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कविता

मिट जाना ही अच्छा है
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मिट जाना ही अच्छा है

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** धुंधली होती स्याही का, अब धुल जाना ही अच्छा है, दर्द दे रही यादों का, अब मिट जाना ही अच्छा है। भूल न पाते उन लम्हों को, जो टीस बने चुभते अब तक, ह्रदय से ऐसे लम्हों का, अब मिट जाना ही अच्छा है। दर्द दे रही ...... खेले थे बचपन मे जब हम आँख मिचौली सखियों संग, रंग विरंगी खुशियों को हम, नही संजो कर रख पाये, खुशियों के उन रंगो का अब धुल जाना ही अच्छा है। दर्द दे रही ..... सजा लिए अरमान बड़े, दिवा स्वप्न भर नयनो में, धूल धूसरित हुये सभी, नहीं हुये पल्लवित सपनों में ! सपनों में दर्द सिसकता है ! सपनों की इस दुनिया का अब मिट जाना ही अच्छा है ! दर्द दे रही ..... सुन्दर, सुरभित प्यारी बगिया, थे पुष्प खिले प्यारे प्यारे ! मनुहारि ऐसा रूप खिले, किये उपक्रम जी भर के ! निद्रा त्यागी, दिन चैन गया सींचा उनको मन भर कर के, पर निष्ठुर हवा चली ऐसी, सब उड़ा दिये मन क...
नदी सा
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नदी सा

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. ******************** नदी सा बने रहो प्रवाहमान, छुये न तुम्हेँ, कभी अभिमान, शिथिल न हो, तुम्हारी राह, संसार मेँ तभी, बढेगा मान, समस्यायेँ तो ज़ब तब होंगीँ, मुदित मन से होगा समाधान, सहकार्य करना होता है, कठिन, सेवा भाव से ही होगा उत्थान, सहज़ न, गौरव, मिलता कभी, सत्कार्य, बनेगा, तुम्हारी पहचान . लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये हैँ. संप्रति :- भारतीय स्टेट बैंक, से सेवा निव...
नारी
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नारी

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** नारी तुम मेरी भावना हो तुम मेरी प्रेयसी हो। श्रद्धा हो मेरी कामनाओ का मेरी सपना हो जीवन कीन मशिकाओ का। जीवन की समस्याओ का। तुम रहस्या हो अंनता हो। सागर की गभीरता हो तुम मेरी बंदना हो। प्रेयसी हो तुम मेरी पूरक मैं अधूरा हूँ तुम सृष्टि की विस्तारिका हो । तुम श्रृंगारिता हो प्रकृति का तुम अनुपमा हो पुष्पा हो। व्याकुलता हो दो दिलो के तारतम्य का तुम विणा हो अराधिता हो कवियों और कलाकार का तुम अनादि हो अनंत हो बाइबिल, वेद कुरान का तुम मायावी हो। महामाया हो क्षमा हो कुंडलिनी विस्तार का I तुम मीरा हो शबरी हो कृष्ण और राम का .... . लेखक परिचय :-  नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा...
सदा ऐसे ही छला
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सदा ऐसे ही छला

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** सरल व्यक्ति को, सदा ऐसे ही छला जाता है। कर उसका अपमान, शर्मिंदा किया जाता है।। चिकनी चुपड़ी बातों से, वो अच्छा बन जाता है। लेकिन हकीकत को, वह नहीं छुपा पाता है।। गैर नजर नहीं, प्रभु नजर वह गिर जाता है। अपनी बर्बादी द्वार, वो स्वयं खोल जाता है।। शतरंज खिलाड़ी बन, होशियारी दिखाता है। प्रभु नजर से वह, कभी नहीं बच पाता है।। इतिहास गवाह, छलिया सदा ही दुख पाता है। रावण कंस कौरव, याद नहीं कोई रखता है।। अति सर्वत्र वर्जित, उसको ही वह दोहराता है। उपवास पात्र, सबके समक्ष वह ऐसे बनता है।। अपने मुंह मियां मिट्ठू, जो गलती से बनता है। अति होने पर, खुद अपने हाथ मुंह ढकता है।। गुणी बन बकवाद, लंबी तान वो छेड़ता है। अपना मान सम्मान, ऐसे स्वयं खो देता है।। श्रेय उसे ही मिलता है, श्रेष्ठ कार्य जो करता है। सरल व्यक्ति सदा, गुणों से ही पूजा जाता है।। . परिचय...
बचपन क्या था
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बचपन क्या था

संजय जैन मुंबई ******************** याद आ रहे है हमे, वो बचपन के दिन। जिसमे न कोई चिंता, और न ही कोई गम। जब जैसा जहां मिला, खा पीर हो गए मस्त। न कोई जाति का झंझट, न कोई ऊंच नीच का भेद। सब से मिलकर रहते थे, जैसे अपनो के बीच। पर जैसे-जैसे बड़े होते गये, वो सब हमे सीखा दिया। बचपन में अनभिज्ञ थे जिससे, स्वार्थ के लिए जहर पिला दिया। और मानो हमे बचपन का, सारा मतलब ही भूला दिया। तभी तो लोग कहते है, लौटकर बचपन आ नही सकता। और बचपन की यादों को, भूलाया जा नही सकता।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी...
मधुर मिलन
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मधुर मिलन

रजनी गुप्ता "पूनम" लखनऊ ******************** उर्मिला से पूछो, कैसे रही होगी लक्ष्मण बिन, यशोधरा से पूछो कैसे रही होगी गौतम बिन, राधा से पूछो कैसे रही होगी मोहन बिन मीरा से पुछो जो पी गई विष का प्याला घनश्याम बिन, मैं विरहन भी रहूँ कैसे अपने प्रियतम प्यारे बिन, न गजरा न केश सँवारूँ न कजरे की धार निहारूँ, लाली बिंदी पड़ गए सूने गाल गुलाबी आओ छूने, पायल के सुर फीके पड़ गए बोल कंगन के धीमे पड़ गए, दिन बीते है रीते रीते रैन सुहानी जगते बीते, कार्तिक पूनो डस रही है मन पर मेरा बस नहीं है, धड़कन की धक-धक है रूठी बिन पिया के लगती झूठी, कौन साधना भंग कर रही तुम्हें कहाँ मैं तंग कर रही, मधुर मिलन की चाह जगी है तुमसे ही मेरी लगन लगी है, होठों पर बस आह बसी है गायब इनकी हुई हँसी है, हमको अपना गेह बता दो!! तुम भी अपना नेह जता दो।। . परिचय : नाम :- पूनम गुप्ता साहित्यिक नाम :- रजनी गुप्ता 'पूनम' पिता :- श...
कर्तव्य पथ …
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कर्तव्य पथ …

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** मनुष्य जन्म मिला, सार्थक कर। कर्तव्य पथ पर, सदा आगे बढ।। हो सके उतना, कर्तव्य निभा। श्रवण रह, कंस कभी ना बन ।। नींव पत्थर, दीवार मजबूत कर। संस्कारवान बन, फर्ज निभा।। कर्तव्य मार्ग, विपत्ति विघ्न। साहस धैर्य से, तू काम कर।। बाधा हर, नया सृजन कर। इरादे मजबूत रख, जीत जंग।। देश हित, जीवन समर्पण कर। कायर भांति, खामोश ना रह।। निस्वार्थ रह, पर हित कार्य कर। कर्तव्य पथ से, ना भटका कर।। राह दिखा, मार्ग प्रशस्त कर। कर्म पथ, सदा हो अग्रसर।। आदर्श श्रवण, जीवन सफल। जग ना भूले, नित कार्य कर।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा स...
जिंदगी एक पहेली
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जिंदगी एक पहेली

जसवंत लाल खटीक देवगढ़ (राजस्थान) ******************** कभी हंसाती है, कभी रुलाती है .. कभी दगाबाज, तो कभी बन जाती सहेली है ...! सच तो यही है दोस्तों...!! जिंदगी एक पहेली है ..! ! याद है मुझे वो बचपन के दिन... जब बात-बात पर रो देते थे, अब कंधो पर बोझ आ गया ... अब तो सिर्फ दिल रोता है, और आँखे अकेली है..! सच तो यही है दोस्तों ..! ! जिंदगी एक पहेली है..!! एक मौत के खातिर .. जिंदगी का जहर पी रहे है, सुख चेन से कोई नाता नहीं ... लगता है ऐसे ही जी रहे है, अरे! मेरे इन हाथो में तो... बिना लकीरों की हथेली है..! सच तो यही है दोस्तों...!! जिंदगी एक पहेली है ...! ! ना जाने कितने मोड़ आते है .. हर पल सबक सीखा जाते है, चार दिन की जिंदगी यूँही निकल जाती है .. और हम ढंग से जी भी नही पाते है, आखिर में श्मशान ही हमारी हवेली है ..! सच तो यही है दोस्तों..!! जिंदगी एक पहेली है..!! चंद कागज के टुकड़ो...
मोहब्बत करके देखो
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मोहब्बत करके देखो

संजय जैन मुंबई ******************** किसी से मोहब्बत करना, बहुत अलग बात है। मोहब्बत कर के दिल में, उतार जाना बड़ी बात है। मगर लोगो ने मोहब्बत को, एक नुमाइश बना दिया। आज इससे तो कल उससे, करके दिखा दिया।। मोहब्बत कभी भी नुमाइश की, चीज हो नही सकती। जो ऐसा करते है, वो मोहब्बत कर नही सकते। मोहब्बत वो बंधन है, जो दिल से निभाना पड़ता है। अगर मोहब्बत समझना है, तो पढ़ो राधा कृष्ण, मीरा कृष्ण के चरित्रों को। मोहब्बत का सही अर्थ, समझ तुम्हे आ जायेगा।। मोहब्बत को जो लोग, नुमाइश समझते है। जिंदगी उनकी वीराना, एक दम हो जाती है। तभी तो सब होते हुए भी, अकेला घुट घुट कर जीता है। खुद अपनी जिंदगी को, नरक वो ही बनाता है।। ये दुनियाँ बहुत सुंदर है, इससे जीना तो सीखो। मोहब्बत करके लोगो के, दिल में बसना तुम सीखो। तुम्हारी जिंदगी पूरी, बदल जायेगी एक दिन। अमर हो जाओगे तुम, इतिहास के पन्नो में।। . ...
सावन
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सावन

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** सावन की अगुवाई में, हरी हुई पूरी धरती है। मेहंदी लगा। हरी चूड़ी पहनने की कोशिश करती, हर नव युवती है। सावन की बाला को देखो, हरी चोली, घाघर, चुनरी, लहरा के, कैसे बलखा चलती है। जैसे डाली हो फुलो की, जैसे मोरनी हो उपवन की, सावन में मचलती है। सावन की अगुवाई में, हरी हूई पूरी धरती हैं। मौसम की जवानी, सावन में बसती है। सोमवारी का व्रत कर युवतियां, सावन मास के देव शिव से, साजन मांगा करती है। राग और नवराग लिए, झूला झूला करती है। सावन की अगुवाई में, हरी हूई पूरी धरती है। . लेखक परिचय :-  नाम - चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कव...
शूरवीर अहीर
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शूरवीर अहीर

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़ (हरि) ******************** वीर अहीरों बढ़े चलो, मत पीछे कदम हटाणा। जिसने मां का आंचल छुआ, उसको सबक सिखाणा।। भारत मां की सरहद पर, हंस-हंसकर प्राण खपा देंगे। भारत मां के चरणों में, दुश्मन की लाशें बिछा देंगे। उल्टा कदम हटाएंगे ना, खून की नदी बहा देंगे। दुश्मन को सबक सिखा देंगे, मत उल्टा मुड़के आणा। जिसने मां का आंचल छुआ, उसको सबक सिखाणा। बणा खून की मेहंदी भारत, मां के हाथ सजा देंगे। दुश्मन की गोली के आगे, सीना ताण लगा देंगे। इन वीर अहीरों की ताकत का, हम एहसास करा देंगे। गर्दन उतार दिखा देंगे, ऐसा मौका फेर नहीं आणा। जिसने मां का आंचल छुआ, उसको सबक सिखाणा।। म्हारे खातिर देश की सिमा, मां, बाप, बहन और भाई है। पूर्वजों ने इसके ऊपर, अपणी जान गवाई है। इसकी रक्षा करने खातिर, हम सब ने कसम उठाई है। ना गर्दन कभी झुकाई है, चाहे बेशक कट जाणा। जिसने मां का आं...
माँ ….
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माँ ….

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** इंदौर रेलवेस्टेशन पर एक बुजुर्ग महिला लावारिस मिली थी, उसने बताया कि उसका बेटा उसे मुम्बई में ट्रेन में बिठा कर अभी आया बोल कर चला गया। इस मार्मिक घटना को शब्द देने का प्रयास मैंने किया है। माँ कहते है हर जगह ईश्वर नही जा सकता, इसलिए उसने बनाया तुझे। माँ नौ माह तक कितने जतन से पाला अपने भीतर तूने मुझे। माँ मेरा जन्म मर्मान्तक प्रसव पीड़ा दे गया तुझे। माँ मुझे पालते घर का पेट भी पालना था तुझे। माँ दिन रात मजदूरी करती थी तू छाती से लगा कर मुझे। माँ तू खाली पेट हो कर भी भरपेट दूध पिलाती मुझे। माँ तेरा आँचल तेरी देहगंध बेफिक्र सुला देती थी मुझे। माँ तेरे हाथ की चमड़ी खुरदरी होती रही, पॉव में छाले पड़ते रहे, माँ मैं बड़ा होता रहा अहसास न होने दिया मुझे। माँ मैं जवान हो गया कितने गर्व से तू, अपने आँसु छुपाते हुए देखती थी मुझे। माँ मेरे...
पुरुष धर्म
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पुरुष धर्म

अंजना झा फरीदाबाद हरियाणा ******************** उर्मिला से वनगमन की सहमति नहीं ली बस भातृधर्म का पालन कर लिया तुमने आरती की थाली में दीपक सजाकर वो स्व के हर मनोभाव को अंतर्सात कर विदा करती निसंकोच करने वचन पालन और तुम बिठा देते हो देवी के पद पर बिना जानकारी दिये उस सरल स्त्री की अतृप्त अंतह् में मचलती दबी हर इच्छा उसे स्त्री धर्म के नाम पर करके कुर्बान क्योंकि तुम हो समाज के प्रतिष्ठित पुरुष पुरातन से आजतक रहोगे निर्णय कर्ता कभी स्वयं भी करो न तुम धर्म निर्वहन झुक कर लगा दो तुम भी लाल टीका कर दो दीपक को सजाकर थाल में बिना किसी तर्क के धर्म पालन हेतु विदा उसे तुम भी इक जलते हुए दीपक के इंतज़ार और पुरुष धर्म के विश्वास साथ बस जिस दिन उसके निर्णय को सहजता और पवित्रता से आत्मसात करके तुम करते मिलोगे उस उर्मिला का इंतजार लक्ष्मण तभी सही मायने में हो जाओगे भगवान बनकर उस अर्थ पूर्ण पद पर आसीन और...
कँहा है बाबा का संविधान
कविता

कँहा है बाबा का संविधान

ओम प्रकाश त्रिपाठी गोरखपुर ********************** बतलाओ अब आज कँहा है, बाबा का संविधान, ये भारत पूछ रहा है...।। प्रथम प्रहार इसके प्रयोग पर, नेहरु ने कर डाला था। कुटिल नीति पर चल कर, मौलिक नियम बदल डाला था। पूछो उस दिन कहां हुआ था, बाबा का सम्मान ये भारत पूछ....।। जब बारी इन्दिरा की आयी, उसने भी न छोडा। अपने सत्ता के सुख खातिर, खूब तोडा और मरोड़ा। ऐसा संसोधन उसनें की कि तडप उठा इन्सान ये भारत पूछ......।। संविधान को करके निलंबित, इमरजेंसी लगा डाला था। अमन पसंद सभी जन को, जेलों में, भर डाला था। फिर भी कहते हैं कि हमको पूज्य है ये संविधान ये भारत पूछ ...।। सबने बारी बारी से, निज सुविधा इसको बदला है। और बदलने को खातिर, अगला भी देखो मचला है। देश को लूटे कर संसोधन और बचा ली अपनी जान ये भारत पूछ....।। सुप्रीम कोर्ट चलता है उससे, उसको भी न चलने देते। अगर वोट होता है प्रभावित, हैं संसोधन कर लेते। अ...
ज़रा आहिस्ता चल …
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ज़रा आहिस्ता चल …

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** ऐ वक्त ज़रा आहिस्ता चल, थक चुकी, संग तेरे दौड़ते दौड़ते न मिली कोई मंजिल न सहारा मिला, बहती कश्ती को न कोई किनारा मिला, रातें ढलती रही सुबहा होती रही यूँ जिन्दगी की शाम हो गयी न सुबहा सजी, न शामें सजी जिन्दगी यूँ ही बीती, जिन्दगी खोजते खोजते, ऐ वक्त .......... मै कैसे चलूँ संग तेरे बता, किधर खो गया है नही कुछ पता, मैने पकड़ा स्वयं को तो तू खो गया, तुझको जो पकड़ा, वजू़ खो गया अब कैसे तलाशूँ तू ही बता, उम्र खोने लगी अब तुझे ढूंढते ढूंढते ऐ वक्त ज़रा .................. . लेखक परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित ...
संगीत का महत्व
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संगीत का महत्व

संजय जैन मुंबई ******************** सुनाकर मुझे अपना राग, मेरा मन बहलाते हो। थकान मेरी अपने गीतों से, तुम मिटाते हो। तभी तो संगीत को, महफ़िल की शान मनाते है। और हर राज दरबारों में, इन्हें स्थापित करते है।। समय ने फिर करवट ली, बदल गया सबका नजरिया। संगीत को मनोरंजन का, साधन माने जाने लगा। अब गांव और शहरों में, इसका आयोजन होने लगे। जिस से इंसानों की, थकान मिट ने लगी। और समाज में हर्ष उल्लास का, वातावरण बनने लगा।। काम के साथ साथ, लोग गीतों को सुनते है। और काम को, बड़े आनदं से करते है। मनोरंजन करके भी, वो कार्य क्षमता बढ़ाते है। तभी तो संगीत को, विशेष दर्जा दिलवा रहे है।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इ...
सौन्दर्य प्रकृति अभिन्दन
कविता

सौन्दर्य प्रकृति अभिन्दन

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** अक्सर होता रहता है, भावों का स्पंदन। है आजाद विहग के खातिर, जैसे मुक्त गगन। ब्रह्म मूहर्त की छटा निराली, रुचि कर रंग अरूण, जलप्रपात के स्वर सुन, आशाऐं हुई तरूण। सुरभित होते है समीर, चलने से चमन सुमन, पुलकित अतिश्य हो उठता हैं जिससे अंतरमन। कोयल की सुमधुर कूक से, अनुप्रेरित कवि जीवन, करू रम्य प्रकृति वर्णन में कागज कलम समर्पण। चंदन वन हैं कविता, जिसमें सरस बनें यह जीवन, प्रकृति कलाओं की जननी हैं, प्रतिपल अभिनंनदन। . लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी ...
नापी है जमी
कविता

नापी है जमी

मनीषा व्यास इंदौर म.प्र. ******************** नापी है जमी अभी छूना आसमा, अपने हुनर से, है अपनी पहचान। जागते चलो उठो, लक्ष्य ये महान, महज कल्पना नहीं, हकीकत की है उड़ान। कर्म का है विधान सफलता की है शान, हौसलों की यह उड़ान, खुशी का ये जहान। जिंदगी कर्मपथ है राह भी है आसान उठो, जागो, बढ़े चलो ले मशाल।   लेखिका परिचय :-  नाम :- मनीषा व्यास (लेखिका संघ) शिक्षा :- एम. फ़िल. (हिन्दी), एम. ए. (हिंदी), विशारद (कंठ संगीत) रुचि :- कविता, लेख, लघुकथा लेखन, पंजाबी पत्रिका सृजन का अनुवाद, रस-रहस्य, बिम्ब (शोध पत्र), मालवा के लघु कथाकारो पर शोध कार्य, कविता, ऐंकर, लेख, लघुकथा, लेखन आदि का पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन एवं विधालय पत्रिकाओं की सम्पादकीय और संशोधन कार्य  आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच...
बालमन
कविता, बाल कविताएं

बालमन

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** टीचर से मेरा एक सवाल दे दो मुझको इसका जवाब पापा क्यों ना पहने साड़ी? दीदी को क्यों ना मूछें दाढ़ी? टी वी में कितने लोग समाते! पर क्यों ना वो बाहर आते? सूरज क्यों ना धरती पर टहले? लोरी से कैसे मुन्नी बहले? टीचर से मेरा एक सवाल दे दो मुझको इसका जवाब मुझको बता दो इसका राज क्या पशुओं को ना लगती लाज? पक्षी क्यों ना पहने चड्डी? उनको क्या ना होती हड्डी? नदियों से क्यों ना निकले आग? कौआ क्यों ना छेड़े राग? टीचर से मेरा एक सवाल दे दो मुझको इसका जवाब कौन सी मछली जल की रानी? जीवन कैसे उसका पानी? कौन सा बन्दर पहने पजामा? कैसे है वो मेरा मामा? बिल्ली को मौसी क्यों कहना? क्या वो है मम्मी की बहना? टीचर से मेरा एक सवाल दे दो मुझको इसका जवाब .... . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ...
ए हवा
कविता

ए हवा

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** ए हवा, कितना तेज, चला, ना कीजिए, जुल्फें हमारी इस कदर, उड़ाया न कीजिए, हौसला है तुम में माना हमने, मगर इस कदर हमसे, यू शरारत न कीजिए, हमने कब कहा, बंद हो जाओ, इतना धीमा होकर भी, यूं हमें, जलाया ना कीजिए, करती है शरारत जब, हवा तेज होती है, हवा की ये गुदगुदी, हमें खूब हंसाती है, हवा तेज चली तो... आंचल भी संभालेंगे, कह देते हैं ए हवा, बार-बार शरारत यू हमसे ना कीजिए। ए हवा कितना तेज चला ना कीजिए, जुल्फें हमारी इस कदर उड़ाया न कीजिए!! . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) ...
देख हिमालय है झुका
कविता

देख हिमालय है झुका

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़(हरि) ******************** देख हिमालय है झुका, चकित खड़ाआकाश। बर्फीला तूफान भी, कर न सका कुछ खास।। पीड़ा सिर को पीटती, चीख रहे सब घाव । मन्नत माँगे मौत भी, भूल गई सब दाव।। टकरा-टकरा आ रही, पर्वत से चिंघाड़ । शंका में है शेर भी, काँपें जंगल झाड़।। माँ काली सी जब भरी, आक्रामक हुँकार । घबरा दुश्मन ने वहीं, डाल दिए हथियार।। नाड़ी फड़कें क्रोध से, आँखों में आक्रोश । दर्द दवाई माँगता, देख सिपाही जोश ।। . परिचय : नाम : नफे सिंह योगी मालड़ा माता : श्रीमती विजय देवी पिता : श्री बलवीर सिंह (शारीरिक प्रशिक्षक) पत्नी : श्रीमती सुशीला देवी संतान : रोहित कुमार, मोहित कुमार जन्म : ९ नवंबर १९७९ जन्म स्थान : गांव मालड़ा सराय, जिला महेंद्रगढ़(हरि) शैक्षिक योग्यता : जे .बी .टी. ,एम.ए.(हिंदी प्रथम श्रेणी) अन्य योग्यताएं : शिक्षा अनुदेशक कोर्स शारीरिक प्रशिक्षण कोर...
तरंगित रागिनी
कविता

तरंगित रागिनी

अंजना झा फरीदाबाद हरियाणा ******************** झंझावात में बिखरे वो सूखे पत्ते बिछड़ कर अपनी टहनियों से असहाय फैल जाते हैं धरा पर इकत्रित होने के क्रम में आती है आवाज झनझनाहट की अनवरत फिर भी इकट्ठा कर डाल दिए जाते उस कूड़े के ढे़र पर भस्म होने हेतु खोकर अपना वास्तविक वो आकार पर स्व का विनाश कर पाटते रहते वर्षोंं से बनी हुई उस गहरी खाई को या फिर डाले जाते उस निर्जरा पर जहाँ मिटाकर अपना स्व अस्तित्व सड़ और गल कर स्वार्थ हित से परे बनाते उर्वर भूमि सर्वहित के लिए क्योंकि पता है समय चक्र का उन्हें इक दिन तो जड़ से अलग होना है या तो उस असामयिक झंझावात से या फिर उस समय पूर्ण समयावधि से जाते हुए इक अव्यक्त झनझनाहट के असह्य दर्द को व्यक्त करते हुए ही सही अपने सम्पूर्णता को भस्मित करके भी कर जाते है बस परोपकार स्वार्थ रहित ताकि सूखे पत्तों की वो झनझनाहट भी बने सुमधुर संगीतमय तरंगित रागिनी। . पर...
उन्मुक्त
कविता

उन्मुक्त

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** तुम छूना चाहती हो सूरज को, जरूर छुओ पर अपने पंख बचाये रखना। मेरी हर नसीहत को राह का रोड़ा समझती हो नही दूंगा आज से पर अपना विवेक हर पल जगाए रखना। जो दिखता है खूबसूरत बाहर से जरूरी नही भीतर से भी हो फिसलन पर अपने पैर मजबूती से रखना जिसे समझ रहे हो बोझ संस्कारो का चाहते हो इनसे मुक्ति हो जाओ मुक्त फिर इसकी किसीसे आस न रखना। जाओ जिओ जीवन उन्मुक्त जैसे जीते है खग, विहग अरण्य मे, जंगल मे कोई संस्कार नियम, कानून नही होते होता है वहा जाल बहेलिए का बस इतनी सी बात याद रखना। बस इतनी सी बात याद रखना। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। आप भी अपनी कविताएं, ...
क्या तुम मुस्करा पाते हो
कविता

क्या तुम मुस्करा पाते हो

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** क्या सितम करते हो कान्हा, मेरी नींद से बोझिल आंखो को, खोलते हो अपने स्नेहिल स्पर्श से, फिर जा छुपते हो दूर कहीं, झुरमुटो मे तरुओं के, मै बावरी हो दौड़ पड़ती हूँ, तुम्हे खोजने को यहाँ वहाँ, और तुम मुझे बदहवास होते देख निर्दयी हो मुस्कराते से बंसी बजाते हो नित ही खेलते हो यह लुकाछिपी का खेल तुम कान्हा, अँखियाँ की नींद चुरा, दिन का चैन चुरा लेते हो बन्द आँखों से अहसास होता है, खोलूं जब नयन छुपे ही रहते हो, सताते हो हर दिन यूँ ही तुम मुझे कान्हा, मुझे सताकर क्या तुम, मुस्करा पाते हो? . लेखक परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक ...
सूखी रोटी खाने वाला
कविता

सूखी रोटी खाने वाला

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (म.प्र.) ******************** छप्पर की कुटिया में सोता सूखी रोटी खाने वाला। पाषाणों को उठा हाथ में अद्भुत महल बनाने वाला। कर को सज्जित कर वो हल से वशुधे को सहलाता है। मेढ़े से बतिया बतिया कर थोड़ी फसल उगाता है। उसी में सुख से जीता है जीवन को सहज व्यतीत करें कभी शाम को दो रोटी कभी पानी पी उठ जाता है। सत्ताधीश छछूँदरों का इन पर भी नीति चले इन पर भी दया करे न टोपी औं चोटी खाने वाला। छप्पर की कुटिया में सोता सूखी रोटी खाने वाला। धरती तेरे पुत्रों से ही धर्मों का जीवन चलता है। धर्मों का लेख मिटाने वाला इन्हीं सुतों से पलता है। पर सत्ता वालों ने दोनों को ऐसा नाच नचाया है धर्मों मे इक धर्म नहीं भूखा पालक मरता है। स्नेह कलंकित होता है आजकल के बैनो से सरिता का आंसू न छोड़ा मानव को बोटी खाने वाला। छप्पर की कुटिया में सोता सूखी रोटी खाने वाला। . ...