर आ रही है इस मानवी शताब्दी मे हर ओर है और होगी नयापन इस सभ्यता की तीसरी लहर मे वासनाए घुरेगी इस तीसरी लहर मे फैसन नहीं नंगापन श्रृंंगार नहीं शरारत इस तीसरी लहर मे अंग प्रदर्शन पहले भी हुआ करती थी अंजता की गुफाओं मे पर्दे के अन्दर छुप छुपकर। यादगार विज्ञान की सूत्र मे विज्ञान नहीं सिखाती मिट्टी मिल जाओ। अपनी संस्कृति की धज्जि उड़ाओ शराब पीना हानीकारक हैं फिर भी पीते है अधिकाशं आधुनिकता के पोषक। इस तीसरी लहर मे अंग प्रदर्शन अपराध के जनक है आए दिन ऐसी खबर समाचार पत्र भी देती है अपराध बढती जा रही है इस मानवी शताब्दी मे। कुछ अटपटी तेवर बदल रहे है शस्त्रों की होड़ मे जी जान तोड़ के एटोमिक रिएक्टर मे एटम हाइड्रोजन बम बन रहे है दुरमारक प्रक्षेपास्त्र से विनाशकारी लीबास हम सज रहे है अंधकार की गहन कूप मे धीरे धीरे खिसक रहे हैं। . लेखक...
एहसास
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एहसास

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** क्यों होता है एहसास तुम्हारे होने का, हर आहट पर क्यों लगता है, तुम हो...... मुझे पता है, तुम आहट में तो क्या... इस जमीन पर भी नहीं हो, फिर भी क्यों होता है एहसास, तुम्हारे होने का, हवा की आंधी से, पत्तों की आहट से, क्यों होता है एहसास, तुम्हारी बातों का, कदमों की आहट से, दिल में बढ़ती धड़कन से, क्यों होता है एहसास, तुम्हारे आने का, अंतिम विदाई दी थी हमने, अपनी इन भीगी पलकों से, फिर भी क्यों होता है एहसास, तुम्हारे होने का....!! . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindiraksh...
घोर आतंक
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घोर आतंक

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** कैसा ये आतंक मचा, असहनीय आत्मघाती। हर दिशा से रूदन, की आवाज आती। जर्जरित  अवसाद से, प्रत्येक छाती। कामनाओं की पिपासा, हैं सताती, यह दशा दयनीय मानव, को रूलाती। हम बनायें सुखद पथ , नव जिन्दगी का, शांन्ति पा जाये मनुज, उस राह चलकर। गूँज जायेगी गिरा, संदेश बनकर, थम जायेगा कहर , संदेश सुनकर । . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमणि सम्मान और सुशीला देवी सम्मान प्रमुख रुप से आपको मिले हैं। उपलब्ध...
चले जाओ
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चले जाओ

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) ******************** छोड़ कर चले जाओ मुझे कोई गुरवत नहीं मगर दिल के खातिर एक दुआ दे दो अभी मैं हूँ अकेला अकेला देखना अब तुम्हें है नहीं मैं जिन्दा हूँ या मुर्दा हूँ ये अब न सोचना कभी क्या क्या मुझपे बीता कैसे कैसे हूँ मैं जीता फ़िकर हूँ करता नहीं खुल से मुँह मोड़ता नहीं . लेखक परिचय :-  आपका नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी ...
दादा
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दादा

गोरधन भटनागर खारडा जिला-पाली (राजस्थान) ******************** जो हर बात पर टोके, कामयाबी पर झूमे। जो पास बैठा-कर पढाए अनेकानेक कहानियां सुनायें।। ये सब सिखलाते जो बोले....। बेटा बाहर मत जा, तु बैठ जा। खाना खाया या नहीं? हर बात को जो पूछे। जो आँखो की नमी को पढ ले।। जो जीवन की सीख दे, अपने अनुभव खूब बताते। हर छोटी सी बात बताते। जो हमको गीत सुनायें।। आ बैठ मेंरे पास,अपना हाल जो हर जो हर पल पुछे। अपना हर दर्द जो जाने धीरे-धीरे हर बात को बतलाएँ। नफा नुकसान सब सिखलाते। स्कुल गया या नहीं, आ बैठ। वो अनपढ़ ही सही हर बात, समझते हैं।। सच कहूँ मैं, ये ईश्वर का रूप होते हैं। देखा नहीं मैंने ईश्वर कैसा होता हैं, मगर वो झलक दादा में देखी हैं। सही गलत का अहसास कराये। पिता के पीटने पर छुड़ाए। दादा खुदा की खूब बनावट हैं। सच कहूँ ये ईश्वर का छोटा सा रूप, हैं धरती पर।। . परिचय :- नाम : गो...
उठो क्रांति का ले मशाल
कविता

उठो क्रांति का ले मशाल

ओम प्रकाश त्रिपाठी गोरखपुर ********************** उठो क्रांति का ले मशाल, फिर से ज्वाला दिखला डालो। सडे गले इस सिस्टम से, अब अपना पिंड छुडा डालो।। इस सिस्टम को इन नेताओं ने, स्वयं हेतु निर्माण किया। अपने हित को साध सके, इसका खूब बिधान किया।। तीस साल पढने मे बिताओ, पैतीस मे रिटायर हो जाओ। कहते बैंक से कर्जा लेकर, रोजीरोटी मे लग जाओ।। पर अपनी रिटायरी के उम्र का कोई कानून नहीं लाया। सत्तर के भी हो जाने पर मंत्री पद को इसने पाया।। जनता का हित करना हो तो पैसे इनके पास नही। अपना वेतन बढता है जब होती कोई बात नहीं।। आना जाना दवा व दारू इनका सब कुछ जनता पर। पता नहीं फिर वेतन भी क्यों लदता है फिर जनता पर।। कहते हैं सब जन समान हैं भारत की इस भूमि पर। फिर असमान कानून यहां क्यों बनते भारत भूमि पर।। इसीलिए तो कहता हूँ कि उठो बाण संधान करो। एक और क्रांति के खातिर जन जन का आह्वान करो।।जय हिन्द।। . लेखक...
घोर कलयुग
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घोर कलयुग

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** देखो मेरे देश में, गुनहगार खुलेआम घूम रहे हैं। बेगुनाह नहीं मिली जमानत, सजा काट रहे हैं।। एनकाउंटर को गलत, कुछ मनचले ठहरा रहे हैं। देश की कानून व्यवस्था को, सही बता रहे हैं।। हम क्या करेंगे फिर, न्यायाधीश यह कह रहे हैं। तारीख पर तारीख, देने के सिवा कर क्या रहे हैं।। कर गुनाह पहुँच वाले, जमानत पैसों से पा रहे हैं। बेगुनाह के मां-बाप, कोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं।। जिंदगी गुजर गई, फिर भी जमानत नहीं पा रहे है। घर खेत सब बेच दिए, नेताओं के पैर पकड़ रहे हैं।। कत्ल बलात्कार करने वाले, सरेआम घूम रहे हैं। इनको देखकर ही तो, दुष्कर्म देश में बढ़ रहे हैं।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...
बात की बात पर चतुष्पदियाँ
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बात की बात पर चतुष्पदियाँ

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** भाव के ज्वार में नहीं बहना। क्रोध की आग में नहीं दहना। बात कहना हो जब कहीं कोई, देर तक आप सोचते रहना। ग़ुस्से में हो नदी तो किनारों से बात कर। ग़ायब हो चांदनी तो सितारों से बात कर। पाबंदियों के ज़ुल्म से चुप हो अगर ज़ुबाँ, आंखों से,उंगलियों से,इशारों से बात कर। कठिनाई का हल आवश्यक होता है। आग लगे तो जल आवश्यक होता है। केवल बातों से ही बात नहीं बनती, सीमाओं पर बल आवश्यक होता है। परिपक्वता विचार में आए तो कुछ कहूँ। उपयुक्त शब्द भावना पाए तो कुछ कहूँ। संक्षिप्त सारग्राही सरल शुभ कथनसमूह, अधरों को अपना मित्र बनाए तो कुछ कहूँ। सभी की बात सुनी जाए आज। तर्क की रूई धुनी जाए आज। अब समस्या नहीं रही बच्ची, चदरिया हल की बुनी जाए आज। . साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्र...
लिखते रहेंगे
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लिखते रहेंगे

मो. जमील अंधराठाढी (मधुबनी) ******************** हम लिखते रहेंगे अन्याय के खिलाफ मेरी कलम हमेशा चलेगी मैं सच्ची बात लोगों तक पहुंचाऊंगा मेरी कलम लोगों को फायदे पहुंचाएगी मैं अपनी कलम से नफरत को जड़ से मिटाकर रहुंगा मैं अपनी कलम से लोगों को जागरूक करुंगा मेरा काम है लिखना पढ़ना और लोगों तक प्रेम की बातें पहुंचाना जिसकों अभी तक इंसाफ नहीं मिला मैं अपनी कलम के माध्यम से इंसाफ दिलाऊंगा मैं कविता लेख के माध्यम से लोगों को जागरूक करुंगा मैं अपनी कलम से बलात्कारी जैसी घिनौनी हरकत को खत्म करके रहुंगा मैं अपनी कलम से नारी को सम्मान दिलाऊंगा मैं अपनी कलम से बुराइयों को दफन करके रहुंगा मैं अपनी कलम से चहुंओर खुशियाँ पहुंचाऊंगा अपनी कलम से बेसहारा को सहारा दिलाकर रहुंगा मैं अपनी कलम हमेशा चलाता रहुंगा। . परिचय :-  मो. जमील अंधराठाढी (मधुबनी) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां,...
मौत का पैगाम
कविता

मौत का पैगाम

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** जिंदगी क्या है, एक महासागर, जिसमें, हजारों गम है, हजारों खुशियां, और....... कभी ना खत्म, होने वाला इंतजार, जो हमेशा, आने वाले गम का, सामना करने के लिए, तैयार रहता है, उस खुशी का स्वागत, करने के लिए, जो उसके जीवन में, बहार बनकर आने वाली है, नहीं करता वो "इंतजार" केवल "मौत" का, और वक्त अचानक, दस्तक देता है, उसके दरवाजे पर, हवा बनकर, "मौत का पैगाम लेकर", जिसका उसे, एहसास भी नहीं होता, "और वक्त", इस शरीर की सीपी से, मोती सी सांस निकालकर ले जाता है।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक...
मुझको आता नहीं बिखरना,
कविता

मुझको आता नहीं बिखरना,

गोरधन भटनागर खारडा जिला-पाली (राजस्थान) ******************** मुझको आता नहीं बिखरना, यू गिरना मैंने सीखा नहीं । चलता हूँ, मैं बीना रूके, रूकना मेंरी आदत नहीं ।। मुझको आता नहीं बिखरना......। देखा नहीं अभी तो जीवन, जीना है, बहुत अभी । उम्र नहीं हैं, अभी मेरी , मुझको आता नहीं बिखरना.....। अभी कैसे रूक जाऊ , कैसे मैं थक जाऊ। कुछ देखा नहीं अभी तो, जीने की भी नहीं चाहत। मुझको आहट सी लगती हैं ।। मुझको आता नहीं बिखरना.....। कुछ कर गुजरने की ताकत हैं, मुझमें । बस! वो दिखाने आया हूँ । मुझको आता नहीं बिखरना.....। . परिचय :- नाम : गोरधन भटनागर निवासी : खारडा जिला-पाली (राजस्थान) जन्म तारीख : १५/०९/१९९७ पिता : खेतारामजी माता : सीता देवी स्नातक : जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी जोधपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित कर...
समय की चक्रधर
कविता

समय की चक्रधर

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** समय की चक्रधर घूम-घूम कर, नियति की हाथों का स्पर्श पाकर, वही सुकोमल, कभी भाव बिहवल। कभी अनेकों-कर्म बल से जुड़कर, कभी अपनापन कुछ पाकर, कभी कुछ खोकर। पा लिया था एक सुघड़ अंतस, बस बसना था एक सुंदर सा घर, जहां शांति और, अटूट प्रेम था। तभी झंझावात की, थपेड़ों ने, बिखरा दिया उसकी स्वप्निल- नीर का तिनका तिनका, आश्रय हिन बना दिया- उसे पंख हीन बना दिया। किसी की बेसुरी चैन ने- शायद उसे बेचैन बना ही दिया। लेकिन आज भी उसे याद है- फरियाद और आह है- उसे देख कर अपराध बोध में- खो जाता हूं उदासी देखकर। वह और बेचैन होकर फिर- बीते समय की चक्र में गुमसुम हो जाती है। मुझे देख कर एक लंबी उच्छ्वास लिए, करुण ऐकटक निहार वेदना पूरित नेत्रों से पुकार कर जाती है। . लेखक परिचय :-  नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी...
हाँ ! डर लगता है, पर तुम्हारें जैसा नहीं…..
कविता

हाँ ! डर लगता है, पर तुम्हारें जैसा नहीं…..

मनकेश्वर महाराज "भट्ट" मधेपुरा (बिहार) ******************** मैं कहूँ ऐसे की तुम्हें कहीं डर सा ना लगे दे देतें हो भारत माँ को गाली फिर तुम्हें बोलने से डर लगे अपनी बातों के लिए हर किसी को घसीटते सरे आम फिर कहो ये कैसा डर लगे डर कैसा होता ये कभी उस नन्ही निडर से पूछों जो जानती है पल भर में नोंच खाएंगे दरिंदे उन्हें जो हर पाँव सहम कर रखती जो भड़ी सड़कों पर भी घरवालों को साथ लेकर चलती है हैवानों दरिंदो के डर से फिर तुम कहो ये डर क्यों नहीं दिखता तुम्हें तुम अपने ही बातों में क्यों नहीं दिखाते इस डर को हमें भी डर लगता है पर तुम्हारे जैसा नहीं कब नोंच खाएँ दरिंदे बेटी, बहन, माँ को हाँ ! डर लगता है, पर तुम्हारें जैसा नहीं.....   परिचय :-  मनकेश्वर महाराज "भट्ट" साहित्यकार , शिक्षक मधेपुरा , बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ...
पहन तू नरमुंडो के हार..
कविता

पहन तू नरमुंडो के हार..

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** कवि, कलम बना तलवार। जिनके मन में कलुषित तन में, पनप रहा व्यभिचार.. पहन तू नरमुंडो के हार..।। शासन चुप, शासक सोये हैं। सब अपनी धुन में खोये हैं। अंधा रेबड़ी बांट रहा है। बेहरा सबको डांट रहा है। संविधान के जयकारे हैँ। किंतु आज फिर हम हारे हैं।। अपराधों का बड़ता जाता अजब ही कारोबार।।.. पहन तू नरमुंडो के हार..।। पांडव की सेना घटती है। कौरव की सेना बढ़ती है । कान्हा, अर्जुन भला कहाँ पर, दुशासन बैठे यहाँ घर-घर। भीष्म मूक, विधुर शांत है। भीम शोक में फिर क्लांत है।। द्रोपदी की लाज बचाने, कौन आये इस बार।।.. पहन तू नरमुंडो के हार..।। नरभक्षी और पिशाचों के कर्मों से अपराध बड़ा। क्या बोलूं क्या नाम दूं इसको, शोकग्रसित मन आज खड़ा। तोड़ कलम फेंकू क्या पथपर, और बंदूक उठा लूं हाथ। बोलो कवि क्या बागी होगे, दोगे कदम-कदम पर साथ।। बलात्कार करने वालो...
हे बुद्ध… सुबुद्ध… तू अद्भुत…
कविता

हे बुद्ध… सुबुद्ध… तू अद्भुत…

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** हे बुद्ध सुबुद्ध तू अद्भुत मानवता से परिपूर्ण। सूर्य चंद्र अग्नि मारुत- सब में तू ही ज्योति पुंज। तू निर्विकार साकार विराट- तू विज्ञान से परिपूर्ण। हे अखिल ब्रह्मांड के मूल रूप- सत्य निष्ठ तू ब्रह्म निष्ट। हे बुध सुबुद्ध तू अद्भुत- मानवता से परिपूर्ण। तू करुणा के साक्षात रुप- महानिर्वाण का मूल रूप। तू अंतस की आनंद रूप- राजा शुद्धोधन का कुलदीप। कपिलवस्तु के शांति दूत- तू नीरवता के अग्ररूप। महामाया का तू अशेष- जंबद्विपो में द्वीप श्रेष्ठ। सहस्त्र योजन विस्तृत- जिसकी सीमाएं सुनिश्चित। पूर्व सीमा पर कंग जल- अनंतर साल वन गंभीर। दक्षिण दिशा के कनिक जनपद- तत्पश्चात सीमांत देश, हे बुद्ध सुबुद्ध तू अदभुत। . लेखक परिचय :-  नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविता...
दोबारा बचपन फिर मिले
कविता

दोबारा बचपन फिर मिले

मो. जमील अंधराठाढी (मधुबनी) ******************** काश मैं फिर बन जाऊँ बच्चा माँ की गोद में फिर खाऊंगा खाना दोस्तों के साथ बागीचों में फिर खेलूंगा लुकाछिपी स्कूल के लास्ट बेंच पर फिर करुंगा पढ़ाई असली मोबाइल की जगह नकली मोबाइल फिर मिल जाएं माँ से फिर सुनने को मिले कहानी पिता से फिर सुनने को मिले डांट दोस्तों के साथ हंसी मजाक फिर करने को मिले माँ की लात फिर खाने को मिलें माँ-पिताजी के साथ फिर कहीं जाने को मिलें बहन की पैसा फिर चुराने को मिल जाएं बहन के साथ झगड़ा करने की मौका फिर से मिल जाएं काश दोबारा बचपन फिर मिल जाएं। . परिचय :-  मो. जमील अंधराठाढी (मधुबनी) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके...
कटु सत्य
कविता

कटु सत्य

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** लोग मुँह मिश्री घोल, आजकल यूं बोला करते हैं। मुँह राम बगल में छुरी, कहावत चरितार्थ करते हैं।। महकते हैं फूलों की तरह, खुशबू मिलावट रखते हैं। पत्तों सी कोमलता नहीं, स्पर्श दर्द दिया करते हैं।। बातें लच्छेदार कर, वो ऐसे बात करामात रखते हैं । मिले जब भी खबर, नमक मिर्च लगा पेश करते हैं। गुनाह करते हैं बहुत, पर शर्म नहीं किया करते हैं। यह कलयुग, ऐसे लोग ही मजे से जिया करते हैं।। सच बोलने वाले, सदा ही गुनहगार बना करते हैं। झूठ बोलने वाले, एकछत्र चहुँओर राज करते हैं।। सौ सुनार एक लुहार, कहावत प्रभु यथार्थ करते हैं। जवानी में किया गुनाह, सजा वो बुढ़ापे में पाते हैं।। प्रभु घर देर अंधेर नहीं, हकीकत नहीं समझते हैं। करते हैं हिसाब सब बराबर, उधार नहीं रखते हैं।। कह रही वीणा, ये मनु फिर क्यूं नहीं संभलते हैं। अपने संग अपनों का भी, जीवन बर्बाद करते हैं।...
बाप की व्यथा
कविता

बाप की व्यथा

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (म.प्र.) ******************** मैं क्या जानू वो व्यथा तात जो सहते हो तुम। ग्रीष्मकाले धूप में औ शीतकाले शीत से। हो रही गर तेज बारिश तंग होते कीच से। खेत कि खेतवाई में चुका दिये उम्र अपनी और कभी तंग होते इस प्रिन्शु नीच से। बहन की शादी की चिन्ता बोझ मेरे अज्ञान का शीश में ये भार रख बाप कैसे रहते हो तुम। मैं क्या जानू वो व्यथा तात जो सहते हो तुम। छत भी जर्जर हो गया टुटे हुए छप्पर के जैसे। मैं अभागा भी जीवन मे एक टुटे चप्पल के जैसे। माँ भी कर्मों में लगी दौड़ती है रोज कोशों नोन रोटी में खर्च होते बस उसी शिक्षक के पैसे। हर व्यथा को सह हमें शहर में पढ़ने को भेजा कष्ट में! मैं ठीक हूँ, बाप मेरे कहते हो तुम। मैं क्या जानू वो व्यथा तात जो सहते हो तुम। दिनढले भोजन का करना रात का कुछ ज्ञात नहीं। यूं पडे अकाल जो तो साल भर फिर भात नहीं। है तुम्हें पीड...