जीवन प्रयोजन
ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)
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जीवन का प्रयोजन क्या है?
यह क्यों है मानव शरीर,
जीवन में जन्म से दुख है,
मृत्यु दुख-
प्रिय सी संयोग बियोग दुख है।
यह जगत दुख है फिर भी प्राणी इस दुख मंदिर को-
ढोता इसे फेंकता नहीं इसकी विनाश की कल्पना से-
सिहर, कांप उठता है फिर नवीन कल्पना करता है!
सृष्टि की प्रारंभ से इस गूढ़ रहस्य को-
जानने समझने यत्न किया है!
करते अभी जा रहे हैं इसमें ज्ञान विज्ञान अभी लगाहै!
फिर भी सूर्य उदित होते हैं शशि कलाये में घटती बढ़ती है!
महासागर गरजता है आंधी फुफकारती है!
तुसारापात हमें ढंढा करता है, आपत जलाता हैं!
यह खेल गजब है जीवन का-
यह खेल नियति क्यों खेलता है?
उसकी गहरी वंदना में-उसे क्या रस मिलता है?
फिर उसे बंधनों में जकडने में क्या आनंद मिलता है?
प्राणियों के करुण क्रंदन से
उसका मन नहीं पसीजता है!
शून्यवाद से लेकर अब तक मानव चिंतन जारी है-
ज...