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कविता

ग़म है तो पी लो
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ग़म है तो पी लो

डॉ. रमेशचंद्र मालवीय इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** खुश़ रहो मित्रों जिस हाल में हो रहते चाहे जिस गली, चाल में हो। हंस हंस कर जी लो ग़म है तो पी लो यही जिंद़गानी है यही सबकी कहानी है खोए रहते किस ख़याल में हो खुश़ रहो मित्रों जिस हाल में हो। कोई मिलता है तो कोई बिछड़ जाता है फूल खिलता है फिर उज़ड़ जाता है नहीं किसी का यहां ठिकाना है आज इसका, कल उसका जाना है उलझे रहते किस सवाल में हो खुश़ रहो मित्रों जिस हाल में हो। भूला बिसरा जब कोई मिल जाएं गले मिलें, प्यार अपना जताएं सभी को प्यार की चाहत है यह मिल जाए बड़ी राहत है छोड़ो पड़े किस जंजाल में हो खुश़ रहो मित्रों जिस हाल में हो। इस ज़ग में कुछ लोग अच्छे हैं कुछ झूठे हैं, कुछ सच्चे हैं सभी से रखें प्यार का रिश्ता सब इंसान है नहीं कोई फ़रिश्ता मस्ती में रहो चाहे फ़टेहाल में हो खुश़ रहो मित्रों जिस हाल में...
अंतिम ईच्छा
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अंतिम ईच्छा

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** अंतिम ईच्छा एक जीव एक जीवन की सुनो अगर कभी जो सुनना चाहो मेरे दबे छुपे शब्दों की आवाज, गहराई में डूबी सी ध्वनि का आभास! मैंने कभी कुछ नहीं चाहा तुमसे, ना कभी माँगा तुम सलामत रहना इस सृष्टि के होने तक मेरे दिल मे मेरी आत्मा मे मेरी अठखेलियों में मेरी पवित्रता भरी मुस्कराहट में मेरी आँखों की नमी में मेरी उठती गिरती सांसो में जिनमे हर पल तुम्हारा नाम लिखा होगा मेरी पीड़ा मेरी सिसकियों में जो मैं नहीं समझ सका, किसने और क्यों दिए ?? ना जाने कितने घाव छुपे हैं इनमे! मेरी अन्तरात्मा में एक द्वंद चल रहा, नहीं जानता कब से, क्यूं प्रताडित होता रहा जीवन भर?? क्यों मेरा अस्तित्व प्रश्न चिन्ह सा बना रहा सदैव?? मेरे होने मेरे ना होने पर , सब कुछ परमात्मा में विलीन हो जायेगा स...
मुंह बंद करा गया
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मुंह बंद करा गया

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** वो चिल्ला-चिल्ला बताने लगा, लिखे हैं बहुत किताबें सुनाने लगा, अपने ही मुख खुद का करने लगा गुणगान, चमत्कारियों की करतूतों का हर जगह करने लगा बखान, वो कह रहा था कि उनके किताबों में भरा हुआ है विज्ञान ही विज्ञान, जिसकी व्याख्या नहीं कर पाता समय में पहले कोई स्वयंभू विद्वान, आज के युग में भी धड़ल्ले से हर जगह अंधविश्वास फैला रहा, सृष्टि की उत्पत्ति का अजीब फार्मूला कथे कहानियों में बता रहा, दिमाग से पैदल चलने वाला उनकी हां में हां मिला रहा, अपनी स्थिति से ऊपर उठ नहीं सकते सारे जग वालों को बता रहा, इन लोगों के मिल रहा देखने हर हमेशा दो-दो रूप, अंदर बाहर हर तरफ से है कुरूप, सच्चे सीधे नास्तिक से एक दिन टकरा गया, जो सिर्फ जय भीम बोल कर उनका बड़ा सा मुंह बंद करा गया। ...
सीता शोक
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सीता शोक

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** अशोक मै भी शोक था, राम के इंतज़ार मे, सीता के हे मिलान का बस राम इन्तजार था। रावण और राम युद्ध का बस सार ही तो राम है, परीक्षा पर परीक्षा ही, सीता चरित्र महान है। विरह की आग अग्नि से प्रबल ज्वलन्त आग है, सीता हमेशा शोक में अग्नि परीक्षा साथ है। सीता को ना समझ सका? कितने ही धोबी आज है, अब सीता वो सीता ना रही, कलयुग की सीता आज है। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "साहित्य शिरोमणि अंतर्राष्ट्रीय समान २०२४" से सम्मानित ४. १५००+ कवि...
जीवन और प्रेम में कभी-कभी
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जीवन और प्रेम में कभी-कभी

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** जीवन और प्रेम में कभी-कभी एक तरफ की 'एक छोटी सी नासमझी की त्रुटि' जब दोनों तरफ के एक महान सुन्दर सुखमय-प्रेममय- मोहक-जीवन, उसके सपने तथा - उसकी हॅंसी-खुशी की सम्भावना का ध्वंसन कर देती है... और जब- नहीं रह जाता है कोई उपाय- उन अतीत के सपनों में- उन सम्भावित जीवनों को टटोलने की खोजने और पाने की तथा वापस लौटने की... और जब सुखमय-हर्षमय- सौन्दर्यमय-समृद्धि से भरे 'जीवन-स्वार्थ की आशा - किसी तरह से पूर्णतः निर्मूल होकर समय के बवण्डर में कण-कण से धूल-धूसरित होकर बिखर जाती है तथा जब जन्मों-जन्म के 'एकल-सपने' अलग-अलग होकर अपने-अपने ढंग से आँखों की गहराइयों में सपाट होकर किसी एक तरफ से चुभने लगते हैं... तथा जब 'दोनों तरफ से अपलक दर्शन की भूख' वर्तमान में किसी भी तरफ से ऑखों में कसैलापन...
बेईमान व्यक्तित्व
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बेईमान व्यक्तित्व

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** वक्त का व्यक्तित्व है वरना कौन जानता यहां किसी को? पद की गरिमा है वरना कौन करता यहां सम्मान किसी का? दिल की हसरत है वरना कौन करता यहां इश्क़ किसी को? दुआ होती कबूल यहां वरना कौन करता यहां बंदगी खुदा की? परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहान...
महाकुंभ प्रयागराज
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महाकुंभ प्रयागराज

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** महाकुम्भ का यह संगम, अजब गजब अध्यात्म आस्था असीमित निर्मल, पवित्र, मोक्षदायिनी, सरिता त्रिवेणी के संगम में महाकुंभ का जयघोष है। निर्मल जल, शिव जटाओं से अवतरित। मां गंगा के दर्शन से निर्मल हो गया मन। मां पतित पावनी के जल से कंचन हो गया तन। पुण्य सरिता प्रवाहिनी जीवन की आधार हो तुम। अंत समय के बाद भी तुम मोक्षदायनी तारणहार तुम। प्रयागराज की पुण्य धरा पर अविरल जल धारा। मां गंगा का प्रवाहित जल पुण्य सरिता। प्रकृति की अनमोल धरोहर को यह मानव सभ्यता, भेंट सदा समझे हम। महाकुंभ में करोड़ों श्रद्धालुओं का स्नान, तर्पण ही जीवन की आस्था हो तुम। हमको इस महत्व को सदैव समझना होगा। कहीं इसका दुरूपयोग ना होने पाए। तब ही जल संरक्षण से निर्मल जल में, सभ्यता मोक्षदायनी की आस्था में सदा डुबकी लगायेगी। आगे ह...
मन कहे.. लो बसंत आ गया
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मन कहे.. लो बसंत आ गया

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** अंगुलियाँ हिलने लगी कलम चलने लगी उतरने लगे फिर प्रणय गीत मन कहे.. लो बसंत आ गया डाल डाल पर नई कौपलें बन जायेगी कल कलियाँ मंडरायेंगे मधुप पीने पराग छल जायेंगे फिर छलिया जब बहे प्रीत का दरिया उर आनंद समा गया मन कहे.. लो बसंत आ गया चले पवन ले पतंग प्रीत डोर से बंधी हुई संग चली छाया अपनी कदम कदम सधी हुई नेह भरे नयन अंजनी अंग अंग यौवन छा गया मन कहे.. लो बसंत आ गया बदन मदनी हुआ उन्मत्त मन आनंद छाने लगा ले नव गीत जीवन संगीत मनपाखी मस्त गाने लगा सातों सुर सजे सात रंग इंद्रधनुष नभ छा गया मन कहे.. लो बसंत आ गया तारे सनद मन मदमत तन पुलकित होने लगा बाँध भुजपाश मीत के साथ अभिसार विचार होने लगा मन पढ़ भाव मीत मन के दिवा स्वप्न में समा गया मन कहे.. लो बसंत आ गया रति उतरे धरा ...
ऋतुओं का राजा आया है
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ऋतुओं का राजा आया है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** है ऋतुराज बसंत आगमन, मादकता है छाई। ओढ़ पीत परिधान अवनि भी, लगती है सुखदाई। अब ऋतुराज बसंत आ गए, सारे उपवन फूले। रंग बिरंगे पुष्पों पर हैं, आज भ्रमर दल झूले। ऋतुओं का राजा आया है, मौसम है अलबेला। कोयल भ्रमर और तितली का, है फूलों पर मेला। पवन बसंती सबके मन को, मोहित कर मदमाती। बैठ-बैठ फूलों के ऊपर, तितली राग सुनाती। बौर आ गया है आमों पर, भौंरे भी मँडराते। कोयल कूक रही डालों पर, खिले फूल मुस्काते। नई कोंपलें हैं वृक्षों पर, इतराती इठलातीं। पवन झकोरों संग तितलियाँ, उड़ अंबर तक जातीं। पीली चूनर ओढ़ धरा अब, दुल्हन-सी शरमाती। पकी फसल लहरा-लहरा कर, राग बसंती गाती। आने लगे फूल टेसू में, जंगल लाल हुए हैं। लगता है साजन ने आकर, गोरे गाल छुए हैं। फसलों पर यौवन आया है, पवन बसंती ...
कुंभ पर्व
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कुंभ पर्व

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** सत्य सनातन धर्म का कुंभ अनोखा पर्व है नदियों के तट पर लगता भारत भूमि का गर्व है। गोदावरी शिप्रा का तट तीन नदियों का है संगम सुरसरि की है पावन धारा लगता कुंभ यहां विहंगम। अवंतिका और प्रयागराज नाशिक संग हरि का द्वार अमृत छलका जहाँ आदि में यहाँ जुटते है संत अपार। जूना, अग्नि और आवाह्न निरंजनी, आनंद, अटल महानिर्वाणी सात अखाड़े दशनामियों का कुंभ पटल। नया और बड़ा उदासीन निर्मल संतों का भी वास निर्मोही, निर्वाणी, दिगम्बर राम दल का होता प्रवास। महंताई और पट्टाभिषेक संत समष्टि दीक्षा संन्यास धूनी पूजा और यज्ञ हवन पेशवाई का उत्तम विन्यास। कुंभ परंपरा अद्भुत सारी शाही स्नान की बात निराली साधु, संतों, महंतों की होती तब है चाल मतवाली । रमता पंचों का नगर प्रवेश विजया हवन संस्कार ध्वजारोहण और ईशवंदन संतों ...
ऋतुराज वसंत
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ऋतुराज वसंत

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** कामदेव ने अखियां खोली निद्रा को दी तुरंत विदाई कुछ कुछ मुकुलित कलियां देखी फूल हंसे, लतिका मुस्काईं। दसों दिशाएं जाग गई हिम की प्रहरी भाग रही कोमल कोमल कोमल काश झुरमुट से अब झांक रही। रवि की किरणों ने ली अंगड़ाई दूर हुई बर्फीली रजाई अरुण के रथ पर आ विराजीं सारे जग को दी जगताई। प्रकृति की अनुपम लीला रंगबिरंगे वसनों से सज्जित पुष्पों की हुई मुंह दिखाई हरी घास, हरियाली आई। तितली भौरे गुंजन करते मधुर तान, संगीत सुनाते बोले मोर,पपीहा बोले हिरनों संग हिरनी डोले। रंगीन दुशाला ऋतुरानी ओढ़े ऋतुराज के स्वागत में पट खोले। मुस्काती इठलाती पुरवइयाआई वासंती पवन बही सुखदाई।। जगताई के २ अर्थ हैं १. चंचलता २. जगत् का स्वामित्व परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी ...
चाहना
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चाहना

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* चाहना एक अभिव्यक्ति है और चाहत एक अनुभूति. चाहने में भौतिकता है और चाहत में स्वतंत्र, अद्वैत होने के बोथ. चाहना एक फूल से हो सकता है और चाहत संपूर्ण उपवन की. चाहने में लालसा और पाने की कामना उद्बबोधित है चाहत सृष्टि के स्वरुप की स्तुति हैं. इसलिए जब मैंने कहा कि तुम मेरी चाहत हो तो केवल तुम नहीं तुम से जुड़ी, बंधी वो सारी नैसर्गिकता भी है. निश्छल, पावन अक्षत एवं साश्वत काव्य संस्कृति में सौंदर्य बोध परालौकिक है. मेरा मौन रहना जिस दिन लोग समझेंगे मै उन्हें महाकाव्य लगूंगा। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "समाजसेवी अंतर्राष्ट्...
चलो कुंभ चले
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चलो कुंभ चले

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** प्रयागराज आपके स्वागत के लिये सजा है। १४४ साल बाद कुंभ का अलग मजा है। ******* त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाएं अपना जीवन सफल बनाऐ। ******* देश विदेश से लोग कुंभ आ रहे है। सनातन धर्म के प्रति अपनी आस्था जता रहे है। ******* यह अवसर हमारी जिंदगी में दोबारा कभी नहीं आयेगा। अगर नहीं जा पाये कुंभ तो मन में अफसोस रह जायेगा। ******** महा स्नान के अवसर पर करोड़ों लोग आ रहे है। आस्था की डुबकी लगाकर पापों से मुक्ति पा रहे है। ******* कुंभ में चारों तरफ़ आध्यात्मिक माहौल छाया है। हर संन्यासी अखाड़े ने अपना स्थान बनाया है। ******* कुंभ जरूर जाये परन्तु सावधानी अपनाये। भीड़ बहुत है दुर्घटना से खुद को बचाएं। ********* परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घो...
उद्धारकर्ता आ रहे हैं
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उद्धारकर्ता आ रहे हैं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** आ रहे हैं आ रहे हैं उद्धारकर्ता आ रहे हैं, जिसने देखा नहीं संघर्ष उनके दिलों में छा रहे हैं, भावनाएं अच्छी भड़काता है वो, नवयुवा को भटकाता है वो, कई प्रकरणों में फंसाता है वो, खुद बच के निकल जाता है वो, अचानक हुआ था अवतरण, भौंकने वालों ने दिया शरण, मूछों को ताव देता है, दुश्मन को भाव देता है, बना मान्यवर से भी बड़ा मान्यवर, हवाई राहों से घूमता शहर शहर, आलीशान कोठी बनाता है, अपनों को ही गरियाता है, गृहस्थ जीवन जीने वाला कंवारा खुद को बताता है, सपनों में बसके किसी के आंसू बहुत दे जाता है, पहुंच उनका काफी अंदर है, गुरू पीर सामने बंदर है, देते धमकियों पे धमकियां, बनते अपने मुंह मिट्ठू मियां, सगे भाई को गाली दे दे कई नये भाई बना रहे हैं, आ रहे हैं आ रहे हैं उद्धारकर्ता आ रहे हैं, वंचित ...
आज़ाद पुरुष
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आज़ाद पुरुष

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** उठो देश के लोगों खुद के अधिकारों को ज़रा एक बार पहचानो। निकलकर झूठे किरदारों से खुद के व्यक्तित्व को ज़रा एक बार निखारो। सत्ता सत्ताधारियों की नहीं सत्ता को अजमाने वालों की सदा होती आई है। खुद की अजमाईस कर खुद की एक सत्ता ज़रा एक बार बनाना सीखो। उठो देश के लोगो खुद के अंदर के सत्य पुरुष को ज़रा एक बार पहचानो। आज़ाद पुरुष की तरह सत्य के लिए एक बार ज़रा जीवन जी कर देखो। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मं...
भारतवासी
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भारतवासी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** भारतवासी माटी पूजे, तुमको बात बताता हूँ। बहती है गंगा-यमुना, मैं गीत वहाँ के गाता हूँ।। पर्वतराज हिमालय जिसके हर संकट को हरता है। तीन ओर का सागर, जिसकी चरण-वंदना करता है।। बच्चो जानो, भारत माँ को, जिसका कण-कण सुंदर है। शस्य श्यामला मातृभूमि है, पर्वत-नदियां अंदर है।। ताल-तलैया, मैदानों की, आभा बहुत लुभाती है। मेरे बच्चो! दुर्ग-महल में, इतिहासों की थाती है।। लक्ष्मी बाई, वीर शिवा से, दमकी नित्य जवानी है। महाराणा ने चेतक के सँग, रच दी नवल कहानी है।। दीवाली, होली की आभा, ईद खुशी को लाती है। भारत को बच्चो! जानो तुम, जिसकी हवा सुहाती है।। पूरब-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण, सभी ओर हरियाली है। हर मुखड़े पर हर्ष दिख रहा, सभी ओर खुशहाली है।। बच्चो! जानो मातृभूमि को, जो हम सबकी माता है। भारत माता की जय ब...
जीव से प्रेम
कविता

जीव से प्रेम

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** जीवों से मेरा प्रेम, मानो मन का वृंदावन हो जाना, उनके मौन से मुखरित होना मानो प्रभुमय हो जाना, उनसे भावों से जुड़ना मानो हृदय करुणामय हो जाना! उनके कष्ट से जुड़ना मानो आत्मा का जागृत हो जाना!! निमित्त बनना मानो प्रभु का आशीर्वाद मिलना!! उन से जुड़ना उतना ही सरल है जितना कृष्णा की मुरली में संगीत का होना उनसे प्रेम ना होना उतना ही कठिन है, जितना राम के लिए मन में शुद्धता का ना होना!! प्रेम असीमित है, अथाह है, जितना हो कम है निःस्वार्थ प्रेम, ईश्वर की आराधना है प्रेम, मनुष्य से प्रेम, पशुओं से प्रेम पक्षियों और पेड़ पौधों से अथाह प्रेम, प्रकृति से प्रेम, सृष्टि से प्रेम , यही हैं अनन्त, अविनाशी प्रेम परमात्मा से प्रेम अंतहीन, नाथों के नाथ......पशुपतिनाथ से प्रेम!! परिचय :...
गीत गणतंत्र का
कविता

गीत गणतंत्र का

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** संविधान में संजोये गए सभी मूलमंत्र का, चलो सब मिल गाते हैं गीत गणतंत्र का, न रहा कोई रंक और न रहा कोई राजा, हर कोई बजाओ मिल प्रजातांत्रिक बाजा, चुनावी वक्त आया तो चुनने से पहले किसी को, खूब सोचो समझो और रखो होंठों पे हंसी को, खोजना है अब सबको आयाम तो विकास के, बदल जाएंगे फिजां जल्द अपने आसपास के, जानना ही होगा हमें नियम व अनुच्छेद को, मिटाना ही पड़ेगा धर्म, जाति-पाती भेद को, यहां नहीं कोई मालिक वो तो है आम जनता, लोकतांत्रिक शासन की होती है जान जनता, गर अपनी जेब भरने को कोई भ्रष्टाचार लाए, न्यायालय में घसीट उसे सद आचरण सिखाएं, ध्वज ही फहराने से न होते कर्तव्य पूरा, नियमों को नहीं मानो तो है सब अधूरा, अधिकारी हो गर मदारी तो जनता बने जमूरा, कानून को जो न मानें मानो खाया वो धतूरा, जनता का, जनता के द्...
संदेह
कविता

संदेह

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** संदेह को संदेह मत रहने दे। इसके निवारण का उपाय ढूंढ ले। ******* जिसके प्रति संदेह होता है। वह विश्वास योग्य नहीं होता है। ******* संदेह होने का जरूर होता है कारण। यह सच है या झूठ कर लीजिए निवारण। ******* संदेह से अच्छे अच्छे रिश्ते भी खत्म हो जाते है। जिगरी दोस्त भी दुश्मन बन जाते है। ******** उन्होंने अपने प्यार के पौधे में शक का पानी डाला बेवजह अपने रिश्ते को उजाड़ डाला। ******** संदेह एक धीमा जहर है जो अपना असर धीरे-धीरे दिखाता है। हमारे रिश्ते को दीमक की तरह खाता है। ******* विश्वास सभी पे करें अंध विश्वास किसी पर नहीं थोड़ा शक भले हो बेशक पर उसको मिटा लेना है सही। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता...
बिखर रहे, माला के मोती
कविता

बिखर रहे, माला के मोती

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** देख-देख कर पीड़ा होती। बिखर रहे, माला के मोती।। तंत्र बना अब लूट तंत्र है, है बस्ती का मुखिया बहरा। गली-गली में दिखी गरीबी, कितने ही दर, तम है गहरा।। झूठ ठहाके लगा रहा है, सच्चाई छुप-छुपकर रोती। बहुतायत झूठे नारों की, मिलते हैं वादों के प्याले। कहते थे सुख घर आयेंगे, मिले पाँव को लेकिन छाले।। रोज बयानों के खेतों में, बस नफ़रत ही फसलें बोती। जाने कितनी ही दीवारें, मन से मन के बीच बना दी। बात किसी की कब सुनता है, मौसम हठी, ढीठ, उन्मादी।। उसकी बातें, उसकी घातें, लगता जैसे सुई चुभोती। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : नि...
आजादी की एकता
कविता

आजादी की एकता

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** विविधता में एकता का एक ऐसा आंदोलन चलाया विश्वभर में आश्चर्यजनक एक शोध बनकर दिखाया हिंसात्मक पथ पर कभी भी कोई आगे नहीं आया देश की मिट्टी से किया देशप्रेम स्नेह प्यार निभाया देश की मिट्टी में मर मिटने देशप्रेमी कसम खाया चढ़कर फांसी का फंदा हंसता हंसता प्राण गंवाया अविराम मरतामिटता देशप्रेमी लहूलुहान नजर आया देश की खातिर देशप्रेमी बेहिचक एक आवाज उठाया जुबान की वही आवाज का देशप्रेमियों पर था साया जाति धर्म भाषा त्यागकर एकता स्वयं दिखलाया विविधता में एकता की मजबूतगांठ देशप्रेमी बनाया कूदकर देशप्रेम में देशप्रेमी देश को सुरक्षित कराया यही है हिंदुस्तान, देशप्रेम के पथ का पाठ था सिखाया परिचय :- ललित शर्मा निवासी : खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) संप्रति : वरिष्ठ पत्रकार व लेखक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणि...
आओ, संस्कारों से संक्रमण मिटाएँ
कविता

आओ, संस्कारों से संक्रमण मिटाएँ

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** हम सब भारत के वीर सिपाही भारत माँ के प्रति नतमस्तक हों अपना तन मन और जीवन भारत माँ को समर्पित हो। हम भारत के वीर सेनानी अपना भूगोल समझ में आता है जो करे देश से ग़द्दारी उसको भी झुकाना आता है। बढ़ा प्रदूषण संस्कारों में उसे सम्भालने आगे आएँ जो दूषित हुए संस्कार वो स्वच्छ बनाने आगे आएँ। हम भारत माँ के रक्षक हैं भ्रष्टाचार नहीं चलने देंगे भ्रष्टाचारी ग़द्दार देश के मशाल न उनकी जलने देंगे। लोभ मोह की सत्ता ने हमको लाचार बना डाला इसी मोहवश भारत को जयचंदों का आगार बना डाला। इस लोभ मोह को अब और न बढ़ने देंगे लालच के भूखे भेड़ों की अब और नहीं चलने देंगे। गाथा यह प्रण लेने और जगाने भारत का जनमन अपना मन स्वच्छ बनाकर भारत माँ को अर्पित तन मन। हम स्वच्छ स्वयं हो जाएँ मन का भ्...
अब जब जब हम गणतंत्र मनाएँ
कविता

अब जब जब हम गणतंत्र मनाएँ

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** अब जब हम गणतंत्र मनाएंँ अपना इतिहास पुनः पढ़ जाएँ।। भूलें हैं अबतक जिन-जिन को खोजें उनके त्यागी जीवन को फाड़े पन्नों को फिर से जोड़ें 'सच' को सत्य की तरफ फिर मोड़ें नव प्रेरणा की नव कथा सुनाएंँ! अब जब हम गणतंत्र मनाएंँ अपना इतिहास पुनः पढ़ जाएँ।। याद करें उत्सर्ग की प्रथा 'चौड़ा सीना ऊचा माथा' पुनर्जागरण का वह युग रक्तरंजित संघर्ष की गाथा जब तब दुर्बलता के गीत न गाएंँ! अब जब हम गणतंत्र मनाएंँ अपना इतिहास पुनः पढ़ जाएँ।। उनके 'स्वप्न' अनोखे थे जो स्वराज हित देखे थे 'उर्जा और उत्कर्ष से भरा' वो नवभारत के लेखे थे अब से नवोत्थान की राह बनाएंँ! अब जब हम गणतंत्र मनाएंँ अपना इतिहास पुनः पढ़ जाएँ।। 'क्रान्तिकारी' युगद्रष्टा थे वो लोकतंत्र के स्रष्टा थे वो स्वातंत्र्य यज्ञ की ज्वाला में संग्राम कुण्ड क...
गाथा बेटी की
कविता

गाथा बेटी की

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** बेटी इतिहास की गाथा है, बेटी तलवार की धार (लक्ष्मीबाई) बेटी अग्नि की ज्वाला है (मैना) बेटी व्यक्तित्व की खान (अहिल्याबाई होल्कर)। बेटी साहस वीर है (कल्पना चावला) बेटी धर्मनिष्ठ महान (सीता)। बेटी सुंदर मोहिनी ( दमयंती रूपमती) बेटी समाज मै मान( मदर टेरेसा) बेटी आर्थिक सशक्तिकरण की स्तंभ है(सावित्री जिंदल ) बेटी योद्धा महान (दुर्गावती)। बेटी शूरवीर है (केकइ) बेटी पिता की लाज (सीता) बेटी त्याग तपस्या है (राधा) बेटी धैर्य की खान (कुंती)। बेटी घर में उत्साह है (माधुरी) बेटी है हर शौक (मुस्कान) बेटी शान्त चित्त है (ज्योति) बेटी आँगन में बहार (पायल आयु) बेटी से हर त्यौहार है, बेटी रक्षा सूत्र, बेटी आँगन की तुलसी है, बेटी ममता प्यार और दुलार। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : स...
कृपण
कविता

कृपण

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पाकर भी कुछ देता नहीं कितना कृपण हैं इन्सान देकर भी कुछ लेता नही कितना एहसानी है भगवान। पाषाण भी देता है ठोकर। पत्ते भी करतें हैं आवाज़ पर, पर देते हैं, समीर देते हैं छाया। हर जड चेतन कुछ लुटाता है और देता है परन्तु, परन्तु स्वार्थ, स्वार्थ में इन्सान सब कुछ पाना चाहता है देना नहीं। यह उसकी तु,टी नही जमाने का कायदा है न चाह कर भी बेबस हैं इन्सान। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचना...