आओ मिलकर रंग सजाएँ
श्रीमती विभा पांडेय
पुणे, (महाराष्ट्र)
********************
तुमसे, मुझसे,उससे, इससे
माँग कर थोड़ा साथ तो लाएँ।
आओ मिलकर रंग सजाएँ।
लाल, गुलाबी, चटक रंग को
हर सूने मन पर बरसाएँ।
आओ मिलकर रंग सजाएँ।
बीमारी ने पकड़ रखा है,
पंजों में अपने जकड़ रखा है।
दूर हुए जो घर आँगन से
फिर से सबको साथ में लाएँ।
आओ मिलकर रंग सजाएँ।
दूर हुए बस तन ही तन से
जुड़े हैं तार तो मन के मन से।
क्या होता जो दो सालों से
होली गुलाल की खेल न पाए।
आओ मिलकर रंग सजाएँ।
गीतों से कुछ रंग चुराकर
होली के दिन मेल मिला कर
आभासी माध्यम को अपनाकर
क्यों न पुराना फगुआ गाएँ।
आओ मिलकर रंग सजाएँ।
जो न मिला फिर याद करें क्यों,
बस सबसे फरियाद करें क्यों?
सूने पड़ते चौबारों में
फिर से रंगों को बिखराकर
आस का क्यों ना दीप जलाएँ।
आओ मिलकर रंग सजाएँ।
परिचय :- श्रीमती विभा पांडेय
शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी एवं अंग्रेजी), एम.एड.
जन्म : २३ सितम...