पार्थिव शहीद का
आशीष तिवारी "निर्मल"
रीवा मध्यप्रदेश
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आया पार्थिव शहीद का, दरो - दीवार खिड़कियाँ रोईं,
सगे, संबधी, दोस्त, माँ, बहन, पत्नी और बेटियाँ रोईं।
वतन पे मिटने वाले अपने लाल पर गर्वित थे सभी
किंतु गले तक भर-भर के दर्द भरी सिसकियाँ रोईं।
फेरे लेकर खाईं कस्में जीवन भर साथ निभाने की
पत्नी की हथेली में अब अरमानों की मेहंदियाँ रोईं।
होली, दिवाली, करवाचौथ सब हो गया है सूना-सूना
सिंदूर, मंगलसूत्र, पायल संग सुहागन की बिछियाँ रोईं।
नेस्तनाबूत हो गया परिवारजनों का सपना 'निर्मल'
नाजुक कलाईयों से उतरती हुई रंगीन चूड़ियाँ रोईं।
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परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवा...