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कविता

आया महीना फ़ागुन का
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आया महीना फ़ागुन का

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** अंतर्मन में जगाए आकुलता, शीत सयानी फागुनी। अमराई में छुपकर कोयलिया, छेड़ रही मृदु रागिनी।। पवन वाबरी मदहोश हुई है, छू किसलय कपोल। उर आलिंद हर्षित अतिशय, सुनक़े मिश्री-से बोल।। मन मोहक महुआ की महक, करे मतवाला अंग-अंग। नव यौवना-सा निखरा पलाश, समेट बासंती रंग-रंग।। निपर्ण तरुवर का तन लगता, मानो हो निष्प्राण देह। कर रहे चाकरी हवाओं की, शायद सोनपरी के गेह।। ढल गया फ़िर ये दिन दीवाना, तेरा ही इंतज़ार लिए। सारी रानी बरसी ये अखियां, तेरा ही इनकार लिए।। आया महीना फ़ागुन का प्रिय! ले करक़े रंग हज़ार। आभी जा ओ हरजाई अब तो, रहता जिया बेकरार।। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं म...
क्या नहीं चाहिए
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क्या नहीं चाहिए

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जरा बता तो दो ऐ ताक़त क्या तुम्हें इस वतन में मजलूम नहीं चाहिए, गरीब लाचार नहीं चाहिए, यदि हां तो कुछ करते क्यों नहीं? तुम्हारे कारिंदे सुधरते क्यों नहीं? पॉवर सिर्फ पैसे, पद और कद बढ़ाने के लिए ही नहीं है, उनका जीवन स्तर सुधारने के लिए है जो इसके दायरे में रहते सही हैं, गरीबों, दलितों पर रौब जमाने के लिए नहीं है, कैलेंडर से पांच साल निकल जाते हैं, पर दिल का कालापन रह जाते हैं, बिना कुछ कहे ही बहुत कुछ कह जाते हैं, सत्ता कुछ चंद गिरोहों का धंधा नहीं, संविधान के सफल क्रियान्वयन का है एक उचित जरिया, जहां चलना चाहिए एकमात्र नजरिया, क्या देश का संपूर्ण विकास संवैधानिक तरीके से संभव नहीं? पॉवर के लिए कुछ भी असंभव नहीं। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत...
मर्यादा जीवन की पूँजी
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मर्यादा जीवन की पूँजी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** मर्यादा जीवन की पूँजी, संस्कार देती है। मर्यादित आचरण सदा ही, सद्गुण की खेती है। मर्यादा में रहे रामजी, पुरुषोत्तम कहलाते। मर्यादित व्यवहार राम का, बाबा तुलसी गाते। राम राज्य में सागर सबको, रत्न प्रेम से देते। मर्यादा में जल रहता है, वारिधि प्राण न लेते। कभी नहीं मर्यादा लाँघें, सीमा कभी न तोड़ें। धर्माचरण करें जीवन में, नहीं सुपथ को छोड़ें। मर्यादा का बाँध न तोड़ें, अपनी सीमा जाने। मर्यादित आचरण करें हम, अन्तस को पहचाने। बाँध टूटता मर्यादा का, सदा अमंगल होता। मर्यादा भंजक, जीवन में, नहीं चैन से सोता। मर्यादा को खंडित करके, कौरव दल मुस्काया। पाया दंड स्वयं माधव से, अपना वंश नशाया। मर्यादा में रहने वाले, जगवंदित हो जाते। मिलता है सम्मान जगत में, सुखमय जीवन पाते। जो मर्...
इश्क में वक्त बेकार न कर
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इश्क में वक्त बेकार न कर

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** लेकर हाथों में लाल गुलाब न चला कर ! दिल की बात दिल में रख न जला कर !! नजरें मिला के यूँ नजरें ना झुकाया कर ! इश्क है हमसे तो लफ्जों में बयां ‌‌ कर !! हम तेरे दीदार को तड़पते है रात दीन ! आसमां में चांद सा यूँ ना छिप जाया कर दिल की बात दिल में ना दबा के रख ! शिकायत है मुझसे तो सरे आम कहा कर बेवजह मेरे ख्वाबों में तू  न आया कर ! चैन से सोने दे नींद से न जगाया कर !! मुलाक़ात करना है तो मिलो हमसे आकर दरवाजा खुला है घर में आ जाया कर !! इश्क नहीं है तो इश्क का इजहार न कर वक्त कीमती है! मुहब्बत में बेकार न कर लाखों अजमा चुके है किस्मत इश्क कर ! खाकर ठोकर संभल चुके है लोग इश्क कर परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्...
बदनाम गली
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बदनाम गली

रवि कुमार बोकारो, (झारखण्ड) ******************** मैने अक्सर उन गलियों में जिंदगी को सिसकते देखा है. हंसते चेहरों में बेबश और परेशान इंसान भी देखा है। हम जैसे ही है सब वहां कोई फर्क नही है उनमें।। मैने उन बदनाम गलियों में भी कुछ पाक इंसान देखा है जीने की कोई वजह नहीं वहां किसी में, चंद पैसों में जिस्म नीलाम करते देखा है। तुमने सिर्फ जिस्म देखा उनका उनमें बैठा इंसान कहा देखा है मैने उन बदनाम गलियों में भी कुछ पाक इंसान देखा है जाती धर्म का जरा भी खेद नही हर मज़हब के लोग आते वहां देखा है। उनके भी है कई ख्वाब अधूरे उमंगों का शैलाब भी उनमें देखा है सबने सिर्फ बदन नोचा है उनका क्या कभी उनका दिल भी देखा है मैने उन बदनाम गलियों में भी कुछ पाक इंसान देखा है।। परिचय :- रवि कुमार निवासी - नावाड़ीह, बोकारो, (झारखण्ड) घोषणा पत्र : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना ...
जिंदगी
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जिंदगी

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** जिंदगी तो जिंदगी व्यस्त है जिंदगी समय बेकार व्यर्थ फिजूलखर्च में बीत रई है जिंदगी जिंदगी की कहानी जिंदगी की जुबानी जिंदगी ही समझाती जिंदगीभर सिखलाती जिंदगीभर सताती जिंदगी कहर बरपाती जिंदगी सुखदुख में जिंदगी बीत जाती जिंदगी कभी आसान जिंदगी कभी परेशान जिंदगीभर झनझनाहट जिंदगीभर आहट जिंदगी का अहसास जिंदगीभर करवाती जिंदगी समझ नहीं पाती जिंदगी कभी रुलाती जिंदगी कभी हंसाती जिंदगी का वक्त अच्छा जिंदगी का वक्त बुरा जिंदगी में हंसकर जिंदगी में रो रो कर जिंदगी सांसे लेती जिंदगी सांसो में जीते जिंदगी सांसो के भरोसे जिंदगी समेटे रखती जिंदगीभर बेफजूल जिंदगी लगती धूल जिंदगीभर की जिद्द जिंदगीभर होती न सिद्ध जिंदगी में नफरत जिंदगीभर करते कसरत जिंदगी की यही झंझट जिंदगी यहीं लेती करवट जिंद...
शगुनी-सा लगे विश्वास
कविता

शगुनी-सा लगे विश्वास

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** मतलबी हुए लोग यहां, खुदगर्ज हुआ ज़माना , रह गया दुनिया मे शेष, फ़क्त नाम का याराना।। छल-कपट में सना हुआ, लगता है पावन प्यार, कहां कृष्ण-सी करुणा, कहां कर्ण-सा व्यवहार।। वादे तो करते कई, हर मुश्किल में साथ देने के, पर लेते खींच हाथ, आते लम्हे जब हाथ देने के।। टुकड़ों-टुकड़ों में वट चुका सु-भाव-ओ-सहयोग, झरते नही अश्रु नयनों से होता देख अव वियोग।। मन की सौम्य बगिया से, गायब हुई स्नेह सुवास, दुर्योधन-सी हुई दीनता, शगुनी-सा लगे विश्वास।। सिमट रहा रिश्तों-से, त्याग,समर्पण, शिष्टाचार, अधरों पर अर्धनग्न हंसी, करें उर से प्रश्न हजार।। आ गए हम कहां 'गोविमी', स्वार्थ में होकर अंधे, आओ करें अवगुणों से तौबा, छोड़ें कुटिल धंधे।। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोर...
कैसे रिश्ते
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कैसे रिश्ते

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** छिन लिया आसरा पेड़ को कटते देख दूसरे पौधे रो रहे थे कौन समझे इनकी पीड़ा नेक इंसान ही समझते उसे लगा होगा जैसे, माता-पिता के मरने पर रोते है कैसे रिश्ते। यह जानते हुए भी खोने दे रहा है खुद के जीने की प्राण वायु पेड़ की खोल के रहवासी उड़े भागे थे ऐसे जैसे भूकंप आने पर लोग छोड़ देते है मकान। थरथरा कर गिर पड़ा था पेड़ पेड़ के रिश्तेदार, मूक पशु-पक्षी खड़े सड़क पर, बैठे मुंडेरों पर आँखों में आँसू लिए विचलित अस्मित भाव से कर रहे संवेदना प्रकट और मन ही मन में सोच रहे क्यों छिन लिया आसरा हमसे क्रूर इंसान ने। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभि...
जरे आदमी
आंचलिक बोली, कविता

जरे आदमी

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी) वइसे तो दूध के जरे आदमी ह दही घलो ल फूंक के पिथे, फेर कोनो धियान नइ देवय के गरीब शोसित आदमी ह का का सहि के जिनगी जींथे, वो तो गरीबी के आगी म रोज के रोज जरत रथे, उपर ले जात के अपमान कोनो ल कुछु नइ कहय फेर भितरे भीतर धधकत मरत रथे, कतका घिनक बेवस्था बनाय हें मनुस के घटिया रहबरदार मन, बिन काम बुता करे बने हे ऊंच अउ काम कर कर के मरत हे निच कहा जरोवत हे अपन तन, बेसरमी ल ओढ़ रात दिन जात पात के नाव म सतावत हें, जानवरपना भरे हे ओकर तन मन म रोज रोज छिन छिन जतावत हें, आदमी जरे तो हे फेर मरे नइ हे, का डर हे के पलटवार करे नइ हे, जे दिन एमन जुर मिल एक हो जाहि, सासन सत्ता अपन हाथ म लाय के बिचार नेक हो जाहि, जे दिन अदरमा इंखर फाट जाहि, ओही दिन अपन बिरूध बने सबो अमानवीय बेवस्था ल काट जाहि। ...
दो टूक
कविता

दो टूक

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** अहम को विचारो से भगाना सीखो, जीवन को सादगी से निभाना सीखो, ना जाने कोई पल ऐसा आये, मोती को एक डोर मै पिरोना सीखो, वक्त और धन पर गुरूर कैसा, यह तो समंदर के हिलोरे जैसा, सुख और दुख तो हरदम साथ साथ, कभी दायें तो कभी बायें चलते है साथ साथ, तीखे तीर और तेवर को रखना सम्भाल के, बाली भी भील बनकर आयेगा काल मै, परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. १५००+ कविताओं की रचना व भजनो की रचना रूचि : कविता लेखन, चित्रकला, पॉटरी, मंडला आर्ट एवं संगीत घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ...
नारीत्व
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नारीत्व

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* आ गए तुम? द्वार खुला है अंदर आ जाओ। पर तनिक ठहरो ड्योढी पर पड़े पायदान पर अपना अहं झाड़ आना। मधुमालती लिपटी है मुंडेर से अपनी नाराज़गी वहीँ उड़ेल आना। तुलसी के क्यारे में मन की चटकन चढ़ा आना। अपनी व्यस्ततायें बाहर खूँटी पर ही टाँग आना जूतों संग हर नकारात्मकता उतार आना। बाहर किलोलते बच्चों से थोड़ी शरारत माँग लाना। वो गुलाब के गमले में मुस्कान लगी है तोड़ कर पहन आना। लाओ अपनी उलझने मुझे थमा दो तुम्हारी थकान पर मनुहारों का पँखा झल दूँ। देखो शाम बिछाई है मैंने सूरज क्षितिज पर बाँधा है लाली छिड़की है नभ पर। प्रेम और विश्वास की मद्धम आंच पर चाय चढ़ाई है घूँट घूँट पीना। सुनो! इतना मुश्किल भी नहीं हैं जीना। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : दे...
बाराती
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बाराती

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** पहाड़ो पर टेसू रंग बिखर जाते लगता पहाड़ ने बांध रखा हो सेहरा। घर के आँगन में टेसू का मन नहीं लगता उसे सदैव सुहाती पहाड़ की आबों हवा। मेहंदी की बागड़ से आती महक लगता कोई रचा रहा हो मेहंदी। पीली सरसों की बग़िया लगता जैसे शादी के लिए बगिया के हाथ कर दिए हो पीले। भवरें-कोयल गा रहे स्वागत गीत दिखता प्रकृति भी रचाती विवाह उगते फूल आमों पर आती बहारें आमों की घनी छाँव तले जीव बना लेते शादी का पांडाल ये ही तो है असल में प्रकृति के बाराती। नदियां कलकल कर उन्हें लोक गीत सुनाती एक तरफ पगडंडियों से निकल रही इंसानों की बारात। सूरज मुस्काया धरती के कानों में धीमे से कहा- लो आ गई एक और बारात आमों के वृक्ष तले। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२...
जन्मे शिवनेरी दुर्ग रणरुद्र शिवा
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जन्मे शिवनेरी दुर्ग रणरुद्र शिवा

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** फ़रवरी उन्नीस सोलह सो तीस, जन्मे शिवनेरी दुर्ग रणरुद्र शिवा। शाह जी भवन गूंजीं किलकारी, जीजाबाई दामन देदीप्य विभा।। माँ से मिली सीख धर्मपरायण की, पिता से युद्ध कौशल, प्रशासन जाना। महज़ बर्ष सोलह में किला तोरण छत्रपति शिवा ने अपना है माना।। वर्ष शुभ सन सोलह सौ चौहत्तर, पहना मराठा छत्रपति का ताज। विकसित की युद्धकला "शिवसूत्र", हिलने लगा विधर्मियों का कु-राज।। रोक सके नही ध्येय स्वराज का, पड़ी मुगलों को भी मुंह की खानी। भारत भू पर बढ़ते जुल्मों-सितम की, होने लगी ख़त्म हर कुटिल कहानी।। आयी नही शायद रास प्रकृति को, सदभाव, शांति, भरी स्वर्णिम विहान। अप्रैल तीन सोलह सौ अस्सी में थमा "हिंदवी" सु-शासन का होता निर्माण।। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्...
फागुनी बयार
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फागुनी बयार

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** फागुन की हर घड़ी, रंगीला एहसास दे जाती। शीत भय को हर लेती, मोहक बहारें वसन्त की। टेसू के फूलों की, सरसों की पीली चूनरी ओढ़े धरा गौरी प्यारी सी। उमंग उल्लास से भरी फागुनी बयार बौराई सी। पतझर के बाद सजती, ये शाखाएं नव कोंपलों से। आम्रमंजरी से शोभित होती, अमराई मन मोह लेती। डाल पर बैठी कुहू कुहू करती, कोयल झूमने लगती। ऐसे फागुनी बयार खुशी की, दस्तक दे जाती, पुराने किस्सों को ताजा कर देती। लगी मस्ती की पाठशाला, चहुंओर गूंज उठी, फागुनी गीतों की ध्वनि । ऐसे फागुन की हर घड़ी, रंगीला एहसास दे जाती। परिचय :- अमिता मराठे निवासी : इन्दौर, मध्यप्रदेश शिक्षण : प्रशिक्षण एम.ए. एल. एल. बी., पी जी डिप्लोमा इन वेल्यू एजुकेशन, अनेक प्रशिक्षण जो दिव्यांग क्षेत्र के लिए आवश्यक है। वर्तमान में मूक बधिर संगठन द्वारा संचालित आई.ड...
तेरी राहों में साजन हम
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तेरी राहों में साजन हम

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** साजन हम तेरी राहों में, मधुरिम फूल बिछाएंगे। अपने सुंदर घर आँगन को, उपवन-सा महकाएंगे। लिख-लिख पाती हार गई में, तुझे याद ना आती है। पवन बसंती आँचल छूकर, मुझको बहुत सताती है। खबर नहीं लाती है तेरी, पास देह तक आती है। शीतल मंद सुगंध पवन भी, मुझको नहीं सुहाती है। ना मुँडेर पर काग बोलता, नहीं शगुन करती मैंना। जैसे-तैसे दिन कट जाता, मगर नहीं कटती रैना। ओ निष्ठुर, बेदर्दी बालम, तेरी याद सताती है। पागल हो जाती हूँ सुनकर, जब कोयलिया गाती है। पवन झकोरे मेरे मन को, बार-बार विचलित करते। विरह वेदना मेरे मन की, आज क्यों नहीं तुम हरते? कागा तेरी चोंच कनक से, खुश होकर मड़वा दूँगी। बड़ा कीमती एक नगीना, मैं उसमें जड़वा दूँगी। तेरे कहने से जब साजन, गेह लौट कर आएंगे। हम तेरी राहों में साज...
इंद्रधनुष सा सतरंगी जीवन
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इंद्रधनुष सा सतरंगी जीवन

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** सात रंगों का सम्मिश्रण रवि की किरणों का संप्रेषण जीवन है इंद्रधनुष सा सम्मेलन। एक रंग लाता जीवन में वीरानी सब रंगों ने ईश्वर की कृति में मिलजुल कुछ करने की ठानी। सभी वर्ण अपने-अपने गुण-वाहन लेकर आए सभी गुणों का संदेशा लाये। रंग जामुनी निष्ठा औ स्थाई भाव का रंग बैंगनी मनन, ध्यान और मनुजता नीलवर्ण इच्छाशक्ति, मान, धैर्य, शालीनता। पुष्प, खेत, वृक्ष, वैभव के दर्शन हरियाली हरा रंग ले आता है सबके हिय को हर्षाता है। पीतवर्ण विद्या, बुद्धि, प्रतीक ज्ञान का नारंगी में ईश्वर का आशीष छुपा , उत्साह, शक्ति, गांभीर्य, संतुलन संयम का। लाल रंग में ऊर्जा औ उल्लास भरा है रक्तसंचरण की भांति जीवन में भाव निरंतर चलते जाने का है। सभी रंग इंद्रधनुष के कुछ न कुछ दे जाते हैं आस निराश, उत...
अब इम्तिहान की बारी है
कविता

अब इम्तिहान की बारी है

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** हो जाओ तैयार साथियों, अब इम्तिहान की बारी है। लक्ष्य भेद कर दिखला दो, कौन किस पर भारी है !! मुश्किलों से लड़ककर तुमको, लक्ष्य मार्ग पर बढ़ना है..! छोड़ आलस का दामन तुमको रगो में साहस भरना है..!! कर्म से किस्मत लिखने की अब तुम्हारी बारी है..! हो जाओ तैयार साथियों अब इम्तिहान की बारी है..!! सफलता नहीं मिलती उनको, जो किस्मत पर भरोसा करते है..! मंजिल उन्हीं को मिलती है, जो दिन रात मेहनत करते है..!! मेहनत करने वालों पर हीं, सफलता बलिहारी है..! हो जाओ तैयार साथियों, अब इम्तिहान की बारी है..!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी...
गौशाला की रूनझुन
कविता

गौशाला की रूनझुन

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** मेरे हृदय स्थल पर मायूसी सी छा जाती है तब घोर अंधेरा छाता है जब रूनझुन की ध्वनि ना हो जेठ महीने की तपन भरी दुपहरी की क्षवरी तन मन को झुलसाती है, तब शीतल सा फव्वारा बन कर घंटी की ध्वनि छा जाती है मन मंदिर सा पुलकित हो जाता है मुरझाया मन खिल जाता है गर्वित होता मेरा जीवन इस ध्वनि के उन्माद से सांसो की लय चल पडती है प्राणों में सुर छा जाता है, कर लूं कुछ संभाषण इनसे मेरा मन अकुलाता है कूद कूद और उछल उछल रहते है ये अब मस्त मग्न इनकी रूनझुन की ध्वनि सुन कर लब झंकृत हो जाता है मंदिर की इन्हें घंटियों में मेरा मन रम जाता है कभी ओम कभी आमेन कभी अमीन निकल आ जाता है !! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम...
कड़ी मेहनत के बिना
कविता

कड़ी मेहनत के बिना

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** कड़ी मेहनत के बिना सफलता नहीं मिलती हैं। बिना कुआं खोदे प्यास नही बुझती है। ****** मेहनत के साथ जब अच्छी किस्मत होती है। तब ही हमारी जिंदगी अच्छे से संवरती है। ****************** एक मजदूर दिन भर धूप में तप कर दो-चार सौ रूपये कमाता है। एक अफसर आफिस में बैठ कर दिन भर लाखों रूपये रिश्वत खाता है। ****** किस्मत अच्छी हो तो लाटरी भी निकल आती है। किस्मत खराब हो तो सारी कमाई भी डूब जाती है। ****** मेहनत के साथ-साथ यदि अच्छी किस्मत मिल जाये। तो दिन दुगनी, रात चौगुनी लक्ष्मी जी आपके घर आये। ******* केवल किस्मत के भरोसे न बैठे मेहनत भी करते जाय। इस प्रकार अपनी जिंदगी को संवारते जाय। ******* हमारी तकदीर भी अच्छे कर्मों से लिखती है। बुरे कर्म और कामचोरी में जिंदगी बिगड़ती है। परिचय : डॉ. प्र...
दस्तक है बसंत की
कविता

दस्तक है बसंत की

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** शिशिर की चादर ओढ़े सूरज को रही धरा निहार हरी दूब पर तड़के देखो मुस्काती सी रखी निहार। नव अरुण की आभा से निखर रहा किसलय है शीतल पवन में घोल रहा मधुरस की सौरभ मलय है। सुसज्जित होकर बोर से लहरा रही अमराई है ऋतुराज के आगाज से वसुधा भी मुस्काई है। बिदाई की बेला में पहुँच रही अब शीत है परिवर्तन और परिवर्द्धन तो कुदरत की ही रीत है। सुकुमार प्रकृति में देखो दस्तक है बसंत की लौटने वाली हैं खुशियाँ जीवन के अनंत की।। परिचय : विवेक नीमा निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी कॉम, बी.ए, एम ए (जनसंचार), एम.ए. (हिंदी साहित्य), पी.जी.डी.एफ.एम घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक म...
बस एक मौका
कविता

बस एक मौका

डॉ. कांता मीना जयपुर (राजस्थान) ******************** बस एक मौका मांगता रहा आवारा बादल फिर से बरस जाने को, किनारे पर ही खड़ी रही, ना जाने कितनी कश्तियां मौका मिलते ही समुद्र में उतर जाने को। कुछ उम्दा गोताखोर खड़े रहे, अपने मालिकों के इशारे के इंतजार में, डूबती जानें व खजाना बचाने को। गुमनामी की गलियारों में खो जाते कुछ चमचमाते सितारे। आते नहीं कभी फरिश्ते भी उन्हें बचाने को। बस एक मौका मांगता रहा आवारा बादल फिर से बरस जाने को। परिचय :- डॉ. कांता मीना (शिक्षाविद् एवं साहित्यकार) निवासी : जयपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्द...
पढ़ ले संविधान को
कविता

पढ़ ले संविधान को

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** नीम करेले क्या जानेंगे बाबा जी की शान को, सोच औकात अपनी और पढ़ ले संविधान को, बाहरी बातों में आकर भूले उनके ज्ञान को, सोच औकात अपनी और पढ़ ले संविधान को, स्कूल के बाहर रहकर क्या तू पढ़ पाता रे, रो रो पाठशाला छोड़ घर को चला आता रे, याद कर झाड़ू पीछे गले थूकदान को, भूल जा पाखंड बांटे ऐसे विद्वान को, सोच औकात अपनी और पढ़ ले संविधान को, मुसीबतें सह सह कर भी बस्ता उसने उठाया था, जातिवादी ताने सुन-सुन आंसू खूब बहाया था, प्रचलित ढोंगों पर उसने उंगली प्रतिपल उठाया था, चमत्कार को नहीं मानकर तार्किक प्रश्न लाया था, अभावों में पढ़कर उसने कई डिग्री लाया था, भीमराव की नजर से आ देख ले जहान को, सोच औकात अपनी और पढ़ ले संविधान को, ढोंगियों की ढोंग के आगे नतमस्तक होना पड़ा, मुश्किलों से मिला हुआ अधिकार खोन...
भारत पथ के हम पथिक
कविता

भारत पथ के हम पथिक

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** ख़ौफ़ नही आंधी-तूफां का बढ़ते आगे हम हैं, अथक। अंगारों पर जाते चलते नित भारत पथ के हम हैं पथिक।। देश की खातिर मरना सीखा वीर शहीदों की कुर्बानी से। दुश्मन से लोहा लेना सीखा लक्ष्मी बाई महारानी से।। यह देश है आंखों का तारा कण-कण लगता स्वर्ग समान। यह धरती है जननी हमारी शहादतों से गर्वित श्मशान।। विंध्य-हिमालय यमुना-गंगा है जहां हमारे अरमानों के। खिलते यहां नित सुखद सुमन देश-धर्म के आख्यानों के।। देकर लहू जिगर का अपना रखना यह अमर कहानी है। त्याग भेद उर से अब सारे भारत की लाज बचानी है।। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहान...
उषाकाल
कविता

उषाकाल

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** उषाकाल में सागर तट पर रवि की सारथि बन अरुण की अरुणाई छा गई विश्वपटल पर। उसकी सुखद मृदु छाया भा गई धरती को बन माया आभास दिवस का आया कर्म को गति, प्रकाश छाया अविरलअनन्त अस्तित्व उसी का जिससे बहती जीवनधार जिससे ही आल्हादित, स्पंदित हो अग्र बढ़े यह संसार। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की कविताएं लिखती हूं जो कि समय की‌ मांग भी‌ है। आजकल देशभक्ति लुप्तप्राय हो गई है। इसके पुनर्जागरण के लिए प्रयत्नशील हूं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमा...
तुम ब्रह्मज्योति हो
कविता

तुम ब्रह्मज्योति हो

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** मैं सूखा पत्ता हूँ, पतझड़ का, तुम नये बसंत का नया कँवल, मेरा परिचय खोने वाला है, तुम बीजांकुर जड पौध नवल, मैं सुर्ख तना, अब त्यक्तमना, तुम मधु मधुकर शुक पिक अरू फल, मैं आज शाम का ढलता सूरज, तुम ऊषा भोर अरुणोदय कल, मैं उलझी समस्या, बुझता दीपक, तुम ब्रह्म-ज्योति हो, सबका हल, मेरा जीवन, मैली चादर, तुम अमृत, निर्झर का पावन जल, हाथ पकडकर चढ़े शिखर, तुम छांँव बनाओ, ठाँव सफल, अंधक्षितिज, मैं पथिक त्राण का, तुम पथ, ज्योति, किरणें उज्ज्वल, मैं प्रतिबिंब, बिखरती, जर्जर कृति, तुम अनुपम आभा बलराम संबल, मैं ठहरा नीर, पीर हूँ गहरी, तुम प्रबल प्रवाह शिव सत्य अटल, मैं आतुर व्याकुल नम सिकताकण, तुम्हें पाना हिम के शिखर धवल, चट्टानें टूटी, अनुनादों से, दीपक-राग रतन ठुमरी है, उर में कितने तिमिर समेटे, तब मोहन मूरत उभरी है, मेरी र...