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कविता

भारत की ललकार
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भारत की ललकार

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** खून खौलता रणवीरों का, आँख दिखाना बंद करो। सबा करोड़ भारतीय हैं हम, जयचंदों तुम डरा करो। बाँसठ वाला देश नहीं है, बच्चा बच्चा राणा है। अवसर पाते मिट जायेंगे, प्रण हम सबने पाला है। खुद में तू महामारी है, चौतरफ़ा है घिरा हुआ। श्वान सरीखे भौंकों मत, मन से तू है मरा हुआ। पिल्ला भी तो भौंक रहा है, भूख उसे अधमरा किये है। दुनिया भर के चाट कटोरे, मुँह वो अपना सड़ा किये है। सिय के पीहर वालो तुम, भूल गए उपकारों को। रामचंद्र की शक्ति को, और धनुष बाण प्रहारों को। शिव की कृपा नमो की ताक़त भूल नहीं तुम पाओगे। जब भी संकट तुम पर आये, हर जगह हमीं को पाओगे। बिजू की ललकार यही है, नव भारत से डरा करो। बदल चुका है देश हमारा, नहीं बखेड़ा खड़ा करो।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की ...
सूखती घास
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सूखती घास

वचन मेघ चरली, जालोर (राजस्थान) ******************** अरे! ओ घमंड़ी बादल। तू हो तो न गया पागल। सब लगाएं तेरी आस। देखो ये सूखती घास।। तू सबसे निराला है तेरा वर्ण काला है जीवन का रत्न खास। देखो ये सूखती घास।। मेघ जलद घन तेरे नाम बिन तेरे बने न कोई काम तेरी अनुपस्थिति सबको अहसास। देखो ये सूखती घास।। बहुत बरसे तो अतिवृष्टि कम बरसे तो अनावृष्टि दोनों से होता विनाश। ये देखो सूखती घास।। जोर जोर से गरजता है फिर भी नहीं बरसता है लोगों का टूटता विश्वास। देखो ये सूखती घास।। महीना जब आता है सावन का लगता बहुत मनभावन का साजन नही सजनी के पास। देखो ये सूखती घास।। सबको तू तरसाता है बहुत कम जल बरसाता है मिटती नही इससे प्यास। देखो ये सूखती घास।। जब सावन ही जाए सूखा कैसे रहें कोई प्यासा और भूखा करने लगे लोग प्रवास। देखो ये सूखती घास।। जिस जिस ने बीज बोएं बाद में पछताएं और रोएं फसलो का होता हृास। देखो ये ...
वह यादें
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वह यादें

दीपाली शुक्ला कसारडीह दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** वह यादें....... ठहरी हुई है रफ़्तार आज सामने वाली सड़क में, पर वह तो मुझे उन गहराइयों से मिलने बुलाती है, वह यादें समंदर से बनी है या समन्दर यादों से पता नहीं, उथल पुथल तो इसलिए मची है कि वह जरिया किसे बनाती है कभी तहरीर की नाव मुझे मंज़िलों तक पहुंचाती है, तो कभी तस्वीरों की उड़ान सीधे वहां छोड़ जाती है, कभी पतंगों के धागे के साथ चढ़ जाती हूँ, तो कभी आंसुओं की धार में ही दूर बह जाती हूँ, कभी धुल भरी साईकल स्कूल छोड़ने जाती है, कभी मिटटी की खुश्बू कागज के नाव बनाती है, कभी वो गुड़िया उन गर्मियों में ले जाती है, तो कभी गर्मियाँ उन खिलौनों की बात बताती है, कभी पुरानी किताब के अन्दर से दुनिया पाती हूँ, कभी उसके भीतर सालों बिताकर घंटों में लौट आती हूँ, कभी उन यादों को मुझ जैसा पाती हूँ, तो कभी उसका जादुई ताज पहन कायनात से खो जाती हूँ...
मैं ही मैं हूं
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मैं ही मैं हूं

जितेंद्र शिवहरे महू, इंदौर ******************** मैं महान हूं मुझे समझना होगा तुम्हें अपने अभिमान को परे रख मेरी हर बात सुनो तुम तुम क्या हो? मेरे आगे तुम्हारी कोई अस्तित्व नहीं मेरे आगे मेरी धन-वैभव-संपदा को देखो तुम्हारे पास भी होगा सबकुछ किन्तु मेरे जितना नहीं इन प्रसाधन की गुणवत्ता और मात्रा तुमसे कहीं अधिक है मेरे संसाधन आलौकिक है इन्हें साष्टांग प्रणाम करो मेरा घर, घर नहीं एक महल है तुम्हारे पास भी होगा किन्तु मेरे जितना भव्य नहीं तुम्हारी राय का कोई मुल्य नहीं तुम्हारी में कभी नहीं सुनूंगा मेरा ज्ञान सर्वज्ञ है तुम जानते ही कितना हो? तुम्हारा ज्ञान शुन्य है मेरे आगे मेरी महत्ता सार्वभौमिक है तुम नगण्य हो तुम शून्य हो और मैं अनंत मेरी संतान ही संसार का कल्याण करेगी क्योंकी वो मेरा अंश है इसलिए वो भी महान है उसका किसी से कोई मुकाबला नहीं वो सर्वशक्तिमान है मेरी तरह वह भी प्रार्थनीय...
फिर आगोश में तुमको मिलेगी
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फिर आगोश में तुमको मिलेगी

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** धुआँ-धुआँ हर तरफ धुआँ, किस ग़म ने यूँ तुम्हें छुआ। अंधियारे में सिमट गये तुम, नशे की सोहबत बना धुआँ। मत डूबो स्याह समंदर में, बस टूट गया दिल इसी बहाने। प्रखर रश्मियाँ आ बैठी हैं, शिविर तिमिर का दूर हटाने। इस धुयें की गर्त को अब तो नकारो, धूप फिर आगोश में तुमको मिलेगी। भले ना पथ अनुकूल मिले, पर आशा के तो फूल खिलें। धूल धूसरित स्वेद लपेटे, अब कितने भी शूल मिलें। ये सफ़र ऐसा कि जिसमें, खुद का चलना बड़ा जरूरी। अपने पास ही तो जाना है, खुद से ही कम करना दूरी। तुम भी थोड़ा इसी पंथ की बाट निहारो, धूप फिर आगोश में तुमको मिलेगी। यह अनुभूति बड़ी अनूठी, यूँ ही पास नहीं आयेगी। पहले ये तुम्हें छकायेगी, कदम-कदम अजमायेगी। वीतराग करने को प्रेरित अंतर्मन अनल जलायेगी। फिर देगी वह अपनी प्रतीति, और तुमको गले लगायेगी। तुम मन से तो उसका नाम पुकारो, धूप फ...
अपने हुए पराये
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अपने हुए पराये

डॉ. प्रतिमा विश्वकर्मा 'मौली' आमानाका कोटा रायपुर (छत्तीसगढ) ********************** जी भर के देख भी ना पाये प्यार की इन्तहा क्या सुनाये रहे मझधार साहिल ना पाये नाखुदा ने खूब याराने निभाये तूफ़ान दिल में इतने दबाये जलजले बने अपने हमसाये चले साथ कभी मिल न पाये तासीर दो किनारों सी लाये सितम गैरों के क्या बताये जब अपने हुए हैं सब पराये .... . परिचय :-  डाँ. प्रतिमा विश्वकर्मा 'मौली' जन्म : २० अप्रैल माता : श्रीमिती रामदुलारी विश्वकर्मा पिता : श्री रामकिशोर विश्वकर्मा निवासी : आमानाका कोटा रायपुर (छत्तीसगढ) शिक्षा : ऑनर्स डिप्लोमा इन कंप्यूटर एप्लीकेशन (एक वर्षीय कंप्यूटर डिप्लोमा) बी. एड., एम. ए.(भूगोल), एम. फिल. (नगरीय भूगोल), पी-एच. डी.(कृषि भूगोल)। प्रकाशन : राष्ट्रीय एवं अंतरास्ट्रीय शोध-पत्रिकाओं एवं पुस्तको में शोध-पत्रों का प्रकाशन, जनसंदेश समाचार पत्र मध्यप्रदेश, दैनिक भास्कर , ...
चल मेरे साथी
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चल मेरे साथी

संजय कुमार साहू जिला बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** चल मेरे साथी, दुनिया की सैर करते है, मोहब्बत की इस दुनिया में मिटाते सारे बैर चलते हैं, नवजीवन के एहसासों में, विश्वबन्धुत्व को पसारने अपने पैर देते हैं ।। चल मेरे साथी दुनिया की सैर करते है....... शाहजहां ने जैसा ताजमहल बनाया, अपनी मोहब्बत दीवारों पर लिखवाया , कुछ ऐसा ही हम करने चलते है , जीवन के महल में संगमरमर रूपी भाईचारा साथ लेकर चलते हैं।। चल मेरे साथी दुनिया की सैर करते हैं... चलो देखे सुंदरवन , पशु पक्षी के निरव रुदन, इंसान नहीं तो जानवर से ही कुछ सीख लेने चलते है मधुर मिठास हो इस जीवन में, बीज ऐसा अंकुरित करते चलते है।। चल मेरे साथी दुनिया की सैर करते हैं.... देखते है विशाल हिमालय को, अपने गर्भ में कईयों जीवन पालता है, काले, भयंकर मेघ के आगे छाती ताने खड़ा रहता है, दुनिया को कहता सीख मुझसे सभी परिस्थितियों में खड़...
अपनी जड़ें खोदते हैं
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अपनी जड़ें खोदते हैं

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** समर्पित- अंधी पश्चात्य संस्कृति के अश्व पर आरूढ़ भारतीय परिवेश को। है वर्तमान की यही वेदना मानव से मानवता दूर हुई। अनुभव में दृष्टिभूत यही की आज सभ्यता ढेर हुई।। कल संम्पत्ति थे मात पिता उनकी सेवा ही प्यारी। और आज दे रहा बेटा है अपने ही पता की सुपारी।। पतियों से ज्यादा बाॅयफ्रेण्ड अब पत्नी जी को भाते हैं। पत्नी की साड़ी से अच्छी गर्लफेण्ड के वस्त्र लुभाते हैं।। बस कुछ पैसों का आ जाना घर में कुत्ते पल जाना है। कुछ बुरा तो नहीं पर इसपर काहेका उतराना है? इस फोरव्हिलर की दुनिया में साइकल का कहां ठिकाना है? भूले भक्ति अरु दान पुण्य तीरथ में खूब उड़ाना है।। रोगों से छुब्ध देह किंतु मौजों में समय बिताना है। असमय मृत्यु की ओर बढ़े पर चुभता पूर्व जमाना है।। पैदल चलने वाला तो अपनी किस्मत को गरियाता है! क्योंकि मित्रों और सखियों से वह व्यंग्य बाण ह...
मैं और हम
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मैं और हम

उषा शर्मा "मन" बाड़ा पदमपुरा (जयपुर) ******************** मैं और हम में बस इतना फर्क है, मैं अहम् को अपनाता है और हम अहम् को धिक्कारता है। मैं और हम में बस इतना फर्क है, मैं अपनेपन में जीवन चाहता है और हम अपनापन में जीवन देखता है। मैं और हम में बस इतना फर्क है, मैं संकीर्णता में सोचता है और हम व्यापकता की ओर बढ़ता है। मैं और हम में बस इतना फर्क है, मैं स्वयं के लिए जीना चाहता है और हम अपनों के लिए जीवन मांगता है। मैं और हम में बस इतना फर्क है, मैं को जानने वाला कोई नहीं रहता और हम में पूरा जगत् समा सकता है। मैं और हम में बस इतना फर्क है, मैं स्वयं से बंधे रहना चाहता है और हम सबके संग बसना चाहता है। . परिचय :- उषा शर्मा "मन" शिक्षा : एम.ए. व बी.एड़. निवासी : बाड़ा पदमपुरा, तह.चाकसू (जयपुर) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्र...
वक़्त
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वक़्त

आकाश प्रजापति मोडासा, अरवल्ली (गुजरात) ******************** जीवन में सच्चाइयों दिखलाता है वक़्त। दुःखों में भी सुखों का और सुखों में भी दु:खों का अर्थ समझाता है वक़्त।। वक़्त की कोई सीमा नहीं होती। कोई आये या जाये उसे किसी की परवाह नहीं होती।। वो तो अपने आप में ही एक पहेली हैं। जान जाओ तो ठीक है वरना सबकी सहेली हैं।। वक़्त इंसान को यह सिखलाता हैं। अपना काम वक़्त पर कर लो, बाद में तू क्यों पछताता हैं।। वक़्त और कुदरत का तो पुराना नाता हैं। दोनों कब आये, कब गये कौन जान पाया हैं।। वक़्त पर अभी तक कोई पाबंदी नहीं लगा पाया हैं। जीसने भी यह कोशिश की है उसने अपनी मुश्किलों को बुलाया हैं।। परिचय :- आकाश कल्याण सिंह प्रजापति निवासी : मोडासा, जिला अरवल्ली, (गुजरात) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशि...
जिंदगी
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जिंदगी

सौरभ पांडे सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** सोच कर बैठ जाती है आंखें देख उसे, बातों बातों खुश हो जाता दिल सोच कर उसे। वक्त नहीं खराब किस्मत मेरी है खराब, शायद दिल बद्दुआ ना दे इसलिए पी लेता हूं शराब। पत्थर से टकरा जाता है सिर मेरा, दोष किसी और को क्यों दूं जो नहीं है अपना। क्या चाहती हो जिंदगी मुझे तुम बता दे, समय नहीं मेरे पास समय से पहले समझा दे। दुख के आंसू पी जाएंगे, मौत आने से पहले, मुझे कोई दर्द नहीं होगा तेरे जाने के बाद। . परिचय :- सौरभ पांडे शिक्षा : बी टेक एग्रीकल्चर के साथ योगा में डिप्लोमा निवासी : सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : सिंचाई विभाग प्रकाशन : बालहंस सुमन सौरभ जोश जागरण नंदन आदि पत्रिकाओं में अपने लेख के साथ-साथ समाज सेवा के साथ विभिन्न अवार्ड एवं सम्मान प्राप्त शपथ : मेरे द्वारा लिखी गजल पूर्णता अप्रकाशित है एवं सभी जानकारी पूर्णता सत्य है अ...
आंसू
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आंसू

अर्पणा तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नयनों का श्रंगार हुए हैं जब, खुशियों का संदेश सुनाते हैं। दृग कोरो का भार हुए हैं जब, व्यथा हृदय की बतलाते हैं। झरते है मोती बन कर नैनो से, जाने कितने शोक मिटाते हैं। मन की सीपी के मोती है जो, यदा कदा अखियों में लहराते है। पीड़ा की अभिव्यक्ति है आंसू, बहकर मन निर्मल कर जाते है। खुशियों का उपहार भी आंसू, अधरों की मुस्कानों संग आते हैं। पावनता का पर्याय बने है आंसू, इसीलिए गंगाजल कहलाते हैं। . परिचय :- अर्पणा तिवारी निवासी : इंदौर मध्यप्रदेश शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में ट...
दिवास्वप्न
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दिवास्वप्न

सरिता देराश्री पिपलोदा, रतलाम, मध्य प्रदेश ******************** जीवन एक दिवास्वप्न सा है, खुली आंखों से देख कर भी, सब कुछ अनदेखा सा है। जीवन एक दिवास्वप्न सा है।। मचलती आशाएं, बहती भावनाएं, पल-पल निश्चल झरने सा है। जीवन एक दिवास्वप्न सा है।। दर्द है, तड़प है, वीरह है, फिर भी अल्हड़ बचपन सा है। जीवन एक दिवास्वप्न सा है। सुख-दुख, सम्मान और अरमान, कुछअधूरी कुछ पूरी उम्मीद सा है। जीवन एक दिवास्वप्न सा है।। कभी उतार-चढ़ाव कभी मोड़ है, कभी उलझन कभी सुलझा सा है। जीवन एक दिवास्वप्न सा है।। ऊंचे पहाड़, गहरी घाटी, मैदान, सागर सा गहरा कभी चंचल सरिता सा है। जीवन एक दिवास्वप्न सा है।।   परिचय :-  सरिता देराश्री पति : मंगलेश देराश्री जन्म : ३/५/७९ शिक्षा : बी. एस . सी , एम . ए निवासी : पिपलोदा, रतलाम, मध्य प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फ...
कर्ज प्यार का
कविता

कर्ज प्यार का

ममता रथ निवासी : रायपुर ******************** सूरज की किरणें आई तो फूलों की पंखुड़ियों को खोला धरती का रस पी फूलों ने ये बोला कर्ज तुम्हारे स्नेह का वापिस किस्तों में देंगे हम खुशबु से अपने इस गुलशन को महकाते रहेंगे हम धीरे से मुस्कुरा कर धरती बोली बेटे बहुत बड़ी बात कही तेरी इसी सोच ने कर्ज प्यार का चुका दिया सभी तेरे ही कारण तो मुझे मिलता है रंग बिरंगे लिबास सभी   परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्...
मुझे शर्म आती है
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मुझे शर्म आती है

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** कितने कितने फरेब देखे इस दुनिया के इस दुनिया के हालात पे मुझे शर्म आती है बादशाहत से जीने वाले वो बुजदिल ही होंगें उन बेदर्द बुजदिल-ए-हयात पे मुझे शर्म आती है कपड़ों से नहीं वो चमरी से चिथड़े पहने थे आलिशान महलों के सजाने पे मुझे शर्म आती है लाखों लाख बेघर जब भूखे बिलख रहे थे झूठी आस्था के उन खजाने पे मुझे शर्म आती है मंदिरों के नाले में बहा दी गई दुध की नदियाँ बेबस माँ के बिलखते लाल पे मुझे शर्म आती है सड़क पर भागती वो कार जब रोके न रुकी थी उस बेबस लड़की की बलात्कार पे मुझे शर्म आती है . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित  आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय ए...
अभी तो सवेरा हुआ है
कविता

अभी तो सवेरा हुआ है

दर्शन लाड बुरहानपुर (मध्य प्रदेश) ******************** हर क़दम, हर पल, मत भाग हर जगह, हर राह को मत समझ अपना, निश्चित कर, संकल्प कर, अनुमान लगा, फिर देख खुशियों की बारिश, हर क़दम, हर पल, हर जगह, अभी तो सवेरा हुआ है थोड़ा ठहर... मत भाग हर राह पर एक साथ, हो जाएगी नफरत हर राह से एक साथ, मत बन अपनी नफरत का कारण, रुक जा...... अभी तो सवेरा हुआ है थोड़ा ठहर... मत भाग इतना कि ज़िन्दगी थम जाए, मत सोच इतना कि समय निकल जाए, क्यों कि....... जीतता वो नही जो तेज चलता है, जीतता वो है जो लंबे समय तक चलता है, अभी तो सवेरा हुआ है थोड़ा ठहर... हर मोड़ पर नई उम्मीद आयेगी, हर कदम पर नई राह आयेगी, हर अंधेरे में फिर एक प्रकाश होगा, हर हवा में खुशियों का पैगाम होगा, बस.... थोड़ा ठहर अभी तो सवेरा हुआ है थोड़ा ठहर.... अभी तो सवेरा हुआ है.... . परिचय :- दर्शन लाड निवासी : बुरहानपुर (म.प्र.) शिक्ष...
कि वक्त ठहरा सा है
कविता

कि वक्त ठहरा सा है

अभिषेक खरे भोपाल (म.प्र.) ******************** कि वक्त ठहरा सा है जिंदगी फिर से मुस्कुराएगी धीरे-धीरे ही सही गाड़ी फिर पटरी पर आईगी मेहनत रंग दिखा रही है जिंदगी फिर से सबकी संभल जाएगी अभी अंधेरा बहुत घना है लेकिन सूरज को भी तो निकलना है। भरोसा रख अपने आप पर के जिंदगी फिर से दौड़ जाएगी। कि वक्त ठहरा सा है जिंदगी फिर से मुस्कुराएगी। . परिचय :- अभिषेक खरे सचिव - आरंभ शिक्षा एवं जनकल्याण समिति, भोपाल (म. प्र.) कोषाध्यक्ष - ओजस फाउंडेशन, भोपाल (म.प्र.) निवास - भोपाल (म.प्र.) शिक्षा - एम कॉम बी.यू. भोपाल पीजीडीसीए, एमसीयू भोपाल आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindiraksh...
लेखक की कलम
कविता

लेखक की कलम

डॉ. रश्मि शुक्ला प्रयागराज उत्तर प्रदेश ******************** बहुत खुशियाँ और गम बाटा कलम ने बहुत मित्रऔर दुशमन बनाएँ कलम ने जीना और मरना सीखाया कलम ने शिक्षा का पाठ पढाया कलम ने व्यक्तित्व बनाया कलम ने मान सम्मान दिलाया कलम ने कवि कविता से मिलया कलम ने रिश्ते बनाये और चलाये कलम ने आजादी दिलाई कलम ने रोना और हँसना सीखाया कलम ने वतन पर मिटना सीखाया कलम ने रस में रंगना सीखाया कलम ने पर्व मनाना सीखाया कलम ने छल कपट धोखा से बचाया कलम ने मीलों का सफ़र तय किया कलम ने जीवन सफर पर साथ दिया कलम ने मातृ को नमन करनासीखाया कलमने देश विदेश को मिलाया कलम ने अनपढ़ से पढ़ा लिखा बनाया कलमने संवेदना को सजोना सीखाया कलम ने शक्ति भक्ति को सीखाया कलम ने सभी कवी सम्मेलन किया कलम ने रश्मि को जीवन दिया कलम ने . परिचय :- डॉ. रश्मि शुक्ला निवासी - प्रयागराज उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानिय...
नज़रिया
कविता

नज़रिया

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** शहर में नया मकान किसका हैं पुराना तों गिरा दिया था ये नया बसेरा किसका हैं। रोशनी कों बंद दरवाजो से रोकने वालों क्या भूल गए ये नया सवेरा किसका हैं। सुना हैं घर बसानें से पहले हीं उजाड़ दिये जाते हैं तों संवरता हुआ ये परिवार किसका हैं। वो आग लगाने कि फिराक में घूमा करते हैं अकसर उन्हें पता नही बगल में तालाब किसका हैं। पौधो में कांटे कों देखकर कोसने वालों ये महकता हुआ गुलाब किसका हैं। . परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) कवि, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव - अ.भा.वंशावली संरक्षण एवं संवर्द्धन संस्थान म.प्र, रचनाएँ : हम हिन्दुस्तानी, नई दुनिया, पत्रिका, नवभारत देवभूमि, दिन प्रतिदिन, विजय दर्पण टाईम, म...
चलते रहो
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चलते रहो

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हैं सामने, खुला नील गगन, फिर क्यों हैं तू, थमा हुआ? खोल अपने अरमानों को, ले भर, आसमा, फैला हुआ... जब राह तन्हा, संग तेरे तो, क्यो तुझें, मंजिल की फ़िकर, हैं सूल भरी, पगडंडी तो क्या, तू चल, एकाकी, काहे का डर.. तेरे वजुद की, तुझको तलाश हैं, तेरा जमीर ही, तेरा नफ़स हैं चलते रहो, ना देख कदमों को, तेरा सफ़र, तुझ तक ही खत्म हैं... . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी मे...
कान्हा
कविता

कान्हा

शालिनी सिंह जिला गोंडा (उ.प्र.) भारत ******************** मेरे आये प्रभु नंदकिशोर धाम मधुवन में। भाद्रपदा की आधी रात अंधेरी।। घन-घन-घन-घन बादर घेरी।। बिजुरी चमके चहुँ-ओर धाम मधुवन में। मेरे आये.... वह देवकी माँ आठवे लाला। कारागार का खुल गया ताला।। माया ने अस खेला खेला। बंधन मुक्त हुए वसुदेव धाम मधुवन में।। मेरे आये.... पितु वासुदेव प्रभु गोकुल लाये। देवन सज्जन के काज संवारें।। दुष्टन के जे मारन वारे। यशुमति के प्राणाधार धाम मधुवन में। मेरे आये.... यशुमति लाला पालने पौढे़। देखि-देखि यशोदा नंद हर्षे। नारद शारद शेषहि गावै। मेरे आये घन-आनंद श्याम धाम मधुवन में।। मेरे आये.... मेरे कान्ह बकईया चलन जे लागे। मोर पंख सिर शोभन लागे।। पीताम्बर तन पहिरे मुरारी। पहिरे गले गजमुक्तन माल धाम मधुवन में। मेरे आये.... अंग आभूषण पहिरे गिरधारी। लाल विशाल अंखियां कजरारी।। धनुष भौह लाल मधुराधर। अरे घुघराल...
एक एहसास ऐसा भी
कविता

एक एहसास ऐसा भी

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** क्या देंगे साथ जीवन भर, जो पल भर में उब जाते है। जनाब आप समंदर की बात करते है, यहाँ तो लोग आँखों मे डूब जाते हैं। आशा नही अब आश की, और कद्र नही विश्वास की, कीमत पानी की नही, बल्कि कीमत होती हैं प्यास की जीना मरना ये सब तो महफूज बाते हैं। जनाब आप समंदर की बात करते है, यहाँ तो लोग आँखों मे डूब जाते हैं। खुशियों की दामन छोड़कर, रिश्तों का बंधन तोड़कर, अब तो बताइये, क्या मिला अपनों की संगत छोड़कर जीने मरने की कसमें तो खूब खाते हैं। जनाब आप समंदर की बात करते है, यहाँ तो लोग आँखों मे डूब जाते हैं। क्या देंगे साथ जीवन भर, जो पल भर में उब जाते है। जनाब आप समंदर की बात करते है, यहाँ तो लोग आँखों मे डूब जाते हैं।   परिचय :- विशाल कुमार महतो, राजापुर (गोपालगंज) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अप...
मैं इंसान होना चाहती हूँ
कविता

मैं इंसान होना चाहती हूँ

डाॅ. अहिल्या तिवारी रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** मैं इंसान होना चाहती हूँ न हिन्दू न मुसलमान, दुनिया के दिलों की मैं ईमान होना चाहती हूँ। दुनिया मेरी दौलत नहीं हक़ नहीं टुकड़ों पर, चार दिनों की दुनिया में मैं मेहमान होना चाहती हूँ। मिट गए जो अमन पर हो कर परे जग से, हर जन्म में दिल का मैं अरमान होना चाहती हूँ। दे सके जो दान जीवन को जीवन का, ऐसे धरा के लाल पर मैं कुर्बान होना चाहती हूँ। जाने कैसे सीख जाते कुछ लोग आग का खेल, जलाते घर भाई का, यहाँ मैं नादान होना चाहती हूँ। जगह नहीं फूलों के लिए दिलों में एकत्र हो गए पत्ते, स्वार्थ के सूखे पत्ते उड़ाने मैं तूफान होना चाहती हूँ। बिकती ज़िन्दगी पलों की मौत दुआएँ देता है, हर साँस होती दर्द भरी मैं बेजान होना चाहती हूँ। दे दस्तक धरती तले थाम सीने में गगन, प्यार बो कर यहाँ मैं आसमान होना चाहती हूँ। क्यों बने कहानी मेरी हँसने हँसाने के...
कहीं दूर चलें
कविता

कहीं दूर चलें

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** चलो कहीं चलें दूर सड़क के किनारे, किसी मोड़ पर, रौशनी के किसी खंभे के नीचे बैठकर मन की बातें करें। अपने अपने अतीत के, नुचे घुटे घरौदें से दूर, किसी सूखें हुऐ नाले की पुलिया, पर बैठकर बातें करें। चलो कहीँ दूर चलें। डरावने घने जंगलों की अंधेरी पगडंडियों पर रतजगा मनाएं जिन्दगी के हर मसलें पर बहस करें झगड़े, ढेर सारी सुख दुखः के अतीत को दोहराये और खो जायें । कुछ सुकून पायें, कहीं दूर। . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्...
आक्रोश
कविता

आक्रोश

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** अधिकांश युवा मानस की पटल से उभर रही है आक्रोश की गुबार। क्योकि आजकल की युवाओ को सही पहचान बनाए रखने के लिए। न तो कोई मार्गदर्शक हैं न कोई मानदंड सिर्फ भौतिकता की दौड़। उदंडता से पीड़ित सुकुमार सपने को साथ बिन्दीया सी चमकती। तुच्छ सफलताओ को चूमने पुचकारने में व्यस्त। खाशकर माध्य्म वर्गीय पिछड़े परिवार के किशोर और युवा अपनी मनोवृत्तियों में। छेड़ रखा है आक्रोश की धुंआ जो गुबार बनता जा रहा है। इस जीवन की निरस्त उत्कण्ड़ाओ को एक आकलन की सूत्र लिए। अपनी पहचान बनाए रखने की लिए भ्र्ष्टाचार की गर्माहट में भइए भतीजावाद में। जो नाजीवाद से छह गया है इस आजाद हिंदुस्तान में। अपने आपको चर्चित तस्वीरों में उवभारने के लिए आक्रोशो को साथ लिए। कानूनी अपराधों की संगीनों में बेध रहा है अपने आपको। अगर यह आक्रोश रोजगार की मरहम से बन्द न हुआ तो शांति का नब्ज डु...