मिट जाना ही अच्छा है
शरद सिंह "शरद"
लखनऊ
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धुंधली होती स्याही का,
अब धुल जाना ही अच्छा है,
दर्द दे रही यादों का,
अब मिट जाना ही अच्छा है।
भूल न पाते उन लम्हों को,
जो टीस बने चुभते अब तक,
ह्रदय से ऐसे लम्हों का,
अब मिट जाना ही अच्छा है।
दर्द दे रही ......
खेले थे बचपन मे जब
हम आँख मिचौली सखियों संग,
रंग विरंगी खुशियों को हम,
नही संजो कर रख पाये,
खुशियों के उन रंगो का
अब धुल जाना ही अच्छा है।
दर्द दे रही .....
सजा लिए अरमान बड़े,
दिवा स्वप्न भर नयनो में,
धूल धूसरित हुये सभी,
नहीं हुये पल्लवित सपनों में !
सपनों में दर्द सिसकता है !
सपनों की इस दुनिया का
अब मिट जाना ही अच्छा है !
दर्द दे रही .....
सुन्दर, सुरभित प्यारी बगिया,
थे पुष्प खिले प्यारे प्यारे !
मनुहारि ऐसा रूप खिले,
किये उपक्रम जी भर के !
निद्रा त्यागी, दिन चैन गया
सींचा उनको मन भर कर के,
पर निष्ठुर हवा चली ऐसी,
सब उड़ा दिये मन क...