खुशियों का पैगाम
रुचिता नीमा
इंदौर म.प्र.
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किसी की याद जब हद से गुजर जाए
तो कोई क्या करें....
कोई दूर रहकर भी बहुत याद आये
तो कोई क्या करे....
न मिलना हो मुमकिन,
न भूलना हो मंजूर....
कोई फितूर बनकर छा जाए
तो कोई क्या करे
ये खुदा!!!!!
अब तो मदद कर
या तो मिला दे उसको
या फिर ज़ेहन से ही मिटा दे
क्योंकि होश के बादल जब छाए
तो कोई क्या करे
अब जीना भी हुआ मुश्किल
और मौत भी आती नहीं
ऐसे में बेहोशी अगर छा जाए
तो कोई क्या करे
ये खुदा!!!!!
अब तू ही राह दिखा
वरना हर तरफ जब अंधेरा ही दिखाई दे
तो कोई क्या करे
अब तो हर तरफ बिखेर दे
उम्मीदों की लड़ियाँ....
क्योकि मायूसी अगर छा जाए
तो कोई क्या करें।।
अब बस बहुत हुआ....
अब तो बस कोई खुशियों का पैगाम
ही आये, दिल ये दुआ करे
परिचय :- रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस...