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कविता

आओ मिलकर रंग सजाएँ
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आओ मिलकर रंग सजाएँ

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** तुमसे, मुझसे,उससे, इससे माँग कर थोड़ा साथ तो लाएँ। आओ मिलकर रंग सजाएँ। लाल, गुलाबी, चटक रंग को हर सूने मन पर बरसाएँ। आओ मिलकर रंग सजाएँ। बीमारी ने पकड़ रखा है, पंजों में अपने जकड़ रखा है। दूर हुए जो घर आँगन से फिर से सबको साथ में लाएँ। आओ मिलकर रंग सजाएँ। दूर हुए बस तन ही तन से जुड़े हैं तार तो मन के मन से। क्या होता जो दो सालों से होली गुलाल की खेल न पाए। आओ मिलकर रंग सजाएँ। गीतों से कुछ रंग चुराकर होली के दिन मेल मिला कर आभासी माध्यम को अपनाकर क्यों न पुराना फगुआ गाएँ। आओ मिलकर रंग सजाएँ। जो न मिला फिर याद करें क्यों, बस सबसे फरियाद करें क्यों? सूने पड़ते चौबारों में फिर से रंगों को बिखराकर आस का क्यों ना दीप जलाएँ। आओ मिलकर रंग सजाएँ। परिचय :- श्रीमती विभा पांडेय शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी एवं अंग्रेजी), एम.एड. जन्म : २३ सितम...
सार्व भौम चेतना
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सार्व भौम चेतना

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** निराकार परमात्म प्रभु का, होता नही है कोई आकार। भक्त के मन के भाव सदा, दे, देते हैं प्रभु को आकार।। मन में प्रतिक्षण चिंतन आता, इस सृष्टि का कौन नियामक। कौन बिगाड़े, कौन बनाये, कौन बना है इसका नायक।। क्या नायक हैं ब्रह्मा, विष्णु, या हैं नानक, ईशा, राम आओ तनिक विचारें हम, खोज उन्हें, हम करें प्रणाम।। खोजे किसी सहृदय के मन में, हमें मिलेगा प्रभु का वास। ईश रूप का तत्व समेंटे, ये जन होते आस ही पास।। कभी कला के रूप में आकर, बन जाते हैं, वे कलाकर। फिर कला निखरती कलाकार की, कला में दिखता प्रभु का आकार।। कभी लेखनी में बस कर ईश्वर, करते शब्दों का निर्माण। कवि की निर्जीव इस लेखनी में ईश तत्व से ही बसते प्राण।। अतः किसी को करें न आहत, सबमें पायें प्रभु का दर्शन। अब न भटकें हम आकारों में, निराकार का यही है चिंतन।। ...
मां
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मां

रश्मि नेगी पौड़ी (उत्तराखंड) ******************** मेरा संसार ही तू मां मेरी ईश्वर ही तू मां है सब कुछ तू ही मेरी मेरा प्राण ही तू माँ तुझमें बसती मेरी जान है… तू ही मेरी शान है तू ही मेरी मित्र मां तू ही मेरे जीवन का सार मां तू सबसे मीठा बोल है मां संसार में सबसे अनमोल है मां मेरे हर मर्ज की दवा है तू मां तेरे जैसा इस संसार में कोई नहीं है मां तुलना तेरी किसी से कर नहीं सकती क्योंकि तू स्वयं में सर्वश्रेष्ठ है मां परिचय : रश्मि नेगी निवासी : पौड़ी उत्तराखंड शिक्षा : एम.ए. प्रथम वर्ष राजनीति विज्ञान सम्प्रति : अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद पौड़ी जिले की जिला सह संयोजिका। घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक ...
मौत
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मौत

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** बैठे है कब से मेरे सिरहाने आस-पास वे भी, जिन्हें फुर्सत ना थी कभी मुझसे मुलाकात की। जिन्हें पसंद ना थी मेरी शक्ल फूटी आंख भी, अब दर्शन को भीड़ लगी है सारी कायनात की। जिनसे तोहफे में नसीब ना हुआ इक बोल भी, आज वे भी मुझ पर बरसा रहे फूल कचनार की। तरसे- रोये है मुश्किलों में हम एक कन्धे को, और अब बानगी देखिए जरा हजारों कन्धों की। कल दो कदम साथ चलने वाला ना था कोई, अब गणना असंभव है साथ चल रहे कारवां की। कमबख्त जिंदगी मौत से बदत्तर लगी आज, कितने रो रहे यहां कमी नहीं चाहने वालों की। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप ...
बस हैं भटकन
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बस हैं भटकन

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आ खड़ा हूँ, आज फिर मैं, ज़िंदगी तेरे, तंग गलियारे में, ताक रहा हूं, तन्हा अम्बर, उलझा जलते बुझते तारों में... भटक रहे हैं,वलय में अपने, दिखते हैं, यो तो पास-पास, चाहें भी तो, मिल नही पाते, कोई गुरुत्व नही,आस-पास... नही कोई, संभावना उनमें, स्याह, प्रहर बस,ख़ालीपन, निर्वात में नही जीवन ऊर्जा, पर हैं कितना चमकीलापन... छूपा हुआ हैं स्रोत कही दूर, तू सोख रहा ,रोशनाई को, चमक भर तुझमें, हैं उसकी, बस वक्ती फ़लक सजाने को... बंद होते पल्लों के ही फिर, अंनत जहां यो रोशन होगा, विलीन हो जायेगे तारे भी, गलियारे में, तन्हा मन होगा. परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ...
मतदान
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मतदान

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** दान की परम्परा का एक बार फिर निर्वहन करते हैं, आइए! साथ चलकर मतदान करते हैं। मतदान हमारा लोकतांत्रिक अधिकार है, परंतु देश के नागरिक हैं इसलिए कर्तव्य भी। बस यही याद रखिए कर्तव्य की बलिबेदी पर खुद को न बेंचिए, राष्ट्र, समाज और खुद के लिए मत दान से पहले खूब सोचिए, बिचारिए, किसी के बहकावे में कभी न आइए। खुद ही फैसला कीजिए सही क्या है? अपना ही नहीं राष्ट्र का भविष्य जिन्हें सौंप रहे हैं, उनके बारे में भी तनिक विचार कर लीजिये फिर मतदान कीजिए। क्योंकि तब पाँच साल सिर्फ़ पछताना न पड़ेगा, सब ओर खुशियों का परचम जो फहरेगा । परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव पुत्री : संस्कृति, गरिमा पैतृक निवास : ग्राम-बरसैनियां, मनकापुर, ज...
नहीं हो तुम मगर
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नहीं हो तुम मगर

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** कठिन बड़ी डगर, नहीं हो तुम सगर, बोल रहे हर- हर, नहीं हो तुम मगर। चले हैं हम सफर, लगता नहीं है डर, गये थे हम घर घर, नहीं हो तुम मगर। अकेले हमें चलना, घर छोड़ निकलना, प्रकृति होती सुंदर, प्रकृति में ही पलना। सांझ जरूर ढलती दिन फिर निकलता, कभी खुशियां मिले, कभी दिल मचलता। कौन साथ जग देता, क्यों दर्द व्यर्थ लेता, जिंदगी गुलगुनाइये, कहते आये हैं वेत्ता। कभी खुशी मिलती, कभी मिलते हैं गम, कभी दर्द सह- सह, आंखें हो जाती नम। प्राण बेशक जाते हैं, साहस नहीं छोडऩा, अपने भी पराये होते, पराये जन खोजना। जिंदा दिल इंसान को, सारा जगत ही पूजता, हिम्मत हारे जन को, कुछ भी नहीं सूझता। धन दौलत की चाह, जन को दे जाए दर्द, बिन पैसे के जीना है, कहलाता है वो मर्द। वक्त के साथ चलो, वक्त साथ देता रहे, वक्त को छोड़ देना, मृत्यु के सम कहे। आया जन जाएग...
जल ही है जीवन
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जल ही है जीवन

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** जल ही है जीवन, जल है अनमोल बन्धु जीवनदायी जल दिए प्रभु कृपासिंधु अहो मानव! इसे बूँद बूँद बचाइए पृथ्वी का हिस्सा तीन है जल से भरा उसमें दो भाग बर्फ ग्लेशियर है धरा बचे एक हिस्से को जतन से सँभालिए पेयजल संकट से त्राहि-त्राहि हैं लोग चरणामृत सा कर इसका कृपण उपयोग कर जल का दुरुपयोग संकट न बढा़इए जल के जो हैं विविध स्रोत प्रकृति प्रदत्त तृप्त होंगे धरा के जीव-जंतु समस्त पयस्विनी सलिला में उच्छिष्ट न बहाइए बरसे है जो अमृत आसमा से धरा पर स्वच्छ गुणवत्तापूर्ण वर्षा जल छतों पर तत्क्षण ही गढ्ढे में उस पय को जुगाइए नीचे भूजल के स्तर को भी सुधारिए हिमगिरि-संजीवनी लिय सुरसरि बचाइए जल बिन जीवन नहीं, हर मूल्य बचाइए परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी : पटना (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाण...
जल जीवन
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जल जीवन

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जल से जीवन पाते हैं। हो रहा प्रकृति पर जो, अत्याचार देख... आंखों में नीर आ जाते हैं। जल से जीवन पाते हैं। बूंद-बूंद बचाएं #पानी की, ना व्यर्थ करें पानी को, नहीं मिलता जब पानी, आंखों से नीर भी सूख जाते हैं। जल से जीवन पाते हैं। खुशियों की चौखट पे जब मां वारी-वारी जाती हैं। बिन वारि के खुशियां भी अधूरी रह जाती हैं। जल से जीवन पाते हैं। इसी पय से प्यास का अर्थ पाते हुए, अंतिम तृप्ति पा, इसी में लीन हो जाते हैं। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं,...
मैं और मेरी तन्हाई
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मैं और मेरी तन्हाई

आनन्द कुमार "आनन्दम्" कुशहर, शिवहर, (बिहार) ******************** मैं और मेरी तन्हाई! अक्सर बातें करती है। वह मुझसे सवाल करती और मैं सवालों की गठरी लिए जवाबो की शहर पहुँचता पर जवाब ढूंढ न पाता ये सिलसिला जारी है... कई दफा सोचता हूँ रिश्ता ही तोड़ दूँ अगले ही पल जेहन में फिर एक सवाल रिश्ता जोड़ा कब? मैं और मेरी तन्हाई! अक्सर बातें करती है। परिचय :- आनन्द कुमार "आनन्दम्" निवासी : कुशहर, शिवहर, (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टा...
होली कैसे मनाएं
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होली कैसे मनाएं

ममता रथ रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** रेत के कच्चे घरों की ढह गई संवेदनाएं इन तनावों के नगर में होली कैसे मनाएं सारे संबंध अब तो स्वप्न जैसे हो गये देह मिट्टी का खिलौना सोच पैसे हो गये रक्त सारा हृदय का कच्चे रंगों सा धुल गया झूठे आश्वासनों का रंग देखो सब पर चढ़ गया भावनाएं बर्फ़ की चट्टान जैसी जम गई और सारी सोच निश्चित दायरे में थम गई चारों ओर सन्नाटा, चारों ओर खौफ है इन तनावों के साथ हम होली कैसे मनाएं? परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर (छत्तीसगढ़) जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह...
कविता क्या है
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कविता क्या है

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** कविता क्या है यह एक माया है शब्दो का झाल कलम की माला दिल का प्यार मधु की हाला समझ जाए तो यह मधु शाला प्रेमियो मे पैगाम भक्तो की काया बंद जुबा मे यह एक इशारा उम्र -ए-हदो पर जीने का सहारा कवीवर के लीये सरस्वती का जाया इतिहास जानो तो इसमे हे खुशिया नव रसो का संगम मोहन ने पाया दिल के जज्बातो कई एक ज्वाला जो समझे वो पाया न समझे वो पगला परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं...
मै क्या करूँ
कविता

मै क्या करूँ

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** मै क्या करूँ, समझ नहीं पा रहा हूं, आखिर क्यों मै इतना सोचता हू, मै इतना जीवन के सपने देखता था, मै क्यों इतना पागल होता हूं, दिल मे हमेशा दर्दो का महफिल लगा होता है, आंखों में हमेशा आंसू भरा रहता है, आखिर क्यों ऐसा मेरे साथ ही होता है, जब भी अकेला होता हूं, आंखों में पानी भर जाता है, दिल करता है, मै स्वयं को समाप्त कर लू, ऐसा क्यों होता है, शायद मेरी जिन्दगी की आखिरी शब्द हो, या शायद मै ही आखिरी हू, अब इस दर्द से मुझे रहा नहीं जा रहा है, आखिर क्यों मै अलग महसूस करता हू, स्वयं को मै डिप्रेशन में महसूस कर रहा हूं, कुछ सोच नही पाता हू, दुनिया की दुनियादारी, समाज की मजबुरी, मुझे ना जीने देती है ना मरने देती है, मै क्या करूँ, कोई बताए मुझे, या आत्म को स्वयं मे लिप्त कर दू, मुझे इस नश्वर दुनिया में, सिर्फ अशांति ही अशांति, जी करता है जोगी ही...
हृदय का अंतस्
कविता

हृदय का अंतस्

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** विश्व कविता दिवस की अशेष मंगलकामनाएँ! हृदय का अंतस् जब छटपटाता हो और उस बेचैनी से पाने को मुक्ति जब चल पड़ती है निर्झरिणी सी लेखनी तो बन जाती है कविता! जब आकुल-व्याकुल हो मन-मस्तिष्क तो पीड़ा से बिलबिलाते क्षणों में जो चल पड़ती है लेखनी अवश हो तो बन जाती है कविता! अवचेतन मन में स्थायी भाव से पैठा रागतत्त्व जब छेड़ता है राग मालकौश और भोगावती-सी हहा उठती हैं भावनाएँ तो बन जाती है कविता! किसी के दुख और तकलीफों को देख जब टीसने और टभकने लगता है हृदय और आह से फूट पड़ती है भावों की सरिता तो बन जाती है कविता! किसी के अन्याय अत्याचार शोषण उत्पीड़न के विरुद्ध जब आँखों से निकलने लगती हैं चिनगारियां और क्रांति-सिन्धु हुंकार उठता है मानस का तो बन जाती है कविता! परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय...
फागुन
कविता

फागुन

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** होली प्रीत का त्यौहार, हम सब मिलकर डा़ले, फागुन मे रंगो की बौछार। लाल गुलाबी रंग के छीटे, तनमन सब रंग मे भीजे, ऐसा रंग स्नेह का गहरा, जीवन मैं कभी न छूटे, दिल से दिल रंग जाये, कभी न छूटे। प्रेम और सौहार्द बढे़, द्वेष भाव की दीवार मिटादें। स्नेह संचित जोत जलायें, सकारात्मक सोच बढ़ायें। लेकर अबीर गुलाब रोली, खेलें हम हमजोली। तन मन मे तरंग मन, में उमंग, जीवन हो सतरंगी। रंगो से रंगीन हो दुनियाँ हमारी, होली की शुभकामना हमारी। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता...
नफरत
कविता

नफरत

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** इतनी नफरत क्यों है मन में, क्या इसका है परिणाम जानना। एक अकेला जब बचेगा तू, तब होगी तुझे असह्य वेदना।। स्वर्ण महल में बैठ कर भी, नही मिलेगी तुझे शीतलता। व्यग्र रहेगा हर पल तब तू, जब तुझे सतायेगी नीरवता।। मेवों, मिष्ठानों, पकवानों से, कभी न मिटती क्षुधा उदर की। मिटती क्षुधा सदा अन्न से, और तृप्ति भी मिलती मन की।। नफरत तो है जहर इक ऐसा, जिससे रिश्तों में बढ़ जाए दूरी। और अतृप्ति के आ जाने से, कभी न हों इच्छायें पूरी।। अतः मिटाये अब हम नफरत, और सब में बांटे अपना प्यार। नफरत से बढ़ती है नफरत, और प्यार से बढ़ता प्यार।। परिचय :- ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) निवासी - धवारी सतना (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानि...
जल
कविता

जल

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** प्राणों का आधार जल है। आज जल है तो कल है। जल नहीं तो कल नहीं, जब जीवन रक्षक जल है। पंच तत्त्व की काया को, परिपूर्ण करता जल है। सत्य बात आप पहचाने, प्रकृति का सृजक जल है। बिन पानी दुनिया न बनती, ईश्वर का वरदान जल है। कुएं बावड़ी सागर नदियां, इन सब का स्वरूप जल है। प्रकृति का मानक तत्त्व, फसलों का लहलहाना जल है। बिन पानी अन्न नहीं उपजे, वृक्ष पुष्प पर्ण कानन जल है। अमृत नीर जगत का सानी, पृथ्वी पर जीवन दानी जल है। सब इसे बचाने को करें जतन, जब अनमोल संपदा जल है। जल ही जीवन सत्य है, प्राकृतिक सौगात जल है। मत बहाओ मुझे बेकार, जल भी करता पुकार है। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिक...
पल्लों के हैं आर-पार
कविता

पल्लों के हैं आर-पार

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** फासले मिलों के हैं वहां, होते हैं तय भर पल में, विचारों को मिलता हैं सुकू, उजालों संग विचरने में... अंकों का वहां कोई मोल नही, जाती हैं पलक झपकने में, बिन हवा ही बह जाते हैं हम, रूहानी उस शून्य जहान में... नही जिस्मों का कोई काम हैं, प्रतिरुप प्रतिम्बित तारों में, परिलक्षित होते वो पास पास, होता हैं भम्र झिलमिलाने में... ऊँचाई हो या हो गहराई, नाप नही कोई, उस पार में, बसी हैं सूक्ष्म-सोच-सीमित, बंद पल्लों के, इस पार में... धूल धसरित परतों के बीच, रौशनी ही टिमटिमाती हैं, कहने को है अबोल जुबा, पर नजरों से बतियाती हैं... क्या मायने है, उन शब्दों के, जो सिर्फ, कहे सुने जाते हैं, निर्वातमय हैं जहां तो क्या, मन-मन के करीब रहते है... रौशनी सी, गति इस मन की, परे मगर, नही ध्वनि मेल हैं, झांक के देखो पल्लों के पार, स्याह नही, परतों...
शरमा जाते है
कविता

शरमा जाते है

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** रोज सजने संवरने को दर्पण के समाने आते हो। देख कर तेरा ये रूप दर्पण खुद शरमा जाता हैं।। रोज बन संवरकर तुम घर से जब निकलते हो। देख कर कुंवारे लड़के बहुत शरमा जाते हैं।। अपने आँखो से तुम जब निगाहें घूमाती हो। तब कुंवारों का दिल डगमगाने लगता है।। हँसते हुए चेहरे पर जब चश्मा लगाती हो। देखकर ये अदाये तेरी लड़को की आँखे शर्माती है। होठों की तेरी लाली तेरे चेहरे पर खिलती हैं। बोलती हो तुम कुछ भी मानो फूल झड़ रहे हो जैसे। खूबसूरती में तुम मेनका जैसी सुंदर लगती हो। तभी तो विश्वामित्रों की तपस्या भंग हो जाती हैं।। जिस पर भी तुम अपना ये हुस्न लूटाओगी। उसको साक्षात जन्नत जिंदगी में मिल जायेगी।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर ...
विजय मार्ग
कविता

विजय मार्ग

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** धर विजय मार्ग पर पग, कर्मवीरों का यह जग! रख धीर औ मन मे आस, बस कर पुनः पुनः प्रयास देख सदा स्वप्न चरम के, औ रच अम्बर में नव मग, धर विजय मार्ग पर पग!.... छू चलते हुए सितारों को, ले आगोश में सब तारो को, हो जोश तुझमे इतना कि मचले बिजली तेरे हर रग! धर विजय मार्ग पर पग! .... प्रारब्ध ने तो इतना जाना, बुन कर्मो का ताना बाना, अर्जुन सा तू कर संधान रखकर मीन के दृग पर दृग, धर विजय मार्ग पर पग!..... परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी ...
वो याद आये इतना
कविता

वो याद आये इतना

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** घटाए छाने लगी शाम होने लगी हवा के संगीत पर फूलों की शाखें झूमने लगी वो याद इतना आये की शबनम बरसने लगी। दीदार हो उनका गुंचो ने आँखे खोली निकल आया आफताब फ़िज़ाये महकने लगी वो याद इतना आये की शबनम बरसने लगी। खिजा आती है इसलिए टूट कर गिराने को पत्ते रूठ जाएगा मेरा महबूब गर उसके पैरों में धूल लगी वो याद इतना आये की शबनम बरसने लगी। उसे डर किस बात का वो खुद ही खुर्शीद है आने के आसार है उसके सितारों की रौशनी कम होने लगी वो याद इतना आये की शबनम बरसने लगी। फलक हो या हो जमीन तू है कहा नही सुर्खी है तू फूलों की रोशनी है सितारों की कायनात तेरे दम पर इठलाने लगी वो याद इतना आये की शबनम बरसने लगी। तू वो शायरा जिसने लिखी ये रूमानी ग़ज़ल तेरे नक्शेकदम पर चल मेरी शायरी जवां होने लगी वो याद इतना आये की शबनम बरसने लगी शबनम बरसने लगी। परिचय :- धैर्यशील य...
रहती हूँ खोई-खोई
कविता

रहती हूँ खोई-खोई

श्वेतल नितिन बेथारिया अमरावती (महाराष्ट्र) ******************** क्यों बढ़ाते हो दूरियाँ जब तुम मे रहती हूँ खोई-खोई अपना बनाकर अपने को क्या ऐसे तड़पाता है कोई। जब तुम कभी समझना ही नही चाहते जज्बातों को तुम्ही बताओ फिर भला कैसे तुमको समझाए कोई। बार-बार तुम्हे मनाने वाला मुझसा नही मिलेगा कोई इसका एहसास तुम्हे तब होगा जब तुमसे रुठेगा कोई। थोड़ा सा वक्त दिया करो अपने रिश्ते को कभी-कभी फासले यदि बढ़ ही जायें उसकी नही फिर दवा कोई। दर्द सहते रहने की अब हो चुकी है अपनी आदत अब दर्द ना मिले तो दर्द होता है तुझे बताए कोई। परिचय - श्वेतल नितिन बेथारिया निवासी - अमरावती (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र - मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी ...
बस इतनी सी बात
कविता

बस इतनी सी बात

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** बस इतनी सी बात तुम मेरी लो जान किसी को लगे रूचिकर या लगे किसी को नागवार पर मेरे स्वविचार रखने के अधिकार की रक्षा से नहीं करोगे अंगीकार सब के समक्ष रख लोगे थोड़ा मेरी बात का भी मान तो मन, वचन, कर्म से दूँगी तुम्हें सम्मान बस इतनी सी बात तुम मेरी लो जान व्यस्त रहो चाहे तुम करने में सबकी सेवा-काज पर कभी एक पल के लिए सुन लेना मेरे भीे मन की आवाज़ चाहे किसी से भी करो अपने सुख-दुख का आदान-प्रदान पर पहले हक से मुझे कहो, अजनबी समझ के न रहो कोशिश कर निकालेंगे समस्या का निदान, समाधान अर्धांगिनी हूँ तुम्हारी, नहीं हूँ मैं कोई अंजान बस इतनी सी बात तुम मेरी लो जान स्वयं के घर में मिटने न दोगे कभी मेरा अस्तित्व जीवन सफर में कम न समझोगे मेरा महत्व तो रहेगा मेरे दिल पर हमेशा हमेशा तुम्हारा स्वामित्व बनोगे अगर मेरे लबों की मुस्कान तो हर जन्म में ...
आईना
कविता

आईना

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** सबने मुझे दिखाया आईना, और, खुद न देखा उनने आईना। पर, रूप मेरा निखार दिया, दिखा, दिखा कर सबने आईना।। जब मन में होता कोई चोर, तब न भाता तनिक आईना। पर, जब मन हो जाता निर्मल, तब मन ही अपना होता आईना।। सब कुछ भरा है मन के अंदर, नित होता भले बुरे का सामना। पर अगर मांज ले मन अपना, तब, खिल जाए मन का आईना।। देखो काँच का टुकड़ा दर्पण, हमको सिखलाता यह भावना। यह चूर-चूर हो जाये फिर भी रूप दिखाता हमें आईना।। आओ इससे हम यह सीखें अपनी पीड़ा को पी लेना। और, औरों को देने खुशियाँ, निर्मल कर लें मन का आइना।। विशेष :- आईना टूट कर बिखर जाता है पर अक्स दिखाना नही छोड़ता जो इसका गुण है। इसी तरह मनुष्य को चाहिए कि विपरीत परिस्थितियों में भी अपने गुणों को नही छोड़े। परिचय :- ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) निवासी - धवारी सतना (मध्य प्...
भगोरिया का रंग है
कविता

भगोरिया का रंग है

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* नाक सुआसी शोभती, खिलते लाल कपोल। आंखन अंजन आंझके, नैना बने अमोल।। हंस उड़ा बागन चला, ले मोतिन की आस। नगनथ देखो नाकको, मन मे होत उदास।। नदी नाव संजोग से, बहती पानी धार। नाविक नदिया एकसे, म्यान फँसी तलवार।। तोता मैना बोलते, चिड़ियां करती चींव। कोयल मीठा गा रही, सखी संग है पीव।। कामदेव सेना चली, करती चुनचुन वार। भगोरिया का रंग है, करता है इजहार।। मदन धनुष को धारके, तकतक मारे बाण। फूलकली बरषा करे, घायल होते प्राण। केरी रस से भर गई, मिठू मारे चोंच। रस बरसे रस आत है, मैना कर संकोच।। कमल पांखुड़ी खिलगई, भंवरों की ले आस। चम्पा चटकी पीतसी, सरिता सरवर पास।। कपोत कसके रातभर, मुरगा बोले भोर। मोर मोरनी छुप गये, नैना होते चोर।। पलाश भी अब दहकते, बिछुड़ी करें तलाश। चूड़ियां भी खनक उठी, मंगल मोती आस।। क्वारों की टोली चली, ले कं...