कोहरा
मनवीन कौर पाहवा ‘वीना’
पलावा (महाराष्ट्र)
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चाँदनी बिखरी पड़ी थी,
कुछ शांत निखरी पड़ी थी।
चाँद गुमसुम गुनगुनाता,
गगन सुनता झूम जाता।
ढाँप कर प्रत्येक छोर को,
कोहरा बढ़ता ही जाता।
मार्तण्ड भी कैसे उदित हों ,
गया कहीं छिप, वह सोचती।
कमलनीय उदास बैठी,
रवि किरण को खोजती।
धुआँ-धुआँ हुआ प्रभात,
प्राण हीन से सभी गात,
भयभीत लहर से कांपते,
स्थिर हुए सब जलाशय
शाख़-पात चुप चाप खड़े,
इस विपत्ति को भाँप रहे।
कब छटेगा कोहरा,
ताकि
मैं नीड़ से निकल सकूँ।
नदी पर्वत चीर कर
पुनः
भ्रमण को फिर चलूँ।
अंत होगा कोहरे का,
नव भोर, फिर से आएगी।
पा कर सुनहरा सूर्य प्रकाश,
फिर से दुनिया हर्षाएगी।
परिचय :-मनवीन कौर पाहवा ‘वीना’
निवासी : पलावा (महाराष्ट्र)
शिक्षा : राजस्थान विश्विद्यालय जयपुर से, समाज शास्त्र और राजनीति शास्त्र मै स्नातकोत्तर व बी.एड
सम्प्रति : सेवानिवृत...