बिछड़ रहे हैं हम
आदर्श उपाध्याय
अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश
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बिछड़ रहे हो तुम
बिछड़ रहे हैं हम,
फिर भी दिल से दिल
मिला रहे हैं हम।
ये जुदाई भी नस़ीब वालों
को ही मुकम्मल होती है,
तभी तो आँखों में समन्दर
होठों पर मुस्कान लिए हैं हम।
हमारी उल्फ़तों ने इक ऐसे
मुकाम पर हमें खड़ा कर दिया,
की सबकुछ याद करके
भी भूल रहे हैं हम।
मोहब्बत के इस शज़र पर
कभी कोयल गाया करती थी,
आज कौवे कि कर्कश
ध्वनि सुन रहे हैं हम।
तुमको फिर से मोहब्बत से
ज्यादा मोहब्बत मिले,
यही "वर" महादेव से
माँग रहे हैं हम।
नज़ाकत तुम्हारी
हमेशा यूँ ही बनी रहे,
इसीलिए तो तुमसे
जुदा हो रहे हैं हम।
कभी तुम्हारी आवाज से ही
हमारी सुबह-शाम होती थी,
आज उसी को याद
करके जी रहें हैं हम।
पिया घर जाओगी
आँगन महकाओगी,
यही हर रोज अब
सोच रहे हैं हम।
अब बाहों में तुम्हारी
न हमारा हक होगा,
बस ...