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कविता

योग
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योग

डॉ. गुलाबचंद पटेल अहमदाबाद (गुजरात) ******************** योग कृष्ण के गले में हे सुन्दर माला, विश्व के लोगों ने भी बनाई है योग माला मुलाकात होती है एक संजोग २१ जून को पूरा देश करेगा योग अंग्रेजी में ट्यूज़ड़े, वेडनसडे एंड थरसड़े फ्री स्टाईल से मनाते हैं लोग यहा बर्थ डे भारत देश हे प्यारा और लवली बाबा रामदेव कराते हैं रोज नावली यदि रोग के बारे में तुमने जाना योग से बच सकते हैं दवाई के पेसा यदि रोजाना करेंगे तुम योग नहीं रहेगा आप के शरीर में रोग मुस्लिम समुदाय को सूर्य नमस्कार में बाधा कोई बात नहीं चाँद के सामने करो तुम आधा मी. नरेंद्र मोदी ने लगाया सफाई का नारा रोग भगाने के लिए स्वच्छ रहेगा देश सारा लोग कहते हैं, जगत हे मिथ्या किन्तु योग से बन सकता है विश्व प्यारा योग करने के लिए मे विनती करू मत पीना तुम कभी बीड़ी सिगरेट दारू पोरबंदर की प्रख्यात हे ख़ाजली योग ग...
पिता
कविता

पिता

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** पिता का दाहसंस्कार कर घर के सामने खड़े होकर अपने पिता को पुकारने की प्रथा जो दाहसंस्कार में सम्मिलित होकर बोल रहे थे कि राम नाम सत्य है उन्हें हाथ जोड़कर विदा करने की विनती भर जाती आँखों में पानी वो पानी बढ जाता गला रुँध जाता, तब जब तस्वीर पर चढ़ी हो माला और सामने जल रहा हो दीपक बचपन की स्मृतियाँ संग पिता आ जाती है मस्तिष्क पटल पर जो काम पिता कर लेते थे वो लोगो से पूछकर करना पड़ता होंसला अफजाई और परीक्षा में पास होने पर पीठ थपथपाई भी गुम सी गई अब में पास हुआ किंतु शाबासी की पीठ सूनी सी है और त्यौहार भी मुँह मोड़ चुके और रौशनी रास्ता भूल गई पकवान और नए कपडे कैद हो गए पेटियों में इंतजार है श्राद पक्ष का पिता आएंगे पूर्वजो के संग धरती पर अपने लोगो से मिलने जब श्राद में पूजन तर्पण और उन्हें याद कर...
ओ माँ मुझे बतलादे
कविता

ओ माँ मुझे बतलादे

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** तुझको कैसे बतलाउँ तुझे कितना में चाहूँ ओ माँ मुझे बतलादे तुझे कैसे मनाऊँ तुझे कैसे मनाऊँ अपने मन मंदिर में तेरी मूरत बसाऊँ ओ माँ मुझे बतलादे तुझे कैसे मनाऊँ तुझे कैसे मनाऊँ तूने जनम् दिया है मुझको तूने मुझको पाला हे हर मुश्किल में हर विपदा में तूने मुझे संभाला हे तू मुझसे रूठी हे सबको कैसे बताऊँँ ओ माँ मुझे बतलादे तुझे कैसे मनाऊँ नो महीने मुझे रखा पेट में खुद में मझको ढाला हे दुःख सह सह कर आँसू पीकर तूने मुझको पाला हे इतना प्यार दिया हे उसको कैसे भुलाऊँ ओ माँ मुझे बतलादे तुझे कैसे मनाऊँ जब भी घिरा अंधेरों में माँ तू ही तो उजियारा थी तेरी करुणा की छाती में प्रेम सुधा की धारा थी तेरी हर इक साँस का ऋण मैं कैसे चुकाऊँ ओ माँ मुझे बतलादे तुझे कैसे मनाऊँ मेरे गम में मेरे दुःख में ...
कोरोना काल से निर्भयता की ओर…
कविता

कोरोना काल से निर्भयता की ओर…

जितेन्द्र पटैल (कुशवाहा) गाडरवारा नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश) ******************** फिर मिलेगी दरख़्तों की छांव, फिर वही माहौल होगा गाँव-गाँव, देखना फिर से चौपालें लगेंगीं, और चबूतरे श्रृंगारित होगें गली-गाँव। हर एक, हर एक से मिल पाएगा, यह निबिड़ अंधेरा, समाप्त हो जाएगा, और फिर से मिलेंगे मेरे आपके हँसी के दाँव, खुशी आएगी हर जगह, हर गाँव। यह माहौल भी अस्थाई है, चिरंतन तो खुशी और निर्भयता होगी, हमें मिलती रहेगीं बड़े बुजुर्गों की आशीष छाँव, खुशियां फैलेगीं, गाँव-गाँव। अंधकार कभी नहीं रोक पाया है सबेरे को, शोर को शांति कभी जीतने नहीं देगी, फिर हम मिलेंगे, फिर वही माहौल होगा, आध्यात्मिक वातावरण होगा गांव-गांव। जगह-जगह मिलेगे प्राकृतिक पडाव, खत्म होगें इस आशंका के भाव, अब देर नही है यारों देखिएगा, जब मधुवन होगा हर गली, हर गाँव परिचय :- जितेन्द्र पटैल (कुशवाहा) निवासी...
मानव मन
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मानव मन

राजीव रंजन पांडेय राजधनवार गिरिडीह (झारखंड) ******************** सच में तारुण्य एक अंधी होती है जिसकी अपनी एक गति होती है संकल्प विकल्प क्रिया मन से ही जीवन जीने हेतु सुबुद्धि होती है हर तरफ गहरा अंधेरा दिखता है हर हृदय सूखे सरोवर सा लगता है पूरब में लालिमा अब आने लगी है अब मानव शक्ति प्रगट होने लगी है बहुत कुछ मिला हमें यहां औघड़ दानी उस ईश से जिसने प्रेम किया यहां के हर प्राणी प्राणी से परिचय :-  झारखण्ड प्रदेश के गिरिडीह मंडलान्तर्गत राजधनवार क्षेत्र में रहने वाले राजीव रंजन पाण्डेय पिता संजय कुमार पाण्डेय की शैक्षिक योग्यता संस्कृत से स्नातकोत्तर और बी.एड है जो कि बिनोवा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग से पूर्ण हुई है। आप लगभग दो साल तक राज्य सरकार द्वारा अनुदानित एक विद्यालय में संस्कृत शिक्षक के रूप में सेवायें दे चुके हैं, वर्तमान समय में आप आज अपने पिता और...
खुद को जानो
कविता

खुद को जानो

जयप्रकाश शर्मा जोधपुर (राजस्थान) ******************** खुद को जानो और खुद की अहमियत पहचानों क्योंकि ये स्वर्णिम वक्त निकल जाने के बाद कोई भी नहीं लौटा पायेगा आपके माता पिता भी नहीं छोटे थे हर बात भूल जाया करते थे दुनियाँ कहती थी याद करना सीखो बडे़ हुए तो हर बात याद रहती है दुनियाँ कहती है भूलना सीखो सभी समय-समय की बातें है बैठे-बैठे कैसा दिल घबरा जाता है जाने वालों का जाना याद आ जाता है ज़िंदगी से बड़ी सजा ही नहीं और क्या जुर्म है पता ही नहीं खुद को जानो और खुद की अहमियत पहचानों परिचय :- जयप्रकाश शर्मा निवासी : जोधपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय...
जहाँ के तहाँ रह गये
कविता

जहाँ के तहाँ रह गये

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** वक़्त पर बेजुबां रह गये वे जहाँ के तहाँ रह गये नानुकुर कुछ भी आया नहीं बस निवाले जहां रह गये जुल्म सहते रहे उम्र भर सोचते खामखां रह गये फर्श से अर्श तक ले गये ऐसे काँधे कहाँ रह गये आँख के खून बादल हुये और बन के धुआंँ रह गए पीर बस कसमसाती रही तीर तो बदगुमां रह गये परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com ...
अमर सपूत महाराणा प्रताप
कविता, संस्मरण

अमर सपूत महाराणा प्रताप

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** राजपूती शान हैं राणा! देश का अभिमान हैं राणा!! मुगलों के समक्ष नग सम अटल! चित्तौड़-आन रक्षक थे राणा!! राणा भरे जब-जब हुंकार! समर में गूंँज उठे टंकार!! भयभीत मुगल कांँप उठे थे! राणा के शौर्य कि जयकार!! हल्दीघाटी विकट संग्राम! टकराया असि सँ असि का जाम!! अरिदल शीघ्र हुए भू-लुंठित! पर चेतक पहुंँचा परमधाम!! गिरि-सा साहस था राणा का! चेतक भी अद्भुत राणा का!! इतिहास- अमर जिसका उत्सर्ग! स्वामी -भक्त अश्व राणा का!! जंगलों की खाक थी छानी! घास की रोटी पड़ी खानी!! पर गुलामी नहीं स्वीकार! यशोगाथा जग की जुबानी!! मरुभूमि हो गई रे निहाल! पाकर राणा-सा वीर लाल!! स्वाभिमानी औ पराक्रमी! गौरव तिलक भारत के भाल!! आज स्वार्थ का ऐसा चलन! राष्ट्र हित नित हो रहा दहन!! दिव्य चरित स्मरण कर भारत! राणा का देश-हित-स्व-हवन!! परिचय...
बचपन के वो दिन
कविता

बचपन के वो दिन

संध्या नेमा बालाघाट (मध्य प्रदेश) ******************** वो दिन भी बचपन के थे कब चले गए पता ही नहीं चला बचपन भी कैसा था हर तरफ खुशी ही खुशी घर में कितना भी गम हो चेहरे पर मुस्कान ही होती थी बचपन में किसी चीज के लिए जिद्द करना और रोना। उस पर मां का मारना उसके बाद भी फिर मां की गोद में चले जाना दादा-दादी के पास जाना और मां पापा की बात सुनाना दादी को पूरी बात सुनाना फिर मां के पास आकर मार खाना दोस्तों के साथ दिनभर खेलना फिर घर आना फिर मां से सुनना जा घर क्यों आया उन्हीं के साथ रहना किसी दुकान में कपड़े और खिलौने के लिए मचलना और जिद करके रोना फिर वही मां का डराना घर चल फिर बताती हूं तेरे पापा को तेरी यह हरकतें वह दिन भी बचपन के थे कहां चले गए पता ही नहीं चला परिचय : संध्या नेमा निवासी : बालाघाट (मध्य प्रदेश) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती ह...
ठोकर
कविता

ठोकर

डॉ. मोहन लाल अरोड़ा ऐलनाबाद सिरसा (हरियाणा) ******************** नही रोड़ा मैं किसी के भी रास्ते का सपने देखने का हौसला मैं भी रखता हूँ चाहे छुपा लो सितारों को उजालो मे तुम नजर भर उन्हें मै भी ताकता हूँ रखा है रास्तों ने ठोकर पर तेरी चाह पर मंजिलो पर नजर मै भी रखता हूँ जाने कितने कदम गुजर गए यूँ ही हर कदम के निशान याद मै भी रखता हूँ भटक जाते है लोग अक्सर यहाँ भी पते उनके रास्तों के याद मै भी रखता हूँ नहीं समझेगा कोई तेरी ठोकर के दर्द को यह इल्म तो बस मै ही रखता हूँ गुजर जाते हैं लोग खामोशी से ठुकरा कर उनके दर्द की कहानी मै ही याद रखता हूँ मिलेंगे तुझसे... जब तु खाक ऐ सपुर्द होगा इंसानो की हस्ती को बस मै ही समझता हूँ ना लगे कोई ऊपर वाले... की ठोकर उस ठोकर का दर्द बस मै ही समझता हूँ परिचय :- डॉ. मोहन लाल अरोड़ा कवि लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्ता निवासी : ऐलनाबाद सिरसा (ह...
कभी तुम चुप रहो
कविता

कभी तुम चुप रहो

मंजू लोढ़ा परेल मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** कभी तुम चुप रहो, कभी मैं चुप रहूँ, कभी हम चुप रहें खामोशियों को करने दो बातें, यह खामोशियाँ भी बहुत कुछ कह जाती हैं, जो हम कह न सकें वह भी कह जाती हैं। कभी तुम ... आओ आज युंही बैठे एक-दुजे की आंखो में डुबे उस प्यार को महसुस करे जो जुंबा पर कभी आया ही नहीं। कभी तुम चुप ... आओ हम तुम नदी किनारे हाथों में हाथ दे चहलकदमी करें मुद्दतों से जो सोया था एहसास उसे तपिश की गर्माहट को महसुस करें। कभी तुम चुप ... आओ आज छेडे, ऐसा कोई तराना जो धडकनों में बस जाये बिन गाये, बिन गुनगुनाये संगीत की लहरियों में हम डुब जाये। कभी तुम चुप ... चुप रहना कोई सजा नहीं चुप रहना एक कला है, जो बिना कहें सब कुछ कह जायें वह प्यार तो पूजा है। कभी तुम चुप रहो कभी मैं चुप रहूँ कभी हम चुप रहें....। परिचय :- मंजू लोढ़ा...
इस बहती-बहती बस्ती में
कविता

इस बहती-बहती बस्ती में

प्रियंका सिंह मिर्जापुर ******************** इस बहती-बहती बस्ती में, थम पाँव ज़रा, रूक जाने दो, सागर की बाँहें, थाम लू मैं, मुझे अपनी लय में आने दो। स्वप्निल आँखों का ख्वाब सही, उड़ते-उड़ते ख्यालात सही, विलय नहीं, अब नव विहान, मुझे वो उम्मीद जगाने दो। तम बेला है, राह कठिन, लोगों के व्यवहार कठिन, इन घुटती-चुभती राहों में, एक सृजन मशाल जलाने दो। वो प्रेम का मतलब क्या जाने, जो लड़ते हैं, निज स्वार्थ सही, ना जाति-धर्म, ना घृणा-द्वेष, मुझे वो संसार बसाने दो। हर एक दिशा है, दीवार नई, मुझे उसमें द्वार बनाने दो, सागर की बाँहें, थाम लू मैं, मुझे अपनी लय में आने दो। परिचय :-  प्रियंका सिंह जन्मतिथि : २८/०७/१९८३ निवासी : मिर्जापुर सम्प्रति : शिक्षिका घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आ...
प्रीत साजन की
कविता

प्रीत साजन की

विमल राव भोपाल मध्य प्रदेश ******************** साजन तुम संग प्रीत लगाई मन हीं मन शरमाई मैं। तुम से कुछ दिन दूर रहीं पर तुमकों भूल ना पाई मैं॥ एक एक लम्हा तुमको चाहा एक पल भी ना भूल सकी। जब जब तुमको याद किया तब मन हीं मन मुसकाई मैं॥ सांझ सवेरे इंद्र धनुष सा रंग दिखाई देता हैं। तुम से रोज़ मिलन हों ऐसा स्वप्न दिखाई देता हैं॥ मैं एक कुसुम कली बगिया की तुम भंवर दिखाई देते हों। सच कहती हूँ साजन जी मैं तुम इस दिल में रहते हों॥ पहले मुझमे ना समझी थी अब मैं तुमको समझ रहीं हूँ। जेसा तुम मुझमें चाहते हों वैसा ख़ुद कों बदल रहीं हूँ॥ थोड़ी सी कड़वी हूँ सचमें पर मिश्री सी महक रहीं हूँ। प्रिये तुम्हारे घर आँगन में मैं चिड़िया सी चहक रहीं हूँ॥ प्यार तुम्हारा पाकर सचमुच खुदको परी समझती हूँ। सच कहती हूँ प्रिये कसम से मैं बस तुम पर मरती हूँ॥ तुम बस मुझकों देखो अकसर ...
सिमरन प्रभु का
कविता

सिमरन प्रभु का

श्वेता अरोड़ाशाहदरा दिल्ली****************** किसी ने क्या खूब कहा है कि किस्मत मे होगा तो खुद-ब-खुद मिल जाएगा, पर मै कहती हू कि क्या पता तकदीर मे ये ही लिखा हो कि जैसा कर्म करेगा वैसा ही फल पाएगा! कर्म करता जा तू उस ऊपर वाले की मर्जी के, फिर देख नजारे, पूरी होती अपनी एक-एक अर्जी के! देर है अंधेर नही, उस ऊपर वाले के दरबार मे, लेने वाले देखे बहुत, पर देने वाला एक ही है इस संसार मे! तेरा सर ना झुकने देगा किसी के आगे, अगर सर तेरा उस ऊपर वाले के आगे झुक जाएगा, कर ले सिमरन हर पल प्रभु का, भाग्य तेरा खुल जाएगा! परिचय : श्‍वेता अरोड़ा निवासी : शाहदरा दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा...
मेरी प्यारी बेटी
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मेरी प्यारी बेटी

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** बेटी को जन्मदिन की दिल से शुभ कामनाएं और देता हूँ शुभ आशीष। प्रगति के पथ पर चलकर करो नाम अपना रोशन। सबकी प्यारी सबकी दुलारी तभी हृदय में सबके बसती। और ख्याल सभी का बेटी जो तुम दिल से रखती हो।। घर आने पर दौड़कर पास आ जाती हो। सीने से लिपटकर प्यारी बेटी। तुम दिलको खुश कर देती हो। और अपनी प्यारी बातों से दिल मेरा जीत लेती हो।। थक जाने पर, स्नेह प्यार से। माथे को सहलाती हो, और अपने स्नेह प्यार से तुम थकन मिटा देती हो।। कभी न कोई जिद की किसी बात को लेकर। कल दिला देंगे, कहने पर मान जाती हो। और छोड़कर जिद्द अपनी, फिर सबके संग खेलने लगती हो।। रोज़ समय पर माँ को दवा की याद दिलाती हो। और अपने हाथो से अपनी मम्मी को खिलाती हो। उसका दुख दर्द हर लेती हो। और मम्मी की प्यारी बेटी तुम बन जाती हो।। घर को मन से औ...
एक नजर
कविता

एक नजर

डॉ. भोला दत्त जोशी पुणे (महाराष्ट्र) ******************** स्वार्थ में वे बन गए दानव, इंसान के किरदार में व्यर्थ ही वे लोगों को घसीटते, अपने अत्याचार में। खूनी खेल को वे खेल रहे हैं, देखो भरे बाज़ार में गीदड़ भभकी पहले फिर भेजें पुलिस की मार में। झूठ बोल ढिंढोरा पीटकर, थोड़ी सफलता पाई है खुद खड़े हैं हाशिए पर, झूठा प्रचार अखबार में। बड़ी उम्मीदें बांट रहे थे कि मंजिल तक पहुंचाएंगे यों जनता को छोड़ चले वे कष्ट भरे मझदार में। झूठ लंबी उड़ान नहीं भरता अतः नि:शब्द हो बैठा असत्य पकड़ा गया तो नौटंकी कर रस्सी सा ऐंठा। कितने वर्षों तक बहकाया अब बहकाना बंद करो काम करने दो, कुछ सीखो अब पगलाना बंद करो। सदियों बाद कोई नायक मिला उसे देशार्थ जीने दो विकास-सीढियां देश चढ़ रहा उसे सीढ़ी चढ़ने दो। आधारशिला रखी है अब देश पटरी पर आ रहा है पटरी संग साजिश न करवाओ देश को आ...
स्त्री या वेदना
कविता

स्त्री या वेदना

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** तुम माँ बहन भार्या हो, जग में खूब सम्मान है। हाँ, तुम वही स्त्री हो, सृष्टिकर्ता तेरी पहचान है। तुमने पुरुषों को जन्म दिया, जो पौरुष दिख लाते है। कभी अदब कभी रौब से, तुम पर हुकुम चलते हैं। तुम अबला बन सहती हो, समाज के जुल्मों सितम। शिक्षा की देवी हो तुम, भावे न तुमको अहम। काली दुर्गा देवी बन, तिहु लोक में पूजी जाती। रणचंडी नारायणी बन, शक्ति स्वरूपा कहलाती। पर कहीं-कहीं भाग्य ने, बेरहम हाथों में थोप दिया। अनचाहे पौधे जैसे, दहेज मरु में रोप दिया। ना समझे जग तेरी पीड़ा, कोख में तू मेरी जाती। कहीं बेरहम कहीं कोठों पर, मर्यादा तार तारी जाती। बन लक्ष्मी मूरत तुम, ममता रूप दिखाती हो। जब बढ़ जाये पाप धरा पर, चामुंडा बन जाती हो। कहीं दरिंदों के हाथों, मर्यादा कुचली जाती है। बन स्त्री रूप जघन्य सहती,...
सुन ले पुकार
कविता

सुन ले पुकार

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हे ईश्वर कहाँ है तू, कहते है कण कण में बसा तू, हर जीव के मन में बसा तू, फिर क्यों नहीं तुझको दिखता, इस जग में कितना आतंक मचा।। चारों और है विध्वंस मचा, मृत्यु का तांडव है रचा, मानवता को ताक में रख, लूटमारी का सब खेल रचा, जो कहलाते है जीवन रक्षक, अब धन के लिये बन रहे भक्षक।। क्या राजनेता सिर्फ अपनी रोटी सकेंगे, निर्धन फिर मृत्यु की बलि चढ़ेगे, कही भूख से, तो कही दुख से, तो कही बेरोजगारी की मार सहेंगे।। हे ईश्वर अब तो कुछ राह दिखा, इस काल को अपना ग्रास बना।। ले अवतार अब ओ तारण हार, इस महामारी से मुक्त करा।। अब बहुत हुआ इसका आतंक तू आकर इसको खत्म कर।। कितने अपनों को लील गया, जग में अनाथ कर छोड़ गया।। अब तू और न विलम्ब कर, सुन ले पुकार, और मदद कर।। जग में फिर से खुशहाली कर। आकर बन्द ये तबाही कर।। ए...
३७० का हटना
कविता

३७० का हटना

अखिलेश राव इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** राष्ट्र विजय पर राष्ट्रद्रोहियों का जहर रास नहीं आया घाटी का शांतिपूर्ण पहर बस करो देश के जयचंदो और गद्दारों कश्मीरी पंडित लौट रहे हैं अपने गांव शहर।। भूल गए ९० में हिंदू का खून बहाया था आशियाना छीन लिया मार मार भगाया था तब तो तुम सबके मुंह पर चुप्पी छायी थी तत्कालीन सरकार ने भी कहर ढाया था काश्मीर की क्यारी में क्यों बो रहे जहर रास नहीं आया घाटी का शांतिपूर्ण पहर।। वातावरण भाईचारे का हरपल तुम्हें खटकता है जिन्ना की औलादों सीने में पाकिस्तान धड़कता है दशकों में खुशियां लौटी है मिलजुल अब मौज करो धारा ३७० का हटना अब भी तुमको खलता है डलझील में उठने लगी है प्रेम की लहर कश्मीरी पंडित लौट रहे हैं अपने गांव शहर।। परिचय :- अखिलेश राव सम्प्रति : सहायक प्राध्यापक हिंदी साहित्य देवी अहिल्या कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय इंदौर...
झूठ का बोलबाला
कविता

झूठ का बोलबाला

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** बस ये ही तो गड़बड़झाला है तुझे ये सब कहाँ समझ में आने वाला है। तुझे तो सत्यवादी बनने का भूत जो सवार है। अरे मूर्खों ! तुम सब क्यों नहीं समझते? आज के खूबसूरत परिवेश में सत्य का मुँह काला है। उसका कुर्ता मुझसे सफेद क्यों है? यार ! अब तो समझ लो ये सब झूठ का बोलबाला है। खबरदार, होशियार बहुत हो चुका झूठ की जी भरकर बेइज्जती अब और सहन नहीं करूंगा, झूठ का अपमान किया तो मानहानि का केस करूंगा। झूठ के गड़बड़झाले की तो बात भी मत करना, सत्य को तुम चाटते आ रहे हो बचपन से बुढ़ापे तक, क्या मिला तुम ही बता दो आखिर तुमको अब तक। झूठ का गुणगान किया मैने अब तक, तुम खुद ही तो कहते हो तू तो है सिंहासन वाला। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१/०७/१९६९ शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई., पत्रकारिता प...
ज्ञान प्रकाश
कविता

ज्ञान प्रकाश

अनन्या राय पराशर संत कबीर नगर (उत्तर प्रदेश) ******************** मद की ये जो भित्ति है है बान बहुत ख़राब बली के सत्व की बलि चढ़े होय सब कृत्य बर्बाद।। कर्म की कांति से कलि में तू हो जग में तरणि समान बिन आयास न कुल मिले भीति दे अवरोध हजार।। चित्र छोड़ चरित्र का कर तू अब बखान जिससे मानवता बढ़े होवे जग कल्याण ।।। चला गया जो उसे भुलाकर कर आगत सम्मान कर कार्य कटिबध्द हो निज क्षमता पहचान।। कर दुआ मानवता अनुदिन बढ़े हो अनुदिन दानवता नाश मिटे पिचाशी मान्यता फैले ज्ञान प्रकाश, फैले ज्ञान प्रकाश।। परिचय :- अनन्या राय पराशर निवासी : संत कबीर नगर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशि...
बाल श्रम
कविता

बाल श्रम

रश्मि लता मिश्रा बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** आज के बालक ही तो हैं देश की कल पहचान। इसीलिए कर्तव्य बने इन पर दीजिए ध्यान। बारह जून को मना रहे दिवस विश्व बाल श्रम निषेध आभासी है रूप चूंकि कोरोना बदले नित वेश ऐसा श्रम जो उम्र से पहले शिक्षा में आड़े आये, या व्यवहारिक तौर पर नुकसान बच्चों का करवाये चौदह वर्ष से कम उम्र में शिक्षा से वंचित कराये या चौदह से अठारह के बीच खतरनाक व्यापार में लगाये सभी बाल संरक्षण अधिनियम के तहत अपराध कहाये। दो हजार दो में विश्व बाल श्रम निषेध दिवस की शुरुवात उद्देश्य अनिवार्य शिक्षा अभियान से बालकों को जोड़ने की बात विश्व मे १५२ करोड़ बच्चे बाल श्रम का शिकार, वैश्विक सरकारें चाहती हैं करना इनका उद्धार पर ये समस्या तो सामाजिक, मानवीय संवेदनाओं का है आधार, अतः गम्भीरतापूर्वक करिये विचार हम कैसे इसमें बन सकते हैं मददगार। ...
जिंदगी
कविता

जिंदगी

मंजुषा कटलाना झाबुआ (मध्य प्रदेश) ******************** जिंदगी एक सफर, एक सफ़र हैं जिंदगी। कभी इधर, कभी उधर, कँहा जा रही हैं जिंदगी। खुशी ग़म का हेर फ़ेर है, हस्ती रोती है जिंदगी। कभी नोट के पीछे, तो कभी सांसो के लिए भागती है जिंदगी। कभी निडर सी हो जाती, तो कभी बहुत डराती है ये जिंदगी। कभी एक पल आसमान है दिखती, तो कभी जमीन से नाता करवाती है ये जिंदगी। बेगानो को अपना करती, अपनो को बेगाना कर जाती है ये जिंदगी। स्वर्ग के दर्शन है करवाती तो कभी दोजख़ बन जाती है जिंदगी। जिंदगी के रूप कई, कई रंगों की है ये जिंदगी। परिचय :- मंजुषा कटलाना निवासी : झाबुआ (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्र...
आत्म विश्वास
कविता

आत्म विश्वास

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** मुसीबत का पहाड़, कितना भी बड़ा हो। पर मन का यकीन, उसे भेद देता है। मुसीबतों के पहाड़ों को, ढह देता है। और अपने कर्म पर, जो भरोसा रखता है।। सांसारिक उलझनों में, उलझा रहने वाला इंसान। यदि कर्म प्रधान है तो, हर जंग जीत जायेगा। और हर परस्थितियों से बाहर निकल आएगा।। लिखता है कहानियाँ, सफलता की इंसान। गिरा देता है पहाड़ो को, अपने आत्म विश्वाव से। और यही से निकलता, बहुमूल्य हीरा को। और यह काम इंसान ही अपने बूते पर करता है।। रखो यकीन अपने, आत्मबल पर तुम। यकीन से में कहता हूं, बदल जाएगी तेरी किस्मत। न हो यकीन अगर तुमको, तो कुछ करके काम देखो, सफलता चूमेगी तेरे कदमो को।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मै...
कलम से प्रहार कर
कविता

कलम से प्रहार कर

राधेश्याम गोयल "श्याम" कोदरिया महू (म.प्र.) ******************** साहित्य के सम्रांगण में कलम से तू वार कर, भारत के नव प्रांगण में शिक्षा का तू प्रचार कर। हे चाणक्य के वंशज न डर कर न हार कर, देशद्रोही कंटको पर कलम से तू वार कर। सत्य की मशाल से अज्ञान तम को दे मिटा, तेज आंधी तूफ़ान में तू कदम न पीछे हटा चूम ही लेगी सफलता एक दिन तेरे कदम, स्वाभिमान को रख बचा व्यक्तित्व को संवार कर सीमा पर सैनिक अड़े है राष्ट्र रक्षा के लिए, दुश्मनों से हर पल लड़े है राष्ट्र रक्षा के लिए। ऐसे में गद्दार कोई गोपनीयता बेचकर, दो कलम से मौत उसको और चड़ा दो दार पर। कलम के सिफाही हो कलम कभी न बेचना, जुल्म के आगे झुके न, हो सर कलम न सोचना। बिक गई गर लेखनी, यदि चंद सिक्कों के लिए, तो रक्षक भी वतन के होंगे, पस्त एक दिन हारकर। जीती हे पहले भी हमने कितनी ही बाजी हार कर, कवि कलम से जीती बाजी पृ...