मायाजाल
धैर्यशील येवले
इंदौर (म.प्र.)
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सूरज आहिस्ता आहिस्ता
धरती के आगोश में समा जाता है,
हम जमीन से पत्थर उठा कर
बेवजह दरिया के सीने पे मारते है
देखते है उठती हुई तरंगे
जो साहिल से टकराती है
तरंगे दिल पर चोट करती है
हमआँखों का बांध टूटा पाते है
सन्नाटे की बज़्म में न जाने
कब तक अपने गीत सुनाते है
और न जाने कब तक स्याह
आसमा में सितारों के पैबंद लगाते है
रात की सिसकियों की
महफ़िल शुरू होती है
हर निगाह में सवाल होता है
हम गुमसुम से क्यो बैठते है
मुसलसल कदमो की आहट
आती है कोई नज़र नही आता
ये कोई राह का जादू है
या हमआगत को देख नही पाते है
ये हवा का शोर रक्स करते पत्ते
ये रात बड़ी अजीब है
कोई जरूर हमारे करीब आता है
हम है कि उससे दूर भाग जाते है
हर रोज सूरज डूबते ही
शुरू होती है ये वारदातें
हम अपना जिस्म छोड़ कर
न जाने क्या क्या खोजते है।
परिचय :- धैर्यशील येवले
जन्म : ३१ अगस्त १९६३...