Monday, April 28राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

कविता

गुनाह क्या है
कविता

गुनाह क्या है

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** मेरे पैरों में जब भी काँटा चुभा, उस बेदर्द से बस यही मैंने पूछा- बताओ ना तुमने क्यों घायल किया है? कहता नफ़रत का मैंने हलाहल पिया है। जिया हूँ बहुत सियाही रातें, कभी तो पूनम मुझे मिलेगी। मगर कभी ना मुझे लगा था, मेरी ही कली यूँ मुझे छलेगी। अरे ! मैं तो जी भर के तोड़ा गया हूँ, किस्मत के हाथों मरोड़ा गया हूँ। नहीं देख पाया बहारों के सपने, खिज़ा की तरफ ही मोड़ा गया हूँ। इसलिये चुभता और चुभाता हूँ सबको, एहसास उसी दर्द का कराता हूँ सबको। मेरे पास तो है बस घृणा की विरासत, वही बाँटता फिरता रहता हूँ सबको। बाँटकर भी ये नफ़रत ना कम हो सकेगी, रेत सेहरा की भी क्या शबनम हो सकेगी?? एक ही कोंपल,डाल के हम थे साथी, मगर फूल ने मेरी दुनिया भुला दी। मैंने हर पल सजाया,संवारा कली को, भंवरे से प्रेम की लौ उसने जला दी। कहती चुभने लगे हो तुम हर सांस में, और...
समय करता नहीं इंतजार
कविता

समय करता नहीं इंतजार

रमेशचंद्र शर्मा इंदौर मध्य प्रदेश ******************** समय करता नहीं इंतजार ! मानव, थोड़ा सोच विचार !.. समय करता नहीं इंतजार पहियां, हर पल चलता है, जीवन, हर क्षण छलता है, मति, मानव की मरती है, मनमानी वह करती है, समय संचालित संसार !.. समय करता नहीं इंतजार सुख-दुख इसके गहने हैं, हानि लाभ, सबको सहने हैं, दिन-रात, इसका उपक्रम है, मैं - मेरा, सबका संभ्रम है, समय का सौ टका व्यवहार !.. समय करता नहीं इंतजार राजा रंक इसके बल से, बनते मिटते इसके छल से, जीवन मृत्यु समय का बंधन, मोह माया पीड़ा क्रंदन, झूठी सारी मनुहार !.. करता नहीं इंतजार राई को पर्वत कर देता, आंखों में सिंधु भर देता, छल कपट से बचना है, पाप प्रपंच से हटना है, करता सबका संहार !.. समय करता नहीं इंतजार परिचय : रमेशचंद्र शर्मा निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचना आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिन्दी र...
गौरैया
कविता

गौरैया

मनीषा व्यास इंदौर म.प्र. ******************** क्या फिर इस प्रदूषण में मखमल सी हरियाली फैलेगी? फिर इन सीमेंट के जंगलों में कोई गौरैया चेहकेगी ? क्या फिर इस धरा पर बसंत की खुशबू महकेगी? क्या फिर धरा हरी भरी अदाओं से, कवियों की लेखनी बन पाएगी? या धीरे धीरे ये लेखन भी कंक्रीट के जंगल पर निर्भर होगा? क्या आम की अमराइयों की महक से कोयल कूकेगी? फिर असली गुलाबों की महक महकेगी? या कभी जूही की कलियां भी मनमोहक महक मेहकाएंगी। बचा लो इस धरा को प्रदूषण के असर से धरा फिर फूलों की बहार बन जाएगी। धरती में फिर छा जाएगी हरियाली। गौरैया फिर अपने सपनों की उड़ान भरेगी। परिचय :-  मनीषा व्यास (लेखिका संघ) शिक्षा :- एम. फ़िल. (हिन्दी), एम. ए. (हिंदी), विशारद (कंठ संगीत) रुचि :- कविता, लेख, लघुकथा लेखन, पंजाबी पत्रिका सृजन का अनुवाद, रस-रहस्य, बिम्ब (शोध पत्र), मालवा के लघु कथाकारो पर शोध कार्य, कविता, ऐंकर,...
नारी
कविता

नारी

ममता रथ रायपुर ******************** नारी तू मौन है पर तुझमें शब्दों की कमी नहीं भीतर आवाज बहुत है पर बोलती कुछ भी नहीं चाहतें तो बहुत है तेरी पर उम्मीद किसी से करती नहीं चाहे कितने भी दर्द हो दिल में पर दूसरों के सामने अपना दर्द कहती नहीं नारी तू मौन है पर तुझमें शब्दों की कमी नहीं परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
बेटियां
कविता

बेटियां

नम्रता गुप्ता नरसिंहपुर ******************** मै कहानियों की दुनिया की सैर कराने आयी हूं अपने ही एक किरदार को मै आज समझने आयी हूं बेटी बन में आज बेटी की परिभाषा बतलाने आयी हूं कहानी की कोई परी होती है बेटियां नाजुक छुईमुई सी होती है बेटियां जरूरत पड़े तो काली बन संहार करती है बेटियां नया सृजन कर दुनिया बनाती है बेटियां फिर क्यों दुनिया पर ही बोझ कहलाती है बेटियां फूल की कोमल कली सी होती है बेटियां पल-पल अपनी जड़ों को मजबूत करती है बेटियां पापा की राजदुलारी होती है बेटियां मां की परछाई कहलाती है बेटियां वन को उपवन बनाती है बेटियां बहू के रूप में दो कुलों को जोड़ देती है बेटियां मुश्किल वक़्त में सूर्य की किरण होती है बेटियां फिर अपने प्रियतम की अर्धांगिनी बन जाती है बेटियां अम्बर से धारा को रोशन कर देती है बेटियां जब मानव जन्म कर मां कहलाती है बेटियां रातों को अपनी बच्चो पर वारती ...
धूप विसर्जन दिन है गुजरा
कविता

धूप विसर्जन दिन है गुजरा

जितेंद्र परमार समदड़ी- बाङमेर (राजस्थान) ******************** धूप विसर्जन दिन है गुजरा देख निशा होने को आई खग पुनः जो लौटे नीड़ को संध्या ये गगन में छाई अद्भुत अनोखा ये नजारा कुदरत रूप सजाने आई मनभावन ये समय सुहाना चाँद तारे भी संग में लाई कष्ट थकान भरे इस तन को कर्म मुक्ति अब मिलने आई सकल दिवस की एक कामना आंखों में नींद सहसा छाई परिचय :- जितेंद्र परमार निवासी : समदड़ी- बाङमेर (राजस्थान) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या ग...
अरुणोदय
कविता

अरुणोदय

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** लुप्त हो गया तिमिर घनघोर! हुआ अब अरुणोदय चहुँ ओर! भूमि से अंबर तक हैं रंग व्याप्त है जीवन के शुभ ढंग नाद ने किया मौन को भंग उड़ रहे अगणित विविध विहंग दृश्य परिवर्तन है चितचोर। हुआ अब अरुणोदय चहुँ ओर। रश्मियाँ रवि की आईं हैं दिशाओं में सब छाईं हैं भूमिगत हुआ कहीं पर तम उजाला अनुपम लाईं हैं प्रकाशित हुए धरा के छोर! हुआ अब अरुणोदय चहुँ ओर। जागरण के गुंजित हैं गीत हवा में है अद्भुत संगीत जगी है जीवन की नव प्रीत हुई है आशाओं की जीत नृत्यरत है सबके मन मोर! हुआ अब अरुणोदय चहुँ ओर! हुए प्रारंभ कई कर्तव्य दृष्टिगत हैं आयोजन भव्य सभी में हैं सहयोगी जन पुरातन हैं कुछ तो कुछ नव्य हुए जड़-चेतन भावविभोर! हुआ अब अरुणोदय चहुँ ओर! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•...
तुम्हीं ने
कविता

तुम्हीं ने

गीता शर्मा सुंदरनगर, रायपुर (छ.ग.) ******************** मुझी से मुझी को चुराया तुम्हीं ने अँगारों पै चलना सिखाया तुम्हीं ने सनी धूल से थे किताबों के पन्ने उन्हें फूल जैसा सजाया तुम्हीं ने नहीं प्रेम का ढाई आखर पढ़ा था वही हँसके मुझको पढ़ाया तुम्हीं ने सजल होती जाती हूँ मैं धीरे-धीरे कमल‌ इस हृदय का खिलाया तुम्हीं ने बनो मत, चलो पास आने की सोचो बहुत यों ही अब तक सताया तुम्हीं ने परिचय :- गीता शर्मा (विश्व कीर्तिमान धारक) जन्मतिथि : १६/८/ जन्मस्थान : रायपुर (छ.ग.) पति : श्री संजीव शर्मा निवासी : सुंदरनगर, रायपुर (छ.ग.) शिक्षा : पी.जी, (विद्यावाच्पति, विद्यासागर ) कार्य : स्वतंत्र लेखन प्रकाशन : चार, तीन शासन से प्रकाशित सम्मान : राज्यस्तरीय. २५, राष्ट्र स्तरीय. २३, अंतराष्ट्रीय..२ आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा...
अधरों पर
कविता

अधरों पर

जय खीचड़ मोडायत, बिकानेर (राजस्थान) ******************** अधरों पर बुंदे छितरादे अंबर थोड़ा नेह बरसादे!! सुख रही पेड़ो की डाली पंछियों के घर फिरसे सजादे !! धरती पुत्र करे पुकार प्रेम बीज से खेत जुता!दे !! परिचय :-  जय खीचड़ स्नातकोत्तर : फाइनेशियल मैनेजमेंट एम.कॉम निवासी : मोडायत, बिकानेर (राजस्थान) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें...🙏🏻 आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे ...
बर्बादी की डगर
कविता

बर्बादी की डगर

संजय जैन मुंबई ******************** किताबो में पढ़ कर, रेडियो में सुन कर। चल चित्र को देखकर, कहानी बड़ेबूड़ो से सुनकर। मोहब्बत करने का मन, दिल में पनापने लगा। और लगा बैठे दिल , पड़ोसी की लड़की से।। अब न दिल धड़कता है, न सांसे ही चलती है। ये कमवक्त मोहब्बत भी, क्या बला होती है। जो न जीने देती है, न ही मरने देती है। चलते फिरते इन्सान को, एक लाश बना देती है।। मोहब्बत के चक्कर में, न जाने कितने लूट गये। और कितने खुदा को, पहले ही प्यारे हो गये। जिसे मिल गई मोहब्बत, वो आबाद हो गया। नही तो जिंदा एक, लाश बनके राह गया।। किसी को इसने पागल, बना कर छोड़ दिया। तो किसीको घायाल करके, बीच मजधार में छोड़ दिया। इसलिए अब मोहब्बत के, नाम से लोग घबराते है। न खुद करते है और, न किसीको सलाह देते है।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में प...
दो जून की रोटी
कविता

दो जून की रोटी

दीपक कानोड़िया इंदौर मध्य प्रदेश ******************** दो जून की रोटी खाने को बेबस बैठी है मानवता भांति-भांति के लोग यहां जाने कब आएगी समता कुछ लोलुप सत्ता के लोभी कुछ राजनीति रचते धोबी कुछ है विद्वान प्रकांड यहां कुछ निर्धन से धनवान यहां कितना भी धैर्य रखें जनता जाने कब आएगी समता कुछ को चाहिए आज़ादी रुकती नहीं अब आबादी दर दर पे घूमते हैं गांधी फिर भी नहीं थमती आंधी कर्तव्य निभाने से पहले हक मांगने निकली जनता जाने कब आएगी समता जिस तरह कीट पतंगे भी वृक्षों को काट के खा जाते दीमक बनकर दीवारों पर कण-कण को चाट के खा जाते बस वैसे ही अब मानव है या कह दो सच्चे दानव है ख़ुद को ही काट रही जनता जाने कब आएगी समता दो जून की रोटी खाने को बेबस बैठी है मानवता भांति भांति के लोग यहां जाने कब आएगी समता परिचय :- दीपक कानोड़िया निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी...
क्षण फुरसत के है नहीं
कविता

क्षण फुरसत के है नहीं

रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) ******************** विषय :- आधुनिक परिवेश में भागता इंसान धन, वैभव पीछे भाग रहा है इंसान सभी पल दो पल भी क्षण फुरसत के है नहीं जब देखो आँखें बुनते रहते हैं स्वप्न सिसकती आहें खो रहे हैं अपनत्व तरसे बच्चे पाने को ममता भरी माँ के आँचल का प्यार दिन, महीने हैं गुजर जाते दे न पाते पिता अपना असीम दुलार वृद्ध चक्षु खोजते हैं रहते शीतल वटवृक्ष छाया हृदय है शून्य सभी हर तरफ बढ गए तार वृक्ष साया अकेलापन समा रहा है जिंदगी में रौनक रही नहीं अब बंदगी में ईर्ष्या, द्वेष का जाल बिछा है चहुँ दिशा फंसाती ही रही है सदैव काली निशा समझ न पाता फिर भी चैन की नींदिया न ले पाता कभी। धन, वैभव पीछे भाग रहा इंसान सभी पल दो पल भी क्षण फुरसत के है नहीं। परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी ...
चाँदनी रात
कविता

चाँदनी रात

अर्चना मंडलोई इंदौर म.प्र. ******************** (हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता "प्रीत की पाती" में प्रेषित कविता) जैसे ही चाँद पर ठहरती है नजर यू ही याद आ जाते हो तुम चाँद के चमकिले उजास में आसमान की सतरंगी परिधि के बीच जैसे ही तुम्हारा अक्स नजर आने लगता है तब लगता है चाँद और मेरे बीच एक अनकहा रिश्ता है। उसके सौन्दर्य मे मै अपने सपनो को निहारती हूँ मन के आकाश मे घुमते मेरी अधूरी कामनाओं के बादल मेरी सपनीली आँखों में मधुर स्मृतियों के चित्र बनाते और क्षण भर में चाँदनी की तरह फिर बिखर जाते।। परिचय : इंदौर निवासी अर्चना मंडलोई शिक्षिका हैं आप एम.ए. हिन्दी साहित्य एवं आप एम.फिल. पी.एच.डी रजीस्टर्ड हैं, आपने विभिन्न विधाओं में लेखन, सामाजिक पत्रिका का संपादन व मालवी नाट्य मंचन किया है, आप अनेक सामाजिक व साहित्यिक संस्थाओं में सदस्य हैं व सामाजिक गतिविधिय...
प्रेम की गली में
कविता

प्रेम की गली में

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** (हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता "प्रीत की पाती" में प्रेषित कविता) प्रेम की गली में ये उदारता है क्यों ? ... बार-बार दिल तुझे पुकारता है क्यों ?... तू नहीं तो तेरा एहसास है मुझे, ऐसा लगे जैसे आस-पास है मुझे।-२ तेरे-मेरे चित्र नयन, उतारता है क्यों ? बार-बार दिल तुझे पुकारता है क्यों ? सच मानिए जब से आप मिल गए। मन मधुबन में कई पुष्प खिल गए।-२ अंग-अंग दीप अब उजारता है क्यों ? बार-बार दिल तुझे पुकारता है क्यों ? मीरा श्याम रंग में दीवानी हो गई। भक्ति अनुराग की कहानी हो गई।-२ गरल में सुधा, नेह उतारता है क्यों ? बार-बार दिल तुझे पुकारता है क्यों ? राधा व्याकुल हुई घनश्याम आ गए। शबरी के जूठे बेर राम खा गए । -२ ईश्वर भी प्रेम बस हारता है क्यों ? बार-बार दिल तुझे पुकारता है क्योँ ? परिचय :-...
चीत्कार उठा ये हृदय मेरा
कविता

चीत्कार उठा ये हृदय मेरा

डॉ. अर्पणा शर्मा उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** चीत्कार उठा ये हृदय मेरा अश्रु नही समाते है, इतने निर्दयी, इतने पापी कैसे इंसान कहाते है एक निर्बल ने थामा कसकर जिसको वो रक्षक समझा था उसने ही झोंक दिया पशुओं में रक्षक नही वो भक्षक था पशुओं में भी अपनेपन के हम भाव उजागर पाते है इतने निर्दयी, इतने पापी कैसे इंसान कहाते है... कैसे सभ्य समाज कहूँ मैं दुष्टों की इस टोली को जान न पाया जो साधु की निर्बल मीठी बोली को जो थे दुनिया का दुख हरते वो ही दुख अब पाते है... इतने निर्दयी, इतने पापी कैसे इंसान कहाते है.. भीड़ भरी दुष्टों की थी इंसान कही न नज़र आया कुछ ही पल में अलग हो गई प्राणों से झरझर काया एक निरिह प्राणी को सब मिल मिट्टी में मिलते है.... इतने निर्दयी, इतने पापी कैसे इंसान कहाते है.... पल-पल जिसने है प्रभु मेरे केवल तेरा ही नाम जपा सदाचार और सद्व्यवहार का जिसने था संसार रचा क...
हे प्रियतम
कविता

हे प्रियतम

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** (हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित कविता) हे प्रियतम कैसे व्यक्त करू.... अपने मन के भावों को वो ह्रदय में उठते वीणा के झंकारों को.... जानती हूं एक हसीन सपना हो तुम, जो कभी मिलकर भी मिल न सको, वो सबसे प्यारा अपना हो तुम...। लेकिन इस अतृप्त ह्रदय को अब समझाना है मुश्किल...। वो तुमसे हुई छोटी सी मुलाकात वो अपना सा स्पर्श, वो चिरपरिचित सी मुस्कान और तुम्हारा यह कहना कि मैं हु न तुम्हारे साथ हमेशा, इतना सकूँ दे गया कि तुम्हारे साथ न होने का सब दर्द भी ले गया, अब तो बस, इतना ही है कहना की इस मुलाकात के सहारे अब जीवन भर है जीना। और तुम्हारी ही होकर रहना.....। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक...
प्रकृति  का कहर
कविता

प्रकृति का कहर

शुभा शुक्ला 'निशा' रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** आधुनिक परिवेश में प्रदूषण हमारी प्रमुख समस्या पर्यावरण सूरक्षित नहीं, नहीं सुरक्षित देश की प्राकृतिकता एक ओर तो चीखते रहते, हम सब पर एहसान जता कर प्लास्टिक का विरोध दिखाते जहां तहां जुलूस निकाल कर हर सरकार आती जाती अपने जलवे बिखेर के जाती पर जो आवश्यक तत्व हैं उनपर उनकी नजर ना जाती जनता भी ना अपनाये पर्यावरण के स्वस्थ उपाय स्वयं तो कुछ कर नहीं पाते एक दूजे पे उंगली उठाए सरकार के साथ हमें भी स्वच्छता का मूलमंत्र याद रखना होगा गीला कचरा सूखा कचरा अलग रखने का सतर्कता से पालन करना होगा पर्यावरण को बढ़ाने दोस्तो एक एक पेड़ लगाना है रास्ते गलियां घर चौबारो में शीतल बयार बहाना हैं प्लास्टिक की मोहमाया को आज भी हम सब तज नहीं पाये यदा कदा डिस्पोज़ल कैरी बैग प्लास्टिक के अपने काम ही आएं जो हम ध्यान ना रख पाए तो भुगतान हमे ही करना ...
कैसी है ये जिद तुम्हारी
कविता

कैसी है ये जिद तुम्हारी

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ******************** उम्र के इस पड़ाव पर मैं भूल गयी थी सब पढ़ा लिखा अब कैसी है ये जिद तुम्हारी कलम देकर कहते हो थोड़ा लिखकर तो दिखा! समझता नही कोई एहसासों को सोचकर यही लिख-लिखकर कभी मन के पन्नों से कभी कापी के पन्नों से कितनी बार देती हूँ मिटा! जिंदगी की उलझनों को एक उम्र न सुलझा पाई कैसी है जिद यह तुम्हारी कलम कापी देकर कहते हो कुछ तो मुझको तू सिखा! लिखे थे जो कभी मैं ने रफ कापी के पन्नों में कुछ टेड़े मेड़े शब्द भाव अपने कैसी है ये जिद तुम्हारी कहते हो उन पन्नों को अब मुझे दिखा! परिचय :- मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां...
मन ठहरा मन बहता
कविता

मन ठहरा मन बहता

शैलेन्द्र चेलक पेंडरवानी, बालोद, छत्तीसगढ़ ******************** टिक न सके ये क्षण भर, मन चंचल मन बावरा, राममय शांत कभी, कभी रासमय सांवरा, बहे तो सलिल सरिता- जो उद्यत मिलने सागर को, स्वच्छन्दता सा वेग धारे, तोड़ बंधनों के गागर को, पर संघर्षो में चंचलता, व्याकुलता में हो परणीत, खो देता विस्तार स्वयं का, भूलकर जीवन के गीत, बहता मन ठहर जाता , अवसाद लिए, प्रमाद लिए, घिर जाता निराशाओं में, अंतर्द्वद्व का नाद लिए, सुख-दुख कुछ नही रे बंदे, मन की गति, मन का कहना, जीवन चलता रहता पल-पल, तुम धारा संग सीखो बहना, मन आतम मिले तो राह चले ईश्वर की, न मिले तो ये कहता, भाव उद्दीग्नो में बहे चले, रे मन ठहरा रे मन बहता, परिचय :- शैलेन्द्र चेलक निवासी : पेंडरवानी, बालोद, छत्तीसगढ़ आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने ...
घर की छत
कविता

घर की छत

रोहित कुमार विश्नोई भीलवाड़ा, राजस्थान ******************** घर की छत आज भी पुराने दिनों को पुकारती है मुण्डेर पर रोज बैठ कागे का वो कांव-कांव करना, सारे पक्षियों के लिए सुबह रोज परिण्डे पानी के भरना। मक्का-बाजरे का छत की फर्श पर वो बिखरना, सैकड़ों कबूतरों के साथ दो-तीन तोतों का छत पर मस्ती से फिरना। गोरैयों की फौज की जगह एकदम साफ फर्श छत को संवारती है, घर की छत आज भी पुराने दिनों को पुकारती है।। परिचय :- रोहित कुमार विश्नोई स्नातकोत्तर - हिन्दी विषय (राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा-उत्तीर्ण) स्नातक - कला संकाय (हिन्दी, इतिहास, राजनीतिक विज्ञान) स्नातक - अभियान्त्रिकि (यान्त्रिकि शाखा) निवासी - पुर, भीलवाड़ा, राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाश...
सीता बनना सौभाग्य कहां
कविता

सीता बनना सौभाग्य कहां

अर्पणा तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सीता बनना सौभाग्य कहां अगणित तुमको शूल मिले, वनवासी तो राम रहे पर, तुमको भी कब फूल मिले .. आदर्श बनीं तुम जग में, पतिव्रत धर्म निभाया था, त्याग समर्पण का पथ तुमने, जग को दिखलाया था, जनक सुता होकर भी तुम, महलों में कब रुक पाई थी, आदर्शो की राह दिखाने, पुण्य धरा पर आई थी, राम प्रिया से मानव को, कितने जीवन मूल्य मिले, वनवासी तो राम रहे पर, तुमको भी कब फूल मिले... अग्नि परीक्षा देकर तुम, खुद को निर्दोष बताती हो, परीक्षा स्वीकार करे ना जग तो धरती बीच समाती हो, त्रेता युग की उस अग्नि परीक्षा को कलयुग में ऐसा मोड़ दिया, चरित्र शुद्धता से मानव ने, फिर उसको जोड़ दिया, राम के आदर्शो को भुला नर, नारी सीता तुल्य मिले, वनवासी तो राम रहे पर, तुमको भी कब फूल मिले.... माफ़ करो तुम जनक सुता, ये प्रश्न बड़ा बैचेन किए, अग्नि परीक्षा एक कसौटी हो, न...
स्वर्ग सी धरती
कविता

स्वर्ग सी धरती

डॉ. भवानी प्रधान रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** धरती ओढे हरियाली चुनर मनमोहक लगे सुन्दर अपार मंद-मंद मुस्कुराई धरा रंग बिरंगे फूलों की डाली वृक्षों का हो सघन विस्तार होले -होले चले शीतल बयार प्रकृति की सौंदर्य निखरे आज खिल उठे वन उपवन आज अलबेली अपनी वसुंधरा रानी सरसों फुले पीली धानी खेतों में लहराये फसलें सारी हरियाली प्रतिक खुशहाली का मद में भरकर झूम रही उपवन की डाली -डाली वृक्षों पर खग कलरव तान नाचे वन में मोर पंख पसार पीहू -पीहू पपीहा करें आज आम्र में कोयलिया कूक रहीं मृग विचारते मधुबन में आज सरिता की निर्मल जल धारा मेघ मिलाते धरती अम्बर कण-कण नव जीवन स्पंदित श्यामल तन पर सुमन सुगन्धित अलबेली अनुपम अतिसुन्दर लगती चराचर आनंद की अनुभूति पर्यावरण लगे सुरभित मनभावन धरा की मिट्टी हो उपजाऊ छलकाये प्रकृति प्रेम गगरिया जीव जगत में तब हो उजियारा . परिचय :- डॉ. भवानी प...
नि:शब्द
कविता

नि:शब्द

डॉ. यशुकृति हजारे भंडारा (महाराष्ट्र) ******************** मैं चल पड़ी हूँ उस पथ पर डगमगाते है पग मेरे निराशाओं में घिरते जाती, दु: ख और सुख की अनुभूतियों में मैं खो जाती हूँ निहारू निरंतर भावों को, शब्द न जाने कहाँ खो गये नि:शब्द हुई मेरी कवित। मैं हुई एकांकी प्यासे हुए मेरे भाव बंद कमरे में, जिंदगी ठहर सी गई। इंद्रधनुष के रंगों को देखकर मैं समेटना चाहती हूं सतरंगी इंद्रधनुष के रंगों को जीवन में ढालना चाहती हूंँ तुम्हारे ही रंग में रंगना चाहती हूं फिर भी भाव न बनते हृदय प्रफुल्लित होता निरंतर, खिल उठता रोम-रोम, फिर भी भाव न बनते। कल्पनाओं की उड़ान नहीं बनती, यथार्थ में जीने की आदत हो गई है धुंधले दिखाई देते हैं सब कल्पनाओं के चित्र, जिंदगी बदरंग सी हो गई है क्या उषा, क्या निशा, कल्पनाओं की उड़ान, अब तमस में सिमट कर रह गई है... परिचय :- डॉ. यशुकृति हजारे निवासी : भंडारा (महाराष्ट...
जीवन जीना एक कला है
कविता

जीवन जीना एक कला है

डाॅ. राज सेन भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** अनवरत पथ पे जो चला है। जीवन जीना एक कला है।। रास्ते हैं बाधा आएगी जरूर। रहे हर हाल में खुशी भरपूर।। हौसलों से हर संकट टला है। जीवन जीना एक कला है।। अच्छे के साथ अच्छा रहना। बुरे का भी हर बर्ताव सहना।। माफ करें जिसने भी छला है। जीवन जीना एक कला है।। जीवन नाटक हम कलाकार हैं। निभायें जो भी मिला किरदार है।। ना कोई बुरा ना कोई भला है। जीवन जीना एक कला है।। सबकी अपनी अपनी कहानी। कहीं आग है तो कहीं है पानी।। वक्त आने पे टलती हर बला है। जीवन जीना एक कला है।। 'राज' खुश रहकर चलता चल। दिव्य ज्योति बनकर सदा जल।। प्रभु-प्रेम की पलकों में पला है। जीवन जीना एक कला है।। परिचय : डाॅ. राज सेन शिक्षा : नेट, विद्यावाचस्पति, तीन भाषाओं सहित चार विषयों में स्नातकोत्तर, अन्तर्राष्ट्रीय-राष्ट्रीय स्तर पर संत काव्य की पवित्रता के पक्षधर, सम्प्रति :...
हाँ आग लग चुकी है
कविता

हाँ आग लग चुकी है

पवन मकवाना (हिन्दी रक्षक)  इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** हाँ आग लग चुकी है इक अंधे कुंए में .... करो जल्दी, और निकाल लो रखा था/जो कुछ सहेजकर/इस कुंए में कुंआ जिसमे कुछ ना देता/है दिखाई थी जिंदगी भर की कमाई, कुछ दुःख जो बांटे थे कभी/दोस्तों से अपने कुछ पुण्य जो कमाया था/दया करके किसी पर कुछ सुख जो पाया था/बनाकर किसी को अपना कुछ ग़म जो दिए थे/किसी ने सहेजकर रखने को हाँ जल्दी करो आग लग चुकी है .... और भी है बहुत कुछ इस अंधे कुंए में, अपनों का गुस्सा/माता की ममता/पिता का प्यार भाई बहनों का खार/दादी का दुलार जवानी का खुमार हाँ निकाल लो सब इससे पहले की सब ख़त्म हो जाए इस संसार के छल-कपट रूपी आग में मारा-मारी/जागीरदारी/और दमन में उन लोगों के जो किसी को पहचानते नहीं जिनका काम सिर्फ जान लेना/लूटना नोंचना है हाँ जल्दी करो आग लग चुकी है .... बचा लो अपनी उजड़ी यादें और अपना संसार इसके प...