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कविता

नई भोर हो नई किरण हो
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नई भोर हो नई किरण हो

अखिलेश राव इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नई भोर हो नई किरण हो नवल धवल आवरण हो बधाई गुड़ीपड़वा चहुंओर सजे गुंजित हिंदू नववर्ष भी हो। स्वर्णिम स्वप्न की झंकार लाया है खुशियों के अनुपम उपहार लाया है जीवन पथ पर पुष्प सुभाषित सुरभित सुगंधित बयार लाया है। नई उमंग नई तरंग संग-संग नवहर्ष हो गुंजित हिंदू नववर्ष भी हो। सफलता शिखर पे नित नए आयाम हो धरा पर यश कीर्ति मान और सम्मान हो एक दिन समय भी आपका होगा विषम परिस्थितियों में साथ संघर्ष भी हो गुंजित हिंदू नववर्ष भी हो। तन स्वस्थ रहे मन सुंदर हो सच का हृदय में सपना हो आस्था श्रद्धा विश्वास सहित उत्साहित मन नूतन उत्कर्ष भी हो गुंजित हिंदू नववर्ष भी हो। परिचय :- अखिलेश राव सम्प्रति : सहायक प्राध्यापक हिंदी साहित्य देवी अहिल्या कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय इंदौर निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार...
नव संवत्सर
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नव संवत्सर

डॉ. गुलाबचंद पटेल अहमदाबाद (गुज.) ******************** नव संवत्सर नजदीक आया है नए भारत वर्ष २०७८ को लाया हे नई विक्रम संवत जब आएगी खुशियो की बारात वो लाएगी चैत्र मास शुक्ल प्रतिपदा आई है नए भारत के स्वप्न सुन्दर लाई हे १२ मास साल सात दिन सप्ताह बनी हे विक्रम संवत ने यह शुरुआत करायी है हिन्दू धर्म ने विक्रम संवत सजाया हे अंग्रेज और अरब ने यह अपनाया है सूर्य प्रवेश मेष राशि में करवाया है चैत्र मास से नव संवत्सर मनाया हे. चैत्र मास पवित्र कहलाया हे ब्रह्मा ने सृष्टि उसी दिन रचाया है अयोध्या में विजय पताका फहराया हे राज्याभिषेक राम का उस दिन करवाया है १३ अप्रेल २०२१ नजदीक आया है कवि गुलाब कहे, हिन्दू नव वर्ष लाया है परिचय :-  डॉ. गुलाबचंद पटेल अहमदाबाद (गुज.) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, क...
बार्डर और कोरोना
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बार्डर और कोरोना

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** ओह...!!! ओह... !!! ओह...!!! क्वारंटाइन हुए जाते हैं। टेस्ट डराते हैं। रिपोर्ट जब आती है। पोजिटिव कर जाती है। कि कोरोना कब जाओंगे। कोरोना कब जाओंगे।। लिखो..क्या वैक्सीन से जाओंगे।। तेरे साथ हर ...घर सूना -सूना है। अस्पताल के डॉक्टर ने, वहां की नर्सों ने, हमें रिपोर्ट में लिखा है। कि हमसे पूछा है..... किसी की हाफ़ती सांसों ने, किसी की खांसी ने, किसी की छीकों ने, किसी के इंफेक्शन ने, किसी के कचरे ने, कोरोना के चर्चे ने, बकबकी सुबहा ने, मितलाती शामों ने, डिस्टेंस की रातों ने, सोशल मीडिया की बातों ने, फैली अफवाहों ने, मजदूरों की बददुओं ने, और पूछा है कम होती कमाईयों ने, कि कोरोना कब जाओंगे। कोरोना कब जाओंगे।। लिखो..क्या वैक्सीन से जाओंगे।। तेरे साथ हर ...घर सूना -सूना है। क्वारंटाइन हुए जाते हैं। टेस्ट डराते हैं। रिपोर्ट जब आती...
कल का दौर
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कल का दौर

अक्षय भंडारी राजगढ़ जिला धार(म.प्र.) ******************** कल का दौर भी देखा आज का भी दौर देख रहा हु संभल कर चलु कब तक सोचता हूं वक्त आज बुरा है कल वक्त अच्छा भी आएगा वक्त संभलकर चलना आज दुनिया मे काल के रूप विकराल है आज सहना, ठीक रहना यू ही किसके जाने में कब वो दिन गुजर गए यू ही बिलख-बिलख कर आंसुओ की बून्द बहती अपनो में यू ही दर पर कब वो क्षण आ जाए आए तो कब वो क्षण गुजर जाए। परिचय :- अक्षय भंडारी निवासी : राजगढ़ जिला धार शिक्षा : बीजेएमसी सम्प्रति : पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कवि...
औरत
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औरत

पूनम धीरज राजसमंद, (राजस्थान) ******************** एक औरत की कोख से जन्मी है एक औरत। एक औरत जननी बनी, लाडो है एक औरत।। एक औरत संस्कार भर रही, नखराली-इठलाती एक औरत। एक औरत ममता की प्याली, भोली सी मतवाली एक औरत।। एक औरत है बनी सुहागन, खुशी से छलक उठी एक औरत। एक औरत पिया के घर चली, घर में अकेली रही एक औरत।। एक औरत ने सजाए स्वप्न नए, पूरे कर्तव्य करें एक औरत। एक औरत चली लक्ष्मी बन, चिड़िया को विदा करें एक औरत।। एक औरत गृह प्रवेश करें, आरती का थाल लिए एक औरत। एक औरत नई नवेली सी, घर की बुनियाद बनी एक औरत।। एक औरत की मुंह दिखाई पर, वारी जाए एक औरत। एक औरत वंश बढ़ाने वाली, दायित्वों से विश्राम पाए एक औरत।। एक औरत सीमा की रक्षक, ज्ञान प्रदान करे एक औरत। एक औरत ने थामी कमान, कमाने वाली भी एक औरत।। एक औरत पर्वत को लांघ रही, सागर पार करे एक औरत। एक औरत रंगोली सजा रही, देश भी सजा रही एक औरत।। एक और...
कहानी नही बदली
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कहानी नही बदली

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** सिदूंर का रिश्ता है, निभा रही हूँ हर जनम,! तुम्हारा मेरा रिश्ता है, जो टूटता नही भरम!! ये एक पल का बंधन नही, न कमजोर है, डोरी! दिलो मे जो, मजबूती से, पनपी है मजबूत है कोरी!! न डर किसी का, अब है, कितनी मिली शिकस्त! बदनाम खूब किया मगर, बदली न, मुहब्बत।। बुत के यहाँ सब है, बुत परस्त लोग! बदला है, बस जमाना, नियत नही बदली!! इल्जाम लगाते रहे, बैगरत, से लोग! कितने, मिले सफर मे , मेरी चाहत नही बदली!! सैर पर निकले थे, तलाशने, जिन्दगी! जिदंगी तो रुठी रही कहानी नही बदली!! परिचय :- रीमा महेंद्र सिंह ठाकुर निवासी : झाबुआ (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाश...
पुरूष की व्यथा
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पुरूष की व्यथा

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** पुरूष की व्यथा विवाहोपरांत अपयश से भरा जीवन वृतांत आया मानसिकता में परिवर्तन पुत्र नहीं रहा पहले जैसा श्रवण बहनों के लिए अब बदल गया भाई जब से जीवन मे, आई उसके लड़की पराई जिन्होंने प्यार, संस्कार की परवरिश से किया बड़ा अब स्वयं के ही खून की स्नेह, भावनाओ पर संदेह खड़ा पुराने रिश्तों के साथ व्यतीत करने को कम हुई समय सीमा क्योंकि पुराने, नए दोनों रिश्तों की बनाए रखनी है उसे गरिमा अब, अंतर बस इतना-सा आया समझ के भी जिसे, कोई समझ न पाया रक्त संबंधों के लिए दिल में उसके सदैव स्नेह-सत्कार अपार पर अब अर्धांगिनी, फिर संतान में बँट गया उसका थोड़ा प्यार कभी भी जिम्मेदारियों से नहीं भागता वह दूर फिर भी अपनों से ही ताने सुनने को है मजबूर सबकी सेवा में तत्पर होने पर देते सब संस्कारवान का तकिया कलाम पर जीवनसंगिनी की परवाह करने पर, कहलाता क्यों वह ...
मेरे बटुए भर सपने
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मेरे बटुए भर सपने

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** जीवन के कुछ पल मैं जीवन से ही चुराती गई उन्हें अपने बटुए में सहेजती रही ये सोच कर की कभी समय मिले तो उनको सुकून से खर्च करूंगी। बस यही सोच कर, समय और हालत के साथ आगे बढ़ती रही वक्त के साथ बटुए की सियान कमजोर पड़ती रही और मैं समय समय पर उन्हें यूं ही सिलती रही, फिसलते रहे मेरे सपने और समय समय की खुशियां मैं समाचार पत्र की तरह उन्हें सहेजती रही बरसों से सहेजे बटुए को मैने एक दिन जो खोला पूरी जगह तो सूनी और कोरी पड़ी थी वो समय के पल तो कहि थे ही नही जिनको मैं वर्षों से सहेजती आई थी कहां गई वो मेरी संपत्ति जो पाई पाई मैं जोड़ती रही थी? सोचते हुए आईने पर नजर पड़ी, सिर पर सफेद बालों की सफेदी चमक रही थी चेहरे पर इतनी सिलवटें? आईने ने खुद को पहचानने से इंकार कर दिया, पीछे घूम के देखा, कही...
मित्रों सुने पैगाम हमारा
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मित्रों सुने पैगाम हमारा

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** सुने प्रिय मित्रों एक पैगाम हमारा, देखो कोरोना देश में आया दुबारा। यदि जरुरी है आपको बाहर जाना, सामाजिक दूरी को जरुर अपनाना। घर में सैनेटाइजर को भूल न जाना, मुख पर मास्क अवश्य ही लगाना। अब न चलेगा आपका कोई बहाना, पड़ेगा नियम-निर्देशों को अपनाना। चाहते है आपको देना न पड़े जुर्माना, बिन मास्क लगाये बाहर नहीं जाना। जो व्यक्ति करेगा ज्यादा ही मनमानी, उसे है पुलिस के डंडे की मार खानी। तब पुलिस का डंडा याद दिलाए नानी, दुबारा ये व्यक्ति कभी न करे मनमानी। स्वयं को कोरोना बीमारी से है बचानी, सरकारी निर्देशों को पड़ेगी अपनानी। जो-जो अपनी ईमुनिटिपावर बढ़ाये, उसके पास कोरोना बीमारी न जाये। स्वयं बचे और परिवार को भी बचाये, बिना मास्क लगाये बाहर नहीं जाये। लांकडॉउन के नियमों को अपनाये, स्वस्थ्य, सुखमय आप जीवन बिताये। यही है कवि विरेन्द्र की...
शब्द कहां से आते हैं
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शब्द कहां से आते हैं

अखिलेश राव इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तुमने पूछा है कि ऐसे शब्द कहां से आते हैं अक्षर से बनते शब्द शब्द से वाक्य बनाये जाते हैं शब्दों की बढ़ती श्रंखला बन जाती है वाक्य सुनो तुम्हें देख ये वाक्य स्वमेव कविता में ढल जाते सुंदर वाक्य काव्य भाषा में अलंकार कहलाते हैं। परिचय :- अखिलेश राव सम्प्रति : सहायक प्राध्यापक हिंदी साहित्य देवी अहिल्या कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय इंदौर निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com ...
होली राम रंग संग खेलो
कविता

होली राम रंग संग खेलो

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** होली राम रंग संग खेलो, हनुमत झूम के नाचेंगे। लगेगा भक्तों का दरबार, नाम महिमा वे बाचेंगे। होली राम रंग.......... बहाओ रा से रंग फुहार, म में है माँ सीता का प्यार। चढ़ेगा जिनपर हनुमत रंग, वे माँ के चरण पखारेंगे। होली राम रंग.......... नहीं हुड़दंग का ये त्यौहार, लुटादो सबपर अपना प्यार। बढ़ी कटुता जिससे इस साल, मिटाकर गले लगा लेंगे। होली राम रंग........ न डूबो दारू में या भांग, यही है सात्विकता की मांग। आओ बैठो हनुमत दरबार, नाम का नशा चढ़ा देंगे। होली राम रंग.............. परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय...
हाँ, मैं नारी हूँ
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हाँ, मैं नारी हूँ

मित्रा शर्मा महू (मध्य प्रदेश) ******************** जब भ्रूण बनकर आई थी दादी के मन में यह बात आई थी मेरा कुल का चिराग है या मनहूस मां ने अपनी वेदना छुपाई थी। मां कहने लगी भगवान से आने दो इसको संसार में मेरा हिस्सा है यह अनोखा सिचूँगी अपनी कोख़ में । मैने सोचा आऊंगी जरूर आऊंगी सब को समझाने के लिए सबकी सोच को बदलना है मै अब हार नहीं मानने वाली। नारी होकर नारी पर ही अत्याचार कभी होता दुर्व्यवहार कभी लगते उसपर लांछन कभी मिलता व्यभिचार। मैं अहल्या, पत्थर बन तप करने वाली सावित्री हूँ , सत्यवान को जगाने वाली। दुर्गा हूँ राक्षस का संहार करने वाली लक्ष्मी हूँ , धनधान्य करने वाली। हाँ, मैं नारी हूँ ! हां मैं सरस्वती, वीणावादिनी हूँ ज्ञान देने वाली मैं यशोदा हूँ ,कान्हा को दुलारने वाली। द्रोपदी बन कृष्ण को पुकारने वाली , सीता बन सहन करने वाली । हां, मैं नारी हूँ ! हाँ, मैं नारी हूँ !! परिचय :-...
दूर बहुत हो तुम
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दूर बहुत हो तुम

उषा गुप्ता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दूर बहुत हो तुम पर हो दिल के पास बिना कहे ही समझ जाते क्या है मेरे मन की आवाज़।। यह कैसा नाता अपना कैसा है यह अमर स्नेह कैसे रख लेते ख्याल मेरा कैसे बढ़ता जाता नेह।। आज के इस कलयुग में तुम कैसे आ गए राम दिन दूना रात चौगुना जग में बड़े तुम्हारा नाम।। रोम रोम यह मेरा तो देता रहता तुझे दुआएँ प्रीत की यह पाती मेरी नज़र किसी की ना लग जाए।। विनती उस परमपिता से हर जन्म हमें ऐसे ही मिलाए तू तो बस मेरा बेटा मेरा लाडला बनकर आए।। परिचय :-उषा गुप्ता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, क...
तारीख पे तारीख
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तारीख पे तारीख

गणेश रामदास निकम चालीसगांव (महाराष्ट्र) ******************** तारीख पे तारीख बढ़ती जाएगी मगर होगा नहीं फैसला कुछ भी करके तुझे छोड़ना नहीं अब अपना घोंसला। घोसले से तू बाहर ना निकले यही तेरी समझदारी है मरने से तो अच्छा कैद होना यह अब हम सबकी जिम्मेदारी है। बाहर यदि अगर तू पड़ गया समझो फिर तारीख का यह फैसला कर्मों से ही अपने बढ़ गया। चुपचाप घर में बैठ जा तू अब किसी कोने में जिंदगी का मजा उठा अब पड़े पड़े तू सोने में। हाथ से मत जाने दे अब यह १७ मई का मौका बाहर निकलेगा तू तो फिर बढ़ जाएगा ये धोखा। परिचय :- गणेश रामदास निकम निवासी : चालीसगांव (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्...
पाती प्रतीक्षा की
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पाती प्रतीक्षा की

रश्मि लता मिश्रा बिलासपुर (मध्य प्रदेश) ******************** जब-जब आती प्रीत की पाती मन कुमुदिनी खिल-खिल जाती। राह तकते सोचे आँखियाँ पढ़ेंगे कब प्रीतम की बतियां बातें प्रिय की बहुत सुहातीं जब जब आती प्रीत की पाती। दिन गिनते दिन बीतते जाते डाकिए को बारंबार बुलाते देख लो कहीं छोड़ ना आए तुम मेरे ही प्रिय की पाती जब जब आती प्रीत के पाती। लिखते तुमसे प्यार हैं करते याद तुम्हे हर-बार हैं करते आएंगे मिलने भी जल्दी हम कट जायेगी बिरह की राती जब-जब आती प्रीत की पाती मन कुमुदिनी खिल-खिल जाती जब-जब आती प्रीत की पाती परिचय :- रश्मि लता मिश्रा निवासी : बिलासपुर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं,...
मैंने प्रियतम को लिखी पाती
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मैंने प्रियतम को लिखी पाती

डाॅ. उषा कनक पाठक मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) ******************** मैंने प्रियतम को लिखी पाती लेखनी थी उस क्षण मदमाती लिखा- हे !मेरे पावस तुम बिन रहता है अहर्निशि अमावस तुम्हे क्या पता यह धरती अविरल संताप से जल रही है क्षण-क्षण भीषण ज्वाला के हाथों पल रही है अज्ञात ऊष्मा से किसी तरह धीरे-धीरे चल रही है अनल-संतप्त हो, विस्फोट करने को व्याकुल अब टूटने वाली है धैर्य रूपी साँकल बोलो तुम कब आओगे मुरझाई लता को कब सरसाओगे हे! निष्करुण तुम्हें दया नहीं आती विरहाग्नि से जल रही मेरी छाती यदि तुम शीघ्र न आओगे मुझे जिन्दा न पाओगे मैं स्वयं को दे दूंगी जल समाधि मिट जायेगी मेरी सम्पूर्ण व्याधि परिचय :- डाॅ. उषा कनक पाठक निवासी : मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्री...
नेह का निमंत्रण
कविता

नेह का निमंत्रण

ओम प्रकाश त्रिपाठी महराजगंज (उत्तर प्रदेश) ******************** नेह का निमंत्रण मीत, तुझको हूं भेज रहा आज अपनी गरिमा को, अब तो पहचानो। कोसते हो जिनको कि, तूने कुछ नहीं दिया आज उस ब्रह्म का, आभार तुम मानो ।। विश्व पर विपत्ति आज, कैसे पड़ी हैआन भान कर इसका तू घर नहीं त्यागो। मान बात घरनी की, जाओ न विदेश अब जीवन है अमूल्य सिर्फ, पैसे पे न भागो ।। क्रूर कोरोना काल, आगे है बढ रहा राह इसका छोड़ अब नयी राह गढ लो। सह नहीं जायेगा, बिछोह तेरा मीत मेरे परिजन के संग, अब प्रीति करना सीख लो।। रीति जो है प्रीति की ,तू छोड़ेगा कभी न मीत विश्वास को हमारे, ठेस न लगायेगा। कुछ ही दिनों की बात, मान एक पाती लिखो संकट का काल मीत, स्वयं कट जायेगा।। परिचय :- ओम प्रकाश त्रिपाठी निवासी : शिकारगढ जनपद-महराजगंज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौल...
मिलन की प्यास है
कविता

मिलन की प्यास है

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मैं सौ-सौ बार निहारूँ, फिर भी बढ़ती प्यास है। मेरे और तुम्हारे मन का, प्रियतम जाने क्या इतिहास है। मेघों ने अपनी प्यास बुझाई सागर से, धरती की बुझी प्यास व्योम के जलधर से। धरती से लेकर नीर चली सब सरिताएं, जाकर के प्यास बुझाई क्रम सत्वर से, मेरी आँखें युगों-युगों से प्यासी पर, अभी अधूरी आस है। मेरे और तुम्हारे मन का जाने क्या इतिहास है। मन का आशामृग ढू़ढ़ रहा कस्तूरी है, लक्ष्य पास है, फिर भी बहुत ही दूरी है। जाने कितनी गंध रूप की मुझे लुभाती, तुम बिन कुछ ना भाता मजबूरी है, मेरे मन चाहा सौरभ का तो, मेरे अन्तर ही में वास है, मेरे और तुम्हारे मन का, यह जाने क्या इतिहास है। मिलन की प्यास है। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। ...
आहिस्ता-आहिस्ता
कविता

आहिस्ता-आहिस्ता

संजीव कुमार बंसल पीलीभीत (उत्तर प्रदेश) ******************** आहिस्ता-आहिस्ता क्यों बदल जाते हैं लोगों के चेहरे! आहिस्ता-आहिस्ता लेकर इम्तिहान- क्यों होते हैं सवेरे! आहिस्ता- आहिस्ता ही जिंदगी- क्यों आती है समझ! जलते चिराग पड़ने पर जरूरत- अक्सर क्यों जाते बुझ! आहिस्ता-आहिस्ता मिल ही जाता है-हर समस्या का हल, तू मान मेरी बात, आहिस्ता- आहिस्ता ही होगा तू सफल। आहिस्ता-आहिस्ता बनता है समुद्र में- जो तूफानी ज्वार, भाटे के रूप में जाएगा आहिस्ता- आहिस्ता, कर ऐतबार। गंदे पानी में जो होती है गंदगी अपार, उसे हिलाना नहीं, गंदगी सब बैठेगी आहिस्ता- आहिस्ता, बस करना इंतजार। परिचय :- संजीव कुमार बंसल निवासी : पीलीभीत (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के ...
जीवन चक्र कैसे अवरूद्ध हो गया
कविता

जीवन चक्र कैसे अवरूद्ध हो गया

गोविंद पाल भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** जीवन चक्र कैसे अवरूद्ध हो गया है देखो आज, इसे चलाने कर्तव्यों की वलिवेदी पर डटे हुए हैं मेरे सरताज। विरह की अग्नि में जल रही हूँ प्रिये तुम्हारे बिन, पर डटी हुई हूं घर पर गईं सारी सुख-चैन छीन। हे प्रिये कुछ ही महीने तो हुए थे तुम्हारे संग हमनें गुजारी, क्या पता था तुमसे दूर कर देगी हमें ये महामारी। संकट की इस घड़ी में देश बचाने कबसे निकले हो पहनकर वर्दी, पर चिंता मुझे खाये जा रही है तुम्हें न हो जाये कहीं खांसी- सर्दी । प्रकृति को नाश किया है मानव ने उढेलकर अपना मन का जहर, प्रकृति भी कहाँ छोड़ने वाली वो भी वरपा रही है कहर। पर प्रिये तुम छोड़ना नहीं अपना कर्तव्यों का डगर, मैं बचूं या न बचूं प्रियतम तुम शहर को बचा लेना मगर । हे चंचल हवा मेरे प्रीत की पाती लेकर उन तक पंहुचाना, आंसुओं से लिखी गईँ मेरी पाती का संदेश उन्हें जरूर सुनाना...
प्रेम, प्रीत, प्यार, स्नेह…
कविता

प्रेम, प्रीत, प्यार, स्नेह…

गौरव सिंह घाणेराव सुमेरपुर, पाली (राजस्थान) ******************** प्रेम, प्रीत, प्यार, स्नेह, नाम अलग पर एक है भाव। उसी के प्रति होते ये, जिनसे होता विशेष लगाव।। जब मेरे ईश से होती प्रीत, तो मन में न रहता मेरा चित्त। प्रभु चरणों के वन्दन से ही तन मन हो जाता चिंता रहित।। पिता से अदृश्य बंधन है, अब क्या बताऊ ये बात। त्याग-बलिदान की मूरत ऐसी होगी न जग में तात।। माँ के बारे में क्या लिखू, माँ ने ही मुझे लिखा है। इस जग जो भी सीखा माते, तुमसे ही तो सीखा है। डांट, प्यार, समर्पण, वात्सल्य, चिंता हरपल ही करती हो। बच्चों की रक्षा करे विपदा से, नही किसी से डरती हो।। अर्धांगिनी का पवित्र प्रेम, जैसे राम के लिए ही सीता है। घर के प्रति सम्पूर्ण समर्पण, ऐसी प्यारी गृहीता है। माँ क दुसरा रूप तुझ में, ओ मेरे जीवन का गहना तुम। मुसीबत जब भी आती मुझ पर देती सदा साथ बहना तुम।। घर में छोटे फूल के जैसे खिले...
प्रीत की पाती लिखे, सीता प्रिये प्रभु राम को
कविता

प्रीत की पाती लिखे, सीता प्रिये प्रभु राम को

विमल राव भोपाल मध्य प्रदेश ******************** प्रीत की पाती लिखे, सीता प्रिये प्रभु राम को। प्रीत की पाती लिखे, राधा दिवानी श्याम को॥ प्रीत के श्रृंगार से, मीरा भजे घनश्याम को। प्रीत पाती पत्रिका, तुलसी लिखे श्री राम को॥ प्रीत की पाती बरसती, इस धरा पर मैघ से। प्रीत करती हैं दिशाऐं, दिव्य वायु वेग से॥ प्रीत पाती लिख रहीं हैं, उर्वरा ऋतुराज को। हैं प्रतिक्षारत धरा यह, हरित क्रांति ताज़ को॥ प्रीत पाती लिख रहीं माँ, भारती भू - पुत्र को। छीन लो स्वराज अपना, प्राप्त हों स्वातंत्र को॥ धैर्य बुद्धि और बल से, तुम विवेकानंद हों। विश्व में गूंजे पताका, तुम वो परमानंद हो॥ प्रीत पाती लिख रहा हूँ, मैं विमल इस देश को। तुम संभल जाओ युवाओ, त्याग दो आवेश को॥ वक़्त हैं बदलाव का, तुमभी स्वयं कों ढाल लो। विश्व में लहराए परचम, राष्ट्र कों सम्भाल लो॥ परिचय :- विमल राव "भोपाल" ...
चिड़िया-बतियाँ-दुनिया
कविता

चिड़िया-बतियाँ-दुनिया

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** चिड़िया बैठ से उस डाल की स्पंदन सहज झलक जाए। बतियाँ पैठ से उस काल की फड़कन आहट खटक जाए। 'अटल' काव्य ये संदेश कहे, फर्क नहीं कोई कहाँ खड़ा है रथ-पथ तीर-प्राचीर अथवा जहां खड़ा होना पड़ा है धरातल की पहचान से धूल फलक पे छा जाए। बतियाँ पैठ से उस काल की फड़कन आहट खटक जाए चिड़िया बैठ से उस डाल की स्पंदन सहज झलक जाए। काव्य-कला जीवन शैली 'अटल' संपदा दुनिया की धन आसन भी स्थाई नहीं ठाकुर ब्राम्हण बनिया की मन फकीरी ही भारी है कुबेर संपदा रुला जाए बतियाँ पैठ से उस काल की फड़कन आहट खटक जाए चिड़िया बैठ से उस डाल की स्पंदन सहज झलक जाए। मन मैदान की हार जीत 'अटल' सुगम पहेली है मन 'विजय' नहीं सुलभ मन सम्मान सहेली है चार दिनों के मेले में विचित्र करतब दिख जाए बतियाँ पैठ से उस काल की फड़कन आहट खटक जाए चिड़िया बैठ से उस डाल की स्पन्दन सहज झलक जाए। व्यवहार ...
बाध्य सैनिक
कविता

बाध्य सैनिक

रवि यादव कोटा (राजस्थान) ******************** शिव का नाग समझकर हमने, कितने सांपो को पाला है, भोली जनता के आगे, नक्सली का राग उछाला है। इसीलिए क्या सवा अरब ने, तुमको गद्दी दिलवाई थी, विकास न्याय रक्षा की, तुमसे आस लगाई थी। चूड़ी कँगन टूट गया, उंगली हाथो से छूट गई, बूढे बाबा की इकलौती, वो लाठी भी टूट गई। सुना आँगन तुलसी का, बगिया का पौधा सूख गया, माँ की आखों का तारा, माँ के आँचल से छूट गया। दया बताई झूठी सी, वन्दे मातरम बोल दिया, उसकी त्याग तपस्या को, बस पैसो में तोल दिया। क्या यही लक्ष्य है बदलावों का, जो तुमने दिखलाया था, या केवल गद्दी के कारण, झूठा स्वप्न बताया था। हमने ही भारत में नित, कुत्तों को सिंह बनाए है, इसी धरा पर कितने ही, अफजल आशाराम बनाए है। नपुंसक बनकर क्यो बैठे हो, दिल्ली के दरबारों में, व्यस्त बने हो क्या तुम भी, सत्ता के व्यापारों में।। कब तक ढोएंगे हम अपने सैनिको की लाशों क...
ये जीवन
कविता

ये जीवन

अन्नू अस्थाना भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** ये जीवन सीधा सा गुज़र जाए, ये बहुत मुश्किल होता है। दिक्कतें आती रहती हैं, पर सामना सीधे से हो जाए, ये जरा मुश्किल होता है। फूल कांटों में भी उगते हैं, कांटा चुभ न जाए यह जरा मुश्किल होता है। यह जीवन सीधा सा गुजर जाए, यह बहुत मुश्किल होता है। मौत हमेशा साथ रही है रहेगी, वो जरा टल जाए, उससे यह कहना बहुत मुश्किल होता है। उसने तो बहाने ढूंढ रखे हैं, हमें साथ ले जाने के, रुक जा जरा अभी चलता हूं, यह मैं कह दूं ऐसे में वह रुक जाए, यह बहुत मुश्किल होता है। मंजिल तक पहुंचना है मुझे, पर मंजिल बहुत दूर है। रास्ते पर चल निकला हूं, पहुंचूंगा कहां मालूम नहीं, राह दिख रही है करीब, पर मंजिल बहुत दूर है। करीब आ जाए मंजिल, ये कहना बहुत मुश्किल होता है। यह जीवन सीधा सा गुजर जाए यह बहुत मुश्किल होता है। कुम्हार की तरह मैंने चाक पर गीली माटी रख...