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कविता

तुम्हें कौन सा रंग लगाऊं
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तुम्हें कौन सा रंग लगाऊं

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** कान्हा.... तुम्हें कौन -सा रंग लगाऊं। सूरज की, लाली को हाथों में भर , गालों को भर जाऊं। कान्हा, तुम्हें कौन -सा रंग लगाऊं। या फिर काले -काले बादल को, आँखों में भर जाऊं। कान्हा, तुम्हें कौन- सा रंग लगाऊं। सात रंग के सपने सजा के, अंबर से नीला रंग ले आऊं। कान्हा, तुम्हें कौन- सा रंग लगाऊं। अपने प्रेम का रक्त बिंब, तेरे माथे लगा जाऊं। कान्हा, तुम्हें कौन -सा रंग लगाऊं। या फिर पीली -पीली सरसों से, आँचल को भर जाऊं। कान्हा, तुम्हें कौन -सा रंग लगाऊं। या सारे रंगों को भर लाऊं। कान्हा, तुम्हें सारे रंग लगाऊं .... . परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिय...
होली का रंग
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होली का रंग

सरिता कटियार लखनऊ उत्तर प्रदेश ******************** होली का रंग करो ना भंग रंग के बदले प्यार बढ़ाओ मिल जुल कर के होली मनाओ तुम सब भी इस ढंग में आओ गले मिलो सब द्वेष मिटाओ क्या रखा ज़रा ये तो बताओ तेरी मेरी को दिये हो बढ़ाओ ना कोई कीमत ना कोई भाव समझ गये तो ना रहे अभाओ हाथ मिला कर गले लगाओ दिल से दिल का रंग मिलाओ मिला के रंग से नया रंग बनाओ बदल सका रंग खून बताओ दिल से दिल में पड़े पढ़ाओ नफरत की फितरत को भगाओ सरिता करे विनती समझाओ इंसां नियत के बढ़े क्यों भाओ . परिचय :-  सरिता कटियार  लखनऊ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु ...
सखी की बारात
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सखी की बारात

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** महफिल सजी हुई है तेरी बारात आई है। हर किसी की मुरादों वाली रात आई है। सब दे रहें दुआयें और आशीर्वाद तुम्हें । मेरी आँखो मे जुदाई की बरसात आई है। पिया के घर का मंजर खुशगवार हो। हर कदम पर एक दूजे को एतवार हो। निभाना पिया का साथ हर तुफान मे, प्रेम का जला रहे चिराग अन्धकार में । हर सुबह की नई किरण तेरी बिन्दियाँ बने। शीतल चान्दिनी आँगन की खुशियाँ बने। सांझ की मद्धम रौशनी में तेरी सूरत जगमगाये। घर का हर्ष उल्लास चैन की निन्दियाँ बने। याद कर लेना अपनी खुशियों में कभी। जब याद आये बाबुल तम्हें कभी। भूल ना जाना इस बचपन की सखी को, खेला था गुड्डे-गुड़ियो का खेल जिसके साथ कभी . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान से सम्मानित  ...
फगुआ बयार हुड़दंग की हुलार
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फगुआ बयार हुड़दंग की हुलार

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** समर्पित- बुन्देली बघेली सहित बृज की त्रिक्षेत्रीय होरी के हुड़दंग को। भाषा- बृज, बघेली, बुन्देली शब्द संयोजन। छंद- घनाक्षरी। रस- हास्य, वीभत्स खाबन के गुजियन, शकरा की लड़ियन। डार-डार कंठन पे आज निकरे हैं।। मेहर घरे की सारी घोर- घोर फुलवारी। टेंसुअन तोर तोर द्वारे ला खड़ी हैं।। खूबन अबीर सों महावर गुलाल लाल। रंग-रंग केरे मेंक, भूतन बने हैं।। होय-होय हल्ला करें होहड़ मोहोल्ला डरे।। अरी..री.. री. रक्तन कपार लो करे हैं।। पीय-पीय भंग लहरातन भुजंग घाईं। कीच की उलीच मीच देह रगड़े हैं।। जोंन-जोंन भगत पकड़ उहे पटकत। बच्चन जवान छाड़ि बूढ़े रगदे हैं।। फगुआ बयारि री नियारी है बघेलन की। कम ना बुन्देलन बिरज हुंदड़े हैं। गोबर की छोकर बनावल गड़हियन। लोटत घासोटत सूकर से बने हैं।। अटपट सूरत ले मटकत घूरन पे। लटक-लटक कंध विकट करे हैं।। दारू के सुरूर के गुरू...
अधूरी रही
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अधूरी रही

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** हर युग में बस मैं अधूरी रही राजमहलों से निकली तो मीरा बनी अल्हड़पन में रही जब दीवानी बनी जब राधा बनी तो अकेली रहीं हर युग में बस मैं अधूरी रही राजरानी बनी जब हरण हुआ नींद शैंया पर पूरा वनवास जिया इंद्रदेव से छली गई जब युगों–युगों तक पाषाण रही हर युग में मैं बस अधूरी रही माँ देवकी तो बनी पर अधूरी रही अग्निपरीक्षा भी दी फिर भी पाकीजा न हुई माँ कुन्ती के वचनों से ,पांच हिस्सों में बांटी गई पत्नी बनी जब बुद्धदेव की ,महलों में थी पर अधूरी रही हर युग में मैं बस अधूरी रही। पिया प्रेम में यम से लड़ी, कुछ वर्षों तक सती हुई अग्निपुत्री रही, केश खोली प्रतिज्ञा भी ली त्रिपुरारी ने छला तो तुलसी बनी कभी लक्ष्मी बनी, कभी लक्ष्मीबाई बनी जब–जब नारी बनी बस अधूरी रही। हर युग में मैं बस अधूरी रही।। . परिचय :- रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्...
सब मेरा परिवार
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सब मेरा परिवार

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** गोद माता की मिले, और संग मिले पिता प्यार। नहीं जाना मुझे काशी मथुरा, सब मेरा परिवार। माँ बच्चों की प्रथम गुरु, है वो सबकी मूलाधार। जन्म दिया माता, गुरु ही देता सदा आकार। सदा प्रसिद्धि पाई जग में, संग पाया सम्मान। मात पिता से दूर गए, तो समझो जीवन बेकार। नेह दिखाती माँ सदा, पिता का सतत व्यवहार। परिवार संग जीवन यापन, यह जीवन आधार। वो राह भटक गए, नहीं मिला उन्हें कोई छोर। दर-दर ठोकर खाते रहे, वह बने रहे बस ढोर। स्वच्छंदता उन्हें पसंद, नहीं चाहिए कोई रोक। बिन लगाम घोड़े बने, वह अब दौड़े चहुँओर। राह खड़ी करते मुश्किल,वो जीवन जीते ढोर। ऐसा जग में वो करते, जो वंचित रहे संस्कार। कर ले कुछ अच्छा जग में, बन जा तू सिरमोर। नहीं पाएगा जीवन मनु, बस भटकेगा चहुँओर। कहती वीणा मान जा, और गले बांधले डोर। आवारा ज्यूं भटकता रहा, नहीं मिलेगा छोर। . परिचय : का...
तभी है होली
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तभी है होली

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म .प्र.) ******************** क्यों ना मन आज इक उड़ती पतंग हो, और उड़ाने की मेरी अपनी उमंग हो। अंग अंग पुलकित तरंग हो, वातावरण में घुली भंग हो। प्रेम, स्नेह अनुराग संग हो, दीवाने दिल मस्त मलंग हों। गाल हों गुलाल, अबीर मय, हर ओर कबीरे का ही रंग हो सब बैरी मिल करें ठिठोली, जीत मनाये मीठी बोली। भोली! याद करे हमजोली। अगर यूँ हो ली? तभी है होली। अगर यूँ हो ली? तभी है होली।। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न सीमेंट संस्थानों से समबद्ध हैं। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर...
उपहार
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उपहार

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** अधरों की मुस्कानें दे दों ऐसा अमिट उपहार दे दो। मेरे नयनोँ मे प्रतिबिंब तेरा हो ऐसा प्रिय उपहार दे दो। चंदन चंदन मन हो जाये, गुन गुन गीत जिंन्दगी गाये, अधरों से जो कह न पाये, नयनों से नयनों मे दे दो प्रीत मेरे जीवन को रंग दे दो। गंगा जमुना की लहरें लहराये नित तेरे संग में लहराऊँ ऐसा मनभावन, अप्रतिम उपहार मुझे दे दो। जीवन को मैं करूँ समर्पण बस मुझको तुम एक प्रहर दे दो . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान ...
सिसक रहे आज होली के रंग
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सिसक रहे आज होली के रंग

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** सिसक रहे आज होली के रंग। महंगाई ने करदिया रंग बदरंग।। लाल रंग अब लहू बनके बह रहा पीत वर्ण कायर बन छुपकर रोरहा हरी-भरी वसुंधरा अब कहाँ रही? ऊंची-ऊंची इमारतें आस्माँ छू रही। रह गया बस अब होली का हुड़दंग महंगाई ने कर दिया रंग बदरंग।। बच्चों की पिचकारी औंधे मुंह पड़ी, बिन पानी-रंग टंकी शुष्क सी पड़ी। महंगाई-मार रंग फुहार फीकी पड़ी, फागुनी बयार मन्द-शांत चल पड़ी। बिन पानी कैसी होली पिया के संग। महंगाई ने कर दिया रंग-बदरंग पावन पर्व अस्त-व्यस्त हो रहे , पर्वों की गरिमा क्षत-विक्षत रो रहे। वन-उपवन टेसू के फूल मुरझा रहे खाद्य पदार्थ-भाव आस्माँ छू रहे। मथुरा भी गाये बिन होली सूने अंग महंगाई ने कर दिया रंग-बदरंग।। परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एवं समाजसेविका) शिक्षा - एम.ए. हिन्दी समाज शास्त्र बी.एड. जन्म स्थान - शिक...
फिर इस बार होली पर वो
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फिर इस बार होली पर वो

फिर इस बार होली पर वो ... पवन मकवाना (हिन्दी रक्षक)  इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** फिर इस बार होली पर वो, सच कितना इठलाई होगी.. सत रंगों की बारिश में वो, छककर खूब नहाईं होगी….। भूले से भी मन में उसके, याद जो मेरी आई होगी.. होली में उसने नफरत अपनी, शायद आज जलाई होगी….। फिर इस बार होली पर वो ....!! ये क्या हुआ जो बहने लगी, मंद गति शीतल सी ‘पवन’.. याद में मेरी शायद उसने, फिर से ली अंगड़ाई होगी….। फिर इस बार होली पर वो ....!! कैसी है ये अनजान महक, चारों तरफ फैली है जो.. मुझे रंगने को शायद उसने, कैसर हाथों से मिलाई होगी….। फिर इस बार होली पर वो ....!! पीले,लाल, गुलाबी रंग की, मेहँदी उसने रचाई होगी.. आएगा कोई मुझसे खेलने होली, उसने आस लगाई होगी….। फिर इस बार होली पर वो ....!! डबडबाई आँखों से उसने, मेरी राह निहारी होगी..। पूर्णिमा के चाँद पे जैसे, आज चकोर बलिहारी होगी….। फ...
बेटी
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बेटी

जीवन धीमान घनसोत, हिमाचल प्रदेश ******************** एक कली खिली मेरे आंगन में, धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। मन गर्व से उन्नत हुआ, दिल खुशी से प्रफुल्लित हुआ। आसमान को छूने लगी, उंचे पदों पर शोभायमान हुई। दो कुलों का रिस्ता निभाने लगी, यही है आज की बेटी की पहचान। फूलों की खुशबू होती है, घर की राजदार है बेटी। बचपन से बुढ़ापे का सहारा है, फिर भी गर्भ में क्यों मार दी जाती है। मां चाहिए, पत्नी चाहिए, बहन चाहिए, चाहिए गर्लफैंड़। फिर बेटी क्यों नहीं चाहिए, बिन बेटी-बेटा का क्या करोगे। मैं भी सांसे लेती हूं, बेटा नही तो क्या हुआ। कैसे दामन छुड़ा लिया, जन्म लेने से पहले ही कोख में मार दिया। चंद लोगों की बातों में आ गए तुम, मैं बोझ नहीं हूं, भविष्य हूँ बेटा नही, बेटी हूं। बेटी की मुहब्त को कभी अजमाना नहीं, दिल नाजुक है फूल की तरह। उसे कभी रुलाना नहीं, बेटी पहचान है मां-बाप की। आओ मिलकर लें...
किस पर गर्व करूँ
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किस पर गर्व करूँ

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** घर का चिराग जब घर को जलाये क्या उस पर गर्व करूँ घर का भेदी ही जब लंका ढ़हाए क्या उस पर गर्व करूँ। देश बांटने वाले को अपना बताये क्या उस पर गर्व करूँ जो कौमी एकता का नारा न लगाए क्या उस पर गर्व करूँ। जो पड़ोसी दंगा, झड़प पर तमाशा देखे उस पर गर्व करूँ जो सियासती कुर्सी की रोटी सेंके क्या उस पर गर्व करूँ। छोड़ अमन की बातें, आग लगाए क्या उस पर गर्व करूँ जो नफरत से ही बाज ना आए क्या उस पर गर्व करूँ। शेर बिठाकर सत्ता में हम इतराए क्या उस पर गर्व करूँ। जलता देश देख भी चुप रह जाए क्या उस पर गर्व करूँ।।   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय ...
रंग दे मोहे लाल से
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रंग दे मोहे लाल से

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** हृदय के कोरे कोने को रंग दे तू लाल। मैं रहना ना चाहूं कोरी तेरे अंग-अंग लग मैं भी बनना चाहूं गोरी मैं एक अलबेली छोरी मैं रंगना चाहूं अपने पिया के प्यार से ना कि इस कृत्रिम रंग गुलाल से। मेरे हृदय के कोरे कोने को रंग दे तू लाल से। अपने प्रीत तथा अंगुलियों की जुबान से भावनाओं की गुलाल से आज रंग दे तू मोहे प्यार से आज बड़े-बड़े शराबी भी हमसे मात खाते हैं। मैं ऊंचे दर्जे की शराबियों में गिनी जाती हूं अरे यह क्या मैं कहां कभी पीती हूं। अब कहां नशा चढ़ता शराब का जबसे नशा चढ़ा है मेरे सर पर मेरे जनाब का .... . परिचय :-  नाम - चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
मित्रता वरदान है
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मित्रता वरदान है

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** हैं बहुत संबंध भू पर! स्नेह सरसाते परस्पर! भिन्न कालों में सहायक, मनुज जीवन में सभी पर मित्रता सुखदाई संबंध, मित्रता वरदान है! मित्रता है स्वच्छ दर्पण! इसमें आवश्यक समर्पण! प्रश्न हो अधवा समस्या, मित्रता उत्तर-निवारण! दूर करता मित्र-पथ से मित्र सब व्यवधान है ! पथ प्रदर्शक-प्राण रक्षक! निकटतम शिक्षक-प्रशिक्षक! मित्र-हित साधक निरन्तर, सर्वदा शुभ सुलभ पक्षक! स्वप्न में भी मित्र करता मित्र का सम्मान है! मित्रता देती है परिचय! मित्रता करती है निर्णय! मित्रता गुण-दोष कारण, मित्रता से जय-पराजय! मित्रता से व्यकि के व्यक्तित्व की पहचान है! जब समय होता विकट है! मित्र तब होता निकट है! दुख-भंवर जब-जब सताए, मित्र बनता सुखद तट है! कष्टदायक क्षणों में ही मित्र की पहचान है! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०...
याज्ञसेनी २
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याज्ञसेनी २

मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द' मुज्जफरपुर ******************** देख कृष्ण को बोली कृष्णा, आओ भइया, आओ। धर्मराज को मार्ग धर्म का तुम भी जरा दिखाओ। भइया, युद्ध को होने दो, तुम नहीं युद्ध को रोको। मैं तो कहती धर्मराज की कायरता को टोको। किया समर्थन धृष्टद्युम्न ने तत्क्षण महासमर का। किया निवारण भीमसेन ने किसी हार के डर का। बोला पबितन अटल प्रतिज्ञा याज्ञसेनी है मेरी। विश्वास रखो तुम, तेरी इच्छा होगी निश्चित पूरी। कहा पार्थ ने दंड कर्ण को मुझको भी देना है। कृष्णा के अपमान का बदला मुझको भी लेना है। 'युद्ध को तो होना ही है, पर पहल उन्हें करने दो।' कहा कृष्ण ने, 'कृष्णे ! जबतक टले युद्ध टलने दो।' हुआ सर्वसम्मति से निर्णय, 'शांतिदूत जाएगा।' बोली कृष्णा,'रिक्तहस्त ही वह वापस आएगा..... . परिचय :- मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द' पिता - रामनन्दन मिश्र जन्म - ०२ जनवरी १९६० छतियाना जहानाबाद (बिहार) निवास...
नारी
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नारी

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** नारी से सारा विश्व जगत, नारी से नर नारायण है, नारी है जग का गौरव, नारी गंगा सी पावन है। नारी ममता का वह सागर, जिसमें संपूर्ण समर्पण है, नारी का पद नर से ऊपर, नारी समाज का दर्पण है। नारी कुदरत का ऐसा तोहफा, जो प्रगति का संबल है, मृदुवाणी और परोपकारीवह, उसमें स्वयं का आत्म बल है, नारी कल्पतरु की छाया, जिसके नीचे सुख ही सुख है, नारी का जीवन वह मीठा फल, जिसके बिना अधूरा नर है। कुल की मर्यादा की खातिर, विष का प्याला पी जाती है, सुख-दुख में परछाई बन चलती, अर्धांगिनी वह कहलाती है। जिन पुरुषों को जन्म दिया उन्हीं के हाथों चली जाती है, कभी त्याग की बलि चढ़ी तो, कभी जलाई जाती है। किसी ने वजूद को उसके, दांव पर लगा ललकारा है, किसी ने भोग्या समझा उसकी इच्छाओं को मारा है। कर्ज चुकाया नारी होने का, सीता भी कलंक से बची नहीं अग्नि परीक्षा द...
ऋषिकेश
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ऋषिकेश

हिमानी भट्ट इंदौर म.प्र. ******************** चली सखियों सॉन्ग गंगा, हिमालय की चोटी से, खल खल बहती, बहती सीधी, ऋषिकेश की गोद में। जहां रहेंगे नीलकंठ जी वही रहेगी शिवाया, कभी ना छोड़ो साथ में उनका, जहां रहेंगे मेरे महादेवा। बहुत से आश्रम बसे हैं ऋषिकेश की पर्वतमाला मैं, श्रद्धालु मोहित होते हैं प्रकृति की मधुशाला में, पी जाएं अमृत ध्यान और ज्ञान का। इतना सुंदर यह तीर्थ हमारा बहुत से मंदिर बसे हैं, पर लक्ष्मण झूला सबसे खास यहीं से निहारने सुंदरता, सुंदर पर्वतमाला कितना प्यारा लगता है कितना प्यारा न्यारा लगता है। अंत पद छोटा सा चार धाम ऋषिकेश के द्वार से, यमुनोत्री को सरल पड़ा, खल-खल बहती गंगोत्री, कैलाश में विराजे केदारेश्वर, अंत में जाएं बैकुंठ धाम। . परिचय :- हिमानी भट्ट ब्रांड एंबेसडर स्वच्छता अभियान, इंदौर निवासी : इंदौर म.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...
स्वप्न
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स्वप्न

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** जल उठे दो दीप सहसा, तम को मिटाने के लिए चल पड़ी आंधी भयावह, वह दीप बुझाने के लिए। क्या खता इस दीप की, बाध्य तो तुमने किया। बन्द कर रखा था इनको अरमां न कोई आने दिया। छेड़ कर मन तन्त्र मेरा तुमने सुनाया मृदु राग कोई। फिर तोड़ दी वीणा तुम्हीं ने बजने न दी ध्वनि कोई। छेड़ कर वंशी की ध्वनि को, जो गाये हर पल राग मिलन के, पर स्वप्न, स्वप्न ही बने रहे, बने न राग वह बन्धन के। . परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हि...
बदनाम शायर
कविता

बदनाम शायर

अनुपम अनूप "भारत" रीवा मध्यप्रदेश ******************** एक वकत ऐसा भी आएगा, मेरा नाम बदनाम शायरो मे लिया जाएगा। महफिले होगीं टूटे दिलो की, वहा पर मेरा लिखा नगमा सुनाया जाएगा। आखों से नीर मुँह मे वाह होगी, तेरे शहर से जब कभी मेरा जनाज़ा जाएगा। मुझे भूलना इतना भी नही आसां, तुम्हे यह बात तेरा आने वाला वक्त बताएगा। तुम मेरी तस्वीर तो जला सकते हो, क्या करोगे जब आईने मे चेहरा नज़र आएगा। मेरी छोड़ो तुम तुम्हारी तुम बताओ, ये मुमकिन हैं मेरे रहते तुम्हे कोई याद आएगा। ये मोहब्बत नही हैं आसां अनुपम, ये किस्सा किसी रोज कही कोई और बताएगा। ये जख़्म हैं दिखता न, ही छुपता हैं, मोहब्बत की हकीकत को मेरे यारों, किसी मोड़ पे बैठा कोई गालिब बताएगा। परिचय :-  अनुपम अनूप "भारत" रीवा मध्यप्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाश...
संग लिखा काँटों में पलना
कविता

संग लिखा काँटों में पलना

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म .प्र.) ******************** फूल तेरी तक़दीर भी क्या है, संग लिखा काँटों में पलना। चढ़ते हो देवों के सर पर, पड़ता शव के साथ भी चलना। हँसी खुशी के मेलों से भी, गले मिला करती तनहाई। तुम बनने जाते वरमाला, जहाँ कहीं बजती शहनाई। सजते हो सेहरे में लेकिन सेज पे तो पड़ता है कुचलना। फूल तेरी तक़दीर भी क्या है, संग लिखा काँटों में पलना। बिखराते हो रंग खुशी के, हाथ तुम्हारे क्या रह जाता। बासंती फागुन जाते ही, पतझड़ सा जीवन ढह जाता। महकाते तुम भी हो चाहते, काँटों वाली डगर बदलना। पर फूल तेरी तक़दीर यही, संग लिखा काँटों में पलना। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ ह...
एक और एक ग्यारह
कविता

एक और एक ग्यारह

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** एक और एक ग्यारह होते ये है गणित का मामला दो और दो चार होते ये है प्यार का मामला नौ और दो ग्यारह होते ये है भागने का मामला एक और दो बारह होते ये हे बजने का मामला एक और एक ग्यारह होते ये है एक पर एक का मामला तीन और पांच आठ होते ये है बड़बोलेपन का मामला दो और पांच साथ होते ये है साथ फेरों का मामला प्यार करने वाले साथ होते ये है दिलों का मामला ऊपर वाला के संग होते ये है भक्ति भाव का मामला सांसों के साथ जब होते ये है जिन्दा रहने का मामला . परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्त...
नीर
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नीर

भारत भूषण पाठक धौनी (झारखंड) ******************** नयनों में नीर तो प्रायश्चित जलाशयों में नीर तो पिपासा तृप्त नीर अम्बर में तो है वर्षण प्रसूनों पर नीर तो ओस है नीर शक्कर में तो चाश्नी है नीर सहसा आए तो आत्मशुद्धि है नीर बिनु जीवन तो निष्प्राण है . परिचय :- भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका (झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास - साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है काव्य प्रतियोगिता में। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...
एक और एक ग्यारह
कविता

एक और एक ग्यारह

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** मेरे देश के सेनाओं में एक और एक ग्यारह का दम एक देश है प्यारा अपना रंग रुप और जाति धरम प्रांत जैसे अलग-अलग है तिरंगा अपना एक है त्योहार भिन्न-भिन्न होते यहाँ और भारत अपना एक है नष्ट कर देंगे भारतीय सेना दुश्मन के फेंके बम मेरे देश के सेनाओं में एक और एक ग्यारह का दम भाषा बोली अलग-अलग है राष्ट्रगान अपना एक है पकवान भिन्न-भिन्न मिलतें यहाँ और भारत अपना एक है यही कहती है सेना हिन्दुस्तानी हँसते हुये हम सब करें करम मेरे देश के सेनाओं में एक और एक ग्यारह का दम . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान से सम्मानित  आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, ...
चंद्रशेखर आज़ाद
कविता

चंद्रशेखर आज़ाद

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** अपना नाम ....... आजाद। पिता का नाम ........ स्वतंत्रता बतलाता था। जेल को, अपना घर कहता था। भारत मां की, जय -जयकार लगाता था। भाबरा की, माटी को अमर कर। उस दिन भारत का, सीना गर्व से फूला था। चंद्रशेखर आज़ाद के साथ, वंदे मातरम्............ भारत मां की जय....... देश का बच्चा-बच्चा बोला था। जलियांवाले बाग की कहानी, फिर ना दोहराई जाएगी। फिरंगी को, देने को गोली.....आज़ाद ने, कसम देश की खाई थी। भारत मां का, जयकारा .......उस समय, जो कोई भी लगाता था। फिरंगी से वो.....तब, बेंत की सजा पाता था। कहकर .......आजाद खुद को भारत मां का सपूत, भारत मां की, जय-जयकार बुलाता था। कोड़ों से छलनी सपूत वो आजादी का सपना, नहीं भूलाता था। अंतिम समय में, झुकने ना दिया सिर, बड़ी शान से, मूछों को ताव लगाता था। हंस कर मौत को गले लगाया था। आज़ाद.... आज़ा...
मेरे ज़रूरी काम
कविता

मेरे ज़रूरी काम

डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी उदयपुर (राजस्थान) ****************** जिस रास्ते जाना नहीं हर राही से उस रास्ते के बारे में पूछता जाता हूँ। मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ। जिस घर का स्थापत्य पसंद नहीं उस घर के दरवाज़े की घंटी बजाता हूँ। मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ। कभी जो मैं करता हूं वह बेहतरीन है वही कोई और करे-मूर्ख है-कह देता हूँ। मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ। मुझे गर्व है अपने पर और अपने ही साथियों पर कोई और हो उसे तो नीचा ही दिखाता हूँ। मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ। मेरे कदमों के निशां पे है जो चलता उसे अपने हाथ पकड कर चलाता हूँ। मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ। और मेरे कदमों के निशां पे जो ना चलता उसकी मंज़िलों कभी खामोश, कभी चिल्लाता हूँ। मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ। मैं कौन हूँ? मैं मैं ही हूँ। लेकिन मैं-मैं न करो ऐसा दुनिया को बताता हूँ। मैं अपनी अहमियत ...