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कविता

प्यार
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प्यार

अनिल कुमार मिश्र राँची (झारखंड) ******************** खुले संदूक में फरेबी रिश्तों का झूठा प्यार भर रखा है मैंने जो समय-असमय मिलते रहे थे ठगने के लिए पूरी तरह से ठगा गया था मैं इसलिए कि भावना के वेग में झट बह जाया करता था मैं 'इस्तेमाल'होता रहा उनके द्वारा जिनका कोई वजूद ही नहीं था एक चेहरे पर टिमटिमाते सौ-सौ चेहरे। खुले संदूक में पड़े नकली 'दुलार' को कोई नहीं पूछता चाहता हूँ उसे देकर एक रोटी ले लूँ कोई नहीं चाहता वो स्वार्थ के दलदल में धंसा प्यार सब भाग जाते हैं फिर बचता हूँ मैं ही अकेला नक़ली प्यार पर बिकता हुआ लुटता हुआ सा हाँ, मैं ही सिर्फ मैं ही लुटता हुआ, बिकता हुआ सा अपनों के हाथों। परिचय :-अनिल कुमार मिश्र शिक्षा : एम.ए अंग्रेज़ी, एम.ए संस्कृत, बी.एड जन्म : ९/६/१९७५ निवासी : राँची, झारखंड सम्प्रति : प्राचार्य, सी.बी.एस.ई. स्कूल प्रकाशन : काव्य संकलन’अब दिल्ली में डर लगता है' (अमेज़न, फ्...
सहिष्णुता
कविता

सहिष्णुता

मंजिरी "निधि" बडौदा (गुजरात) ******************** देखो आज खड़ा है भारत अविचल अखंड, सभी धर्मों का यह कहलाता सुंदर खंड। मुश्किल जब आये धड़ी देते सभी मिलकर साथ, गीता कुरान बाइबिल को सभी लगाते माथ। भक्ति रंग में रंगा हुआ है सुखों का सार, सभी मदद करते रहें यहीँ सकल आधार। धर्म सभी सिखा रहे मानवता उत्थान, राष्ट्र प्रेम हम सभी करें बुराई का अवसान ल चलें सत्य की राह में पाप कपट सब छोड़, करते कर्म हम हैं सदा नात प्रेम का जोड़ ल सभी धर्मों को लेकर चलना यही हमारी शान, देश एकता और सहिष्णुता है सब एक समान ल सर्व धर्म समभाव है लोकतंत्र का मूल, मूल मंत्र को धारिये सुमन बनें हर शूल। हरा रंग अरु केसरी ओतप्रोत यह देश, हर धर्म का यहाँ भिन्न है परिवेश ल आज हमारे देश में कोरोना की मार, सभी एक जुट हो गये निकले कोई सार l सच बात मैं यहीँ कहूं रहना दो गज दूर, हम सब एक साथ है मिले सफलता जरूर l परिचय :- मं...
धरती-अंबर पर बिखरा प्रेम रंग
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धरती-अंबर पर बिखरा प्रेम रंग

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** आज रक्ताभ लाल अंबर को देख मन ने कुछ अलंकार ओढ़े। उस सुंदरता में डूब हृदय ने आराध्य से उसके कुछ अनुपम दृश्य जोड़े। धरती और आकाश लगते जैसे सिया-राम की अनुपम जोड़ी। रंगों का सजा ऐसा ताना-बाना जैसे प्रकृति ने प्रेम की चादर ओढ़ी। लाल रंग का वितान ताने रवि ने श्रेष्ठ मंडप सजाया। अपनी रश्मियों से सुरभित कर फूलों से रंगोली बनाया। नील गगन का अलौकिक सौंदर्य जैसे श्रीराम का रूप नयनाभिराम। श्याम रंग पर लाल वसन को निरख अपलक तकते सब, जैसे आ गए राम। इस रूप पर सम्मोहित होकर रवि ने मन भर किया नभश्रृंगार। अपने रश्मिकोश को लुटा-लुटा। राम के प्रतिरुप को दिखलाया प्यार। धरती जैसे माँ सीता की स्वच्छ, पवित्र, सात्विक, धवल मूर्ति हरसिंगार, टेसू, कमल, गुलाब, जासवंत के लाल जोड़े में खूब शोभती। लगता जैसे माँ सीता ही फिर धरा रूप में आईं हैं। श्री राम के अनुरूप...
मौका तुझे मिला है अर्जुन
कविता

मौका तुझे मिला है अर्जुन

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** वर्तमान में फैल रही महामारी को समाप्त करने की जंग में जितने भी सहयोगी किरदार हैं, चाहे डॉक्टर हों, चाहे नर्स हों, चाहे पुलिसकर्मी हों, चाहे सफाईकर्मी हों,चाहे वार्ड बाय हों, चाहे वैज्ञानिक हों चाहे अंतिम संस्कार करने वाले हों चाहे सर्वेयर हों या अन्य कोई दायित्व स्वेच्छा से या शासन के आदेशानुसार निर्वहन करने वाले हों, सभी योद्धा हैं और आज के अर्जुन हैं उन्हीं से भगवान श्रीकृष्ण गीता में कह रहे हैं.... कहा कृष्ण ने अर्जुन से ये, तेरा ये कर्तव्य है सुनले। धर्मयुद्ध से बढ़कर कोई , काम कहां है जो तू चुनले।। धर्मयुद्ध है द्वार स्वर्ग का, भाग्यवान इसमें जाते हैं। खोकर के स्वधर्म लोग यश, खोते पापी कहलाते हैं।। तू योद्धा है पापी मत बन, अपकीर्ति में लिपटा मत तन। भाग गया है डर कर अर्जुन, क्या सुन पाएगा तेरा मन।। अगर मरा तो स्वर्ग...
मैं एक नारी हूँ
कविता

मैं एक नारी हूँ

मंजू लोढ़ा परेल मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** मैं एक नारी हूँ। सदियों से अपनी परंपराओं को निभाया हैं, उसके बोझ को अकेले ढोया हैं, इस पुरूष प्रधान समाज ने हरदम हमको दौयम दर्जे पर रखा है, अपनी ताकत को हम पर आजमाया है। पर अब मुझे दुसरा दर्जा पसंद नहीं मैं अपनी शर्तों पर जीना चाहती हूँ। हक और सन्मान के साथ रहना चाहती हूँ। मेरी सहृदयता को मेरी कमजोरी मत समझो। मैं परिवार को न संभालती, बच्चों की परवरिश न करती, बुर्जुंगो की सेवा न करती, पति को स्नेहही प्रेम न देती, तो क्या यह समाज जिंदा रहता? मै कोमल हूँ, पर कमजोर नहीं, अगर कमजोर होती तो क्या यह नाजुक कंधे हल चला पाते? पहाड़ों की उतार-चढा़व पर काम कर पाते? घर और बाहर की दोनों दुनिया क्या यह संभाल पाते? मेरे त्याग को तुमने मेरी कमजोरी समझ लिया, घर-परिवार बचाने की भावना को मेरी मजबुरी समझ लिया। अगर नारी पुरूष के अहंम को न पोषती, तो पुरूष आ...
ईद मुबारक
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ईद मुबारक

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** ईद मुबारक कह रहे, कोरोना के काल, महामारी फैला रही, जन पर मक्कडज़ाल, गले मिलना तो दूर है, दूर दूर करे बात, ज्यादा गले मिले तो, आ सकती वो रात। ईद मुबारक मत कहो, महामारी भगाओ, हँसी खुशी हो चेहरे पर, खुशहाली लाओ, हाथ धोकर पीछे पड़ा, पहले जान बचाओ, ईद मुबारक फिर कहो, हँसों और हँसाओ। एक साल बीत गया, भेंट चढ़ गये त्योहार, हुक्का, पानी छूट गया, पर ना मानी है हार, कमजोर पड़ रहा अब, महामारी का रूप, अंधेरा जल्द मिट जाए, आएगी फिर धूप। कैसी ईद मुबारक है, कैसा अजब संसार, धीरे-धीरे लुप्त हुआ, भाई-भाई का प्यार, हँसना भी अब मुमकिन है, कैसा यह वक्त, त्योहार मनाने पर भी, प्रशासन हुआ सख्त। पहले जिंदा रहना है, फिर मनेगी वो ईद, जल्द से महामारी भागेगी, ऐसी है उम्मीद, हँसी खुशी से मिलकर गाएं, वक्त आएगा, ऐसी मार मारेंगे, कोरोना की निकले लीद। ईद मुबार...
बादल और नदी
कविता

बादल और नदी

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** इतनी चुप क्यों हो जैसे रीति नदियाँ तुम्हारी खिलखिलाहट होती थी कभी झरनों जैसी कलकल। रूठना तो कोई तुमसे सीखे जैसे नदियाँ रूठती बादलों से मै बादल तुम बनी स्वप्न में नदी सूरज की किरणें झांक रही बादलों के पर्दे से संग इंद्रधनुष का तोहफा लिए सात रंगों में खिलकर मृगतृष्णा दिखाता नदियों को रीति नदियों में पानी भरने को बेताब बादल सौतन हवाओं से होता परेशान। नदी से प्रेम है तो बरसेगा जरूर नही बरसेगा तो नदियां कहाँ से कलकल के गीत गुनगुनाए। औऱ बादल सौतन हवाओं के चक्कर मे फिजूल गर्जन के गीत क्यों गाए। जो गरजते क्या वो बरसते नही यदि प्यार सच्चा हो तो बरसते जरूर। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - प...
हम सब झगड़ेगे
कविता

हम सब झगड़ेगे

जयप्रकाश शर्मा जोधपुर (राजस्थान) ******************** हम सब झगड़ेंगे मित्रों हम सब झगड़ेंगे कि झगड़ेंगे बग़ैर कुछ नहीं मिलता हम सब झगड़ेंगे कि अब तक झगड़े क्यों नहीं हम झगडेगे अपनी सज़ा ग्रहण करने के लिए झगड़ते हुए मर जाने वाले की याद ज़िन्दा रखने के लिए हम सब झगड़ेंगे परिचय :- जयप्रकाश शर्मा निवासी : जोधपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻 ...
रंग रसिया
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रंग रसिया

मधु अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** तुमसे प्यार किया रंग रसिया बसे हो मेरे मन बसिया दिल, धड़कन, आत्मा में तुम हो जित देखूं ‌उत ओर तुम हो ओ मुरारी ओ त्रिपुरारी तुम बिन सुनी सुनी गलियां, कहां छुपे हो आओ मोहन, नजरों से अपना बना लो मोहन तुमसे प्यार किया रंग रसिया, तेरी मुरलिया की धुन खींचे। अपने प्यार में पागल कर दे, मैं बावरिया घर छोड़ के आई दूध उफनता छोड़ के आई, रंगरसिया तू न समझे तेरी छवि मोहे पागल कर दे, मन में मेरे आकर्षण भर दे। खींची आऊं मैं ‌दर पर तेरे, प्यार का मीठा रंग‌‌ वो भर दे रंग रसिया मेरे मन बसिया, तेरी छवि मोहे दीवाना कर दे।। परिचय :- मधु अरोड़ा पति : स्वर्गीय पंकज अरोड़ा निवासी : शाहदरा (दिल्ली) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मं...
बीत गया बचपन
कविता

बीत गया बचपन

शिव कुमार रजक बनारस (काशी) ******************** यादों के सागर में खोकर दिल मन ही मन हर्षाये चेहरा रह रहकर मुस्काये आया प्यारा सा यौवन देखो बीत गया बचपन ! छूट गए वो खेल पुराने गुड्डे गुड़ियों वाले रंग लेते मुँह अपना खाकर चूरन पुड़ियों वाले यारों से हम झूठ बोलकर खाएं झूठी विद्या कसम देखो बीत गया बचपन ! मीना की दुनिया के किस्से राजा के रानी के चिमनी से पढ़कर गुजरे हैं दिन वो नादानी के देहरी पर जलते दीपक से रोशन घर द्वार आँगन देखो बीत गया बचपन ! सरपट-सरपट चली ज़िंदगी मोड़ अनोखा आये पिचकारी के रंग सभी स्याही में घुल जाए आये जीवन में बसंत कोयल कूके नीलगगन देखो बीत गया बचपन ! परिचय :- शिव कुमार रजक निवासी : बनारस (काशी) शिक्षा : बी.ए. द्वितीय वर्ष काशी हिंदू विश्वविद्यालय घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताए...
गगन के किनारे
कविता

गगन के किनारे

पारस परिहार मेडक कल्ला ******************** मैने देखा उसे गगन के किनारे बहती पवन के सहारे शाम की संध्या का रूप निखारे उतरती किरणों के इशारे। डुब रहा था आग का महाराजा कर रहा था इशारे साथ आने का आजा मेरी गोद मे समाजा मै हूँ इस जगत का राजा। दुनियाँ को जगाने निकला था पुरा करके सफर अपना, घर अपनें जा रहा था ओट में बादलों की, छिपा जा रहा था इशारों ही इशारों मे वापस आने का वादा कर रहा था। सुधा अपने अंचल में, समेट उसे रहीं थी किरणों की महक दूर-दूर तक फैली थी चारों और हँसती-हँसाती हरियाली थी प्रकृती को सौ रंगो से सजा रही थी। मै विदा लेने ही वाला था... किसामने काली घटा का घूमड़ आ निकला था इन्द्र ने पवन को भी न्योता दिया था पवन देवता भी झल्लाते पीछे-पीछे आ रहे थे किसानो की मेहनत को मिटाते जा रहे थे। इतने मे आवाज आयी... रुक जाओ, रुक जाओ, महाशय...! जरा रुक जाओ इतना क्रोध हम पर ना दिखाओ ऐसा क्या कर...
कोरोना काल की व्यथा
कविता

कोरोना काल की व्यथा

डॉ. राजीव पाण्डेय गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** घिरी अमंगल घोर घटाएं। अपना कहर रही बरपाएँ। यही निवेदन प्रभुजी करता जग पर कृपा रस बरसाएं। सहमी सहमी गुलशन क्यारी उसके गन्धित पुष्प बचाएं। जहर घुला है प्राणवायु में, सबसे पहले शुद्ध बनाएं। घुसे गुफा में हम बैठे हैं बाहर जाने के दिन आएं। पंख हमारे सिकुड़ गए हैं, नभ में कैसे भी फैलाएं। क्रूर काल के वैश्विक पंजे, काटे छाँटे चक्र चलाएं। मुँह को बांधे क्या जीना है, जीते हैं पहचान छिपाएं । घर घर के विस्तर हैं पीड़ित, सोच रहे हैं कब मुस्काएं। युवा दिलों की धड़कनसोचें बैंड हमारे कब बज पाएं। बस्ते लेकर बच्चे गुमसुम कब से हम फिर शालाआएं। पार्को में पसरे सन्नाटे, भूले कैसे सैर कराएं। मेहनतकश के बच्चे भूखे खाली थाली रोज बजाएं। सुबह साँझ में कैसा अंतर, सन्नाटों को क्या समझाएं। सुंदरतम कवितायें भी अब ताली से वंचित रह जाएं। ग...
सीढ़ियां
कविता

सीढ़ियां

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** अपने ख्वाब पूरे करने हों तो शाम, दाम, द़ंड, भेद के साथ हर हथकंडे भी स्थिति के अनुसार अपनाने में कोई हर्ज नहीं है, ख्वाब साकार हो रहा हो तो किसी भी हद तक गुजर जाना या यूँ भी कह लें किसी की लाश पर तम्बू लगाने में तनिक भी गुरेज नहीं है। आपकी तरह मैं बेवकूफ नहीं हूँ, अपना जमीर जिंदा है मात्र दिखाने के लिए अपनी कामयाबी को पीछे ढकेल दूँ मुझे मंजूर नहीं है। मेरे ख्वाब जितने ऊँचे मेरा जमीर उतना ही नीचे है, आप भी ये जान लें अपने ख्वाबों को मैंने खून से सींचे हैं, अपना तो जमीर जिंदा नहीं है यारों तभी तो कामयाबी की सीढ़ियां चढ़कर यहां तक आखिरकार पहुंचे हैं। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१/०७/१९६९ शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई., पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार) पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर...
इंसाफ
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इंसाफ

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** काल कहीं दूर नहीं है आसपास ही घूम रहा है, देख रहा है सबकी भावनाओं को, परख रहा है सब की डगमगाती आस्थाओं को, देख रहा है मानव से दानव बने इंसान की चलाकियों को। काल झांक रहा है खिड़कियों से दरवाजों से उसी तरह जिस तरह तुम झांकते हो दूसरों की बहू बेटियों को। बस फर्क इतना है काल झांक रहा है तुम्हारे किए गए गुनाहों को। और तुम आज भी छिपा रहें हो अपनी गंदी निगाहों को। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी र...
नन्हा दीया
कविता

नन्हा दीया

प्रभा लोढ़ा मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** सहमी सहमी प्रकृति थी, पक्षी लौट रहे थे क़तार में, सूरज झांक रहा था, बादलों की ओट से, नभ में रंग उड़ेल दिया चित्रकार ने, पवन की गति थी घीमी, स्थिर थे वृक्ष के पत्ते, साँस की गति हो गई घीमी, छा गई उदासी मन में जीवन में न थी कोई ख़ुशी भरी थी नमी आँखों में, आँसू बैचेन थे लुढ़कने को, अमावस्या ने चुरा लिया था चाँद को, तभी नन्हे दीये ने सिर उठाया, आशा की लौ जलाई प्रकाशित हुआ कोना यह देख अनगिनत दीयों ने हाथ मिला सब हुये साथ एक एक दीया प्रज्वलित हुआ, जगमगा उठी सृष्टि सारी मानवता जाग उठी दिया सबने सहयोग अपना प्रकृति ने सँभाली अपनी कमान आज की विषम परिस्थिति का मुक़ाबला किया सबने मिलकर नन्हे दीये का प्रयास हुआ सार्थक, ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ छाई चारों और। परिचय :- प्रभा लोढ़ा निवासी : मुंबई (महाराष्ट्र) आपके बारे में : आपको गद्य काव्य लेखन और प...
जग की कल्याणी
कविता

जग की कल्याणी

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** शिशु को नौ मास देह में रखकर गर्भ में ही पोषण आहार कराती है । जनम देकर इस जगत् में तूम उस दिन से ही तू माॅ कहलाती है ।। नहलाना धुलाना और संवारना लाड प्यार से आगे बढ़ाती है । बोलना चलना और सिखाकर बड़े ही स्नेह से बात मनवाती है।। जनम देकर इस जगत् .............. जब बड़ा हुआ उम्र पढ़ने का एक-एक अक्षर ज्ञान कराती है । खुशमिज़ाज खुशहाल होकर अपना संपूर्ण कर्तव्य निभाती है ।। जनम देकर इस जगत् .............. पढ़ा लिखा गुणवान बनाकर महापुरुषों का दर्शन बताती है । नारी जग का कल्याणी तू माॅ मातृ शक्ति का पाठ पढ़ाती है ।। जनम देकर इस जगत् .............. शारीरिक मानसिक व चारित्रिक और सर्वांगिण विकास कराती है । परिवार ही समाज का प्रथम शाला पहला गुरू यह माॅ बतलाती है।। जनम देकर इस जगत् .............. सत्-असत् मार्ग परख कर सत्य-पथ पर ...
शंकराचार्य शंकर
कविता

शंकराचार्य शंकर

डॉ. गुलाबचंद पटेल अहमदाबाद (गुजरात) ******************** जन्म लिया कलाडी केरल चेर शंकर बने शंकराचार्य ब्राह्मण घेर मृत्यु हुई केदारनाथ ३२ उम्र उत्तराखंड मठ स्थापित किए गए देश में चारो खंड शृंगेरि गोवर्धन, शारदा और ज्योतिराखंड शृंगेरि शारदा पीठ दक्षिण में रामेश्वरम गोवर्धन मठ उड़ीसा पूरी मे हे स्थित शारदा मठ दारिका मे हे आया ज्योतिर्मय मठ बद्रीनाथ उतरा खंड चारो दिशा में चार मठ इन्होंने लगाया माता सुभद्रा, पिता थे शिव गुरु भट्ट शिव आराधना से सुंदर पुत्र रत्न पाया तीन साल में माता पिता को खोया नाम पवित्र शंकर इन्होंने था पाया शंकराचार्य ने स्थापित किया दशनामी सम्प्रदाय गिरीपर्वत सागर पूरी सरस्वती वन अरण्य तीर्थ आश्रम वैदिक धर्म जैन राजन सुधनवा ने वह अपनाया भागवत गीता उपनिषद की टिप्पणी ताम्र पत्र लिखवाया था राजा सूधनवा कवि गुलाब कहे शंकराचार्य सभी नहीं बन पाता महा मांडलेस्वर अखाड़ा आचार्य....
मुट्ठी भर न मिला अनाज
कविता

मुट्ठी भर न मिला अनाज

प्रीति नेमा भैंसा, (नरसिंहपुर) ******************** अपनी विजय पर मत इतराना कर न कभी तू इस पर नाज मिट्टी से कुछ पूछ ले बंदे सोता कहां सिकन्दर आज उनका भी कुछ पता पूछना लूटा करते थे जो लाज जितने राजे महाराजे थे उनके आज कहाँ हैं ताज जो मालिक थे रतन खान के भूखे ही मर गए बेताज न तो मिला कफन ही उनको न मुट्ठी भर मिला अनाज जाना जहाँ है तुम्हें अंत में कल भी था सुनसान है आज न शहनाई न बाजे- गाजे वहाँ काम न आये साज प्रभु की लाठी जब पड़ती है सदा पड़े वो बेआवाज़ बिन कौधे बिजली गिरती है यमदूतो की गिरती गाज केवल तेरे पुण्य कर्म ही आ पायेंगे तेरे काज किये कुकर्म जाने अनजाने बे हर लेगें तेरी लाज परिचय :- प्रीति नेमा पिता : श्री रामजी नेमा निवासी : भैंसा जिला- नरसिंहपुर जन्म दिनांक : १४-०८-२००० शिक्षा : बी.एस.सी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अ...
मन में है विश्वास
कविता

मन में है विश्वास

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** किसी दिन, किसी क्षण, किसी पल तो ये कोरोना जाएगा ही। गम के बादलों को चीर कल विहँसता सूरज आएगा ही। अभी गहरा तिमिर है, पर रात का भी अंतिम प्रहर है। कल फिर नूतन प्रभा के संग, रवि मुस्कुराएगा ही। बड़ा मुश्किल ये पल है। मन में अब बचा न बल है। दृश्य विचलित कर रहे अब, ईश्वर ही एकमात्र संबल है। कब तक सहेगा वो अपने बच्चों के आँसू। जल्दी ही पिघलकर वो नेह बरसाएगा ही। किसी माँ के बच्चों को छीना किसी का ले लिया नगीना। बड़ा दरिंदा ये निकला कोरोना, मुश्किल किया सबका जीना। मगर एक आस जिंदा है, प्रभु पर सबका विश्वास जिंदा है। न घबराओ मेरे साथियों सबकी व्याकुलता देख अब वो चक्र चलाएगा ही। परिचय :- श्रीमती विभा पांडेय शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी एवं अंग्रेजी), एम.एड. जन्म : २३ सितम्बर १९६८, वाराणसी निवासी : पुणे, (महाराष्ट्र) विशेष : डी.ए.वी. मे...
एक शब्द में
कविता

एक शब्द में

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मां मां एक शब्द में, सम्पूर्ण सृष्टि समाई है। प्रकृति के रहस्यों में, स्थित प्रश्नों का उत्तर है मां! मातृत्व प्राप्त करते, देवत्व को प्राप्त करती है। सृजन की शक्ति में, ईश्वरीय देन होती है। मां! मां के अनेक रुपों में, ममता भरा ओज दमकता है। स्नेह के आंचल में, स्वाभिमान समाया है। संघर्ष को कठोर तप से, प्रदीप्त हो निवारण करती है। मां! मां कामिनी, प्रेयसी में, तो पत्नी, दुहिता, धारिणी हैं। प्रवृत्ति की रीढ़, खेतों में वीर, वीर प्रसूता भी मां हैं। संस्कृति की वाहक, परम्पराओं की संरक्षक 'मां' है। धन्य हो माँ ! जिससे मिला जीवन हमको। सार्थक कर दिखाना है। परिचय :- अमिता मराठे निवासी : इन्दौर, मध्यप्रदेश शिक्षण : प्रशिक्षण एम.ए. एल. एल. बी., पी जी डिप्लोमा इन वेल्यू एजुकेशन, अनेक प्रशिक्षण जो दिव्यांग क्षेत्र के लिए आवश्यक है। वर्तमान में मूक ब...
ये वक्त भी गुज़र जायेगा
कविता

ये वक्त भी गुज़र जायेगा

प्रीति जैन इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** गमों का कातिल दौर, कब तक मन को छलायेगा डटा रह, ज़ालिम ये वक़्त भी गुज़र जायेगा मन में भर विश्वास की लौ का उजियारा रंगीन दुनिया, जगमगाती खुशीयों का दौर लौट आयेगा सवाल खटखटा रहे हैं, मेरे मन का द्वार धरा का क्या हाल हुआ, सताए यह विचार मन विचलित, नैन विस्मित, देख नजा़रे धरती के सजा मिली कैसी हमें पूछूंगी भगवन, तुम अगर मिल गए इंसान ही इंसान का बन बैठा है दुश्मन अनाचार, अत्याचार, हैवानियत, मर गया कोमल मन संसार है नश्वर, मोल इंसानियत का न जाना किसी ने गुनाहों की मेरे मांग लूंगी माफी, तुम अगर मिल गए जगमगाती दुनिया में छाया एक पल में अंधियारा तम को चीरकर दीप्त प्रकाशमान करो, झिलमिल उजियारा अलौकिक रोशनी से रोशन होगा जहां, मन में विश्वास है आस की लौ थी क्युं जलाई, पूछूंगी तुम अगर मिल गए होश कहां बा...
कभी कभी
कविता

कभी कभी

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** तुम्हारी याद सताती है बस कभी कभी भूली बातें याद दिलाती है, बस कभी कभी। तेरी यादों की चादर में लिपट के रोता हूँ काश!तुम अश्क पोंछने आती, बस कभी कभी। बहुत सताया हूं तुमको है सब याद मुझे उन ज़ख़्मो को तुम दिखलाती, बस कभी कभी । अरसे से तरसे यूं फ़कत दीदार के लिए तुम भी मुझको आवाज़ लगाती, बस कभी कभी। सिवा तुम्हारे हम किसी और के हो भी नही पाए मुझे भी कुछ एह़सास दिलाती, बस कभी कभी। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल व...
छोटी सी भूल
कविता

छोटी सी भूल

प्रेमनारायण राव भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** जग में मत करना, एक छोटी सी भूल। अंत में पछतायेगा, कर छोटी सी भूल॥ पारीक्षित नें किन्ही एक छोटी सी भूल कीन्हों अपमान, मृत सर्प मुनि डारके अंत में पछताये, कर छोटी सी भूल पाण्डू मृग मारे बन, रमण क़ि अवस्था में पायो मृग श्राप पाण्डू , भोग के वियोग को जीवन को अंत भयो कर छोटी सी भूल महल बीच दुर्योधन भई गिरबे क़ि भूल द्रौपती किन्ही, तब हँसबे क़ि भूल सभा बीच नग्न भई, कर छोटी सी भूल योगी मुनि योद्धा नृप, तनक भई भूल काऊ को ना बक्षत प्रेम छोटी सी भूल परिचय :- प्रेमनारायण राव पिता : स्व. श्री कृपाराम राव पता : राजाभोज की नगरी भोजपाल (भोपाल) म.प्र सम्प्रति : शासकीय सेवा से सेवानिवृत्त विधा : भजन, ग़ज़ल, लोकगीत, विदाई गीत, देशभक्ति गीत, अभिनंदन पत्र, कवित्त, सवैये, छंद, कुण्डली, दोहे, साकी, शैर आदि विधाओ में रचनाएँ। सन १९८४ से १९९० तक आक...
हमारे आंगन में
कविता

हमारे आंगन में

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** हवाएं जो बिगड़ी है देखना तुम एक दिन फिर बहारें चमन में अपना रंग बदलेगी और खिल जायेगी चारौं दिशाएं बसंत खिलकर आयेगा हमारे आंगन में। बिगड़े हालात सब सुधर जायेंगे मधुबन में फिर कोई गुनगुनायेगा, सुबह फिर खिल उठेगी उषा की लालीमा लिए हर पुष्प पर कुसुम की खूबसूरत मुस्कुराहट होगी और दबे पांव नया बंसत अपने बंसती रंग लिए आयेगा हमारे आंगन में। हर चेहरे पर नूर ही नूर होगा शबनम सी मुस्कुराहटों की चमक लिए, महामारी करोना काल से हम जीत जायेंगे गगन सकारात्मक सोच लिये ये काले बादल भी छट जायेंगे और मुस्कुराता बसंत फिर खिलकर आयेगा हमारे आंगन में। परिचय :- गगन खरे क्षितिज निवासी : कोदरिया मंहू इन्दौर मध्य प्रदेश उम्र : ६६वर्ष शिक्षा : हायर सेकंडरी मध्य प्रदेश आर्ट से सम्प्रति : नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण भोपाल मध्यप्रदेश सेवानिवृत्त २०१४...
बादल आवारा है
कविता

बादल आवारा है

अखिलेश राव इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बादल आवारा है अल्हड़ है मदमस्त इतराते है बादल आवारा है। है वसुधा से दूर ये कितने झट से आलिंगन कर जाते हैं बादल आवारा है।। पनिहारिन पानी भरती ऐसे लगते हैं मोर नाचता मधुवन ऐसे लगते हैं चीटी चढे पहाड़ ऐसे भी दिखते कान्हा की बंसी मुद्रा से भी लगते हैं बादल आवारा है।। कभी नवल कभी धवल कभी कमल ये बन जाते हैं बादल आवारा है।। मुस्काओ तो हंसते जाते दुख में ये उदास हो जाते बहुरूपिया बनकर ये बादल कभी हंसाते कभी रूलाते बादल आवारा है।। कभी दुपहरी बनकर आते सांझें सुंदरी कर जाते उमस भरी रातें भी इनकी कभी चांदनी में नहलाते बादल आवारा है अल्हड़ है मदमस्त इतराते है बादल आवारा है।। परिचय :- अखिलेश राव सम्प्रति : सहायक प्राध्यापक हिंदी साहित्य देवी अहिल्या कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय इंदौर निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हू...