कोरोना से कर्मयुद्ध
मुकेश सिंह
राँची (झारखंड)
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माना हालात अभी प्रतिकूल है,
रास्तों पर बिछे महामारी के शूल हैं,
घर पर बैठे-बैठे रिश्तों पर जम गई धूल है,
पर ये युद्धकाल है, तू इसमें अवरोध न डाल,
तू योद्धा है, चिंता न कर, होगी जीत न होंगे विफल,
तू बस अपना कर्म कर, घर से बाहर न निकल।
माना आशाओं का सूरज डूबा, अंधकार का रेला है,
ना डर अँधेरी रात से तू, आने वाली प्रभात की बेला है,
तुझसे बँधी हैं उम्मीदें सबकी, सोच मत तू अकेला है,
तू खुद अपना विहान बन, कर दे दस अँधेरे को विफल,
तू बस अपना कर्म कर, घर से बाहर न निकल।
इस विपदा से जीत बस एकमात्र तेरा लक्ष्य हो,
संकल्प कर, अपने मन का धीरज तू कभी न खो,
रण छोड़ने वाले होते हैं कायर, तू तो परमवीर है,
मास्क, सेनिटाइजर, हाथों की धुलाई और सामाजिक दूरी,
ये तुम्हारे तरकश के चार तीर हैं, युद्ध कर तू है सबल,
तू बस अपना कर्म कर, घर से बाहर न निकल।
हम...