समता और न्याय
राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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कहां जाएं, कैसे पायें?
संविधान के युग में भी
नहीं मिल रहा
समता और न्याय,
आजादी के
इतने वर्षों बाद भी
कुछ लोगों की
मानसिकता
आज भी सालों
पुरानी वाली है,
जो कुचक्रों, कुंठाओं से भरी है
बिल्कुल नहीं खाली है,
जहां समता दिखने चाहिए
वहां ये समरसता
की बात करते हैं,
मुंह से इंसाफ की
राग गाएंगे और
दिलों में मसल
डालने की चेष्ठा
कुख्यात रखते हैं,
जब सम की
भावना ही नहीं
तब न्याय मिलना
असंभव है,
पर तथाकथित
उच्च व रईसों के लिए
न्यायालय खुलना
रात में भी संभव है,
पर दमितों, दलितों के लिए
न्याय कहां हैं?
उनके मामले पीढ़ियों
तक खींचाता है,
मरने के बाद न्याय की
अंतिम तारीख आता है,
जहां विषमता है वहां
न्याय की उम्मीद
किससे व कैसे?
जाति-पाति, ऊंच-नीच से
इंसाफ तय होता है,
समता के बिना
न्याय बिकने लग...