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कविता

पीढ़ी-दर-पीढ़ी
कविता

पीढ़ी-दर-पीढ़ी

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** दो पैरों की गाड़ी चलती जा रही है अवनि अम्बरतल सब देख रही है। कोरोना प्रकोप तांडव झेल रही है कुरुक्षेत्र के कृष्ण पांडव टेर रही है। जुनून था कभी जज़्बा बदल रही है नासमझी की राहें बलवा कर रही है। प्रदर्शन धरनों की बौछार सह रही है आस-विश्वास की व्यथा कह रही है। अपनों और सपनों को यूं तौल रही है कटु प्रवचन से जिंदगी जो खौल रही है नाटक पे नाटक के वो पट खोल रही है ममता-समता हर युग अनमोल रही है शिक्षा-संस्कार किस तरह संभाल रही है परिवर्तन अब परंपरा को खंगाल रही है। पुरखे धनपति चाहे पीढ़ी कंगाल रही है नव पारंगत पीढ़ी अब गुरु-घंटाल रही है। मेहनत मन्नत खिदमत की फ़िज़ा रही है किस्मत ताकत आदत की रज़ा रही है नेता नव-भारत के मंसूबे सजा रही है जनता ढपली से अपना राग बजा रही है हौसलों से अब फासलों को नाप रही है गुजरी यादें अपने हाथों से ताप रही है चालें ...
जय माँ महिषासुर मर्दिनी
कविता, भजन

जय माँ महिषासुर मर्दिनी

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** जय मांँ महिषासुर मर्दिनी जग के सकल कष्ट निवारिणी है अस्तित्व ब्रह्मांड का तुमसे ही आदिस्वरूपिणी जब न था सृष्टि का अस्तित्व था अंधकार ही अंधकार चहुँओर जग में बिखरा हुआ तब तुम ही सृष्टि-रचनाकार सूर्य सी देदीप्यमान तुम सा न कोई कांतिवान सकल जग की प्रसविणी, माँ कूष्मांडा सृष्टि रूपिणी अपनी मंद स्मिति से तूने की ब्रह्मांड की उत्पत्ति अपने उपासकों को देती लौकिक पारलौकिक उन्नति आधि-व्याधि विमुक्तिनी तू मांँ सुख-समृद्धि प्रदायिनी विकार - महिषा का कर मर्दन मांँ तू शुभ भाव संचारिणी युग में फैली अराजकता सबका शमन करो कल्याणी! परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी : पटना (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अ...
रावण
कविता

रावण

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** जलता अन्दर-बाहर रावण! जीवित होता मरकर रावण! वह बुराइयों का प्रतीक है, करता जादू मन पर रावण! "व्यापक है मेरा अस्तित्व" जग से कहता हँस कर रावण! बौना हो अथवा नभचुम्बी कुछ पल मिटता जलकर रावण! छलता है सबको मायावी अपना रूप बदलकर रावण! अभिमानी है बलशाली भी जाता रहता घर-घर रावण! दस आनन थे मगर राम से हुआ पराजित लड़कर रावण! मारो, काटो, उसे जलाओ नष्ट नहीं होता पर रावण! रशीद' आप सच्चे बन जाओ भग जाएगा डरकर रावण! परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा...
अहम ब्रम्हास्मि
कविता

अहम ब्रम्हास्मि

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** जोड़ नाता मानवता से ईश्वर मिलेगा सरलता से।। जो ढूंढ रहा है तू बाहर वो बैठा है तेरे ही भीतर खोल कपाट अंतस के कर दर्शन परमात्मा के जीवन के खेल निराले कुछ उजले कुछ काले कह रहे कोमलता से जोड़ नाता मानवता से ईश्वर मिलेगा सरलता से।। राम नाम की शरण में मोक्ष छुपा है मरण में जीवन को स्वर्ग बनाकर दूजे का बन दिवाकर नित नये आनंद पायेगा जगत चैतन्य हो जायेगा मिला दे कर्म धर्मता से जोड़ नाता मानवता से ईश्वर मिलेगा सरलता से।। जीवन की यही आस है प्रभुमिलन की प्यास है भीतर मेरे जो घट रहा लोगो मे है वो बट रहा आलोकित है मन मेरा दूर कर दूंगा तमस तेरा नाता न रहा दुर्बलता से जोड़ नाता मानवता से ईश्वर मिलेगा सरलता से।। सरिता के जल सा वसुधा के तल सा नभ के परिमल सा दीप के अनल सा पवन के निर्मल सा हो गया मैं ब्रह्मांड सा पंच तत्व की पावनता से जोड़ नाता मानवता से ई...
मासूमियत
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मासूमियत

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** (बेटी को समर्पित) हमने देखी है मासूमियत एक सच की तरह, वो मासूम सी है, स्निग्ध चांदनी सी धवल भी, शक्ल पर नूर सा बिखरा है उसके शुद्ध, शांत और सौम्य सी है। कभी नन्ही, चंचल, अल्हड़पन से घिरी हुई से, कभी कठोर, अटल, अडिग सी आसमान की ऊंचाई को नापती हुई दिखती है, कभी गंभीर, समुंदर की गहराई छुपाए हुए चुपचाप सी उमंग की लहरें भी बेतहाशा दौड़ पड़ती हैं ठोकर भी खाती हैं, वापस भी आती हैं, गिर के उठती भी हैं, सपने कल्पना बनकर आंखों में सजते भी हैं आंख खुली तो वो हकीकत बनकर टूटते भी हैं। फिर भी उसकी मासूमियत जिंदा है उसमे, कल भी थी, आज भी है, मासूम सी ही रहेगी खुद में।। परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए.,एम.फिल – समाजशास्त्र,पी....
लड़ रहे… बढ़ रहे…
कविता

लड़ रहे… बढ़ रहे…

दीवान सिंह भुगवाड़े बड़वानी (मध्यप्रदेश) ******************** कोई लिख रहा है, कुछ लोग पढ़ रहे हैं कोई पढ़ते हुए लड़ रहा है, कुछ लोग लड़ते हुए पढ़ रहे हैं। कोई बोल रहा है, कुछ लोग आवाज उठा रहे हैं कोई जुड़ रहा है, कुछ लोग लड़ रहे हैं। कोई चल रहा है, कुछ लोग दौड़ रहे हैं कोई स्वयं के लिए, कुछ समाज हित में लड़ रहे हैं। कोई अधिकारों के लिए, कुछ कर्जदारों हेतु लड़ रहे हैं कोई ठगों को पकड़ रहा है, कुछ लोग मांगों हेतु लड़ रहे हैं। कोई अपना ही रोक रहा है, कुछ लोग रास्ते में अड़ रहे हैं कोई जातियां तोड़ रहा है, कुछ लोग समाज जोड़ रहे हैं। कोई हौंसला बढ़ा रहा है, कुछ लोग हिम्मत जुटा रहे हैं कोई राजनीति कर रहा है, कुछ आपबीती हेतु लड़ रहे हैं। कोई रहमत कर रहा है, कुछ लोग मेहनत कर रहे हैं कोई जागरूक कर रहा है, कुछ लोग लड़ते हुए बढ़ रहे हैं। परिचय :- दीवान सिंह भुगवाड़े निवासी : बड़वानी (म.प्र.) घ...
मां तेरे चरणों में
कविता

मां तेरे चरणों में

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** शीश झुकाऊं मां तेरे चरणों में पल पल ध्यान करूं मां और शीश तेरे चरणों में झुकाऊं मां। जब जब तेरा स्मृण करूं आंखें खोलूं तेरा सुन्दर रूप दिखें मेरी मां। ज्ञान दीप जले तेरे आंचल में मां, तू जननी है मां इस सृष्टि की नहीं भेद भाव किसी से करती तू मां। नहीं कोई वजूद मेरा मां, और नहीं कोई तेरे सिवा मेरा मां। तू धनी अपनी ममता की मां, सरणागत हूं मां ख़ाली हाथ आया था, खाली हाथ जाऊंगा तेरा आशीष मिल जाए जीवन मेरा तर जाये मां। तेरे दर आतें सभी दिन दुखियारें मां, सभी की मनोकामना करती पूरी मां गगन भी खड़ा शिश नमाये पुष्प सुमन आरती लिए हाथ जोड़कर भक्ति भाव से तेरे चरणों में हूं मां। परिचय :- गगन खरे क्षितिज निवासी : कोदरिया मंहू इन्दौर मध्य प्रदेश उम्र : ६६वर्ष शिक्षा : हायर सेकंडरी मध्य प्रदेश आर्ट से सम्प्रति : नर्मदा घ...
अच्छा लगता हैं…
कविता

अच्छा लगता हैं…

राजेश चौहान इंदौर मध्य प्रदेश ******************** अच्छा लगता हैं...... कवि को मंच और दर्शकों को बातों का पंच अच्छा लगता हैं...... सौ झूठ कहने से, एक सच कहना अच्छा लगता हैं...... कभी-कभी अपनों से हार जाना, जीत जाने से अच्छा लगता हैं...... अमीरों के राजमहल से, गरीब की कुटिया में रहना अच्छा लगता हैं...... एकल परिवार में रहने से, संयुक्त परिवार में रहना अच्छा लगता हैं...... नई फिल्मों को देखने से, पुरानी फिल्मों को देखना अच्छा लगता हैं..... डीजे की भड़भड़ से, ढोलक की मधुर थाप पर नाचना अच्छा लगता हैं...... अच्छे काम के लिए झूठ बोलना, सच कहने से अच्छा लगता हैं...... विदेशों में रहने से, अपने देश में रहना अच्छा लगता हैं...... बहुत अधिक बोलने से, मौन रहकर कहना अच्छा लगता हैं....... वर्तमान महामारी को देखकर, घर में सुरक्षित रहना अच्छा लगता हैं..... परिचय :- राजेश चौहान (शिक्षक) निवासी : इंदौ...
मैं एक अदना सा शिक्षक
कविता

मैं एक अदना सा शिक्षक

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** मैं एक अदना सा शिक्षक, अपनी जिंदगी की सफर में, समय का पाबंद और नियमों, का गुलाम रहा घनघोर बरसात हो। या कड़क धूप की दुपहरिया हो- हम अपनी पूरी लगन और निष्ठा से- जीवन की विगत कई बसंतो को- अपनी जीवन में आहिस्ता-आहिस्ता दफन होते देखकर हैरान हुआ- एक पुरानी साइकिल पर रेंग कर चढना फिर अपने गंतव्य पर! पहुंचने की जद्दोजहद से- हकलान और परेशान हुआ! मैं एक अदना सा शिक्षक- अपनी जिंदगी की सफर में- समय का पाबंद और नियमों- का गुलाम रहा परेशान रहा! अपनी जीवन के बीते पल पल को- समय की प्रवाह में बहते देख अवाक रहा! दरवाजे पर खड़ी इंतजार में- मेरी सह धर्मनी और छोटे बच्चे- सभी परेशान और उदास रहा! नियत समय पर हाथों में पंखा लिए- चिलचिलाती धूप की लू में उदास भया क्रान्त रहा! अब थक गया हूं जिंदगी की उम्मीदों से- बस मां भारती तेरी आंचल में छुप कर- सो जाओ जिंदगी ...
गरीबी की परिभाषा
कविता

गरीबी की परिभाषा

संजय जैन मुंबई ******************** गरीबी क्या होते है किसी किसान से पूछो। ये वो शख्स होता है जो खाने देता अन्य। परन्तु इसकी झोली में नहीं आता उसका हक। इसलिए यही से गरीबी का खेल शुरू हो जाता है।। कड़ी मेहनत और लगन से किसानी वो करते है। कितना पैसा और समय वो इस पर लगाते है। और फल के लिए वो भगवान पर निर्भर होते है। और गरीबी अमीरी का निर्णय फसल आने पर होता है।। मेहनत और काम ही इन का लक्ष्य होता है। उसी के बदले में जो कुछ इन्हें मिलता है। उसे इनका जीवन यापन चलता है। अब निर्णय आपको करना है की ये गरीब है या.....।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-...
आज फिर घूमना है
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आज फिर घूमना है

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** स्वतंत्रता मिल चुकी है, आजादी से सबको प्यार, आसमान अब चूमना है, लो आज फिर घूमना है। आजादी के रूप अनेक, कोई काम से है आजाद, किसी को बचपन याद, कोई करता है फरियाद। कोरोना के बंधन में थे, अनलॉक के दिन आये, बीते के दिन भूलना है, लो आज फिर घूमना है। कैदी काट रहा था जेल, कैदियों से था बस मेल, छूट गया फिर, कैद से, कैद से खत्म हुआ खेल। कैदी हुआ कैद से रिहा, कैदखाना दिन भूलना है, प्रसन्न बहुत नजर आया, आजाद फिर, घूमना है। पढ़ते पढ़ते हुआ बोर, नींद हैं आंखों में घोर, परीक्षा संपन्न हो गई, आज फिर, घूमना है। दौड़ रहा मंजिल ओर, मंजिल अभी दूर ना है, एक दिन मिले मंजिल, तब तक यंू घूमना है। दुश्मन बचकर निकले, आंसू आंखों से, बहते, अब दुष्ट को, घूरना है, ले आज फिर घूमना है। गर्मी की छुट्टियां, शुरू, स्कूल अब, भूलना है, दौड़ चले, सैर सपाटा, लो...
हे माँ तुझको नमन है
कविता, भजन

हे माँ तुझको नमन है

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** हे माँ तुझको नमन है स्वीकार करो माँ हे माँ तुझको नमन है बारम्बार नमन है हे माँ तुझको नमन है स्वीकार करो माँ ऐसा वर माँ मुझको दो करता रहूं गुणगान जीवन पथ पर अडिग न होऊं हे माँ तुझको नमन है स्वीकार करो माँ प्रेम प्यार मुझमें भर दो जो आए खाली न जाए कर्म वचन से न मैं रहूँ दूर सदा हे माँ तुझको नमन है स्वीकार करो माँ भक्ति में शक्ति है माँ सदा रहूँ चरणों में तेरे इतनी शक्ति मुझे दे दो झूठ कभी न बोलूं मैं माँ हे माँ तुझको नमन है स्वीकार करो माँ अबोध बालक हूँ मैया करो मेरा कल्याण दया दृष्टि डालो मुझ पर दो मैया तुम ऐसा वरदान हे माँ तुझको नमन है स्वीकार करो माँ हो तुम जगत दात्री माँ मोहन की रख लो लाज जो आता शरण में तेरे जगदात्री करो स्वीकार हे माँ तुझको नमन है स्वीकार करो माँ परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी...
मुसाफ़िर
कविता

मुसाफ़िर

मोहम्मद मुमताज़ हसन रिकाबगंज, (बिहार) ******************** मुसाफ़िर- चलता है निरन्तर अपनी मंजिल की तलाश में रास्ते के तमाम झंझावतों को करके दरकिनार बढ़ता जाता है-अपने लक्ष्य की ओर तय कोई पड़ाव है न ठिकाना कहीं स्वयं भी नहीं जानता वह ख़त्म होगा कहां जाकर ये सफ़र जीवन का चलना, लड़खड़ाना, गिरना फिर सम्भलना- उबड़-खाबड़ रास्तों को लांघते हुए पुनः चल पड़ना- अपने लक्ष्य की ओर, पड़ाव की तलाश में- जीवन शायद इसी का नाम है!! परिचय : मोहम्मद मुमताज़ हसन सम्प्रति : लेखन, अध्ययन निवासी : रिकाबगंज, टिकारी, गया, (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेत...
मातृ-पितृ भक्त होती बेटी
कविता

मातृ-पितृ भक्त होती बेटी

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** तन से समर्पण मन से समर्पण सब कुछ अपना कर दे अर्पण नयनो में आत्मिक भाव झलकता हृदय में उपस्थित अति कोमलता उल्लास का अर्णव होती बेटी मातृ- पितृ भक्त होती बेटी दो कुलों की लक्ष्मी और लाज इस आधुनिकता में भी परायी आज कहने को सिर्फ शब्द है आज के युग में, बेटा बेटी एक समान पर जब अधिकारो का बँटवारा होता फिर कर्तव्यों के लिए क्यों असमान दूसरे कुल जाकर, कुल का मान बढ़ाती संवेदनशील होकर हर रिश्ता निभाती फिर भी हर गलती की जिम्मेदार वही ठहरायी जाती क्यों समझी जाती हैं वह परायी बेटी जबकि मातृ-पितृ भक्त होती बेटी हो चाहे धर्म माता-पिता या जन्मदाता हृदय दोनों से स्नेह, अपनत्व है चाहता ससुराल में भी जब बेटी मुस्कुराये, सम्मान पाएं तो हर माता-पिता बेटी के जन्म से न घबराए सभी खुशी की अनुभूति से बेटी दिवस मनाएं सर्व गुणों की खान, प्रत्येक क्षेत्र में...
स्त्री भी एक इंसान है
कविता

स्त्री भी एक इंसान है

डॉ. सोनल मेहता भोपाल म.प्र. ******************** अच्छा लगता है जब अपने लिए कुछ अच्छा सुनती हूँ. कानों में संगीत सा बजता है. झूठ होगा कहना कि मुझे तारीफ़ से फ़र्क़ नहीं पढ़ता, ये फ़र्क़ तब महसूस होता है जब अपनों से अपनी ख़्वाहिशों पर ताना मिलता है जब महसूस कराया जाता है कि घर की ज़रूरतें पूरी करना मेरा शौक़ है मेरा वजूद सिर्फ़ किचन तक है . उफ़्फ़ ये क्या कह दिया. वजूद ! ये कब मेरा हुआ हुआ है मेरा तो वो है मेरा अकेलापन जो बर्तनों के शोर से कभी घबरा सा जाता है और खुद के लिए एक निवाला सुकून का चाहता है. परिचय :- डॉ. सोनल मेहता निवासी : भोपाल म.प्र. सम्प्रति : इंसान बनने की कोशिश शैक्षणिक योग्यता : पी.एचडी., एम.फ़िल, एल.एल.बी., एम.बीए, एम.एड, एम.ए, बीएससी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी र...
बचपन हमारा
कविता

बचपन हमारा

सपना दिल्ली ******************** कितना प्यारा होता है, बचपन हमारा न किसी बात की फ़िक्र हमें, न किसी से ड़र हमें, न कोई टेंशन जो जी में आए करते जिसे करने का मन न उससे कोसों दूर भागते। पापा की परी कहलाती माँ की गुड़िया होती भाई की लाड़ो बहन की चुटकी दादा-दादी के आँखों का तारा। जब पापा पूछते, सबसे प्यारा कौन? तो पापा की साइड हो जाती, और जब यही प्रश्न माँ करती तो माँ के आंचल से लिपट जाती और कहती सबसे प्यारी आप! माँ जिसे करने से मना करें वही करने को मन बाए औ’ पकड़े जाने पर, भाई, दीदी को आगे कर ख़ुद पीछे छिप जाती। मन करता तो पढ़ती वरना न पढ़ने के सौ बहाने बनाती अपना काम दीदी से करवाती औ’ ख़ुद छोटी होने का फ़ायदा उठाती। सबसे अपनी बात मनवाती छोटी-छोटी बातों पर रूठ जाती और फिर पल-भर में ही मान जाती। सखियों संग मिलकर शोर से कॉलोनी सिर पर उठा देती तब न भूख लगती, न प्यास, खेल में सब कुछ भूल जाती। ……वह ...
माँ
कविता

माँ

सौरभ कुमार ठाकुर मुजफ्फरपुर, बिहार ************************ जब-जब गलत हुआ धरती पर आई माता तुम बारम्बार फिर से कष्ट एक आन पड़ा है आ जाओ फिर से ईक बार माता करो जग का उद्धार। देखो मानव फिर ग्रसित हुआ है, बहुत ही हो रहा अत्याचार देखो तेजी से पाप हो रहा है एक दिनों में लाखों बार माता करो जग का उद्धार। जब मानवता पर दुख बरसा है कष्ट हरा तूने हर बार फिर से माते कष्ट हरो और आशीष तुम देना अपरंपार माता करो जग का उद्धार। परिचय :- नाम- सौरभ कुमार ठाकुर पिता - राम विनोद ठाकुर माता - कामिनी देवी पता - रतनपुरा, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार) शिक्षा - १० वीं के छात्र और बाल कवि एवं लेखक जन्मदिन -१७ मार्च २००५ देश के लोकप्रिय अखबारों एवं पत्रिकाओं में अभी तक लगभग ५० रचनाएँ प्रकाशित सम्मान- हिंदी साहित्य मंच द्वारा अनेकों प्रतियोगिताओं में सम्मान पत्र, सास्वत रत्न, साहित्य रत्न, स्टार हिंदी ब...
तुम कहाँ हो?
कविता, भजन

तुम कहाँ हो?

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** माँ तुम यहाँ हो कि वहाँ हो, माँ तुम इस संसार में कहाँ-कहाँ हो। मैने सुना माँ तुम इस संसार के कण-कण में हो, माँ तुम कहाँ हो, माँ तुम कहाँ हो। माँ करके सिंह सवारी, माँ लगे सारे संसार को प्यारी। माँ पहने चुनर-साड़ी, जग को लगे तू माँ प्यारी। माँ तुम्हे पूँजे जग के सब नर-नारी, तुमपे वारी-वारी जाये ये जनता सारी। पंडित जी लो मैया की नजर उतारी।। कोई बेचे माँ गली-गली घूम-घूम तरकारी, कोई करे माँ की कृपा से नौकरी सरकारी। मुझे चाहिये माँ कृपा तुम्हारी, सदा बनी रहे हमारे ऊपर दयादृष्टि तुम्हारी। माँ तुम यहाँ हो माँ तुम वहाँ हो, माँ तुम सारे जहाँ के कण-कण में हो। माँ तुम हर गाँव-गाँव और शहर-शहर में हो, माँ तुम हर एक के मन मंदिर में हो। माँ तुम इस नौरातम में गली-गली डगर-डगर के पंडालो में सजी हो, हर गाँव-गाँव शहर-शहर में माँ तुम्ही ही तुम्ह...
सपने सजने लगे
कविता

सपने सजने लगे

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** धीरे-धीरे हौले-हौले हवा के झोके चलते रहे खुशी के पैगाम दिल में लिए हम मन के दामन समेटने लगे सपने सजने लगे। चाँद तारो की चादर ओढ़कर उनकी बातें अमल करने लगे खुशी के पैगाम लिए हम तकदीर पढ़ने लगे सपने सजने लगे शाम ढली रात आई लम्हों की ख्वाब सजे थे दिल में मेरे खुशी अपनी पहलू में लिए हम हाथ की लकीरें पढ़ने लगे सपने सजने लगे। जिन्दगी की जब सुबह आई हम अपनी धुन में मग्न रहे खुशी का सावन लिए हम अरमान ले बरसने लगे सपने सजने लगे दिन गुजरे साल गए गुलिशता में फूल खिले खुशी का एहसास लिए हम जिन्दगी के मायने पढ़ने लगे सपने सजने लगे परिचय :- बबली राठौर निवासी - पृथ्वीपुर टीकमगढ़ म.प्र. घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक...
माँ ऐसा वर देना।
कविता

माँ ऐसा वर देना।

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** नमन करु माँ मे तुझको, ऐसा वर मुझको देना। दुखियों के दुखः हम दूर करें, श्रृम से कष्टों से नहीं डरें, उर में सबके प्रति प्यार, भरें। ऐसी शक्ति मुझे देना। जल बनकर मरुस्थल, में बिखरें, बाधाओं से टकरा जाये माँ ऐसा ज्ञान हमें देना। आलस के दिवस कटें, न कभी, सेवा के भाव मिटे न कभी, पथ से ये चरण हटें न कभी, जनहित के कार्य न छूटे कभी, देवी क्षमतार विकसाये, ऐसा भाव हमें देना। यह विश्व हमारा ही घर है उर में स्नेह का निर्झर हो, मानव के बीच न अंतर हो, बिखरा समता का मृदु स्वर हो, ऐसा भाव जगा देना। माँ ऐसा वर मुझको देना। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन...
वक़्त के वक्तव्य
कविता

वक़्त के वक्तव्य

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** वक़्त पर वक्तव्य होता, कृतत्व से ही पार होगा कल के इंतज़ार में बंधु, जीवन दुश्वार ही होगा। "काल करे सो आज कर, आज करे सो अब पल में परलय होएगी, बहुरि करैगो कब" कबीर की साखी से, कर्मों में सुधार ही होगा कल के इंतज़ार में बंधु, जीवन दुश्वार ही होगा। आज का भी काज है, कुछ कल का भी होगा टालने की आदत से, आखिर किसका भला होगा भला खुद का ना करो तो, कई गुना भार होगा। कल के इंतज़ार में बंधु, जीवन दुश्वार ही होगा। हर कार्य समय पर होना, माना संभव ना होगा अनायास विवशता चक्रों से, सबका परिचय होगा नैतिक शिक्षा अभाव से, मानव जार-जार होगा कल के इंतज़ार में बंधु, जीवन दुश्वार ही होगा। शान बनती पूर्णता से, टालने का भी नशा होता स्वबिम्ब ही गुम जाए, ऐसा धुंधला शीशा होता क्षमा दया का पात्र बने, जीवन तार -तार होगा कल के इंतज़ार में बंधु, जीवन दुश्वार ही होगा। कर्...
हाई-वे के ढाबों सी
कविता

हाई-वे के ढाबों सी

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** कुछ टूटे, कुछ छूटे, ख्वाबों सी, जिंदगी अपनी हाई-वे के ढाबों सी! अब तो वही बुलंदी पर पहुंचते हैं, ज़हन जिनका गंदा, जुबां गुलाबों सी! मेरे चरित्र को घटिया बताने वालों, तुम्हारे चरित्र से बदबू आती जुराबों सी! शब्द मैं फिजूल क्यों खर्चूं उनके लिए ज्ञान की बातें दीमक लगी किताबों सी! जाने कहाँ खो गए खुशियों भरे पल फिरती हैं घड़ी की सुईयां अज़ाबों सी! परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान समय में कवि सम्मेलन मंचो...
मेरे बेटे ने
कविता

मेरे बेटे ने

धीरेन्द्र पांचाल वाराणसी, (उत्तर प्रदेश) ******************** छोड़ दिया है दामन मेरा मेरे बेटे ने। दूर हो जाओ दोनों बोला मेरे बेटे ने। जिसको राजा बेटा कहकर रोज बुलाते थे। जिसका सर सहलाकर पूरी रात सुलाते थे। क्यों इतना कड़वा बोल दिया है मेरे खोटे ने। दूर हो जाओ दोनों बोला मेरे बेटे ने। गिरवी मेरे सपने मेरी इच्छाएं लाचार थी। उसकी दुनिया लगती मुझको मेरा ही आकार थी। कैसे धक्के मारे मुझको मेरे छोटे ने। दूर हो जाओ दोनों बोला मेरे बेटे ने। क्या करुणा का सागर उसका सुख गया होगा। बूढ़े कन्धों से उसका मन ऊब गया होगा। गले लगा ले माँ बोली ना समझा बेटे ने। दूर हो जाओ दोनों बोला मेरे बेटे ने। डर लगता है यहाँ पराये होंगे कैसे कैसे। घर ले चल तू मुझको मैं रह लुंगी जैसे तैसे। एक बार ना पीछे मुड़कर देखा बेटे ने। दूर हो जाओ दोनों बोला मेरे बेटे ने। सुखी अंतड़ियों की खातिर अब दो रोटी भी भारी है। जिसने उसको...
संगीत से तुम
कविता

संगीत से तुम

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** तुम! जैसे कोई मीठा लम्हा "संगीत" का !! शाश्वत ताजगी!! से भरा हुआ!!! दिव्य स्मिति! में लिपटा हुआ!! आत्मा को! ब्रह्मानंद!! की अनुभूति भरे अतुलनीय दिव्य संगीत में डुबोता हुआ!!! भाव विभोर करती अविस्मरणीय संगीत-संध्या की स्मृतियों की! खूँटियों में!! टँगा हुआ!!! जिसमें भरा है! मेरे जीवन-संगीत का नादमय आकाश!!! जिसे जब मैं चाहती हूँ अपने हृदय की जमीं पर झुका लेती हूँ! और भर लेती हूँ अपने आगोश में!! प्राप्ति परम आनंद की!!! परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी : पटना (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा ...
सवालों से परे लिखो
कविता

सवालों से परे लिखो

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** क्या......? कब.......! क्यों.......... ? किस लिए......! के प्रश्नों में, क्यों हम उलझते है। लिखावटों से , पीढ़ी दर पीढ़ी के, सोपान जब बदलते है। क्या लिखूँ..... यह सोच कर, कलम रूक न जायें। वो लिखों ... सोच जहाँ थम न जायें। जिंदगी के सोपानों से होती हुई। क्षितिज तक लें जायें। जिंदगी के तमाम पहलू, लिखों। कुछ आम,कुछ खास, लिखों।। ईश्वर को, अभार व्यक्त करते हुयें। जीवन की कहानी लिखों। वेदों की जीवन में, बहती रवानी। लिखों।। लिखों........... मानवता सर्द क्यों हो गई है। ईश्वर की बनाई। स्वर्ग रूप धरती को, नरक में क्यों झोंक रही है। लिखों.......... दिलों में अब, प्रेम के बीज। अंकुरित क्यों होते नही अब। मानवता अपने हाल पर। क्यों..... यार-यार रो रही है। लिखों......... हम क्यों अपनी, सभ्यता भूला गये। हम तो..... अंधविश्वासों से , लड़न...