सृष्टि
श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उ.प्र.)
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भोर की नरम घांस पर, पानी की बूंदों जैसी
पत्तों पर पलक बिछाए ओस जैसी हूं मैं
पेड़ों की छाया में सिमटी हुई सुकून जैसी
बादलों में नन्हीं सी धुंधली किरन हूं मैं।
पर्वतों को बर्फ के चादर में समेटे जैसी,
ठंडी हवाओं की सरसराहट हूं मैं।
स्वछंद परिंदों की उड़ान जैसी
खेतों में लहराती उमंग हूं मैं।
लरजती, इठलाती, खुशी और
उल्लास से सराबोर नदी जैसी,
सागर की गहरी सहेली हूं मैं।
अब तो पेड़ों कि छाओं को ढूंढती,
बिन बादलों के गुम सी होती जा रही हूं मैं।
सिकुड़ती, सिमटती, उदास सी
पहुंच से दूर निकलती जा रही हूं मैं।
संभाल लो मुझे, गले से लगा लो,
इंद्रधनुषी रंगों से आंगन भर दो मेरा
क्योंकि पूरी कायनात की "सृष्टि" हूं ना "मैं"
परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुला...