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कविता

मेरी प्यारी दीदी
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मेरी प्यारी दीदी

निशा रायपुरिया अजमेर (राजस्थान) ******************** मेरी दीदी सबसे प्यारी माँ जैसा प्यार दिया भाई जैसा दुलार दिया राखी का त्योहार है भाई का भाई नही है तो रक्षा का वचन दिया कभी लगाई डाँट मेरी कभी प्यार से गले लगाया हरदम मेरा अच्छा चाहा हरदम मेरा भला किया तानो मे भी प्यार भरा था गुस्से में सम्मान भरा था सच में सबसे प्यारी दीदी परिचय :- निशा रायपुरिया निवासी : बरल २ जिला- अजमेर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप क...
प्रेम सदा जिंदा रहता है
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प्रेम सदा जिंदा रहता है

गरिमा खंडेलवाल उदयपुर (राजस्थान) ******************** दशक उम्र के बीत जाए जवानी पर चांदी चढ़ती जाए शहर बदल ले जीने के सलीखे मेरी यादो से दूर जाएगी कैसे प्रेम सदा जिंदा रहता है मिटाएगी कैसे जीवन की हजार समस्याएं दुनियादारी की समझाइशे मौसम पर चढ़ जाए धुंध की चादर जो लम्हा जी लिया उसे भूलाएगी कैसे प्रेम सदा जिंदा रहता है मिटाएगी कैसे हर ख्वाहिश पर भगवान बदलते हर मौके पर रिवाज बदलते दिल तो तेरे पास भी एक ही है सासो पर लिखा था नाम बदलेगी कैसे प्रेम सदा जिंदा रहता है मिटाएगी कैसे परिचय :- गरिमा खंडेलवाल निवासी : उदयपुर (राजस्थान) संप्रति : शिक्षक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र ...
कोरोना
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कोरोना

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** है यह कोरोना महामारी अति घातक बच के रहना। ये काल कोरोना धरा पर अपने पांव पसार रहा है। हो कोई समाज बचा नहीं महामारी से सावधान रहो। हे नर अब भी समय है संभल जाओ खिलवाड़ रोको। ये धरा सबकी मातृभूमि पालन हार सबका आश्रय। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच उत्तरीभारत इकाई, रा.उपाध्यक्ष, क्रांतिवीर मंच, रा. उपाध्यक्ष प्रभु पग धूल पटल, रा.मीडिया प्रभारी-शारदे काव्य संगम, प्रभारी हिंददेश उत्तरप्रदेश इकाई साहित्यिक गतिविधियां : विभिन्न विधाओं की रचनाएं कहानियां, लघुकथाएं, हा...
मिट्टी सी बेटी हूं मैं
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मिट्टी सी बेटी हूं मैं

अंशिता दुबे लंदन ******************** कभी नम हो जाती हूं गम से, कभी सख्त हो जाती हूं श्रम से, कभी सौंधी खूशबू सी जाती हूं बिखर, कभी हौसले से चढ़ जाती हूं शिखर, कभी दरिया संग बह जाती हूं इक छोर, कभी तट पर रुक जाती हूं बन डोर, कभी उलफत की लहरों से जाती हूं मिलने, कभी शांत सरोवर में जाती हूं खिलने, कभी एहसासों की नदी में जाती हूं डुबने, कभी लगती तूफानी भंवर सी हूं ऊबने, कभी आसमां को मुटठी में बांधने हूं लगती, कभी जमीन को ही अपना आसमां मानने हूं लगती। परिचय :- अंशिता दुबे निवासी : लंदन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं...
अमर स्वतंत्रता सेनानी रासबिहारी बोस
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अमर स्वतंत्रता सेनानी रासबिहारी बोस

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** महान स्वतंत्रता सेनानी रासबिहारी बोस! कर देश सेवा माँ-कोख को दिया गरिमामय तोष!! बोस! जन्म तेरा वर्धमान जिला पश्चिम बंगाल! जापान के टोक्यो में हा! आंँखें मूंँद लीं लाल!! तुम देश की कई राष्ट्रीय भाषाओं के ज्ञाता! अमर क्रांतिकारी हो तुम मांँ भारती के त्राता!! सशस्त्र क्रांति से राष्ट्रभक्ति की जलाई जोत! प्रख्यात वकील महान शिक्षाविद पर गौरव होत!! गवर्नर जनरल की हत्या-योजना बनाए बोस! असफल हो पहुंँचे जापान ले पूर्ण क्रांति जोश!! अज्ञातवास में किया जापानी तोशिका से विवाह! ब्रेकरीसुता थी छिपे बोस को खिलाया कई माह!! आजाद हिंद फौज के तुम श्रेष्ठ संगठनकर्ता! इंडियन इंडिपेंडेंस लीग के स्थापनाकर्ता!! देश तज जर्मनी पहुंँचे नेताजी को योग्य जान! सौंपी लीग, इंडियन नेशनल आर्मी की कमान!! और स्वयं को सीमित किया सिर्फ सलाहकार त...
काढ़े की महिमा
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काढ़े की महिमा

संजय डागा हातोद- इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जब से कोरोना ने आकर करी भारत मे घुसपैठ हमारी प्यारी हिन्दी भाषा मे भी अग्रेंजी शब्दों की होने लगी घुसपैठ, माॅस्क और सेनेटाइजर हिन्दी शब्दकोष मे पहले-पहल आ गऐ पिछे क्वारेन्टाइन, होम आइसोलेशन प्लाज्मा और एंटी-बाॅडी भी हिन्दी के जरूरी शब्द हो गऐ फिर आया रेमडेसिविर और आई वैक्सीन की बारी पर हमारा काढ़ा आज भी इन सब पर पड़ता है भारी, भले ही हम इसे पीने मे आज भी नाक-भौ सिकोड़ते है पर काढ़े को हम सब आज भी हिन्दी मे काढ़ा ही तो बोलते है।। परिचय :- संजय डागा निवासी : हातोद जिला इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकत...
तुम वादा करो
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तुम वादा करो

रंजीत शर्मा "रंग" सिखरा, हाथरस (उत्तर प्रदेश) ******************** हम तुमको भुला देंगें गर तुम वादा करोगे बाद हमारे तुम किसी से दिल न लगाओगे में हूं पतझड़ वृक्ष तुम मुझको आवाज ना दो ना खिले कोई फूल ऐसी रस्मों रिवाज ना दो राजनीति के चक्रव्यूह में ना मुझको अब घेरो मैं दरवारों की शान बनूँ ऐसा समाज ना दो अब ये चांदनी रातें हम बिन कैसे बिताओगे बाद हमारे तुम किसी से दिल न लगाओगे जानता है ये फाग महीने का रंगीन मेला तुम्हारे बिन ये अबके निकला है अकेला कभी खाते थे जलेबी उस हलवाई की आज पूछता है गुड्डे गुड़ियों वाला ठेला बताओ अबके सावन कैसे तुम मनाओगे बाद हमारे तुम किसी से दिल न लगाओगे ये बैरी पवन क्यूँ मुझको तपन दे रही है ये चांदनी रात क्यूँ मुझको जतन दे रही है डूबती किरणें मेरे सूरज की देख ले "रंग" अब तारों की छांव सासों की घुटन दे रही है मेरी मईयत पर क्यूँ तुम आंसू ब...
दुनिया देखे नाही
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दुनिया देखे नाही

जयप्रकाश शर्मा जोधपुर (राजस्थान) ******************** बुद्धि ये कहती है सयानों से मिलकर रहना हदय ये कहता है दीवानों से मिलकर रहना अपने टिकने नहीं देते हैं कभी चोटी पर जान-पहचान अनजानों से बनाए रखना अब आसान नहीं है उसे रोक के रखना वह मृत्यु है किसी की नहीं सुनती कस्तूरी कुंडल बसै, मृग ढूढै वन मांहि.. ऐसे घट घट राम हैं, दुनिया देखे नांहि..! परिचय :- जयप्रकाश शर्मा निवासी : जोधपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak1...
“बाकी सब वैसा का वैसा ही तो रहेगा” (नारी व्यथा)
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“बाकी सब वैसा का वैसा ही तो रहेगा” (नारी व्यथा)

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** नाम बदलेगा, गाँव बदलेगा, शहर बदलेगा, यहां तक की प्रदेश भी बदल जाएगा.... ज्यादा कुछ नही बस पहचान और पता ही तो बदलेगा... बाकी सब वैसा का वैसा ही तो रहेगा... दर्द वहीं रहेगा... सहना भी रोज की तरह ही होगा... कुछ भी तो नही बदलेगा... सहनशीलता की सीमा को थोड़ा ओर बड़ाना होगा... ज्यादा कुछ नही बस खामोशी से ही हर आँसू भी पीना होगा... बाकी सब वैसा का वैसा ही तो रहेगा... ना तो कोई माँ की तरह बिस्तर पर खाना लाएगा... ना ही पापा की तरह कोई सुबह की सलाह देने वाला होगा... अंदर से रहकर अकेला ओरों के सामने हँसना होगा... ज्यादा कुछ नही बस अपना वजन खुद को ही उठाना होगा... बाकी सब वैसा का वैसा ही तो रहेगा... सारे अरमानों की करके हत्या इल्जाम खुद पर ही लगाना होगा... बेबस चीखती जुबान को मन ही मन में दफ़न करना हो...
मानव की मानवता
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मानव की मानवता

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** मानव की मानवता का हो गया पतन, इसलिए बीमार है विश्व व सारा वतन। खो रहे है सभी अपने चयन व अमन, मानव ही ने किये सारे दूषित ये पवन। जंगल काट बनाये कारखाने व भवन, कोरोना बीमारी के जिम्मेदार है कवन। मानव आंक्सीजन के स्रोत करे गमन, कैसे बचाये मानव स्वयं का ये जीवन। प्राकृति से बधि है हमारी जीवन डोर, कोरोना ही कोरोना फैला चारों ओर। हे!मानव तुम हैवानियत को दो छोर, निकाल दो मन से छिपा है जो चोर। चल नहीं रहा है मानव का कोई जोर, हे! मानव मानवता ही धर्म-कर्म मोर। सच्चाई से मानव आप मुख न मोड़, प्राकृति से सच्चा रिश्ता लो तुम जोड़। लौट आयेगा सबका चयन और अमन, खुशहाल हो उठेगा अपना सारा वतन। परिचय :- विरेन्द्र कुमार यादव निवासी : गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना...
बाकी है
कविता

बाकी है

जयश्री सिंह बैसवारा सोनभद्र, (उत्तर प्रदेश) ******************** अभी तो कदमों को राहों पर लाया है उड़ान अभी बाकी है, इम्तिहान कहाँ खत्म हुआ है मेरा मंज़िल-ए-मुकाम अभी नहीं हासिल है, वक्त बेवक्त चल पड़ती हूँ उस ओर अभी तो सारा नजारा बाकी है, जिंदगी जो रूकी हुई थी मेरी कल तक उसे आगे बढ़ना बाकी है, पल भर की रौनक नहीं अब यहाँ माथे पर मेरे निशान बाकी है, रूकना अभी कहाँ मयस्सर है मेरे लिए अभी काफिलों का मेरे पिछे चलना बाकी है, रौनक तो है अभी भी महफ़िलो में मगर महफ़िल का मेरे नाम होना बाकी है, तुम्हारा इतराता भी ठीक है मगर मेरे गूरूर की आंधी का आना अभी बाकी है, शहर भले ही तुम्हारा क्यूँ न हो मगर भीड़ मेरे नाम की हो, ये नजारा भी बाकी है, चल देखते हैं कब तक खत्म नहीं होती ये जंग अभी वक्त का मेरी तरफ होना भी बाकी है। परिचय :- जयश्री सिंह बैसवारा निवासी : सोनभद्र, (उत्त...
खो देते है
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खो देते है

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** मत पिलाओं अपने आँखों से इतना की हम उठा न सके। मत दिखाओ अपने हुस्न को कि हम नजर हटा न सके। जब भी होते है दीदार तुम्हारे खो देते है अपना सुध-बुध। और तुम्हें ही अपनी नजरो से देखते रहते है।। खोलकर उलझे हुए काले बालों को जब तुम सुलझती हो। ऐसा लगता है जैसे काली घटायें घिर आई हो आंगन में। अपने हाथो से जब तुम बालों को सहलती हो। तब कभी-कभी चाँद सा सुंदर चेहरा दिख जाता है।। भले क्यों न हो अमावस्या की रात पर उसमें भी पूनम का चाँद दिखते हो। जो देखने वालो की दिलकी धड़कनो को बड़ा देती है। और अंधेरी रात में भी तुम चाँद सी खिल जाती हो। और चाहने वालो के दिल में मोहब्बत के दीप जला देते हो।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कं...
मोहब्बत
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मोहब्बत

ममता रथ रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** श्रद्धा का दूसरा नाम है मोहब्बत दो दिलों का पावन एहसास है मोहब्बत किसी के दर्द से किसी का रोम-रोम कांपने लगे उसी चाहत का नाम है मोहब्बत जिसको हृदय दुआओं में मांगे रब से उसी इबादत का नाम है मोहब्बत जिसकों आँखों में छुपाकर रखा जाए उसी ख्वाब का नाम है मोहब्बत जो नफ़रत की गर्म धूप से बचाए उसी प्यार की छाँव का नाम है मोहब्बत परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर (छत्तीसगढ़) जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचि...
स्त्रियां
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स्त्रियां

अर्चना लवानिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** स्त्रियां समाहित होती हैं घर के कोने कोने में अखबार की घड़ी से चाय की चुस्की में सलीके से बिली गोल रोटी और सोंधी-सोंधी खुशबू में आंगन में दाना चुगते चह-चहाते पंछियों के सुर में गमलो और बैलों में निकली नव कलियों में स्त्रियां समाहित है ... तुलसी चौबारे पर जलते दिए में सुघडता से चमकते घर और लीपे पुते आंगन में स्त्रियां समाहित होती है... अभावों को खूंटी टांग चेहरे की सहज मुस्कान में दुख दर्द की विभीषिका में सुख का आंचल बंन कर स्त्रियां समाहित होती हैं... पेपर की संभाली कतरन ओ पन्नों में पुरानी चीजों से फिर नई साज सवार का कौशल बनकर स्त्रियाँ समाहित है .... पेंसिल से लिखें नए नवेले कच्चे अक्षरों में जीवन सुख दुख का सहज गान और लोरी बनकर स्त्रियां समाहित है... संध्या दीपक आरती और घंटी के सुर में...
अटरिया
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अटरिया

डॉ. गुलाबचंद पटेल अहमदाबाद (गुजरात) ******************** कारे-कारे बदरा रे, तुम मत आना मेरी अटरिया पर मे नीद मे सोया था सपना मे खोया था कारे कारे बदरा रे, हमे नीद से क्यू जगाया रे? हमने सुन्दर सपना देखा था तुमने सपना क्यू तोड़ दिया रे? आकर मेरी अटरिया पर तुमने हमे क्यू जगाया रे? सपने में वो आई थी, क्यू तुमने भगा दिया रे? बदरा तुम पापी हे आंखो से नीद भगा दी रे कभी तुम पवन संग आया रे प्रीत का संदेश तुम लाया रे पवन संग हमे भगा ले गया रे बारिश के संग प्रिया को पाया रे कारे कारे बदरा तुम मेरी अटरिया पर जरूर आना. प्रिया का संदेश तुम जरूर लाना परिचय :-  डॉ. गुलाबचंद पटेल निवासी : अहमदाबाद (गुजरात) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय...
एक बहु
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एक बहु

मुस्कान कुमारी गोपालगंज (बिहार) ******************** हर रोज सहती डाट सबकी बस इतना ही बोलती है गलती नही होगी अबकी रात को जब सोती है घर की याद उसे आती है बहु भी किसी की बेटी है लोगो को ये बात समझ क्यों नही आती है। रोज सुबह जल्दी उठती है सुबह से काम कर करके रात को थक कर सो जाती है काम कर के हो जाती उससे गलती है तुम्हारी मां ने यही सिखाया यही बात सबसे सुनती है बहु भी किसी की बेटी है ये बात समझ क्यों नही आती है। अपने सपने को छोड़ कर दूसरे के सपनो को पिरोती है किसी और के सपने को लेकर वो खुद परेशान रह जाती है कभी हिम्मत नही करती है अपने सपनो को कहने की कह देती तो, हमारे घर की बहुएं ये काम नही करती है यही उसे सुनने को मिलती है बहु भी किसी की बेटी है ये बात समझ क्यों नही आती है। सासु मां की ताने सुनती है वो भी कुछ नहीं बोलते जिनके लिए वो सब छोड़ आई है आखिरकार रोकर वो मां को याद करती है बहु भी ...
सब खत्म…?
कविता

सब खत्म…?

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ****************** कई बार दरवाजे पर ही अड़ जाता हैं मन मेरा मुझसे पूछता हैं सब कुछ खत्म ? अब कुछ नहीं बचा ? मै घबरा जाता हूँ हाथ पांव कंपकंपाने लगते है मेरा मन मेरा बदन सुन्न हो जाता है और सवाल अनाथ दरवाजे पर ही चस्पा हो जाता है !! घबरा कर मैं अपने गुरु के यहाँ दौड पड़ता हूँ सर्वनाश का भय दिखाकर पीठ पर गुरु दक्षिणा का बोझ लादकर गुरु मुझे उपदेश देता है इस जीवन में कुछ भी खत्म नहीं होता अंत से ही तो सब शुरु होता हैं !! यह समझना जरुरी है कि क्या तो अन्त हैं और क्या तो शुरुवात हैं ? बावरा मन अन्त को ही शुरुवात समझ लेता हैं पागल मन शुरुवात को ही अन्त समझ लेता हैं अस्थिर मन समाप्ति के बाद शुरुवात की कामना करता हैं शुरू में समझता नहीं मन कोई संकेत अंत दफ़ना जाते जाने कितने रहस्यों के संकेत फिर भटकन भरा जिंदगा...
किसान देश का है
कविता

किसान देश का है

श्‍वेता अरोड़ाशाहदरा दिल्ली****************** हमारी एक एक रोटी केनिवाले पर नाम उसका है,धधकती गरमी मे,ककडती सर्दी मे,करता है वोखून पसीना एक,ये अहसान उसका है,ना रह जाए भूखे हम,मेहनत दिनरात वो करता है,ये तो देश काकिसान है जनाब,अनाज के एक-एकदाने को सोने कीतरह संजोता है!गर्म लू के थपेडे खाकरयो भूख हमारी मिटाता है,करो कुछ कोशिशे ऐसी किना रह जाए बेटीउसकी बिन ब्याही,बेटा उसका पढ जाए,कर्ज के बोझ मेआकर ना वोमौत को गले लगाए,अगर हम कुछ कर पाएऐसा तो अहसान नही,बस ये तो हमारीतरफ से ब्याज उसका है,क्योकिहमारी एक एक रोटी केनिवाले पर नाम उसका है! परिचय : श्‍वेता अरोड़ानिवासी : शाहदरा दिल्लीघोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा ...
माँ को खोजता हूँ
कविता

माँ को खोजता हूँ

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जब मैं निराशा से भर जाता हूँ माँ को खोजता हूँ माँ, माँ तुम कहा हो, माँ मैं माँ को चहु और खोजते, माँ कहि नही पा कर हताश हो घर के एक कोने में चुपचाप बैठ जाता हूँ। अपने ही भीतर से मुझे एक स्नेह भरी आवाज़ सुनाई देती है, क्यो उदास हो रहे हो मैं सदा ही तुम्हारे साथ हूँ तुम्हारे भीतर ही हूँ मैं मैं चौकन्ना हो जाता हूँ। खुशी से बुदबुदाता माँ माँ क्या तुम सचमुच मेरे भीतर हो फिर वही स्नेहसिक्त आवाज आती है हा बेटे हा मैं सचमुच तुम्हारे भीतर हूँ मैं खुशी से झूम जाता हूँ। मुझे फिर सुनाई देता है जब तुम प्रेम व स्नेह से सदव्यवहार करते हो मैं ही तो होती हूँ जब तुम्हारा ह्रदय परपीड़ा से भर जाता है मैं ही तो होती हूँ तुम दुसरो की चिंता कर उन्हें मदद करते हो वो चिंता वो मदद मैं ही तो होती हूँ, प्रेम व दया से भर जब तुम अश्रु बहाते हो तुम्हारे वो अश्रु...
सिसकियां
कविता

सिसकियां

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** हर ओर अफरातफरी है हर चेहरे पर खौफ है, दहशत है। घर, परिवार का ही नहीं बाहर तक फिज़ा में भी अजीब सी बेचैनी है। माना सिसकियां भी सिसकने से अब डर रहीं। आज सिसकियां भी मानव की विवशता देख सिसक रहीं। सिसकियों में भी संवेदनाओं के स्वर जैसे फूट पड़े है, मानवों के दुःख को करीब से महसूस कर रहे हैं। पर ये भी तो देखो सिसकियां भी मानवीय संवेदनाओं से जुड़ रहीं, हमें नसीहत और हौसला दोनों दे रहीं, अपनी हिचकियों के बहाने से हमें खतरे से आगाह भी कर रहीं। अक्षर ज्ञान नहीं सिसकियों को इसीलिए अपने आप में ही सिसक रहीं अपनी हिचकियों से संवेदनाओं को व्यक्त कर रहीं। सुन सको तो सुन लो, सिसकियां तुमसे क्या कह रहीं? न हार मानों तुम शत्रु से न उसे अजेय मानों। रख मन में पूरी आशा करो खुद पर भरोसा कस कर कमर अपनी प्रयास करो जोर से, दूर होगी सारी दुश्वा...
खोज रही है पलकें
कविता

खोज रही है पलकें

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** राहें नयी दिखा जाता जो, दुखः से भरे जहाँन को। ढूंढ रही है कब से दुनियां, ऐसे वीर जवान को। अंगारों पर चलने वाला दीपशिखा सा जलने वाला, जिसनें पिया जहर का प्याला पर बांटा जग को उजियारा। आंच नहीं आने दी जिसने संकट में भी आन को। ढूंढ रहीं है कब से दुनियां, ऐसे वीर जवान को। जिसने सुख की बात न जानी तूफानों से हार न मानी, अंगत सा निशछल अभिमानी, निर्धन किन्तु कर्ण सा दानी। तैरा कर जिसनें दिखलाया जल में भी पाषाण को। ढूंढ रही है कब से दुनियां ऐसे वीर जवान को। जीवन जो कर्मो में बीता, नहीं प्यार का पनघट रीता जिनका जीवन तप की गीता, लोभ मोह को जिसने जीता। कर साकार दिखाया जिसने तन में ही भगवान को। ढूंढ रही है कब से दुनियां ऐसे वीर जवान को। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्...
नशा मुक्त हो देश हमारा
कविता

नशा मुक्त हो देश हमारा

बिसे लाल खड़गवां (छत्तीसगढ़) ******************** सुन मेरे भाई अब समझ ले बेहतर समझ ले, नशा नाश की जड़ है नशे से तन होता खराब मन होता खराब। नशे से जब खराब होगी तेरी जिंदगी तो जिंदगी का बोझ उठाने के लिए दर-दर भटकेगा, कोई नहीं देगा तेरा साथ अकेले हो जाएगा इस जहां में। नशे में पड़ कर तू घर बेचेगा जमीन बेचेगा आखिर में घर की थाली तक बेच देगा, नशे से तुम्हारा परिवार बिखर जाएगा। नशे से तुम्हारी जिंदगी अंधकारमय हो जाएगी अपने आप को जिंदगी के अंधेरों में आखिर में खोजते रह जाओगे। तुम्हारे साथ तुम्हारे दोस्त सब आगे बढ़ जाएंगे, नशा में पड़कर अपना जीवन बर्बाद कर डालोग। ऐ इंसान अपने परिवार लिए जी नशा छोड़ दे अभी के अभी, तू नशा छोड़ेगा तेरा परिवार तुमको फिर मिल जाएगा। मान मेरा कहना नहीं तो पछतायेगा, सोने जैसे शरीर मिट्टी सामान बन जाएगा। आओ सब मिलकर हम कोशिश करें, हमारे आने वाली पीढ़ी कुछ कर सके। तो हम सब हम...
वो बच्चा
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वो बच्चा

चंद्र शेखर लोहुमी जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** वो बच्चा न जाने कहाँ खो गया है कोई ढूंढ लाओ गले से लगा लूं जो रहता था हरदम थिरकता-फुदकता यहाँ से वहां तक न जाने कहाँ तक कहता था मामा जो चंदा को नभ के तारों को कहता था मोती प्रभु के तैराता था नावें कागज की अक्सर बरसते पानी में घर से निकल कर कभी गुल्ली डंडा कंचों की खन-खन बहुत खीजता था वो करने को मंजन वो बचपन न जाने कहाँ खो गया है ll साइकिल के टायर को लकड़ी से चलाना कपडे की गेंदों पर हॉकी जमाना कभी बंदरों सा पेड़ों पर चढ़ना उतरना चढ़ना और फिर कूद जाना लकड़ी की तखती पर कालिख लगाना दवात के पेंदे से जम के रगड़ना बड़े भैया की किताबों पे यूँ नाज करना जैसे हो गहना घर का पुराना धरोहर पर इतराना अब खो गया है ll नहीँ होता जूता तो चप्पल पहनना चप्पल हो टूटी तो यूँ ही दौड़ जाना घंटे की टन-टन जो स्कूल से आती सारी मस्ती न जाने कहाँ भाग जाती प्रार्थना क...
प्रताप की हुँकार
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प्रताप की हुँकार

चन्दन केशरी झाझा, जमुई (बिहार) ******************** जो कहलाए थे महाराणा, उस प्रताप की हुँकार सुनो। आज इस "चन्दन" की ज़ुबानी, तुम दास्तान-ए-मेवाड़ सुनो। पिता उदय सिंह द्वितीय, और माँ जयवंताबाई थी। कुम्भलगढ़ के किले में जन्में, तब माटी भी मुस्काई थी। अधीनता न है स्वीकार, महाराणा ने ये ठाना था। वो थे साहसी, कर्मवीर, ये अकबर ने भी जाना था। हुआ युद्ध प्रचंड और लहू से सन गई माटी थी। जहाँ मुगल भी काँप उठे, वह भूमि हल्दीघाटी थी। भील थे इनके साथ और शत्रु सेना विशाल थी। इस परमप्रतापी राणा की, सेना नहीं, मशाल थी। बहलोल खान को इन्होनें, बीच से ही चीर दिया। धन्य है वो माता भी जिसने, देश को ऐसा वीर दिया। जब राणा शत्रुओं से घिरे, चेतक ने उन्हें बचाया था। २८ फीट का नाला भी तब, कटी टांग से पार लगाया था। राणा को बचाने में उसने, अपना दे दिया प्राण था। वो चेतक, केवल अश्व नहीं, राणा का मित्र महान था। आए ...
बाकी है
कविता

बाकी है

जयश्री सिंह बैसवारा सोनभद्र, (उत्तर प्रदेश) ******************** अभी तो कदमों को राहों पर लाया है उड़ान अभी बाकी है, इम्तिहान कहाँ खत्म हुआ है मेरा मंज़िल-ए-मुकाम अभी नहीं हासिल है, वक्त बेवक्त चल पड़ती हूँ उस ओर अभी तो सारा नजारा बाकी है, जिंदगी जो रूकी हुई थी मेरी कल तक उसे आगे बढ़ना बाकी है, पल भर की रौनक नहीं अब यहाँ माथे पर मेरे निशान बाकी है, रूकना अभी कहाँ मयस्सर है मेरे लिए अभी काफिलों का मेरे पिछे चलना बाकी है, रौनक तो है अभी भी महफ़िलो में मगर महफ़िल का मेरे नाम होना बाकी है, तुम्हारा इतराता भी ठीक है मगर मेरे गूरूर की आंधी का आना अभी बाकी है, शहर भले ही तुम्हारा क्यूँ न हो मगर भीड़ मेरे नाम की हो, ये नजारा भी बाकी है, चल देखते हैं कब तक खत्म नहीं होती ये जंग अभी वक्त का मेरी तरफ होना भी बाकी है....।। परिचय :- जयश्री सिंह बैसवारा निवासी : सोनभद्र, (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : ...