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कविता

जीवन के मूलाधार पिता
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जीवन के मूलाधार पिता

अखिलेश राव इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन का मूलाधार पिता सुख स्वप्नों का साकार पिता ऊबड़ खाबड़ पगडंडी पर पथ सत्य दिखाती राह पिता।। कलुषित तम में प्रकाश पिता निराश हृदय की आस पिता आपाधापी दुर्गम पथ पर पुष्पों संग सजा हे थाल पिता जीवन का मूलाधार पिता।। मेरा जीवन अभिमान पिता स्वावलंबन स्वाभिमान पिता कच्ची मिट्टी के लोंदें हम गढने वाला कुम्हार पिता। सुख स्वप्नों का साकार पिता।। संघर्षों के आधार पिता संकट में ढालाकार पिता दुख सुख लाभ हानि समक्ष पर्वत सी अटल दीवार पिता।। हम सबकी जीवन आस पिता।। परिचय :- अखिलेश राव सम्प्रति : सहायक प्राध्यापक हिंदी साहित्य देवी अहिल्या कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय इंदौर निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं...
मेरे पिता
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मेरे पिता

डॉ. मोहन लाल अरोड़ा ऐलनाबाद सिरसा (हरियाणा) ******************** मुझे था अपने पिता जी पर बहुत नाज था कोमल मन और सदृढ आवाज शांत स्वभाव और खुश मिजाज ना कभी गुस्सा ना ही कभी नाराज शायद मेरी हर बात जानते थे मेरी हर नब्ज पहचानते थे हर काम में सहयोग करते और मेरी हर बात मानते थे कड़ी मेहनत और लग्न से हमे पढाया ऊँची शिक्षा दिला कर डाक्टर बनाया आर्थिक, सामाजिक शिक्षा का ज्ञान बताया धार्मिक और परिवारिक संस्कार का पाठ सिखाया क्या लेना क्या देना का गणित समझाया चोरी और झूठ से कोसो दुर भगाया नीति और नियत का मतलब बताया भूखे को रोटी असहाय की मदद का फर्ज सुनाया मेरे गुरु मेरे मित्र थे मेरे पिता मेरा अस्तित्व, मेरा मान, थे मेरी पहचान मेरी माँ के माथे का सिंदूर, थी माँ की शान स्पष्टवादी, राष्ट्रवादी थे नेक दिल इंसान हे भगवान, हे पालनहार, हे दाता मोहन करे बिनति मुझे हर जन्म ...
राजनीति
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राजनीति

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** राजनीति कुत्सित हुई और लोकतन्त्र लाचार हुआ आदर्शों की बात न पूछो मन में व्याप्त विकार हुआ निज हित ही सर्वोपरि सबसे राष्ट्र नहीं चिंता उनकी वीर शहीदों का सपना तो सब का सब बेकार हुआ संविधान की खिल्ली उड़ती संसद के भीतर बाहर जाति और मज़हब का मुद्दा अच्छा कारोबार हुआ भोग तंत्र में बदल गया है लोकतंत्र इस देश में सत्ता के ऊँचे आसन पर उल्लू का अधिकार हुआ पढ़ालिखा तो बेल बीनता अनपढ़ मंत्री मालिक हैं रोटी कपड़ा का भी सपना कब उनका साकार हुआ बापू अपने अनुयायी से कोई एक सवाल करो फटेहाल जो कल थे आख़िर अरबों का संसार हुआ साहिल जिनको समझ रहे थे वो ही नाव डुबोते हैं दीमक जैसा चाट रहे हैं घर का बंटाधार हुआ परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मन...
रक्तदान कार्य महान
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रक्तदान कार्य महान

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** रक्त दान सब मिलकर अपनाओ, जग में खुशियाँ चहुंओर बरसाओ। हुई दुर्घटना मानव खून बह रहा, देखो प्राण संकट अब बढ़ रहा, रोगी के लिए फरिश्ता बन जाओ जग में खुशियाँ चहुंओर बरसाओ। रक्तदान सब मिल.... आज मानव ईर्ष्या अग्नि में तप रहा, मानव ही मानवता का शत्रु बन रहा मानवता संग प्रेम का दीप जलाओ, जग में खुशियाँ चहुंओर बरसाओ। रक्तदान सब मिल.... जीवन में कुछ कुछ दान सभी करते, अन्न, धन, विद्यादान तो सभी करते, एक विशिष्ट दान का संकल्प उठाओ, जग में खुशियाँ चहुंओर बरसाओ। रक्तदान सब मिल.... इस जगत में रक्तदान है कार्य महान, मानव के प्राण रक्षा का सुंदर विधान, विधान में पुण्य भागीदार बन जाओ, जग में खुशियाँ चहुंओर बरसाओ। रक्तदान सब मिल.... परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शि...
खामोशी
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खामोशी

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** हर जुबां कुछ कहती है, खामोशी से हर दर्द सहती है...! कुछ दर्द का नाम खामोशी है तो कुछ खामोशी दर्द के नाम है..!! रात के अंधेरों मे निकलते है, जो आँसू उनको सह लेती है खामोशी...! दिन के उजालों मे झूठी सी मुस्कान दे जाती है खामोशी..!! न जाने कितनी ही फाइलों मे दर्ज हुई है, खामोशी...! कुछ खुली तो कुछ अभी-भी छुपाई गई है खामोशी..!! खामोश है आज भी वह अखबार इस बात से...! कि फेल न जाए, कोई अफवाह सच के नाम से..!! खामोशी से आज भी सह लेता है, वो टूटा हुआ दिल हर गम...! कि कोई आँख न हो जाए उसकी वजह से नम..!! परिचय :- कु. आरती सुधाकर सिरसाट निवासी : ग्राम गुलई, बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानि...
अदाकारा नहीं है वो
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अदाकारा नहीं है वो

रुखसाना बानो अहरौरा, चुनार, (मिर्ज़ापुर) ******************** अदाकारा नहीं है वो फिर भी, उसे हर किरदार निभाने पड़ते हैं। माँ के रूप में है ममता का अम्बार, बेटी के रूप में है वो सम्मान। ज़रूरत से ज़िम्मेदारी तक, वन्दनवार सजाने पड़ते हैं। अदाकारा नहीं है वो फिर भी, उसे हर किरदार निभाने पड़ते हैं।। बहन के रूप में है वो अभिमान, पत्नी के रूप में है वो स्वाभिमान। विश्वास से लेकर वफादारी तक, हर रिश्ते पिरोने पड़ते हैं। अदाकारा नहीं है वो फिर भी, उसे हर किरदार निभाने पड़ते हैं।। संगी, साथी और मित्र क्या नाम दे उसे, हर क़दम पर जिसने संभाला है हमें। अँधेरे बनकर रौशनी की किरण, उजालों के दिए जलाने पड़ते हैं। अदाकारा नहीं है वो फिर भी, उसे हर क़िरदार निभाने पड़ते हैं।। परिचय :-  रुखसाना बानो विद्यालय : कम्पोजिट विद्यालय अहरौरा निवासी : अहरौरा, चुनार, (मिर्ज़ापुर)। घ...
अनंत प्यास जरूरी है।
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अनंत प्यास जरूरी है।

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** हर दिन के बाद रात आती है सही है, पर रात हमेशा टिकती नहीं, जाती है। फिर प्रभात के साथ गुनगुनाता हुआ सूर्य अपनी लालिमा बिखेरता जीवन के लय में मगन खुशी के गीत गाता है। रे मन अंत से निराश न हों क्योंकि हर अंत के बाद नया आरंभ होता है। टूटते है स्वप्न, चुभती है काँस। गले में अटक-सी जाती है हारने की फाँस। पर हार से हारना नहीं झुकना नहीं, रुकना भी नहीं। रे मन हार से निराश न हो क्योंकि हर हार नई जीत का संदेश लाती है। नए जीवन के प्रस्फुटन के लिए विध्वंस जरूरी है। विरह के स्वाद को चखे बिना प्रीत होती कहाँ पूरी है? तो विध्वंस से डर कैसा? रे मन प्यास से व्याकुल न हो क्योंकि संपूर्ण तृप्ति के लिए अनंत प्यास जरूरी है। परिचय :- श्रीमती विभा पांडेय शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी एवं अंग्रेजी), एम.एड...
हमें समझना है
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हमें समझना है

पवन सिंह पंवार नसरूल्लागंज (मध्य प्रदेश) ******************** अब तो हमें समझना है, प्राण वायु के लिये कुछ करना है, जो कटने जा रहा है बकस्वाह जंगल, उसको हम सब को रोकना है। पर यह सब कैसे करना है, प्रश्न तो यह मन में उठना है, जैसे चला था वो चिपको आंदोलन, बस वैसा ही तो करना है। किसी एक तो बहुगुणा बनना है, फिर सब को एकजुट करना है, और इस तरह सामूहिक प्रयास से, इसे खत्म होने से रोकना है। पर प्रयास यहाँ तक ही सीमित नहीं रखना है, हमें इससे आगे भी काम करना है, क्यों कुर्बान कर दिये जाते हैं लाखों जीव जंतुओं के आश्रय स्थल, इस पर भी विचार करना है। हमें विकास का माॅडल बदलना सिर्फ मानव जाति पर ही फोकस नहीं करना है हो सके सभी का संतुलित विकास ऐसी रणनीति पर काम करना है। यह धरती है सभी जीव जंतुओं की भी, अतः सभी का ध्यान रखना है। यह धरती है सभी जीव जंतुओं की भी, अत...
दिल की गहराइयों में
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दिल की गहराइयों में

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दिल की गहराइयों में दर्द तेरा शामिल है मेरे अश्क़ों का समंदर ही मेरा साहिल है ऐसे पीछे से चलाया गया खंजर मुझ पर हर तरफ़ जैसे लबे-बाम मेरा क़ातिल है मन की बातों को मसोसे हुए मैं बैठ गई आरजू़ कैसे बयाँ हो जो खडा़ जाहिल है मर तो जाऊंगी पर हिम्मत नहीं हारूँगी मैं मेरी रग-रग में मेरी माँ की दुआ शामिल है कब से बैचैन हूँ तन्हाइयों में रोती हूँ दोस्त क्या मेरी जिस्त में पैवस्ता यही हासिल है सुर्ख़ कदमों में लिये फिरती हूँ गाहे-गाहे आबले कौन भला समझे कहाँ आकिल है खू़ब मालूम है तूफ़ां है ये साहिल तो नहीं तू ही कहदे इसे 'कोमल' तो यही साहिल है गाहे-गाहे (जगह/जगह) आबले (फफोले/छाले) परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्य लेखन विधा : गद्य और पद्य की सभी...
चौखट पर ससुराल की
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चौखट पर ससुराल की

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ससुराल की चौखट पर कुमकुम के पैरों से उसका पहला प्रवेश थोड़ी सहमी, थोड़ी शरमाई सी सेज पर अपने मन के भावों को समेटती वो। नए जीवन की उमंग लिए प्रीतम के इन्तज़ार में सिमटी सी बैठी हुई सोच रही है। नये रिश्तों का ताना-बाना कैसे बुनेगी वो? कोशिश रहेगी कि सब को ख़ुश रखेगी वो। उम्मीद कि जो ब्याह कर लाया है उसे समझेगा वो? ग़लतियों की गुंजाइश के डर के साथ बस यही तानाबाना बुन रही है वो। कुमकुम के पैरों से ससुराल की चौखट पर उसका पहला प्रवेश परिचय :- कीर्ति सिंह गौड़ निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित...
योग
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योग

डॉ. गुलाबचंद पटेल अहमदाबाद (गुजरात) ******************** योग कृष्ण के गले में हे सुन्दर माला, विश्व के लोगों ने भी बनाई है योग माला मुलाकात होती है एक संजोग २१ जून को पूरा देश करेगा योग अंग्रेजी में ट्यूज़ड़े, वेडनसडे एंड थरसड़े फ्री स्टाईल से मनाते हैं लोग यहा बर्थ डे भारत देश हे प्यारा और लवली बाबा रामदेव कराते हैं रोज नावली यदि रोग के बारे में तुमने जाना योग से बच सकते हैं दवाई के पेसा यदि रोजाना करेंगे तुम योग नहीं रहेगा आप के शरीर में रोग मुस्लिम समुदाय को सूर्य नमस्कार में बाधा कोई बात नहीं चाँद के सामने करो तुम आधा मी. नरेंद्र मोदी ने लगाया सफाई का नारा रोग भगाने के लिए स्वच्छ रहेगा देश सारा लोग कहते हैं, जगत हे मिथ्या किन्तु योग से बन सकता है विश्व प्यारा योग करने के लिए मे विनती करू मत पीना तुम कभी बीड़ी सिगरेट दारू पोरबंदर की प्रख्यात हे ख़ाजली योग ग...
पिता
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पिता

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** पिता का दाहसंस्कार कर घर के सामने खड़े होकर अपने पिता को पुकारने की प्रथा जो दाहसंस्कार में सम्मिलित होकर बोल रहे थे कि राम नाम सत्य है उन्हें हाथ जोड़कर विदा करने की विनती भर जाती आँखों में पानी वो पानी बढ जाता गला रुँध जाता, तब जब तस्वीर पर चढ़ी हो माला और सामने जल रहा हो दीपक बचपन की स्मृतियाँ संग पिता आ जाती है मस्तिष्क पटल पर जो काम पिता कर लेते थे वो लोगो से पूछकर करना पड़ता होंसला अफजाई और परीक्षा में पास होने पर पीठ थपथपाई भी गुम सी गई अब में पास हुआ किंतु शाबासी की पीठ सूनी सी है और त्यौहार भी मुँह मोड़ चुके और रौशनी रास्ता भूल गई पकवान और नए कपडे कैद हो गए पेटियों में इंतजार है श्राद पक्ष का पिता आएंगे पूर्वजो के संग धरती पर अपने लोगो से मिलने जब श्राद में पूजन तर्पण और उन्हें याद कर...
ओ माँ मुझे बतलादे
कविता

ओ माँ मुझे बतलादे

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** तुझको कैसे बतलाउँ तुझे कितना में चाहूँ ओ माँ मुझे बतलादे तुझे कैसे मनाऊँ तुझे कैसे मनाऊँ अपने मन मंदिर में तेरी मूरत बसाऊँ ओ माँ मुझे बतलादे तुझे कैसे मनाऊँ तुझे कैसे मनाऊँ तूने जनम् दिया है मुझको तूने मुझको पाला हे हर मुश्किल में हर विपदा में तूने मुझे संभाला हे तू मुझसे रूठी हे सबको कैसे बताऊँँ ओ माँ मुझे बतलादे तुझे कैसे मनाऊँ नो महीने मुझे रखा पेट में खुद में मझको ढाला हे दुःख सह सह कर आँसू पीकर तूने मुझको पाला हे इतना प्यार दिया हे उसको कैसे भुलाऊँ ओ माँ मुझे बतलादे तुझे कैसे मनाऊँ जब भी घिरा अंधेरों में माँ तू ही तो उजियारा थी तेरी करुणा की छाती में प्रेम सुधा की धारा थी तेरी हर इक साँस का ऋण मैं कैसे चुकाऊँ ओ माँ मुझे बतलादे तुझे कैसे मनाऊँ मेरे गम में मेरे दुःख में ...
कोरोना काल से निर्भयता की ओर…
कविता

कोरोना काल से निर्भयता की ओर…

जितेन्द्र पटैल (कुशवाहा) गाडरवारा नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश) ******************** फिर मिलेगी दरख़्तों की छांव, फिर वही माहौल होगा गाँव-गाँव, देखना फिर से चौपालें लगेंगीं, और चबूतरे श्रृंगारित होगें गली-गाँव। हर एक, हर एक से मिल पाएगा, यह निबिड़ अंधेरा, समाप्त हो जाएगा, और फिर से मिलेंगे मेरे आपके हँसी के दाँव, खुशी आएगी हर जगह, हर गाँव। यह माहौल भी अस्थाई है, चिरंतन तो खुशी और निर्भयता होगी, हमें मिलती रहेगीं बड़े बुजुर्गों की आशीष छाँव, खुशियां फैलेगीं, गाँव-गाँव। अंधकार कभी नहीं रोक पाया है सबेरे को, शोर को शांति कभी जीतने नहीं देगी, फिर हम मिलेंगे, फिर वही माहौल होगा, आध्यात्मिक वातावरण होगा गांव-गांव। जगह-जगह मिलेगे प्राकृतिक पडाव, खत्म होगें इस आशंका के भाव, अब देर नही है यारों देखिएगा, जब मधुवन होगा हर गली, हर गाँव परिचय :- जितेन्द्र पटैल (कुशवाहा) निवासी...
मानव मन
कविता

मानव मन

राजीव रंजन पांडेय राजधनवार गिरिडीह (झारखंड) ******************** सच में तारुण्य एक अंधी होती है जिसकी अपनी एक गति होती है संकल्प विकल्प क्रिया मन से ही जीवन जीने हेतु सुबुद्धि होती है हर तरफ गहरा अंधेरा दिखता है हर हृदय सूखे सरोवर सा लगता है पूरब में लालिमा अब आने लगी है अब मानव शक्ति प्रगट होने लगी है बहुत कुछ मिला हमें यहां औघड़ दानी उस ईश से जिसने प्रेम किया यहां के हर प्राणी प्राणी से परिचय :-  झारखण्ड प्रदेश के गिरिडीह मंडलान्तर्गत राजधनवार क्षेत्र में रहने वाले राजीव रंजन पाण्डेय पिता संजय कुमार पाण्डेय की शैक्षिक योग्यता संस्कृत से स्नातकोत्तर और बी.एड है जो कि बिनोवा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग से पूर्ण हुई है। आप लगभग दो साल तक राज्य सरकार द्वारा अनुदानित एक विद्यालय में संस्कृत शिक्षक के रूप में सेवायें दे चुके हैं, वर्तमान समय में आप आज अपने पिता और...
खुद को जानो
कविता

खुद को जानो

जयप्रकाश शर्मा जोधपुर (राजस्थान) ******************** खुद को जानो और खुद की अहमियत पहचानों क्योंकि ये स्वर्णिम वक्त निकल जाने के बाद कोई भी नहीं लौटा पायेगा आपके माता पिता भी नहीं छोटे थे हर बात भूल जाया करते थे दुनियाँ कहती थी याद करना सीखो बडे़ हुए तो हर बात याद रहती है दुनियाँ कहती है भूलना सीखो सभी समय-समय की बातें है बैठे-बैठे कैसा दिल घबरा जाता है जाने वालों का जाना याद आ जाता है ज़िंदगी से बड़ी सजा ही नहीं और क्या जुर्म है पता ही नहीं खुद को जानो और खुद की अहमियत पहचानों परिचय :- जयप्रकाश शर्मा निवासी : जोधपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय...
जहाँ के तहाँ रह गये
कविता

जहाँ के तहाँ रह गये

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** वक़्त पर बेजुबां रह गये वे जहाँ के तहाँ रह गये नानुकुर कुछ भी आया नहीं बस निवाले जहां रह गये जुल्म सहते रहे उम्र भर सोचते खामखां रह गये फर्श से अर्श तक ले गये ऐसे काँधे कहाँ रह गये आँख के खून बादल हुये और बन के धुआंँ रह गए पीर बस कसमसाती रही तीर तो बदगुमां रह गये परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com ...
अमर सपूत महाराणा प्रताप
कविता, संस्मरण

अमर सपूत महाराणा प्रताप

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** राजपूती शान हैं राणा! देश का अभिमान हैं राणा!! मुगलों के समक्ष नग सम अटल! चित्तौड़-आन रक्षक थे राणा!! राणा भरे जब-जब हुंकार! समर में गूंँज उठे टंकार!! भयभीत मुगल कांँप उठे थे! राणा के शौर्य कि जयकार!! हल्दीघाटी विकट संग्राम! टकराया असि सँ असि का जाम!! अरिदल शीघ्र हुए भू-लुंठित! पर चेतक पहुंँचा परमधाम!! गिरि-सा साहस था राणा का! चेतक भी अद्भुत राणा का!! इतिहास- अमर जिसका उत्सर्ग! स्वामी -भक्त अश्व राणा का!! जंगलों की खाक थी छानी! घास की रोटी पड़ी खानी!! पर गुलामी नहीं स्वीकार! यशोगाथा जग की जुबानी!! मरुभूमि हो गई रे निहाल! पाकर राणा-सा वीर लाल!! स्वाभिमानी औ पराक्रमी! गौरव तिलक भारत के भाल!! आज स्वार्थ का ऐसा चलन! राष्ट्र हित नित हो रहा दहन!! दिव्य चरित स्मरण कर भारत! राणा का देश-हित-स्व-हवन!! परिचय...
बचपन के वो दिन
कविता

बचपन के वो दिन

संध्या नेमा बालाघाट (मध्य प्रदेश) ******************** वो दिन भी बचपन के थे कब चले गए पता ही नहीं चला बचपन भी कैसा था हर तरफ खुशी ही खुशी घर में कितना भी गम हो चेहरे पर मुस्कान ही होती थी बचपन में किसी चीज के लिए जिद्द करना और रोना। उस पर मां का मारना उसके बाद भी फिर मां की गोद में चले जाना दादा-दादी के पास जाना और मां पापा की बात सुनाना दादी को पूरी बात सुनाना फिर मां के पास आकर मार खाना दोस्तों के साथ दिनभर खेलना फिर घर आना फिर मां से सुनना जा घर क्यों आया उन्हीं के साथ रहना किसी दुकान में कपड़े और खिलौने के लिए मचलना और जिद करके रोना फिर वही मां का डराना घर चल फिर बताती हूं तेरे पापा को तेरी यह हरकतें वह दिन भी बचपन के थे कहां चले गए पता ही नहीं चला परिचय : संध्या नेमा निवासी : बालाघाट (मध्य प्रदेश) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती ह...
ठोकर
कविता

ठोकर

डॉ. मोहन लाल अरोड़ा ऐलनाबाद सिरसा (हरियाणा) ******************** नही रोड़ा मैं किसी के भी रास्ते का सपने देखने का हौसला मैं भी रखता हूँ चाहे छुपा लो सितारों को उजालो मे तुम नजर भर उन्हें मै भी ताकता हूँ रखा है रास्तों ने ठोकर पर तेरी चाह पर मंजिलो पर नजर मै भी रखता हूँ जाने कितने कदम गुजर गए यूँ ही हर कदम के निशान याद मै भी रखता हूँ भटक जाते है लोग अक्सर यहाँ भी पते उनके रास्तों के याद मै भी रखता हूँ नहीं समझेगा कोई तेरी ठोकर के दर्द को यह इल्म तो बस मै ही रखता हूँ गुजर जाते हैं लोग खामोशी से ठुकरा कर उनके दर्द की कहानी मै ही याद रखता हूँ मिलेंगे तुझसे... जब तु खाक ऐ सपुर्द होगा इंसानो की हस्ती को बस मै ही समझता हूँ ना लगे कोई ऊपर वाले... की ठोकर उस ठोकर का दर्द बस मै ही समझता हूँ परिचय :- डॉ. मोहन लाल अरोड़ा कवि लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्ता निवासी : ऐलनाबाद सिरसा (ह...
कभी तुम चुप रहो
कविता

कभी तुम चुप रहो

मंजू लोढ़ा परेल मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** कभी तुम चुप रहो, कभी मैं चुप रहूँ, कभी हम चुप रहें खामोशियों को करने दो बातें, यह खामोशियाँ भी बहुत कुछ कह जाती हैं, जो हम कह न सकें वह भी कह जाती हैं। कभी तुम ... आओ आज युंही बैठे एक-दुजे की आंखो में डुबे उस प्यार को महसुस करे जो जुंबा पर कभी आया ही नहीं। कभी तुम चुप ... आओ हम तुम नदी किनारे हाथों में हाथ दे चहलकदमी करें मुद्दतों से जो सोया था एहसास उसे तपिश की गर्माहट को महसुस करें। कभी तुम चुप ... आओ आज छेडे, ऐसा कोई तराना जो धडकनों में बस जाये बिन गाये, बिन गुनगुनाये संगीत की लहरियों में हम डुब जाये। कभी तुम चुप ... चुप रहना कोई सजा नहीं चुप रहना एक कला है, जो बिना कहें सब कुछ कह जायें वह प्यार तो पूजा है। कभी तुम चुप रहो कभी मैं चुप रहूँ कभी हम चुप रहें....। परिचय :- मंजू लोढ़ा...
इस बहती-बहती बस्ती में
कविता

इस बहती-बहती बस्ती में

प्रियंका सिंह मिर्जापुर ******************** इस बहती-बहती बस्ती में, थम पाँव ज़रा, रूक जाने दो, सागर की बाँहें, थाम लू मैं, मुझे अपनी लय में आने दो। स्वप्निल आँखों का ख्वाब सही, उड़ते-उड़ते ख्यालात सही, विलय नहीं, अब नव विहान, मुझे वो उम्मीद जगाने दो। तम बेला है, राह कठिन, लोगों के व्यवहार कठिन, इन घुटती-चुभती राहों में, एक सृजन मशाल जलाने दो। वो प्रेम का मतलब क्या जाने, जो लड़ते हैं, निज स्वार्थ सही, ना जाति-धर्म, ना घृणा-द्वेष, मुझे वो संसार बसाने दो। हर एक दिशा है, दीवार नई, मुझे उसमें द्वार बनाने दो, सागर की बाँहें, थाम लू मैं, मुझे अपनी लय में आने दो। परिचय :-  प्रियंका सिंह जन्मतिथि : २८/०७/१९८३ निवासी : मिर्जापुर सम्प्रति : शिक्षिका घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आ...
प्रीत साजन की
कविता

प्रीत साजन की

विमल राव भोपाल मध्य प्रदेश ******************** साजन तुम संग प्रीत लगाई मन हीं मन शरमाई मैं। तुम से कुछ दिन दूर रहीं पर तुमकों भूल ना पाई मैं॥ एक एक लम्हा तुमको चाहा एक पल भी ना भूल सकी। जब जब तुमको याद किया तब मन हीं मन मुसकाई मैं॥ सांझ सवेरे इंद्र धनुष सा रंग दिखाई देता हैं। तुम से रोज़ मिलन हों ऐसा स्वप्न दिखाई देता हैं॥ मैं एक कुसुम कली बगिया की तुम भंवर दिखाई देते हों। सच कहती हूँ साजन जी मैं तुम इस दिल में रहते हों॥ पहले मुझमे ना समझी थी अब मैं तुमको समझ रहीं हूँ। जेसा तुम मुझमें चाहते हों वैसा ख़ुद कों बदल रहीं हूँ॥ थोड़ी सी कड़वी हूँ सचमें पर मिश्री सी महक रहीं हूँ। प्रिये तुम्हारे घर आँगन में मैं चिड़िया सी चहक रहीं हूँ॥ प्यार तुम्हारा पाकर सचमुच खुदको परी समझती हूँ। सच कहती हूँ प्रिये कसम से मैं बस तुम पर मरती हूँ॥ तुम बस मुझकों देखो अकसर ...
सिमरन प्रभु का
कविता

सिमरन प्रभु का

श्वेता अरोड़ाशाहदरा दिल्ली****************** किसी ने क्या खूब कहा है कि किस्मत मे होगा तो खुद-ब-खुद मिल जाएगा, पर मै कहती हू कि क्या पता तकदीर मे ये ही लिखा हो कि जैसा कर्म करेगा वैसा ही फल पाएगा! कर्म करता जा तू उस ऊपर वाले की मर्जी के, फिर देख नजारे, पूरी होती अपनी एक-एक अर्जी के! देर है अंधेर नही, उस ऊपर वाले के दरबार मे, लेने वाले देखे बहुत, पर देने वाला एक ही है इस संसार मे! तेरा सर ना झुकने देगा किसी के आगे, अगर सर तेरा उस ऊपर वाले के आगे झुक जाएगा, कर ले सिमरन हर पल प्रभु का, भाग्य तेरा खुल जाएगा! परिचय : श्‍वेता अरोड़ा निवासी : शाहदरा दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा...
मेरी प्यारी बेटी
कविता

मेरी प्यारी बेटी

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** बेटी को जन्मदिन की दिल से शुभ कामनाएं और देता हूँ शुभ आशीष। प्रगति के पथ पर चलकर करो नाम अपना रोशन। सबकी प्यारी सबकी दुलारी तभी हृदय में सबके बसती। और ख्याल सभी का बेटी जो तुम दिल से रखती हो।। घर आने पर दौड़कर पास आ जाती हो। सीने से लिपटकर प्यारी बेटी। तुम दिलको खुश कर देती हो। और अपनी प्यारी बातों से दिल मेरा जीत लेती हो।। थक जाने पर, स्नेह प्यार से। माथे को सहलाती हो, और अपने स्नेह प्यार से तुम थकन मिटा देती हो।। कभी न कोई जिद की किसी बात को लेकर। कल दिला देंगे, कहने पर मान जाती हो। और छोड़कर जिद्द अपनी, फिर सबके संग खेलने लगती हो।। रोज़ समय पर माँ को दवा की याद दिलाती हो। और अपने हाथो से अपनी मम्मी को खिलाती हो। उसका दुख दर्द हर लेती हो। और मम्मी की प्यारी बेटी तुम बन जाती हो।। घर को मन से औ...