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कविता

युग नया आ रहा है
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युग नया आ रहा है

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रभाती कोई दूर पर, गा रहा है। बढ़ो सामने युग नया, आ रहा है। नयी रुपरेखा बनी, जिंन्दगी की, नयी चाँदनी अब, खिलेगा खुशी की। हर्दय मानवों का भरेगा, नमन शत धरा को, गगन अब करेगा। नया चंन्द्रमा शान्ति, बरसा रहा है। बढ़ो सामने... नया ज्ञान का सूर्य, मुस्का रहा है। पगों में सभी के, अतुल शक्ति होगी। मनों में सभी के, नवल भक्ति होगी। सुधा धार में वे, सा आ रहा है। बढ़ो सामने... तृषित सा मनुज शान्ति कुछ पा रहा है। जगेगी नवल चेतना, मानवों की, मिटेगी असद कल्पना, दानवों की। धरा पर नया स्वर्ग, बस कर रहेगा। तुम्हारी कथा विश्व, मानव कहेगा, कि इतिहास नूतन, रचा जा रहा है। बडो़ सामने युग नया आ रहा है। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दि...
हिन्दू है अखंड
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हिन्दू है अखंड

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कर शत्रु पर वार, कर खंड-खंड हिन्दू है अखंड, जोश है प्रचंड ।। पावन मातृभूमि, पावन देश है देता विश्वबंधुत्व, का संदेश है हर नर नारी में, यहाँ राम बसे है वेदऋचाओ से, पर्जन्य बरसे है माँ भारती का, गौरव है अखंड कर शत्रु पर वार, कर खंड-खंड हिन्दू है अखंड, जोश है प्रचंड।। स्वर्ग से महान, जन्मभूमि प्रणाम मंदिर के समान, देवभूमि प्रणाम रक्त तिलक से, जयघोष करते है इस धरा पर पसरा, दोष हरते है आज हाथ मे मेरी, है न्याय दंड कर शत्रु पर वार, कर खंड-खंड हिन्दू है अखंड, जोश है प्रचंड।। नई धारणा है, नवनिर्माण है राष्ट्र के लिए, उत्सर्ग ये प्राण है मर्यादा में रहते, कर्मयोगी है यहाँ घर घर मे, समर्थ जोगी है होगा दलन उसका, जो है उद्दंड कर शत्रु पर वार, कर खंड-खंड हिन्दू है अखंड, जोश है प्रचंड।। देश के हर कोने में, ...
जीवन प्रांगण
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जीवन प्रांगण

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दूर बहुत दूर है राहेैं अपनी मंजिल का पता ना अपनों का। सिर्फ साथ है मेरे वीरांनगी खयालों के बिंदु बहे जा रहे तुम्हारे पास चले आ रहे मचल रहा मन कुछ गाने के लिए साथ आकाश है गीत सुनने के लिए चलते हुए राहों में रवि साथ निभाता है और राह में पड़ा पत्थर ठोकर से टकराता है सुनसान घाटियों की ढलती मिट्टी कहती है ढलती-ढलती-ढलती, चल ढलती चल क्योंकि राह बडी वीरान है मेरे जीवन में प्रांगण की। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आका...
शुक्रिया दोस्त
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शुक्रिया दोस्त

संध्या नेमा बालाघाट (मध्य प्रदेश) ******************** चलो एक दोस्त को शुक्रिया करते हैं कुछ एहसान है उसके अपने ऊपर भूल गई थी मैं अपनी ही राह और शांत और चुप सी हो गई थी बातें थी मन पर मगर आंखों से देख नहीं सकती थी कानों से सुन नहीं सकती थी दिल में था लाखों बोझ पर हटा नहीं सकती थी सपने थे पर पूरे कर नहीं सकती थी दोस्त ने बहुत बातें किया और कैसे मन की बात जुबान तक ला दिया पता ही नहीं चला एक दोस्त को एक दोस्त ने सुना समझा और जाना और राह का रास्ता भी बता दिया एक दोस्त को धन्यवाद दोस्त चलो एक दोस्त को शुक्रिया करते हैं बहुत एहसान है उसके अपने ऊपर परिचय : संध्या नेमा निवासी : बालाघाट (मध्य प्रदेश) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अ...
वृक्ष कल्याण… जीवन महान
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वृक्ष कल्याण… जीवन महान

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** वृक्ष दवा है, वृक्ष दुआ है, वृक्षों से हैं जीवन। वृक्ष साँस है, वृक्ष आस है, वृक्षों से हैं सावन।। वृक्ष सबेरा, वृक्ष बसेरा, वृक्षों से हैं साधन। वृक्ष फल है, वृक्ष फसल है, वृक्षों से हैं कानन।। वृक्ष जलद है, वृक्ष जलज है, वृक्ष बिना है सुनापन। वृक्षों से वायु, वृक्षों से आयु, वृक्षों से हैं अपनापन।। वृक्ष हरापन, वृक्ष भरापन, वृक्षों से हैं मधुबन। वृक्ष सुहावन, वृक्ष मनभावन, वृक्षों से हैं हर्षित मन।। वृक्ष महान है, वृक्ष जहान है, वृक्षों से हैं कल्याण। वृक्ष दान है, वृक्ष खान है, वृक्षों से हैं भगवान।। वृक्ष मनन है, वृक्ष चिंतन है, वृक्षों से हैं ये ज्ञान।। वृक्ष तन है, वृक्ष मन है, वृक्षों से हैं ये ध्यान।। वृक्ष नमन है, वृक्ष सुमन है, वृक्षों से हैं ये भजन। वृक्ष आज है, वृक्ष काज है, वृक...
पर्यावरण और मानव
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पर्यावरण और मानव

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** धरा का श्रृंगार देता, चारो ओर पाया जाता, इसकी आगोश में ही, दुनिया ये रहती। धूप छाँव जल नमीं, वायु वृक्ष और जमीं, जीव सहभागिता को, पर्यावरण कहती। पर देखो मूढ़ बुद्धि, नही रहीं नर सुधि, काट दिए वृक्ष देखो, धरा लगे जलती। कहीं सूखा तूफ़ां कहीं, प्रकृति बीमार रही, मही पर मानवता, बाढ़ में है बहती। वायु बेच देता नर, सांसों की कमीं अगर, लाशों से भी बेच देता, भाग ठीक रहती। किला खड़ा किया मानो, जंगलों को काटकर, खुशहाली देखो अब, भू कम्पनों में ढहती। भू हो रही उदास, वन दहके पलाश, जले नर संग तरु, जब चिता जलती। बरस जहर रहा, प्रकृति कहर रहा, खोट कारनामों से, जल विष बहती। वृक्ष अपने पास हों, तो दस पुत्र साथ हों, गिरे तरु एक, धरा, बड़ा दर्द सहती। ऐसे करो नित काम, स्वस्थ बने तेरा धाम, स्वच्छ वात्तरु जल से, धरा खुश रहती। ...
याद आते हैं वो दिन
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याद आते हैं वो दिन

अन्नू अस्थाना भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** याद आते हैं वो दिन जब पड़ोस में भाभी से एक कटोरी शक्कर मांगना, और बातों ही बातों में कहना भाभी तनक सा दूध भी दे दीजो जे आपिस (ऑफिस) से आने वाले हैं चाह (चाय) बनानी थी भाभी फिर भाभी का स्नेह से कहना, अरि जा मैं चाय बना लाती हूं तू चीनी लेती जा बहन। "याद आते हैं वो दिन" याद आते हैं अड़ोस-पड़ोस में बतियाने वाले दिन। अड़ोस-पड़ोस कुछ नहीं होता था, बस भैया-भाभी चाचा-चाची जैसे रिश्तो का नाता था बस यूं ही पूछ लिया करते थे और भौजी कैसी हो, सब ठीक है चाचा-चाची आप कैसे हो। "याद आते हैं वो पूछ परख करने वाले दिन" हमारी सुबह की शुरुवात भाई साहब के अखबार से हुआ करती थी, एक नमस्कार सौ चमत्कार किया करते थे, रुपए, दो रुपए का अखबार हम भी खरीद सकते थे, पर पड़ोस वाले भाई साहब से स्नेह कुछ ऐसा ही था हम पू...
बूँद के सतून पर
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बूँद के सतून पर

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बूँद के सतून पर जीवन का तानाबाना टिका है हरे हो जाते हैं प्यासे वृक्ष निर्वाण प्राप्त करता है जीव आनंद को महसूस करती है प्रकृति यौवन की गाँठें खुल जाती हैं नया सूरज निकलता है और झूम जाता है धरती पर मेला सजता है कलकल करती नदियां निकलती हैं पक्षियों का अमर गीत गुंजायमान होता है बूँद के तह में जीवन है जीवन की तलहटी में बूँद दो पाटों के बीच ईश्वर संतोष को महसूसता है मुस्कुराता है आशीर्वाद देता है जीवन अनमोल है अनमोल है जीवन ये दो शब्द बादलों की डायरी में दर्ज है। परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्य लेखन विधा : गद्य और पद्य की सभी विधाओं में समान रूप से लेखन रचना प्रकाशन : साहित्यिक पत्रिकाओं में, कविता, कहानी, लघुकथा, गीत, ग़ज़ल...
प्रकृति
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प्रकृति

सपना दिल्ली ************* प्रकृति रुके बिना थके उपकारी, निरछल अपनी ममता हम पर लुटाती.... जीव , जंतु, पशु, पंछी सहारा देती अपने आंचल में जरूरतों का रखती पूरा ख्याल... क्या नहीं सहती हमारे लिए गलती भी करें देती हमें सीख कभी उत्साह बढ़ाती कभी उदाहरण दिखा कर मोल समझाती अपना.... तेरे रूप अनेक हर रूप में कुछ न कुछ बीज बोऐं हम एक फल उसमें अनेक हमें देती करे इतना कुछ मांगे न कोई मोल हमसे... चकाचौंध में नए ज़माने की भूल मां की ममता करते खिलवाड़ हम उससे उसे लेना पड़ता भंयकर रूप मजबूर होकर..... भूले हम बिन प्रकृति मां सबका अस्तित्व खतरे में सुरक्षा कवच वह हम सबकी सबकी भलाई उसको सुंदर रखने में... प्रण लें नहीं करेंगे खिलवाड़ ममता के बदले उतना ही रखेंगे ख्याल जितना वह रखती हम सबका।। परिचय :- सपना पिता- बान गंगा नेगी माता- लता कुमारी शैक्षणिक योग्यत...
वृक्ष की व्यथा
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वृक्ष की व्यथा

डॉ. भोला दत्त जोशी पुणे (महाराष्ट्र) ******************** तू पैदा हुआ मैं तेरा पालना बना बरस भर में काठी का घोड़ा बना गिल्ली डंडा बनाया, मैं सह गया डंडे नरों पर न चलाओ मुझे दर्द है। पांच साल का होते ही शाला गया पाठशाला जाते ही मैं पाटी बना मुझ पर अक्षर उकेर नेत्र खुले तेरे व्यर्थ कुल्हाड़ी न मार मुझे दर्द है । पढ़ लिखकर बहुत बड़ा हुआ तू कुर्सी बनकर तेरा प्रभुत्व बढ़ाया विश्रामार्थ तेरी खटिया बन गया संजीदा बन जरा सोचो मन से व्यर्थ न काटो खूब दर्द है मुझे। गृहस्थ जीवन में प्रगति कर तू जब अध्यात्म की तरफ आया ऋषिऋण से तुम्हें उन्मुक्त करने समिधा बन तेरे यज्ञ में आया अब व्यर्थ मत जला दर्द है मुझे । तुम काटना नहीं मुझे दर्द है नर सोचो जरा कहां फर्क है मैं भले तेरे साथ आता नहीं आकार में ही थोड़ा फर्क है मैं देता तुमको स्वादिष्ट फल बदले में कुछ भी नहीं मांगा...
कभी तुम चुप रहो
कविता

कभी तुम चुप रहो

मंजू लोढ़ा परेल मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** कभी तुम चुप रहो, कभी मैं चुप रहूँ, कभी हम चुप रहें खामोशियों को करने दो बातें, यह खामोशियाँ भी बहुत कुछ कह जाती हैं, जो हम कह न सकें वह भी कह जाती हैं। कभी तुम चुप रहो कभी मैं चुप रहूँ कभी हम चुप रहें‌। आओ आज युंही बैठे एक-दुजे की आंखो में डुबे उस प्यार को महसुस करे जो जुंबा पर कभी आया ही नहीं। कभी तुम चुप रहो कभी मैं चुप रहूँ कभी हम चुप रहें। आओ हम तुम नदी किनारे हाथों में हाथ दे चहलकदमी करें मुद्दतों से जो सोया था एहसास उसे तपिश की गर्माहट को महसुस करें। कभी तुम चुप रहो कभी मैं चुप रहूँ कभी हम चुप रहें। आओ आज छेडे, ऐसा कोई तराना जो धडकनों में बस जाये बिन गाये, बिन गुनगुनाये संगीत की लहरियों में हम डुब जाये। कभी तुम.... चुप रहना कोई सजा नहीं चुप रहना एक कला है, जो बिना कहें सब कुछ कह जायें ...
संस्कार
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संस्कार

श्‍वेता अरोड़ाशाहदरा दिल्ली****************** हम सब देते है बच्चो को,कुछ संस्कार भी देने चाहिए! हारे हुए को सहारा देने आना चाहिए, गिरते हुए को गले लगाना आना चाहिए! छल कपट और बेईमानी को ठेंगा दिखाना आना चाहिए! इज्जत देना और इज्जत कमाना आना चाहिए! माता पिता, बुजुर्गो की सीख को अमल मे लाना आना चाहिए!ना करे जो व्यवहार पसंद हम, वो व्यवहार भी नही देना आना चाहिए! दीन दुखी बेसहारा को देखकर करूणा का भाव होना चाहिए! कर चले कुछ उनके लिए, ऐसा विचार उनका होना चाहिए! संस्कार होंगे उच्च कोटि के तो जीवन खुद उज्जवल हो जाएगा!करेगा रोशन नाम हमारा,धन्य जीवन हमारा भी हो जाएगा! परिचय : श्‍वेता अरोड़ा निवासी : शाहदरा दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक...
एक घरौंदा ऐसा हो
कविता

एक घरौंदा ऐसा हो

डॉ. प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय इंदौर, (मध्यप्रदेश) ******************** एक घरौंदा ऐसा हो जहां हरियाली का वास हो पर्यावरण प्रदूषण का नाश हो बगीचों में खिली फुलवारी हो अपनत्व की एक क्यारी हो ... एक घरौंदा ऐसा हो जहाँ पीपल का घनेरा वृक्ष हो मस्त हवा का झोंके हो मन को जो लुभाते हो हरियाली में बुलाते हो... एक घरौंदा ऐसा हो जहाँ लहलहाते खेत-खलिहान हो नदी के पानी में मिठास हो वृक्ष पर लदे फल-फूल हो नन्हे परिंदों का कलरव हो... एक घरौंदा ऐसा हो जहाँ जेब से कोई तंगहाल ना हो रिश्तों का फैलाव हो खुशियों को बौछार हो आत्मीयता का बहाव हो... एक घरौंदा ऐसा हो जहाँ राजनीति का प्रभाव ना हो बुराई पुराण की कथा ना हो सास-बहू की व्यथा ना हो परस्पर स्नेह का भाव हो... एक घरौंदा ऐसा हो जहाँ तनाव का नामों निशान ना हो कष्टों का झंझावात ना हो लड़ाई, झगड़ा, लूट, हत्...
पर्यावरण
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पर्यावरण

पूनम शर्मा मेरठ ******************** आज पर्यावरण मुस्करा रहा है, सिर हिलाता ठंडक उड़ेलता है, पेड़ स्तंभ-वत खड़े हैं, टहनियां झूम-झूम पंखा झलतीं, जडों ने जकड़ रखा है मज़बूती से, सायरन बजाती एंबुलेंस सरपट भागती सूनी सड़कों पर, बेतहाशा दौड़ता मानव, आक्सीजन दबोचने को, कुटिल मुस्कान वृक्षों की, "हमसे दुश्मनी?", काटते हो हमें ! हम तो मुफ्त उपहार देते रहे, कतरा-कतरा बिखेरते रहे, अपना अंश वातावरण में, चेतावनी भी देते रहे गाहे-बगाहे, लेकिन तुमने, माहौल बिगाड़-बिगाड़ कर खिल्ली उड़ाई और बढ़ गए आगे, आज लौट रहे हो हमारे ही पास, ये नदियां, पहाड़, झरने, जंगल आदि और हम, दोस्त हैं बिलकुल तुम्हारे एक व्हाट्सएप ग्रुप की तरह तुम काम पड़ने पर हमें ही पुकारते हो पीछे मुड़कर, आक्सीजन-आक्सीजन... बचाओ-बचाओ, जीव-जंतु, मानव, सब हैं हमारे आसरे लेकिन, कोई हमारा ख्याल भी रखेगा क...
नष्ट ये जंगल ना हो पाए
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नष्ट ये जंगल ना हो पाए

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** कहीं अमंगल ना हो जाए। नष्ट ये जंगल ना हो जाए।। बादल को तोड़ेगा कौन? कहो नदी मोड़ेगा कौन? माटी को रोकेगा कौन? गरल वायु सोखेगा कौन? उज्जर त्रिभुवन ना हो जाए उपवन 'अनुपम' ना खो जाए; कहीं अमंगल ना हो जाए। नष्ट ये जंगल ना हो पाए।। (त्रिभुवन-जल,थल,नभ) रौंद-खौन्द खोखली धरा का गर्भ-पात जो कर जाओगे? हो भूचाल उजाड़े आँगन कोप अवनि का सह पाओगे? ताप बढ़ा हिम पिघलाओगे अति मति की दिखलाओगे! प्रलय समन्दर ना हो जाए; कहीं अमंगल ना हो जाए। नष्ट ये जंगल ना हो पाए।। मृग-खग, सिंह-गज गृह निवास जो यूँ टुकड़ों में बाँटोगे, हरियाली ही नहीं रही तो! बन्धु 'हीरा' चाटोगे? भूख का दंगल ना हो जाए; कहीं अमंगल ना हो जाए। नष्ट ये जंगल ना हो पाए।। पानी को बाँधेगा कौन? कंठो को साधेगा कौन? स्वास संचरित कौन करेगा? खनिज तुम्हारा पेट भरेग...
पहले
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पहले

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** युद्ध से पहले शांति का प्रस्ताव होना चाहिए। मरने से पहले जीवन का एहसास होना चाहिए। नफरत से पहले मोहब्बत का इजहार होना चाहिए। छोड़ने से पहले मिलने का गुनाह होना चाहिए। इश्क करने से पहले थोड़ी आवारगी होनी चाहिए। जुड़ने से पहले टूटने का एहसास होना चाहिए। झुकने से पहले अपने आत्मसम्मान का एहसास होना चाहिए। मिट्टी से खेलने से पहले मिट्टी में मिलने का इंतजार होना चाहिए। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं ...
प्रकृति
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प्रकृति

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** प्रकृति की भी अजब माया है निःस्वार्थ बाँटती है भेद नहीं करती है, बस कभी-कभी हमारी उदंडता पर क्रोधित हो जाती है। हर जीव जंतु पशु पक्षी के लिए खाने, रहने और उसकी जरूरतों का हरदम ख्याल रखती है, बिना किसी भेदभाव के यथा समय सब कुछ तो देती है, हमें प्रेरित भी करती सीख भी देती है, कितना कुछ करती है, क्या क्या सहती है परंतु आज्ञाकारी प्रकृति हमें देती ही जाती है, हम ही नासमझ बने रहें तो प्रकृति की क्या गलती है? अपनी गोद से वो हमें कब अलग-थलग करती है? हाँ हमारी नादानियों, उदंडताओं पर खीछती, अकुलाती, परेशान होती है, हमें बार-बार संकेत कर चेताती, समझाने की कोशिश करती, थक हारकर अपने क्रोध का इजहार करने को विवश हो जाती, फिर भी हम समझने को तैयार जब नहीं होते, तब वो भी बस! अपना संतुलन...
ईश्वर का संधान
कविता

ईश्वर का संधान

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** नेपथ्य घटना से अक्सर, बेखबर इंसान होता है रातदिन की घटना, हल करने सामर्थ्यवान होता है द्वेष भाव रखने से ही, संबंधों में व्यवधान होता है स्पष्टवादी तथ्यों से, पक्ष अपना आसान होता है बिन सटीक जवाब से, मानव का नुकसान होता है नेपथ्य घटना से अक्सर, बेखबर इंसान होता है। पथगामी को सुख सिवाय, कष्टप्रद कमान होता है मुसीबत से बचने में, किसी वक़्त का दान होता है ईश्वर निर्मित विधान से, मानव तो नादान होता है नेपथ्य घटना से अक्सर, बेखबर इंसान होता है। राह की अदृश्य मुश्किलें, नितांत अनजान होता है शायद इसी वजह से कभी, भाग्य वरदान होता है पुल तले शेर पसरा, ऊपर मानव महान होता है नेपथ्य घटना से अक्सर, बेखबर इंसान होता है। हाथ पर हाथ रखे रहना, बहुत आसान होता है आसमां से गिरे बिजली, जीवन अवसान होता है कभी अन्य भाग्य से चलित, ...
माँ की सीख
कविता

माँ की सीख

मंजुषा कटलाना झाबुआ (मध्य प्रदेश) ******************** विदा होती बेटी को प्यार से। माँ ने ये बात सिखाई थी। सुखमय जीवन बेटी का हो। एक बात की गांठ बंध बाइ थी। बेटी अपने घर मे सदा तू। बड़ो का सम्मान है करना। छोटो पर सदा प्रेम है रखना। अपने घर का मान है रखना। थोड़ा कुछ तू सह जाना। पर दिल मे कोई बात न लेना। उस घर के राज है तेरे। तेरे अपने तक ही रखना। सुख दुख का जो बना है साथी। विश्वास का मान सदा तू रखना। इस घर के संस्कार जो तेरे। उस घर के आदर्श बना रखना। मां बाप की लाडो बिटिया। अपना सदा ध्यान तू रखना।। परिचय :- मंजुषा कटलाना निवासी : झाबुआ (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकत...
पर्यावरण
कविता

पर्यावरण

प्रतिभा त्रिपाठी भिलाई "छत्तीसगढ़" ******************** वृक्ष लगाओ, पर्यावरण बचाओ ये संदेश फैलाना हैं पर्यावरण को शुद्ध बना के जीवन को स्वस्थ बनाना है॥ मत काटो पेड़ों को तुम, इस पर किसी का बसेरा हैं, इसके दम पर सांसे चलकर नित आता नया सबेरा हैं॥ नयी पीढ़ी से ये अनुरोध, आओ मिलकर वृक्ष लगाओ पेड़ों की रक्षा तुम करके, पर्यावरण सुरक्षा में हाथ बढाओं॥ चारों तरफ हरियाली हों, हर घर में खुशहाली हों सुन्दर सा एक दृश्य बनायें, हर घर ऑंगन में वृक्ष लगायें आओ पर्यावरण बचाने का मिलकर हम संकल्प उठायें परिचय :- प्रतिभा त्रिपाठी निवासी : भिलाई "छत्तीसगढ़" घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष...
मानवता का दीप
कविता

मानवता का दीप

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** चलो मिल मानवता का दीपक जलाएं एक सुंदर सा मानव समाज बनाएं। देखो चारों ओर फैला ईर्ष्या, द्वेश, आपसी सद्भावना से इसे मिटायें। आज मानव माया मद में अंधा हुआ, जला ज्ञानदीप सही पथ उसे दिखाएं। विकास नाम पर साफ होते वन कानन, रोक प्रकृति विनाश पर्यावरण बचाएं। कल कारखानों से फैल रहा है जहर, कर पौध रोपण जीव जगत को बचाएं। कहता ओम अगर हो मानव तुम सच्चे तो मानवता का प्रकाश तुम फैलाओ।। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच उत्तरीभारत इकाई, रा.उपाध्यक्ष, क्रांतिवीर मंच, रा. उपाध्यक्ष प्रभु पग धूल...
कटते-कटते पेड़ कट गए
कविता

कटते-कटते पेड़ कट गए

रश्मि लता मिश्रा बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** कटते-कटते पेड़ कट गए अब विकास के नाम पर। पर्यावरण संतुलन बिगड़ा थोड़ा तो ख्याल कर। रोज पहाड़ धसकते रहते बर्फ बहे सैलाब सा, उत्तराखंड में कहर राजता डर बसता शमसान सा। जीव जंतु जल जहर में पलते उनका भी तो ध्यान धर। पर्यावरण संतुलन बिगड़ा थोड़ा तो ख्याल कर। ग्लोबल वार्मिग बढ़ती जाती धरा भी वंध्या हो चली नित नई प्रकृति की विपदा कितना टालो,नहीं टली। ऊपर से कोरोना आया बदले वाले भाव धर। पर्यावरण संतुलन बिगड़ा थोड़ा तो ख्याल कर। वायु प्रदूषण,ध्वनि प्रदूषण महानगर की देन है। स्वच्छ नदी गंगा को रक्खो मिलता जीवन चैन है। वृक्ष लगाने,जल को बचाने श्रम तू कुछ तो दान कर पर्यावरण संतुलन बिगड़ा थोड़ा तो ख्याल कर। कर ले प्रण न कचरा फैले न ही खुले में शौच हो। सड़कें अपना आंगन जानो घर से पहले देश हो। दिशाएं चारों स्वच्छ बने ये, तू त...
जग में रहना सिखा दिया
कविता

जग में रहना सिखा दिया

मधु अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** अपना बना के श्याम ने, न हमें जग में रहना सिखा दिया। जैसे कमल रहता है जल में, इस तरह तुम भी रहो। आए दुख सुख चाहे जितने, सब को सहना सिखा दिया। जितने भी प्राणी है जगत के, सबके अंदर मैं ही हूं। श्याम ने हमें जग में सबसे, प्रेम करना सिखा दिया। काम कर दुनिया के सारे, मन में मुझको याद कर। फल की इच्छा ना कर कभी, यह हमें बतला दिया। जो आया इस जगत में, एक दिन उसको जाना है। आत्मा की अमरता का सार, हमको समझा दिया। जो शरण आता है मेरी, मुझको अपना मान कर। मैं हूं उसका वह है मेरा, यह हमें बदला दिया। सच्चे मन से शांत मन से, आओ इन प्रभु की शरण। बातों ही बातों में जिसने, रूप अपना दिखला दिया। क्या कहूं कैसे करूं, प्रार्थना की लीला अपरंपार है हम जीवो को तारने को, प्रार्थना स्वरूप बना दिया। हो भला सबका यह दिल में, धारणा हृदय में डाल...
हम पर्यावरण बचाएँगे
कविता

हम पर्यावरण बचाएँगे

चन्दन केशरी झाझा, जमुई (बिहार) ******************** निज हित के लिए हमने, किया पेड़ों पर प्रहार है। हर पेड़ यहाँ कराह रहा, यह कैसा अत्याचार है? पेड़ों को जब काट-काट, हमनें शहर बसाया था। खुद से एक सवाल करो क्या हमने पेड़ लगाया था? जहरीली हो रही हवा, चहुँ ओर बीमारी छाई है। ऑक्सीजन भी न मिल रहा, ये कैसी विपदा आई है? ऑक्सीजन देते पेड़ को, कभी हमने ही कटवाया है। ऑक्सीजन का महत्व हमें, प्रकृति ने आज बताया है। जल को किया बर्बाद कभी, खरीद उसे आज पी रहे। जल की बर्बादी कर हम, ये कैसी जिन्दगी जी रहे? जल है तभी प्राण है, रखना इसका ध्यान है। जल की बर्बादी रोक कर, बचानी अपनी जान है। लोभ-मोह में आकर हमने, प्रकृति से खिलवाड़ किया। इससे क्या नुकसान है? क्या हमने कभी विचार किया? रोका न गया खिलवाड़ तो, हम चैन से कैसे सोएँगे? जैसे धरती माँ रो रही, एक दिन हम भी रोएँगे।...
कदाचित
कविता

कदाचित

जयप्रकाश शर्मा जोधपुर (राजस्थान) ******************** अकाल मृत्यु कदाचित् हमारी दृष्टि में। ईश्वर का सबसे बड़ा अन्याय है। जो आज प्रेम कि बात करते हैं, कल वो अपने बच्चों के प्रेम के खिलाफ खड़े हो जाएंगे माता-पिता के कमाई से खरीदा हुआ उपहार किसी के हाथ में आ जाने से कोई ज्ञानी नही हो जाता कदाचित हम हैं इन सब के दोषी हैं परिचय :- जयप्रकाश शर्मा निवासी : जोधपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com ...