मास्क बनाओ ढा़ल
शंकरराव मोरे
गुना (मध्य प्रदेश)
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उड़ती हुई धूल कण से,
छोटे कोरोना कण हैं।
हैं सुगंध कण जैसे लेकिन,
गंध हीनता गुण है।।
गोल गोल आकृति पाई है,
गोल गोल ही सिर हैं।
धूल कणों के साथ तैरते,
चलें कभी स्थिर हैं।।
कोरोना मरीज के तन से,
उड़ते बन गुब्बारे।
मानव तन से भूख मिटाने,
फिरते मारे मारे।।
स्वांसों से कर मेल,
नासिका से प्रवेश वे पाते।
स्वांस नली से तैर वायरस,
फैंफडों में बस जाते।।
ऑक्सीजन को हटा,
छेद में अपने पैर जमाते।
पल-पल में अपने जैसे,
लाखों वायरस उपजाते।।
साहस का है काम यहां,
अपना एकांत बनाना।
प्रभु है मेरे साथ स्वयं को,
बार बार समझाना।।
जाना आना मास्क लगा,
मत पास किसी के जाना।
समय बुरा है कुछ दिन तक,
घर में भी मास्क लगाना।।
कोरोना अदृश्य वायरस है,
शत्रु वत आ जाए।
ढाल मास्क की धारण करना,
ये ही जान बचाए।।
विश्व ...