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कविता

व्योम के बादल
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व्योम के बादल

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** व्योम के बादल बहा ले, नीर तू, देख धरती रो रही है। रो रही सारी दिशाऐं, ज्वार सागर में उठा है, रो रही जग की हवाऐं। व्योम के बादल बटा, ले पीर तू। रो रहे पाषाण जिन पर, खेलते निर्झर बहे है, रात दिन सरवर रहे हैं। व्योम के बादल हटाले, नीर तू। रो रहा मेरा हर्दय है, रो रहे है नैन मेरे। जल रही ज्वाला विरह की जल रहे सुख चैन मेरे। व्योम के बादल बंधा दे, धीर तू। व्योम के बादल बहा ले, नीर तू। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहि...
व्हाट्सएप मैसेज नहीं कोई खत भेज दो मेरे पते पर
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व्हाट्सएप मैसेज नहीं कोई खत भेज दो मेरे पते पर

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** पता नहीं चल पाता है, संदेश आकर जाता है, कई कई दिन पढ़ते ना, नहीं इनसे कोई नाता है। पुराने वक्त का खत था, आकर मन हर्षाता था, गमी और खुशी सारी, एक झलक कहता था। खत जब आता था घर, डाकिया चल आता था, जोर से दरवाजे पर बोल, खत हमको दे जाता था। आस पास पता लगता, इनके कोई चिट्ठी आई, खुशी भरी खबर मिले, सारे मोहल्ले खुशी मनाई। गम भरा खत होता था, सबको पता लग जाता, पढ़कर वो समाचार ही, गम हमें बहुत सताता। अब क्या मोबाइल चले, दिनभर करे आंखें खराब, लगता चेहरा मानव का, जैसे पी रखी हो शराब। इंसान रखता मोबाइल है, सोचता अपने को महान, ये चीजें कभी ना बनाती, इंसान की कोई पहचान। पुरानी विचारधारा बनी, मोबाइल नहीं खत रूप, खत संदेश दे मन खुशी, खत संदेश होता अनूप। करते थे इंतजार दिनरात, आयेगा कोई शुभ संदेश, अच्छा संदेश जब मिले, इच्छा ना रहती थी शेष। ...
बेटियां
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बेटियां

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** अपने गांव का दिखे या ख़बर हो खुश होती है बेटियां बिदाई के समय रुलाती है बेटियां मोबाइल बेटी का आता पूरे घर को नजदीक कर देती बेटियां भाई के रिजल्ट सुनकर ससुराल में मिठाई बटवा देती बेटियां घर आंगन के गुड्डे गुड़ियों को छोड़ बहुत दूर जा बसती बेटियाँ घर मे बेटियों का टूटता खिलौना डर होता आने पर डाँटेगी बेटियां नन्ही चिड़िया सी उड़कर ससुराल में बना लेती बसेरा बेटियां त्यौहार पर नही आ पाने से रिश्तो को रुला देती बेटियां मोबाइल पर दुःख की बातें कभी नही बताती बेटियां मायके-ससुराल को तराजू के पलवो में रिश्ते तोलती बेटियां बेटियों से मिलकर आने पर हिम्मत आजाती खुशियां नाच गा उठती बातें सुनाती नए रिश्तों के घर आंगन को ऐसी होती है प्यारी सी लाडली बेटियां माता- पिता की ता उम्र फिक्र करती बेटियां बेटी की याद आने पर आँसू छलकाती अंखिया परिचय :- संजय वर्...
टूटते गठबंधन और निदान
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टूटते गठबंधन और निदान

विकाश बैनीवाल मुन्सरी, हनुमानगढ़ (राजस्थान) ******************** चौपाल नहीं रही, ना रहे चबूतरे, आपसी खीज ने सब तोड़ डाला। ग़लतफ़हमियो से भरे रिश्तों ने, एकांतता की और मुँह मोड़ डाला। क्या बात करें गठबंधन की हम, इसने भी एकता को निचोड़ डाला। नये रिश्तों की बेहूदी चाह में, लोगों ने पुराना घर फोड़ डाला। गलतफहमियां होती है रिश्तों में, माफ़ करना सुधारना भी जरूरी है। इंसान जो ठहरे हम सब साहब, आपस में सराहना भी जरूरी है। वहम जो है ये फ़क़त मन का मेल है, मेल को जड़ से मिटाना भी जरूरी है। गौर से देखें अनदेखे ना करें रिश्ते, जीवन में रिस्ते निभाना भी जरुरी है। परिचय :- विकाश बैनीवाल पिता : श्री मांगेराम बैनीवाल निवासी : गांव-मुन्सरी, तहसील-भादरा जिला हनुमानगढ़ (राजस्थान) शिक्षा : स्नातक पास, बी.एड जारी है घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
जान जरूरी-जहान भी जरूरी
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जान जरूरी-जहान भी जरूरी

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** मानव रूप में जनमे युग के विशाल योग से कर्मों कीआहुति मरने कोरोना अकाल रोग से दिल दौलत दुनिया का तालमेल जरूरी है ये जान बड़ी जरूरी, सुन्दर जहान जरूरी है। धरा पर संवादी मौसम हमें आगाज़ कराता कई ढंगों से जीवन-यापन आभास कराता आन जरूरी है, दिल का अरमान जरूरी है ये जान बड़ी जरूरी, सुंदर जहान जरूरी है। अनजाने स्वभाववश, कभी मार्ग दिखलाता किसी मोड़ पे संयोगवश घटना याद दिलाता दान जरूरी है, सेवा अवदान बहुत जरुरी है ये जान बड़ी जरूरी, सुंदर जहान जरूरी है। कर्म भाग्य चाल से शीर्ष स्थान मिल जाता राष्ट्रप्रेम हितैषी जग में महामानव कहलाता उसका मान जरूरी है यथा सम्मान जरूरी है ये जान बड़ी जरूरी, सुंदर जहान जरूरी है। साहित्यकार इस जगत में, कई रंगों को झेले सूरज चांद गगन धरा, राष्ट्रीय कलम से खेले राष्ट्रगान जरूरी है, उसका गुणगान जरूरी है। ये जान बड़ी जरूरी, सुं...
संविधान दिवस
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संविधान दिवस

बुद्धि सागर गौतम नौसढ़, गोरखपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** कानून दिवस की बहुत बधाई, आप सभी को देता हूं। संविधान तैयार हुआ, मैं श्रेय भीम को देता हूं। संविधान निर्माता बाबा, भीम राव बतलाता हूं। दुनिया गौरव भीमराव को, श्रद्धा पुष्प चढ़ाता हूं। कानून दिवस 26 नवंबर, मिलकर खूब मनाता हूं। बाबा साहब भीमराव को, अपना शीश झुकाता हूं। रक्षा करना संविधान का, आवाह्न करता हूं। लोकतंत्र की रक्षा करना, यही निवेदन करता हूं। संविधान का पालन करिए, पढ़िए, सभी बताता हूं। संविधान घर-घर में रखिए, सबको यह समझाता हूं। संविधान का ज्ञान रखें सब, अच्छी बात बताता हूं। भ्रष्टाचार तभी मिटेगा, सबको यही पढ़ाता हूं। शिक्षित हो, संगठित बनो, संदेश भीम का देता हूं। संगठित बनो, संघर्ष करो, मैं ज्ञान सभी को देता हूं। बाबा साहब भीम की बातें, सभी से करता रहता हूं। संविधान की बातों को, सबको बतलाता रहता हूं। परिचय :- ...
आस्तीन के साँप
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आस्तीन के साँप

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** आजकल के इन साँपो को पहचानना बड़ा मुश्किल है, कौन आस्तीन का साँप है कब डस लेगा जानना और मुश्किल है। वैसे तो आजकल हमारे इर्द गिर्द ऐसे जहरीले साँपों का हर समय डेरा है, हमारा ही शुभचिंतक बन कौन कब डस लेगा अहसास कर पाने में सब विफल हैं, क्योंकि ऐसे आस्तीन के बहुतेरे साँप हमारे तो बड़े शुभचिंतक हैं। किसको कैसे पहचानें प्रश्न कठिन है, डसे जाने के बाद समझ में आने का ही क्या मतलब है? देखने में भोले भाले आपके लिए जान की बाजी भी लगाने को तैयार हैं, मौके की तलाश में वो कुछ भी करने को तैयार हैं। बस एक मौके का ही उन्हें इंतज़ार है, इधर मौका मिला नहीं कि बस ! डसकर फुर्र हो जायेंगे कोई नहीं एतबार है। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीव...
उड़ान
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उड़ान

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** पिता बेटी की आँखों में देखता सपने, कल्पनाएँ अन्तरिक्ष में उड़ानों के पंख संजोता सपनों में। मन ही मन बातें करता बुदबुदाता मेरी बेटी का ध्यान रखना जानता हूँ अन्तरिक्ष में मानव नहीं होते इसलिए हेवानियत का प्रश्न नहीं उठता। पिता हूँ फिक्र है मुझे बड़ी हो चुकी बेटी की छट जाते है, जब भ्रम के बादल तब दूर से सुनाई देती है भीड़ भरी दुनिया में उत्पीडन की आवाजें उन्हें रोकने का बीड़ा उठाती बेटी की आक्रोशित आँखे। देती चीखों के उन्मूलन का देखता हूँ विस्मित नज़रों से फिर से संजोये सपनो को बेटी की आँखों में उडान उत्पीडन से निपटने की होंसलो, कल्पनाओ के साथ। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं मे...
मोक्षमार्ग का पथ
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मोक्षमार्ग का पथ

संजय जैन मुंबई ******************** ज्ञान धर्म की तरफ मेरा ध्यान बड़ता जा रहा है। जीवन का सच्चा अर्थ हमे समझ आ रहा है। बिना धर्म के मुक्तिपथ हमें मिल नहीं सकता। इसलिए हर कोई धर्म से जोड़ता जा रहा है।। जब से तुम आये हो इस संसार में। तब से लेकर अबतक तुमने किया क्या है। जरा सोचो समझो और करो विचार। तभी जिंदगी के सच को तुम पहचान पाओगें।। जब भी तुम करो तीनलोक के नाथ के दर्शन। तो स्वंय को देखो तुम नाथ के अंदर। तो तुम्हें जीवन का सच्चा पथ मिल पायेगा। और मोक्षगति का मार्ग तुम्हें निश्चित ही मिल जायेगा।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं ...
बिटिया का जन्म
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बिटिया का जन्म

श्वेतल नितिन बेथारिया अमरावती (महाराष्ट्र) ******************** दिन था चौबीस मार्च जब मेरी बेटी दुनिया में आयी डाक्टर, नर्स ने कहा बधाई हो बधाई लक्ष्मी है आयी ! बिटिया का चेहरा देख मैं अपनी प्रसव वेदना बिसराई बिटिया को नर्स ने हल्की थपकी देकर धीरे से रुलाई! सुन आवाज दादा-दादी नाना-नानी की आंखे भर आयी अपने चाचा, बुआ, मामी-मामा की नन्ही परी है आयी! नटखट चुलबुली शैतानी करके सबके मन को लुभाई पापा ने देखा लाडो का चेहरा, चेहरे में मुस्कान थी छाई! मीठी बातों का खजाना और प्रश्नों का भंडार है लायी छुन-छुन करती उसकी पायलिया सबका मन हर्षाई! जब भी थोड़ी सी डांटू मैं तो सहमी और घबराई मैं कभी भी रोऊं तो मेरे आसूं पोंछने पलक मेरी है आयी! परिचय :- श्वेतल नितिन बेथारिया निवासी- अमरावती (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानिया...
श्रद्धांजली
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श्रद्धांजली

बुद्धि सागर गौतम नौसढ़, गोरखपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** दुनिया आपसे सीखेगी, बिटिया को शेर बनाया है। प्रभु दयाल जी मेरा नमन, निब्बान अपने पाया है। बेटा से कम नहीं है बेटी, सिद्ध आपने कर डाला। माया बहन सा बेटी पाकर, आयरन लेडी बना जा डाला। प्रभु दयाल जी आपकी बेटी, नाम आपका चमकाया। यूपी का मुख्यमंत्री बन कर, लोहा अपना मनवाया। अपराधी थरथर कांप रहे थे, प्रभु जी आपकी बिटिया से। माया जैसा निडर बने सब, अर्ज मेरा सब बिटिया से। प्रभु दयाल जी आप हमारे हैं, देश की गौरव गाथा में, शत शत बार नमन आपको, अश्रु भरा है आंखों में। परिचय :- बुद्धि सागर गौतम जन्म : १० जनवरी १९८८ सम्प्रति : शिक्षक- स्पर्श राजकीय बालिका इंटर कालेज गोरखपुर, लेखक, कवि। निवासी : नौसढ़, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी क...
ज़िंदगी…बिखरी सी
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ज़िंदगी…बिखरी सी

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मेरी बंदगी हैं तेरे ही वास्ते, चाहें हमने तुझसे कहा नही, उस सजदे में बस तू ही था, जिसे तूने कभी नवाजा नही... मेरी ज़िंदगी का हर इक सफा, तेरे रंग से हैं सजा हुआ, ये बात कुछ हैं अलग मगर, कभीं तूने उसको छुआ नही... हैं चिराग़-ए-ज़िंदगी जल रहे, अरमा हुए हैं धुँआ धुँआ, बहकी हवाओं से कह दो जरा, अभी घर हुआ रौशन नही... ये बहार-ए-गुलशन और् ये गुल, मेरे वास्ते थी नही कभी, वो खिला भी तो हैं उस दरख़्त,आंधियों में रहा जो थमा नही... तोहमत लगी हैं ये हम पे कि, कभी आसमा को नही छुआ, परवाज मन कि हैं जाने क्या, थे पंख जिसको नसीब नही... हर बात तूने ही थी कही, हर बार दिल ने तेरी ही सुनी, अब मन की तू भी ले सुन जरा, रहें ख़ुद से कोई गिला नही... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर,...
एक सलाम फौजी के नाम
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एक सलाम फौजी के नाम

कार्तिक शर्मा मुरडावा, पाली (राजस्थान) ******************** एक दिन मेरी फौजी से मुलाकात हुई, और फिर हमारे बीच ऐसी बात हुई। बीवी का वचन भी जिसे याद नहीं, परिवार से मिलने की फरियाद नहीं। माँ की ममता का अक्सर गम होता है, और बेटी से मिलना बड़ा कम होता है। चाहे फौलादी शरीर बनाले फिर भी, कैसे बयान करें खून के आँसू रोते हैं। एक तुम्हें माँ का आँचल नसीब हो, इसलिए हम मौत की गोद में सोते हैं। भारत माँ को अपनी माँ बनाकर, हम हर जवान को भाई कहते हैं। जाती और धर्म का भेदभाव नहीं, हम हिन्दुस्तान में रहते हैं। परवाह नहीं है हमें अब कुछ भी, हम इस भारत माँ के बेटे हैं। शहीद भी बन गए तो क्या हुआ, आज शान से तिरंगे में लेटे हैं l दिवाली में भी जो गोली खाकर, हर पल खून की होली खेलते हैं। गर्व हमे हैं ऐसे शहीदों की मिट्टी पर, एक सलाम हर सैनिक के नाम करते हैं। परिचय : कार्तिक शर्मा पिता : शुक्राचार्य शर्मा श...
जंगल वाली सोच
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जंगल वाली सोच

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** हुआ पाशविक हृदय आचरण, मनुज रहा अब नोच। इस मिट्टी में उग आई है, जंगल वाली सोच।। आसमान में नाच रहा है, प्रजातंत्र कनकौआ। डोर थमी है जिन हाथों में, बाँटा उसने पौआ।। नव विहान का सौदा करके, सौंप गया निम्लोच। उग आई है इस मिट्टी में...... (१) रोज मुनादी करते टी वी, माॅडल से इठलाकर। हवा आजकल बाँट रही है, खुश्बू घर-घर जाकर।। लगे शिकंजे जगह- जगह पर, मांग रहे उत्कोच। इस मिट्टी में उग आई है...... (२) हार भूख से डाल दिये हैं, अस्त्र सभी होरी ने। तृप्त कर दिया है जन गण को, केवल मुँहजोरी ने।। घाट-घाट का पानी पीता, है जिसकी अप्रोच।। इस मिट्टी में उग आई है..... (३) अपने मंडल के सूरज ने, बना लिया परकोटा। झूठ-मूंठ के बाँट उजाले, मोटा माल खसोटा।। आशा लेकर नव 'जीवन' की, पुश्त हुई सब पोच। इस मिट्टी में उग आई है..... (४) निम्लोच- सूर्यास्त पोच- निक...
इंसानियत
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इंसानियत

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** सब रिश्तो से ऊँचा हैं एक रिश्ता जिसकी पहचान है मानवता हर रिश्ते के अस्तित्व में जरूरी है इंसानियत अन्यथा, स्वार्थ के अंधेपन में हावी है हैवानियत स्वनिर्मित कायदे कानून के लिए देते हैं नामी रिश्तो के ओहदे का वास्ता अंधविश्वासी बन नियमों की पालना के लिए औरत ही औरत की शत्रु बन भूल जाती इंसानियत का रास्ता कुछ पाने की लालसा में तो खूब हो रहा दान धर्म परंतु अपनो के प्रति भेदभाव, अहंकार की भावना बड़े पद की आड में छोटो को दे प्रताड़ना नैतिक अनैतिक नजर अंदाज कर भूला रहे मानव धर्म हर घर में नाम है और नामो के साथ है पद परंतु इंसानियत के आगे सबका लगता है तुच्छ कद चाहे कितने ही संस्कारो का ओढ लो आवरण मानव है अगर तो मानवीय हो आचरण संबंध निभाने मे नहीं होगी जटिलता जब हर दिल में बसेगी मानवता परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सू...
राही और मंजिल
कविता

राही और मंजिल

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** राह पर चलते कई बटोही वो मंजिल अपनी भटके हैं, कभी राहें मंजिल बनती हैं, कभी लगते घातक झटके हैं। राही वहीं जो मंजिल पहुंचे, मन मंजिल कहीं नहीं भटके, इस पार-उस पार की सोचे, चलता जाए कभी ना अटके। मुसाफिरखाना जगत कहाये, कुछ दिन ठहरकर जाना है, मंजिल पर चलकर जाना हैं, अंतिम लक्ष्य को ही पाना है। सफल सफर उनका ही हो, सहज सरलता पाये मंजिल, रातें अंधियारी, खत्म जहां, करते नहीं, तारें झिलमिल। जीवन में खुशहाली हो तो, बटोही हँसता झूमता जाता, दुख, दर्द जब राही मिलते, कदम कदम पर रोता पाता। आसान नहीं मंजिल पाना, सदियां बीतानी पड़ती हैं, कभी खुशी फुहार पड़ेगी, कहीं मार कसूती पड़ती है। मंजिल चले, दो राही तो, राह आसान बन जाती है, राह में कांटे बिखरे पड़े, शोणित पग पग आती है। हौसला जनून दिल में हो, बढ़ते ही जाना राही को, डरना न कांटे और खाई, प...
मां पर कविता लिख सकूं
कविता

मां पर कविता लिख सकूं

रमेश चौधरी पाली (राजस्थान) ******************** में कवि हूं मेरी कलम में इतनी ताकत है कि, में दुनियां का बखान कर सकूं। परंतु मेरी कलम में इतनी ताकत नहीं है की में मां का बखान कर सकूं। में कर्जदार हूं मां के उस अमृत का, में कर्जदार हूं मां के उस आंचल का में अपनी कलम से भी नहीं उतार सकता हूं उस कर्ज को। में नमन करता हूं उस मां सुभद्रांगी को, में नमन करता हूं उस मां जेवंताबाई को , में नमन करता हूं उस मां हीराबेन को, जिसने ऐसे शूरवीरों को, जन्म दिया हो। मेरी कलम में इतनी ताकत नहीं है कि में मां पर कविता लिख सकूं। ...... मां पर कविता लिख सकूं।। परिचय :- रमेश चौधरी निवासी : पाली (राजस्थान) शिक्षा : बी.एड, एम.ए (इतिहास) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फ...
जय जवान जय किसान
कविता

जय जवान जय किसान

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** जय जवान जय किसान हरा भरा जो करे खेत और खलिहान, यही है देश के सच्चे किसान की पहि चान। देश में नहीं है पानी की कमी, फिर भी क्यों सूखी रहती देश की जमी। जिसे जानना है वो जाने, जिसे पहचानना हो वो पहिचाने। किसान ही उपलब्ध कराये देश को खाने के दाने, जो खेती-बारी हैं देखे, वही किसान को पहिचाने। किसान देश का है अन्न-दाता, लेकिन खुद भूखा है रह जाता। कर्ज के बोझ के तले वह है दब जाता, फिर भी किसान का देश व परिवार से है अटूट नाता। किसान धरती माँ का बेटा कहलाता, किसान का ही बेटा देश की सीमा पर सैनिक बनके है जाता। वह सहर्ष देश की रक्षा में अपने को कर देता कुर्बान, गर्मी हो या सर्दी आधी हो या तुफान। करते देश की सेवा देकर अपनी जान, क्या देश उनको दे पाता पूरा इज्जत व सम्मान। जो दे देते हंसते-हंसते अपने देश के लिए जान।। कहाँ है वे देश के लाल...
चाहतों का नशा
कविता

चाहतों का नशा

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** बहुत से नशे है इस दुनिया में, किसी को दौलत का, तो किसी को शोहरत का नशा है। किसी को मंदिर का, तो किसी को मदिरा का नशा है। किसी को प्रेम का, तो किसी को सफलता का नशा है। हर किसी को किसी न किसी बात का नशा है, लेकिन सच मे तो यह चाहतों का नशा है। कि हर किसी को कुछ न कुछ पाना है, लेकिन मिलने की बाद भी शांति नही मिलती है, हर ख्वाईश जब पूरी हो जाती है, तो अधूरी सी लगती है। और फिर नई ख्वाईश जाग उठती है, फिर भागने लगते है हम उस मृगमरीचिका के पीछे उस अनजान को पाने के नशे में, जो भागकर कभी भी न मिल पायेगा। हर बार मिला भी सबकुछ, लेकिन ये वो न निकला की जिसके बाद कुछ पाने की ख्वाईश न बची हो। ये नशा ही ऐसा है, जो चढ़ गया तो उतरता ही नहीं, और हम भागते ही चले गए, कभी इधर तो कभी उधर। अब जब थक कर, रुककर देखती हूं तो लगता है कि, ऐसा क्या पाना था मुझको जो मैंने...
अखण्ड ज्योति
कविता

अखण्ड ज्योति

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** अमावस्या की रात में जब हजारों दिये जलते हैं तो अन्धेरा मालूम नहीं कहाँ खो जाता है व्यक्ति चाह कर भी अन्धेरे से दो चार नहीं हो पाता है उस अंधेरी रात में भी पूर्णमासी की झलक मिलती है दीया और बाती के जलने मे भी बर्फ की ठंडक मिलती हैं व्यक्ति चाहे तो.... जिन्दगी की अमावास की रात में दीवाली की जगमग ला सकता है निराशा की अँधेरी रात में आशा के दीप जला सकता है बस हमें.... जिन्दगी के इस दीये में इंसानियत की तेल और शराफत की बाती चाहिए फिर जिंदगी की लौ शायद ही कभी झिलमिलाये और जिन्दगी एक अखंड ज्योति बन जाए परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अप...
चुनावी हवा
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चुनावी हवा

राम प्यारा गौड़ वडा, नण्ड सोलन (हिमाचल प्रदेश) ******************** शरद हवा के संग-संग चुनावी हवा ने भी पकड़ा रंग सूरज की धूप सदृश नेताओं के चेहरे पे लाली आने लगी है। घोषणा चुनावों की होते ही, हर गांव, हर गली हर मुहल्ले में रवानगी आने लगी है। भाग्य अपना आजमाने टोली नेताओं की घर-घर जाने लगी है। चिकनी-चूपड़ी बातों से, मतदाताओं को रिझाने लगी है। आश्वासनों की कर बौछार नवीन वायदों से भरमाने लगी है। ठण्डी हवा के संग-संग, चुनावी हवा भी रंग पकड़ने लगी है। लोकतंत्र है देश का आधार ये बात जनता की समझ में आने लगी है। निस्वार्थ, निष्पक्ष, निर्भय शतप्रतिशत मतदान करने की अब जनता में होड़ सी लगी है। मतदाताओं का देख उत्साह नेताओं की हृदय कली खिलने लगी है। परिचय :-  राम प्यारा गौड़ निवासी : गांव वडा, नण्ड तह. रामशहर जिला सोलन (सोलन हिमाचल प्रदेश) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ह...
मेरे मन को भाती मां
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मेरे मन को भाती मां

बुद्धि सागर गौतम नौसढ़, गोरखपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** मेरी मां दुलारी मां, सचमुच नाम दुलारी मां। सारे जग से प्यारी मां, मेरे मन को भाती मां। जन्म मुझे दिया है मां, आकार मुझे दिया है मां। प्यार मुझे करती है मां, मेरे मन को भाती मां। मुझको खिला पिलाकर मां, बड़ा किया है मुझको मां। जीवन कौशल सिखलायी मां, मेरे मन को भाती मां। हर दुख से मुझे बचाती मां, खुशियां मुझे लुटाती मां। मेरा भला चाहती मां, मेरे मन को भाती मां। याद तुम्हें करता हूं मां, प्यार तुम्हें करता हूं मां। मुझ में हिम्मत भरती मां, मेरे मन को भाती मां। चलना मुझे सिखायी मां, शिक्षक मुझे बनाई मां। खुश मुझको रखती है मां, मेरे मन को भाती मां। कहीं नहीं गई हो मां, मेरे पास सदा हो मां। मेरे दिल में बसती मां, मेरे मन को भाती मां। धन्य धन्य हो, धन्य धन्य हो, धन्य धन्य हो मेरी मां। नमन है तुमको, नमन है तुमको, नमन है तुम...
मुझे बनारस कर दो
कविता

मुझे बनारस कर दो

श्वेता सक्सेना मालवीय नगर (जयपुर) ******************** हे भगीरथी, उतर आओ मन की मरूधरा पर कल्याण कर दो जन्मों की तृष्णा का उद्धार कर दो हे देवांशी, बहा दो संग स्मृतियों की भस्म सब पावन कर दो हे मोक्षदायिनी, मेरी मुक्ति का साधन कर दो हे गंगे, मैं अधीर हूँ तुम्हें छूने को,, मुझे बनारस कर दो परिचय :- श्वेता सक्सेना निवासी : मालवीय नगर जयपुर घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित...
फुलवारियां
कविता

फुलवारियां

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** निज बगिया में छटा बिखेरती फुलवारियां बहुत सहेजी घर उपवन की वो क्यारियां। कोर कोर में रची-बसी थी किलकारियां होश जोश दौड़ में देखी सबकी यारियां। अफवाह बाजार में पनपा करती भ्रांतियां निर्भय पथ-संचालन की नई-नई अनुभूतियां एकाकी विवश जन की साहसपूर्ण चुनौतियां दुर्गम दुर्लभ पथ की बड़ी अजीब बेचैनियां। बड़े बड़े आयोजन में आसमयिक दुश्वारियां काम रुका, ना धाम हटा, रहती हैं तैयारियां। देखी समझी राहत ताकत की कई मजबूरियां विस्मृत हो सहयोगी बनने, हो जाती हैं दूरियां कर्मवान को आभास दिलाती हैं नाकामियां ईश्वर क्षमा करें उन्हें, जिनकी नाफरमानियां। साथ चार जनों से भी रह जाती हैं खामियां पर अकेले दायित्व वहन की गहन हैरानियाँ। सामान्य रिवाजों में दिखती रहें नजदीकियां कोई समझ ना पाए रिश्तों की बारीकियां। बालपन से चौथेपन वाली सब जिम्मेदारियां खेल यही जीवन क...
अ-कारण
कविता

अ-कारण

विकाश बैनीवाल मुन्सरी, हनुमानगढ़ (राजस्थान) ******************** अ-कारण कोई आत्महत्या नहीं करता, जनाब ख़ुश होकर कोई नहीं मरता। आपनो के ही आघात ले बैठते है, बैगानो की बातों से कोई नहीं डरता। अ-कारण कोई आत्महत्या नहीं करता, ज़िन्दगी के बोझ से कोई नहीं दबता। तनाव बना देते है दिल मे रहने वाले, वैसे बाहर वालों से कोई फर्क नहीं पड़ता। अ-कारण कोई आत्महत्या नहीं करता, चेहरों से असलियत का पता नहीं चलता। लाज से ही कदम उठाना पड़ता है, यूँ ही जहर का घूंट अच्छा नहीं लगता। अ-कारण कोई आत्महत्या नहीं करता, जो टूट जाता वो अंदर से नहीं हँसता। मानसिक पीर भयंकर होती है, शारीरिक पीड़ा से कोई फंदा नहीं लटकता। परिचय :- विकाश बैनीवाल पिता : श्री मांगेराम बैनीवाल निवासी : गांव-मुन्सरी, तहसील-भादरा जिला हनुमानगढ़ (राजस्थान) शिक्षा : स्नातक पास, बी.एड जारी है घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्...